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Monday, December 19, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



---------- Forwarded message ----------
From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/12/20
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


बीमा में है सुरक्षित भविष्य

Posted: 19 Dec 2011 06:30 AM PST

बीमा के माध्यम से लोगों को न सिर्फ जीवन सुरक्षा कवच और वित्तीय गारंटी मिलती है, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलते हैं। यह क्षेत्र एजेंसी से लेकर मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन, एक्चुअरियल (बीमांकिक), अंडरराइटिंग ऑपरेशन (जोखिम अंकन) और इंवेस्टमेंट (निवेश) के क्षेत्र में व्यापक अवसरों के दरवाजे खोलता है।

बीमा सेक्टर को एक्चुअरियल साइंस भी कहा जाता है, जिसमें गणित और सांख्यिकी की पद्धतियों का इस्तेमाल करके इंश्योरेंस और फाइनेंस इंडस्ट्री के जोखिम को दूर किया जाता है। फिलहाल भारत में बीमा कराने वाले लोगों की संख्या विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। ऐसे में इस सेक्टर में विकास और रोजगार की जबरदस्त संभावना है।

प्रमुख बीमा कंपनियां


वर्तमान में देश में लगभग 30 बड़ी बीमा कंपनियां काम कर रही हैं। सरकारी क्षेत्र की प्रमुख बीमा कंपनियां लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एलआईसी), जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (जीआईसी) और पोस्टल लाइफ इंश्योरेंस प्रमुख हैं। 

इसके अलावा आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, ओम कोटक महिंद्रा, बिरला सन लाइफ, टाटा एआईजी, एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन, मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ, बजाज एलियांस, आईएनजी वैश्य लाइफ इंश्योरेंस आदि भी इस क्षेत्र से जुड़ी हैं।

इन सभी कंपनियों में बड़ी संख्या में मौके उपलब्ध हैं। कमल सिंह यादव, चेयरमैन, क्लब मेंबर, एलआईसी बताते हैं कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें बेशुमार अवसर हैं। बशर्ते, आपका व्यक्तित्व बहुआयामी हो।

एक सफल बीमा व्यवसायी बनने के लिए कुछ बातें आपके व्यक्तित्व में जरूर शामिल हों, जैसे कठिन परिश्रम, आत्मविश्वास, सांगठनिक योग्यता और पेशे के प्रति ईमानदारी। इन सबके अतिरिक्त बेहतर संवाद शैली और क्लाइंट्स के सामने सही वक्त पर सही प्रपोजल रखने की क्षमता भी बेहद जरूरी है।

कैसे-कैसे पाठ्यक्रम

विभिन्न संस्थानों में इंश्योरेंस से संबंधित विभिन्न पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। इनमें मुख्य हैं - पीजी डिप्लोमा इन इंश्योरेंस साइंस, बीएससी इन एक्चुअरियल साइंस, पीजी डिप्लोमा इन रिस्क एंड इंश्योरेंस मैनेजमेंट, बीए इन इंश्योरेंस, एमबीए इन इंश्योरेंस, एमएससी इन एक्चुअरियल साइंस आदि। इस फील्ड में ट्रेंड प्रोफेशनल बनने के लिए ये कोर्स बेहद उपयोगी हैं।

कॅरियर और शिक्षा

बीमा क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए एक एंट्रेंस एग्जाम पास करना पड़ता है। यह परीक्षा मुंबई स्थित एक्चुअरियल सोसाइटी ऑफ इंडिया कराता है। 12वीं अथवा इसके समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण विद्यार्थी इस परीक्षा में बैठ सकते हैं। बीमा क्षेत्र में काम करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना जरूरी है, जिसे एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। 

इसके अलावा, इंश्योरेंस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया समय-समय पर लाइसेंसिएट, एसोसिएटशिप, फेलोशिप समेत अन्य कार्यक्रम संचालित करता है। जीवन बीमा और गैर-जीवन बीमा निगम की शाखाओं में हिंदी और अंग्रेजी माध्यम से लाइसेंसिएट की परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। एलआईसी और जीआईसी के साथ मिलकर सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन(सीबीएसई) 12वीं में वोकेशनल कोर्स के रूप में इंश्योरेंस को भी पढ़ाता है। 

इसी तरह देश के कई विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर पर भी इस विषय को पढ़ाया जाता है। किसी भी विषय के विद्यार्थी इंश्योरेंस सेक्टर में कॅरियर बना सकते हैं, पर मैथ्स, इकोनॉमिक्स, स्टैटिस्टिक्स अथवा कंप्यूटर साइंस के विद्यार्थियों को एक्चुअरियल साइंस के कोर्स में सहूलियत होती है। कोर्स करने के बाद कुछ संस्थाएं विद्यार्थियों को मेंबरशिप व फेलो मेंबरशिप प्रदान करती हैं, जैसे एक्चुअरियल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई), द इंश्योरेंस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (आईआईआई) आदि, जिससे काम करना आसान हो जाता है।

एओ और एएओ

एओ और एएओ एलआईसी और जीआईसी जैसी कंपनियों में प्रथम श्रेणी अधिकारी होते हैं। शुरुआत में सहायक प्रशासनिक अधिकारी (एएओ) के रूप में नियुक्ति होती है। एएओ को कंपनी के एडमिनिस्ट्रेशन, डेवलपमेंट और अकाउंट सेक्शन में से किसी भी क्षेत्र में काम करने का मौका मिल सकता है। तीन वर्ष तक काम करने के बाद एएओ का प्रमोशन करके एओ बना दिया जाता है। 

बीमा कंपनियों में सहायक प्रशासनिक अधिकारी (एएओ) पद पर नियुक्ति केलिए किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से 50 फीसदी अंकों के साथ स्नातक होना अनिवार्य है। इस पद के लिए 21 वर्ष से 28 वर्ष आयु वर्ग के अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं। लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के जरिए इन पदों पर नियुक्ति की जाती है।

विकास अधिकारी (डीओ)

किसी भी विषय से स्नातक और 21 वर्ष से 26 वर्ष आयु वर्ग के अभ्यर्थी बीमा कंपनियों में विकास अधिकारी (डीओ) पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस पद पर नियुक्ति के लिए अंग्रेजी और गणित विषयों से संबंधित लिखित परीक्षा और फिर इंटरव्यू आयोजित किया जाता है।

एजेंट/कंपोजिट एजेंट

बीमा क्षेत्र में कॅरियर बनाने वाले युवाओं की आज पहली पसंद बतौर सफल बीमा एजेंट काम करने की होती है। ये वो लोग होते हैं जो लोगों और संस्थाओं को जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा और प्रॉपर्टी इंश्योरेंस के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ बीमा करके कंपनी और अपने क्लाइंट के बीच एक नया रिश्ता कायम करते हैं। बीमा एजेंट (अभिकर्ता) बनने के लिए 12वीं या समकक्ष होना अनिवार्य है। 

बीमा एजेंट के रूप में नियुक्ति से पहले संबंधित बीमा कंपनी द्वारा संचालित प्रशिक्षण कार्यक्रम से गुजरना पड़ता है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का पाठ्यक्रम इरडा तैयार करता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने के बाद अभ्यर्थी इरडा द्वारा आयोजित परीक्षा में बैठते हैं। कंपोजिट एजेंट वह होता है जो जीवन बीमा के साथ ही अन्य दूसरे बीमा भी करता है।

अन्य पद

एलआईसी और जीआईसी जैसी सरकारी बीमा कंपनियों में इंश्योरेंस सर्वेयर (बीमा सर्वेक्षक), बीमांकिक, असिस्टेंट, टाइपिस्ट, टेलीफोन ऑपरेटर्स, स्टेनोग्राफर्स, क्लर्क आदि के पद भी होते हैं। इनसे संबंधित रिक्तियां समय-समय पर निकलती रहती हैं, जिनसे संबंधित प्रतियोगी परीक्षा में मुख्य रूप से अभ्यर्थी की रीजनिंग, अंकगणित और अंग्रेजी से संबंधित योग्यता की जांच की जाती है(दैनिक भास्कर,8.12.11)।

दूसरे के लिए अवसर है आपकी नाकामी

Posted: 18 Dec 2011 05:30 PM PST

आप देश के किसी भी शहर की किसी भी गली से गुजरने वाले सब्जी ठेले को देखें तो आपको उनमें फूलगोभी जरूर नजर आएगी। इसे देखकर लगता है कि इसकी पैदावार देश के हर हिस्से में होती है। हालांकि आप और हम इसके लिए सर्दियों के सीजन में भी जितनी कीमत चुकाते हैं, वह इसके उत्पादक किसान को मिलने वाले दाम से 20 गुना तक ज्यादा होती है।

यदि किसान को अपने खेतों में गोभी के लिए एक रुपए प्रति किलो मिलता है तो इसी सब्जी की स्थानीय बाजार में औसत कीमत तकरीबन 20 रुपए होगी। ऐसे में कोई भी आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि एक उत्पाद पर ही कुल कीमत का 95 फीसदी हिस्सा बिचौलियों के हाथों में चला जाता है, जिनका इस उत्पादक चक्र में कोई योगदान नहीं होता।

फिलहाल केंद्र व विभिन्न राज्य सरकारों के बीच मल्टीब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर जो तकरार चल रही है वह और कुछ नहीं वरन अनुपलब्धता पर उपलब्धता की जंग है। संबंधित राज्य सरकारें अपने यहां कोल्ड स्टोरेज की समुचित श्रंखला तैयार करने में नाकाम रही हैं।


इस वजह से काफी मात्रा में हमारी हरी सब्जियां खराब होकर कूड़े में फिक जाती हैं और कुछ सब्जियों की तो खपत से पहले ही पोषकता नष्ट हो जाती है। कोल्ड स्टोरेज चालू रखने के लिए हमें बिजली की जरूरत होती है, जिसकी कई राज्यों में किल्लत है। कृषि सेक्टर में न के बराबर सुधार हो रहे हैं। मार्केटिंग के नियम-कायदे पुराने हो चुके हैं। खराब मानसून के बावजूद हमारे यहां खाद्यान्न, दलहन, तिलहन व सब्जियों की पैदावार साल-दर-साल अच्छी रही है। फिर भी इनके लिए ग्राहक द्वारा चुकाई गई कीमतें किसानों को मिलने वाली कीमतों के मुकाबले काफी अधिक होती हैं। 

दरअसल कमरे में एक हाथी है। उस हाथी का नाम है एपीएमसी यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी, जो खेतिहर उत्पादों की मार्केटिंग को नियंत्रित करती है। हालांकि कुछ राज्यों ने एपीएमसी एक्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है, लेकिन कई राज्य आज भी रिटेलरों को सीधे किसानों से खरीदने की इजाजत नहीं देते।

कैरेफोर, वॉलमार्ट और टेस्कोस जैसी दुनिया की नामी कंपनियों के आने से इन चीजों में तेजी आएगी। वे समय के साथ खराब होने वाली सामग्रियों की मियाद दर्ज करेंगी। अमेरिका में सनस्किट नामक एक संतरा आता है वे इस पर उसकी पैकिंग व एक्सपायरी डेट अंकित करते हैं। एक्सपायरी डेट निकलने के बाद इस संतरे को फेंक दिया जाता है, हमारे यहां की तरह सस्ते बाजार में नहीं बेचा जाता। 

ब्रांडेड सब्जियों को उसी तरह बेचा जाएगा, जैसे ब्रांडेट बासमती चावल बिकते हैं। हालांकि यदि हम अपने खेतिहर उत्पादों के लिहाज से कुछ निर्धारित सुधार करें तो एफडीआई के बगैर भी कोल्ड स्टोरेज स्थापित कर सकते हैं, एफडीआई के बगैर भी जल्द खराब होने वाली खाद्य चीजों को जल्द से जल्द उपभोक्ताओं तक पहुंचना सुनिश्चित कर सकते हैं और एफडीआई के बगैर भी हम अपने देशवासियों को शुद्ध, पोषक भोजन दे सकते हैं और वह भी सस्ती दरों पर। याद करें कि जब इंडियन एयरलाइंस अंतरराष्ट्रीय सेवाएं देने में नाकाम रही तो उड्डयन क्षेत्र में निजी उद्यमियों को आने की मंजूरी दी गई।

फंडा यह है कि...नए नियम या नए कारोबारी आपके कारोबार पर निगाह गड़ाएंगे, यदि आप ग्राहक की उम्मीद के मुताबिक उन्हें माल या सेवाएं नहीं देते। याद रखें, आपकी नाकामी किसी अगले शख्स के लिए कारोबारी अवसर है(एन. रघुरामन,दैनिक भास्कर,3.12.11)।
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