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Saturday, June 21, 2014

हिन्दी को जनभाषा रहने दें,न इसे सत्ता की भाषा बनने दें और न हिंदुत्व की पहचान!

हिन्दी को जनभाषा रहने दें,न इसे सत्ता की भाषा बनने दें और न हिंदुत्व की पहचान!


पलाश विश्वास


हम पुरस्कारों की राजनीति नहीं समझते और न इसके समीकरणों से हमारा कोई लेना देना है और न हम पुरस्कारों के दावेदार हैं।मंगलेशदा और वीरेनदा जैसे आत्मीय कवियों को अकादमी पुरस्कार मिलने से जितनी खुशी हुई,उतनी ही खुशी अरुण कमल,राजेश जोशी और लीलाधर जगुड़ी के पुरस्कृत होने पर हुई।महाश्वेता दी से तो अंतरंग संबंध रहे ही हैं और  गिरिराज किशोर मात्र परिचित हैं,लेकिन दोनों को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार से हमें शुकुन जरुर मिला। अब केदारनाथ सिंह भी संजोग से परिचित हैं। प्रिय कवि भी हैं,उनको अबकी दफा ज्ञानपीठ मिला तो अच्छा लग रहा है।


इधर हिन्दी को राजभाषा बनाने के फतवे से भारी बवाल मचा है और इस आलेख का प्रयोजन इस मुद्दे और इस संदर्भ पर तनिक संलाप हेतु है।हमारा भारत सरकार और हिन्दी जनता से विनम्र निवेदन है कि हिन्दी को जनभाषा रहने दें,न इसे सत्ता की भाषा बनने दें और न हिंदुत्व की पहचान!


इस हकीकत से शायद इस देश में किसी को इंकार हो सकता है कि संपर्क भाषा के बतौर हिन्दी का कोई विकल्प है नहीं। इस बारे में तथाकथित हिन्दी विरोधी भूगोल में हमारे निजी अनुभव बेहद सुखद हैं,जहां घोषित हिदी विरोध के बावजूद आम जनता में हिंदी के जरिये संवाद करने का कोई विकल्प है ही नहीं।


गौर करने लायक बात तो यह है कि देशभर में कहीं भी आम जनता की बोलचाल की भाषा अंग्रेजी नहीं है।


मातृभाषा से जिन्हें अगाध प्रेम है,उनके लिए भी अपनी भाषा के विकल्प बतौर हिंदी अपनाने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है।


रोजगार के नजरिये से गृहभूमि से निकले लोगों के संवाद का माध्यम भी हिन्दी है।


इसी जनभाषा को सत्ता और हिदुत्व की भाषा बनाने के फतवे से हिन्दी विरोधी आंदोलन भड़काकर राजनीति हिन्दी का क्या भला कर रही है,समझने लायक बात है।इस पर विस्तार से बात करेंगे।



इसी बीच,विभिन्न वर्गों में हो रही आलोचनाओं का सामना कर रही सरकार ने शुक्रवार को कहा कि सोशल मीडिया पर हिन्दी का उपयोग केवल इस भाषा को बोलने वाले राज्यों के लिए होगा तथा इसे गैर हिन्दी भाषी राज्यों पर थोपा नहीं जाएगा। एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया, 'भारत सरकार के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हिन्दी का इस्तेमाल केवल हिन्दी भाषी राज्यों के लिए है। हिन्दी को गैर हिन्दी भाषी राज्यों पर थोपा नहीं जा रहा है।' प्रवक्ता ने कहा, 'आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हिन्दी के बारे में मौजूदा नीति को फिर से बताया गया है।' यह स्पष्टीकरण गृह मंत्रालय की ओर से राजभाषा हिन्दी को सोशल मीडिया की भाषा बनाने के फतवे पर मचे बवाल के बाद जारी किया गया है।


जाहिर है कि सरकार झुक गयी। लेकिन कठिन फैसलों के मध्य हिंदुत्व की कारपोरेट सरकार के इस कदम को समझा जाना चाहिए।हिन्दी की आड़ में जनसंहारी नीतियों और फैसलों पर भड़के जनाक्रोश के मुकाबले भाषाविवाद का यह राजनतिक खेल पूर्व नियोजित है।


जाहिर है कि सोशल मीडिया पर हिंदी में कामकाज का फरमान जारी करने के बाद जैसे ही विवाद बढ़ा केंद्र सरकार पीछे हट गई है।अब केंद्र सरकार ने साफ किया है कि सिर्फ हिंदी बोलने वाले प्रदेशों में ही सोशल मीडिया पर हिंदी में कामकाज होगा।


इससे पहले गृह मंत्रालय ने हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया पर हिंदी का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था, जिस पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने इसका विरोध करते हुए पीएम को चिट्ठी लिखी थी।

जयललिता के साथ ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने भी एतराज़ जताया था। उमर अब्दुल्लाह का कहना था कि देश भर में एक भाषा थोपी नहीं जा सकती।

इससे पहले कल डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने भी एतराज जताया था।

यहां तक कि वामदलों ने और बसपा ने भी इस भाषा राजनीति का विरोध किया है।

प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में जयललिता ने मांग की थी कि सोशल मीडिया में इंग्लिश का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाए. साथ ही जयललिता ने तमिल को भारती की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग की है।


हिन्दी पर विवाद छिडऩे के बीच शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू ने आज कहा कि किसी पर हिन्दीके लिए जोर नहीं डाला जा रहा है और हिन्दी थोपने को लेकर 'दुष्प्रचार' किया जा रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता चिदम्बरम ने यहां कांग्रेस मुख्यालय में संवादददाताओं से कहा कि गैर हिन्दी भाषी राज्यों खासकर तमिलनाडु में प्रतिक्रिया हुई है। सरकार को सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा।


रेल भाड़ा में वृद्धि का ठीकरा नरेंद्र मोदी ने पूर्ववर्ती सरकार के मत्थे फोड़ दिया है,जिससे रेलवे में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले पर चर्चा हुई ही नहीं है।मजे की बात तो यह है कि पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम भी इस फैसले का बचाव करते नजर आये हैं।बजरंगी तो अजब तर्क दे रहे हैं कि मल्टीप्लेक्स में सिनेमादेखने वाले ,अंग्रेजी स्कूलों में बच्चों का पढ़ाने वाले लोग,एसी में रहने वाले लोग रेलभाड़ा वृद्धि पर हल्ला कर रहे हैं।जैसे कि सारी जनता एसी है और रेलवे का सफर करने वाले सीध मल्टीप्लेक्स से निकलते हों।बाजार की रपटों के मुताबिक इराक संकट में बिना टाले इस कठिन फैसले से फिर उसी रिलायंस इंफ्रा को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है।


पूंजी और बाजार की भाषा में तब्दील राजभाषा हिंदी में माटी और लोक की कोई सुगंध नहीं बची है और हिंदी राजनीति अहिन्दी भाषी भारत को इसके खिलाफ खड़ा करके अंततः बाजार के हक में हो रहे युद्धक फैसलों का बंकर बनाया जा रहा है।


हम मातृभाषा की शक्तिशाली अस्मिता को समझ लें तो इस बहुसंस्कृति बहुभाषी देश में राष्ट्रीयता अखंड बनाये रखने में मदद मिलेगी।


हम नैनीताल की तराई में पंजाब से आये शरणार्थियों को हिन्दी के बदले उर्दू में पढ़ते लिखते देखते आये हैं।उनमें से कोई हिन्दी के विरुद्ध था नहीं।


इसी तरह कश्मीर में लोग उर्दू में लिखने पढ़ने में अभ्यस्त हैं,उनमें बड़ी संख्या में हिन्दू भी है।


राजधानी नई दिल्ली के बगल में पंजाब में पंजाबियों और सिखों की भाषा भी गुरमुखी है।


इसीतरह हिन्दी साहित्य और इतिहास की बात करें तो हिन्दी के कायकल्प में बंगीय भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता.बंगाल के तमाम मनीषी और भाषाविद रवीन्द्रनाथ ठाकुर से लेकर सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा बताते रहे हैं। बंगाल में बांग्ला भाषा के प्रति प्रेम कोई तमिलनाडु या बाग्लादेश से कम नहीं है,लेकिन यहां हिन्दी का कोई विरोध नहीं रहा है।एकमात्र साहित्य अकादमी के दिवंगत अध्यक्ष सुनील गंगोपाध्याय ही हिन्दी के खिलाफ मुहिम चलाते रहे हैं,जो कि अपवाद है।


दूसरी ओर,महाश्वेता दी बार बार कहती हैं कि हिंदी पाठकों की वजह से वे भारतीय लेखिका हैं।एकबार मध्यप्रदेश से लौटकर उन्होंने मुझे यह कहकर हैरत में डाल दिया, `तु्म्हारे कहानी संग्रह ईश्वर की गलती पर मध्य प्रदेश के हर शहर में चर्चा हो रही।मेरे किसी किताब पर ऐसी चर्चा बंगाल में भी नहीं हुई।'हिन्दी के मामूली लेखक पत्रकार होने के बावजूद उन्होंने हमेशा मुझे मेरी प्राप्ति से ज्यादा महत्व दिया।अमेरिका से सावधान पर भी उन्होंने लिखा।


इसीतरह तसलिमा नसरीन भी हिन्दी में अनुवाद के शुरु से काफी महत्व देती रही हैं। असमिया साहित्यकार इन्दिरा गोस्वामी हो या ओड़िया की प्रतिभा जी, हिन्दी अनुवाद को उन्होंने हमेशा प्राथमिकता दी है।


यही नहीं,अंग्रेजी प्रिय होने पर भी बंगाल से बाहर पांव बढ़ाने के बाद हर बंगाली खुद को बाकी भारत से जोड़ने के लिए हिन्दी में ही बात करते हैं।देश भर में प्रवासी बंगाली हिन्दी बोलते जितना अच्छा है,उससे कहीं ज्यादा हिन्दी लिखते भी हैं। बंगाल में स्कूलों में भी हिन्दी को द्वितीय भाषा चुनने की परंपरा है।


दंडकारण्य में तो बड़ी संख्या में अपढ़  घरेलू महिलाएं हिन्दी के अलावा तेलुगु,ओड़िया और मराठी उतनी ही अच्छी बोलती हैं जितनी कि बांग्ला।


बंगाल में उदंत मार्तंड की कथा तो हिन्दी प्रेमी जानते ही हैं।उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 30 मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। कलकता के कोलू टोला नामक मोहल्ले की 37 नंबर आमड़तल्ला गली से पं. जुगलकिशोर शुक्ल ने सन् 1826 ई. में उदन्त मार्तण्ड नामक एक हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया। उस समयअंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर संयुक्त प्रदेश के निवासी थे।


उदन्त मार्तण्ड के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए जुगलकिशोर शुक्ल ने लिखा था जो यथावत प्रस्तुत है-

''यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेज़ी ओ पारसी ओ बंगाली में जो समाचार का कागज छपता है उसका उन बोलियों को जान्ने ओ समझने वालों को ही होता है। और सब लोग पराए सुख सुखी होते हैं। जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते परायी आंख देखना वैसे ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं''

उदन्त मार्तण्ड ने समाज में चल रहे विरोधाभासों एवं अंग्रेज़ी शासन के विरूद्ध आम जन की आवाज़ को उठाने का कार्य किया था। क़ानूनी कारणों एवं ग्राहकों के पर्याप्त सहयोग न देने के कारण 19 दिसंबर, 1827 को युगल किशोर शुक्ल को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन बंद करना पड़ा।


जाहिर है कि हमारी 'सामूहिक स्मृति' अत्यन्त दुर्बल और दरिद्र है। हमने अपने सुदूर अतीत को तो भुला ही दिया है बल्कि निकट अतीत को भी बिसरा चुके हैं।


डा. शंभूनाथ ने हिन्दी की बंगीय भूमिका पर दो खंडों की बेहतरीन किताब बहुत पहले लिख दी थी।उसे पढ़ लें।


इसके अलावा महाश्वेता दी ने भारतीयभाषाओं में सेतु बनाने के लिहाज से भाषा बंदन पत्रिका का प्रकाशन किया और संजोग से उसकी शुरुआत में संपादक मंडल में मैं भी था।भाषा बंधन में हिन्दी के तमाम महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनाओं,तमाम महत्वपूर्ण हिन्दी उपन्यासों का बांग्ला में अनुवाद होता रहा है।


यही नहीं,वर्धा हिन्दी विश्वविद्यालय,दैनिक जनसत्ता और डा.शंभूनाथ,बांग्ला के बैहतरीन साहित्यकार नवारुण भट्टाचार्य,रंगकर्मी उषा गांगुली,डा.अमरनाथ,डा.देवराज जैसे असंख्य लोग हैं, जो पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी भाषा और साहित्य की जीन तैयार करने में लगे हैं।


कोलकाता में भारतीय भाषा परिषद और वागार्थ की भूमिक ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी से कम नहीं है।


दक्षिण भारत की बात करें तो हैदराबाद भी हिन्दी का केन्द्र है।कर्नाटक,अखंड आंध्र और केरल में तो हिन्दी विरोध रहा ही नहीं है।केरल में तो हिन्दी सीखने की अद्भुत मुहिम लगातार जारी रही है।हम केरल,आंध्र और कर्नाटक में हमेशा हिन्दी में ही लोगों से संवाद करते रहे हैं।


मणिपुर और उत्तर पूर्व के राज्यों में उग्रवादी हिन्दी का विरोध करते रहे हैं, लेकिन इंफाल,इटानगर,शिलांग,आगरतला, दिमापुर कहीं भी जाइये, लोग उग्रवादी फतवा मानते हुए भले ही हिन्दी फिल्में न देखें,लेकिन हिन्दी में बोलने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता।


हमने तो उग्रवाद प्रभावित नगालैंड मणिपुर सीमाक्षेत्र में मरम वैली में और इंफाल में भी बिना रोक टोक हिन्दी फीचर फिल्म की शूटिंग की है।जोशी जोसेफ लगातार हिंदी में पूर्वोत्तर में फिल्म बनाते रहे हैं।उनकी पहली फीचर फिल्म दृश्यांतर का संवाद मैैंने लिखा था और इसी सिलसिले में उनके साथ मणिपुर जाना  हुआ।उस वक्त मेरे पिता मरणासण्ण थे लेकिन मैं पूर्वोत्तर जाने के पहले मौके को छोड़ा नहीं और वहां महीनेभर रहा। लोग रेडियो पर हिंदी गाना सुनने से डरते थे लोकिन बेखौफ बाजार में हिन्दी में ही बात करते थे।


तब हमारी बातचीत हिन्दी विरोधियों से भी हुई थी।उनका तर्क था कि मणिपुर में सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून लागू करने वाली सत्ता की भाषा हिन्दी है,इसलिए वे हिन्दी का विरोध करते हैं।


याद करें कि सत्तर के दशक में अशांत नगालैंड में देवानन्द ने हिन्दी फिल्म ये गुलिश्तां हमारा बनायी थी।तब भी कोई विरोध नहीं हुआ था।पूर्वोत्तर में फिल्मों की शूटिंग के सिलसिले में किसी कलाकार को कभी विरोध और हमले का सामनाकरना पड़ा हो,तो हम नही जानते।


याद करें कि कुछ समय पहले मणिपुरी उग्रवादियों ने इंफाल विधानसभा को फूंक दिया था लेकिन बगल में ही हिन्दी भवन को आंच तक नहीं आयी।


असम में भी हिन्दी अखबारों का प्रचलन खूब है।अल्फा उग्रवादियों ने हिन्दी भाषियों पर हमले जरुर किये लेकिन हिन्दी के खिलाफ कोई अभियान चलाया हो,मुझे मालूम नहीं है।


हिन्दी की बतौर संपर्क भाषा ताकत का मुकाबला कोई दूसरी भाषा कर ही नहीं सकती।लोग स्वाभाविक व्कल्प बतौर मातृभाषा के साथ दूसरी भाषा बतौर हिन्दी को अपनाते हैं,राजभाषा जबरन लागू करके इस हिन्दी प्रेम की हत्या की जा रही है।


हमें जितना प्रेम अपनी भाषा से है,हमें समझना चाहिए कि दूसरे लोगों का अपनी भाषा से उतना ही प्रेम होगा।भाषा विज्ञान की बात करें तो कोई भाषा अबूझ नहीं होती।बशर्ते कि हम भाषाओं को बिना भेदभाव अपनाने की कोशिश करें।


तमिल का भारतीय संस्कृति और इतिहास से बेहद घना नाता है,इसे स्वीकार किये बिना हम उनपर हिन्दी सत्ता के दम पर थोंपना चाहें तो जैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए,वैसी ही प्रतिक्रिया हो रही है।इस पर भी गौर करें कि रामनाथपुरम,मदुरै और नीलगिरि में तमिल के साथ साथ हिन्दी भी खूब बोली जाती है।इसके अलावा रोजी रोटी के लिए तमिलनाडु जाने वाले हिन्दी भाषियों पर कभी कोई हमला हुआ नहीं है।


इसके विपरीत हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान के नारे के साथ भारत को  हिन्दू राष्ट्र बनाने के मामले में संघ परिवार से भी कट्टर शिवसेना महाराष्ट्र में हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषा बोलने वाले लोगों के साथ किस हद तक वैमनस्य प्रदर्शित करते हैं,इसे सारा देश जानता है।


यह समझ लेना चाहिए कि मराठा साहित्य सम्मेलन किसी राजनीतिक रैली से छोटा नहीं होता।मध्य प्रदेश में भी मराठा साहित्य सम्मेलन में दस हजार लोगों की भीड़ हो जाती है।


तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी मातृभाषा गुजराती की भी अलग ठाठ है।गुजराती और राजस्थानी जहां भी जाते हैं, वहां अपना देस उठाकर ले जाते हैं,बसा देते हैं।इस सांस्कृतिक जमीन की हम इज्जत करें तो विवाद की कोई गुंजाइश नहीं है।


भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति की साझा विरासतें हैं।दक्षिण भारत और उत्तर भारत में अलग अलग तो मध्य भारत में भी अलग।मध्यभारत में अलग तो हिमालय में भी अलग।हम जन्मजात कुमांनी हैं तो गोरख्याली समझने पढ़ने में हमें असुविधा नहीं होती।तराई में बसावट है तो गुरमुखी से भी हमें परहेज नहीं रहा है।मराठी और गुजराती,असमिया और ओड़िया समझने में कोई दिक्कत नहीं होती।किसी को भी दरअसल दिक्कत होती नहीं है।


अंग्रेजों ने अंग्रेजी को राजभाषा बनाकर यकीनन दुनिया परराज किया लेकिन आज इंग्लैंड में ही अंग्रेजी का कोई वर्चस्व नही है।बरतानिया साम्राज्यवाद का भी इंतकाल हो गया है।अब जो अमेरिकी साम्राज्यवाद है,वह देशज भाषाओं को मुक्ताबाजार की भाषा बना रहा है।अंग्रेजी उनका भी विकल्प नहीं है।लातिन अमेरिका में अंग्रेजी का कोई वजूद है नहीं।


ब्राजील विश्वकप फुटबाल प्रतियोगिता की भाषा या तो स्पेनिश है या पुर्तगीज।रूस और चीन को अंग्रेजी अपनाने की जरुरत नहीं पड़ी तो बाकी यूरोप में फ्रेंच, स्पेनिश, इटालियन, ग्रीक, ऱूसी और पुर्तगीज भाषाओं का जलवा अंग्रेजी से कम नहीं है।


अंगेजी अब भी ग्लोबल भाषा है तो उसकी आंतरिक शक्ति और दूसरी भाषाओं और संस्कृतियों के तत्व आत्मसात करने की वजह से है।


हिन्दी को राजभाषा के बहाने सत्ता की भाषा बनाने से हिन्दी हिन्दू साम्राज्यवाद का आरोप ही लग सकते हैं,जो लग रहे हैं।करुणानिधि,फारुख अब्दुल्ला और जयललिता की प्रतिक्रिया को सही संदर्भ में समझनेकी जरुरत है।


जबकि शताब्दियों से हिंदी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में अहिन्दी भाषी प्रदेश कीमहत्वपूर्ण भूमिका रही है। शिवसेना को धता बताते हुए आज भी महाराष्ट्र का नागपुर हिन्दी का बड़ा केंद्र बना हुआ है ।


राजभाषा बना देने से पूंजी का हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता पर अबाध निरंकुश वर्चस्व के अलावा हिन्दी का कुछ भला हुआ है,मुझे नहीं मालूम।हिन्दी सीखने के बहाने मुफ्त में केन्द्र सरकार के अफसरों और कर्मचारियों को प्रोमोशन और वेतनवृद्धि भलेही मिल जाता है लेकिन इस तबके की सौदेबाजी और मलाईदार मौकापरस्ती ने हिन्दी को राजभाषा में कैद कर दिया है,अपनी बोलियों से हिन्दी की दुश्मनी होने लगी है।जिस मैथिली, भोजपुरी, अवधी, मगही,हरियाणवी,ब्रजभाषा,राजस्थानी से हिन्दी की मुकम्ल लोक जमीन बनती है,वह हिंग्लिश में  तब्दील है।


अब रेडियो रुस की इस रपट से समझ लें कि इस फतवे से फायदा किन्हें होने वाला हैः


भारत के वे सभी उच्चाधिकारी, जो सरकारी काम अँग्रेज़ी में करने के अभ्यस्त हैं, पिछली दो सप्ताह से जल्दी-जल्दी हिन्दी सीखने में लगे हुए हैं।

सभी नौकरशाहों के हाथों में शब्दकोष दिखाई दे रहे हैं क्योंकि नए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने आदेश दिया है कि सभी सरकारी दस्तावेज़ हिन्दी में होने चाहिए, जो भारत के करोड़ों लोगों की भाषा है।

हालाँकि बहुत से उच्चाधिकारी हिन्दी बोलते हैं, लेकिन उनमें ऐसे लोग भी हैं, जो बस, हिन्दी के कुछ ज़रूरी वाक्य ही बोल पाते हैं। अब हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने का असर भारत की राजनीतिक संस्कृति पर भी पड़ेगा।


भारत के नए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सभी अधिकारियों और सरकार के सभी मन्त्रियों से अपने सार्वजनिक भाषणों और सार्वजनिक वक्तव्यों में तथा सरकारी पत्रों में हिन्दी का इस्तेमाल करने का आदेश जारी किया है। ख़ुद मोदी भी विदेशी प्रतिनिधिमण्डलों से सिर्फ़ हिन्दी में ही बात करेंगे।

और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/news/2014_06_19/273721650/



सरकारी खरीद,अनुदान,पुरस्कारों के घटाटोप में हिन्दी भाषा,संस्कृति,साहित्य और लोक खत्म होने को है।हो सकें तो आंतरिक खतकरों से निपटने का यत्न करें हम वरना हिन्दी की,हिन्दी साम्राज्यवाद की दशा भी अंग्रेजी और बरतानिया साम्राज्यवाद जैसी ही होगी।यह इतिहास का अमोघ व्याकरण है।


वेब दुनिया पर शोभना जैन की इस रपट पर गौर जरुर करेंः


मोदी सरकार के हिन्दी प्रोत्साहन को लेकर उपजी भाषायी तल्खियों के बीच हिन्दी द्वारा उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाली एक अच्छी खबर!


कुछ वर्ष पूर्व एक लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और तमिल फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री रहीं जे. जयललिता ने बेहद सुरीली आवाज में हिन्दी फिल्म 'चोरी-चोरी' का लोकप्रिय गीत 'आ जा सनम' गुनगुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था।


इसी तरह द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) अध्यक्ष, पूर्व अभिनेता व तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने इसी वर्ष उत्तर भारतीय व उर्दू भाषियों की प्रमुखता वाले एक निर्वाचन क्षेत्र में हिन्दी गीत 'हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई' गाया था।


गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व फिल्म अभिनेत्री सिमी ग्रेवाल के एक लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम में मेहमान बनीं जयललिता से जब सिमी ने उनके पसंदीदा पुराने फिल्मी गीतों के बाबत पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसे अनेक गाने हैं, उसी क्रम में उन्होंने पुरानी हिन्दी फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ' का 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' को अपना पसंदीदा गाना बताते हुए फिल्म 'चोरी-चोरी' के इस गीत को भी अपने बेहद पसंदीदा गानों में से एक बताया।


सिमी ने जब उनसे इन गानों को गुनगुनाने का आग्रह किया तो पहले तो वे यह कहते हुए हिचकिचाईं कि उनका गाना गाने का अभ्यास छूट गया है, पर सिमी के आग्रह पर कि 'अगर वे गाती हैं तो सिमी भी गाने में उनका साथ देंगी' तब उन्होंने मुस्कराते हुए 'आ जा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार, झूमने लगेगा आसमां' गाना सुरीले अंदाज में गुनगुनाया। यू ट्यूब पर अपलोडेड इस वीडियो को दुर्लभ श्रेणी में रखा गया है।


लेकिन हिन्दी गानों के प्रेम से अलग हटकर दोनों नेताओं ने गृह मंत्रालय द्वारा सोशल मीडिया पर हिन्दी भाषा को प्रमुखता से प्रयोग किए जाने संबंधी गत 27 मई के सरकारी निर्देश पर गहरी आपत्ति जताई है। करुणानिधि ने इसे हिन्दी थोपने की शुरुआत बताते हुए कहा कि सभी भारतीयों को अपनी भाषा में बात रखने की आजादी होनी चाहिए।


गौरतलब है कि वर्ष 1968 में तमिलनाडु में हिन्दी विरोधी आंदोलन में सक्रिय भुमिका के कारण ही डीएमके राज्य में सत्ता में आई थी। जयललिता ने इस निर्देश के विरोध में प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर सोशल मीडिया में अंग्रेजी का इस्तेमाल किए जाने पर बल देते हुए कहा कि सोशल मीडिया की भाषा किसी क्षेत्र विशेष की भाषा कैसे हो सकती है?


एनडीए के सहयोगी दलों के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी व जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस मुद्दे पर अपनी विरोध जताया है, जबकि कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार के इस निर्देश का गैर-हिन्दीभाषी राज्यों विशेषतौर पर तमिलनाडु में विरोध होगा। सरकार को इस मामले में सतर्कता बरतनी चाहिए। सत्तारूढ़ मुख्य दल भारतीय जनता पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी ने भी सरकार के इस फैसले को सही बताया है।


इससे पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री तथा राजभाषा विभाग के प्रमुख किरण रिजीजू इस पूरे विवाद पर सरकार का रुख साफ करते हुए कह चुके हैं कि नई सरकार सभी विभागों एवं सार्वजनिक जीवन में हिन्दी के इस्तेमाल को बढ़ावा देगी, लेकिन हिन्दी भाषा को बढ़ावा दिए जाने को अन्य भाषाओं को कमतर किए जाने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केंद्र सभी भाषाओं को उचित महत्व देगी।


उन्होंने कहा कि हमें अपनी पहचान, संस्कृति, भाषा और विविधता के साथ तरक्की करना है। हमें एकसाथ आगे बढना है इसलिए हिन्दी भाषा को बढ़ावा दिए जाने को अन्य भाषाओं को कमतर किए जाने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।


केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस टकराव को शांत करने की मंशा से कहा था कि केंद्र सरकार देश की सभी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।


कल इस पूरे विवाद के तूल पकड़े जाने पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि यह निर्देश सिर्फ हिन्दी भाषी राज्यों के लिए है तथा इसे गैर हिन्दीभाषी राज्यों में हिन्दी का इस्तेमाल थोपने के प्रयास बतौर नहीं देखा जाना चाहिए, सरकार की इस नीति में कोई बदलाव नहीं आया है और न ही ये कोई नई नीति है।


उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार के 46 मंत्रियों में से 30 से अधिक ने हिन्दी में शपथ ली थी। इसमें से सुषमा स्वराज, डॉ. हर्षवर्धन तथा उमा भारती समेत अन्य कुछ ने संस्कृत में शपथ ली थी। मोदी हिन्दी में ही भाषण देना पसंद करते हैं, हिन्दी में ही ट्वीट करते हैं और उनकी सरकार की हिन्दी डिप्लोमेसी तो काफी सुर्खियों में रही है।


इस पूरे विवाद पर एक भाषाविद् के अनुसार महात्मा गांधी ने कहा था- 'हृदय की कोई भाषा नहीं होती। हृदय, हृदय से बात करता है।'


फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान व दक्षिण भारतीय अभिनेता रजनीकांत की हिन्दी फिल्में समान रूप से लोकप्रिय हैं। अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान की हिन्दी फिल्मों ने तो पाकिस्तान से लेकर सुदूर ब्रुनेई, मिस्र, अफ्रीका, इंग्लैंड, अमेरिका तक धूम मचा रखी है। ऐसे में भाषा को लेकर तमाम विवाद व तल्खियां बेमायने हैं।


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Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

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अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk