कारपोरेट जनसंहार संस्कृति की आध्यात्मिकता ही कारपोरेट हिंदुत्व है!
पलाश विश्वास
कारपोरेट जनसंहार संस्कृतिकी आध्यात्मिकता ही कारपोरेट हिंदुत्व है!इस हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं गिरती विकास दर, वृद्धिमान राजकोषीय घाटा और बढ़ती मुद्रास्फीति, विकराल होते भुगतान संतुलन के मध्य दुनियाभर में साम्राज्य विस्तार करता कारपोरेट इंडिया, भारत और अमेरिका तक के राजकाज में हावी खास लोग, तमाम संत, प्रवचक, योगी और संघ परिवार समेत तमाम राजनेता जिनमें जैसे वामपंथी और माओवादी हैं, वैसे ही समाजवादी और अंबेडकरवादी भी। गंगासागर और महाकुंभ में देश के कोने कोने से जीवनभर का पाप दोकर पुण्य कमाने आने वाले लोग नहीं। उनके इहजीवन में प्राप्ति का खाता कोरा ही है, वे परलोक सुधारने आकते हैं और थोक दरों पर परलोक सिधारने के लिए ही नियतिबद्ध हैं और मजे की बात है कि इसमें सभी जातियों के लोग हैं, जो मनुस्मृति व्यवस्था के बावजूद, लोकतंत्र की अनुपस्थिति के बावजूद सहअस्तित्व के भागीदार हैं और उनमें वैसे ही कोई बैर नहीं है , जैसे बाकी धर्मों के अनुयायियों में।वे सारे लोग वंचित हैं और तमाम पार्टियां और विचारधाराएं उन्हें कारपोरेट हिंदुत्व के हित में कारपोरेट आध्यात्मिकता के आवाहन से एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करके अपना अपना सत्ता समीकरण साधती हैं, जिस सत्ता में अंततः उनकी कोई भागेदारी नहीं होती। जब नीति निर्धारण और राजकाज ही कारपोरेट हो, धर्म भी कारपोरेट हो तो ऐसे मैंगो लोगों की हिस्सेदारी और उनके समावेशी विकास की बातें चुनावी तो हो सकती है, सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति नहीं।घृणा अभियान में जैसे सत्ता वर्ग के लोग पारंगत हैं , वैसी ही दक्ष हैं पहचान की राजनीति और आंदोलन करनेवाले लोग। यहां एक अफजल गुरु और एक कसाब को सत्ता समीकरण के मुताबिक गुपचुप फांसी पर चढ़ाया जाता है, तो दूसरे और भी संगीन अपराधों को अजाम देने वाले लोग अपराध साबित होने के बावजूद छुट्टे घूमते हैं। फांसी की सजा भी हो जाती है तो बिना मोहरा बनाये उन्हें फांसी नहीं दी जाती। यहां ओवैसी और तोगड़िया और आशीष नंदी के लिए कानून के राज में अलग अलग कानून है।किसी का कहा घृणा अभियान मान लिया जाता है तो कोई घृमा का कारोबार में ्रबपति हो तो भी उनकी वाक् स्वतंत्रता के लिए देश की समुची मेधा लग जाती है।
इसी कारपोरेट हिंदुत्व की ही महिमा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का करीब एक दशक से जारी बहिष्कार समाप्त करने के बाद यूरोपीय संघ के सांसदों ने उन्हें नवंबर में ब्रुसेल्स में यूरोपीय संसद में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है। यह जानकारी उनके ब्लाग से मिली है।मोदी के ब्लाग पर लिखा गया है कि सांसदों ने मोदी को इस वर्ष नवंबर में ब्रसेल्स में यूरोपीय संसद में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है। संसद में 27 से अधिक देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। इसके साथ ही इस वर्ष बाद में यूरोपीय कारोबारी बैठक में भी हिस्सा लेने का निमंत्रण है।ब्लाग के अनुसार, मुख्यमंत्री की कल यूरोपीय सांसदों से आनलाइन चर्चा हुई, जो बेंगलूर में 10वें भारत कारपोरेट संस्कृति और अध्यात्मिकता सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। सांसदों ने गुजरात के विकास की सराहना की और राज्य को सशक्त बनाने के लिए मोदी को बधाई दी।
हिंदी इन डॉट कॉम' ने पाठकों से सवाल पूछा था क्या 'मोदीनॉमिक्स' देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकती है?
इस सवाल के जवाब में 87फीसदी पाठकों ने जवाब दिया, हां मोदीनॉमिक्स हमारे देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकती है। वहीं 5 प्रतिशत पाठकों का मानना है कि मोदी देश को विकास के पथ पर आगे नहीं ले जा पाएंगे। दूसरी तरफ 8 प्रतिशत पाठक इस पर अपनी राय नहीं बना पाए।
आम भारतीय जनों की आस्था से इस हिंदुत्व का कोई संबंध नहीं है जो एक साथ सांप्रदायिक, कारपोरेट, वर्चस्ववादी और जायनवादी है। आखिर हिंदुत्व के मुताबिक मनुस्मृति व्यवस्था के आधीन अनुसूचित, पिछड़े और दूसरे तमाम लोग भी हिंदू है, जो समाज जीवन में अस्पृश्यता के शिकार हैं और आरक्षण के बावजूद समता, सामाजिक न्याय और नागरिक मानव अधिकारों से वंचित हैं, अर्थव्वस्था से बहिस्कृत है और कारपोरेट इंडिया में कहीं नहीं है। वे तमाम लोग अपने भौतिक सशक्तीकरण के किसी आंदोलन में नहीं है। उन्हें पहचान की राजनीति में फंसाकर मुक्त बाजार में जल जंगल आजीविका से वंचित कर मार दिये जाने के लिे चुना गया है। उनमें से ज्यादातर की इस लोकतंत्र में कोई आवाज नहीं है और न ही प्रतिनिधित्व।अधिकारों के बिना हिंदुत्व ही उनकी आस्था है और पहचान है। जाति व्यवस्था की परंपराओं और रूढ़ियों का निर्वाह करते हुए वे अपने हिंदुत्व के लिए मरने, मिटने और मारने के लिए तैयार हैं।यही स्थिति कारपोरेट ग्लोबल जायनवादी हिंदुत्व के हितों के सर्वथा अनुकूल है। इसी स्थिति के मुताबिक पिछड़ों ने सत्ता में हिस्सेदारी के सिवाय कुछ नहीं मांगा और उनकी जनसंख्या ही ग्लोबल हिदुत्व की सबसे बड़ी ताकत बनी हुई है। इसी वजह से सत्ता में भागेदारी के बिना बंगाल में सच्चर कमेटी के आने के बाद और परिवर्तन के बावजूद जैसे मुसलमान सत्ता के मोहरे बने हुए हैं, वैसे ही पिछड़ों और अनुसूचित को किसी समाजशास्त्री आशीष नंदी ने क्या कहा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वे पूरे देश में हिंदुत्व की पैदल सेना है। संतों, महापुरुषों और मुक्ति आंदोलन के मसीहाओं का नाम जाप करते हुए उनकी जाति पहचान के आधार पर अलग अलग कारपोरेट दुकानें चलती है। इस बहुजन समाज की चूंकि अपनी कोई आवाज नहीं है, तो तमाम आवाजें इन्ही दुकानों से बुलंद होती हैं। जाहिर है, जो इलाहाबाद के कुंभ मेले में सुरक्षा के बहाने पुलिसिया लाठीचार्ज से मची भगदड़ में मारे गये , वे हिंदू तो हैं, पर ग्लोबल हिंदुत्व से जुड़े सत्तावर्ग में शामिल नहीं हैं वरना इस तरह वे बेमौत मारे नहीं जाते।इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर रविवार रात को हुई भगदड़ में मारे गए लोगों की संख्या बढ़कर 36 हो गई है। इस बीच रेलवे प्रशासन शहर में मौजूद 3 करोड़ कुंभ श्रद्धालुओं की भीड़ से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है। रेलवे स्टेशन और स्थानीय अस्पतालों में घायल हुए 39 लोगों का इलाज चल रहा है। उत्तर मध्य रेल क्षेत्र के महाप्रबंधक आलोक जौहरी ने कहा, 'श्रद्धालुओं के वापस लौटने के बाद जांच शुरू की जाएगी।' कल शाम इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म संख्या 5 और 6 पर भगदड़ मच गई थी।
हिंदुत्व एक अर्थ व्यवस्था है, जैसी मनुस्मृति और जातिव्यवस्था की भी अपनी वर्चस्ववादी अर्थ व्यवस्था है और उसीतरह आजादी के आंदोलन और पहचान की राजनीति की भी एक अर्थ व्यवस्था है, जहां समता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के लिए को ई गुंजाइश नहीं है।
भारत के सबसे ज्यादा प्रबुद्ध लोग सत्ता वर्ग से ही संबद्ध है और जीवन के विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों में अनुसूचित , आदिवासी या पिछड़े नहीं मिलेंगे। होंगे तो गुप्त जातीय पहचान के साथ जैसे, आनंदबाजार पत्रिका ने अगर खुलासा नहीं किया होता तो हम कभी नहीं जान पाते कि आशीष नंदी और प्रीतीश नंदी जाति से तेली या शंखकार हैं, ओबीसी। जैसा हम समजते थे, कायस्थ या बैद्य नहीं। जाति पहचान की गोपनीयता के आधार पर ही सम्मान, हैसियत और वजूद कायम है, इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में वे अपने वर्ग के हितों में कोई बात नहीं कर पाते , मौका होने के बावजूद। बल्कि शासक तबके के हित में कहना उनकी सुरक्षा की गारंटी होती है।आसीष नंदी कोई हमारी तरह मूरख तो हैं नहीं कि बिना सोचे समझे जयपुर जैसे कारपोरेट आयोजन में कुछ भी बक दिया, जो उन्हें उनकी विशिष्ट शैली की मान्यता के बावजूद विवादास्पद बना दें। हम यह नहीं मानते कि उन्होंने अनुसूचितों और पिछड़ों के खिलाफ कोई घृणा अभियान के मकसद से कुछ कहा है। हम भी मानते हैं कि उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली में सामाजिक यथार्थ को अभिव्यक्ति दी है। ऐसा नहीं होता तो बंगाल का सत्ता वर्ग अपना राज कायम रखने के लिए हठात् उन्हें तेली घोषित नहीं करता। अगर भ्रष्टाचार संबांधी आरोप को हटा दिया जाये तो उन्होंने स्वत्ंत्र भारत के इतिहास में सबसे बड़े सच का भंडाफोड़ किया है,जिससे बंगाल का सत्तावर्ग बुरी तरह फंस गया है।हम यह क्यों नहीं मान लेते कि बंगाल केअनुसूचितों और पिछड़ों की हालत बताने के लिए ही उन्होंने सनसनीखेज मीडियाउछालु जुमले का इस्तेमाल करके बंगाल में अनुसूचितों और पिछड़ों को सौ साल में सत्ता में हिस्सेदारी न होने के कारण भ्रष्टाचाकर मुक्त बता दिया। इस विवाद की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वाक्रुद्ध हो गये देश के नामी गिरामी समाजशास्त्री। वरना हम उनसे पूछ सकते थे कि जब बंगाल में सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे को एक से बढ़कर एक भ्रष्ट साबित करने में लगे हों तो क्या वे बंगाल के बारे में अपने आकलन पर क्या पुनर्विचार करेंगे!बंगाल में सत्ता की लड़ाई इतनी तेज हो गयी है कि मानवाधिकार संस्था दधीचि से अंतर्राष्ट्रीय क्याति की लेखिका और मानवाधिकार कर्मी महाश्वेता देवी का अध्यक्षपद खारिज हो गया।कृपया याद करें कि कैसे खचाखच भरे नीले गुलाबी झंडों वाले पंडाल में महाश्वेता देवी के भाषण के साथ जयपुर में साहित्य के कुंभ का आगाज हुआ!
कृपया याद करें कि "हर व्यक्ति, चाहे वह नक्सलवादी ही क्यों न हो, उसे सपने देखने का अधिकार होना चाहिए और यह मूलभूत अधिकार बनाया जाना चाहिए. और मानव को सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए।" कलम की महारथी महाश्वेता देवी के यह कहते ही कि पंडाल तालियों से गूंज उठा। पहला प्रेम और बच्ची के प्रति माता पिता की चिंता, इन विषयों का जिक्र करते हुए महाश्वेता देवी ने अपने भाषण 'ओ टू लिव अगेन' में कहा, "कोई नहीं जानता था कि मैं ऐसी बनूंगी जैसी मैं आज हूं। मैं नब्बे के घर में हूं और मेरी उम्र में फिर से जीने का सपना देखना एक मजाक से कम नहीं। ताकत खत्म होने का मतलब रुक जाना कतई नहीं होता बस गति थोड़ी सी कम हो जाती है।"
इस साल समारोह में 'साहित्य में बुद्ध' इस मुद्दे पर चर्चाएं होनी थी। उद्घाटन भाषण में राजस्थान की राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने महिलाओं पर होने वाली हिंसा और जातीय हिंसा के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि‚ "हिंसा का अंत अपराधियों और दोषियों को सजा देने से नहीं हो सकता। उसके लिए व्यक्ति में परिवर्तन होना चाहिए और यह आध्यात्म के जरिए ही हो सकता है।"
कार्यक्रम की शुरुआत बौद्ध मंत्रोच्चार के साथ हुई। इसके बाद रंग बिरंगी राजस्थानी पोशाकों में सजे नाथू सिंह और साथियों ने नगाड़ों के साथ कार्यक्रम में चार चांद लगाए। इस समूह की खास बात थी देसी पोशाकों में नगाड़े बजाते विदेशी। इनमें एक आयरिश महिला कलाकार किम ने बताया, "पुष्कर में नाथू से मुलाकात हुई और उन्होंने हमसे इस समारोह में शामिल होने का आग्रह किया. हम यहां आ गए।"
इसी सिलसिले में विनम्र प्रश्न है कि क्या कश्मीर में भारतीय लोकतंत्र चलाने वाले वहां के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की कोई वाक् स्वतंत्रता होनी चाहिए या नहीं!या उन्हें भी ओवैसी बना दिया जाये क्योंकि वे अपने राज्य की जनता की भावनाओं को अभिव्यक्ति दे दी है।गोरखालैंड अलग राज्य यातेलंगना अलग राज्य या विदर्भ अलग राज्य की मांगे उठाने वाले लोग मुक्यधारा के लोगों के लिए खलनायक होंगे ही। पहचचान और अस्मिता के आंदोलन इसी लोकतांत्रिक प्रमाली के अंग हैं। संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचियों के तहत आदिवासियों की स्वायत्तता का अधिकार संविधान में स्वीकृत है। अब बंगाल के जंगल महल में झारखंड मुक्ति मोर्चा स्वायत्ताता की मांग उठा रहे हैं। गोरखा
और लेप्चा परिषद की माग मान लेने वाले बंगाल के सत्तावर्ग को जंगल महल की स्वायत्तता की मांग करने वाले आदिवासी उग्रवादी नजर आये तो इस लोकतंत्र का क्या कीजिये!
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के रहमान खान ने सोमवार को पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार पर अल्पसंख्यक विकास की केंद्रीय राशि के दुरुपयोग का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अल्पसंख्यकों के विकास में दिलचस्पी नहीं ले रही है।
रहमान खान ने कहा, 'हमने बंगाल में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए सहायता और राशि दी है। हमने अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों की शिक्षा के लिये राशि मुहैया कराई।'
उन्होंने कहा, 'लेकिन वे इस राशि का क्या कर रहे हैं? वे बोरिंग और शौचालय बना रहे हैं। अल्पसंख्यकों के विकास में उनकी दिलचस्पी नहीं है।' मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत विकास की गई परियोजनाओं को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे वे राज्य सरकार की परियोजनाएं हैं।
शहर विकास राज्य मंत्री दीपा दासमुंशी ने भी कहा कि राज्य सरकार को अल्पसंख्यक विकास के लिए केंद्रीय राशि के खर्च पर सफाई देनी चाहिए। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि ममता बनर्जी विकास कार्यों की जगह खुद के प्रचार पर अधिक ध्यान दे रही हैं।
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बुधवार को ममता बनर्जी की ईमानदारी पर सवाल उठाया जिसपर तृणमूल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उनसे माफी मांगने को कहा.
भट्टाचार्य से मंगलवार रात एक बांग्ला न्यूज चैनल ने पूछा कि क्या वह इस लोकप्रिय अवधारणा से सहमत हैं कि ममता बनर्जी ईमानदार हैं, उन्होंने कहा, 'मैं इस अवधारणा से सहमत नहीं हूं कि वह ईमानदार हैं.' जब पूर्व मुख्यमंत्री से अपनी बात को और स्पष्ट करने को कहा गया तो उन्होंने खबरिया चैनल से स्वयं जांच कर लेने को कहा.
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि भट्टाचार्य का बयान बिल्कुल अनुचित है. तृणमूल नेता एवं नगर निकाय मंत्री फिरहाद हकीम ने पार्टी मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा, 'उन्होंने जो कुछ कहा, वह बिल्कुल अनुचित है, राज्य और उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र (जादवपुर) की जनता ने भट्टाचार्य को नकार दिया है. हम मांग करते हैं कि वह उस व्यक्ति के बारे में अपने बयान को लेकर अफसोस जताएं एवं माफी मांगे जिसने जिंदगीभर जनता की सेवा में निस्वार्थ त्याग किया. उनकी (ममता) ईमानदारी पर कोई सवाल उठा नहीं सकता.'
जब उनसे पूछा गया कि क्या तृणमूल कांग्रेस अदालत जाएगी, तब उन्होंने कहा, 'हम इसे जनता पर छोड़ते हैं. तृणमूल कांग्रेस एक पारदर्शी दल है.'
बुद्धदेव के बाद दीपा दासमुंशी ने ममता की ईमानदारी पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ''ईमानदारी का प्रतीक'' लिख देने से कोई ईमानदार नहीं होता.
केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस नेता दीपा दासमुंशी ने सोमवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा कि सिर्फ किसी व्यक्ति के कटआउटों के नीचे ''ईमानदारी का प्रतीक'' लिख देने से कोई व्यक्ति ईमानदार नहीं हो जाता.
दीपा ने शहर में विभिन्न स्थानों पर लगे मुख्यमंत्री के विशेषण युक्त आदमकद कटआउटों के संदर्भ में कहा कि बंगाल में बहुत से मुख्यमंत्री रहे हैं. लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने तस्वीरों के नीचे ''ईमानदारी का प्रतीक'' नहीं लिखा.
यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दीपा ने कहा कि इसलिए सवाल उठता है कि क्या वह (मुख्यमंत्री) सचमुच ईमानदारी की प्रतीक हैं और वह यह क्यों लिख रही हैं. इस बात का सबूत कहां है कि तस्वीर के नीचे जो लिखा है, वह सच है.
दीपा की इस टिप्पणी से पहले पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी ममता बनर्जी की ईमानदारी पर यह कहकर सवाल उठाए थे कि वह ''इस मत से सहमत नहीं हैं कि वह (ममता) ईमानदार हैं.''
इस पर तृणमूल कांग्रेस ने भट्टाचार्य को कानूनी नोटिस दिया था.
दीपा ने कहा कि हम ईमानदारी या बेईमानी के विवाद में नहीं पड़ रहे. हम जिसे लेकर चिंतित हैं, वह है बंगाल की स्थिति. राज्य में कोई स्पष्ट भूमि नीति और औद्योगिक नीति नहीं है.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार राज्य के विकास के गंभीर मुद्दों को दूर रख सिर्फ उत्सव और कार्यक्रमों में व्यस्त है.
दीपा ने विपक्षी राजनीतिज्ञों के खिलाफ कथित आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने के लिए भी मुख्यमंत्री और अन्य तृणमूल कांग्रेस नेताओं पर भी हमला बोला.
उन्होंने कहा कि वे किस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं ? इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर बांग्ला भाषा के साथ खिलवाड़ मत कीजिए. हम इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करते. क्या सरकार के लोगों के लिए नया शब्दकोश बनाने की जरूरत है.
भांगोर (पश्चिम बंगाल)। मुख्यमंत्री
ममता बनर्जी ने पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य द्वारा उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाए जाने के बाद सोमवार को यह कहकर जवाबी हमला किया कि कभी वाम मोर्चा शासन 'भ्रष्टाचार का पहाड़' था।
ममता ने यहां गरीबों और अल्पसंख्यकों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि बहुत-सी फाइलें गायब हैं। ढाई लाख करोड़ रुपए का कर्ज लेने वाली पूर्व सरकार भ्रष्टाचार का पहाड़ थी। धन कहां चला गया?
मुख्यमंत्री ने कहा कि वे (माकपा) साजिश रच रहे हैं और अफवाह फैला रहे हैं क्योंकि वे सत्ता से बाहर होने के कारण बेचैन हैं। मैं आपसे अफवाहों पर भरोसा नहीं करने का आग्रह करती हूं।
यह दावा करते हुए कि वाम मोर्चा ने छह महीने में फिर से सत्ता में वापस आ जाने की बात सोची थी, ममता ने कहा कि वे विकास के मामले में मेरे से तुलना नहीं कर सकते, चाहे यह किसानों का मामला हो या फिर मुसलमानों, उद्योग, अनुसूचित जाति, जनजाति तथा आम आदमी का मामला हो।
उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार की उपलब्धियां रामायण और महाभारत को पूरा करने के लिए पर्याप्त होंगी।
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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha
হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!
मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड
Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!
हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।
In conversation with Palash Biswas
Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg
Save the Universities!
RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!
जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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