युध्द के मुहाने पर खाड़ी |
(09:36:19 PM) 30, Jan, 2012, Monday |
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डॉ. रहीस सिंह ईरान और अमेरिका के बीच लम्बे समय से चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है जिसे आरम्भ में दुनिया ने भले ही गम्भीरता से न लिया हो, लेकिन अब उसे यह एक ऐसे संकट के रूप में दिखने लगा है जिससे मध्य-पूर्व में कोहराम मच सकता है। अमेरिका, उसके यूरोपीय सहयोगी और यहां तक कुछ अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियां ईरान को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं लेकिन ईरान इस घेरेबंदी से भयभीत होने की बजाय दुनिया को दबंगई दिखाने की कोशिश में है। लातिनी अमेरिकी देशों के साथ-साथ चीन और रूस के साथ कूटनीतिक सम्बन्धों के जरिए अमेरिका व पूंजीवादी यूरोप विरोधी लॉबी को विस्तार देने की ईरानी मंशा यह बताती है कि ईरान किसी भी कीमत पर पीछे हटने की मन:स्थिति में नहीं है। अब अमेरिका भी उसे परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने की मन:स्थिति में पहुंच रहा है। शांति का आग्रह करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अब उसी तरह की भाषा बोलते दिख रहे हैं जिस तरह की भाषा का प्रयोग कभी इराक के मामले में जूनियर बुश ने किया था। ऐसी स्थिति में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या अफराशियाब के वंशजों का भी वही हश्र होने वाला है जो कभी 'मरजीना के देश' का हुआ था। कुछ समय पहले अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व सलाहकार इलियट कोहेन ने जब यह बात कही थी कि ईरान के मामले में दो ही विकल्प शेष बचे हैं और इनमें से एक है-युध्द। तब कोहेन के शब्दों में कूटनीतिज्ञों को उतनी स्पष्टता नहीं दिखी थी जो बुश और चेनी युग की विशेषता थी। लेकिन राष्ट्रपति ओबामा की किसी हद तक जाने की बात में बुश और चेनी युग की प्रतिध्वनि स्पष्ट तौर पर सुनी जा सकती है। अमेरिका की ईरान को घेरने की कोशिश और तमाम चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपने परमाणु कार्यक्रम के प्रति प्रतिबध्दता का प्रकटीकरण, कुछ ऐसी ही अभिव्यक्तियां हैं। हालांकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए अमेरिकी रुख को गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अब बहुत से ऐसे पक्ष सामने आ चुके हैं जो यह बताते हैं कि ईरान परमाणु बम बनाने के काफी करीब पहुंच चुका है। ईरान यूरेनियम को 20 प्रतिशत तक संवर्धित कर लेने की क्षमता पहले ही प्राप्त कर चुका है और अभी हाल ही में ईरान के वैज्ञानिकों ने पहली बार परमाणु ईंधन छड़ बनाने का दावा भी कर दिया है। ऐसे में अमेरिकी और यूरोपीय देशों का ईरान पर शंका करना जायज है क्योंकि अमेरिका के एक प्रमुख थिंक टैंक का कहना है कि अगर तेहरान यूरेनियम को थोड़ा और संवर्धित कर ले तो उसके पास चार परमाणु बमों के लायक सामग्री मौजूद है। इसलिए अमेरिका द्वारा ईरान के केंद्रीय बैंक पर रोक लगाने सहित उस पर दबाव बनाने के लिए उठाये गये तमाम कदमों को अपेक्षित मानने में किसी को भी कोई परहेज नहीं होना चाहिए। परन्तु एक सवाल है जो अक्सर व्यथित करता है। आखिर ईरान को मध्यपूर्व में परमाणु हथियारों की होड़ तेज करने की जरूरत क्यों पड़ी? अरब दुनिया का एक शक्तिशाली घटक शिया विरोध में इजराइल के साथ खड़ा है या अमेरिकी लॉबी का हिस्सा है। ऐसे में परमाणु हथियार बनाना और उसे छुपाए रखना ईरान की विवशता है। यही नीति तो इजराइल ने भी अपनाई थी। इजराइल किसी भी युध्द क्षेत्र में भिड़ने के लिए तैयार इसलिए रहा क्योंकि उसके पास परमाणु हथियार थे और उसकी सोच यह थी कि अगर हम युध्द हारने के कगार पर होंगे तो परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे। यही आत्मविश्वास उसके आक्रामक रवैये को बढ़ाता गया। अगर ईरान परमाणु बम तैयार कर लेता है तो मध्य पूर्व में वही ऐसी ताकत बन जाएगा जो इजराइल को रोकने समर्थ होगी। ईरानी परमाणु बम को रोकने के पीछे कुछ चिंतकों का तर्क भी माना जाता है कि ईरानी उन्मादी होते हैं। अगर उन्हें इजराइल का सिर मिले तो वे राष्ट्रीय आत्महत्या करने से भी नहीं हिचकेंगे। लेकिन यह सिर्फ क्लासिकी सोच भर है। क्या पाकिस्तानी तालिबानियों की सोच इससे कम वीभत्स है? पाकिस्तान पर कोई कार्रवाई नहीं होगी जबकि ईरान पर सम्भव है। इसकी कई वजहें हैं ईरान के खिलाफ घेरेबंदी के क्रम में अमेरिका ने ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों को और कड़ा करते हुए उसके तीसरे सबसे बड़े बैंक तिजारत के साथ किसी भी तरह के लेन देन पर रोक लगा दी है। प्रतिबंध के बाद अगर कोई भी विदेशी कंपनी ईरान के तिजारत बैंक और इसके सहयोगी बेलारूस स्थित ट्रेड कैपिटल बैंक के साथ लेन-देन करेगी तो अमेरिका उसके खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई करेगा। उसके केन्द्रीय बैंक पर रोक पहले से ही लग चुकी है। यहां तक तो फिर गनीमत थी लेकिन जिस तरह से यूरोपीय संघ ने जुलाई से ईरान से तेल आयात रोकने का ऐलान किया है, उससे ईरान और पश्चिमी दुनिया के बीच कायम तनाव टकराव में परिवर्तित होने लगा है। दरअसल मध्य-पूर्व के अधिकांश देशों की तरह ईरान की भी अर्थव्यवस्था तेल निर्यात पर ही निर्भर है इसलिए ईरान की अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाने का कोई भी प्रयास उसकी उग्रता का कारण बनेंगे। हालांकि ये तेल भंडार भी अमेरिका और यूरोपीय दुनिया के लालच का एक बड़ा कारण है। लेकिन इसके साथ ही ईरान का परमाणु बम और उसकी उकसाने वाली हरकतें भी एक वजह है। इनमें से जो वातावरण को सबसे अधिक जटिल बना रही है वह है उसके द्वारा अपनी सैनिक ताकत का प्रदर्शन। उदाहरण के तौर पर होर्मुज जलसंधि में हुए उसके दस दिवसीय नौसैनिक युध्दाभ्यास को देखा जा सकता है जिसके जरिए उसने पूरी दुनिया को दबंगई दिखाने का प्रयास किया है। उसकी इस तरह की हरकतें उसकी गम्भीरता का परिचय कदापि नहीं हो सकतीं क्योंकि ये हरकतें इजराइल और उसके साथ-साथ अमेरिका व यूरोप को आक्रामक होने का जरिया बन सकती हैं। उल्लेखनीय है कि अभी कुछ समय पहले ही इजराइल अमेरिका को पूर्व सूचना के बिना ही, कभी भी ईरान पर हमला करने की धमकी दे चुका है। यह किसी सुखद तस्वीर को निर्मित करने की कवायद हरगिज नहीं हो सकती। ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंध और ईरान द्वारा होर्मुज जलसंधि से होने वाले तेल व्यापार पर पाबंदी की धमकियां अब शायद रेड लाइन को पार कर चुकी हैं। अब तक यूरोपीय संघ के कुछ देशों, खासकर ग्रीस, इटली, स्पेन जैसे देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के कारण ईरान के खिलाफ नहीं थे लेकिन अब यूरोपीय संघ ने भी प्रतिबंधों के लिए सैध्दांतिक सहमति दे दी है। वैसे तो यूरोपीय संघ ईरान के तेल निर्यात के पांचवें हिस्से का ही आयातक है, लेकिन ईरान की अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह एक महत्वपूर्ण घटक होगा। इसे और अपने बैंकों पर प्रतिबंध के खिलाफ ईरान प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करना चाहेगा। इस प्रतिक्रिया का हिस्सा होर्मुज जलसंधि पर प्रतिबंध बन सकते हैं जिनकी धमकियां उसकी तरफ से अक्सर दी जाती हैं। यह क्षेत्र खाड़ी और तेल उत्पादक देश-बहरीन, कुवैत, कतर, सउदी अरब, यूएई को हिंद महासागर से जोड़ता है तथा करीब 40 प्रतिशत तेल यहीं से होकर गुजरता है। इसलिए तेल रोकने सम्बन्धी ईरान की एक भी हरकत खाड़ी में युध्द के लिए उलटी गिनती शुरू कर सकती है। बहरहाल एक और खाड़ी संकट के साथ-साथ एक और तेल संकट दुनिया के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। ईरान के कदमों से इजराइल पहले से ही उग्र रवैया अपनाए हुए है और भावी राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए बराक ओबामा किसी भी कीमत पर यहूदी जनमत के अपने खिलाफ हो जाने का जोखिम उठाना नहीं चाहते। मार्च में ईरान के संसदीय चुनाव होने हैं इसलिए अहमदीनेजाद के पास भी अपनी हमलावर पोजीशन से चुपचाप पीछे हटने का रास्ता नहीं बचा है। फिर खाड़ी को युध्दोन्माद से बचाएगा कौन? 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Tuesday, January 31, 2012
युध्द के मुहाने पर खाड़ी (09:36:19 PM) 30, Jan, 2012, Monday
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2685/10/0
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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
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BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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