खालिद जैसे बेगुनाहों की हत्या साबित करती है कि भारत में जनतन्त्र नहीं है- गौतम नवलखा
आईबी के अंदर आरएसएस की घुसपैठ है।
इस लोकतन्त्र में मुसलमानों, आदिवासियों, दलितों के लिये सिवाए जनसंहार के और क्या है- गौतम नवलखा
न्यायपालिका पर भी सवाल उठाना होगा हमें – आशीष गुप्ता
सरकार ने राजा भैया को बचाया, जेल से निकालकर मन्त्री बना दिया लेकिन खालिद मुजाहिद को मौत की नींद सुला दिया।
धरने के 46 वें दिन क्रमिक उपवास पर फर्रुखाबाद से आये योगेन्द्र सिंह यादव और तारिक शफीक बैठे
लखनऊ, 6 जुलाई 2013। देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिये चल रहे तमाम आंदोलनों के अम्ब्रेला संगठन कोर्डिनेशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (सीडीआरओ) और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) खालिद मुजाहिद के न्याय के लिये चल रहे रिहाई मंच के अनिश्चित कालीन धरने के 46 वें दिन समर्थन में आये। आज उपवास पर फर्रुखाबाद से आये योगेन्द्र सिंह यादव और तारिक शफीक बैठे।
रामपुर सीआरपीएफ कैम्प पर हुये कथित आतंकी हमले के आरोप में फँसाये गये कुंडा के कौसर फारुकी के भाई अनवर फारुकी ने कहा कि हम पिछले पाँच साल से ज्यादा समय से अपने बेगुनाह भाई का मुकदमा लड़ रहे हैं। सरकार ने वादा किया था कि वो आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों को रिहा करेगी पर अब तक नहीं किया। हमने बार-बार कहा कि बहुत सारे मानवाधिकार संगठन रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमले की बात को झूठा कहते हैं और साबित करते हैं कि वहाँ पर सीआरपीएफ के जवानों ने शराब के नशे में धुत होकर आपस में गोली बारी की, हमने रिहाई मंच के इस धरने से दो बार मुख्यमन्त्री को ज्ञापन भी भेजा कि वो रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुये कथित आतंकी हमले की सीबीआई जाँच करवाए पर जाँच की तो बात दूर छोड़िये प्रदेश के मुख्यमन्त्री को सपरिवार अमेरिका घूमने से फुरसत मिल तो वो हम मजलूमों की कोई बात सुनें। यह बहुत शर्म की बात है कि हम न्याय के वास्ते 46 दिनों तक गर्मी की धूप से बरसात आ गयी है और धरने पर बैठे हैं और सरकार कोई जवाब नहीं दे पा रही है।
दिल्ली से आये पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के नेता गौतम नवलखाने कहा कि मौलाना खालिद जैसे बेगुनाह मुस्लिम युवकों की हत्या से साफ हो गया है कि इस देश में वास्तविक जनतन्त्र नहीं है। हमारे जनतन्त्र में जनसंहार करने वाले मोदी को स्थान प्राप्त है। मनवधिकार संगठनों ने जोर दिया कि इशरत जहां प्रकरण फर्जी है और वह बेनकाब हुआ। हजारों लोगों को देश की सुरक्षा के नाम पर फर्जी मुठभेड़ में मारा गया है। आईबी के स्पेशल डायरेक्टर राजेन्द्र कुमार ने इशरत की हत्या करवाई। आईबी के अंदर आरएसएस की घुसपैठ है। बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद, शिव सेना ने दंगे करवाये। लेकिन देश की साम्प्रदायिक सद्भाव को नेस्तानाबूद करने वाले इन राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। प्रतिबंधित संगठनों के लोग ही नहीं बल्कि उनके परिवार वालों को भी अनलॉफुल एक्टीविटीज प्रिवेंशन एक्ट की धारा 39 के तहत कार्यवाही की गयी जिसमें दस वर्ष की सजा का प्रावधान है। हम संगठनों के प्रतिबन्ध की राजनीति के खिलाफ हैं। क्योंकि डेमोक्रेसी में अगर आप अपनी बात नहीं रख सकते तो उसे लोकतन्त्र नहीं फासीवाद कहेंगे।
प्रतिबन्ध के नाम पर संगठनों के साहित्य प्रतिबंधित साहित्य बन जाता है, सिमी को 2001 में प्रतिबंधित किया गया, जबकि उसके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं था और जिन लोगों ने यह प्रतिबन्ध लगाया उनको हमने 2002 गुजरात में जनसंहार करते हुये देखा। हम उनके खिलाफ सच्चाई को साथ लेकर लड़ते हैं। यदि प्रतिबन्ध की राजनीति हो रही है तो आखिर क्यों नहीं आरएसएस, बजरंग दल को प्रतिबंधित करते हैं, जिनके खिलाफ सूबूतों के पहाड़ हैं। कश्मरी अलगाववादियों और माओवादियों की हत्याएं की जा रही हैं, पूरा शासक वर्ग उनके खिलाफ एक जुट हो गया है। पुणे की यर्वदा जेल में कतील की हत्या करावाई गयी थी। नक्सलवादी हक के लिये संघर्ष में उतरे हुये हैं। अफजल को फाँसी देकर हत्या की गयी। अफजल की फाँसी के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर उतरी महिलाओं के साथ गलत हरकतें हुयीं और वह भी पुलिस की सरपरस्ती में। पुलिस लोगों की रक्षक नहीं है।
गौतम नवलखा ने कहा कि हम प्रतिबन्ध की राजनीति के खिलाफ हैं। हम माओवादियों पर भी प्रतिबन्ध के खिलाफ हैं। 1991 में कश्मीर में औरतों के साथ बलात्कार किया गया। अब 20 साल बाद अदालत ने संज्ञान में लिया। 20-20 साल तक न्याय न देकर राज्य लोगों को बंदूक उठाने पर मजबूर कर रहा है। विदेशी पूँजी निवेश के लिये फौज का इस्तेमालहुआ है। पास्को में तो माओवादी नहीं बल्कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी का आंदोलन है फिर भी आंदोलनकारियों पर दमन चक्र जारी है। संघर्ष का रास्ता हम नहीं छोड़ सकते। रिहाई मंच के आंदोलन समेत देश में जो भी आंदोलन चल रहे हैं वो देश को असली आजादी दिलाने का काम करेंगे। रिहाई मंच के संघर्ष की आवाज दूसरे राज्यों में भी है।मक्का मस्जिद धमाकों के मामले में 43 लोगों को पकड़ा गया जो निर्दोष थे और इसमें इस धमाके को कराने समेत निर्दोष मुस्लिम नौजवानों की गिरफ्तारी में आईबी का हाथ था।हेमंत करकरे ईमानदार अफसर थे उनको मार दिया गया। समझौता एक्सप्रेस आतंकी वारदात में आरएसएस का हाथ था। रिहाई मंच से सीख लेकर अन्य प्रदेशों में भी आंदोलन शुरु हुये हैं। कश्मीर में सेना पीछे हटने को तैयार नहीं है, यही स्थिति खनिजों से भरपूर राज्यों की भी है। न्यायालय भी हुक्मरानों का साथ देते हैं, और निर्दोषों को कभी बिना किसी सूबूते सजा हो जाती है तो कभी जनता की भावना को संतुष्ट करने लिये किसी को फाँसी पर चढ़ा देती है। यह व्यवस्था बताये कि उसके इस लोकतन्त्र में मुसलमानों, आदिवासियों, दलितों के लिये सिवाए जनसंहार के और क्या है?
धरने के समर्थन के दिल्ली से आये कोर्डिनेशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (सीडीआरओ) के नेता आशीष गुप्ता ने कहा कि खालिद की मौत के बाद जिस तरीके से यह इस आंदोलन ने सरकारों की मुस्लिम विरोधी नीतियों पर सवाल उठाया है उससे यह सवाल साफ हो गया है कि यह लड़ाई सिर्फ न्यायालय परिसरों तक सीमित नहीं है बल्कि इसको बिना व्यापक जनता की भागीदारी के लड़ा नहीं जा सकता। जिस तरीके से मौलाना खालिद की हत्या के फोटो ग्राफ्स देखकर यह साफ हो रहा है कि उनकी हत्या की गयी है वैसे में यूपी के मुख्यमन्त्री का यह कहना कि खालिद की मौत बीमारी से हुयी बहुत शर्मनाक बात है। हमें मालूम चला है कि खालिद की मौत पर उठ रहे सवालों और आरडी निमेष आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई न करने के लिये जिस तरीके से सपा सरकार मानसून सत्र नहीं बुला रही है वो लोकतन्त्र पर जनता द्वारा चुनी हुयी सरकार द्वारा हमला है, ऐसे में इस लड़ाई को हमें हर हाल में जीतना ही होगा। सरकार जिस तरीके से मानसून सत्र नहीं बुला रही है उसमें भी रिहाई मंच के आंदोलन की जीत और दबाव है कि सरकार आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई के आंदोलन से किस तरह भयभीत है।
धरने को सम्बोधित करते हुये वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि सरकार ने राजा भैयाको बचाया, जेल से निकालकर मन्त्री बना दिया लेकिन खालिद मुजाहिद को मौत की नींद सुला दिया। आंदोलनकारी सरकार पर दबाव बढ़ायें कि सरकार मानसून सत्र जल्दी बुलाये और खालिद की हत्या पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें। रिहाई मंच के धरने ने खालिद मुजाहिद की हत्या को राष्ट्रीय सवाल बना दिया है और इसके साथ ही पूरा तन्त्र बेनकाब हो गया है।
धरने का संचालन अनिल आजमी ने किया। धरने में रिहाई मंच के अध्यक्ष मो0 शुऐब, एपवा की ताहिरा हसन, केके वत्स, डा0 अली अहमद कासमी, तारिक शफीक, सोशलिस्ट पार्टी मो0 आफाक, शुऐब, आदियोग, योगेन्द्र सिंह यादव, वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह, रामकृष्ण, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडे, कुंडा आये अनवर फारुकी, जैद अहमद फारुकी, एफ मुसन्ना, अजीम, वर्तिका शिवहरे, प्रदीप कपूर, प्रबुद्ध गौतम, पीस पार्टी के रिजवान अहमद, सलीम खान, हाजी फहीम सिद्दीकी, इनामुर्रहमान, दावर इकबाल, मो0 साजिद, अमित मिश्रा, मौलाना कमर सीतापुरी, जुबैर जौनपुरी, डा0 अली अहमद, सोशलिस्ट पार्टी के इमरान सिद्दीकी, फहीम सिद्दीकी, राशिद खान, शमीम, सऊद अहमद, सुहैल अहमद, अज्जू, मो0 अमीर, खुर्शीद अहमद, अहमर शफीक, शाहनवाज आलम और राजीव यादव शामिल रहे।
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