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Thursday, January 15, 2015

जनता को बाँटने की साज़िश को नाकाम करो!

शहीदे-आज़म भगतसिंह के पैग़ाम को याद करो!
साम्प्रदायिक फ़ासीवादियों द्वारा जनता को बाँटने की साज़िश को नाकाम करो!
जनता की जुझारू जनएकजुटता कायम करो!

jaisriram-4b

साथियो!

देश में एक बार फिर जनता को धर्म के नाम पर बाँटने की साज़िशें की जा रही हैं। पूरे देश में धार्मिक कट्टरपंथ की आग को हवा दी जा रही है। जिस समय देश के आम लोग महँगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी से बदहाल हैं, उस समय उन्हें 'रामज़ादे' और 'हरामज़ादे' में बाँटा जा रहा है। क्या आपने कभी सोचा है कि जिस समय देश में जनता बढ़ती कीमतों, बेकारी और बदहाली से तंगहाल हो, अचानक उसी समय 'लव जिहाद', 'घर वापसी' और 'हिन्दू राष्ट्र निर्माण' का लुकमा क्यों उछाला जाता है जब चुनाव नज़दीक हों तभी अचानक दंगे क्यों होने लगते हैं जब जनता महँगाई और भ्रष्टाचार की मार से बदहाल होती है उसी समय साम्प्रदायिक तनाव क्यों भड़क जाता है क्या यह केवल संयोग है क्या आप आज़ादी के बाद कोई ऐसा दंगा याद कर सकते हैं जिसमें तोगड़िया, ओवैसी, सिंघल या योगी आदित्यनाथ जैसे लोग मारे जाते हैं क्या दंगों में कभी किसी कट्टरपंथी नेता का घर जलता है नहीं! दंगों में हमेशा हमारे और आपके जैसे आम लोग मारे जाते हैं, बेघर और यतीम होते हैं! जी हाँ! हमारे और आपके जैसे लोग जो अपने बच्चों को एक बेहतर ज़िन्दगी देने की जद्दोजहद में खटते रहते हैं! जिनके खाने की प्लेटों से एक-एक करके सब्ज़ी, दाल ग़ायब हो रहे हैं! जिनके नौजवान बेटे और बेटियाँ सड़कों पर बेरोज़गार घूम रहे हैं! जिनका भविष्य अनिश्चित होता जा रहा है! जो लगातार बरबादी की कगार पर धकेले जा रहे हैं! जब भी हमारे सब्र का प्याला छलकने लगता है, तो देश के हुक्मरान अचानक मन्दिर और मस्जिद का मसला उठा देते हैं। देश के अमीरज़ादों, धन्नासेठों और दैत्याकार कम्पनियों के पैसों पर पलने वाली तमाम चुनावी पार्टियाँ उसी वक़्त धार्मिक कट्टरपंथ को उभारती हैं। हिन्दुओं को मुसलमानों और मुसलमानों को हिन्दुओं का दुश्मन बताया जाता है और आपस में लड़ा दिया जाता है। और हमारी मूर्खता यह है कि हम लड़ भी जाते हैं। दंगे होते हैं, आम लोग मरते हैं। और आम लोगों की चिताओं पर देश के अमीरज़ादे और उनकी तमाम चुनावी पार्टियाँ अपनी रोटियाँ सेंकती हैं।

किसके "अच्छे दिन" और किनका "विकास"

Modi development cartoon grayscale copyनरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा-नीत एनडीए की सरकार बनने के पहले देश की जनता को तमाम गुलाबी सपने दिखाये गये थे। यह दावा किया गया था कि महँगाई और बेरोज़गारी की मार को ख़त्म किया जायेगा; पेट्रोल-डीज़ल से लेकर रसोई गैस की कीमतें घटा दी जायेंगी; रेलवे भाड़ा नहीं बढ़ाया जायेगा;  भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जायेगी और स्विस बैंकों से काला धन वापस लाया जायेगा! "अच्छे दिन" आयेंगे! लेकिन सरकार बनने के सात माह बाद ही देश की आम मेहनतकश जनता को समझ आने लगा है कि किसके "अच्छे दिन" आये हैं! रसोई गैस की कीमतें बढ़ा दी गयीं; रेलवे भाड़ा बढ़ा दिया गया; श्रम कानूनों से मज़दूरों को मिलने वाली सुरक्षा को छीन लिया गया; तमाम पब्लिक सेक्टर की मुनाफ़ा कमाने वाली कम्पनियों का निजीकरण किया जा रहा है, जिसका अर्थ होगा बड़े पैमाने पर सरकारी कर्मचारियों की छँटनी; ठेका प्रथा को 'अप्रेण्टिस' आदि जैसे नये नामों से बढ़ावा दिया जा रहा है; नयी भर्तियाँ हो ही नहीं रही हैं और अगर कहीं हो भी रही हैं, तो स्थायी कर्मचारी के तौर पर नहीं बल्कि ठेके पर; पेट्रोलियम उत्पादों की अन्तरराष्ट्रीय कीमतें इतनी गिर गयी हैं कि सरकार चाहे तो पेट्रोल को रु. 40 प्रति लीटर पर बेच सकती है, लेकिन मोदी सरकार ने उस पर तमाम कर और शुल्क बढ़ा दिये जिससे कि उनकी कीमतों में कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ा; स्विस बैंक में काला धन जमा करने वाले भ्रष्टाचारियों के नाम तरह-तरह की बहानेबाज़ी करके गुप्त रखे जा रहे हैं; महँगाई कम होना तो दूर खुदरा बिक्री के स्तर पर खाने-पीने के सामानों समेत हर ज़रूरी सामान पहले से महँगा हो गया है; रुपये को मज़बूत करना तो दूर रुपये की कीमत में रिकार्ड गिरावट लायी जा रही है, जिससे कि महँगाई और ज़्यादा बढ़ रही है; सत्ता में आते ही केन्द्र और राज्य स्तर पर मोदी सरकार के मन्त्रियों ने भ्रष्टाचार और गुण्डागर्दी के पुराने रिकार्ड तोड़ने शुरू कर दिये हैं; बलात्कार के आरोपी नेता-मन्त्री मोदी सरकार में बैठे हुए हैं!

दूसरी तरफ़, देश के सबसे बड़े धन्नासेठों जैसे कि अम्बानी, अदानी, बिड़ला, टाटा आदि को मोदी सरकार तोहफ़े पर तोहफ़े दे रही है! उन्हें तमाम करों से छूट दे दी गयी है; उन्हें लगभग मुफ्त बिजली, पानी, ज़मीन, ब्याज़रहित कर्ज़, श्रम कानूनों से छूट दी जा रही है; देश की प्राकृतिक सम्पदा को औने-पौने दामों पर उन्हें सौंपा जा रहा है, जो कि वास्तव में देश की जनता की सामूहिक सम्पत्ति है; निजीकरण करके आपके और हमारे पैसों से खड़े किये गये सार्वजनिक उपक्रमों को कौड़ियों के दाम इन मुनाफ़ाखोरों को बेचा जा रहा है! "स्‍वदेशी", "देशभक्ति", "राष्ट्रवाद" का ढोल बजाते हुए सत्ता में आये मोदी ने अपनी सरकार बनने के साथ ही बीमा, रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों समेत तमाम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को इजाज़त दे दी; क्या आपको याद है कि यही भाजपा मनमोहन सिंह द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का जमकर विरोध कर रही थी मोदी सरकार बनने के बाद से गुजरात समेत तमाम प्रदेशों में निवेशक सम्मेलनों में मोदी और भाजपा के अन्य नेताओं ने देशी-विदेशी कम्पनियों को देश की प्रकृति और जनता को लूटने के लिए खुली छूट दी और इसे 'मेक इन इण्डिया' अभियान का नाम दिया गया! इसका अर्थ यह है कि "आओ दुनिया भर के मालिकों, पूँजीपतियों और व्यापारियों! हमारे देश के सस्ते श्रम और प्राकृतिक संसाधनों को बेरोक-टोक जमकर लूटो!" अमेरिका जाकर प्रधानमन्त्री मोदी ने दवा कम्पनियों के साथ एक सौदा किया जिसके कारण अब कई जीवन-रक्षक दवाइयाँ कई गुना महँगी हो गयी हैं और आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गयी हैं; तमाम कम्पनियों को अब पूरी कानूनी छूट दे दी गयी है कि वे मज़दूरों व कर्मचारियों से खुलकर ओवरटाइम करायें। देश के ऊपर के 15 फीसदी अमीरों के लिए सारी सुविधाएँ, टैक्स से छूट और रियायतें दी जा रही हैं! उनके लिए चमकते-दमकते शॉपिंग मॉल, मल्टीप्लेक्स, अम्यूज़मेण्ट पार्क हैं! और देश की 85 फीसदी आम जनता को बताया जा रहा है कि उन्हें "विकास" के लिए बिना आवाज़ उठाये फैक्ट्रियों, दुकानों, होटलों, ऑफिसों में खटना होगा! अब देश के अमीरज़ादों के विकास के लिए मेहनतकश जनता को ही तो कीमत अदा करनी पड़ेगी! उसे ही तो पेट पर पट्टी बाँधकर "हिन्दू राष्ट्र" का निर्माण करना होगा! और अगर कोई अमीरज़ादों के "अच्छे दिनों" पर सवाल खड़ा करता है, तो उसे राष्ट्र-विरोधी और देशद्रोही क़रार दे दिया जायेगा!

साम्प्रदायिक तनाव से किसे फायदा मिलता है

Cartoons against communalism_Satyam_16ज़ाहिर है कि अमीरों के "अच्छे दिनों" का ख़र्चा आम जनता की जेब से वसूला जा रहा है। लेकिन आम लोग "अच्छे दिनों" की असलियत को समझ रहे हैं और उनके भीतर नाराज़गी और गुस्सा बढ़ रहा है। यही कारण है कि मोदी सरकार अपने जनविरोधी कदमों के साथ दो चालें चल रही है। एक ओर 'स्वच्छता अभियान', तीर्थस्थलों के लिए रेलगाड़ियाँ, आदि जैसे कदम उठाये जा रहे हैं जिससे कि जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाकर कुछ सस्ती लोकप्रियता हासिल की जा सके। वहीं दूसरी ओर देश भर में साम्प्रदायिक तनाव भड़काया जा रहा है। पहले 'लव जिहाद' का शोर मचाया गया था, जो कि फ़र्जी निकला; उसके बाद, 'घर वापसी' के नाम पर तनाव पैदा किया जा रहा है; 'रामज़ादे-हरामज़ादे' जैसी बयानबाज़ियाँ की जा रही हैं; मोदी सरकार को भगवा ब्रिगेड 800 वर्षों बाद 'हिन्दू राज' की वापसी क़रार दे रही है; कुछ वर्षों में सारे भारत को हिन्दू बनाने का एलान किया जा रहा है; हिन्दू औरतों से चार बच्चे पैदा करने के लिए कहा जा रहा है! भगवा ब्रिगेड की हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता के साथ ओवैसी जैसी इस्लामिक कट्टरपंथी नेता भी साम्प्रदायिक उन्माद भड़का रहे हैं। साम्प्रदायिक माहौल और दंगों का लाभ चुनावों में हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों को भी मिलेगा और साथ ही ओवैसी जैसे इस्लामिक कट्टरपंथियों को भी; इसके अलावा, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सपा, बसपा, आप, राजद, जद (यू) जैसी तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को भी वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ मिलेगा। और इस तनाव के माहौल में किन लोगों की जान-माल का नुकसान होगा आम मेहनतकश जनता का, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान!

ज़रा सोचिये दोस्तो! 67 साल के आज़ादी के इतिहास में हमेशा दंगे तभी क्यों भड़काये गये हैं, जब देश में आर्थिक संकट, महँगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी और ग़रीबी बढ़ी है हमेशा तभी साम्प्रदायिक ताक़तें सक्रिय क्यों हो जाती हैं जब देश की जनता में व्यवस्था के ख़िलाफ़ नफ़रत होती है हमेशा तभी मन्दिर-मस्जिद और धर्मान्तरण का मसला शासक वर्ग क्यों उठाता है जब देश में एक राजनीतिक संकट मौजूद होता है और व्यवस्था ख़तरे में होती है ज़रा सोचिये साथियो! 67 वर्षों में हुए दंगों में क्या कभी आपको कुछ मिला है क्या ग़रीब मेहनतकश आम आबादी के लिए मन्दिर-मस्जिद बनना या न बनना कोई मसला है या फिर महँगाई, ग़रीबी और बेरोज़गारी साथियो! आिख़र कब तक हम इन चुनावी मदारियों को यह मौका देते रहेंगे कि वे धर्म और जाति के नाम पर हमें ठगते रहें

सच तो यह है कि न तो हिन्दू कट्टरपंथी आम ग़रीब हिन्दू जनता के हितैषी हैं और न ही इस्लामिक कट्टरपंथी आम ग़रीब मुसलमान जनता के हितैषी हैं। हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथी वास्तव में टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अदानी जैसों के टुकड़खोर हैं और उन्हीं की सेवा करते हैं! क्या यह संयोग है कि ये सारे पूँजीपति एक ओर भाजपा को भी करोड़ों रुपये का चुनावी चन्दा देते हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस व अन्य चुनावबाज़ पार्टियों को भी करोड़ों रुपये का चुनावी चन्दा देते हैं। जैसी कि कहावत है 'जो जिसका खाता है, उसी का बजाता है!' इन चुनावी पार्टियों से कोई उम्मीद करना बेकार है। पूरी दुनिया के हुक्मरान आज जनता के बीच धार्मिक उन्माद फैलाने का ख़तरनाक खेल खेल रहे हैं क्योंकि वे संकट का शिकार हैं और जनता को बेरोज़गारी, ग़रीबी, बदहाली के सिवा कुछ नहीं दे सकते! इसीलिए वे डरते हैं कि आम जनता उनके ख़िलाफ़ विद्रोह का बिगुल न फूँक दे! और यही कारण है कि वे जनता के बीच धार्मिक कट्टरपंथ फैलाकर उसे खण्ड-खण्ड में बाँट देते हैं! इसकी जनता को क्या कीमत चुकानी पड़ती है यह हमने हाल ही में पेशावर में मासूम स्कूली बच्चों के कत्ले-आम में देखा, उसके पहले 2002 के गुजरात दंगों और 1984 सिख-विरोधी दंगों में देखा था, 1992-93 के देशव्यापी दंगों में देखा था! इतनी बार धोखा खाने के बाद क्या हम एक बार फिर तमाम धार्मिक कट्टरपंथियों को हमें बेवकूफ़ बनाने की इजाज़त देंगे क्या हम एक फिर उन्हें देश को दंगों की आग में झोंकने की आज्ञा देंगे ये सवाल आज देश के सभी इंसाफ़पसन्द और सोचने-समझने वाले नौजवानों, नागरिकों और मेहनतकशों के सामने खड़े हैं।

शहीदे-आज़म भगतसिंह का सन्देशः जुझारू जनएकजुटता कायम करो! सच्ची आज़ादी की लड़ाई की तैयारी करो!

महान क्रान्तिकारी शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि आम ग़रीब मेहनतकश जनता का एक ही मज़हब होता हैः वर्गीय एकजुटता! हमें हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथियों को सिरे से नकारना होगा और उनके ख़िलाफ़ लड़ना होगा! हमें प्रण कर लेना चाहिए कि हम अपने गली-मुहल्लों में किसी भी धार्मिक कट्टरपंथी को साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की इजाज़त नहीं देंगे और उन्हें खदेड़ भगाएँगे! हमें यह माँग करनी चाहिए कि केन्द्र सरकार और तमाम राज्य सरकारें धर्म को राजनीति और सामाजिक जीवन से अलग करने के लिए सख़्त कानून बनायें! धर्म भारत के नागरिकों का व्यक्तिगत मसला होना चाहिए और किसी भी पार्टी, दल, संगठन या नेता को धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर राजनीति करने, बयानबाज़ी करने और उन्माद भड़काने पर सख़्त से सख़्त सज़ा दी जानी चाहिए और उन पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। हमें ऐसी व्यवस्था क़ायम करने के लिए लड़ने का संकल्प लेना चाहिए जिसकी कल्पना भगतसिंह और उनके इंक़लाबी साथियों ने की थीः एक ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन, राज-काज और समाज के ढाँचे पर उत्पादन करने वाले वर्गों का हक़ हो और फैसला लेने की ताक़त उनके हाथों में हो! जिसमें जाति और धर्म के बँटवारे न हों! जिसमें आदमी के हाथों आदमी की लूट असम्भव हो! जिसमें सारी पैदावार समाज के लोगों की ज़रूरत के लिए हो न कि मुट्ठी भर लुटेरों के मुनाफ़े के लिए! एक ऐसी व्यवस्था ही हमें एक ओर ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी और बेघरी से निजात दिला सकती है और वहीं दूसरी ओर धार्मिक उन्माद, साम्प्रदायिकता और दंगों से भी मुक्ति दिला सकती है! एक ऐसी व्यवस्था में ही हम सुकून और इज़्ज़त-आसूदगी की ज़िन्दगी बसर कर सकते हैं! अगर हम अभी इसी वक़्त इस बात को नहीं समझते तो आने वाले समय में देश खण्ड-खण्ड में टूट जायेगा और दंगों और जातिवाद की आग में धू-धू जलेगा!

गणेश शंकर विद्याथीं (साम्प्रदायिक उन्माद के ख़ि‍लाफ़ लड़ते हुए शहीद होने वाले क्रान्तिकारी) ने कहा था "हमारे देश में धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाते-भिड़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किये जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए।"

भगतसिंह ने कहा था "लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब मेहनतकश व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथ में लेने का यत्न करो। इन यत्नों में तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी ज़ंजीरें कट जाएँगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।"

जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो! सही लड़ाई से नाता जोड़ो!

साम्प्रदायिक फासीवाद का एक जवाब-इंक़लाब ज़िन्दाबाद!

  • नौजवान भारत सभा
  • दिशा छात्र संगठन
  • बिगुल मज़़दूर दस्‍ता
  • यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी (यूसीडीई)

सम्पर्कः 9711735435, 9873358124, 9540436262, 9289498250, (011) 64623928

फेसबुक पेज – https://www.facebook.com/naujavanbharatsabha

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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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