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Saturday, June 7, 2014

माकपा का धर्मसंकट यह है कि येचुरी और बुद्धदेव अगर हट जाते हैं तो प्रकाश कारत से लेकर विमान बोस तक को हटना पड़ेगा।

माकपा का धर्मसंकट यह है कि येचुरी और बुद्धदेव अगर हट जाते हैं तो प्रकाश कारत से लेकर विमान बोस तक को हटना पड़ेगा।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



माकपा का धर्मसंकट यह है कि येचुरी और बुद्धदेव अगर हट जाते हैं तो प्रकाश कारत से लेकर विमान बोस तक को हटना पड़ेगा।बुद्धदेव ने राज्य कमिटी की बैठक में तो सीताराम येचुरी ने सर्वशक्तिमान सेंट्रल कमिटी की बैठक में ही सारे पद छोड़ने की पेशकश करके माकपा महासचिव को चारों दिशाओं से घेर लिया है।जिस पार्टी ने कामरेड ज्योति बसु को पूरे देश की इच्छा को दुत्कारते हुए कभी प्रधानमंत्री बनने से रोकने का पराक्रम दिखाया था,जिस पार्टी ने अपने दल के लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को स्पीकर पद से इस्तीफा देने से इंकार करने के कारण बेरहमी से कामरेड बसु की प्रबल आपत्ति के बावजूद पार्टी बाहर कर दिया,उसकी यह दुर्गति है कि आपस में आम बुर्जुआ दलों की तरह सत्ता संघर्ष घमासान है।विचारधारा धरी की धरी रह गयी देश में सिरे से अप्रासंगिक बन गये वामपंथियों की।


लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद माकपा के सीताराम येचुरी समेत पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ नेताओं ने एक बार फिर पोलित ब्यूरो की सदस्यता से इस्तीफे की पेशकश की है। नई दिल्ली में शनिवार को शुरू हुई पार्टी की सेंट्रल कमेटी की बैठक के पहले दिन विभिन्न राज्यों से पहुंचे नेताओं ने हार पर चर्चा की और अपने-अपने विचार रखे। लगभग एक सप्ताह पहले माकपा के पूर्व दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी ने पार्टी नेतृत्व में बड़े स्तर पर परिवर्तन की वकालत की थी।

सूत्रों का कहना है कि येचुरी समेत पश्चिम बंगाल के दूसरे नेताओं ने बंगाल में पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए पोलित ब्यूरो की सदस्यता से इस्तीफे की पेशकश की। हालांकि, इसकी हालांकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी, लेकिन बैठक में पार्टी नेताओं के बीच चर्चा के दौरान गरमा गरम बाताबाती हो गयी।




बंगाल में विधानसभा चुनावों में सत्ता से बेदखल होने के बाद वामदलों में इतनी भगदड़ नहीं मची थी,जो लोकसभा चुनावों में चारों खानों चित्त वामदलों का हो रहा है।पश्चिम बंगाल में 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चा के 34 साल के शासन का अंत किया था। जिसके बाद इस लोकसभा चुनाव में 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सिर्फ दो सीटें ही जीतने में कामयाब हो पाई।


ममता बनर्जी के मुख्यमंत्रित्व में भी वामदलों को सत्ता में वापसी की उम्मीद थी।लेकिन अचानक राज्य में शुरु केसरिया सुनामी में वामदलों का समूचा जनाधार उसीतरह केसरिया होता जा रहा है ,जैसे पूरे गैरतृणमूली जमीन कमल से लहलहाने लगी है। हालत इतनी खराब हो गयी कि नेतृत्व का फैसला मानने को हमेशा तत्पर कैडर कामरेड खुली बगावत पर उतारु है और कोलकाता में माकपा की राज्य कमेटी की बैठक के दौरान कमेटी के सदस्यों ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर दी। इतना ही नहीं माकपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए पार्टी महासचिव प्रकाश करात के गलत राजनीतिक फैसलों को जिम्मेदार बताया।


इसी बीच वामदलों में नेतृत्व के खिलाफ अभूतपूर्व विद्रोह शुरु हो चुका है और माकपा महासचिव की मौजूदगी में नेतृत्व बदल की मांग राज्य कमिटी की बैठक में ही बुलंद आवाज में ज्यादातर जिला प्रतिनिधियों ने उठा दी है। इसी परिदृश्य में पूर्व मुख्यमंत्री कामरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सभी पदों से इस्तीफे की पेशकश करके नेतृत्व पर भारी दबाव पैदा कर दिया है।लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बुरी तरह पराजय का मुंह देख चुकी माकपा में रार थमने का नाम नहीं ले रही। स्थिति यह है कि जहां एक ओर सांगठनिक और नेतृव में फेरबदल की मांग तेज होती जा रही हैं वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि वह पार्टी से जुड़े सभी पदों को छोड़ना चाहते हैं। हालांकि, राय कमेटी की दो दिवसीय बैठक में प्रदेश सचिव विमान बोस ने हार की जिम्मेदारी ली है।लेकिन हार की जिम्मेवारी लेने से ही वाम नेतृत्व को माफ करने को तैयार नहीं हैं कार्यकर्ता,नेता और समर्थक।घटक दलों की ओर से भी आपरोपों की फेहरिस्त सार्वजनिक है।




माकपा का धर्मसंकट यह है कि बुद्धदेव अगर हट जाते हैं तो प्रकाश कारत से लेकर विमान बोस तक को हटना पड़ेगा।क्योंकि पार्टी के नेता कार्यकर्ता एक के बाद एक निष्कासन और बहिस्कार के बावजूद पार्टी नेतृत्व में न केवलजाति वर्चस्व तोड़ने की मांग करते हुए सभी समुदायों को प्रतिनिधित्व देने की मांग कर रहे हैं,वे तुरंत प्रकाश कारत समेत बंगाल राज्य कमिटी का इस्तीफा भी मांग रहे हैं। बुद्धदेव माकपा की पोलित ब्यूरो के सदस्य होने के साथ ही केंद्रीय कमेटी और राज्य कमेटी के भी सदस्य हैं। कोलकाता में राज्य कमेटी की बैठक में बुद्धदेव ने अपने इस प्रस्ताव से सबको सन्न कर दिया। बुद्धदेव ने सिर्फ इच्छा ही नहीं जताई बल्कि दृढ़ता से पदों को छोड़ने की बात शीर्ष नेतृव के सामने रखी।



इसीलिए संगठन में जमीनी स्तर पर छिटपुट बदलाव करने को तैयार पार्टी नेतृत्व बुद्धदेव को पदत्याग की इजाजत देनेकी हालत में नहीं है।जैसे नेतृत्व बदलकी मांग खारिज कर दी गयी,उसी तरह पार्टी नेतृत्व बुद्धदेव के इस्तीफे की पेशकश भी तुरंत खारिज कर दी है।लेकिन मुश्किल यह है कि नंदीग्राम सिंगुर प्रकरण की वजह से पार्टी की हार का ठीकरा उनके ही मत्थे फोड़े जाने से नाराज बुद्धदेव विधानसभा चुनावों के तुरत बाद से लगातार पदमुक्त होने का दबाव बना रहे हैं और अबकी दफा वे बने  रहने को तैयार नहीं हैं। बुद्धदेव भट्टाचार्य पोलित ब्यूरो सदस्य होने के बावजूद 2011 से अब तक कोलकाता के बाहर होनी वाली किसी भी बैठक में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन मंगलवार की बैठक में उनके रुख का गहरा अर्थ निकला जा रहा है। प्रदेश माकपा सचिव मंडली के एक सदस्य ने कहा कि प्रकाश करात समझाने के बावजूद बुद्धदेव आश्वस्त नहीं हो सके और पूरी बैठक के दौरान वे मौन रहे। इसके उनकी गंभीरता का पता चलता है।



दूसरी तरफ 1960 के दशक से चुनाव मैदान में आई माकपा का प्रदर्शन इस लोकसभा चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। जिसके चलते पिछले कुछ दिनों से अयोग्य नेतृत्व को बदलने की मांग तेज होने लगी है। राज्य कमेटी के नेताओं ने पार्टी के बड़े नेताओं प्रकाश करात, प्रदेश सचिव विमान बोस, पोलित ब्यूरो के सदस्य व पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य और प्रदेश में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा पर चुनाव के दौरान बेहतर नेतृत्व नहीं दे पाने का आरोप लगाया। इस बैठक में करात के साथ साथ त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक सरकार और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी भी मौजूद थे।


इस पर तुर्रा यह कि इसी बैठक में बुद्धदेव ने साफ साफ कह दिया है कि कि वह किसी पद पर अब नहीं बने रहना चाहते, बल्कि एक साधारण पार्टी सदस्य के तौर ही पर जुड़े रहना चाहते हैं। बैठक के दौरान सभी पार्टी पदों को छोड़ने पर आमादा बुद्धदेव को माकपा के शीर्ष नेता प्रकाश करात ने किसी तरह पद न छोड़ने पर आश्वस्त करना चाहा, लेकिन वह फिर आश्वस्त नहीं हुए और बैठक में खामोश रहे।


पत्रकारों से बाद में करात ने बुद्धदेव के इस्तीफे के प्रस्ताव का खंडन किया। उन्होंने कहा लोग अपनी बात कहते सकते हैं, लेकिन माकपा में निर्णय पार्टी स्तर पर ही लिया जाएगा।


संस्कृति प्रेमी पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य बतौर पद पर रहते अपने को सांगठनिक गतिविधियों और काम काज में कब तक जोड़े रखेंगे, इस पर राय माकपा मुख्यालय के आला नेताओं को ही संदेह है।




राजनीतिक जानकार मानते हैं कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बुद्धदेव माकपा के राज्य में बेहतर स्थिति रहने की उम्मीद पाले हुए थे। लेकिन, बुरी तरह पराजय ने उन्हें निराश कर दिया है। खास कर बुद्धदेव इस बात से भी क्षुब्ध हैं कि माकपा के वोट प्रतिशत में गुणात्मक तौर पर कमी आ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बुद्धदेव के पद छोड़ने पर माकपा के राज्य सचिव विमान बोस भी पद पर नहीं बने रह पाएंगे। बताते हैं कि विमान ने भी लोकसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद पद छोड़ने की पेशकश की थी, लेकिन करात ने उन्हें भी मना कर दिया था।


वहीं अगले हफ्ते से राज्य में माकपा की विभिन्न जिला कमेटियों की बैठक के साथ ही 7 और 8 जून को नई दिल्ली में केंद्रीय कमेटी की बैठक में विरोध और मतभेद के स्वर अभी और उभर सकते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित होने के बाद माकपा के लिए अब 2016 का राज्य विधानसभा चुनाव अंतिम लाइफलाइन जैसा हो सकता है। इसमे न उबर पाने पर बंगाल में उसके राजनीतिक अस्तिव पर ही प्रश्न चिन्ह लग सकता है।


কারাটের চাপ বাড়ল, সরতে চান সীতারামও

নিজস্ব সংবাদদাতা

নয়াদিল্লি, ৭ জুন, ২০১৪, ০৩:৩৭:১৮


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নেতা বদলের দাবি উঠেছিল আলিমুদ্দিন স্ট্রিটে রাজ্য কমিটির বৈঠকেই। বিমান বসু থেকে বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য কেউই সমালোচনার হাত থেকে রেহাই পাননি। এ বার সীতারাম ইয়েচুরিও পলিটব্যুরোর বৈঠকে জানিয়ে দিলেন, তিনি লোকসভা নির্বাচনের খারাপ ফলের দায় নিয়ে পলিটব্যুরো থেকে সরে দাঁড়াতে তৈরি। দলের হাল শোধরাতে তিনি পদ ছাড়তে রাজি আছেন।

দলের নিয়ম মেনে এমনিতেই প্রকাশ কারাটকে আগামী বছর দলের সাধারণ সম্পাদকের পদ ছাড়তে হবে। কিন্তু ভোটে বিপর্যয়ের পরপরই তিনি যে ভাবে ব্যক্তিগত ভাবে দায় নেওয়ার বিরুদ্ধে বলে এসেছেন, সেই অবস্থানকে আজ ফের প্রশ্নের মুখে ফেলে দিল সীতারামের ঘোষণা।

লোকসভা নির্বাচনে ভরাডুবির পরেই রাজ্য সম্পাদক বিমান বসু জানিয়েছিলেন, তিনি হারের দায় নিয়ে সরে দাঁড়াতে রাজি আছেন। বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যও জানিয়ে দেন, তিনি আর পলিটব্যুরো বা কেন্দ্রীয় কমিটির কোনও পদে থাকতে চান না। এত দিন সিপিএমের কেন্দ্রীয় নেতৃত্বের তরফেও তাঁদের নিরস্ত করা হয়েছিল। বলা হয়েছিল, এখনও ভোটে হারের কারণই বিশ্লেষণ হয়নি। আগে জেলা ভিত্তিক রিপোর্ট আসুক। রাজ্য কমিটি থেকে কেন্দ্রীয় কমিটি পর্যন্ত সব স্তরে ভোটের ফলাফল নিয়ে আলোচনা হোক। তার পরে দায় নেওয়ার প্রশ্ন।

সেই ভোটের ফলাফল বিশ্লেষণেই আজ থেকে পলিটব্যুরো ও কেন্দ্রীয় কমিটির বৈঠক শুরু হয়েছে দিল্লিতে। চলবে তিন দিন। আলোচসূচিতে না থাকায় ইয়েচুরির পলিটব্যুরো ছাড়ার ইচ্ছা নিয়ে এ দিন কোনও আলোচনা হয়নি। দিনের শেষে কারাটও জানিয়ে দেন, আজকের বৈঠকে নেতৃত্ব বদল নিয়ে কোনও কথা হয়নি।" তবে ইয়েচুরিও শেষ পর্যন্ত বিমান-বুদ্ধদেবের পথ ধরায় যথেষ্টই অস্বস্তিতে পড়েছেন কারাট। বাকি সবাই পদ ছাড়তে রাজি আছি বললেও কারাটের পক্ষে এখন আর সে কথা বলা সম্ভব নয়।

কারণ ভোটের ফল প্রকাশের পরেই কারাট বলেছিলেন, "সিপিএমে সমষ্টিগত ভাবে সব সিদ্ধান্ত হয়। কেউ ব্যক্তিগত ভাবে কোনও সিদ্ধান্ত নেয় না। তাই নির্দিষ্ট কোনও ব্যক্তির উপর ভোটের ফলাফলের দায় বর্তায় না।" পশ্চিমবঙ্গের সিপিএম নেতাদের এতে খুশি হওয়ারই কারণ ছিল। কারণ সমষ্টিগত সিদ্ধান্তের কথা বলে কারাট এক দিকে যেমন নিজে দায় নেননি, তেমনই আলিমুদ্দিনের নেতাদের ঘাড়েও দায় চাপাননি।

সিপিএম নেতারা মনে করছেন, কারাটের সেই অবস্থানই এখন 'ব্যুমেরাং' হয়ে দাঁড়িয়েছে। দলে বার্তা যাচ্ছে, বিমান, বুদ্ধদেব, সীতারামরা পার্টির নিচুতলার দাবি মেনে পদ ছাড়তে রাজি। অথচ কারাট গদি আঁকড়ে ধরে থাকতে চাইছেন।

কারাটের ঘনিষ্ঠ-মহল থেকে অবশ্য বলা হচ্ছে, তিনি মোটেই গদি আঁকড়ে থাকতে চান না। দলের গঠনতন্ত্র অনুযায়ী টানা তিন বারের বেশি শীর্ষ পদে থাকতেও পারবেন না তিনি। আগামী বছরের পার্টি কংগ্রেসেই তাঁকে সরতে হবে।

তবে চাপটা অন্য। সিপিএম সূত্রে বলা হচ্ছে, কারাট ও তাঁর অনুগামীরা সাধারণ সম্পাদক পদে এস আর পিল্লাইকে নিয়ে আসতে চাইছেন। কারাট-বিরোধী শিবিরের মত, পিল্লাই সাধারণ সম্পাদক পদে বসলেও দলের নিয়ন্ত্রণ কার্যত কারাটের হাতেই থাকবে। তাই কারাট-বিরোধী শিবির যতটা না কারাটকে সরাতে উদ্যোগী, তার থেকেও বেশি আগ্রহী পিল্লাইকে আটকাতে। কারাট-বিরোধী শিবিরের মতে, কারাট ও তাঁর অনুগামীদের ভুল রাজনৈতিক লাইনের ফলেই দলের ভরাডুবি হয়েছে। নতুন চিন্তাভাবনা,  ও রাজনৈতিক কৌশলেরও প্রয়োজন। নেতৃত্বের ভরকেন্দ্র বদল হলেই তা সম্ভব। ভরকেন্দ্র বদলের এই দাবি আলিমুদ্দিনেই শুনে এসেছিলেন কারাট। রাজ্য কমিটির বৈঠকে ইয়েচুরি, মানিক সরকার ও তাঁর সামনেই বুদ্ধদেব জানিয়েছিলেন, দলের ভিতরে-বাইরে এত লোক যখন মনে করছেন নেতৃত্বে মুখ বদল না হওয়াটাই হারের কারণ, তখন তিনি আর বোঝা হয়ে থাকতে চান না। কারাট তাই নিচুতলার ক্ষোভকেও অস্বীকার করতে পারছেন না। আগামী বছর পার্টি কংগ্রেস হওয়ার কথা। কিন্তু পার্টি কংগ্রেসের সম্মেলন দুর্গাপুজোর আগেই সেপ্টেম্বর মাস থেকে শুরু করে দেওয়ার কথা ভাবা হচ্ছে। লক্ষ্য হল, দলের কর্মীদের ক্ষোভ নিরস্ত করতে এই বার্তা দেওয়া যে, তাঁদের দাবি মেনে নেতৃত্ব বদলের প্রক্রিয়া শুরু হয়ে গিয়েছে।

তবে নিচুতলায় যে দাবিই উঠুক, সিপিএমের কোনও নেতাই অবশ্য এখনই নেতৃত্বে মুখ বদলের সম্ভাবনা দেখছেন না। সকলেই একমত, এই ভাবে সিপিএমে নেতা বদল হয় না। হলে হবে আগামী বছরের পার্টি কংগ্রেসে দলের সব স্তরে আলোচনা করে। পলিটব্যুরোর এক নেতার বক্তব্য, যাঁরা পদ ছেড়ে দেওয়ার কথা বলছেন, তাঁরা নেহাৎই আবেগের বশে এ কথা বলছেন। শুধু কয়েক জন নেতা সরে দাঁড়ালেই পার্টি ঘুরে দাঁড়াবে, এমনও নয়। কঠিন অবস্থার মধ্যে রয়েছে দল। ঘুরে দাঁড়ানোর লড়াইয়ের মধ্যে দিয়েই নতুন নেতৃত্ব তৈরি হবে। রাতারাতি নেতা বদলে লাভ হবে না।


পদ্ম ফুটছে সিপিএমের জমিতে

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রাজ্যে এ-ও এক পরিবর্তন! ঘটনা ১: শুক্রবার উত্তর ২৪ পরগনার দুই কলেজে তৃণমূল ছাত্র পরিষদের সঙ্গে সংঘর্ষে জড়াল বিরোধী ছাত্র গোষ্ঠী৷ এসএফআই নয়, বিজেপির ছাত্র সংগঠন অখিল ভারতীয় বিদ্যার্থী পরিষদ! ঘটনা ২: এদিনই জেলার বিভিন্ন সমস্যা নিয়ে বর্ধমানের জেলাশাসককে স্মারকলিপি দিতে গিয়ে ব্যাপক জমায়েত করেছে বিজেপি৷ ঘটনা ৩: সিপিএম-সহ বাম দলগুলি থেকে দলে দলে কর্মী-সমর্থকদের নরেন্দ্র মোদীর দলে নাম লেখানোর পালা তো জারি আছেই৷ পার্টি অফিস আক্রান্ত হলেও কোনও কর্মসূচি নিচ্ছে না দল, এই অভিযোগ তুলে বৃহস্পতিবারই দল ছেড়েছেন নদিয়ার বেশ কিছু সিপিএম সদস্য৷ এ বার গেরুয়া শিবিরে নাম লেখাচ্ছেন মধ্য কলকাতা জেলা কংগ্রেসের সভাপতি, কলকাতা পুরসভায় কংগ্রেসের কাউন্সিলর প্রদীপ ঘোষ৷ আবার কংগ্রেসের প্রাক্তন বিধায়ক দেবকীনন্দন পোদ্দারের ছেলে মনোজ পোদ্দার বিজেপিতে যোগ দিয়েছেন৷ আর আপ? পশ্চিমবঙ্গে আপ-এর পুরো শাখাটাই শুক্রবার বিজেপিতে যোগ দিয়েছে! রাজ্য-রাজনীতিতে পরিবর্তনের নতুন ট্রেন্ড এটাই!


দু'দিন আগে পর্যন্ত যাদের অস্তিত্ব দূরবিন দিয়ে খুঁজতে হত, উপরের তিনটে ঘটনাই এখন রাজ্যে তাদের রমরমা প্রমাণ করছে৷ বিশেষ করে, রাজ্যে দিশেহারা ও ভরাডুবির মুখোমুখি সিপিএম এতটাই হতোদ্যম যে, তাদের তরফে আন্দোলনের সিকিভাগও দেখা যাচ্ছে না৷ সেই সুযোগটাই কাজে লাগিয়ে সিপিএমের ছেড়ে যাওয়া ফাঁকা মাঠ দখলে পুরোদমে কাজে নেমে পড়েছে বিজেপি৷ বামেদের এই শীতঘুমের সুযোগ নিয়ে ঘর গোছাতে তত্‍পর হয়ে উঠেছেন রাহুল সিনহা, তথাগত রায়রা৷ আজ শনিবার থেকে শুরু হচ্ছে রাজ্য বিজেপির দু'দিনের রাজ্য কমিটির বৈঠক৷ বৈঠকে লোকসভা ভোটে দলের সব প্রার্থীকেই হাজির থাকতে বলা হয়েছে৷


বাম শিবিরেরও দখল অনেকাংশে চলে যাচ্ছে গেরুয়া শিবিরের হাতে৷ শুধু ক্ষমতালোভী নেতাই নন, বাম শিবিরের অনেক অসহায় এবং সাধারণ কর্মী-সমর্থকেরাও বিজেপিতে ভিড়ছেন৷ রাজ্যের এক বাম নেতার কথায়, এটা অনেকটা ঝড়ের মুখে কুঁড়েঘর ছেড়ে পাকা বাড়িতে আশ্রয় নেওয়ার মতো ঘটনা৷ তিনি বলছেন, 'আমরা না করছি আন্দোলন, না দিতে পারছি কর্মীদের নিরাপত্তা৷ এই পরিস্থিতিতে বিজেপির শক্তিবৃদ্ধি অত্যন্ত স্বাভাবিক ঘটনা৷


একসুর দলত্যাগী বাম কর্মী-সমর্থকদেরও৷ যেমন, বৃহস্পতিবার বিজেপিতে যোগ দেওয়া নদিয়ার চাকদহের সিরিন্ডা (১) গ্রাম পঞ্চায়েতের সদস্য পার্থ সরকার বলছেন, 'আমাদের নিরাপত্তা তো দূরের কথা, পার্টি অফিস আক্রান্ত হলেও কোনও কর্মসূচি নিচ্ছে না দল৷ সিপিএমে কোনও নেতা নেই৷ তাই দল ছেড়েছি৷' এ জেলারই সিপিএমের শিক্ষক সংগঠনের প্রথম সারির নেতা ছিলেন কানুরঞ্জন ঘোষাল৷ তিনিও লাল ঝান্ডা ছেড়ে গেরুয়া শিবিরে নাম লিখিয়েছেন৷ তাঁর কথায়, 'সিপিএম প্রতিবাদের ভাষা ভুলে গেছে৷ পার্টি এখন প্রতিরোধ করার কথাও বলে না৷ এমন পরিস্থিতিতে তো মানুষ প্রধান প্রতিপক্ষ শিবিরেই থাকতে পছন্দ করে৷'


আর এক বাম দল আরএসপির শক্ত ঘাঁটি দক্ষিণ ২৪ পরগনার বাসন্তীর ঝড়খালিতেও বইছে গেরুয়া হাওয়া৷ ঝড়খালি গ্রাম পঞ্চায়েতের প্রধান দিলীপ মণ্ডল এবং সদস্য পার্বতী মণ্ডলও বিজেপিতে যোগ দিয়েছেন, মোদী মানুষের ভালো করবেন এই প্রত্যাশায়৷ পার্বতীদেবীর কথায়, 'নরেন্দ্র মোদীকে দেখে মনে হয়েছে, এই অস্থির অবস্থা থেকে পশ্চিমবঙ্গকে তিনি মুক্ত করতে পারবেন৷' বিজেপির তত্‍পরতার প্রমাণও মিলছে পদে পদে৷ এদিন বারাসত এবং গোবরডাঙায় রাজ্যের শাসকদলের ছাত্র সংগঠনকে কেন্দ্রের শাসকদলের ছাত্র সংগঠন যে ভাবে জবাব দিয়েছে, তা প্রশ্নের মুখে ফেলে দিয়েছে এসএফআইয়ের অস্তিত্বকে৷ বাম শিবিরে ভাঙন এবং বিজেপির উত্থানের এই চিত্র স্পষ্ট রাজ্য পুলিশ-প্রশাসনের আইনশৃঙ্খলা সম্পর্কিত হালের রিপোর্টেও৷ সেখানে সিপিএম-তৃণমূল সংঘর্ষের পরিচিত রিপোর্ট বদলে গিয়েছে৷ শুধু সন্দেশখালিই নয়, পুলিশ রিপোর্ট বলছে, কোচবিহার থেকে কাকদ্বীপ সমস্ত থানা এলাকাতেই রাজ্য ও কেন্দ্রের শাসকদলের বিরোধ-গোলমাল প্রায় নিত্যদিনের ঘটনা হয়ে উঠেছে৷ কারণ, নারী নির্যাতন থেকে কলেজে ভর্তিতে অনলাইন ব্যবস্থা চালুর দাবি, সব ইস্যুতেই বিজেপি এখন পথের দখল নিয়েছে৷


গত শতকের নয়ের দশকের গোড়ায় রামমন্দির নির্মাণ আন্দোলনকে সামনে রেখে এ রাজ্যে বিজেপির উত্থান হয়েছিল৷ কিন্ত্ত সে বারের সঙ্গে এবারের দু'টি উল্লেখযোগ্য ফারাক লক্ষ্য করা যাচ্ছে৷ তখন বিজেপির উত্থানের খেসারত দিতে হয়েছিল মূলত কংগ্রেসকে৷ তা ছাড়া, তখনকার গেরুয়া-ঢেউ আজকের মতো এত ব্যাপক ছিল না৷ এই সুযোগে দলে বেনোজল ঢুকে পড়ার আশঙ্কা করছেন বিজেপির একাংশ৷ তবে রাহুল সিন্হা সেই সম্ভাবনা খারিজ করে দিয়ে বলছেন, 'অন্য দল থেকে বিজেপিতে আসছে মানেই বেনোজল ঢুকছে তা নয়৷ কারণ, যাঁরা আমাদের দলে আসছেন, তাঁরা পুরোনো দলের দক্ষ ও স্বচ্ছ ভাবমূর্তির নেতা-কর্মী৷ তাঁদের পরীক্ষা দেওয়ার দরকার নেই৷'


বিজেপির শক্তিবৃদ্ধির কথা মেনে নিচ্ছে সিপিএমও৷ দলের রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর সদস্য রবীন দেব বলছেন, 'যার যে কোনও দলে যোগ দেওয়ার স্বাধীনতা আছে৷ বিজেপি দরজা খুলে দিয়েছে তাই অনেকে যাচ্ছে৷ তবে আমাদের দল থেকে কেউ গিয়েছে বলে শুনিনি৷' রবীনবাবু এ কথা বললেও এদিন দক্ষিণ ২৪ পরগনার কাকদ্বীপে রামচন্দ্র নগর এলাকায় সিপিএমের জেলা সম্পাদক সুজন চক্রবর্তীর নেতৃত্বে এক প্রতিনিধি দল গিয়েছিলেন বিজেপিতে চলে যাওয়া কর্মীদের ঘরে ফেরার আর্জি জানাতে৷ তাতে কাজ কতটা হয়েছে, তা জানা যায়নি এখনও৷ কারণ, তৃণমূলের হামলায় আক্রান্ত ওই গ্রামে গিয়ে এদিন নিরাপত্তার আশ্বাস দিয়েছে বিজেপির প্রতিনিধি দলও৷ রাজ্যে এখন পরিবর্তন এটাই!


উপরতলায় না হলেও নিচুতলায় কোপ পড়তে চলেছে সিপিএমে


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এই সময়: নির্বাচনী বিপর্যয়ের পর নেতৃত্ব বদল নিয়ে তুমুল বিতর্ক সত্ত্বেও সিপিএমের উপরতলায় পরিবর্তনের সম্ভাবনা আপাতত খারিজ হয়েছে৷ কিন্ত্ত কোপ পড়তে চলেছে নিচুতলায়৷ শাখা থেকে জেলা স্তরের নেতাদের একাংশ 'দলবিরোধী' কাজের অভিযোগে শাস্তি পেতে চলেছেন৷ দলের রাজ্য কমিটির সর্বশেষ বৈঠকে এই বিষয়ে সিদ্ধান্ত হয়েছে৷ কিন্ত্ত প্রশ্ন উঠছে, বার বার শুধু নিচুতলাতেই কোপ কেন! দলের রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর এক সদস্যের অবশ্য দাবি, লোকসভা ভোটে সিপিএমের নজিরবিহীন বিপর্যয়ের পিছনে বিজেপির উত্থান, শাসকদলের সন্ত্রাসের মতো বিষয় ছাড়াও নিচুতলার নেতৃত্বের একাংশের দলবিরোধী কার্যকলাপও বড় ভুমিকা নিয়েছিল৷ নেতাদের এই অংশের বিরুদ্ধে ভোটে অন্তর্ঘাতের অভিযোগও জমা পড়েছে আলিমুদ্দিনে৷ সেই অংশকে চিহ্নিত করে দ্রুত ব্যবস্থা নেওয়ার নির্দেশ দিয়েছেন রাজ্য নেতৃত্ব৷


লোকসভা ভোটে ভরাডুবির পর দলের কেন্দ্রীয় ও রাজ্য নেতৃত্বের দিকেই অবশ্য বিশেষ ভাবে আঙুল তোলা হয়েছে৷ সে কাজে এমনকি সামিল হয়েছিলেন মইনুল হাসান, শমীক লাহিড়ি, তড়িত্‍ তোপদার, মানব মুখোপাধ্যায়, অমল হালদারের মতো রাজ্য কমিটির প্রথম সারির নেতারাও৷ যদিও পাল্টা মত পেশ করেন অঞ্জু কর, নিরঞ্জন চট্টোপাধ্যায়, অসীম দাশগুপ্তরা৷ তবে প্রকাশ কারাট, বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য, বিমান বসুদের পদ থেকে সরানোর দাবিতে রাজ্য কমিটির সদস্যদের একটা বড় অংশ সরব হওয়ায় পরিস্থিতির গুরুত্ব উপলব্ধি করেছেন শীর্ষ নেতৃত্ব৷ তাই রাজ্য সম্পাদক বিমান বসু ও সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাটকে এই বিষয়ে 'জবাব' দিতে হয়েছে৷ দু'জনেরই বক্তব্য, তাঁরা দলের নেতা-কর্মীদের মনোভাব বুঝতে পারছেন৷ কিন্ত্ত কমিউনিস্ট পার্টিতে হঠাত্‍ করে কোনও সিদ্ধান্ত হয় না৷ দলকে নির্দিষ্ট প্রক্রিয়া মেনে চলতে হয়৷ কেন্দ্রীয় কমিটির আসন্ন বৈঠকে এই বিষয়ে আলোচনা হবে বলেও ইঙ্গিত দিয়েছেন কারাট৷


রাজ্য কমিটির দু'দিনের বৈঠকে তড়িত্‍ তোপদারের মতো কয়েক জন শীর্ষ নেতৃত্বে রদবদলের প্রসঙ্গে এ কথাও বলেন, নেতা পরিবর্তনের সময় শুধু যেন নিচুতলায় কোপ না পড়ে৷ কিন্ত্ত ভোটের ফল পর্যালোচনা করতে গিয়ে বিভিন্ন জেলা কমিটির তরফেই দলের সাংগঠনিক দুর্বলতার কথা কবুল করে নিচুতলার একাংশকে আসামির কাঠগড়ায় দাঁড় করানো হয়েছে৷ শীর্ষ নেতৃত্ব বারে বারে সংগঠন সুদৃঢ় করার কথা বললেও তা যে বাস্তবে হচ্ছে না, সেটা কার্যত স্বীকার করে নেওয়া হয়েছে কয়েকটি জেলা কমিটির রিপোর্টে৷ সেখানে বলা হয়েছে, নিচুতলার বিভিন্ন স্তরের বেশ কয়েক জন নেতা এ বার নির্বাচনে যথাযথ ভূমিকা পালন করেননি৷ একাংশের বিরুদ্ধে অন্তর্ঘাতে জড়িত থাকার মতো গুরুতর অভিযোগও রয়েছে৷ কেউ কেউ দলীয় শৃঙ্খলা মেনে চলেননি৷ এঁদের মধ্যে জেলা কমিটির নেতাও আছেন৷ পূর্ব মেদিনীপুর জেলা পার্টির তিন জন যেমন ভোট পর্যন্ত দেননি৷ কয়েক জন জেলা সম্পাদকও ভোটে সক্রিয় ভূমিকা নিতে 'পারেননি'৷ রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর এক সদস্যের কথায়, 'অভিযুক্তদের চিহ্নিত করার কাজ চলছে৷ এর পর প্রয়োজন মতো ব্যবস্থা নেওয়া হবে৷'


কিন্ত্ত উপরের মহল রেহাই পেলেও শুধু নিচুতলায় কেন কোপ পড়ছে? ওই নেতার বক্তব্য, 'নিচুতলার নেতা-সদস্য বলেই ব্যবস্থা নেওয়া হচ্ছে, তা নয়৷ আসলে যাঁদের বিরুদ্ধে অভিযোগ প্রমাণ হবে তাঁরাই শাস্তি পাবেন৷ শীর্ষ কোনও নেতার বিরুদ্ধে এখনও দলবিরোধী কার্যকলাপে জড়িত থাকার অভিযোগ অন্তত ওঠেনি৷' দলবিরোধিতা প্রসঙ্গে পূর্ব মেদিনীপুর নিয়ে তদন্ত কমিটির বিষয়টিও ওঠে রাজ্য কমিটির সভায়৷ প্রার্থী তালিকা ঘোষণার পরেই সেখানে সভা করতে গিয়ে জেলা পার্টির সদস্য-কর্মীদের একাংশের হাতে হেনস্থার শিকার হয়েছিলেন রাজ্য সম্পাদকমণ্ডলীর সদস্য রবীন দেব৷ ওই ঘটনার তদন্তের জন্য জেলা কমিটিকেই নির্দেশ দেয় রাজ্য কমিটি৷ কিন্ত্ত জেলা কমিটি তদন্তে টালবাহানা করায় এ বার তদন্তের ভারও নিজেদের হাতে নিয়েছে রাজ্য কমিটি৷ রবীন দেব, তাপস সিন্হারা আগামী এক মাসের মধ্যেই রিপোর্ট দেবেন৷


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