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Monday, July 12, 2010

जागरण, अमर उजाला और मेरठ के दंगे

जागरण, अमर उजाला और मेरठ के दंगे

http://bhadas4media.com/article-comment/5677-naunihal-sharma.html

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naunihal sharma: भाग 26 : 1980 के दशक में मेरठ हमेशा बारूद के ढेर पर बैठा रहता था। हरदम दंगों की आशंका रहती थी। गुजरी बाजार, शाहघासा, इस्लामाबाद, शाहपीर गेट, मछलीवालान और भुमिया का पुल बहुत संवेदनशील स्थान थे। हिन्दू-मुस्लिम समुदाय यों तो शहर में एक-दूसरे के पूरक थे- एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता था- मगर सियासी चालबाजों को उनकी गलबहियां नहीं भाती थीं। ये दोनों समुदाय वोट बैंक थे।

तब मुकाबला दो ही पार्टियों में हुआ करता था। कांग्रेस और भाजपा में। सपा-बसपा जैसी पार्टियां नहीं थीं। इसलिए मतदाताओं के सामने सीमित विकल्प होते थे। और इसीलिए नेतागण दंगे का इस्तेमाल एक हथियार की तरह किया करते थे (अब भी करते हैं, लेकिन तब बाहुबलियों जैसे विकल्प नहीं थे। यही वजह है कि तब दंगे अक्सर होते रहते थे।)। दंगों का भी समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र होता है। वास्तव में साम्प्रदायिक तत्व से ज्यादा महत्वपूर्ण तत्व यही होते हैं। और इन दोनों तत्वों के लिए प्रचार बेहद जरूरी होता है। इसलिए यह संयोग नहीं है कि मेरठ में 'जागरण' (1984) और 'अमर उजाला' (1986) के आने के बाद दंगों की बाढ़ सी आ गयी थी।

वजह साफ थी।

इन दोनों अखबारों के आने से पहले मेरठ में अखबार तो काफी थे, पर उनका फलक इतना बड़ा नहीं था। इसलिए 'जागरण' और 'अमर उजाला' के आने से दंगों के 'सूत्रधारों' के मजे आ गये। किसी मामूली सी बात पर दंगा होता। जैसे- दो साइकिलों की टक्कर, छेड़छाड़, मंदिर या मस्जिद के पास अवांछित चीज का मिलना, सब्जीवाले से झगड़ा, पतंगबाजी में तकरार, रिक्शावाले से पैसे को लेकर कहासुनी, खेल-खेल में बच्चों की भिड़ंत...

वजह कुछ भी हो, हल्ला मचता। ईंट-पत्थर फेंके जाते। भगदड़ मच जाती। फिर होती छुरेबाजी। एक लाश गिरते ही शहर में पुलिस की जीपें दौडऩे लगतीं। पहले पुलिस हालात को काबू में करने की कोशिश करती। कई जगह पुलिस पर भी पथराव हो जाता। संकरी गलियों में छुरेबाजी जारी रहती। आखिर पुलिस जीपों के लाउडस्पीकरों से कर्फ्यू की घोषणा की जाती। कई दिन कर्फ्यू रहता। पूरा शहर सहमा रहता। कर्फ्यू में ढील दी जाती। लोग जरूरत की चीजें खरीदने के लिए बाजारों की ओर दौड़ पड़ते। फिर कहीं छुरा चल जाता। और फिर कर्फ्यू लग जाता। उसके बाद शुरू होता कर्फ्यू वाले इलाकों में राहत पहुंचाने का सिलसिला। यहीं से शुरू हो जाती राजनीति। जहां जिसका वोट बैंक होता, वह वहीं राहत लेकर जाना। उसके फोटो अखबारों में छपवाये जाते। उन फोटो और खबरों के आधार पर ऊपर तक सोढिय़ां लगायी जातीं।

यह सब चलता रहता। जनता हमेशा सिमटी-सहमी रहती कि पता नहीं कब कब चिंगारी भड़क उठे। ऐसे में पत्रकारों की खासी मुसीबत रहती। कर्फ्यू पास बनवाकर किसी तरह ड्यूटी पर पहुंचते। ऐसे में पड़ोसी घर आकर लिस्ट थमा जाते। सबको कुछ न कुछ मंगवाना रहता। तो पड़ोसी धर्म भी निभाना पड़ता। दफ्तर से मारुति जिप्सी लेने आती। सुबह को निकलती, तो नाइट शिफ्ट वालों को भी बटोर लाती। यानी डबल ड्यूटी। रात को सबको घर छोड़ती। जब तक सुबह के गये घर न लौट आते, तब तक घरवालों के मन में आशंकाओं के बादल उमड़ते-घुमड़ते रहते। इस तरह रोज 14-15 घंटे हम दफ्तर में बिताते। जागरण का दफ्तर साकेत में था। वहां कभी कर्फ्यू नहीं लगता था।

दंगे के दौरान न केवल काम बढ़ जाता, बल्कि आने-जाने का जोखिम भी रहता। लेकिन इसके बावजूद एक जोश रहता। महसूस होता कि कुछ बहुत जिम्मेदारी का काम कर रहे हैं। वो इसलिए कि उन दिनों खबरिया चैनल तो थे नहीं। तो सूचनाएं पाने के लिए सबकी नजरें रेडियो और अखबारों पर रहतीं। रेडियो था सरकारी। उस पर बहुत संक्षिप्त खबर आती मेरठ के दंगे की। वो भी सरकारी नजरिये से। ले-देकर रह जाते अखबार। दंगे के दिनों में मेरठ में अखबार ब्लैक में मिलते।

आज भी मुझे दुनिया के सबसे साहसी लोगों में मेरठ के वे हॉकर भी लगते हैं, जो कफ्र्यू और अपनी जान की परवाह किये बिना सुबह-सुबह साइकिलों पर अखबार लादकर निकल पड़ते शहर में बांटने। हर गली के नुक्कड़ पर लोगों की भीड़ जमा रहती। जिनके घर रोज के अखबार बंधे हुए थे, उन्हें अखबार पहले मिलता। बाकी लोग हॉकर के पीछे भागते। तीन-चार गुना पैसे देकर भी अखबार पा जाते , तो खुद को भाग्यशाली समझते। फिर उन अखबारों का सामूहिक वाचन होता। जोर-जोर से खबरें पढ़ी जातीं। दूसरे मोहल्लों में पिछले दिन हुई वारदातों का पता चलता। लोग चिल्ला-चिल्ला कर कहते-

'देखो, मैं बोल रहा था ना, रात को मोरीपाड़ा पर हमला हुआ था।'

'और गुजरी बाजार की ओर से भी तो हल्ले की खबर आयी है छपके।'

'भुमिया के पुल पर तो चाकुओं से गुदी लाश मिली।'

'सुभाष नगर पर भी हो ही जाता हमला... वक्त पे पुलिस के पहुंचने से बच गये।'

'कोतवाली के सामने कचरे का ढेर जमा है चार दिन से। कफ्र्यू खुल नहीं रहा। जमादार लोग उठाने भी कैसे आयें?'

'ये तो पुलिस की जिम्मेदारी है। जब कफ्र्यू लगाया है, तो सड़कों पर भी तो उसी का राज हुआ। फिर वो सफाई क्यों नहीं कराती?'

'हां भई, बदबू के मारे सिर फटा जा रहा है। कफ्र्यू हटे, तो ये गंदगी ही पहले हटवाएं।'

इसी तरह की चर्चाएं कर्फ्यूग्रस्त इलाकों में होती रहतीं। जब हमें लेने अखबारों की गाड़ी आती, तो लोग पहले अपने सामान की लिस्ट थमाते। फिर खबरें छापने को कहते। उनकी खबरें भी बहुत विविधता वाली होतीं-

'आप ये जरूर छापना कि तीन दिन से हमारे महल्ले में दूध नहीं आया है। छोटे बच्चों ने रो-रो कर बुरा हाल कर रखा है।'

'नुक्कड़ की दुकान वाले ने भी अंधकी मचा रखी है। दो रुपये का सामान आठ रुपये में दे रहा है। हम पूछें, उसकी खरीदी तो कर्फ्यू के पहले की है। फिर वो इतनी महंगाई क्यूं किये हुए है?'

'साहब, औरत के दिन पूरे हो गये हैं। जचगी कैसे होगी? ये मरे खाकी वाले तो दूसरे महल्ले से दाई को भी ना लाने देंगे।'

'लड़की को छूचक पहुंचाना है। बताओ कैसे पहुंचायें?'

'खुद तो भूखे रह भी लें, पर बकरी को तो घास चाहिए। कईं ना मिल रई।'
'चौराहे के पीछे वाली चाय की दुकान में मुझे तो कुछ गड़बड़ लगै है। कल वहां दो लड़के कुछ सामान रखकर भाग गये। आप जरा चैक करा लेना पुलिस से कि कुछ असलाह वगैरा तो नहीं है।'

एक दिन गाड़ी का ड्राइवर नहीं आया था। इसलिए विज्ञापन विभाग के मुनीश सक्सेना गाड़ी चला रहे थे। मैं और फोटोग्राफर गजेन्द्र सिंह ही थी गाड़ी में। हमें नौनिहाल ने अपने घर बुला लिया। हम अंदर गये। एक कमरे के घर में मधुरेश खेल रहा था। प्रतीक सो रहा था। गुडिय़ा तब तक नहीं हुई थी। उसी कमरे में नौनिहाल की पूरी गृहस्थी थी। कपड़े, बर्तन, दो खाट, एक फोल्डिंग पलंग... और इनसे जो जगह बची, उसमें अखबार, पत्रिकाएं, किताबें!

सुधा भाभी ने हमें नींबू की शिकंजी पिलायी। फिर पंखा झलते हुए हमारे पास बैठ गयीं। बोलीं, 'भइया इनका ध्यान रखा करो। बोल-सुन तो सकते नहीं, पर जोश ऐसा दिखाते हैं जैसे ये ही कपिल देव हों। हमारा तो कोई आगे-पीछे है ना। बस तुम लोग ही हो।'

वे सुबकने लगी थीं। हम भी सीरियस हो गये। हमारे मुंह ही मानो सिल गये। क्या बोलें? नौनिहाल अपनी मस्ती में थे।

अचानक उन्हें लगा कि कुछ गंभीर बात हो गयी है। (उन्होंने सुधा भाभी को बोलते हुए नहीं देखा था। नहीं तो वे समझ जाते।)

वे ठहाका लगाकर बोले, 'जरूर मेरी बामनी (वे भाभी को प्यार से यही कहते थे) ने मरने-खपने की कुछ बात कह दी है।'

bhuvendra tyagiफिर भाभी की ओर देखकर बोले, 'तू क्यूं चिंता करती है? मैं ना रहया, तो मेरे ये दोस्त हैं ना तुम्हारा खयाल रखने को!'

इतना कहकर वे उठकर चल दिये। हम सबका मन भारी हो गया। हम धीरे-धीरे जिप्सी की ओर बढ़े। भाभी हमें ओझल होने तक देखती रहीं...

लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है. वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क bhuvtyagi@yahoo.comThis e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it के जरिए किया जा सकता है.



पीपली लाइव और एमपी का एक अखबार

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आमिर खान की शायद ही कोई फिल्म ऐसी रहती है जिसकी चर्चा न हो। ऐसी ही एक अब सुर्खियों में है। पीपली लाइव। कहा जा रहा है कि पीपली लाइव  किसानों की हालत पर फोकस फिल्म है। मेरा मकसद यहां पर आमिर खान की फिल्म की तारीफ करना नहीं है। मेरा मकसद है कि जब आमिर खान किसानों की हालत पर फिल्म बना सकते हैं तो क्यों न लगे हाथों मध्यप्रदेश के प्रकाशित होने वाले उस अखबार का भी जिक्र हो जाए जिसकी नाम राशि आमिर खान की पीपली लाइव से मिलती है।

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टिकर में ऐसी गल्तियां क्यों करते हैं?

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: ये तो हद हो गई : इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोगों की दिमागी हालत के बारे में मैं सोचकर हैरान हो जाता हूं. न्यूज चैनलों पर नीचे की ओर चलने वाली खबर की पट्टी में जिस तरह से शीर्षक चलाए जा रहे हैं, उससे तो अब माथा पीट लेने को जी करता है। 9 जुलाई की रात की बात है.

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जागरण, अमर उजाला और मेरठ के दंगे

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naunihal sharma: भाग 26 : 1980 के दशक में मेरठ हमेशा बारूद के ढेर पर बैठा रहता था। हरदम दंगों की आशंका रहती थी। गुजरी बाजार, शाहघासा, इस्लामाबाद, शाहपीर गेट, मछलीवालान और भुमिया का पुल बहुत संवेदनशील स्थान थे। हिन्दू-मुस्लिम समुदाय यों तो शहर में एक-दूसरे के पूरक थे- एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता था- मगर सियासी चालबाजों को उनकी गलबहियां नहीं भाती थीं। ये दोनों समुदाय वोट बैंक थे।

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राजेंद्र यादव, हत्यारों की गवाहियां बाकी हैं!

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: 'हंस' के जलसे में अरुंधति और विश्वरंजन को आमने-सामने खड़ा कर तमाशा कराने की तैयारी : देश के मध्य हिस्से में माओवादियों और सरकार के बीच चल रहे संघर्ष का शीर्षक रखने में, राजेंद्र बाबू उतना भी साहस नहीं दिखा पाये जितना कि शरीर के मध्य हिस्से के छिद्रान्वेषण पर वे लगातार दिखाते रहे हैं।

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नागपुर पुलिस का डंडा और पत्रकारिता

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: सच के पक्ष में आएं पुलिस आयुक्त : प्रेस, पुलिस, पब्लिक के बीच परस्पर सामंजस्य को कानून-व्यवस्था के लिए आवश्यक मानने वाले आज निराश हैं। दुखी हैं कि इस अवधारणा की बखिया उधेड़ी गई कानून-व्यवस्था लागू करने की जिम्मेदार पुलिस के द्वारा! ऐसा नहीं होना चाहिए था। मैं मजबूर हूं अपने इस मंतव्य के लिए कि सोमवार 5 जुलाई को भारत बंद के दौरान नागपुर पुलिस ने अमर्यादा का जो नंगा नाच दिखाया उससे पूरा पुलिस महकमा विवेकहीन, अनुशासनहीन दिखने लगा है। दो दशक बाद नागपुर पुलिस का डंडा कर्तव्यनिर्वाह कर रहे पत्रकारों पर पड़ा।

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जार्ज, जया और लैला... तमाशा जारी है....

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:  पिंजड़े में बूढ़े 'शेर' की सूनी आंखें! :  कई बार वक्त ऐसा त्रासद मोड़ लेता है कि दहाड़ लगाने वाला शेर भी 'म्याऊं-म्याऊं' बोलने के लिए मजबूर हो जाता है। जब कभी ऐसे मुहावरे किसी की जिंदगी के यथार्थ बनने लगते हैं, तो उलट-फेर होते हुए देर नहीं लगती। शायद ऐसा ही बहुत कुछ स्वनाम धन्य जार्ज फर्नांडीस की जिंदगी में इन दिनों घट रहा है। इमरजेंसी के दौर में शेर कहे जाने वाले इस शख्स को लेकर 'अपने' ही फूहड़ खींचतान में जुट गए हैं। अल्जाइमर्स और पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे जार्ज एकदम लाचार हालत में हैं। जो कुछ उनके आसपास हो रहा है, उसका कुछ-कुछ अहसास उन्हें जरूर है। इसका दर्द उनकी सूनी-सूनी आंखों में अच्छी तरह पढ़ा भी जा सकता है।

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खबर बनाते हुए सुनाने की आदत

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: भाग 25 : पलाश दादा अपनी प्रखरता से जल्द ही पूरे संपादकीय विभाग पर छा गये। उनकी कई खूबियां थीं। पढ़ते बहुत थे। जन सरोकारों से उद्वेलित रहते थे। जुनूनी थे। सिस्टम से भिडऩे को हमेशा तैयार रहते। शोषितों-वंचितों की खबरों पर उनकी भरपूर नजर रहती। उनके अंग्रेजी ज्ञान से नये पत्रकार बहुत आतंकित रहते थे। बोऊदी (सविता भाभी) की शिकायत रहती कि उनकी तनखा का एक बड़ा हिस्सा अखबारों-पत्रिकाओं-किताबों पर ही खर्च हो जाता है। पलाश दा के संघर्ष के दिन थे वे। नया शहर, नया परिवेश, मामूली तनखा और ढेर सारा काम। पर उन्होंने कभी काम से जी नहीं चुराया। वे पहले पेज के इंचार्ज हुआ करते थे। उनके साथ नरनारायण गोयल, राकेश कुमार और सुनील पांडे काम करते थे। इनमें से कोई एक डे शिफ्ट में होता। वह अंदर का देश-विदेश का पेज देखता। उनके साथ होता कोई नया उपसंपादक।

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मीडिया को रोक रहे हैं पुलिस व नक्सली

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पुलिस और नक्सली, दोनों अब मीडिया पर शिकंजा कसने में लगे हैं. इसकी बानगी छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में औड़ाई में हुई नक्सली घटना के बाद देखने को मिली. वहां मीडियाकर्मियों को जाने से रोक दिया. एक तरफ तो नक्सलियों का तालिबानी चेहरा साफ नजर आ रहा है दूसरी ओर पुलिस ने भी मीडियाकर्मियों को रोक कर अपने अलोकतांत्रिक चेहरे का दर्शन कराया है.

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'लेफ्टिस्ट' पत्रकारों पर खुफिया नजर

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रायपुर से खबर है कि नक्सलियों से संबंध रखने वाले और लेफ्ट विचारधार को सपोर्ट करने वाले पत्रकारों पर खुफिया एजेंसियों ने पैनी नजर गड़ा दी है. ऐसा आंध्र प्रदेश पुलिस की रिपोर्ट के बाद किया गया है. खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों को खुफिया एजेंसियों गंभीरता से वाच कर रही हैं.

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आफिस में बेहोश हुए कर्मी की अस्पताल में मौत

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खबर है कि शनिवार के दिन हिंदुस्तान, धनबाद में कार्यरत मीडियाकर्मी शंभू सिंह की मौत हो गई. शंभू हिंदुस्तान में प्रासेस-प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में प्लेट मेकिंग का काम करते थे. उनका इलाज धनबाद के द्वारका दास जालान हास्पिटल में चल रहा था.  उन्हें बेहोशी के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

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बम हमले में पत्रकार विजय प्रताप भी जख्मी

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: हालत गंभीर : मंत्री कोमा में : दो गनर की मौत : इलाहाबाद में हुई घटना : यूपी में मायावती सरकार के केंद्रीय मंत्री नंद गोपाल गुप्ता उर्फ नंदी पर बम से हमले की घटना में एक वरिष्ठ पत्रकार भी घायल हुए हैं. इनका नाम है विजय प्रताप सिंह. कई अंग्रेजी अखबारों में काम कर चुके विजय इन दिनों इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े हुए हैं.

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कब धरे जाएंगे पत्रकार अवनीश के हत्यारे?

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यूपी के बस्ती जिले में 'आज' अखबार के पत्रकार अवनीश कुमार श्रीवास्तव के हत्यारे अभी तक पकड़े नहीं जा सके हैं. हत्या के दो हफ्ते बीत गए पर पुलिस कोई खुलासा नहीं कर सकी. पुलिस के इस रवैये से अवनीश के परिजन व पत्रकार खफा है. बस्ती जिले के पत्रकारों ने शनिवार को जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के बैनर तले हत्यारोपियों की जल्द गिरफ्तारी की मांग को लेकर मौन जुलूस निकाला.

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पहले तड़पाया, फिर सिर में गोली मारी

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: अपहृत पत्रकार की निर्ममतापूर्वक हत्या : बिहार सरकार के एक मंत्री पर उठी उंगली : हत्या के विरोध में बंद,  मौन जुलूस निकाला : कुशीनगर : अपहृत पत्रकार तेजबहादुर की लाश शनिवार को नौरंगिया (बिहार) थाना क्षेत्र के दिल्ली कैम्प के पास से बरामद हुई है. पत्रकार को क्रूरतापूर्वक यातना देने के बाद हत्यारों ने सिर में गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था.

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गुजर गईं शांताजी

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रायपुर। प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय गजानन माधव मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का निधन गुरुवार रात हो गया। उनकी उम्र 88 वर्ष थी। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थीं। शुक्रवार सुबह 11 बजे उनका अंतिम संस्कार रायपुर के देवेंद्र नगर श्मशानघाट में किया गया। वे रमेश, दिवाकर, गिरीश व दिलीप मुक्तिबोध की माता थीं। उन्हें मुखाग्नि उनके कनिष्ठ पुत्र गिरीश मुक्तिबोध ने दी। उनके अंतिम संस्कार के मौके पर कई जाने-माने लोग, बुद्धिजीवी, साहित्यकार आदि मौजूद थे।

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प्रसिद्धि की इच्छा नहीं थी अग्निहोत्रीजी में

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: श्रद्धांजलि सभा में वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह 'सूर्य' ने कहा : ''राम शंकर अग्निहोत्री जी आत्मलोपी स्वभाव के थे। वे बिना चर्चा में आये काम करते रहे।'' यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य श्री राजनाथ सिंह 'सूर्य' का। श्री सूर्य विश्व संवाद केन्द्र, लखनऊ में श्री राम शंकर अग्निहोत्री जी की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में बोल रहे थे।

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नागपुर में गुस्साए पत्रकार सड़क पर उतरे

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विरोध प्रदर्शन

: न्याय नहीं मिला तो आंदोलन जारी रहेगा : नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ ने दिया विभागीय आयुक्त को ज्ञापन  : दोषी पुलिसकर्मियों के निलंबन का मांग : नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के पदाधिकारी, सदस्यों व गैर पत्रकारों ने 5 जुलाई को भारतबंद का कवरेज कर रहे मीडियाकर्मियों पर लाठीचार्ज के मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित किए जाने की मांग को लेकर विभागीय आयुक्त कार्यालय के पास विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन का निर्णय मंगलवार को ही एक बैठक में लिया गया था। सुबह 12:30 बजे प्रदर्शन के दौरान भारी बारिश हो रही थी।

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'लेफ्टिस्ट' पत्रकारों पर खुफिया नजर

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रायपुर से खबर है कि नक्सलियों से संबंध रखने वाले और लेफ्ट विचारधार को सपोर्ट करने वाले पत्रकारों पर खुफिया एजेंसियों ने पैनी नजर गड़ा दी है. ऐसा आंध्र प्रदेश पुलिस की रिपोर्ट के बाद किया गया है. खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों को खुफिया एजेंसियों गंभीरता से वाच कर रही हैं.

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आफिस में बेहोश हुए कर्मी की अस्पताल में मौत

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खबर है कि शनिवार के दिन हिंदुस्तान, धनबाद में कार्यरत मीडियाकर्मी शंभू सिंह की मौत हो गई. शंभू हिंदुस्तान में प्रासेस-प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में प्लेट मेकिंग का काम करते थे. उनका इलाज धनबाद के द्वारका दास जालान हास्पिटल में चल रहा था.  उन्हें बेहोशी के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

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बम हमले में पत्रकार विजय प्रताप भी जख्मी

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: हालत गंभीर : मंत्री कोमा में : दो गनर की मौत : इलाहाबाद में हुई घटना : यूपी में मायावती सरकार के केंद्रीय मंत्री नंद गोपाल गुप्ता उर्फ नंदी पर बम से हमले की घटना में एक वरिष्ठ पत्रकार भी घायल हुए हैं. इनका नाम है विजय प्रताप सिंह. कई अंग्रेजी अखबारों में काम कर चुके विजय इन दिनों इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े हुए हैं.

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कब धरे जाएंगे पत्रकार अवनीश के हत्यारे?

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यूपी के बस्ती जिले में 'आज' अखबार के पत्रकार अवनीश कुमार श्रीवास्तव के हत्यारे अभी तक पकड़े नहीं जा सके हैं. हत्या के दो हफ्ते बीत गए पर पुलिस कोई खुलासा नहीं कर सकी. पुलिस के इस रवैये से अवनीश के परिजन व पत्रकार खफा है. बस्ती जिले के पत्रकारों ने शनिवार को जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के बैनर तले हत्यारोपियों की जल्द गिरफ्तारी की मांग को लेकर मौन जुलूस निकाला.

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पहले तड़पाया, फिर सिर में गोली मारी

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: अपहृत पत्रकार की निर्ममतापूर्वक हत्या : बिहार सरकार के एक मंत्री पर उठी उंगली : हत्या के विरोध में बंद,  मौन जुलूस निकाला : कुशीनगर : अपहृत पत्रकार तेजबहादुर की लाश शनिवार को नौरंगिया (बिहार) थाना क्षेत्र के दिल्ली कैम्प के पास से बरामद हुई है. पत्रकार को क्रूरतापूर्वक यातना देने के बाद हत्यारों ने सिर में गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था.

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गुजर गईं शांताजी

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रायपुर। प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय गजानन माधव मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का निधन गुरुवार रात हो गया। उनकी उम्र 88 वर्ष थी। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थीं। शुक्रवार सुबह 11 बजे उनका अंतिम संस्कार रायपुर के देवेंद्र नगर श्मशानघाट में किया गया। वे रमेश, दिवाकर, गिरीश व दिलीप मुक्तिबोध की माता थीं। उन्हें मुखाग्नि उनके कनिष्ठ पुत्र गिरीश मुक्तिबोध ने दी। उनके अंतिम संस्कार के मौके पर कई जाने-माने लोग, बुद्धिजीवी, साहित्यकार आदि मौजूद थे।

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प्रसिद्धि की इच्छा नहीं थी अग्निहोत्रीजी में

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: श्रद्धांजलि सभा में वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह 'सूर्य' ने कहा : ''राम शंकर अग्निहोत्री जी आत्मलोपी स्वभाव के थे। वे बिना चर्चा में आये काम करते रहे।'' यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य श्री राजनाथ सिंह 'सूर्य' का। श्री सूर्य विश्व संवाद केन्द्र, लखनऊ में श्री राम शंकर अग्निहोत्री जी की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में बोल रहे थे।

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नागपुर में गुस्साए पत्रकार सड़क पर उतरे

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विरोध प्रदर्शन

: न्याय नहीं मिला तो आंदोलन जारी रहेगा : नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ ने दिया विभागीय आयुक्त को ज्ञापन  : दोषी पुलिसकर्मियों के निलंबन का मांग : नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के पदाधिकारी, सदस्यों व गैर पत्रकारों ने 5 जुलाई को भारतबंद का कवरेज कर रहे मीडियाकर्मियों पर लाठीचार्ज के मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित किए जाने की मांग को लेकर विभागीय आयुक्त कार्यालय के पास विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन का निर्णय मंगलवार को ही एक बैठक में लिया गया था। सुबह 12:30 बजे प्रदर्शन के दौरान भारी बारिश हो रही थी।

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ग्वालियर में दबे पांव आया परिवार टुडे

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: एक साल में तीसरा अखबार लांच हुआ : संपादक बालेंदु मिश्र बीमार : सिटी चीफ विवेक ने पाला बदला : गुड़गांव से एचटी का एडिशन लांच : लगता है कि ग्वालियर अखबार शुरू करने का ख्बाव देखने वालों को बेहद पसंद आने लगा है। यही वजह है कि ग्वालियर में अखबार खूब आ रहे हैं और काम करने वालों का टोटा सा पड़ गया है।

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पत्रकारिता से मन भरा, अब पढ़ाएंगे जाखड़

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दैनिक जागरण, पानीपत में रिपोर्टर के रूप में कार्यरत प्रदीप जाखड़ ने मीडिया को गुडबाय बोल दिया है. वे अब अध्यापन के फील्ड में पहुंच गए हैं. प्रदीप जागरण से 3 वर्ष पहले जुड़े थे.

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आई-नेक्स्ट के तीन पत्रकार भास्कर पहुंचे

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रांची में उठापटक जारी है. आई-नेक्स्ट, रांची से तीन लोगों के इस्तीफा देकर दैनिक भास्कर, रांची ज्वाइन करने की सूचना मिली है. इन पत्रकारों के नाम हैं अभिषेक चौबे, आदिल हसन और रमीज.

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आलोक पांडेय ने दैनिक जागरण छोड़ा

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दैनिक जागरण, कानपुर के सीनियर सब एडिटर आलोक पांडेय ने इस्तीफा दे दिया है. वे जनरल डेस्क पर सेकेंड इंचार्ज के रूप में कार्यरत थे. आलोक जागरण कानपुर के साथ पिछले सात वर्षों से थे.

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हिंदुस्तान से पांच डिजायनरों का इस्तीफा

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हिंदुस्तान, देहरादून से चिट्ठी आई है कि यहां डिजायनर के पद पर कार्यरत पांच लोगों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफे की वजह कम तनख्वाह और ज्यादा काम है.

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शिशिर बने अमर उजाला, लखनऊ के एनई

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दैनिक भास्कर, नागपुर के सिटी एडिटर शिशिर द्विवेदी ने इस्तीफा देकर नई पारी की शुरुआत अमर उजाला, लखनऊ के साथ की है. शिशिर अमर उजाला में न्यूज एडिटर बनकर आए हैं.

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'ब्राह्मण' संपादक ने 'क्षत्रिय' पत्रकार भगाए!

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रांची से खबर है कि हिंदुस्तान के संपादक अशोक पांडेय ने तीन पत्रकारों का तबादला दूरदराज की यूनिटों में कर दिया है. इनके नाम हैं वरीय सब एडिटर विनोद सिंह, उप समाचार संपादक संजय सिंह और उप समाचार संपादक संजय सिंह (पलामू वाले). इनमें विनोद सिंह को मेरठ यूनिट भेजा गया है. संजय सिंह को रांची से धनबाद जाने के लिए कह दिया गया है. जबकि संजय सिंह पलामू वाले को देहरादून भेजा गया है. इन लोगों को तत्काल संबंधित यूनिटों में रिपोर्ट करने को कहा गया है. इस तबादला आदेश से आफिस में खलबली मची हुई है. लोग घबराए हुए हैं.

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भास्कर की लांचिंग पर छाए काले बादल

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: संजय अग्रवाल कोर्ट से स्टे लाए : आरएनआई में आपत्ति खारिज हो गई थी : आरएनआई के खिलाफ कोर्ट गए थे संजय : दैनिक भास्कर, रांची व जमशेदपुर में लांचिंग पर फिर काले बादल मंडराने लगे हैं. अभी-अभी खबर मिली है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आरएनआई के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है जिसमें आरएनआई ने भास्कर की रांची व जमशेदपुर में लांचिंग को ओके कर दिया था और लांचिंग रोकने संबंधी आब्जेक्शन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि पीआरबी एक्ट में उल्लखित आधारों पर लांचिंग रोकने संबंधी कोई नियम नहीं है.

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Palash Biswas
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http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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