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Saturday, August 13, 2016

पेनफुल साइट्स! बंगाल भुखमरी के दौरान अपने गांव में भूखों की कोई मदद किये बिना श्यामाप्रसाद ने भव्य वल्गर बागान बाड़ी कैसे बनाया जिसे देखकर घिन आ रही थी? हिंदू महासभा का भुखमरी रिलीफ वर्क का गिरोहबंद ढकोसला उतना ही फर्जीवाड़ा था,जितना मुनाफावसूली के लिए श्यामाप्रसाध का हाट या आशुतोष मैंसन की डिस्पेंसरी। मशहूर चित्रकार चित्तोप्रसाद की भूखमरी पर रपट में खुलासा


पेनफुल साइट्स!

बंगाल भुखमरी के दौरान अपने गांव में भूखों की कोई मदद किये बिना श्यामाप्रसाद ने भव्य वल्गर बागान बाड़ी कैसे बनाया जिसे देखकर घिन आ रही थी?

हिंदू महासभा  का भुखमरी  रिलीफ वर्क का गिरोहबंद ढकोसला उतना ही फर्जीवाड़ा था,जितना मुनाफावसूली के लिए श्यामाप्रसाध का हाट या आशुतोष मैंसन की डिस्पेंसरी।

मशहूर चित्रकार चित्तोप्रसाद की भूखमरी पर रपट में खुलासा

अनुवादः पलाश विश्वास

(हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल के सवर्ण जमींदारों के हितों के मुताबिक बंगाल विभाजन पर अड़े थे और इस मकसद को उनने भारत विभाजन के जरिये अंजाम तक पहुंचाया। जबकि कविगुरु के शांति निकेतन में चित्रकला विभाग के नंदलाल बसु ने जिन चित्तप्रसाद को वहां दाखिला देने से इंकार कर दिया, वही चित्तप्रसाद  लीनाकोट माध्यम के न सिर्फ भारत के श्रेष्ठ चित्रकारों में हैंं,सोमनाथ होड़ की तरह चित्रकला के माध्यम से उनने बंगाल भुखमरी की जिंदा रिपोर्टिंग की और तेभागा आंदोलन को बेहतर जानने का माध्यम भी चित्तप्रसाद हैं।कला जगत में जनपक्षधर प्रतिबद्धता मेंं वे बेमिसाल हैं।इन दिनों भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी का भयंकर महिमामंडन करके  गांधी हत्या को अंजाम तक पहुंचाने की बजरंगी बिरादरी की मुहिम बहुत तेज है।चित्तप्रसाद ने चित्रकला के अलावा समसामयिक ज्वलंत मुद्दों पर चिट्ठियां भी लिखी हैं।उनकी ये तमाम चिट्ठियां समय के  प्रकाशित दस्तावेज हैं।1943-44 के दौरान चित्तप्रसाद ने बंगाल भुखमरी पर अनेक सचित्र आलेख कम्युनिस्ट पार्टी के समाचार पत्र पीपुल्स वार में लिखे।इनमें से एक आलेख श्यामाप्रसाद मुखर्जी के गांव जिराट को लेकर भी है।उस वक्त गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध कर रही हिंदू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुत बड़े नेता थे।इस आलेख के कुछ अंश दि वायर ने फिर प्रकाशित किये हैं।इस आलेख में हिंदू राष्ट्र भारत के बारे में श्यामाप्रसाद मुखर्जी की दृष्टि का खुलासा है।हुगली जिले के श्यामाप्रसाद के गांव जाकर बंगाल की भुखमरी की पृष्ठभूमि में श्यामाप्रसाद के कृतित्व व्यक्तित्व पर लिखा यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।चित्तप्रसाद अगस्त ,1944 में श्यामाप्रसाद के गांव जिराट गये थे तो वहां बलागढ़ इलाके के तमाम आम लोगों के नजरिये से भुखमरी के दौरान श्यामाप्रसाद के बनाये बागान बाड़ी और उनके नये हाट के ब्यौरे पेश करके उनने श्यामाप्रसाद की असल तस्वीर पेश की है।)


महज दो साल में पूरे भारत में किसी बंगाली सज्जन ने राष्ट्रीय ओहदा हासिल करने में कामयाब हुआ हो,तो वे इकलौते डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हैं।ऐसा क्यों न हो?वे आधुनिक बंगाल के निर्माताओं में से अन्यतम सर आशुतोष मुखर्जी के सुपुत्र हैं जिन सर आशुतोष ने ब्रिटिश सरकार से लड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय को संस्कृति और ज्ञान का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बना दिया।1943 में गवर्नर एमरी के कुशासन के खिलाफ पदत्याग करके श्यामा प्रसाद मुखर्जी रातोंरात राष्ट्रीय नेता बन गये।जाहिर है कि बंगाल की भुखमरी के विभीषिकामय दिनों में बंगाल के गवर्नर के खिलाफ वे ही सबसे सशक्त कंठस्वर थे पूरे देश में।इन्हीं डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी की बंगाल रिलीफ फंड में देश के चारों हिस्सों से लाखों रुपये की आमद हुई।असल मसला यही है कि बंगाल को बचाने के लिए जो लाखों रुपये देश की जनता ने देश के हर हिस्से से ऐसे राष्ट्रीय नेतृत्व के हवाले कर दिये तो उनने भुखमरी का  अमावस जी रहे अपने खुद के गांव में एक भी दिया इन रुपयों से जलाया क्या उन्होंने।देश के लोगों को शायद इस बारे में जानने में दिलचस्पी होनी चाहिए।


यही जानने और इसी मकसद से बंगाल का एक मामूली कलाकार मैं सर आशुतोष और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के गांव हुगली जिले के जिराट की तीर्थयात्रा पर निकला।बहरहाल जून महीना शुरु होते न होते एकदिन मैं ट्रेन पकड़कर कलकत्ता से चालीस किमी दूर खरनारगाछी पहुंचा और फिर वहां से पैदल कुछ ही किमी दूर जिराट पहुंच गया।रास्ते में मैं  बलागढ़ इलाके के  छह सात गांवों से गुजर गया।इस दरम्यान अपनी आंखों से जो कुछ मैंने देखा वह अत्यंत भयानक था।हुआ यह कि सालभर उस इलाके की भयंकर नदी बेहुला में बाढ़ें आती रहीं।इस नदी से यह इलाका दो हिस्सों में बंटा हुआ था।बाढ़ की वजह से दोनों किनारों पर बसे तमाम गांव उपजाऊ कीचड़ में दब गये।देहाती लोगं की तमाम झोपड़ियां न सिर्फ बाढ़ के पानी में समा गयीं बल्कि तूफां में कुछ उड़ भी गये।बंगाल के गांवों में धान को जमा करने वाले देसी गोदाम तमाम धान गोला खत्म हो गये हर गांव में।बलागढ़ इलाके के सात गांव लगातार बारह दिनों तक पानी के नीचे जलसमाधि में थे और करीब सात हजार देहाती विस्थापित थे।यह हादसा पिछले साल हुआ था।कायदे से नदी की तलहटी की उपजाऊ कीचड़ से खेतों को इस साल सोना उगलाना चाहिए था।उपजाऊ और समृद्ध माटी से उपजे धान से इस इलाके को किसी बगीचे की तरह लहलहाना चाहिए था।ऐसा हुआ क्या? क्या पिछले साल का अभिशाप इस साल किसानों के लिए वरदान बना?ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।दरअसल किसानों को खेत जोतने तक का मौका नहीं मिला।बेहुला की बाढ़ के कहर के तुरंत बाद पूरा बंगाल भुखमरी के शिकंजे में था और चूंकि उनकी धान की फसल बाढ़ से तहस नहस हो चुकी थी तो बलागढ़ इलाके के किसानों को भी दूसरे इलाके के लोगों की तरह बाहर से आने वाले चावल मंहगे दरों पर खरीदना पड़ा और नये सिरे से घर बनाने के लिए जो सरकार की तरफ से दस रुपये का लोन उन्हें मिला,उसे उन्हें इसी मद में खर्च कर देना पड़ा।जब वे दस रुपये भी खर्च हो गये तो खाने के लिए चावल खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे,बीज के लिए वे धान कैसे खरीदते और बीज भी न हो तो वे खेत कैसे जोत लेते।नई फसल की उम्मीद भी नहीं रही।


गरीब देहाती आम खाकर जी रहे थे

इसलिए पूरे इलाके में मैंने मुस्कुराते हुए लहलहाते धान के खेत नहीं देखे।इसके बदले जमीन बंजर पड़ी थी।कड़ी धूप में पकती हुई जमीन ऊपर नीचे फट रही थी।दरारें दीख रही थीं।जिसमें कहीं कहीं घास और खर पतवार उगे हुए थे।बेहतर हालत में जो इ्क्के दुक्के किसान थे,उनने अपने अपने खेत में जूट लगा रखे थे। लेकिन वे भी इतने बदकिस्मत निकले कि  इस साल मानसून इतना लेटलतीफ रहा कि खड़े खड़े खेत में ही जूट सूख गया।किसानों ने मुझे सिलसिलेवार बताया कि कलकत्ता के बाजार के लिए उगाये जाने वाले आलू,प्याज और पूरी रबि की पसल कैसे तबाह हो गयी लेट मानसून की वजह से।गनीमत यह थी कि इलाके में आम के पेड़ सारे के सारे पुराने और लंबे थे।बाढ़ उनका कुछ बिगाड़ न सकी।इसी वजह से एक चौथाई बलागढ़ की किसान आबादी आम और आम की गुठलियां खाकर गुजर बसर कर रही थी।जाहिर है कि आम एक फल है जिसे खाया तो जा सकता है लेकिन खालिस आम खाकर जीना मुश्किल होता है।नतीजतन जैसा हमने देखा कि इलाके में बड़े पैमाने पर हैजा फैला हुआ था।मलेरिया का प्रकोप अलग था।ऊपर से चेचक।महामारियों से भूखे किसान जूझ रहे थे इसीतरह।मसलन राजापुर गांव के  52 परिवारों में से सिर्फ छह परिवार बचे थे और वे भी मलेरिया से बीमार और उनके पास न खाने के लिए अनाज था और न पहनने के कपड़े थे।यह किस्सा हर उस गांव का था ,जहां जहां से होकर मैं गुजरा।मैंने उन देहातियों से पूछा कि उसी इलाके के महान नेता डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी मदद के लिए क्या किया।मैंने बांएं दाएं सबसे यही सवाल पूछा लेकिन उस पूरे इलाके में एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला ,जिसने उनके बारे में कुछ अच्छा कहा।


इसके बदले मुखर्जी के इलाके के  उन देहातियों ने मुझसे सिलसिलेवार कहा कि कैसे गांव में सरकारी लंगरखाना खुला, जहां चार सौ लोगों को खाना देने का इंतजाम था।रोजाना यह लंगर खाना दो महीने तक चालू रहा।उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने उन्हें हर परिवार के हिसाब से पंद्रह आना दिये और गांव के हर व्यक्ति को चुवड़ा खाने के लिए दिये। इसके अलावा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने हर आदमी को चौदह पैसे,हर औरत को दस पैसे और हर बच्चे को पांच पैसे दिये। किसानों ने उसी गांव में स्टुडेंट्स फेडरेशन और मुस्लिम स्टुडेंट लीग की मदद के बारे में भी बताया जिन्होंने बाढ़ के तुरंत बाद गांव वालों को कपड़े बांटे।बारह मन बीज दिये।काफी सब्जियां बांटीं और इसके अलावा हर परिवार को पांच पांच रुपये दिये।उन्होंने बताया कि कम्युनिस्ट पार्टी ने भी हर व्यक्ति के हिसाब से एक पाव चावल और एक पांव आटा दिये।डुमुरदह उत्तम आश्रम ने हर परिवार को दो रुपये का अनुदान दिया और कंट्रोल रेट पर हर परिवार को तीन महीने तक आटा दिया।संक्षेप में हर किसी ने संकट की उस घड़ी में उन बेसहारा किसानों की मदद करने की कोशिश की।लेकिन जिले के सबसे बड़े आदमी श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सबसे शक्तिशाली संगठन हिंदू महासभा ने उनकी किसी किस्म की कोई मदद नहीं की।मैंने श्रीकांति गांव में उनके मातबर किस्म के एक व्यक्ति से सीधे पूछा कि उनकी क्या मदद की है बेंगल रिलीफ कमिटी ने।लेकिन उनने न किसी बेंगल रिलीफ कमिटी के बारे में सुना था और न किसी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में।लेकिन सर आशुतोष का नाम बताते ही यह सवाल वे समझ गये।उन्होंने फिर साफ साफ कह दिया कि नहीं,उनसे कुछ भी नहीं मिला।यह जवाब सुनने काे बाद जिराट तक पहुंचने से पहले मैंने किसी से फिर श्यामाप्रसाद की चर्चा नहीं की।


जैसे जैसे मैं जिराट के नजदीक पहुंचता गया,मुझे जिराट के आसपास के गांवों के इन देहातियों पर टूटते मुसीबत के पहाड़ का नजारा देखने को मिला।एक वाक्य में कहें तो मैंने देखा कि नैसर्गिक नेता ने जब इन देहातियों को मंझधार में बेसहारा छोड़दियातो उनकी हालत कितनी दयनीय थी और वे जिंदा रहने के लिए क्या कर रहे थे।श्यामा प्रसाद उनकी कोई मदद नहीं कर रहे थे और पूरे इलाके में किसी का कद इतना बड़ा नहीं था जो उनकी मदद कर पाता।इसपर तुर्रा यह कि तमाम आवारा और चोर आजाद थे कि जो भी कुछ मदद इन मरते हुए लोगों को बाहर से  भोजन,कपड़ा,दवा, और दूसरी छिटपुट शक्ल में मिल रही थी,उसे भी वे ले उड़े।मसलन श्रीकांति गांव में हर कोई एक शख्स का नाम ले रहा था जो सही मायनों में  उनका गला रेंत रहा था और वह डिस्ट्रिक्ट बोर्ट की रिलीफ एक्टिविटी से जुड़ा था।(मैं उस शख्स का नामोल्लेख करना नहीं चाहता।)उसने अपने अमचों चमचों के डेढ़ सेर प्रति सप्ताह की दर से चावल खैरात में बांट दिये।फिर जब कदमडांगा गांव के किसान उसके पास मदद मांगने गये,उसने खुल्ला ऐलान कर दिया कि वह किसी की मदद किसी कीमत पर नहीं कर सकता।कहा,मैं किसी को किसी  कीमत चावल बांट नहीं सकता,तुम सबको मालूम होना चाहिए।फिर उसने साफ साफ उनसे पेशकश की कि किसान उसके खेतमें बेगार खटे तो कंट्रोल रेट में वह चावल भी दे देगा।पूरे गांव ने इसके खिलाफ एकसाथ आवाज उठायी,फिरभी डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने उसी शख्स को कपड़े के 15 लट्ठे सौंपे ताकि वह यह कपड़ा किश्त दर किश्त 83 परिवारों को बांट दें।उसने फिर वही पुराना खेल चालू कर दिया और जो भी कपड़ा मांगने आया,उसे बैरंग वापस भेज दिया।फिर अपनों को वह सारा कपड़ा कैरात में बांट दिये।


एक ही परिवार उन सबका बास बना हुआ था

ऐसी तकलीफदेह आवाजें मेरे कानों में लगातार गूंजती रहीं और आखिरकार मै श्यामा प्रसाद के अपने  गांव में दाखिल हो गया और सीधे सर आशुतोष के प्राचीन मैंसन में दाखिल हो गया।आशुतोष के किसी दूर के रिश्तेदार,किसी गोस्वामी ने इस पुराने भवन का नाम आशुतोष मेमोरियल रखा था।लेकिन मेरा सामना एक जराजीर्ण,गमशुदा,टूटता हुआ भग्नप्राय रायल बेंगल टाइगर का स्मारक से हुआ।( सर आशुतोष का यही लोकप्रिय नाम है रायल बेंगल टाइगर)।वे बहुत बड़े कद के इंसान थे और जिन्होंने आधुनिक बंगाल का निर्माण किया।जिन्होंने इस भवन की परिकल्पना तैयार की और उसे साकार करके भी दिखाया।मैंने एक रेखाचित्र तैयार किया है जिसे देखकर आपको अंदाजा होगा कि कितना राजकीय भवन यह रहा होगा।इसके तमाम शानदार क्लासिक मजबूत स्तंभ भरभराकर गिरने लगे थे।टैरेस का आधा हिस्सा ढह चुका था और दीवारों से ईंटें निकल रही थीं। खंडहर में तब्दील हो रही उस इमारत की दीवारों,खिड़कियों पर काईं जमने लगी थीं।दरारों में जंगली पौधे जहां तहां उग आये थे,जिसके नतीजतन ऊपर से नीचे तक  तमाम खंभे तहस नहस हो रहे थे।


सर आशुतोष के बेटों ने इस भवन को उन लोगों के हवाले छोड़ रखा था जो आशुतोष स्मृति मंदिर या आशुतोश चैरिटेबिल डिस्पेन्सरी जैसा कुछ खोलकर उनके पिता की स्मृति की पवित्रता सहेजे हुए थे।उस डिस्पेंसरी के डाक्टर इंचार्ज ने कड़ुवा सा मुंह बनाकर मुझसे कहा कि रोज सुबह वे इस डिस्पेंसरी को तीन घंटे के लिए खुला रखते हैं और तीस चालीस मरीजों का इलाज रोज करते हैं।मैं लगातार दो रोज सुबह वहां गया लेकिन डिस्पेंसरी एक घंटे से ज्यादा खुला नहीं देखा और तीस चालीस मरीज भी मैंने नहीं देखे।दस या बारह से ज्यादा मरीज वहां आ नहीं रहे थे जबकि आस पड़स में सैकडो़ं लोग मलेरिया से बिस्तर पर थे।यह मेरे लिए अकथनीय दुःख सा है और वहां का पूरा माहौल मुझे रहस्यजनक लगा।


पैतृक विरासत काफी नहीं

हुआ यह कि जब बाढ़ से बलागढ़ इलाका में हर मकान ढहने लगा तो सर आशुतोष के बेटों ने एक ब्रांड निउ मैंसन बनाने के बारे में निश्चय कर लिया।जाहिर है कि ओल्ड आशुतोष मैंसन उनके किसी काम का नहीं था।बहरहाल मैं यह समझ नहीं सका कि बंगाल में भुखमरी के इस कहर के बीच श्यामा प्रसाद ने नया भव्य मेंसन बनाने की क्यों सोची जबकि अपने पिता के पुराना भव्य भवन देख रेख के बिना भरभराकर ढहने लगा था।मीलों तक तमाम दूसरे मकान भी ढह रहे थे।फिरभी मैंने उस घृणा करने लायक,वल्गर नया बागान बाड़ी देखने के लिए गया ।पूरे बलागढ़ में भुखमरी के दौर में सालभर में इकलौता वह नया मकान बना था।फिर वह इकलौता मकान था जिसमें दो दो धान गोला (देशी गोदाम) धान से भरे थे।बहरहाल इस नये मकान में भव्य कीमती फर्नीचर से लदे फंदे बैठक घर तो थे ही,मुख्यगेट के दोनों तरफ गेस्टहाउस भी अलग से थे।इस्पात का सिंहद्वार था तो खिड़कियों पर भी सींखचे मजबूत थे ताकि बलागढ़ के उस सबसे समृद्ध धनी बागानबाड़ी की सुरक्षा में कोई कसर बाकी न रह जाये।फिर उस बागान बाड़ी में शानदार तरीके से रचे हुए बगीचे में एक ग्रीन हाउस भी था।

वह पूरी जगह रेगिस्तान के बीच मरुद्यान की तरह लग रहा था।छुट्टियों के दिनों में मुखर्जी परिवार के लोग सबांधव पिकनिक मनाने वहां मोटर गाड़ी से कोलकाता से लैंड करते रहते थे।गंगा में तैराकी का आनंद लेते थे।फिर बिना स्थानीय जनता से मिले जुले मोटरगाड़ी में सवार कलकत्ता चल देते थे। सर आशुतोष के बेटों की बनायी यह वल्गर बागानबाड़ी टुकड़ों में बिखर रहे भव्य राजकीय सर आशुतोश के प्राचीन भवन के लिए अपमान के सिवाय कुछ नहीं लग रही थी।यहीं नहीं ,वहां लबालब उमड़ती समृद्धि आसपास मरते खपते भूखे हजारों इंसानों के हुजूम के लिए भी अपमानजनक थी।भीतर से उमड़ रही घिन की वजह से मैं उस घृण्य बादानबाड़ी से भाग निकला,लेकिन फिर भी इस किस्से का अंत कहीं नहीं था।


उस वक्त बलागढ़ के गांवो में खास चर्चा का मुद्दा भुखमरी के दौरान बागानबाड़ी दो दो बार पधारे श्यामाप्रसादे की एक यात्रा के दौरान जिराट में खोले नये हाट को लेकर था, जिसका बड़े ठाठ बाट के साथ भव्य समारोह के जरिये उनने शुरु किया था। सारे ईमानदार लोग इस हाट के बारे में कसमें खाकर बातें कर रहे थे।क्यों? क्योंकि बलागढ़ इलाके में पहले से एक पुराना हाट जिराट के पास ही सिजे गांव में मौजूद था।भुखमरी के वक्त वही इकलौता हाट काफी था।मुद्दा साफ साफ भुखमरी के मध्य सीधे तौर पर मुनाफावसूली का था।जबकि जरुरत उस वक्त की यह थी कि भूखों मरते खपते लोगों को बिन बिचौलिये सीधे सौदा करने का मौका देने का था।बजाय इसके श्यामाप्रसाद ने  अपना नया हाट खोल दिया सिजे के पुराने हाट को बंद करने के मकसद से।जाहिर है कि लगभर  हर इंसान के नजरिये से यह मामला….


हिंदू महासभा के रिलीफ का सच


श्यामाप्रसाद के खोले नये हाट में दिनदहाड़े बेशर्म मुनाफावसूली के दौर में जिराट गांव में हिंदू महासभा के राहत सहायता अभियान से मेरे तनिक भी प्रभावित होने की नौबत बन नहीं रही थी।मैंने ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं की थी।फिरभी मैंने पूरी छानबीन इसलिए की कि मुझे मालूम था कि जिराट की जनता ने भुखमरी के दौरान श्यामाप्रसाद के राहत सहायता कार्यक्रमों के बारे में सुना ही होगा।वहीं इकलौता  गांव था,जहां ऐसा था।बहरहाल मैंने तहकीकात के बाद पाया कि हिंदू महासभा  का भुखमरी  रिलीफ वर्क का गिरोहबंद ढकोसला उतना ही फर्जीवाड़ा था,जितना मुनाफावसूली के लिए श्यामाप्रसाद का हाट या आशुतोष मैंसन की डिस्पेंसरी।चार रिलीफ सेंटर से हिंदू महासभा को 28 सेर चावल और 28 सेर आटा ही भूखी जनता को बांटना था। इसके अलावा श्यामाप्रसाद के दो भाइयों ने अलग दुकान खोल रखी थी,जहां बाजार की आधी कीमत पर चावल बेचा जाना था।इसके बावजूद यह तामझाम  गरीबों के किसी काम का न हुआ क्योंकि बाजार में चालीस रुपया मन चावल बिक रहा था।यही वजह थी कि जिराट गांव के किसानों और मछुआरों की आम शिकायत यह थी कि यह सारी चैरिटी बाबुओं की मदद के लिए थी।दरअसल चंद लोगों को छोड़कर दरअसल हिंदू महासभा की चैरिटी के तहत बीस रुपया मन चावल खरीदने की औकात भूखी जनता में से किसी की नहीं थी।


इसी लिए धनी वर्ग के लोगों से जिराट के लोगों को सख्त नफरत थी और सबसे ज्यादा नफरत थी श्यामाप्रसाद से।उनसे वे डरते भी थे सबसे ज्यादा।


कुल मिलाकर मैंने यही श्यामाप्रसाद के पैतृक गांव जिराट में देखा।मैंने भुखमरी के दौरान बंगाल की तमाम बड़ी हस्तियों के गांवों को देखा लेकिन कहीं भी धनी तबके के लिए इतनी घृणा और कटुता नहीं देखी।खासतौर पर उस गांव के सबसे कद्दावर शख्स के खिलाफ।


वापसी के रास्ते मुझे कुछ और ऐसा मिला जिसके लिए मैं कतई तैयार न था।मुझे तो पहले से ऐसा लगता रहा था कि मध्यवर्ग की पूरी की पूरी नई पीढ़ी श्यामाप्रसाद के महिमामंडन के लिए कोई भी सफेद झूठ कहने से हिचकती नहीं है। पूरे  बलागढ़ इलाके और  जिराट गांव में हर किसी  ने साफ तौर पर बता दिया कि दो साल में श्यामाप्रसाद अपने गांव सिर्फ दो बार गये।भुखमरी के दौरान एकबार और फिर जिराट में नया हाट बसाने के लिए। इसके विपरीत बगल के कसलपुर में एक डाक्टर साहेब मिले जिनने दावा किया कि श्यामाप्रसाद तो कलकता से लगातार गांव आते जाते रहते हैं और मसलन पिछले दो महीने में वे चार बार पधारे।क्या उनके गांव में एक भी शख्स ऐसा नहीं है जिसे श्यामाप्रसाद से मुहब्बत हो? जिराट के रिलीफ सेंटरों में चावल और आटा बांटने का काम देख रहे बीरनलेंदु गोस्वामी ने खुद मुझसे कहा कि वे सिर्फ रविवार को ही रिलीफ बांट रहे थे।जबकि हिंदू महासभा पर गर्व करने वाले हाईस्कूल के एक युवा छात्र ने दावा किया कि वहां रिलीफ केंद्रों पर रोजाना 24 छात्र काम कर रहे थे और रोज सौ डेढ़ सौ मुंहों को भोजन खिला रहे थे।


इसी लिए धनी वर्ग के लोगों से जिराट के लोगों को सख्त नफरत थी और सबसे ज्यादा नफरत थी श्यामाप्रसाद से।उनसे वे डरते भी थे सबसे ज्यादा।फिरभी इस यात्रा के अंत पर मुझे कुछ ऐसा सकारात्मक भी सुनने को मिला कि जिससे पता चला कि श्यामाप्रसाद और उनके तमाम कृत्यों के बावजूद प्राचीन बंगाली सभ्यता के मुताबिक सर आशुतोष की आत्मा प्रेरणा अभी सही सलामत हैं।शाम ढलने लगी थी और स्कूल तालाबंद था,जिसके सामने पेड़ों के नीचे लड़के लड़कियों के शोर मचाते झुंड जमा थे।किसी ने भद्दी भाषा में कोसना शुरु कर दिया तो तत्काल एक बूड़े आदमी ने चीखकर पूछा,`कौन भद्दी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है? क्या तुम सभी जानवरों में तब्दील हो गये हो?' इसके जबाव में किसी ने कहा कि वे लोग कैसे इंसान हो सकते हैं,जिन्होंने स्कूल तक बंद कर दिये।फिर मेरे गाइड,एक किसान कार्यकर्ता के मुखातिब हुए वे।उन्होंने बिना लाग लपेट के मांग की,`प्लीज,हमारे लिए एक स्कूल टीचर दे दीजिये।हम भूखं रहकर उन्हें खाना खिलायेंगे।केरोसिन का भाव दस आना पिंट(0.473 लीटर) है।लेकिन हम उसके लिए भी पैसे जुगाड़ कर लेंगे।ईश्वर के वास्ते,हमारा स्कूल फिर चालू कर दीजिये।अगर ऐसा नहीं हो सका तो सर आशुतोष के गांव की सभ्यता खत्म हो जायेगी।हमारे बच्चे गुंडे बदमाश निकलेंगे।' जीने के लिए,श्रम के लिए कितना फौलादी इरादा है यह! यकीनन वे लोग जिंदा रहेंगे और रायल बेंगल टाइगर की तरह लड़ेंगे-श्यामाप्रसाद के बावजूद!

साभार समयांतर



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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk