नौकरियों के लिए आपस में लड़ रहे हैं हम
नौकरियां खत्म कर दी जिनने
उनके उकसावे पर लड़ रहे हैं हम
हो रहे लहूलुहान लेकिनकोई लड़ाई
अभी शुरु ही नहीं हुई है नौकरियां
हजम करने वालों के खिलाफ
हमारे पेट पर लात मारने वालों की
पैदल सेनाएं हैं हम
पलाश विश्वास
नौकरियों के लिए आपस में लड़ रहे हैं हम
नौकरियां खत्म कर दी जिनने
उनके उकसावे पर लड़ रहे हैं हम
हो रहे लहूलुहान लेकिन
कोई लड़ाई अभी शुरु
ही नहीं हुई है नौकरियां
हजम करने वालों के खिलाफ
हमारे पेट पर लात मारने वालों की
पैदल सेनाएं हैं हम
थोक दरों पर हमारे बच्चे
निजी संस्थानों में
गली मोहल्लों की दुकानों पर
रंग बिरंगे इंजीनियर बनकर
मारे मारे फिर रहे हैं
कोई प्लेसिंग नहीं है
वायदों के बावजूद
भारी भरकम फीस
और डोनेशन के बावजूद
और तो तो और विश्वविद्यालयों से
भी खुल नहीं रहा रोजगार का रास्ता
इंजीनियरिंग कालेजों ने पल्ला झाड़ लिया
अब आईआईटी और आईआईएम की बारी है
जिसके लिए इतनी मारामारी है
बंगाल में 35 सौ नौकरियों के लिए
स्कूलों में टीचरी के लिए
45 लाख युवाओं ने खूब की मारामारी
प्राइमरी स्कूलों में भी
कोई नियुक्ति नहीं हो रही अब
कैट की तैयारियों में
दिनरात बच्चे जला रहे हैं खून
इंजीनियरिंग डाक्टर बनकर भी
हमारे बच्चे हैं बेरोजगार
ह्युमनिटी के सारे विषय
अब हो गये हैं बेकार
गणित भी पढ़ना नहीं चाहता कोई
कोई नहीं पढ़ना चाहता इतिहास,भूगोल,
दर्शन या साहित्य
और तो और,विज्ञान से भी परहेज है
सत्तर के दशक में भी
विश्वविद्यालय से निकलने से पहले
हम लोगों ने नौकरी कहीं तलाशी नहीं
मैंने आजतक कहीं नाम नहीं लिखाया
सरकारी नौकरी के लिए कहीं
न कहीं आवेदन किया
सरकारी नौकरी के लिए
जो हम बनना चाहते थे वह
बन गये हम अच्छा या बुरा
किसा और विकल्प
की तरफ मुजड़करदेखा तक नहीं
अब विकल्प हजार हैं
चारों तरफ लेकिन बंद गलियां हैं
फंस गये एक दफा
तो निकलने के सारे रास्ते बंद हैं
हर गली लगती है
स्वर्णिम राजपथ कोई
इतना ग्लेमर है
कैंपस रिक्रुटिंग की
हवा है इतनी तेज
लाखों के वेतन के पीछे
बाग रहा है हर बच्चा
अपनी ही मेधा,अपनी ही क्षमता से
बेखबर है हर बच्चा
पैदा होते न होते
गर्भ में ही हम
हर भ्रूम को बनाने लगे हैं
अभिमन्यु अपना दुर्भेद्य
च्करव्यूह तोड़ने की महात्वाकांक्षा में
बैमौत अकाल मृत्यु के लिए
कुरुक्षेत्र में वीरगति के लिए
पैदा कर रहे हैं हम बच्चे
इकलौता बच्चे से
अपनी दमित महत्वाकांक्षाएं
साधने लगे हैं हम
हर बच्चे को मनोरोगी बनाने लगे हैं हम
ऐसा विज्ञापनी माहौल है
स्नातक बनने से पहले
बच्चे व्यवसायिक होने लगे हैं इनदिनों
बच्चों को व्यवसायिक बनाने में
अभिभावक भी कोई कसर
नहीं छोड़ते इन दिनों
स्कूलों हाईस्कूलों पर
माताओं की कतारे हैं लंबी
कतारे लंबी प्रशिक्षण केंद्रों पर भी
ट्यूशन तक पहुंचान लाने की
जिम्मेदारी भी अब माताओं की
बाप पैसे देकर खलास
गर्भ यंत्रणा से कभी
मुक्ति मिलती ही नहीं
माताओं को कभी
सिंगल मदर होने से भी
पुरुषतंत्र की जकड़
कहां ढीली होनी है
विकी डोनर भी तो
अंततःपुरुष अनिवार्यतः
कुछ नहीं तो खिलाड़ी बनाने की भी
बहुत अंधी दौड़ है लेकिन
हम भूल रहे हैं कि हर बच्चा
होता नहीं सचिन तेंदुलकर
हर बच्चा हो नहीं सकता
महेंद्र सिंह धोनी
कवायद लेकिन जोरों पर है
प्रशिक्षकों की चांदी है
हर दिशा में खुले हुए हैं
कोचिंग सेंटर तमाम
अखबारों के पन्ने दर पन्ने
हर अखबार में सफेदपोश
भेड़ियों की मौजूदगी में
कोचिंग सेंटरों का जनगणमन है
फिर भी वहां भी नहीं है
नौकरी की गारंटी
कोई संस्थान नौकरी भले ही दिला दें
लेकिन नौकरियां हो तभी न
कंप्यूटर का किस्सा पुराना है
रोबोट भी हैं हमारे बच्चों के प्रतिद्वंद्वी
आनलाइन चल रही है
खुल्लमखुल्ला लूट
सबको है लूट की अबाध छूट
नालेज इकानामी ऐसी है
हर कहीं खुल रहा
निजी मेडिकल कालेज
बंगाल में तो सरकारी अस्पताल
भी बन रहे हैं निजी मेडिकल कालेज
हर तरफ निजी इंजीनियरिंग कालेज
रैंकिंग में पिछड़े बच्चे
सीधे झोंके जाते हैं निजी संस्थानों में
फीस बेसरकारी प्रलयंकारी
उसपर मनचाहा डोनेशन
फैकल्टी भी नहीं होती
पिर भी मान्यता
निगरानी नहीं है कोई
पाठ्यक्रम देकर ही
खलास यूजीसी
शिलान्यास और निजी पूंजी
की जिम्मेदारी बखूबी
निभाने के बाद खलास सरकारें
हर कहीं केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं
महापुरुषों के नाम विश्वविद्यालय हैं
हर शहर में.यहां तक कि कस्बों
और गांवों तक में कैंपस है
अब तो आक्सफोर्ड और कैंब्रिज
से लेकर हर विश्वविद्यालय की दुकाने हैं
पुरातन जो थे शिक्षाकेंद्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय हो या
फिर काशी विश्वविद्यालय
या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
या प्रेसीडेंसी और कोलकाता के विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय मुंबई और चेनै के
सारे के सार तबाह हैं
राजनीतिक अखाड़े हैं
बाहुबलियोंके उत्पादन केंद्र हैं
जेएनयू दिल्ली विश्वविद्यालय
और जामिया मिलिया से भी इन दिनों
राजनीति के दिग्गज पैदा होते हैं
पैदा होते हैं आइकन तमाम
अब न शिक्षक कहीं हैं
और न छात्र कहीं
किसी कालेज में अब नहीं हैं
ताराचंद्र त्रिपाठी कोई
किसी स्कूल में नहीं हैं
कोई पीतांबर पंत
किसी विश्वविद्यालय
में न हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं
और न डां.रघुवंश हैं
न विजयदेव नारायण साही हैं
कोई उपकुलपति नहीं हैं
कहीं जिसे गुरुदेव का
सम्मान मिलता हो कहीं
हर उपकुलपति इन दिनों युद्धबंदी है
और हर शिक्षक व्यापारी
यूजीसी की निगरानी भी नहीं होती
चार चार साल के स्नातक कोर्स
लगा रहे हैं विश्वविद्यालय
स्नातकोत्तर खत्म है इन दिनों
शोध की कोई संभावना नहीं है
जमीनी स्तर की सर्वशिक्षा अब
विश्वविद्यालयों में भी सर्वशिक्षा
न शिक्षा है और न दीक्षा है
न कहीं कोई प्रशिक्षण है
न रोजगार का इंतजाम है कहीं
ये लोग हमारे बच्चों को
भिखारी बनाने लगे हैं
एकदम अराजक है शिक्षाक्षेत्र इन दिनों
खूब राजनीति है शिक्षा में इन दिनों
उससे ज्यादा हिंसा है शिक्षा में इन दिनों
उससे भी ज्यादा घृमा का पाठ है
शिक्षा क्षेत्र में इन दिनों
जाब मार्केट में भी क्रयशक्ति
निर्णायक है भइया
आरक्षणा भी काम नहीं आ रहा है भइया
शत प्रतिशत कट आफ है
टका सेर भाजी
टका सेर खाजा है
अंधेर नगरी है भयंकर
गलाकाट प्रतिद्वंद्विता है
बेमतलब की बेसिर पैर की
सब कुछ फिक्स है
जाति प्रमाणपत्र मिलते ही नहीं हैं
सभी जातियों को रिजर्वेशन भी नहीं है
एस सीएसटी ओबीसी होने के बावजूद
उनकी पहचान और बहिस्कार
जगजाहिर होने के बावजूद
हम शरणार्थी बच्चों को
कहीं नहीं मिला आरक्षण
ओबीसी आरक्षण की डंका पीटकर
राजनेता हिंदू मुस्लिम वोट लूट रहे
ओबीसी को नौकरी कहीं नहीं मिलती
बंगाल में तो ओबीसी
सर्टिफिकेट तक नहीं मिलते
जबकि हर चुनाव से पहले बढ़ा दिया
जाता है ओबीसी कोटा
और ओबीसी बम बम है
मंडल लेकिन कहीं लागू हुआ नहीं है
लिखित परीक्षा पास करने के बाद भी
प्रशिक्षित दक्ष होने के बाद भी
प्रतीक्षा सूची में इंतजार खत्म नहीं होता
योग्य प्रत्याशी मिलते ही नहीं हैं
खाली पड़ी रहती हैं रिक्तियां
पिछले दरवाजे से हो जाती नियुक्तियां
बच्चे हमारे टाप करके भी
टापते रह जाते हैं
रैगिंग में न मारे जायें
तो अवसाद में आत्महत्या कर रहे हैं बच्चे
उत्पादन प्रणाली खत्म है
खुदरा बाजार में एफडीआई है
या बड़ी पूंजी की मारामारी है
लाखों करोड़ खर्च करके भी
आप कहां खपायेंग बच्चे
जो कैंपस रिक्रूट हुए ही नहीं हैं
बाजार में कोई स्पेस नहीं है
सर्वत्र शापिंग माल
न बच्चे खेती कर सकते हैं
न बच्चे कारोबार में खप सकते हैं
प्लेसिंग हो गयी तो वह भी अस्थाई
काम के घंटे तय नहीं
कोई वेतनमान नहीं
सिर्फ सौदेबाजी है
भंवरे की तरह मंडराते रहो
कली कली गली गली
कभी इस डाल में
तो खभी उस डाल में
आईटी में सबसे ज्यादा नौकरियां
वहां 48 घंटे बहात्तर घंटे
मरने खपने के बाद भी
सीधे मक्खी की तरह
निकाल फेंके जाते हैं बच्चे
बाकी सारे जाब मार्केटिंग के
हर वक्त नया टार्गेट
और छंटनी भी तय है
श्रम कानून सारे बदले जा रहे हैं
कार्यस्थल पर न काम का माहौल है
और सुरक्षा है नहीं कहीं
जहां भी हैं यूनियनें
समझौते और नेताओं की
विदेश यात्राओं के लिए हैं यूनियनें
मिशनरी लोग भी
आजादी के तमाम
रंग बिरंगे सियार भी
अब हावई यात्राओं के हमसफर
उन सभी के पांव इतने हसीन हैं
भारत की सोंधी जमीन
का स्पर्श मिलते ही मैले हो जायें
वे सारे डिओड्रेंट के कारोबारी
ज्यादतर आशाराम बापू
अरक्षित हो गये हैं बच्चे
जिनकी प्लेसिंग न हो
पराजीवी हो रहे हैं वे बच्चे
विकलांग हो रही है
हमारी भावी पीढ़ियां इन दिनों
पराजीवी हो रही हैं हमारी
भावी पीढ़ियां दिनों
और हम हैं बाजार में मस्त कलंदर
और हम हैं कि बेगानी शादी में
अब्दुल्ला दीवाना, अंध भक्त
धर्मोन्मादी दंगाई हुजूम
कारपोरेट ताशों से घिरे हैं हम
राजनीति अराजनीति के
बंधुआ मजदूर हम सारे के सारे
चोरों डकैतों से आजादी
मांगते रहे हैं हम अब तलक
दशक दर दशक छले जाकते रहे हैं हम
हम आजादी मांग रहे हैं
रंग बिरंगे आशाराम बापू से
हम शेर बना रहे हैं
तमाम रंगे हुए शियारों को
मैथुन के सिवाय
जिनकी कोई काबिलियत और नहीं
सूबों के सूबेदार ही सारे के सारे
दंगे करा रहे हैं
वोट बैंक साधने के लिए
और हम अस्मिताओं में मरे जा रहे हैं
फंडिग भरे जा रहे हैं
अपने ही स्वजनों के खून से
अपना हाथ रंगे जा रहे हैं
अपने ही दुश्मनों के होल टाइमर हैं हम
बच्चों को भी धर्मोन्मादी होलटाइमर
बनाने लगे हैं हम
कारपोरेट विकल्प चुनकर हर बार
जीत का जश्न मना रहे हैं हम
जीते चाहे कोई कोई फर्क नहीं
कारपोरेट है राजनीति भइया
कारपोरेट है मीडिया भइया
कारपोरेट है सिविल सोसाइटी भी
जनादेश हर हाल में
कारपोरेट राज के लिए
यह लोक गणराज्य
संविधान हमारा
कानून का राज
गरीबी उन्मूलन का नारा
तमाम सुरक्षाएं और अधिकार
सामाजिक योजनाएं
हमारी डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिकता
हमारी अंध देशभक्ति
अंध श्रद्धा हमारी
सबकुछ अंततः देशव्यापी
गैस चैंबर में हमें मारने के लिए
अनंत वधस्थल पर
मरने ,मारने या फिर मारे जाने के
नशे में मदहोश भटक रहे हैं हम
तलवारें कर चुकी हैं वार
सर कट चुका है
चेहरा का अता पता नहीं
आईसीयू में ब्रेन डेड हैं हम
लेकिन हम सारे के सारे
कंबंध जुलूस में शामल
कार्निवालटके मुखौटे को
अपना चेहरा समझ रहे हैं हम
विडंबना तो यह है कि हम पढ़े लिखे
लोगों को गाली गलौज के अलावा और
कुछ अब आता नहीं है
विकी डोनर से पैदा हो रहे हैं बच्चे इन दिनों
बिन बाप बिन मां के हैं बच्चे इन दिनों
उनकी जड़ें न परिवार में हैं
और न जड़ें समाज में हैं
खिलौनों से खेलते खेलते
खिलौने बन रहे हैं बच्चे
वीडियो गेम और ब्लू फिल्में
बन रहे हैं बच्चे
हम अवाक दर्शक हैं
हम हैं तमाशबीन
कामेडी सर्कस में रातोदिन
चौबीसों घंटे ठहाके लगा रहे हैं
पीसी मोबाइल पर ब्राउजिंग कर रहे हैं
अपने बच्चों को मरने के लिए
छोड़ रहे हैं हम लावारिश
हम ऐसे कसाई हैं कि
बाजार में झोंक रहे हैं बच्चे
सिंहद्वार पर दस्तक
बहुत तेज है भइया
जाग सको तो
जाग जाओ भइया
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