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Wednesday, February 17, 2016

#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti कोई श्री कृष्ण यदुवंशी फिर कंस का वध न कर दें,आशंका यही है।मनुस्मृति इसीलिए बच्चों को जहर देने लगी है। आ बैल मार,जारी करें फतवे! सरकार या संसद नहीं,हम खाप पंचायत को लोकतंत्र मान रहे हैं,जिसमें न सुनवाई है और न बहस की गुंजाइश है! बाबासाहेब ने गलत कहा था कि भारतीयजनता मूक वधिर है।उनने नहीं कहा कि हम अंधे भी हैं,जो हम यकीनन हैं! लोग पढ़ेंगे,लिखेंगे,सीखेंगे,सोचेंगे,रचेंगे,सपने देखेंगे,यह खाप पंचायत के लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है। बच्चों से पढ़ने लिखने का अधिकार छीन लिया जाये तो असहमति का साहस ही नहीं बचेगा,जैसा कि रीढ़हीन प्रजातियों का स्वभाव है। या नसबंदी अभियान जैसा कुछ चलाकर जिस शख्स में भी रीढ़ का नामोनिशां बचा हो,उसे तुरंत रीढ़ मुक्त कर दिया जाये। हमारा कर्मफल सामने है कि हम दो कौड़ी के भी नहीं हैं। अंतिम सांसें अभी चल रही हैं। शूली पर चढ़ने से पहले जानने की बहुत इच्छा है,क्या भारतेंदु राष्ट्रद्रोही थे? अंधेर नगरी चौपट्ट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा जब किसी को भी राष्ट्रद्रोही बताकर फांसी पर लटकाने की होड़ लगी है तो जाहिर है कि भारत के सं



#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti

कोई श्री कृष्ण यदुवंशी फिर कंस का वध न कर दें,आशंका यही है।मनुस्मृति इसीलिए बच्चों को जहर देने लगी है।


आ बैल मार,जारी करें फतवे!

सरकार या संसद नहीं,हम खाप पंचायत को लोकतंत्र मान रहे हैं,जिसमें न सुनवाई है और न बहस की गुंजाइश है!


बाबासाहेब ने गलत कहा था कि भारतीयजनता मूक वधिर है।उनने नहीं कहा कि हम अंधे भी हैं,जो हम यकीनन हैं!


लोग पढ़ेंगे,लिखेंगे,सीखेंगे,सोचेंगे,रचेंगे,सपने देखेंगे,यह खाप पंचायत के लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है।


बच्चों से पढ़ने लिखने का अधिकार छीन लिया जाये तो असहमति का साहस ही नहीं बचेगा,जैसा कि रीढ़हीन प्रजातियों का स्वभाव है।


या नसबंदी अभियान जैसा कुछ चलाकर जिस शख्स में भी रीढ़ का नामोनिशां बचा हो,उसे तुरंत रीढ़ मुक्त कर दिया जाये।


हमारा कर्मफल सामने है कि हम दो कौड़ी के भी नहीं हैं।


अंतिम सांसें अभी चल रही हैं।


शूली पर चढ़ने से पहले जानने की बहुत इच्छा है,क्या भारतेंदु राष्ट्रद्रोही थे?


अंधेर नगरी चौपट्ट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा


जब किसी को भी राष्ट्रद्रोही बताकर फांसी पर लटकाने की होड़ लगी है तो जाहिर है कि भारत के संविधान का महिमामंडन करना बेकार है और राष्ट्रद्रोह कानून को ही भारत का संविधान मान लेना चाहिए।




पलाश विश्वास

अब इरोम को मार ही दें।ताकि मातृतांत्रिक मणिपुर के लिए किसी को नारे लगाने की जुर्रत न हो।


साफ कर दूं कि कोई इरोम शर्मिला मणिपुर में सशस्त्र सैन्य शासन के खिलाफ आजादी की मांग करती हुई पिछले चौदह साल से आमरण अनशन पर हैं और उन्हें जबरन तरल आहार के जरिये सरकारी हिरासत में जिंदा रखा जा रहा है ताकि हमारा लोकतंत्र जीवित रहे।


इसके साथ याद करें कि कश्मीर में जिनके साथ संघ परिवार की सरकार बनी और फिर बनने जा रही है,वे भी जब तब कश्मीर की आजादी की मांग करते रहे हैं।


उनने भी अफजल गुरु की फांसी का विरोध किया था।


तो क्या संघ परिवार राष्ट्रद्रोहियों के साथ सत्ता शेयर कर सकता है?


वे जो करें वह देशभक्ति है।


गौरतलब यह है कि इन्हीं आरोपों के तहत हमारे बच्चे या तो आत्महत्या कर रहे हैं, या हमलों के शिकार हो रहे हैं,या जेल में हैं या जेल में भेजे जाने वाले हैं।समरसता है।


इसे भी याद करना बेहद जरुरी है कि भारत सरकार नगा मिजो विद्रोहियों से लेकर कश्मीर के अलगाववादियों से भी लगातार संवाद करती रही है।


तमिल टाइगरों से भारत सरकार और तमिलनाडु सरकार निरंतर संवाद करती रही है।


क्या यह भी राष्ट्रद्रोह है?


क्या इसका मतलब यह है कि संघ परिवार,भारत सरकार,संबद्ध राज्य सरकारों,शासक दलों के खिलाफ भी राष्ट्रद्रोह का महाभियोग लगाया जाये?


कया सुप्रीम कोर्टऐसे किसी मामले की सुनवाई करने को तैयार हो जायेगी?


क्या कानून,संविधान और न्याय का स्वराज का रामराज्य भव्य राममंदिर यही है?


#shutdownjnu आंदोलन अस्मिताओं के तोड़ रही आम जनता की #justiceforrohit/hokkolorob के जरिये फिर सत्ता की चाबी हासिल करने के लिए दलित वोट बैंक कब्जाने और मनुस्मृति राज बहाल रखने की मजहबी सियासत की मजबूरी है,इसे हम समझ सकते हैं।


यह भी समझा जा सकता है कि भारत राष्ट्र  के खिलाफ नारेबाजी के नतीजतन देशभक्ति पर आंच आ सकती है  और राष्ट्रवाद के अचूक रामवाण से असहमतों का वध वैध ठहराया जा सकता है।


यह रघुकुल रीति सत्य सनातन है।


जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्र भारतवर्ष के खिलाफ नारेबाजी नहीं कर रहे थे।जो कश्मीर और मणिपुर की आजादी के लिए नारेबाजी कर रहे थे और देश में ऐसे आंदोलन जमीनी हकीकत है।


ये नारे विवादास्पद हो सकते हैं,इसमें दो राय नहीं है।लेकिन किस दृष्टिकोण से राष्ट्रद्रोह है,हमारी समझ से बाहर है।


जबकि मौखिक नारेबाजी को राष्ट्रद्रोह औपनिवेशिक राष्ट्रद्रोह कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट भी मानने को तैयार नहीं है।


संघ परिवार का इतिहास सर्वविदित है और उनका एजंडा सार्वजनिक है।


अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भूमिकारोहित वेमुला की आत्महत्या से लेकर इस देश के हर विश्वविद्यालय कैंपस में खूब जगजाहिर है।


साध्वी प्राची या सुब्रह्मण्यम स्वामी क्या कह सकते हैं या क्या नहीं कह सकते हैं,हम सब जानते हैं।


हिंदूराष्ट्र के अविचल लक्ष्य के लिए,रामराज्य के भव्य राम मंदिर के लिए बजरंगी सेना की गतिविधियों से हम हैरान नहीं हैं।


सोशल नेटवर्किंग पर हिंदुत्व का जलजला और मीडिया में बैठे सुपारी किलरों का हकीकत हम जानते हैं और हम लोकतंत्र का हिस्सा मानते हैं यह।


उनकी अभिव्यक्ति का भी हम सम्मान करते हैं।


कमसकम हमने किसी गाली गलौज करने वालों को मित्र की सूची से नहीं हटाया है।


क्योंकि जीव मात्र को अपनी मातृभाषा में कुछ भी कहने का अधिकार है।हम सरस्वती की वरद पु्त्र नहीं हैं न सारस्वत हैं,लेकिन भक्तों की सरस्वती वंदना से भी हमें एलर्जी नहीं है।


हम अल्पसंख्यकों के वोटबैंक की राजनीति भीनहीं कर रहे हैं और न कोई अस्मिता आंदोलनचला रहे हैं।हम सियासत में वैसे ही नहीं हैं जैसे हम मजहब में नहीं हैं।हम वोटभी आपका मांग नहीं रहे हैं।


इसलिए हम मानते हैं कि बहुसंख्यकों की शुभबुद्धि और विवेक पर ही इस देश में लोकतंत्र का भविष्य हैं।


सबसे खतरनाक बात तो यह है कि बहुसंख्यकों की गौरवशाली लोकतांत्रिक परंपरा को हम लोग खाप पंचायत में तब्दील करके इसे ही लोकतंत्र साबित करने पर आमादा हैं।


इससे भी खतरनाक बात यह है कि धर्मांध राष्ट्रवाद के सिपाहसालारों से अलग कोई भाषा इस वक्त इस देश में किसी की मातृभाषा नहीं है।


यहां तक कि सेकुलर कह जाने वाली प्रगतिशील किस्म की प्रगतिशील विलुप्त प्राय रीढ़ हीन प्रजातियां ख्वाब में भी फर्श पर पिन गिरने की हरकत में भी चीखने लगी हैं- राष्ट्रद्रोह राष्ट्रद्रोह!


बूढ़ाते मरणासन्न वाम नेतृत्व से इसके अलावा किस दृष्टि की उम्मीद की जा सकती है!बहरहाल यह हिंदुत्व से भी खतरनाक है।


 


पीड़ित जख्मी मनुष्यता की चीख में गालियों की बौछार हो तो भी मनुष्यता और भारतवंशजों की परंपरा और धर्म के मुताबिक तलवार निकालकर वध करने का कोई उदाहरण हमें वेदों,उपनिषदों और धर्मग्रंथों में मिला नहीं है।


हालांकि इस पर किसी शंकराचार्य,महंत,संत, बापू या साध्वी की राय ही प्रामाणिक होगी और आप हमारी सुनेंगे नहीं।


न सुनने ,न देखने का अधिकार भी उतना ही मानवाधिकार है जितना इंद्रियों के प्रयोग का,मताधिकार का।


सत्तर के दशक के डीएसबी कालेज से हमारे धुरंधर मित्र राजा बहुगुणा ने एकदम सही लिखा हैः


राजनाथ सिंह अब देश की जनता का सामना कैसे करेंगे ? गृह मंत्रालय का ऐसा हश्र पहली बार देखा गया है ? देश नागपुर के इशारे पर नहीं, भारतीय संविधान के मातहत चलेगा-अब मोदी सरकार को इस बात को गांठ बांध लेना चाहिए।जेएनयू को मिटाने की नहीं वरन वहां से सीखने की जरूरत है।कन्हैया कुमार का ही नहीं ,वरन भारतीय लोकतंत्र का जो अपमान किया गया है-उस पर राष्ट्र से क्षमा याचना किए बिना मोदी सरकार कैसे आगामी संसद सत्र का सामना करेगी -यह एक यक्ष प्रश्न मुंह बाएं खडा है ?


जब किसी को भी राष्ट्रद्रोही बताकर फांसी पर लटकाने की होड़ लगी है तो जाहिर है कि भारत के संविधान का महिमामंडन करना बेकार है और राष्ट्रद्रोह कानून को ही भारत का संविधान मान लेना चाहिए।


अगर आम जनता की राय ऐसी है और हमें भी शुली पर चढ़ाने का फरमान जारी हो,तो हम कुछ भी कह नहीं सकते।


फिरभी विद्वतजनों से सविनय निवेदन है कि तनिक इस राष्ट्रद्रोह कानून की सप्रसंग संदर्भ सहित व्याखा तो खुलकर करें ताकि देश भर के विश्विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चों को समझ आयें कि सत्ता से टकराने से पहले,आ बैल मार चुनौती देने से पहले वे अच्छी तरह समझ लें कि उनकी नियति क्या है और कर्मफल क्या है।


इसीलिए हमने कल सुबह सुबह भारतेंदु के नाटक अंधेर नगरी चौपट्ट राजा का पाठ जारी किया है।


चिपको आंदोलन के दौरान और इमरजेंसी के दिनों में एक सिरफिरे गिरदा की अगुवाई में हम नैनीताल के रंगकर्मी नैनीताल के हर कोने में,अल्मोड़े में और तराई और पहाड़ में व्यापक पैमाने पर इस नाटक का मंचीय और नुक्कड़ प्रदर्शन करते रहे हैं।


तब किसीने नहीं चीखा था- भारतेंदु राष्ट्रद्रोही थे।


तब हम भी जेएनयू या जादवपुर के विश्वविद्यालयों के बागी युवा छात्र छात्राओं की तरह टीन एजर ही थे।


हम तो सत्तर के दशक में भी बच गये।


अब मारे गये करीब चार दशक के बाद तो खास नुकसान नहीं होगा फिर चाहे हमें कोई याद रखें या भूल जायें।


अगर हमारे बच्चे राष्ट्रद्रोही हैं,तो साध्वी प्राची का तर्क बहुत जायज है कि बच्चे राष्ट्रद्रोही हैं तो मां बाप और अभिभावक भी राष्ट्रद्रोही होंगे।


तो धर लीजिये,तमाम मां बाप,अभिभावकों को जो अपने बच्चों को तकनीकी बंधुआ मजदूर बनाने के बजाय बिना सोचे समझे विश्विद्यालय भेजकर मनुस्मृति अनुशासन भंग करते रहते हैं।


शंबूक कहीं बचना नहीं चाहिए।

यह रामराज्य के लिए अनिवर्य है।

राराज्य के लिए मनुस्मृति और मनुसृति अनुशासन बेहद जरुरी है।


फिर रोहित या मोहित कोई अकेले शंबूक नहीं हैं।

हर विश्वविद्यालय में असंख्य शंबूक पैदा हो रहे हैं।

मार डाले उन्हें या #shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti

इसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह जिनका भी हो,माफ न हो।यही खाप पंचायत का फैसला है,जो लागू होकर रहेगा।


वैसे हम भी स्वभाव से अब भी विश्वविद्यालय के छात्रों की तरह टीन एजर हैं।उन्हीं की तरह पढ़ते लिखते हैं,सोचते हैं और अब बूढा़पे में भी ख्वाब देखते हैं।किसी को हमसे मुहब्बत हो या न हो,मुहब्बत भी करते रहते हैं।


नफरत के आलम में हर मुहब्बत वाले शख्स को फांसी पर चढ़ा ही देना चाहिए।


बहुत जल्द हम छत्तीस साल की नौकरी से आजाद होंगे।न सर पर छत है और न रोजगार होगा।पेंशन सिर्फ दो हजार।हैसियत जीरो।


हमें जेल में डालकर सरकार हमपर रहम ही कर सकती है।इस देश में ज्यादातर जनता की औकात यही है।सबको जेल में डाल दें।


#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti


फिर कंस को कहां मालूम था कि देवकी का अष्टम गर्भ गोकुल में सही सलामत है?


उसने जो कहर बरपाया दरअसल वही,सत्ता का चरित्र है!


कोई श्री कृष्ण यदुवंशी फिर कंस का वध न कर दें,आशंका यही है।मनुस्मृति इसीलिए बच्चो को जहर देने लगी है।

#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti



जाहिर है कि अब मुकम्मल हिंदू राष्ट्र के लिए अनिवार्य है कि सारे विश्वविद्यालय थोक भाव से बंद कर दिये जाये क्योकि प पंचायत में ज्ञान विज्ञान की कोी जरुरत नहीं है और जिंदा रहने के लिए बाजार में तकनीक और ऐप्स काफी है।


#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti


बिजनेस फ्रेंडशिप का तकाजा है कि शिक्षा पर नागरिक धेले भर खर्च ना करें और जो भी कच्चा तेल जैसी बचत हो,उसे शिक्षा चिकित्सा जैसे फालतू मद में  खर्च करने के बजाय पीपीपी माडल यासीधे सेनसेक्स में निवेश कर दिया जाये।


या राज्यसरकार और केंद्र सरकार की तरह भांति भांति के अनुदान, पुरस्कार,सम्मान समारोह,उत्सव,विदेश में सैर सपाटे,लख टकिया सूट वगैरह वगैरह पर लगा दिया जाये।


#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti


मनुस्मृति ने ऐसे हालात से निपटने के लिए शिक्षा पर एकाधिकार का बंदोबस्त किय़ा था।


लोग पढ़ेंगे,लिखेंगे,सीखेंगे,सोचेंगे,रचेंगे,सपने देखेंगे,यह खाप पंचायत के लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है।



#shutterdownrighttoknowledge/Manusmriti

बच्चों से पढ़ने लिखने का अधिकार छीन लिया जाये तो असहमति का साहस ही नहीं बचेगा,जैसा कि रीढ़हीन प्रजातियों का स्वभाव है।


या नसबंदी अभियान जैसा कुछ चलाकर जिस शख्स में भी रीढ़ का नामोनिशां बचा हो,उसे तुरंत रीढ़ मुक्त कर दिया जाये।


हमारा कर्मफल सामने है कि हम दो कौड़ी के भी नहीं हैं।

अंतिम सांसें अभी चल रही है।


शूली पर चढ़ने से पहले जानने की बहुत इच्छा है,क्या भारतेंदु राष्ट्रद्रोही थे?


चूंकि हम भी हमेशा लिखते रहे हैं इसी तर्ज पर जैसे अंधेर नगरी का यह दृश्यर नगरी का यह दृश्यः

दूसरा दृश्य

(बाजार)


कबाबवाला : कबाब गरमागरम मसालेदार-चैरासी मसाला बहत्तर आँच का-कबाब गरमागरम मसालेदार-खाय सो होंठ चाटै, न खाय सो जीभ काटै। कबाब लो, कबाब का ढेर-बेचा टके सेर।

घासीराम : चने जोर गरम-

चने बनावैं घासीराम।

चना चुरमुर चुरमुर बौलै।

चना खावै तौकी मैना।

चना खायं गफूरन मुन्ना।

चना खाते सब बंगाली।

चना खाते मियाँ- जुलाहे।

चना हाकिम सब जो खाते।

चने जोर गरम-टके सेर।

नरंगीवाली : नरंगी ले नरंगी-सिलहट की नरंगी, बुटबल की नरंगी, रामबाग की नरंगी, आनन्दबाग की नरंगी। भई नीबू से नरंगी। मैं तो पिय के रंग न रंगी। मैं तो भूली लेकर संगी। नरंगी ले नरंगी। कैवला नीबू, मीठा नीबू, रंगतरा संगतरा। दोनों हाथों लो-नहीं पीछे हाथ ही मलते रहोगे। नरंगी ले नरंगी। टके सेर नरंगी।

हलवाई : जलेबियां गरमा गरम। ले सेब इमरती लड्डू गुलाबजामुन खुरमा बुंदिया बरफी समोसा पेड़ा कचैड़ी दालमोट पकौड़ी घेवर गुपचुप। हलुआ हलुआ ले हलुआ मोहनभोग। मोयनदार कचैड़ी कचाका हलुआ नरम चभाका। घी में गरक चीनी में तरातर चासनी में चभाचभ। ले भूरे का लड्डू। जो खाय सो भी पछताय जो न खाय सो भी पछताय। रेबडी कड़ाका। पापड़ पड़ाका। ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम हैं भाई। जैसे कलकत्ते के विलसन मन्दिर के भितरिए, वैसे अंधेर नगरी के हम। सब समान ताजा। खाजा ले खाजा। टके सेर खाजा।

कुजड़िन : ले धनिया मेथी सोआ पालक चैराई बथुआ करेमूँ नोनियाँ कुलफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा ले मरसा। ले बैगन लौआ कोहड़ा आलू अरूई बण्डा नेनुआँ सूरन रामतरोई तोरई मुरई ले आदी मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूद निबुहा मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी। रैयत राजी टके सेर भाजी। ले हिन्दुस्तान का मेवा फूट और बैर।

मुगल : बादाम पिस्ते अखरोट अनार विहीदाना मुनक्का किशमिश अंजीर आबजोश आलूबोखारा चिलगोजा सेब नाशपाती बिही सरदा अंगूर का पिटारी। आमारा ऐसा मुल्क जिसमें अंगरेज का भी दाँत खट्टा ओ गया। नाहक को रुपया खराब किया। हिन्दोस्तान का आदमी लक लक हमारे यहाँ का आदमी बुंबक बुंबक लो सब मेवा टके सेर।

पाचकवाला :

चूरन अमल बेद का भारी। जिस को खाते कृष्ण मुरारी ॥

मेरा पाचक है पचलोना।

चूरन बना मसालेदार।

मेरा चूरन जो कोई खाय।

हिन्दू चूरन इस का नाम।

चूरन जब से हिन्द में आया।

चूरन ऐसा हट्टा कट्टा।

चूरन चला डाल की मंडी।

चूरन अमले सब जो खावैं।

चूरन नाटकवाले खाते।

चूरन सभी महाजन खाते।

चूरन खाते लाला लोग।

चूरन खावै एडिटर जात।

चूरन साहेब लोग जो खाता।

चूरन पूलिसवाले खाते।

ले चूरन का ढेर, बेचा टके सेर ॥

मछलीवाली : मछली ले मछली।

मछरिया एक टके कै बिकाय।

लाख टका के वाला जोबन, गांहक सब ललचाय।

नैन मछरिया रूप जाल में, देखतही फँसि जाय।

बिनु पानी मछरी सो बिरहिया, मिले बिना अकुलाय।

जातवाला : (ब्राह्मण)।-जात ले जात, टके सेर जात। एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं। टके के वास्ते ब्राहाण से धोबी हो जाँय और धोबी को ब्राह्मण कर दें टके के वास्ते जैसी कही वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करैं। टके के वास्ते ब्राह्मण से मुसलमान, टके के वास्ते हिंदू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचैं, टके के वास्ते झूठी गवाही दें। टके के वास्ते पाप को पुण्य मानै, बेचैं, टके वास्ते नीच को भी पितामह बनावैं। वेद धर्म कुल मरजादा सचाई बड़ाई सब टके सेर। लुटाय दिया अनमोल माल ले टके सेर।

बनिया : आटा- दाल लकड़ी नमक घी चीनी मसाला चावल ले टके सेर।

(बाबा जी का चेला गोबर्धनदास आता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन सुन कर खाने के आनन्द में बड़ा प्रसन्न होता है।)

गो. दा. : क्यों भाई बणिये, आटा कितणे सेर?

बनियां : टके सेर।

गो. दा. : औ चावल?

बनियां : टके सेर।

गो. दा. : औ चीनी?

बनियां : टके सेर।

गो. दा. : औ घी?

बनियां : टके सेर।

गो. दा. : सब टके सेर। सचमुच।

बनियां : हाँ महाराज, क्या झूठ बोलूंगा।

गो. दा. : (कुंजड़िन के पास जाकर) क्यों भाई, भाजी क्या भाव?

कुंजड़िन : बाबा जी, टके सेर। निबुआ मुरई धनियां मिरचा साग सब टके सेर।

गो. दा. : सब भाजी टके सेर। वाह वाह! बड़ा आनंद है। यहाँ सभी चीज टके सेर। (हलवाई के पास जाकर) क्यों भाई हलवाई? मिठाई कितणे सेर?

हलवाई : बाबा जी! लडुआ हलुआ जलेबी गुलाबजामुन खाजा सब टके सरे।

गो. दा. : वाह! वाह!! बड़ा आनन्द है? क्यों बच्चा, मुझसे मसखरी तो नहीं करता? सचमुच सब टके सेर?

हलवाई : हां बाबा जी, सचमुच सब टके सेर? इस नगरी की चाल ही यही है। यहाँ सब चीज टके सेर बिकती है।

गो. दा. : क्यों बच्चा! इस नगर का नाम क्या है?

हलवाई : अंधेरनगरी।

गो. दा. : और राजा का क्या नाम है?

हलवाई : चौपट राजा।

गौ. दा. : वाह! वाह! अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा (यही गाता है और आनन्द से बिगुल बजाता है)।

हलवाई : तो बाबा जी, कुछ लेना देना हो तो लो दो।

गो. दो. : बच्चा, भिक्षा माँग कर सात पैसे लाया हूँ, साढ़े तीन सेर मिठाई दे दे, गुरु चेले सब आनन्दपूर्वक इतने में छक जायेंगे।

(हलवाई मिठाई तौलता है-बाबा जी मिठाई लेकर खाते हुए और अंधेर नगरी गाते हुए जाते हैं।)

(पटाक्षेप)


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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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