हमारे समय पर मजाकिया नजर है 'पीपली लाइव'
http://mohallalive.com/2010/07/17/amir-khan-view-about-peepli-live/पीपली लाइव एक काल्पनिक कहानी है दो भाइयों की, जो किसान हैं। फिल्म की शुरुआत में कर्ज न चुकाने की वजह से वे अपनी जमीन खोने वाले हैं। इसी दौरान उन्हें पता चलता है एक सरकारी योजना के बारे में, जो कहती है कि जो किसान कर्जे की वजह से आत्महत्या करता है, उसके परिवार को एक लाख रुपये दिये जाएंगे। यह सुन कर बड़ा भाई छोटे भाई को मनाता है कि वह आत्महत्या कर ले ताकि परिवार को एक लाख रुपये मिल जाएं। बड़ा भाई थोड़ा तेज है। छोटा भोला है, तो उस वक्त तो वह मान जाता है। उस समय इन दोनों को बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि जो कदम वे उठाने जा रहे हैं, उससे उस गांव में क्या होने वाला है। यह फिल्म एक मजाकिया नजर है, हमारी सोसायटी पर, हमारे समाज पर, हमारे एस्टैबलिशमेंट पर, मीडिया या सिविल सोसायटी पर… यह मजाकिया नजर है हम सब पर… जिसमें एक चीज कहां से शुरू होती है और कहां तक पहुंचती है। हालांकि यह एक मजाकिया नजर है… यह फिल्म कुछ अहम चीज बता रही है… हमारे समाज के बारे में… हमारे देश के बारे में…
आमिर खान
मोहल्ला पर पिछले दिनों फिल्मों में आ रहे किरदारों और विषयों पर लंबी बहस चली। यह फिल्म सुकून देती है और उम्मीद जगाती है कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। अनुषा रिजवी की पहल और आमिर खान के समर्थन से हम एक ऐसी फिल्म देखेंगे, जो मुंबइया परिदृश्य से विलुप्त हो रहा है।
इस फिल्म में ढेर सारे अपरिचित कलाकार हैं। रघुवीर यादव को आप पहचान रहे होंगे। उन्होंने बड़े भाई बुधिया का किरदार निभाया है और महंगाई डायन गीत में उन्हीं का मुख्य स्वर है।
बाकी कलाकारों और किरदारों को भी जान लें…
ओमकार दास माणिकपुरी नत्था
फारूख जाफर अम्मा
शालिनी वत्सा धनिया
नवाजुद्दीन सिद्दिकी राकेश्ा
विशाल शर्मा
मलाइका शिनॉय नंदिता मल्लिक
सीताराम पांचाल भाई ठाकुर
जुगल किशोर सीएम
♦ अब्राहम हिंदीवाला
पीपली लाइव से जुड़े हुए अन्य लिंक
♦ पीपली लाइव पर कुछ बात, तस्वीरें और टीजर
♦ सखि सैयां तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है!
3 Comments »
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अधूरी बहस अधूरी तलब
पंकज नारायण ♦ मुद्दे वहां भी हैं, जहां से खबरें नहीं आतीं। दुनिया वहां भी होती है, जहां कैमरे नहीं पहुंचते। आवाज वहां से भी निकलती है, जहां…
कई दृश्य साफ हुए
विनीत कुमार ♦ अब मीडिया में खबर नहीं है। समाचार चैनलों ने जो समाचार चलाने के लाइसेंस ले रखे हैं, वहां समाचार नहीं है, उन समाचारों की ऑथेंटिसिटी नहीं है।
आज मंच ज़्यादा हैं और बोलने वाले कम हैं। यहां हम उन्हें सुनते हैं, जो हमें समाज की सच्चाइयों से परिचय कराते हैं।
अपने समय पर असर डालने वाले उन तमाम लोगों से हमारी गुफ्तगू यहां होती है, जिनसे और मीडिया समूह भी बात करते रहते हैं।
मीडिया से जुड़ी गतिविधियों का कोना। किसी पर कीचड़ उछालने से बेहतर हम मीडिया समूहों को समझने में यक़ीन करते हैं।
नज़रिया, मीडिया मंडी, मोहल्ला पटना »
संजय कुमार ♦ बिहार से प्रकाशित सभी अखबारों ने पहले पेज पर जगह दी। लेकिन बिहार के मीडिया का चेहरा एक बार फिर साफ हो गया कि आखिर उसकी सोच क्या है? यानी किसका मीडिया, कैसा मीडिया और किसके लिए? प्रश्न सामने आ ही गया। लोग भी चौंके। क्विंस बैटन रिले खबर तो बनी। अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू समाचार पत्रों ने क्विंस बैटन रिले की खबर तस्वीर मुख्यपृष्ठ पर तस्वीर के साथ प्रकाशित की। लेकिन बैटन के साथ कोई खिलाड़ी नजर नहीं आया। नजर आयी जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री नीतू चंद्रा। राज्यपाल के साथ बैटन थामे नीतू की तस्वीर ने मीडिया की सोच को सामने ला दिया।
नज़रिया, मीडिया मंडी, मोहल्ला दिल्ली, स्मृति »
विवेक वाजपेयी ♦ किसी को कभी भी याद किया जा सकता है। लेकिन हम बात खास उस जगह की कर रहे हैं, जहां पर प्रभाष जी को याद करने के लिए ही लोग एकत्रित हुए थे। जगह थी दिल्ली में बापू की समाधि राजघाट के ठीक सामने स्थित गांधी स्मृति के सत्याग्रह मंडप का। जहां पर प्रभाष परंपरा न्यास की ओर से स्वर्गीय प्रभाष जी के जन्मदिन के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ था। हर वर्ग के लोग मौजूद थे। वयोवृद्ध गांधीवादी लोगों से लेकर आज की युवा पीढ़ी तक। मीडिया के सब नामी-नये चेहरे। साथ ही प्रबुद्ध साहित्यकार और प्रसिद्ध आलोचक भी, जिनमें अशोक वाजपेयी और नामवर सिंह को मैं भली-भांति जान सका।
नज़रिया, मोहल्ला दिल्ली »
समरेंद्र ♦ राजेंद्र यादव पर आरोप लगाने वाले नीलाभ जैसे लोगों की यही सीमा है। वो इससे ऊपर सोच ही नहीं सकते कि किस कार्यक्रम में किसने किसके साथ मंच साझा किया? और कौन कहां बुलाने पर भी नहीं पहुंचा? यही वजह है कि वो हमेशा इस बात को लेकर सतर्क रहते हैं कि उनकी छवि खराब नहीं हो। उनकी सारी की सारी कवायद सामाजिक छवि को सहेजने में लगी रहती है। शायद उनकी सियासत और दुकानदारी इसी से चलती है! नीलाभ जैसों की कुत्सित और संकीर्ण मानसिकता के कारण ही आज वामपंथ का इतना बुरा हाल है। आज वामपंथी दलों में जितनी गुटबाजी है और जितने धड़े हैं, उतने किसी भी विचारधारा में नहीं है।
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
इस तरह की फिल्मों का आना इस बात का सबूत है कि गंभीर रचनात्मकता के लिए आज भी जगह बची हुई है और लोग- नए लोग – भी काम कर रहे हैं. बधाई "पिपली लाइव" की पूरी टीम को.
शुक्र है …..फिल्म लाइन के पढ़े लिखे लोग अपने दिल की सुन रहे है ……ओर हिम्मत भी दिखा रहे है ……
मजदूरों की जिंदगी को पर्दे पर उभारने की भी कोशिश होनी चाहिए। औद्योगिक इलाकों में मजदूरों के हजारों किस्से हैं, दिलचस्प, ह्यूमरस और दिल दहलाने वाले। जिंदगी यहां मशीनों की लय पर चलती है, जिनके हाथों में हल की मूठ हुआ करती थी वही हाथ मशीन पर बड़ी दक्षता के साथ चलते हैं…इस विषय पर ढेरों फिल्में बनी हैं…लेकिन लिबरलाइजेशन के बाद जो परिदृश्य बना है उस परिप्रेक्ष्य में नए सिरे से रोशनी डालने की बेहद जरूरत है…