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Saturday, February 2, 2013

सलमान रश्दी और तसलिमा नसरीन के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने वाले लोग, ममता बनर्जी और बुद्धदेव भट्टाचार्य,बंगाली सुशील समाज आशीष नंदी के विस्फोटक मंतव्य पर एकदम खामोश हैं। क्यों?

सलमान रश्दी और तसलिमा नसरीन के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने वाले लोग, ममता बनर्जी और बुद्धदेव भट्टाचार्य,बंगाली सुशील समाज आशीष नंदी के विस्फोटक मंतव्य पर एकदम खामोश हैं। क्यों?

पलाश विश्वास

बंगाल की  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सलमान रश्दी को बंगाल आने से रोक दिया है, पक्ष विपक्ष में महाभारत शुरु हो गया है। इससे पहले तसलिमा नसरीन को रातोंरात कोलकाता से जयपुर पैक करके भेज दिया गया। तब वामराज के मुख्यमंत्री थे बुद्धदेव भट्टाचार्य।वह बहस अभी जारी है। लेकिन पूरे देश में विख्यात समाज शास्त्री आशीष के बयान पर विवाद के बावजूद पक्ष विपक्ष एकदम खामोश है।सलमान रश्दी और तसलिमा नसरीन के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने वाले लोग, ममता बनर्जी और बुद्धदेव भट्टाचार्य,बंगाली सुशील समाज आशीष नंदी के विस्फोटक मंतव्य पर एकदम खामोश हैं। क्यों? अभी अभी केंद्र सरकार ने दिल्ली बलात्कार कांड के परिप्रेक्ष्य में युवा आक्रोश का सम्मान करते हुए बलात्कार को खत्म करने के लिए वरमा कमीशन की सिफारेशों को दरकिनार करते हुए अध्यादेश लाने का ऐलान किया है। बलात्कार और यौन उत्पीड़न अब एकाकार है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के राष्ट्र के नाम संबोधन से इसका संकेत पहले ही मिल गया था। क्या इस अध्यादेश के आलोक में तसलिमा के उस बयान की भी जांच करायी जायेगी कि उनका ​​यौन शोषण हुआ बंगाल में, बांग्ला ही नहीं भारतीय साहित्य के एक पुरोधा के हाथों?महीनों बीत गये, साहित्य और संसकृति के क्षेत्र में यौन उत्पीड़न के खुलासे के बाद न मीडिया ने इसे तरजीह दी और न सरकार ने इस आरोप का​ ​संज्ञान लिया। पर तसलिमा से सहानुभूति जताने वाले लोग और खास तौर पर उनके उपन्यास लज्जा से हिंदुत्व की राजनीति में उनका उपयोग ​​करने वाले लोग यह जानने की कोशिक करते हुए भी नहीं देखे गये कि आखिर सच क्या है।कोलकाता का नागरिक समाज और सांस्कृतिक आइकन जहां तसलिमा या रस्दी के माले में बेहद संवेदनशील हैं, बाकी देश के बुद्धिजीवियों की ​​तरह वे अनुसूचितों और पिछड़ों के संदर्भ में कोई बात नहीं करते। महाश्वेता दी आदिवासियों के बारे में लंबी लड़ाई करती रही हैं। पर शरणार्थी समस्या या बंगाल में पिछड़ों और अनुसूचितों के हक हकूक के बारे में एक शब्द तक नहीं बोलतीं। कम से कम अपनी खास शैली में इस प्रसंग में बहस की गुंजाइश पैदा करने के लिए वंचितों को आशीष नंदी का आभार मानना चाहिए। उनकी गिरप्तारी की मांग करने के बजाय उनका सम्मान करना चाहिए।ये तमाम आदरणीय उत्तर भारत की मध्ययुगीन गायपट्टी के सामाजिक बदलाव आंदोलन के जरिये जात पांत को मजबूत करने के खिलाफ हैं। सत्ता वर्ग के सभी क्षेत्रों में वर्चस्ववादी एकाधिकार को वे जातिवादी नहीं मानते और न ही उन्हें देश में कहीं मनस्मृति व्यवस्था दीखती हैं।मायावती, लालू, राम विलास पासवान, शरद यादव, करुणानिधि, मुलायम सिंह यादव,उदित राज, शिबू सोरेन जैसे नामों से ही इन्हें सख्त नफरत है। हालांकि वे आर्थिक स्वतंत्रता के प्रगतिवाद के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।आर्थिक सुधारों के खिलाफ भी वे बोलते हैं। पर कारपोरेट राज, हिंदुत्व और वर्चस्ववाद के विरुद्ध पिछड़ों, अनुसूचितों और अल्पसंख्यकों ​​के हक हकूक की हिफाजत में बोलने से उन्हें सखत परहेज है। जलेस के पलटीमार बयानों में भी इसी मानसिकता की चामत्कारिक अभिवयक्ति हुई है।

अगर रश्दी और तसलिमा के लिखे से अल्पसंख्यकों की भावनाएं आहत होती​ हैं तो क्या बंगाल की आठ फीसद शासक जातियों के अलावा बाकी जनता की भावनाओं को आहत होने का अधिकार भी नहीं है। कान्यकुब्ज ब्गाह्मणों के वंशजों के राज में पक्ष विपक्ष बाकी शासित बानब्वे फीसद के हक हकूक की चर्चा तक की इजाजत नहीं है। वाक् स्वतंत्राता के नाम पर कुछ​​ भी कहना संभव है तो कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई होती है तो बाकी लोगों के खिलाफ क्यों नहीं। बंगाल से चारों वेदों के अध्येता एक उत्तरआधुनिक मीडिया विशेषज्ञ का कहना है कि चूंकि मजबूत किले पर हमला हुआ है, तो बेचैनी है।यह मजबूत किला कहां है? कितना पुराना है? और इस किले के रक्षक कौन हैं? ऐसी किलेबंदी होती तो इस देश के आदिवासी जल जंगल जमीन और आजीविका से निर्विरोध बेदखल नहीं किये जाते। ऐसी घनघोर किलेबंदी​ ​ होती तो केंद्र और राज्यों में अति अल्पसंखक खास जातियों का राज नहीं होता। भ्रष्टाचार के मामलों में गिनाने लायक नाम सिर्फ राजनीतिक संरक्षण से उत्पन्न मलाईदार तबके के चुनिंदा लोग ही नहीं होते। यह सही है कि मीडिया ने पूरी बात का खुलासा नहीं किया और सनसनीखेज टुकड़े पेश​​ किये। हम मायावती या राम विलास पासवान या पिछड़ों, अनुसूचितों और अल्पसंख्यकों के राजनेताओं में से किसी के समर्थक नहीं हैं और न ही​​ हम नंदी को उनके वक्तव्य के लिए सजा दिलाने के पक्षधर हैं। हम नंदी, रश्दी, तसलिमा और उनके साथ ही इरोम शर्मिला, सोनी सोरी, कबीर ​​कला केंद्र, उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच, कश्मीर और पूर्वोत्तर के मानवाधिकार आंदोलन के कार्यकर्ताओं और देश भर में अबाध पूजी प्रवाह के विरुद्ध, भूमि सुधार के हक में, परमाणु विध्वंस के खिलाफ लड़ते, बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन कर रहे कार्यकर्ताओं, भोपाल गैस त्रासदी और गुजरात नरसंहार सिखों के नरसंहार का न्याय मांगने वालों की वाक् स्वतंत्रता के भी पक्षधर हैं।

हम तो बाकायदा  आशीष नंदी के कहे पर बहस चलाने की बात कर रहे हैं। पर मीडिया में नंदी की वाक् स्वतंत्रता का महिमामंडन तो है लेकिन ​लोकतांत्रिक समाज में प्रतिपक्ष के विचारों को समान महत्व देने की जो अवधारणा है, उसके मुताबिक हमारी बात कहने की कोई जगह नहीं है। आशीष नंदी की हैसियत से और उनकी बहस शैली में पारंगता से कोई इंकार नहीं है। उन्होंने बहस के लिए गौरतलब मुद्दे उठाये हैं, उनपर चर्चा जरुर होनी​​ चाहिेए। भ्रष्टचार में भी जाति की गिनती जरुर हो , हम तो सिर्फ जाति आधारित जनगणना की बात कर रहे हैं।जो संसद में सर्वदलीय सर्वानुमति के बवजूद हुई नहीं है। अगर जनसंख्या अनुपात न मालूम हो तो गणित के हिसाब से भ्रष्टाचार का बिवादित समीकरण हल कैसे कर लिया जायेगा? उनके जैसे समाजशास्त्री अगर कहते हैं कि बंगाल में पिछले सौ साल ​​से पिछड़ों और अनुसूचितों को सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिली , इसलिए बंगाल में भ्रष्टाचार सबसे कम है, तो इस पर सवाल कैसे उठाये जा सकते हैं इसी फार्मुले को बाकी देश में बी अपनाया जाना चाहिए। बंगाल में तर्क यह है कि जब आर्थिक विकास में बंगाल के अनुसूचित और पिछड़े बाकी देश से आगे हैं तो राजनीतिक हिस्सेदारी की जरुरत ही क्या​ ​ हैय़ हम तो उन्हींके तर्क के आधार पर कहते हैं कि आप जरा सुप्रीम​​ कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में सच्चर आयोग की तरह एक और आयोग गढ़ दें जो पता करें कि बंगाल में किसकिसका कितना विकास हुआ और किस किस का नहीं हुआ।ऐसे सर्वे से बंगाल में जंगल महल और पहाड़ की असली समस्या के बारे में खुलासा हो जायेगा और हम जैसे ​​लोग मिथ्या भ्रम नहीं फैला पायेंगे। आयोग यह जांच करे कि बंगाल में ओबीसी जातियां कौन कौन सी हैं और उनका कितना विकास हुआ। अनुसूचितों और अल्पसंख्यकों का कितना विकास हुआ और बंगाल में बड़ी संख्या में रह रहे गैर बंगालियों का कितना विकास हुआ। सांच को आंच नहीं। हम सच उजागर होने पर अपना तमाम लिखा वापस ले लेंगे।​


गौरतलब है कि मशहूर लेखक सलमान रश्दी ने अपना कोलकाता दौरा रद करने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने ट्वीट किया है कि ममता बनर्जी के कारण उन्हें अपना दौरा रद करना पड़ा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर पुलिस ने उनसे कहा कि वह उन्हें संपूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाएगी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर ही पुलिस ने उन्हें रोका है। उनसे कहा गया कि कोलकाता आने पर उन्हें अगले ही विमान से वापस भेज दिया जाएगा।

झूठ बोल रहे आयोजक

रश्दी ने कोलकाता पुस्तक मेले के आयोजकों के उन्हें आमंत्रित नहीं करने के दावे को भी झूठा करार दिया। उन्होंने कहा कि उनके पास आमंत्रण के लिए भेजा गया ई-मेल और विमान का टिकट है। लिटररी मीट के आयोजक सच नहीं कह रहे हैं।

उधर बुकसेलर्स एंड पब्लिसर्स गिल्ड के सचिव त्रिदिव चटर्जी ने कहा कि रश्दी को गिल्ड की तरफ से आमंत्रित नहीं किया गया था। लिटररी मीट का आयोजन एक स्वतंत्र संस्था करती है।

महिला अधिकार समूहों ने रेप कानूनों पर केंद्र सरकार के अध्यादेश को खारिज करते हुए कहा है कि इसमें जस्टिस वर्मा आयोग की चुनिंदा सिफारिशों को ही शामिल किया गया है।

उन्होंने एक संयुक्त बयान में कहा कि सरकार ने पूरी तरह से पारदर्शिता की कमी बरती और हम राष्ट्रपति से आग्रह करते हैं कि वह ऐसे अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करें। इस समूह में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली वकील वृंदा ग्रोवर, जागोरी की सुनीता धर, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेन्स एसोसिएशन की कविता कृष्णन और पार्टनर्स फॉर लॉ एंड डेवलेपमेंट की मधु मेहरा शामिल थीं।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने शुक्रवार को महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कानून को सख्त बनाने और संशोधन के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी, जिसमें बेहद गंभीर मामलों में मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार और विवादास्पद आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) पर जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया है।

अध्यादेश में यौन अपराधों का सामना कर रहे राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी वर्मा आयोग की सिफारिश पर भी कुछ नहीं कया गया है। जस्टिस वर्मा आयोग ने सुझाव दिया था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना जाए, जो कि महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की प्रमुख मांगों में से एक है।

सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर वर्मा समिति की यह सिफारिश नामंजूर कर दी कि यदि सशस्त्र बल के जवान महिला के खिलाफ अपराध के आरोपी पाए जाते हैं, तो किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। लेकिन सरकार ने इस कानून को महिलान्मुखी बनाते हुए यह सुझाव दिया है कि यौन अपराध की पीड़ित का बयान केवल महिला पुलिस अधिकारी ही लेगी।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर सिफारिशों को शीघ्र लागू करने के प्रयास के तहत शुक्रवार रात को इस संबंध में एक अध्यादेश को मंजूरी दी। न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों पर आधारित और उससे भी आगे जाकर इस अध्यादेश में 'बलात्कार' शब्द के स्थान पर 'यौन हिंसा' रखने का प्रस्ताव है, ताकि उसके दायरे में महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के यौन अपराध शामिल हों।

इसमें महिलाओं का पीछा करने, दर्शनरति, तेजाब फेंकने, शब्दों से अश्लील बातें करने, अनुपयुक्त स्पर्श जैसे महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों के लिए सजा बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके दायरे में वैवाहिक बलात्कार को भी लाया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद के बजट सत्र से तीन सप्ताह पहले ही विशेष रूप से आयोजित अपनी बैठक में वर्मा समिति की सिफारिशों से आगे बढ़कर उस स्थिति के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया है, जहां बलात्कार की पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल की जेल की सजा होगी जिसे उसके प्राकृतिक जीवनावधि तक बढ़ाया जा सकता है या फिर मृत्युदंड दिया जा सकता है। अदालत अपने विवेक के आधार पर निर्णय करेगी।

साहित्यिक और फिल्म समुदाय आज विवादित लेखक सलमान रुश्दी के समर्थन में आ गया और उनका कोलकाता दौरा रद्द होने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित महाश्वेता देवी ने कहा कि यदि एक विश्व प्रसिद्ध लेखक कोलकाता नहीं आ पाता है तो यह वाकई काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कोलकाता हमेशा से हर किसी के लिए एक खुला शहर रहा है। इसने दुनिया भर के लेखकों का स्वागत किया है और उनकी मदद की है। इस तरह से इसमें एक अलग तरह की गहराई है, लेकिन अब जो कुछ भी हो रहा है वह काफी अजीबोगरीब है और मुझे इसमें कोई तर्क नजर नहीं आता।महाश्वेता देवी ने कहा कि राज्य सरकार को रश्दी को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए थी और शहर में उनके ठहरने का इंतजाम करना चाहिए था।

जाने-माने फिल्मकार मृणाल सेन ने कहा कि यह रश्दी से अन्याय है। जब मैं इस तरह की चीजें सुनता हूं तो काफी बुरा लगता है। दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजे जा चुके अभिनेता सौमित्र चटर्जी ने भी इसे 'दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण' करार देते हुए इस घटना की निंदा की।

साल 2007 में कोलकाता से निकाल दी गईं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि उस वक्त लोग चुप्पी साधे हुए थे और लेखकों के खिलाफ प्रदर्शन कोलकाता में एक परंपरा का रूप ले चुका है।


जगतविख्यात समाजशास्त्री आशीष नंदी ने जो कहा कि भारत में ओबीसी, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सशक्तीकरण​​ से ही भ्रष्टाचार बढ़ा, उसे लेकर विवाद अभी थमा नहीं। राजनीतिक आरक्षण से सत्ता की मलाई चाट रहे लोग सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं तो कारपोरेट भ्रष्टाचार और अबाध पूंजी प्रवाह, बायोमेट्रिक नागरिकता और गैरकानूनी डिजिटल आधार ककार्ड योजना के जरिये जल जंगल जमीन से इन लोगों की बोदखली के खिलाफ राजनीतिक संरक्षण के मसीहा खामोश हैं तो सिविल सोसाइटी का आंदोलन सिर्फ इसलिए है कि अश्वमेध की नरसंहार​ संस्कृति के लिए सर्वदलीय सहमति से संविधान, कानून और लोकतंत्र की हत्या के दरम्यान मुद्दों को भटकाने का काम हो। सिविल ​​सोसाइटी का आंदोलन आरक्षण विरोधी है तो कारपोरेट जयपुर साहित्य उत्सव को ही आरक्षण विरोधी मंच में तब्दील कर दिया आशीष​​ बाबू ने और इसे वाक् स्वतंत्रता बताकर सिविल सोसाइटी उनके मलाईदार विरोधियों की तरह ही मैदान में जम गये हैं। राजनीति को सत्ता समीकरण ही नजर आता है और अपने अपने समीकरण के मुताबिक लोग बोल रहे हैं। वाक् स्वतंत्रता तो समर्थ शासक वर्ग को ही है, बाकी लोगों की ​​स्वतंत्रता का नजारा या तो कश्मीर है या फिर मणिपुर और समूचा उत्तर पूर्व भारत , या फिर सलवा जुड़ुम की तरह रंग बिरंगे अभियानों के ​​तहत राष्ट्र के घोषित युद्ध में मारे जा रहे लोगों का युद्धस्थल दंडकारण्य या देश का कोई भी आदिवासी इलाका। वाक् स्वाधीनता का मतलब तो बारह साल से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के विरोध में आमरण अनशन पर बैठी इरोम शर्मिला या पुलिसियाजुल्म के खिलाफ एकदम अकेली लड़ रही सोनी सोरी से पूछा जाना चाहिए।​

सत्तावर्ग के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति ने अपनी अवधारणा के सबूत बतौर यह सच पहली बार कबूल किया वरना बंगाल में तो जाति उन्मूलन ​​का दावा करने से लोग अघाते ही नहीं है। गायपट्टी अभी मध्ययुग के सामंती व्यवस्था में जी रहा है और वहीं जात पाँत की राजनीति होती है, यही कहा जाता है। राजनीति में सत्ता में हिस्से दारी में जो मुखर हैं, उनके अलावा ओबीसी और अनुसूचित जातियों की बहुसंख्य जनता इस मुद्दे पर ​​खामोश हैं क्योंकि हजारों साल से अस्पृश्यता का दंश झेलने के बाद इस तरह के लांछन से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही वे किसीतरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ज उन्हें अपनी ओर से मलाईदार लोगों की तरह सफाई देने की जरुरत है। वे तो मारे जाने के लिए चुने हुए लोग हैं और उत्तर आधुनिक तकनीकें उनका बखूब सफाया कर रहे हैं। इन समुदायों में देश की ज्यादातर किसान जातियां हैं , जिनकी नैसर्गिक आजीविका खेती का सत्यानाश कर दिया गया, ऊपर से जल जंगल जमीन , नागरिकता और मानवाधिकार से उन्हें वंचित, बेदखल कर दिया जा रहा है। उनके सामने तीन ही​ विकल्प हैं: या तो निहत्था इस महाभारत में मारे जायें, अश्वमेध यज्ञ में परम भक्ति भाव से अपनी बलि चढ़ा दें, या आत्महत्या कर लें​  या अंततः प्रतिरोध करें। ऐसा ही हो रहा है। बंगाल में हमारे लिखे की कड़ी प्रतिक्रिया है रही है। कहा जा रहा है कि बंगाल में ओबीसी और अनुसूचित बाकी देश से आर्थिक रुप से ज्यादा संपन्न हैं तो उन्हें जात पाँत की राजनीति करके सत्ता में हिस्सेदारी क्यों चाहिए। कहा जा रहा है कि​ ​ भारत भर में बंगाली शरणार्थी महज पांच लाख हैं और उनमें से भी साठ फीसद सवर्ण। माध्यमों और आंकड़ों पर उन्हीका वर्चस्व है और कुछ भी कह सकते हैं। पर दबे हुए लोग भी बगावत करते हैं। परिवर्तन के बाद पहाड़ और जंगलमहल में अमन चैन लौटने के बड़े बड़े दावा किये जाते ​​रहे हैं। कल दार्जिलिंग में यह गुब्बारा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने ही फूट गया और लोग गोरखालैंड के नारे लगाने लगे। खतरा तो यह है कि जंगल महल में भी कभी भी ऐसा ही विस्फोट हो सकता है। राजनीतिक शतरंज बिछाकर अपने चहेते चेहरे नेतृत्व में लाकर समस्याओं का निदान नहीं होता।समस्याओं से नजर भले हट जाये, समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं।गौरतलब है कि जिन समुदायों के आर्थिक सशक्तीकरण का दावा किया जाता है, समस्याग्रस्त इलाकों में उन्हीकी आबादी ज्यादा है। यह ​​सर्वविदित है कि देशभर में आदिवासियों के पांचवीं अनुसूची और छठीं अनुसूची के तहत दिये जाने वाले अधिकारों से कैसे वंचित किया जाता​ ​ है।

इस सिलसिले में हमारा विनम्र निवेदन है कि जैसे सच्चर कमिटी की रपट से बंगाल में सत्ताइस फीसदी मुसलमानों की दुर्गति का खुलासा​ ​ हुआ और जनांदोलन में चाहे जिनका हाथ हो या चाहे जिनका नेतृत्व हो, इस वोट बैंक के बगावती तेवर के बिना बंगाल में परिवर्तन ​​असंभव था। पहाड़ और जंगल महल में आक्रोश के बिना भी बंगाल में न परिवर्तन होता और न मां माटी मानुष की सरकार बनतीष हम मान लेते हैं कि बंगाल में जाति उन्मूलन हो गया। यह भी मान लेते हैं कि मध्ययुग में जी रहे गायपट्टी की तरह बंगाल में किसी सामाजिक बदलाव की जरुरत ही नहीं रह गयी।सत्ता में भागेदारी के बिना सबका समान विकास हो गया और बाकी देश के मुकाबले बंगाल दूध का धुला है।


दीपा मेहता की फिल्म 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के प्रमोशन के लिए फेमस लेखक सलमान रश्दी कोलकाता नहीं आएंगे। सुरक्षा कारणों से उनकी यात्रा को रद्द कर दिया गया है।गौरतलब है कि रश्दी भारत की स्वाधीनता और देश विभाजन पर लिखी अपनी किताब 'मिडनाइट चिल्ड्रेन' पर बनी दीपा मेहता की फिल्म के प्रचार के सिलसिले में महानगर आने वाले थे। बुकर पुरस्कार से सम्मानित इस पुस्तक में बंगाल का भी उल्लेख है। फिल्म के प्रचार के लिए रश्दी पिछले कुछ दिनों से बिना किसी बाधा के दिल्ली, बंगलुरु और मुंबई का दौरा कर चुके हैं। कोलकाता में प्रचार का आखिरी चरण था। रश्दी पांच साल पहले कोलकाता आए थे। उस समय उनका कोई विरोध नहीं हुआ था।फिल्मकार दीपा मेहता का कहना है कि कोलकाता लिटरेरी मीट (केएलएम) के आयोजकों ने सलमान रश्दी को कोलकाता आमंत्रित किया था। गौरतलब है कि आखिरी समय पर सुरक्षा से जुड़े मुद्दे के चलते रश्दी को कोलकाता दौरा रद्द करना पड़ा था। भारतीय-कनाडाई फिल्म डायरेक्टर मेहता ने ट्वीट किया, '(रश्दी) वह सरप्राइज गेस्ट होने वाले थे...लिट मीट ने उनके टिकट (मुंबई-कोलकाता फ्लाइट टिकट) के लिए खर्च किया।' मेहता की बात की पुष्टि करते हुए रश्दी ने उनके ट्वीट को दोबारा ट्वीट किया। सलमान रश्दी के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर उनके कोलकाता दौरे को रुकवाने के आरोपों के बीच तृणमूल कांग्रेस नेता सुल्तान अहमद ने रश्दी के बारे में विवादित टिप्पणी की है। सुल्तान अहमद ने कहा कि सलमान रश्दी सलमान नहीं 'शैतान रश्दी' हैं।इससे पहले रश्दी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर उनका कोलकाता दौरान रद्द करवाने का आरोप लगाया। रश्दी को उनके उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' पर बनी दीपा मेहता की फिल्म के प्रमोशन के सिलसिले में कोलकाता जाना था, लेकिन आयोजकों के पीछे हटने के कारण उन्हें दौरान रद्द करना पड़ा।रश्दी ने उनको न्योता देकर मुकरने वाले आयोजकों पर भी जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि कोलकाता लिटरेरी मीट के आयोजक झूठ बोल रहे हैं कि उन्होंने उनको न्योता नहीं भेजा था। रश्दी ने कहा कि उनके पास आयोजकों के भेजे ई-मेल और प्लेन के टिकट मौजूद हैं।

मालूम हो कि कोलकाता के टीपू सुलतान मसजिद के शाही इमाम ने भी दावा किया कि उनके कहने पर ममता ने रश्दी को बंगाल आने से रोक दिया।उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हीं के इशारे पर कोलकाता पुलिस को यह आदेश दिया था कि वह विवादित लेखक सलमान रुश्दी को कोलकाता आने से रोके। मुसलमानों की भावनाओं का निश्चय ही आदर किया जाना चाहिए और चुनावी समीकरण जब उनपर निर्भर हैं तो बिना कुछ किये महज उनकी भावनाओं को सहलाने से अगर राज कायम रहता है तो सौदा बुरा भी नहीं है। लेकिन मुसलमान नेता खुद दावा करते हैं कि बंगाल में नब्वे फीसदी मुसलमान ​​ओबीसी हैं। अगर यह सही है तो आशीष नंदी के बयान पर उनकी कोई राय क्यों नहीं है?

टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद नूर-उर-रहमान ने पीटीआई से कहा, 'मैंने ममता को एक संदेश भिजवाया था कि रुश्दी के दौरे से कोलकाता में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा और मुसलमानों की भावनाएं आहत होंगी। उन्होंने हमें यकीन दिलाया था कि रुश्दी को शहर में दाखिल होने की इजाजत नहीं दी जाएगी।' ममता के फैसले की तारीफ करते हुए इमाम ने कहा कि रुश्दी को कोलकाता नहीं आने देने का आदेश पुलिस को देकर मुख्यमंत्री ने अच्छा काम किया।

इमाम ने कहा, 'हमारे साथ इस मुद्दे पर चर्चा के बाद उन्होंने पुलिस को आदेश दिया। हमने उनसे कहा कि यदि रुश्दी का दौरा होता है तो कुछ अल्पसंख्यक संगठन इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।' अखिल भारतीय अल्पसंख्यक मंच के अध्यक्ष और तृणमूल कांग्रेस के नेता इदरीस अली ने कहा, 'मुख्यमंत्री राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना चाहती हैं। मैं उन्हें, पुलिस और प्रशासन को शांति कायम करने में उचित फैसले करने के लिए बधाई देता हूं।' बहरहाल, कोलकाता पुलिस और राज्य सरकार के अधिकारियों ने अब तक रश्दी की कोलकाता यात्रा रद्द होने में अपनी भूमिका से इंकार किया है।गृह विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि मंगलवार शाम गृह विभाग को सलमान रश्दी के अगले दिन मुंबई से कोलकाता आने की सूचना मिली। तुरंत मुंबई पुलिस से संपर्क करके सूचित किया गया कि 12 घंटे पहले खबर मिलने पर रश्दी की सुरक्षा की व्यवस्था करना मुश्किल है। कुछ देर बाद मुंबई पुलिस की तरफ से कहा गया कि रश्दी कोलकाता नहीं आएंगे। वैसे रश्दी के लिए दमदम हवाई अड्डे पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। तय किया गया था कि बुधवार सुबह दस बजे जेट एयरवेज के विमान से कोलकाता पहुंचने के बाद रश्दी को सबकी नजरों से बचाकर सात नंबर गेट से बाहर निकाला जाएगा। फिर वहां गाड़ी बदलकर एक पांच सितारा होटल में ले जाया जाएगा। पुलिस को जो सूचना मिली थी, उसमें रश्दी के शाम सात बजे के बाद कोलकाता पुस्तक मेले में जाने की बात थी जो अंतत: संभव नहीं हो पाई। पिछले साल जयपुर में हुए साहित्य सम्मेलन में भी सुरक्षा कारणों से रश्दी नहीं जा पाए थे।


राज्य सरकार द्वारा सलमान रश्दी के आगमन को प्रतिबंधित कर इस साहित्य-संस्कृति प्रेमी ऐतिहासिक शहर की वैश्विक कलाकारों लेखकों, बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करने की लंबी परंपरा पर लगे आघात का असर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जर्मन मूल की पुत्री अनीता बोस फैफ के मन पर देखा गया। 6 वर्ष के अंतराल के बाद महानगर के दौरे पर अनीता ने इस शहर को आश्चर्य जनक कहा।

दिग्गज अभिनेता व दादासाहब फाल्के पुरस्कार विजेता सौमित्र चटर्जी ने भी घटना की आलोचना की। चटर्जी ने कहा कि यह वास्तव में दुखद घटना है। मैं इसकी आलोचना करता हूं। मुझे लगता है कि किसी को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल नहीं देना चाहिए।

बृहस्पतिवार को सीआईआई के एक आर्थिक परिचर्चा कार्यक्त्रम के उपरांत अनीता ने संवाददाताओं से औपचारिक बातचीत में कहा कि उनके [सलमान रुश्दी] कोलकाता आगमन को प्रतिबंधित किए जाने को लेकर बहुत क्षुब्ध हूं। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। खास कर कोलकाता जैसे शहर के लिए। मैं कल्पना नहीं कर पा रही हूं कि उनके यहां आने का अनुभव कैसा रहता।

समाज में धर्म की आड़ में किसी तरह की असहिष्णुता या चरमपंथ बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए थी। उन्होंने बहरहाल दौरे को रद करने के लिए राज्य सरकार पर प्रत्यक्ष तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन इशारों में उन्होंने कहा कि बंगाल और कोलकाता में ऐसे असहिष्णु तत्वों को प्रश्रय देना ठीक नहीं है। उल्लेखनीय है कि विख्यात लेखक सलमान रुश्दी का बुधवार कोलकाता दौरा सरकार को मुस्लिम संगठनों के दबाव में आकर रद कराना पड़ा। रुश्दी एक प्रकाशन कंपनी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने वाले थे। इस दौरान उन्हें अपनी रचना मिडनाइट चिल्ड्रेन पर बनी फिल्म की लांचिंग भी करनी थी। जर्मनी के आसबर्ग शहर की पूर्व मेयर और वहां के विवि में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर होने के अलावा एक महान पिता की पुत्री अनीता बोस ने कहा आज देश को और देशवासियों को नेताजी के नेतृत्व से प्रेरणा लेनी चाहिए।

चर्चित लेखक सलमान रश्दी पर भारत में पहली बार इस्लामिक विद्वानों ने नरम रुख दिखाते हुए उन्हें इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद की जिंदगी पर डिबेट की चुनौती दी है। मुंबई में एक सेमिनार के दौरान इस्लामिक विद्वानों ने रश्दी के विरोध के बजाय उनसे बहस करने की पहल की। इस ग्रुप में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के मेंबर भी शामिल हैं। गौरतलब है कि 1980 में विवादित उपन्यास 'सटैनिक वर्सिज़' लिखने के बाद से मुस्लिम संगठन रश्दी की भारत यात्रा तक का विरोध करते रहे हैं।

मुंबई में रविवार को एक सेमिनार अजमत-ए-रसूल (पैगंबर साहब की महानता) में कई इस्लामिक विद्वानों ने शिरकत की। सेमिनार का आयोजन एनजीओ वहादत-ए-इस्लामी हिंद ने किया था। सेमिनार के दौरान AIMPLB के मेंबर और वकील यूसुफ मुचाला ने अपने प्रस्ताव से सभी को चौंका दिया। उन्होंने कहा, 'हमें रश्दी के मुंबई आने का विरोध करने के बजाय यहां आने पर उनसे कुछ सवाल करने चाहिए। अगर उनमें दम है तो वह बताएं कि उन्होंने 'सटैनिक वर्सिज़' जैसी बेतुकी किताब किस आधार पर लिखी।'पर्सनल लॉ बोर्ड के लीगल सेल के प्रमुख मुचाला ने साथ ही मुस्लिमों से अपील की कि वह रश्दी के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन न करें। गौरतलब है कि रश्दी अपने उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' पर दीपा मेहता द्वारा बनाई गई फिल्म के प्रचार के सिलसिले में मुंबई आने वाले हैं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लॉ के प्रफेसर शकील समदानी ने भी मुचाला का समर्थन किया। उन्होंने कहा, 'रश्दी को मुस्लिमों की भावनाओं को समझना चाहिए। मुस्लिमों को उन्हें जान से मारने की धमकी देने के बजाय डिबेट की चुनौती देनी चाहिए।' गौरतलब है कि रश्दी को लेकर वहादत-ए-इस्लामी के तेवर पिछले साल तक बेहद सख्त थे। संगठन ने रश्दी की भारत यात्रा का विरोध किया था। इसके बाद रश्दी को यात्रा रद्द करनी पड़ी थी।


डा जगदीश्वर चतुर्वेदी, जाने माने मार्क्सवादी साहित्यकार और विचारक हैं. इस समय कोलकाता विश्व विद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं उन्होंने लिखा हैः

`टीवी मीडिया पर ज्ञानीजी कह रहे हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हमें मर्यादा की सीमा तय करनी चाहिए।

अरे अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा तय नहीं कर सकते। अभिव्यक्ति का क्षितिज किसी सीमा में नहीं बांध सकते। अभिव्यक्ति में मर्यादा की मांग अंततः अभिव्यक्ति में कटौती और नियंत्रण की मांग है। अभिव्यक्ति को यह नैतिक आधार पर देखना होगा। अभिव्यक्ति का मसला मर्यादा या सीमा का मसला नहीं है।

भाषण में किस तरह की भाषा होगी, यह वक्ता तय करेगा। आशीष नंदी के बयान की भाषा को लेकर ज्ञानी लोग टीवी में बैठकर सवाल कर रहे हैं कि वे ऐसे नहीं, ऐसे बोलते तो मामला ठीक रहता। ये लोग भूल रहे हैं कि भाषा पर विवाद नहीं है, विवाद आशीष नंदी के आइडिया के कारण हुआ है। आशीष नंदी अपने विचार को वापस लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में पुलिस-कचहरी आदि के बहाने ये तथाकथित हाशिए की राजनीति करने वाले लोग कानूनी आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं ।

जजों के एक वर्ग में भी कानूनी आतंकवाद की महत्ता बनी हुई है। जज कैसे तय कर सकते हैं कि किसी वक्ता को क्या कहना चाहिए।

दलित विचारकों का एक वर्ग यह कह रहा है कि उनके विचारों को चुनौती नहीं दी जा सकती। यह धारणा लोकतंत्रविरोधी है। लोकतंत्र में सभी किस्म के विचारों और नीतियों की निंदा-आलोचना हो सकती है। लोकतंत्र विचारों का विश्वविद्यालय है। यह एक वर्ग के विचारों का संरक्षकतंत्र नहीं है। गजब कुतर्क दिए जा रहे हैं कुछ लोग कह रहे हैं कि आशीष नंदी ने गलत बात की है अतः उनको जेल भेजो। इस तरह के लोग मीडिया से लेकर अदालत तक भीड़तंत्र को लोकतंत्र का सिरमौर बनाने में लगे हैं। ये भीड़तंत्र के छोटे हिटलर हैं।

अभिव्यक्ति की आजादी की धारणा के जन्म लेने के बाद विचारकों ने बार-बार अभिव्यक्ति की सीमाओं को तोड़ा है और अभिव्यक्ति के नए दायरे पैदा किए हैं। मर्यादा को मानते तो नए दायरे नहीं पैदा होते। यह काम लेखकों-विचारकों ने पुराने सोच, विचार, मान्यता, मूल्य और न्याय व्यवस्था आदि के बारे में निर्मम विचार संग्राम चलाकर किया है।

ग्राम्शी कहते थे युद्ध में शत्रु के कमजोर हिस्सों पर हमले करो और विचारों की जंग में शत्रु के मजबूत किले पर हमला करो। आशीष नंदी ने मजबूत किले पर हमला बोला है इसीलिए इतनी बेचैनी है।'

आशीष नंदी की गिरफ्तारी पर रोक, पर टिप्पणी की आलोचना

उच्चतम न्यायालय ने जयपुर साहित्य उत्सव में समाजशास्त्री आशीष नंदी की कथित दलित विरोधी टिप्पणियों के सिलसिले में उनकी गिरफ्तारी पर शुक्रवार को रोक लगाते हुए सख्त लहजे में कहा कि उन्हें इस प्रकार की टिप्पणी करने का कोई लाइसेंस नहीं मिला है।

प्रधान न्यायाधीश अलतमस कबीर, न्यायमूर्ति अनिल आर दवे और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की खंडपीठ ने यह प्राथमिकी निरस्त करने के लिये दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि वह लगातार इस तरह के बयान नहीं दे सकते है। आपकी जो भी मंशा रही हो, लेकिन आप लगातार ऐसे बयान नहीं दे सकते हैं।

न्यायाधीशों ने आशीष नंदी के वकील अमन लेखी से कहा कि अपने मुवक्किल से कह दीजिये कि उन्हें ऐसे बयान देने का लाइसेंस नहीं मिला है। न्यायाधीशों ने अपने आदेश में कहा कि इस दौरान नंदी को 26 जनवरी को जयपुर साहित्य उत्सव में उनके बयान के बाद दर्ज प्राथमिकियों के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।

न्यायालय ने इसके साथ ही आशीष नंदी की याचिका पर केन्द्र और राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और बिहार सरकार को भी नोटिस जारी किये। जयपुर के अलावा रायपुर, नासिक और पटना जिलों में भी आशीष नंदी की कथित टिप्पणियों को लेकर प्राथमिकी दर्ज हुई हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों को चार सप्ताह के भीतर नोटिस के जवाब देने हैं।

न्यायालय ने आशीष नंदी को गिरफ्तारी से संरक्षण देने के लिये दायर याचिका पर एक वकील की संक्षिप्त आपत्ति के बाद यह आदेश दिया। इस वकील का दावा था कि दलित समुदाय का सदस्य है और वह चाहते थे कि गिरफ्तारी के खिलाफ संरक्षण की नंदी की याचिका पर विचार नहीं किया जाये। न्यायालय ने कहा कि उनकी आपत्ति पर तभी विचार किया जायेगा, जब वह इस बारे में अर्जी दायर करेंगे।

घृणा फैलाने वाला बयान: अकरुद्दीन से हिरासत में पूछताछ शुरू

हैदराबाद। निजामाबाद पुलिस आज एमआईएम विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी से पूछताछ कर रही है जो कि गत वर्ष दिसम्बर में दिये अपने कथित 'घृणा फैलाने वाले बयान' के लिए राजद्रोह के आरोपों का सामना कर रहे हैं।

पुलिस ने बताया कि अकबरुद्दीन फिलहाल न्यायिक हिरासत में अदिलाबाद जिला जेल में बंद हैं। अकबरुद्दीन को सुबह निजामाबाद नगर लाया गया तथा सशस्त्र रिजर्व मुख्यालय में जांच अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहे हैं।

इससे पहले निजामाबाद की एक अदालत ने अकबरुद्दीन को दो दिन :एक और दो फरवरी: के लिए पुलिस हिरासत में सौंपा था ताकि उनसे निजामाबाद नगर में गत वर्ष आठ दिसम्बर को दिये गए उनके बयान को लेकर पूछताछ की जा सके।

गत वर्ष दिसम्बर में निजामाबाद और निर्मल में एक विशेष समुदाय के खिलाफ कथित रूप से भड़काऊ बयान देने के लिए निर्मल पुलिस और अदिलाबाद एवं निजामाबाद द्वितीय नगर पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अकबरुद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इसके अलावा हैदराबाद स्थित ओस्मानिया विश्वविद्यालय पुलिस और आंध्र प्रदेश के अन्य हिस्सों में अकबरुद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

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হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

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हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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