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Saturday, February 11, 2017

पश्चिम उत्तर प्रदेश में फूट गया नोटबंदी का बम! किसानों के गुस्से ने केसरिया मजहबी सियासत को शिकस्त दे दी,असर पूरे यूपी पर होना है।दलित मुसलमान एकता से बदलने लगी है फिजां तो मजहबी सियासत पस्त है। मुसलमानों के बेहिचक बसपा के साथ हो जाने से साइकिल के दोनों पहिये भी पंक्चर! पलाश विश्वास

पश्चिम उत्तर प्रदेश में फूट गया नोटबंदी का बम!
किसानों के गुस्से ने केसरिया मजहबी सियासत को शिकस्त दे दी,असर पूरे यूपी पर होना है।दलित मुसलमान एकता से बदलने लगी है फिजां तो मजहबी सियासत पस्त है।
मुसलमानों के बेहिचक  बसपा के साथ हो जाने से साइकिल के दोनों पहिये भी पंक्चर!
पलाश विश्वास
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खास खबर यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में  नोटबंदी का बम फूट गया है। अजित संह की मौकापरस्ती की वजह से पहली बार पश्चिम उत्तर प्रदेश के  किसानों पर चौधरी चरण सिंह की विरासत का कोई असर नहीं हुआ है।यूपी में आज पहले चरण का मतदान खत्म हो गया है।पश्चिम उत्तर प्रदेश में आज 15 जिलों की 73 सीटों पर मतदान हुआ है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले चरण में 15 जिलों की कुल 73 सीटों पर आज छिटपुट घटनाओं के बीच औसतन करीब 64 प्रतिशत वोट पड़े।
खास बात यह है कि  इसबार महिलाओं ने बढ़ चढ़कर जोश दिखाया जिसकी वजह से करीब 3 करोड़ लोगों ने वोट डाला है। पिछली बार 61 प्रतिशत मतदान हुआ था। 839 उम्मीदवारों की किस्मत EVM में आज बंद हो गई है।
यूपी से आ रही खबरों का लब्बोलुआब यही हैकि छप्पन इंच के सीने के लिए ऐन मौके पर राम की सौगंध खाकर राममंदिर निर्माण के संकल्प के बावजूद अबकी दफा फिर यूपी की जनता ने वानरसेना बनने से इंकार कर दिया है और किसानों के नरसंहार के ऩसरसंहार के चाकचौबंद इंतजाम की कीमत संघ परिवार को चुकाना ही होगा।
पश्चिम उत्तर प्रदेस में दंगाई सियासत के जरिये यूपी जीतने और नोटबंदी से यूपी जीतने का कारपोरेट हिंदुत्व एजंडा मतदान के पहले ही चरण में बुरीतरह फेल है और बढ़त दलित मुसल्मान एकता को है,जिसकी जरुरत पर बहुजन बुद्धिजीवी एचएल दुसाध ने हस्तक्षेप पर लगे अपने आलेख में खास जोर दिया है।
बिना किसी सोरगुल के मायावती ने नये सिरे से सोशल इंजीनियरिंग करके अखिलेश के अल्पसंख्यक उत्पीड़न,कांग्रेस क मौकापरस्ती और संघ परिवार की दंगाई सियासत को करारा जबाव दिया है।बामसेफ ने भी अलग पार्टी बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद इसबार बाजपा को हराने वाले उम्मीदवार को जिताने की मुहिम चलाकर भाजपा के खिलाफ दलित मुसलमान गढबंधन फिर खड़ा करने में मददगार है।
अजित सिंह सत्ता के लिए सौदेबाजी के माहिर खिलाड़ी है तो अखिलेश के साथ कड़क मोलभाव में वे गच्चा खा गये।वैसे भी वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों के नेता अजित सिंह अब अब रहे नहीं है और न किसानों के हितों से उन्हें कुछ लेना देना नहीं है।
इसके उलट,अजित सिंह ने चौधरी साहब की विरासत का जो गुड़ गोबर किया,उसकी वजह से उत्तर भारत के किसानों और खास तौर पर जाटों को चौधरी साहेब के अवसान के बाद भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
मुजफ्फर नगर में संघ परिवार को खुल्ला खेलने देकर अजित सिंह ने जो भारी गलती की है,उसके लिए उन्हें पश्चिम उत्तर प्रदेश के हिंदू मुसलमान किसान कभी माफ नहीं करेंगे।भाजपा को हराने के लिए सपा के आत्मघाती मूसलपर्व की वजह से और कांग्रेस के दंगाई इतिहास की वजह से मुसलमानों ने बसपा को वोट देने का फैसला करके यूपी में केसरिया अश्वमेधी अभियान के सारे सिपाहसालारों को चित्त कर दिया है।बाकी यूपी में भी इसका असर होना है।
दूसरी तरफ, उत्तराखंड में भी भूमि माफिया से नत्थी भाजपा ने अपने तमाम पुराने नेताओं को किनारे लगाकर जैसे एक के बाद एक भ्रष्ट नेताओं को टिकट बांटे हैं,वहां भी पश्चिम उत्तर प्रदेश की तरह पांसा बदल जाये तो कोई अचरज की बात नहीं होगी।वैसे पश्चिम यूपी के वोट औरभाजपा विरोधी हवा का उत्तराखंड की तराई में भी असर होना है।
मुश्किल यह है कि उत्तराखंड जीतने में कांग्रेस की कोई दलचस्पी नहीं है।छोटा राज्य होने की वजह से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए उत्तराखंड में खास दिलचस्पी नहीं है तो दसों दिशाओं में गहराते संकट के बादल की वजह से संघ परिवार कमसकम उत्तराखंड जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।कांग्रेस के नेता खासकर हरदा के खासमखास वफादारलोग उन्हें हरामने में कोई कसर छोड़ नहीं रहे हैं।
गौरतलब है कि किसान सभा और वाम किसान आंदोलनों के दायरे से बाहर उत्तर भारत और बाकी देश में चौधरी चरण सिंह के किसान आंदोलन का असर अब इतिहास है।फिरभी उत्तर भारत के किसानों खासकर पंजाबियों,सिखों और जाट गुज्जरों और मुसलामनों में सामाजिक तानाबाना सत्तावर्ग की दंगाई मजहबी सियासत के बावजूद अब भी अटूट है।
खासकर आगरा से लेकर बरेली तक और मेरठ गाजियाबाद से लेकर हरियाणा और उत्तराखंड के हरिद्वार जिले तक किसानों में नाजुक बिरादाराना रिश्तेदारी रही है जाति धर्म नस्ल भाषा  के आर पार,जिसपर  मेऱठ,अलीगढ़,मुरादाबाद ,आगरा  के दंगों ने और बाबरी विध्वंस के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में दंगाई फिजां बने जाने का भी कोई असर नहीं हुआ था।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगरके देहात में दंगा भड़काकर किसानों और खासकर जाटों का जो केसरियाकरण किया संघ परिवार ने,उसके आधार पर यूपी में हिंदुत्व के नाम राममंदिर आंदोलन के बाद धार्मिक ध्रूवीकरण हो गया था और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपना दल के साथ गंठबंधन के जरिये भाजपा को लोकसभा चुनाव में बसपा, कांग्रेस और सपा के सफाया करने में कामयाबी मिली है।अब सिरे से पांसा पलट गया है। संजोग से नोटबंदी का असर खेती पर जिस भयानक तरीके से हुआ और जाटों को आरक्षण के नाम जिस तरह धोखा केंद्र सरकार ने गुजरात के पटेलों और राजस्थान के गुज्जरों की तरह दिया,उससे हालात सिरे से बदल गये हैं।
मेरे पिताजी चौधरी साहेब के भारतीय किसान समाज के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में थे,तब मैं अपने गांव के बगल में गांव हरिदासपुर में प्राइमरी स्कूल में था।तराई में चौधरी नेपाल सिंह 1958 के ढिमरी ब्लाक आंदोलन के दौरान पिताजी के कामरेड हुआ करते थे,जिनसे हमारे पारिवारिक संबंध बने हुए रहे हैं।
तराई के जाटों को हम शुरु से अपने परिजन पंजाबी,सिखों,पहाड़ियों,देशी और बुक्सा-थारु गावों के लोगों की तरह मानते रहे हैं।मुसलमान आबादी हमारे इलाके में उतनी नहीं रही है।फिर हमारे बचपन के दौरान साठ के दशक में विभाजन के जख्म सभी शरणार्थियों में इतने गहरे थे कि मुसलमान गांवों से रिश्ते बनने से पहले हम नैनीताल पढ़ने को निकल गये।

1984 से 1990 तक मैं बाहैसियत पेशेवर पत्रकार रहा हूं और बिजनौर में सविताबाबू का मायका है।तब से लेकर अब तक पश्चिम उत्तर प्रदेश से हमारा नाता टूटा नहीं है।टिकैत के किसान आंदोलन के बाद साबित हो गया है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान चाहें तो सारा राजनीतिक समीकरण की ऐसी तैसी कर दें। राजस्थान और  हरियाणा के जाट नेतृत्व और उनकी ताकत भी हम जान रहे हैं।जाटों ने भाजपाको हराने की कसम खायी है तो संघ परिवार यूं समझो कि यूपी की सियासत से बाहर है।

उत्तर प्रदेश के प्रथम चरण में ७३ सीटों पर ६५% मतदान हुआ. जाहिर है इस बार 'हू हू' वाला लहरवा वोटर घर से नहीं निकला जो लोकसभा के चुनाव में निकला था और पूरे प्रदेश में गैर भाजपा दलों का सूपड़ा साफ़ कर गया था. आज का वोटर प्रतिबद्ध वोटर ही था जो घर से निकला और वोट डाल कर आया. इस इलाके में ३८% प्रतिशत मुसलमान वोटर था, खबर है इसने कायदे से वोट डाला. नतीजे इस बार हैरान करेंगे, कुछ स्थापित दुकानों में ताला जरुर पड़ेगा. वैसे संतोष की बात सिर्फ इतनी है कि बकरमुंह औवेसी का जिक्र चुनाव से पहले जितना था, वोट डालने वाले दिन वह चिक्क्ल्लस सुनने को नहीं मिली. बिहार से भी बुरा हश्र उत्तर परदेश करेगा इस हैदराबादी बिरयानी का.
नोटबंदी की मार झेल चुका वोटर खामोश है, कोई लहर नहीं है, और खामोशी किसी संजीदगी की तरफ इशारा कर रही है. हुक्मरानों के लिए ये अलामात ठीक नहीं..
भाग मोती भाग ...वोटर आया !!!


कमल पर वोट नही देने के कारण दलित का सिर फोड़ा और टाँग तोड़ी हिन्दू आतंकवादियों ने,पीड़ित ने आरोपियों के ख़िलाफ़ लिखित शिकायत की है
कोतवाली परतापुर के गाँव घाट की घटना।
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इस सरकार को दलित पसंद नहीं हैं। या तो वे जूतों के तले रहें या भाग जाएं अपनी अलग दुनिया देख लें।
...
जस्टिस सी एस कर्णन 2009 में मद्रास हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए। दलित होने की वजह से उन्हें मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पंडित एस के कौल के उत्पीड़न से जूझना पड़ा। उन्हें डमी कहा गया और कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई। कर्णन ने इस बीच आदेश पारित किया कि सेवानिवृत्त होने के बाद कौल के खिलाफ sc st उत्पीड़न अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाए।
बाद में तमाम घटनाक्रम के बीच उनका स्थानांतरण कोलकाता उच्च न्यायालय में कर दिया गया।
उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे एस खेहर के अध्यक्षता में 7 जजों की पीठ ने कर्णन के अधिकार छीन लेने और उन्हें 13 फरवरी को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया।
जस्टिस कर्णन ने एक पत्र में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश तार्किक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में एक भी जज दलित नहीं है। कर्णन ने लिखा है कि अपर कास्ट जज कानून अपने हाथ में लेकर फैसला कर रहे हैं।
कर्णन ने पत्र में कहा है कि ये सभी जज जस्टिस एसके कौल के सुप्रीम कोर्ट में आने की राह आसान करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।
 हाल में कर्णन ने मद्रास हाई कोर्ट के 20 भ्रष्ट जजों के ऊपर आरोप लगाए थे जिसमें कौल पहले स्थान पर हैं।
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मामले में ऐसा कदम उठाया जाए की यह नजीर बन जाए और कोई ऐसी गुस्ताखी न कर सके।
उधर सुप्रीम कोर्ट के वकील मैथ्यू नेदुम्परा ने कहा है कि कर्णन ने के साथ भेदभाव का वर्ताव किया गया और उन्हें समाज से अलग थलग कर दिया गया है। वह गहरे अवसाद में हैं। उन्होंए कहा है कि दिल्ली आने और बड़े वकील के माध्यम से अपना पक्ष रखवाने के लिए उनके पास पैसे नही हैं।
जस्टिस कर्णन ने यह भी कहा है कि उनके खिलाफ फैसला लेने का हक सिर्फ संसद को है (यह कोई भी व्यक्ति, जिसने भारत का संविधान पढ़ा है वह जानता होगा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट केसिटिग जज के अधिकार छीनने या उसे हटाने का अधिकार सिर्फ संसद को है।)


Himalayannews.com...उत्तराखंड के श्रीनगर से पीएम मोदी लाईव...https://www.facebook.com/BJP4India/videos/1522607521113099/


मिडिया बिहार मे बुरी तरह हार गई थी । मुझे लगता है यूपी मे मिडिया कुछ सम्भल गई है । मिडिया कुछ डर भी गई है


एक बुनियादी अंतर तो दिखने लगा है.
2014 में विरोधी दल नरेंद्र मोदी के पीछे भाग रहे थे. अब नरेंद्र मोदी विरोधी नेताओं के पीछे भाग रहे हैं, उन्हें गरिया रहे हैं, झल्ला रहे हैं.

हमने जाति-रस को पता नही क्यों छोड़ दिया ?
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जो भी जाति को जीता है; अपने निजी जीवन में उसे ओढ़ता पहनता है, वह जाति भंजक नहीं हो सकता. जिस समाज को जाति प्रथा में अभी रस मिल रहा हो, वह उसका निषेध कैसे कर सकता है? सोना अगर सुहाता नहीं तो इंसान उसे भी तज देता है. जाति की स्वीकृति ही उसका बल है. उसे मानव विरोधी- समाज विरोधी व्यवस्था और विचार साबित करना होगा. कानून महज बाहरी आवरण है, वह अन्दर से इंसान को नहीं बदल सकता, जबकि इस प्रश्न पर आवाज तो इंसान के अन्दर से पहले आनी चाहिए, अंतस की जो आवाज है वह कानून ने दबा दी, यह सामाजिक -राजनैतिक कुरूपता है और विद्रूपत्ता भी.
 विडंबना यह है कि जाति प्रथा का विरोध करने वाला तबका भी जाति रस में ही लित्प है. जाति विहीन समाज का माडल भारत में न अम्बेडकरवादियों के पास है न वामपंथियों के पास.
 इस प्रश्न पर विचार करने का प्रस्थान बिंदु ही यह पूर्व शर्त है कि जाति व्यवस्था मानव विरोधी -समाज विरोधी, प्रतिगामी प्रत्यय है. इसमें संदेह करने वाला व्यक्ति, समाज अथवा संगठन इस नस्लीय अवधारणा को खंडित नहीं कर सकता. भारतीय सन्दर्भ में नामों के आगे लगे सरनेम , दर असल भारतीयों का जाति रस है, इसका अंत होना चाहिए, ये घृणास्पद हैं. तुम सिंह हो, पाण्डेय या मंडल , शेख, कुरैशी या आंबेडकर- कितना ही जाति विरोध करते रहिये, दरअसल नकारात्मक द्वंदात्मकता के अनुरूप तुम जाति रस से ही पीड़ित हो.

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

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Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

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In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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