अधूरी बहस, लावारिश मुद्दों का नाम है पान सिंह तोमर!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पान सिंह तोमर हमारे लिए महज एक फिल्म नहीं है। हमारी पीढ़ी के काल्पनिक जगत में हकीकत का जबर्दस्त हस्तक्षेप है। मेरा घर बसंतीपुर उत्तराखंड तराई में पंतनगर विश्वविद्यालय से महज सात किमी दूर है। वहां हमें रहने का कोई मौका नहीं मिला। मेरा जन्म मेरठ में हुआ। जिसे मैंने पांच साल की उम्र में ही छोड़ दिया । अब मैं मायानगरी में हूं। मेरा गांव मेरे लिए चंबल के बीहड़ से कम अजनबी नहीं है। तिग्मांशु धूलिया निर्देशित पान सिंह तोमर की बॉक्स आफिस पर मजेदार दौड़ रही। इस समय बॉक्स ऑफिस पर इसी फिल्म का राज चल रहा है। अल्प बजट में बनी इरफान खान की इस फिल्म को बॉलीवुड के अमिताभ बच्चन ने भी काफी पसंद किया, सिनेमाई व्यावसाईयों का मानना है कि अभी यह फिल्म काफी दौड़ लगाने वाली है। इस फिल्म को अब टैक्स फ्री करने के लिए सरकार से अपील की गई है।यह फिल्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाले पान सिंह तोमर के इर्द-गिर्द घूमती है।सिनेमा एक बार फिर समाज को आइना दिखाने आया है। 'पान सिंह तोमर' ने साबित कर दिया कि फिल्म की सफलता महंगे प्रमोशनल ईवेंट्स व तामझाम की मोहताज नहीं होती।फिल्म 'पान सिंह तोमर' एक धावक की जिन्दगी पर आधारित है, जो बाद में डकैत बन जाता है और चम्बल की वादियों में अपना एक गिरोह स्थापित करता है। प्रतिभाशाली कलाकार इरफान खान पान सिंह तोमर के चुनौतीपूर्ण किरदार को निभा रहे हैं।
बाक्स आफिस का हिसाब कारोबारी बात है। धूलिया पहाड़ के हैं। इस फिल्म से जुड़ी सनोबर खान से हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं। यह बात भी शायद उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। बीहड़ के बागियों पर यह कोई पहली फिल्म नहीं है। राजकपूर निर्देशित जिस देश में गंगा बहती है जैसी फिल्म के बाद बालीवूड में बीहड़ पर बनी हिट और फ्लाप फिल्मों का लंबा सिलसिला है। शेखर कपूर निर्देशित बैंडिट क्वीन की बात ही करे, जिसकी कथानक फूलन देवी सासद तक बनीं। पर पान सिंह तोमर की पहचान कुछ अलग ही है। सेल्युलायड पर धारावी के कठोर वास्तव को की फिल्मों में दिल और दिमाग से महसूस किया गया। स्लमडाग मिलेनियर को तो आस्कर पुरस्कारों से बी नवाजा गया। पर इल सभी फिल्मों की बुनियाद में रोमांस और कल्पना की जो परतें थीं, पान सिंह तोमर ने उसे बुरी तरह बेपर्दा कर दिया। हम जिस शाइनिंग इंडिया, वर्चुअल वर्ल्ड और सेनसेक्स खली अर्थ व्यवस्था में जीते हैं, उसके मुकाबले पान सिंह तोमर हमें झटके के साथ जड़ों से कटी हमारी पीढ़ी को असली भारत की सरजमीं पर खड़ा कर देता है। तिमांग्शु,सनोबर और इरफान खान समेत पूरी पिल्म यूनिट की करामात यही है। हम अपने अपने बीहड़ की निर्ममता के बीच अपने को मोहभंग की चरम परिणति में फंसे महसूस करते हैं। तब हमें जड़ों की याद सताती है। अपने जल, जंगल और जमीन, पहाड़ और तराई, मरूस्थल और खोयी हुई घाटियों पिघलते ग्लेशियरों के बीचोंबीच एक हकीकत का सामना करना होता है। जहां पीढ़ियों का भुलाया हुआ अतीत हमारे सामने होता है। इस फिल्म का नाम पान सिंह तोमर न होकर मेरे दादाजी दिवंगत शरणार्थी नेता पुलिन बाबू भी होता, तो भी शायद िसी अहसास से गुजरना होता।
तिमांग्शु अब इस कामयाबी के बाद बड़े निर्देशक हो गये हैं। वे नई फिल्म में जुट गये हैं। सनाबर भी व्यस्त हो गयी हैं। इरफान तो वैसे भी व्यस्त कलाकार है। इस फिल्म य़ूनिट के मुखातिब हो पाना एक फ्रीलांसर पत्रकार के लिए थोड़ा मुश्किल है। वैसे भी इस फिल्म की बहुत चर्चा हो चुकी है। सभी अखबारों ने थोक के भाव से इंटरव्यू छाप दिये हैं। पर प्रोमो, कारोबार, बाक्स आफिस से परे कुछ सवाल अब भी अनुत्तरित रह गये हैं। पीपलीलाइव में न्त्थू के हादसे में मारे जाने के बाद मीडिया द्वारा फिर नये सिरे से लावारिश छोढ़ दिये गये गांव की तरह। मारी गयी फूलन दवी के वास्तव की तरह।क्या पान संह तोमर को मोक्ष हासिल हो गया है? फिर फिर क्या वह इस भारत में इस चंबल में पहले एथलीट और फिर बागी होते रहने के अभिशाप से मुक्त हो गया है? यह सवाल मेरे शरणार्थी दादा या जिस पहाड़ से निर्देशक तिमांग्शु जुड़े हैं, उसके लिए भी उतना ही मौजूं है। नदियों की तरह पहाड़ से निकलकर मैदानों में खो जाने की नियति क्या बदलेगी? संदिग्ध नागरिकता, नागरिक और मानव अधिकारों से वंचित शरणार्थी जीवन क्या मेरे दादा के जीवनकाल में तराई के घाधी और मृत्यु के बाद स्टेच्यु बन जाने से बदल जायेगी?
पान सिंह तोमर सेना में भर्ती हुए और एक दिन स्टीपलचेज दौड़ में राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी बने। लेकिन जब अपने गांव लौटे, तो उनकी जमीन पर चचेरे भाई ने कब्जा कर लिया था। फिल्म की कहानी एथलीट पान सिंह तोमर (इरफान खान) के जीवन पर आधारित है, जो एक फौजी है और अपने खाने-पीने के शौक के कारण फौज के फिजिकल ट्रेनिंग सेक्शन में शिफ्ट कर दिया जाता है। वहां अपनी बेजोड़ क्षमता और लगन की बदौलत स्टेपलचेज (लंबी बाधा दौड़) में पान सिंह अपने कोच और ऑफिसर का ध्यान अपनी ओर खींचता है।मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के भिंड से ताल्लुक रखने वाला पान सिंह धीरे-धीरे लोगों का चहेता बनता जाता है। उसका चयन 1958 में टोक्यो के एशियन गेम्स के लिए हो जाता है, जहां अचानक मिले बढ़िया जूते पहनने से उसे दिक्कत होती है और वह रेस हार जाता है। लेकिन रेस के बीच में वह जूतों को उतारकर फेंक देता है, नंगे पांव ही रेस को जीतने की कोशिश करता है और दूसरे नंबर पर आ जाता है।
क्या फिल्म रिलीज हो जाने के बाद मायानगरी का चकाचौंध में लौटी युनिट से पीछे छछूट गये बीहड़ और पान सिंह के बारम्बार पुनर्जन्म की हकीकत में कोई बदलाव आयेगाय़ अबी इस पर हमने कायदे से बहस शुरू ही नहीं की है। महज दर्शक की औकात में बने रहकर और समीक्षक आलोचक की ऊंचाइयों से ऐसी बहस कर पाना नामुमकिन है। तदर्थ देश दुनिया में निष्णात मीदिया के लिए भी पीछे छूटते संसार के गमों से सरोकार रखना मुश्किल है। खबरें अखबार के बासी होने से पहले मर जरूर जाती हैं, पर मुद्दे वहीं के वहीं छोड़ दिये जाते हं। अगर मंझधार में छोड़ दिये गये देश, देहात, जंगल, पहाड़ और निनाब्वे फीसद लोगों की तरह मुद्दों को भी लावारिश मौत मरने के लिए न छोड़े तो आनंद पटवर्ध्धन की तर्ज पर जय भीं कामरेड कहने की नौबत नहीं आये। पान सिंह तोमर जैसी पिल्म की कसौटी इन मुद्दों की जिंदगी से जुड़ी है।देश के लिए जी-जान लगा देने वाले अनेक खिलाड़ियों का भविष्य खेल जगत से हटने के बाद सरकार की उपेक्षा की वजह से किस बुरी दशा में पहुंच सकता है, इसे थीम लाइन बनाकर तिग्मांशु धूलिया के डायरेक्शन में बनी पान सिंह तोमर ना चाहकर भी खिलाड़ियों के बारे में सोचने पर विवश करती है।
पान सिंह तोमर एक हिन्दी फ़िल्म है जो सेना के भारतीय राष्ट्रीय खेल के स्वर्ण पदक विजेता की सच्ची कहानी पर आधारित है जो मजबूरन एक बाघी बन जाता है। फ़िल्म का निर्देशन तिग्मांशु धुलिया द्वारा किया गया है और इसमें इरफ़ान खान मुख्य भूमिका में है। पान सिंह तोमर को २०१० के ब्रिटिश फ़िल्म इंस्टीट्यूट लंदन फ़िल्म समारोह में दिखाया गया था. इसे २ मार्च २०१२ को रिलीज़ किया गया।पान सिंह तोमर एक एथलीट की जिंदगी पर बेस्ड बायोपिक फिल्म है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे और क्यों एक रिकॉर्डधारी एथलीट बागी और फिर डाकू बनता है।मसाला नहीं। आइटम सांग नहीं। हीरो-हीरोइन के अश्लील संवाद भी नहीं। यहां तक कि सिंगल सांग भी नहीं। फिर भी अदाकारी, पटकथा, प्रोडक्शन, डायरेक्शन सब कुछ बेहतरीन। सच्ची घटना को आधार बनाकर बनायी गयी फिल्म पान सिंह तोमर में दर्शकों को बांधे रखने की पूरी क्षमता है।
चंबल इलाके से ताल्लुक रखने वाले पान सिंह तोमर की जिंदगी में बदलाव तब आता है, जब वह फौज छोड़कर अपने गांव आता है। उसकी जमीन पर जबरिया उसके चचेरे रिश्तेदार कब्जा कर लेते हैं और वह उनसे लड़ाई करने की जगह पुलिस में रिपोर्ट लिखाने के लिए चला जाता है। वहां पर वह अपने नेशनल मेडल वगैरह दिखाकर पुलिस से मदद की गुहार करता है, लेकिन पुलिस के सहायता न करने पर मजबूरन उसे हथियार उठाना पड़ता है।
इस सारी कवायद को रोनी स्क्रूवाला और तिग्मांशु धूलिया ने बहुत ही संजीदगी से 70 एमएम स्क्रीन पर उतारा है। साहब, बीबी और गैंगस्टर जैसी मूवी में बतौर प्रोडय़ूसर भी हाथ आजमा चुके तिग्मांशु फिल्म प्रोडक्शन के हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर चुके हैं। पान सिंह तोमर की कहानी पर्दे पर जीवंत कर देने के साथ ही तिग्मांशु ने खिलाड़ियों की उपेक्षा और संसाधनों की कमी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को पूरे संवेदनशीलता के साथ उकेरा है और इसमें उनका पूरा साथ दिया है इरफान खान की बेजोड़ अदाकारी ने। इरफान ने अपनी आवाज और चेहरे के हावभावों से पान सिंह तोमर के करेक्टर में जान फूंक दी है। जिस इरफान खान को फिल्मों में कामयाबी देर से मिली, वही इरफान आज इंटरनेशनल एक्टर के रूप में पहचाने जाते हैं। जितना अपना उनके लिए बॉलीवुड है, उतना ही हॉलीवुड है।
पात्र
इरफ़ान खान - पान सिंह तोमर
माही गिल - इन्द्रा
विपिन शर्मा - मेजर मसंद
इमरान हसनी - मातादीन सिंह तोमर
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी
ज़ाकिर हुसेन - इन्स्पेक्टर राठोड
राहुल शर्मा - शैगी
अंकुर जैन - जैक्सी
अंकुर गर्ग - बादशाह भाई
नीरज जैन - जैन साब
वरुण कुमार गर्ग - चिड़ी
विकास पचौरी - पाच
यह जानकर सुकून मिला है कि एथलीट से डाकू बने पान सिंह तोमर के जीवन पर आधारित फिल्म का निर्माण करने वाली पूरी टीम ने फिल्म से शिक्षा ली है। फिल्म ने उन्हें अपने सामाजिक दायित्वों का अहसास दिलाया है। फिल्म के निर्माताओं ने संन्यास ले चुके एथलीटों और खिलाड़ियों के लिए न्यास स्थापित करने का मन बनाया है।इस पहल की जितनी तारीफ की जाये , कम है। पर इससे न तो पानसंह तोमर की समस्या खत्म होती है और न मुद्दे संबोधित होते हैं। न पीछे छूटा बीहड़ का इससे कुछ बदलने वाला है। फिल्म यूनिट ही नहीं, बाकी देश, बाकी दुनिया के पान सिंह तोमर के जीवन को पलत देने के संकल्प की जरुरत है।
फिल्म के निर्देशक तिग्मांशु धूलिया और मुख्य अभिनेता इरफान खान और निर्माता यूटीवी मोशन पिक्च र्स एसओएस (सेव अवर स्पोर्टसपर्सन) नाम से एक न्यास की स्थापना करेंगे।
धूलिया ने देश में पूर्व एथलीटों की स्थिति पर दुख प्रकट किया। उन्होंने कहा, "हर कोई मिल्खा सिंह जितना किस्मत वाला नहीं होता। हम बहुत सारे एथलीटों और खिलाड़ियों से मिले, जो या तो गरीबी के कारण मर चुके है या दयनीय जीवन जीने को मजबूर हैं।"
गौरतलब है कि ओलम्पिक में हॉकी में चार बार स्वर्ण पदक जीतने वाले शंकर लक्ष्मण की चिकित्सा के अभाव में मौत हो गई थी। 1952 ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता के. डी. यादव की भी गरीबी ने जान ले ली थी। वहीं 1954 में एशियन खेलों में सोना जीतने वाले सरवन सिंह को पैसे के लिए अपना पदक बेचना पड़ा था।
धूलिया ने कहा, "एशियन खेलों के स्वर्ण पदक विजेता प्रदुमन सिंह की दरिद्रता की वजह से मौत हो गई थी। इससे पहले की बहुत देर हो जाए हम ऐसे लोगों की मदद करना चाहते हैं।"
उन्होंने कहा कि महानायक अमिताभ बच्चन ने भी 'पान सिंह तोमर' देखकर देश में एथलीटों की स्थिति पर चिंता जाहिर की है।
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Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
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Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
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THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
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