Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Thursday, November 6, 2014

तो क्या अब सिर्फ होक चुंबन? जब होक कलरव देहमुक्ति आंदोलन में हो जाये तब्दील तो न समाज ,न व्यवस्था और न देश महादेश बदलने के आसार हैं,बाजार को क्या तकलीफ है भाई? सांस्कृतिक महाझटके से मध्ययुगीन बर्बर असभ्य सांप्रदायिक धर्मांध समय बदलेगा नहीं! पलाश विश्वास

तो क्या अब सिर्फ होक चुंबन?


जब होक कलरव देहमुक्ति आंदोलन में हो जाये तब्दील तो न समाज ,न व्यवस्था और न देश महादेश बदलने के आसार हैं,बाजार को क्या तकलीफ है भाई?


सांस्कृतिक महाझटके से मध्ययुगीन बर्बर असभ्य सांप्रदायिक धर्मांध समय बदलेगा नहीं!


पलाश विश्वास


जब होक कलरव देहमुक्ति आंदोलन में हो जाये तब्दील तो न समाज ,न व्यवस्था और न देश महादेश बदलने के आसार हैं,बाजार को क्या तकलीफ है भाई?


बाजार के कार्निवाल में बाजार प्रायोजित आंदोलन में कोई वज्रगर्भ जनांदोलन राह खोता नजर आये तो सत्तर के दशक की बची खुची पीढ़ी को तनिक तकलीफ होती है,तो इस पिछड़ेपन के लिए हम माफी चाहते हैं पहले से ही।


सांस्कृतिक महाझटके से मध्ययुगीन बर्बर असभ्य सांप्रदायिक धर्मांध समय बदलेगा नहीं!नवनाजी गैसचैंबर से मुक्ति का मार्ग किसी चुंबन से निकलता है तो हम तजिंदगी उस चुंबन के मोहताज रहेंगे।अगर सार्वजनिक स्थानों पर देहमिलन से हमारी बुनियादी सारी समस्याओं का समाधान हो जाये तो सभी सार्वजनिक स्तलों को लविंग पार्क में तब्दील करने और सभी फुटपाथों को शयनकक्ष में बदले दें यकीनन।


हम नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों के हक में हैं और रहेंगे।


हम गोमुख से लेकर गंगासागर तक की यात्राओं के दौरान तीर्थस्थलों की धूल फांकने के बावजूद धार्मिक कर्मकांड से कभी नहीं जुड़े रहे हैं और हमेशा धर्मांध फतवों के खिलाफ रहे हैं।


हम मानते हैं कि आस्था निजी मामला है,निजी जीवन शैली है और उसमें न किसी का हस्तक्षेप होना चाहिए और न वह हमारी पहचान होनी चाहिए और हमारी राष्ट्रीयता तो कभी नहीं।कभी नहीं।

हम इसीलिए तो संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र के विरुद्ध हैं।


नरेंद्र भाई मोदी इन दिनों फिल्म स्टारों के मुकाबले ज्यादा खूबसूरत नजर आते हैं और अरविंद केजरीवाल तक उनकी बोली की मुरीद हो गये हैं।भाजपा के खिलाफ लव जिहाद बतर्ज दिल्ली का किला वह दखल लेने को तैयार जरुर दिख रहे हैं,लेकिन भ्रष्टाचार और कालाधन विरोधी अतीती महाविद्रोह का,बाकी बचे खुचे आम आदमी का, उनके आरक्षणविरोधी यूथ फार इक्लवैलिटी की तरह संघ परिवार में विलीन होना समय का इंतजार है ,बस।जबकि छात्र युवा अल्प समय के लिए उन्हीके दीवाना होकर उनको देश की बागडोर तक सौंपने को तैयार थे।


हमें संघ परिवार से कोई खास ऐतराज नहीं होता अगर वह ग्लोबल हिंदुत्व के तहत नवनाजीवाद का कारोबार न कर रहा होता और हिंदू राष्ट्र के नाम पर मुक्त बाजारी विध्वंस के लिए देश भर में धर्म और आस्था के नाम पर अभूतपूर्व हिंसा और घृणा का माहौल बनाये बिना लोकतांत्रिक तौर तरीके से त्ता की राजनीति कर रहा होता।


संघ परिवार जो धार्मिक आस्था को ही राष्ट्रीयता में तब्दील कर रहा है और देस भर में नस्ली आधिपात्यवादी मनुस्मृति शासन लागू कर रहा है कालाधन और विदेशी पूंजी के लिए,अमेरिकी हितों में युद्ध महायुद्ध गृहयुद्ध के लिए,गैर नस्ली जनसंक्या के सफाये के लिए,हमें उसकी तकलीफ है और हम यकीनन उसके विरोध में होंगे।हैं।लेकिन यह निजी आस्था और धर्म के विरुद्ध मामला नहीं है।


राजनीति और राजकाज का धर्म से नाता तोड़कर ही मध्ययुगीन अंधकार से निकलकर लोकतंत्र का विकास हुआ,क्रातियां हुई हैं ,पूंजी का विकास हुआ और आधुनिक उत्पादन प्रणाली बजरिये संचार क्रांति मार्फत आधुनिक ग्लोबल दुनिया का कायाकल्प हुआ है,मिथकों और धर्म ग्रंथों को इतिहास बनाने के पक्षधर लोगों को वह इतिहास शायद हड़प्पा और मोहंजोदोड़ो के इतिहास की तरह कत्लकाबिल लगेगा और वे ऐसा करेंगे भी।


इस देश में भी गौतम बुद्ध ने दुनिया में सबसे पहले रक्तहीन क्रांति की समता,भ्रातृत्व और सामाजिक न्याय के लिए।वर्गहीन शोषणविहीन जातिहीन समाज की स्थापना भी हुई थी।लोकिन वह इतिहास भी संघ परिवार का इतिहास यकीनन नहीं है।


उनका इतिहास धर्मयुद्ध है और उनका देश एक अनंत कुरुक्षेत्र हैं।जहां उनके नस्ली पक्ष के अलावा बाकी जनसंख्या वध्य कुरुवंश है।यही वध संस्कृति ही संघ परिवार की स्वदेशी विचारधारा हैऔर एजंडा भी।


जिसकी परिणति लेकिन महाविनाश है।हमें उस धर्म से,उस अधर्म से भी कोई लेना देना नहीं है।बजरंगी या मौलवी फतवों के हम उतने ही खिलाफ हैं जितने दूसरे लोग।


होक कलरव होक चुंबन  के सिलसिले में बता दें,हम अपनी प्रिय लेखिका तसलिमा नसरीन की धर्महीन वर्गहीन नारीमुक्ति मानवमुक्ति के पक्ष में रहे हैं लेकिन उनकी देहगाथा में कभी शामिल नहीं रहे हैं।


पुरुषतंत्र के खिलाफ उनका जिहाद जितना तीखा है और चाबुक की तरह भाषा और शैली की जो उनकी अभिव्यक्ति है,वे इस महादेश में हमारे मुद्दों की सबसे बड़ी प्रवक्ता हो सकती थीं,लेकिन नहीं हैं।


वे जिस मैमनसिंह जनपद से आयी हैं,दलित आत्मकथा बतर्ज निजी अभिज्ञता के अलावा उनके विद्रोह में उस जनपद की कोई गूंज नहीं है।


देहगाथा में जनपद गायब हैं।


इसीलिए हमारी लोकप्रिय लेखिका तसलिमा नसरीन बांग्लादेशी साहित्यधारा की बौद्धमय विरासत के बजाय पश्चिमबंगीय सुनील संप्रदाय की देहगाथा की धारा में अपनी परिपूर्ण धार के बावजूद निष्णात हो गयी हैं।


तसलिमा नसरीन  अंततः जनपदों के विपरीत महानगरीय उत्तरआधुनिक ग्लोबल लेखिका हैं,बांग्लादेशी कतई नहीं, जो नारी अस्मिता की बात तो करती हैं लेकिन वह नारी निश्चित तौर पर महानागरिक है,श्रमिक नारी नहीं है।


जो तसलिमा खुद को दूर द्वीपवासिनी की तरह महसीूस करने को अभिशप्त हैं और उसके भालो आछि भालो थेको उथाल पाथाल भावावेग है,वह अब बांग्लादेश को किसी भी कोण से स्पर्श नहीं करता।


तो इसकी वजह धर्माध फतवाराज है नहीं,उसके खिलाफ तो बांग्लादेश सड़कों पर जीवन मरण का युद्ध लड़ रहा है जनम से और जो लोग इस लड़ाई में शामिल हैं,वे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष हैं लेकिन वे भी तसलिमा को आवाज दे नहीं सकते तो ऐसा उनकी कोई मजबूरी भी नहीं है।



तसलिमा दरअसल उनके मुद्दों को अभिव्यक्ति नहीं देती है और बांग्लादेश या बांग्लादेश के बाहर राष्ट्रतंत्र को बदलने के लिए,वैश्विक जनसंहारी बंदोबस्त को खत्म करने के लिए तसलिमा सीधे जनता के हक में  कोई आवाज उठा नहीं पा रही हैं और न वह जनता की लेखिका हैं।इसे तसलिमा समझ पाती है या नहीं,हम नहीं जानते।


सच तो यह है कि नरेंद्र मोदी उनकी लज्जा के शुरु से समर्थक हैं और संघ परिवार ने तसलिमा के उपन्यास लज्जा का,बांग्लादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़न की कथा का भारतके अल्पसंख्यकों के खिलाप धार्मिक ध्रूवीकरण के लिए इस्तेमाल किया है ।


अब जबकि बंगाल दखल संघ परिवार की सर्वोच्च प्राथमिकता है तो धार्मिक ध्रूवीकरण के सिलसिले में फिर लज्जा उनकी पूंजी है जबकि नागरिकता संसोधन कानून बतर्ज मौहन भागवत फिर कोलकाता से दहाड़ रहे हैं कि बांग्लादेशी मुसलमानों को सीमापार खदेड़ दिया जाये।


तो बांग्लादेशी कौन है कौन नहीं,सन 1971 से अब तक जो नही पहचान पाये,अब कैसे पहचानेगे और किस किसको निकालेंगे,कौन जाने। बांग्लादेशी के नाम पर तो अब तक हिंदू भारत विभाजन के शिकार विस्थापित अस्पृश्य बंगाली शरणार्थियों को ही खदेड़ा जाता रहा है और आगे भी वहीं होना है।जिसका बंगाल में विरोध नहीं होता।


अब तसलिमा भारत में संघ परिवार की संरक्षित मेहमान हैं और बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता और वहां लोकतंत्र की लड़ाई में उनका यह मौजूदा अवस्थान बांग्लादेश की सड़कों पर लड़ी जा रही लड़ाइयों में उन्हें जनता के हक हकूक के हक में तो यकीनन खड़ा कर ही नहीं सकता।


मुझे निजी तौर पर बेहद अफसोस है क्योंकि तसलिमा को निजी तौर पर जानता हूं और उसके दिलो दिमाग को पढ़ सकता हूं मैं।वह भले अत्यधिक उच्च अवस्थान से हमें फील करें या नहीं,हम अपने मोर्चे पर उन्हें हमेशा चाहते रहे हैं।लेकिन बाजार और सत्ता ने हर दूसरी नारी की तरह अपनी सबसे प्रियविद्रोहिनी तसलिमा नसरीन का भी कारोबार सजा दिया है।भले तसलिमा को इसका अहसास हो न हो।


मुझे निजी तौर पर बेहद अफसोस है बतौर लेखिका तसलिमा नसरिन इस महादेश का कभी वैसा प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती ,जैसा नवारुण दा या अखतरुज्जमान इलियस करते रहे हैं।


दरअसल,वह खुद सुनील गंगोपाध्याय धारा की एक मुक्तबाजारी उत्पाद में तब्दील हो गयी हैं,जिसकी रचनात्मकता से देहगाथा की खुशबू के अलावा निर्वाचित कालम की वह धार सिरे से गायब हो गयी है। यह मुद्दों से भटकाव का सबसे त्रासद उदाहरण है ज्वलंत।


वरना जो देश दुनिया की सबसे ताकतवर लेखिका थीं,वह एक अदद मंदाक्रांता सेन भी बन नहीं सकीं और उनके स्वदेश में जो स्थान बेगम सूफिया कमाल या फिर सेलिना हुसैन का है,उससे उनका अवस्थान एकदम उलट हो गया है और वह तो अपनी महाश्वेता दी,आशापूर्णा देवी को छू ही नहीं सकीं।न इस्मत चुगताई को और न कुर्तउल एल हैदर को।न अमृता प्रीतम को।न इंदिरा गोस्वामी या प्रतिभाराय को।


मैं जानता हूं कि अंततः तसलिमा नसरीन का सरोकार हर नारी से है और वे मानती हैं कि नारी को बंधुआ जीवनयंत्रणा से मुक्त किये बिना समता सामाजिक न्याय और मानवाधिकार के चर्चे फिजूल हैं,लेकिन अपने साहित्य में वे इसे मुद्दा बना सकी हैं ,ऐसा मुझे नहीं लगता।


बल्कि उनकी जैसी प्रखर विद्रोह की अनुपस्थिति के बावजूद सेलिना हुसैन और दूसरी बांग्लादेशी लेखिकाओं की रचना में जमीन जनपद की नारी के मुद्दे ज्यादा मुखर हैं।


जाहिर है कि देहगाथा बाजार का विमर्श है और देहमुक्ति न नारी मुक्ति है और न मेहनतकशों का मुक्तिमार्ग, यह तो मुक्त बाजार है विनियंत्रित,जहां देह अंततः कमोडिटी है।


यह जो मैं लिख रहा हूं इसका धर्म और नैतिकता से कोई मतलब भी नहीं है,मैं मुद्दों से भटकाव के माइंड कंट्रोल तकनीक के बारे में बता रहा हूं।


आज ऐसा मुझे इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि घर,ससुराल होकर नैनीताल के शिखरों से लेकर राजधानी नईदिल्ली की मेट्रो यात्रा से लौटकर देख रहा हूं कि जो छात्र होक कलरव कहकर सड़कों पर थे,वे अब होक चुंबन के लिए लड़ रहे हैं।


हम न चुंबन के खिलाफ रहे हैं और न प्रेम के।


हमें तो विवाह से पहले या बाद में  पत्नी के सिवाय किसी नारी से प्रेम की प्रतीक्षा का भा अधिकार न था,सार्वजनिक चुंबन तो दूर की बात है।


हम तो हिमपाती रातों में अपने हसीन से हसीन सपने में किसी चुंबन की आहट से वंचित रहे हैं और हमारे उस साठ के,सत्तर के दशक में किसानों के जीवन मरण के जनविद्रोह से रोमांस के चरमोत्कर्ष में तब्दील नक्सल विद्रोह के वसंत के वज्रनिनाद में भी किसी चुंबन का कोई स्परश रहा है या नहीं,कभी मालूम ही नहीं पड़ा।


हमारा जीवन तो गुलमोहर के लाल रंग का धूप छांव है,जहां प्रेम है या नहीं है,इस अहसास से भी हम वंचित रहे हैं।


इसलिए आज की पीढ़ियां अगर अगिनखोर बजाय चुंबनखोर और सारवजनिक सहवास के अधिकार के लिए सड़क पर होक चुंबन के नारे लगाते हुए देहमुक्ति का कार्निवाल मनाये,तो हमें शायद इसपर टिप्पणी का अधिकार भी नहीं है।


क्योंकि किसी नीरा से प्रेम तो क्या उसके स्पर्श की स्पर्धा का दुस्साहस भी हमारी पीढ़ी का आचरण नहीं रहा है।


अपवादों से समय और समाजवास्तव का रेखंकन होता लेकिन नहीं है।


हम तो कोलकाता से 14 अक्तूबर को सीमा आरपार होक कलरव की ध्वनि प्रतिध्वनियों से सराबोर निकले थे और बार बार यह देश दुनिया को बतला जतला रहे थे,पाशे आछि यादवपुर,साथे आछे यादवपुर शहबाग और जिनका नारा रहा है, जमात संघी भाई भाई,दुईएर एक रशिते फांसी चाई या फिर सीपीएम तृणमूल इतिहासेर भूल।


चुंबन के शोर में होक कलरव के मुद्दे गायब हो रहे हैं,हमें बस इतनी सी चिंता हैं और हम छात्रों के शब्दों में नीति पुलिस या नैतिकता के ताउ भी नहीं हैं।बल्कि हमें कोई नारी प्रकाश्य में या गोपन अंतराल में चूमना चाहें,तो हम तो धन्य हो जायेंगे।


जबकि अब हमारे लिए वसंत कहीं नहीं हैं और हम अपने को खून की नदियों के मध्य डूबते खत्म हो रहे कायनात के साथ खड़े पा रहे हैं,जहां किसी चुंबन या प्रेम पर्व या तसिलमा जैसी नारीवादियों के चितकोबरा देहमुक्ति के बजाये इस समाजवास्तव और राष्ट्रतंत्र को ,इस निरंकुश जनसंहारी मुक्त बाजार के सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान परिदृश्य को बदलने की सबसे बड़ी जरुरत हमारे सिरदर्द का सबब है।


हम अपने बच्चों के साथ हैं और रहेंगे।


हम तो उनके आंदोलनों के लिए अपनी जान तक कुर्बान करने को तैयार हैं और उनके खिलाफ,उनकी मर्जी के खिलाफ पीढ़ियों के अनुशासन,परंपराओं,लोकरिवाज का भी अनुशासन नहीं लादना चाहते,धर्म और नैतिकता के प्रवक्ता तो हम खैर हो नहीं सकते।


हम जिंदगी भर अपना प्रेम अपने दिल के सबसे निचले सतह पर छुपा दबाकर जी गये और किसी से कह भी नहीं सकें कि आई लव यू या किसी को स्पर्श भी कर नहीं सकें तो क्या हमारे बच्चों को चुंबन और प्रेम और सहवास के अधिकार नहीं होने चाहिए।


लेकिन इसे बुनियादी मुद्दा बनाने के खिलाफ हम है और अंततः यह देहगाथा का उन्मुक्त बाजार है,जिसके नशे में दिशाहीन हैं युवा पीढ़ियां।फिर भी इसी दिशाहीन युवा फीढ़ियों पर दांव लगाने के सिवाय चारा भी तो कुछ दूसरा नहीं है।


चूंकि हम दशकों से देखते रहे हैं कि छात्र युवा अस्मिताओं के आर पार समाज देश राष्ट्रव्यवस्था को बदलने के लिए मरने मारने के संकल्प के साथ सड़कों पर उतरते हैं,शहादत देते हैं ,हंसते हंसते और व्यवस्था के शिकार हो जाते हैं ,राजनीति हर बार उनका गलत इस्तेमाल अपने हित में कर लेती है।


और देश तो क्या समाज जहां का तहां,उसी दलदल में फंसा रहता है।


चूंकि हम देहमुक्ति की बात नहीं कर रहे हैं,पुरुषवर्चस्व के इस आधिपात्यवादी मुक्तबाजारी बर्बर असभ्य समय में जो नवनाजीवाद के शिकंजे में है यह महादेश और यह दुनिया,उसको मुक्त करने के लिए होक कलरव के हक में खड़े हैं।


चुंबन का ऐसा जोरदार झटका हमारी उम्र और सेहत के खिलाफ है।


हमारी मानें तो तो बाजार को क्या तकलीफ होनी चाहिए सार्वजनिक चुंबन और सार्वजनिक सहवास से,बाजार तो धारीदार उन्मुक्त विकाससूत्र के कारोबार के लिए तमाम संस्कृतियों, मातृभाषाओं, परंपराओं,लोक और जनपदों को तहस नहस कर रहा है और न उसका धर्म से कोई नाता है और नैतिकता से।


बाजार तो धर्मांध संघ परिवार के कंधे पर रखकर बंदूक ही नहीं प्रक्षेपास्त्र भी दाग रहा है इस महादेश के चप्पे चप्पे में जनता के खिलाफ।सुधार,स्वदेश,विकास,संस्कृति,राष्ट्रीयता के नाम।


हमारे बच्चे शायद भूल रहे हैं कि सीमाओं के आर पार जो सत्ता वर्ग बाजार प्रभुत्व है,व्यवस्था उन्हीं की है और उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता अबाध पूंजी,गैर जरुरी जनसंख्या का विनाश और बलगाम मुनाफा है।


आप कीजिये चुंबन,सरेआम कपड़े उतारकर एक दूसरे से बीच सड़क में एकाकार हो जाते रहिए,बाजार आपको धारीदार सुगंधित मदहोशी नशीला विकास सूत्र थमा देगा।


हम भी कोई ऐतराज नहीं कर रहे हैं और चाहते हैं कि जिन मुद्दों को लेकर आंदोलन हो रहा था,उन मुद्दों को भूले नहीं,भले ही चुंबन प्रेम के अधिकार आपको हों।लेकिन आप नशेड़ी बनकर बीच सड़क पर कुछ भी करेंगे,भले हम आपको रोकें न रोकें,मां बाप और स्वजनों की जनपदीय दिलोदिमाग पर क्या उसका असर होता है,बाजार के शब्दों में कहे कि कितना  बड़ा सांस्कृतिक झटका आप दे रहे हैं और आपका समाज इस जोर के झटके के लिए कितना तैयार,परिपक्व और बालिग है,इसपर भी तनिक सोच लीजिये,तो बेहतर।

No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk