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Wednesday, June 16, 2010

जिन्‍हें माओवाद का मतलब समझ में नहीं आता…

जिन्‍हें माओवाद का मतलब समझ में नहीं आता…

http://mohallalive.com/2010/06/16/anand-swaroop-verma-intervened-into-thedebate-on-sajid-rasheed-writeup/

16 June 2010 One Comment

साजिद रशीद और चिदंबरम की जबान एक क्यों है? शीर्षक विश्वदीपक की महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ अगर इसे भी देखा जाए, तो पाठकों को बात समझने में आसानी होगी : आनंद स्वरूप वर्मा



काठमांडो से प्रकाशित अंग्रेजी साप्ताहिक 'दि टेलीग्राफ' ने नेपाल के कुछ बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विश्लेषकों से जानना चाहा था कि क्या नेपाल के माओवादियों को आतंकवादी कहा जा सकता है? उन दिनों भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह द्वारा नेपाल के माओवादियों के लिए 'आतंकवादी' शब्द के इस्तेमाल को ले कर नेपाल का राजनीतिक और बौद्धिक समुदाय काफी क्षुब्ध था क्योंकि तब तक नेपाल सरकार और वहां का मीडिया भी उन्हें 'विद्रोही' कह कर संबोधित करता था। 'दि टेलीग्राफ' ने इस विषय पर राजनीति, शिक्षा, समाजविज्ञान, साहित्य-संस्कृति आदि क्षेत्र के विभिन्न लोगों से बातचीत प्रकाशित की। यह सामग्री 3 अक्टूबर 2001 के अंक में प्रकाशित हुई थी। लोगों की राय का निचोड़ मैं पेश कर रहा हूं, जो साजिद रशीद जैसे लोगों के लिए शायद उपयोगी साबित हो :

माओवादी लोग राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जो मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद में विश्वास करते हैं। उनकी गतिविधियों के पीछे राजनीतिक उद्देश्य होते हैं।

नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने भी नेपाल सरकार के विमान का अपहरण किया था, बत्तीस लाख रुपये लूटे थे और सरकार के खिलाफ हथियारों का इस्तेमाल किया था – खास तौर से ओखलाडुंगा नामक पहाड़ी जिले में। कम्युनिस्टों ने भी झापा जिले में ऐसा ही किया था। इसी प्रकार पंचायत के दिनों में काठमांडो में कई बम विस्फोट भी हुए थे। इन सारी कार्रवाइयों के पीछे राजनीतिक मकसद था।

माओवादियों ने कोई भी 'आपराधिक गतिविधियां' नेपाल से बाहर नहीं की हैं।

वे अपने को 'सरकार' समझते हैं और अभी जो वार्ता संपन्न हुई है, उसे वे दो सरकारों के बीच चल रही वार्ता मानते हैं।

वे लगभग दो दर्जन जिलों में 'जन सरकार' के रूप में अपनी सरकार की स्थापना का दावा करते हैं। कोई आतंकवादी संगठन ऐसा नहीं करता।

जनकल्याण से संबंधित गतिविधियों से आतंकवादियों का कोई सरोकार नहीं होता जबकि इन माओवादियों ने पश्चिमी पहाड़ी जिलों में अनेक जन कल्याणकारी गतिविधियां संचालित की हैं। इन्होंने इन जिलों में असामाजिक तत्वों पर रोक लगायी और स्कूल खोलने से लेकर शराब की मनमानी बिक्री और इसके अंधाधुंध सेवन को बंद करने जैसे सुधारवादी कार्यक्रम चलाये।

माओवादियों के पास छात्रों, महिलाओं, मजदूरों आदि के संगठन हैं, जिनसे इन्हें समर्थन मिलता है। आतंकवादियों के साथ ऐसा नहीं होता है।

ये लोग अपने राजनीतिक कार्यों के जरिये सरकार पर जबर्दस्त दबाव डालते हैं जो आम तौर पर आतंकवादी संगठन कर ही नहीं सकते।

'टाइम्स ऑफ इंडिया' की पत्रकार अनोहिता मजुमदार ने एक दिसंबर 2001 को नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के अध्यक्ष प्रचंड (पुष्प कमल दहाल) से बातचीत की, जिसका विवरण इस अखबार के दो दिसंबर के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। बातचीत के दौरान इस प्रतिनिधि ने सवाल किया कि माओवादी योद्धाओं और आतंकवादियों में क्या फर्क है?

इस सवाल का जवाब देते हुए कामरेड प्रचंड ने कहा कि 'दोनों की किसी भी तरह से तुलना ही नहीं की जा सकती। आतंकवादी लोग निरीह और निहत्थी जनता के खिलाफ विवेकशून्य और आत्मघाती हमले करते हैं। इनकी कोई वैचारिक स्पष्टता नहीं होती या इनके पास घोर प्रतिक्रियावादी विचार होते हैं। इसके विपरीत माओवादी योद्धा अनिवार्य रूप से देश और जनता की मुक्ति तथा प्रगति के सुस्पष्ट राजनीतिक लक्ष्य को लेकर चलते हैं।'

Anand Swaroop Verma(आनंद स्‍वरूप वर्मा भारत में कॉरपोरेट पूंजी के बरक्‍स वैकल्पिक पत्रकारिता के लिए लंबे समय से संघर्षरत हैं। समकालीन तीसरी दुनिया पत्रिका के संपादक हैं और नेपाली क्रांति पर उन्‍होंने अभी अभी एक डाकुमेंट्री फिल्‍म बनायी है। उन्‍होंने कई किताबें लिखी हैं। उनसे vermada@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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[16 Jun 2010 | Comments Off | ]
विवाद: गगन गिल के पक्ष में तेजी ग्रोवर का पत्र

जिन्‍हें माओवाद का मतलब समझ में नहीं आता…

[16 June 2010 | Read Comments | ]

आनंद स्‍वरूप वर्मा ♦ काठमांडो से प्रकाशित अंग्रेजी साप्ताहिक 'दि टेलीग्राफ' ने नेपाल के कुछ बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विश्लेषकों से जानना चाहा था कि क्या नेपाल के माओवादियों को आतंकवादी कहा जा सकता है? इसका निचोड़ साजिद रशीद जैसों को आईना दिखा सकता है।

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तेजी ग्रोवर ♦ गगन गिल को निर्मल जी के संदर्भ में ठेस पहुंचाना कितना सही है, इसका फैसला भी आप मित्र लोग करें… जो कवि हैं और लेखक हैं… और जिन्होंने जीवन में कोई कठिन प्रेम किया है।
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नज़रिया »

[16 Jun 2010 | 3 Comments | ]
क्या मणिपुर भारत का हिस्सा नहीं है?

उमेश चतुर्वेदी ♦ मणिपुर के मुख्यमंत्री रहे राधाविनोद कोईजाम कहा करते हैं कि हिंदुस्तानी लोग उन्हें बेवकूफ मानते हैं। मुक्केबाजी की भारतीय चैंपियन मणिपुर की एमसी मैरीकॉम की भी शिकायत रही है कि पूर्वोत्तर का होने की वजह से उन्हें वह तरजीह नहीं मिलती, जिसकी वह हकदार हैं। एक बार एक टीवी पत्रकार से उन्होंने पूछ भी लिया था – एमसी मैरीकॉम को जानते हैं आप? इस सवाल में तकरीबन पूरे पूर्वोत्तर का दर्द छिपा था। यही दर्द अब बाहर आने लगा है। मणिपुर की नगा लोगों के जरिये शुरू की गयी आर्थिक नाकेबंदी के दो महीना बीतने के बाद राजधानी में रह रहे मणिपुरवासियों की जुबान से अब मैरीकॉम जैसे सवाल उठने लगे हैं। लेकिन भारत सरकार की कोशिशें इस बाधा को खत्म करने की तरफ नहीं दिख रही है।

uncategorized »

[16 Jun 2010 | Comments Off | ]

समाचार »

[15 Jun 2010 | No Comment | ]

Let the railway authorities ply their trains on schedule. There is nothing to fear. On Saturday, on behalf of the State Committee of the CPI (Maoist), Aakash issued this statement to the press. "We were not involved in the sabotage in the railway line. Still we are being falsely implicated in it. There is no need to stop railway service on the plea of Maoist sabotage. Let the rail authorities ply their trains. Nothing (no harm) will be done from our side".

असहमति, नज़रिया »

[14 Jun 2010 | 8 Comments | ]
साजिद रशीद और चिदंबरम की जबान एक क्‍यों है?

विश्‍वदीपक ♦ साजिद रशीद की विवेकहीनता का आलम ये है कि वो 'आंतकवाद' और 'माओवाद' को एक ही तराजू पर तौल रहे हैं। उन्‍हें आतंकवाद और माओवाद में फर्क भी समझ में नहीं आ रहा? क्या रशीद की बातों में, अमेरिका और कांग्रेस की दलीलों में कोई फर्क नजर आ रहा है? रशीद कहते कि माओवादी 'सत्ता में परिवर्तन' के ख्वाहिशमंद है। अब जबकि भारतीय राज्य अपनी वैधानिकता की सबसे खरतनाक जद्दोजहद कर रहा है राशिद जैसे लोगों को डर क्यों लग रहा है? क्या महज इसीलिए कि वर्तमान सत्ता संरचना में उनकी जो हिस्सेदारी है, सुविधाएं हैं, सहूलियतें है वो छिन जाएंगी?

असहमति, नज़रिया »

[13 Jun 2010 | 21 Comments | ]
रूमान से भरी अरुंधती मूर्खों जैसे सपने देख रही है

साजिद रशीद ♦ नक्सलवादियों के पक्ष में इस समय सबसे निडर और बुलंद आवाज अरुंधती राय की है। अगरचे वे अपने उपन्यास 'द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स' में कॉमरेड नंबूदरीपाद जैसे मार्क्सवादी नेता की आलोचना करके कम्युनिस्टों में 'शापित' हो चुकी हैं। अरुंधती ने साप्ताहिक 'आउटलुक' में प्रकाशित अपने लंबे लेख में नक्सलवादियों की हिंसा को दुरुस्त ठहराने के लिए जो रोशनाई खर्च की थी, उसमें अब ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के उन डेढ़ सौ यात्रियों का लहू भी शामिल हो गया है, जिन्होंने अपनी आखिरी सांसें लेते हुए यह जरूर सोचा होगा कि उनके किस दुश्मन ने उन्हें यह दर्दनाक मृत्यु दी है? याद रहे, पिछले पांच वर्षों में नक्सलवादियों के हमलों में मरने वाले नागरिकों की संख्या लगभग पंद्रह सौ है।

नज़रिया, मीडिया मंडी, मोहल्ला भोपाल »

[11 Jun 2010 | 7 Comments | ]
दैनिक भास्‍कर ने सर्वेक्षण में चालाकी से सवाल पूछे थे

योगेंद्र यादव ♦ दैनिक भास्कर के सर्वेक्षण के जो अंश यहां उद्धृत हैं (मैंने इसके सिवा और कोई हिस्सा नहीं पढ़ा है और मेरी जानकारी अधूरी हो सकती है), उसमें कुछ सवाल और उनके उत्तर दिये गये हैं। कई बार ऐसा होता है कि सर्वेक्षण में सवाल कुछ और पूछा जाता है और उसे सामान्य पाठक के लिए पेश करते वक्त कुछ मसाला लगा कर लिख दिया जाता है। अगर भास्कर के डेस्क से ऐसा कुछ किया गया हो तो मैं कह नहीं सकता। लेकिन अगर सर्वेक्षण में शब्दश: वही सवाल पूछे गये थे जो अखबार की रपट में छपे हैं, तो यह कहना होगा कि सवाल निहायत एकतरफा झुकाव रखने वाले हैं और सर्वेक्षण की पद्धति के बुनियादी उसूलों का उल्लंघन करते हैं।

नज़रिया, मीडिया मंडी, मोहल्ला भोपाल, मोहल्ला लखनऊ, स्‍मृति »

[11 Jun 2010 | 5 Comments | ]
भोपाल मर रहा था, अर्जुन सिंह जहाज में उड़ रहे थे

आनंद स्वरूप वर्मा ♦ तीसरी दुनिया के देशों को अपनी चारागाह बनाने वाले मौत के सौदागर अमरीकी साम्राज्यवादियों की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए इनके अनुग्रह पर पलने वाले मंत्रियों और अफसरों की सुविधालोलुपता ने हजारों बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया। इस दुर्घटना में न तो अर्जुन सिंह की मौत हुई और न उनके किसी रिश्तेदार की, यह पिट्स विमान दुर्घटना जैसा कोई हादसा भी नहीं था जिसमें गांधी-नेहरू परिवार का कोई व्यक्ति मारा गया हो। सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों को जनता के खून पसीने से तैयार सुरक्षा कवच हासिल है – इसलिए शताब्दी की इस सबसे दर्दनाक दुर्घटना पर न तो कोई राष्ट्रीय शोक मनाया गया, न सरकारी इमारतों पर लहरा रहे तिरंगे झुकाये गये।

पुस्‍तक मेला »

[10 Jun 2010 | 9 Comments | ]
वे पहले रेलवे में स्‍टेनों थीं, बाद में चीफ जस्टिस बनीं

उमेश चतुर्वेदी ♦ विक्रम सेठ की मां लीला सेठ की "घर और अदालत" नाम से आयी यह आत्मकथा छह साल पहले अंग्रेजी में ऑन बैलेंस के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। तब इसे अंग्रेजी में हाथोंहाथ लिया गया था। लेकिन अदालती नियुक्तियों की राजनीति से हिंदी पाठकों का दस्तावेजी साबका अब जाकर पड़ा है, जब पेंगुइन-यात्रा ने यह किताब हिंदी में अनूदित करके प्रकाशित की है। इस राजनीति को जानने और समझने के लिए पाठकों को किताब के शब्दों से गुजरना होगा, जिसमें लीला सेठ ने बेबाकी से लिखा है कि राजनीति के चलते वे सुप्रीम कोर्ट की जज नहीं बन पायीं और सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जस्टिस होने का गौरव केरल की जस्टिस फातिमा बीवी हासिल करने में सफल रहीं।

मीडिया मंडी, मोहल्ला दिल्ली, समाचार »

[10 Jun 2010 | 3 Comments | ]
पत्रकार नरेंद्र भाटी को बाबूराव पराडकर सम्मान

डेस्‍क ♦ नोएडा के वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र भाटी को पत्रकारिता के लिए बाबूराव पराडकर सम्मान से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की तरफ से मुरादाबाद में आयोजित एक समारोह में दिया गया। समारोह में मु़ख्य वक्ता काशी विद्यापीठ के हिंदी पत्रकारिता संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर राम मोहन पाठक भी पधारे थे। पाठक ने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं, जिनका मुकाबला करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संपादक से लेकर मालिक तक बाजार के दबाव में रहता है, लेकिन पत्रकार को किसी दबाव में झुकना नहीं चाहिए।

नज़रिया, मीडिया मंडी, मोहल्ला भोपाल »

[10 Jun 2010 | 15 Comments | ]
पहले दैनिक भास्‍कर बताये कि उसकी जाति क्‍या है?

जनहित अभियान ♦ यह सर्वे किन लोगों के बीच किया गया यह स्पष्ट नहीं है। भारत की सामाजिक विविधता का ध्यान इस तरह के सर्वे में न रखा जाए तो नतीजे गलत आएंगे। यह भास्कर की नीयत का सवाल नहीं है बल्कि सर्वे की वस्तुनिष्ठता का सवाल है। क्या इस सर्वे के लिए सैंपल चुनते समय इस बात का ध्यान रखा गया था कि इसमें दलित और पिछड़ी जाति के लोग, अल्पसंख्यक, आदिवासी और सवर्ण सभी अनुमानित संख्यानुपात में शामिल किये गये थे। यानी क्या इस सर्वे में जिनसे राय पूछी गयी, उनमें लगभग 24 फीसदी दलित-आदिवासी और लगभग 52 फीसदी पिछड़ी जातियों के लोग थे? या फिर भास्कर, जिसे देश की राय बताता है, वह सिर्फ सवर्णों की राय है?

नज़रिया, मोहल्ला भोपाल »

[10 Jun 2010 | One Comment | ]
भोपाल के बूचड़खाने में सब नंगे हैं

राजेन तोडरिया ♦ न्‍यायपालिका आखिरी किला था जो भारतीय लोकतंत्र की वर्गीय पक्षधरता को संतुलित करता था। इसकी वर्गीय पक्षधरता भी उजागर होने के बाद किस मुंह से भारतीय राज्य खुद के लोकतंत्र होने का दावा कर सकेगा? भोपाल गैस कांड यह सवाल भी देश के लोकतंत्र से पूछ रहा है। पांच लाख से ज्यादा लोगों से उनके स्वाभाविक रूप से जीने का प्राकृतिक और संवैधानिक अधिकार छीनने के दोषी लोगों में से एक के खिलाफ भी कोई कार्रवाई न हो, ऐसा अंधेर तो इसी देश में संभव है। भोपाल के इस कारपोरेट बूचड़खाने में भारतीय कारपोरेट कंपनियां, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सब के सब नंगे खड़े हैं। ऐसे में भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को न्याय के लिए शायद अगले जन्म का इंतजार करना होगा।

मोहल्ला भोपाल, रिपोर्ताज, स्‍मृति »

[9 Jun 2010 | 6 Comments | ]
जिला अदालत, भोपाल 2010, 12 बजकर 5 मिनट!

विकास वश‍िष्‍ठ ♦ यूनियन कार्बाइड कारखाने के सामने चिलचिलाती धूप में तपती उस औरत का वह स्टेच्यू आज जैसे अकेले ही अदालत के फैसले के इंतजार में था। यह स्टेच्यू हादसे के बाद बनाया गया था। जेपी नगर की सुबह आज कुछ ज्यादा अलग नहीं थी। रोजाना की तरह आज भी लोग अपने-अपने काम पर चले गये थे। लड़कों का झुरमुट जो शायद स्टेच्यू के पास वाली दुकान पर बैठने के लिए ही बना था, आज भी वैसे ही गपबाजी कर रहा था। वहीं पास में चौकड़ी लगाये कुछ आदमी ताशों के सहारे अपना वक्त काट रहे थे। लेकिन इन सबके बीच जेपी नगर की हवा में यूनियन कार्बाइड की 25 साल पुरानी वह गैस जैसे आज फिर से फैल रही थी।


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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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