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Tuesday, July 13, 2010

भारत में गरीबों की संख्या 42 करोड़ से भी अधिक

भारत में गरीबों की संख्या 42 करोड़ से भी अधिक

भारत  के  बिहार,  उत्तरप्रदेश,  पश्चिम  बंगाल,  मध्यप्रदेश,  छत्तीसगढ़,  झारखंड,  उड़ीसा और राजस्थान में गरीबी निरंतर बढ़ती जा रही है. यूएनडीपी  की  ह्यूमन डिवेलपमेंट रिपोर्ट के ताजा संस्करण में यह बात सामने आई है. यहाँ गरीब का मतलब उस परिवार से जिसकी आमदनी 45 रुपये या उससे कम है. वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आज कहा देश में गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी आदि की समस्या दूर करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद. जीडीपी.में लगातार 10 प्रतिशत की दर से बढोत्तरी आवश्यक है। श्री मुखर्जी ने यहां यूटीआई म्युचुअल फंड के निवेशक शिक्षण अभियान का करते हुए कहा कि विकास दर एक दो वर्ष दहाई अंकों में पहुंचाने से काम नहीं चलेगा बल्कि इस दर को लगातार कम से कम सात .आठ वर्ष तक बनाए रखना होगा। उन्होंने कहा कि तभी जाकर देश में समावेशी विकास का सपना पूरा हो सकेगा। केन्द्रीय वित्त मंत्री का यह भी कहना था कि इस लक्ष्य की प्राप्ति केवल आंकडों में बात करने से नहीं होगी बल्कि देश में पिछड़ापन दूर कर सम्पदा के सृजन के साथ ही रोजगार के अधिकतम अवसर उत्पन्न करने होंगे। उन्होंने कहा कि 10 प्रतिशत या उससे अधिक की फर्राटा दर से विकास लाने के बाद का अगला चरण देश के सभी लोगों को हर मायने प्राधिकृत करना है।

संप्रग प्रमुख सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद :एनएसी: ने सरकार के महात्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत खाद्यान्न के सार्वभौमिक आवंटन पर चर्चा की लेकिन इसमें विविध विषयों पर अलग अलग विचार उभर कर सामने आए।
एनएसी की बैठक का उद्देश्य अत्यंत गरीब और वंचित तबके के लोगों तक खाद्यान्न सुगम बनाने के संबंध में रूपरेखा तय करना था। खाद्यान्न के सार्वभौमिक आवंटन के मुद्दे पर एनएसी की बैठक में व्यापक चर्चा हुई और जाने माने कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने सभी नागरिकों को खाद्य सब्सिडी दिये जाने की जोरदार वकालत की, हालांकि कुछ अन्य लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि इसे लागू करना कठिन कार्य होगा।
एनएसी के बयान के अनुसार, एम एस स्वामीनाथन और हर्ष मंडेर ने परिषद के समक्ष दिये प्रस्तुतिकरण में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सार्वभौमिक आवंटन की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाकर और अनाज की अधिक खरीद के जरिए खाद्यान्न की सकल उपलब्धता बढाने के लिए हरसंभव प्रयास करने की आवश्यकता भी जताई।
समझा जाता है कि पूर्व नौकरशाह एन सी सक्सेना ने इसे सवभौम रूप से लागू करने के प्रयास के तहत प्रारंभ में देश के 150 जिलों से शुरू करने का सुझाव दिया। इस संबंध में कुछ अन्य विचार भी उभर कर सामने आए जिसमें खाद्य सब्सिडी को व्यवहारिक नहीं बताया गया और ऐसे भी विचार थे कि अरब से अधिक लोगों को खाद्य सब्सिडी प्रदान करना जरूरी नहीं है।
एनएससी के एक सदस्य ने कहा '' आज कोई निर्णय नहीं किया जा सका। और इस विषय पर हम आगे भी चर्चा जारी रखेंगे।'' परिषद ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक संबंधी कार्यदल से कहा कि वह सभी संबद्ध पक्षों से बातचीत कर अगली बैठक में अपनी सिफारिशें पेश करे। विधेयक गरीबों को चावल और गेहूं तीन रूपये किलो की दर से उपलब्ध कराने का कानूनी अधिकार देने का प्रावधान करता है। मंत्रियों के एक समूह ने इस बात का समर्थन किया है कि हर परिवार को हर महीने 25 किलो खाद्यान्न मिलना चाहिए। विधेयक के आलोचक हर व्यस्क को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न के सार्वभौमिक आवंटन की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों की स्कीम के तहत हर परिवार 35 किलो खाद्यान्न पाने का हकदार है।
विधेयक पर विचार के लिए बने कार्यदल ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग और योजना आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों से प्रस्तावित विधेयक के बारे में विस्तार से चर्चा की। चर्चा के दायरे में विधेयक के तहत अनाज पाने के हकदार लोगों की पात्रता, लक्षित समूह और कार्यान्यवन से जुडे मुद्दे शामिल रहे।
एनएसी ने कहा कि उसके सदस्यों ने खाद्यान्न के अधिकार से जुडे समूह से भी बातचीत की ताकि खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा के लिए काम कर रहे सामाजिक समूहों से जरूरी जानकारी जुटायी जा सके। बैठक में बहुप्रतीक्षित सांप्रदायिक हिंसा विधेयक पर भी चर्चा की गयी। इस बारे में बने कार्यदल ने गृह मंत्रालय, विधायी मसलों के विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और सांप्रदायिकता विरोधी समूहों के प्रतिनिधियों से सलाह मशविरा किया।
नियमों को लेकर एक उपसमूह ने भी बैठक कर विभिन्न मंत्रालयों के साथ सलाह मशविरे के तौर तरीके तैयार करने के बारे में चर्चा की। साथ ही परिषद की बैठकों का एजेंडा तैयार करने के बारे में बातचीत की। सोनिया की अध्यक्षता वाली 14 सदस्यीय एनएसी का गठन एक जून को किया गया था। वह खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास जैसे सामाजिक कार्यक्रमों पर सरकार को सलाह देगी। सोनिया ने इस मौके पर एनएसी की वेबसाइट की भी शुरूआत की।

अत्यधिक गरीब राज्यों में छत्तीसगढ़ भी शामिल

बीजापुर. एनएच 16 पर शुक्रवार को बारूदी विस्फोट के बाद इसी रात माओवादियों ने फिर एक बार भैरमगढ़ इलाके में उत्पात मचाया है। यहां से 40 किमी दूर पक्की सड़क को दो स्थानों पर काट डाला और 3-4 पेड़ गिराकर यातायात बाधित कर दिया। यहां माओवादियों ने गृहमंत्री चिदंबरम का पुतला खड़ा कर पर्चे भी फेंके हैं।

जगदलपुर से निजामाबाद जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 16 पर स्थित भैरमगढ़ से तीन किमी पहले ग्राम दुसावाड़ा और र्केमारका के बीच सड़क काट डाला था। जिससे लगभग 7 घंटे तक यातायात बंद रहा। दोनों ओर से आने-जाने वाली गाड़ियां फंसी रही।

माओवादियों ने पैंट-शर्ट पहनाकर एक पुतला भी खड़ा किया था। जिसमें बम लगे होने की चेतावनी के साथ ही गृहमंत्री पी चिदंबरम को फांसी देने की बात कही गई थी। इस स्थल पर पर्चे फेंके जाने की भी जानकारी मिली है। जिसमें 14 तक बंद किए जाने का उल्लेख है।

इस वारदात के चलते जगदलपुर गीदम और दंतेवाड़ा से आने वाली बसों के पहिए भैरमगढ़ में थमे रहे जबकि भोपालपटनम, आवापल्ली और बीजापुर की ओर से जाने वाली वाहनें रास्ते में फंसी रही। भैरमगढ़ थाना प्रभारी पीसी सिंह के नेतृत्व में डीएफ और एसपीओ के दल ने दोपहर 12 बजे के करीब अवरोध हटा और सड़क को ठीक कर आवागमन बहाल किया।

थाना प्रभारी सिंह ने बताया कि माओवादियों ने मानवाकार पुतला खड़ा कर उसमें बम होने संबंधी चेतावनी का पर्चा लगा रखा था।

पुरी में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा शुरू हो गई है। लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में, धार्मिक रस्म, रिवाजों के बीच यात्रा शुरू हुई। देश के कई दूसरे शहरों में भी जगन्नाथ यात्रा की धूम मची है और श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ की जयजयकार कर रहे हैं। अहमदाबाद में सजे हुए रथ शहर के प्रमुख मार्गों से निकले।


2020 में विकसित देश बन जाने और 10 प्रतिशत विकास दर प्राप्त करने के दावों के बिच भारत के आठ राज्यों में रहने वाले गरीबों की हालत सबसे  ज्यादा गरीब अफ्रीकी देश इथोपिया और तंजानिया के गरीबों जैसी है. भारत में गरीबों की संख्या 42 करोड़ है जो कि 26 अफ्रीकी देशों के गरीबों से एक  करोड़ अधिक है.  

यह सर्वे भारतीय अर्थव्यवस्था के असंतुलन को व्यक्त करता है. एक ओर देश में अरबपति और करोड़पति बढ़ रहे हैं दूसरी ओर गरीबों की संख्या भी बढ़ रही है.

गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों पर जबरदस्त मंहगाई की मार कम करने के लिए सरकार उन्हें राशन की दुकानों पर अनाज मुहैया कराती है. अब गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले लोगों को भी सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराने पर विचार.

 

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने कहा है कि गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) रहने वाले लोगों को भी यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा योजना के दायरे में ला सकती है. इस योजना के तहत राशन की दुकानों में घटी दरों पर अनाज मिलना कानूनी अधिकार है.

"गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले घरों को हर महीने 30 किलोग्राम अनाज मिलता है. गरीबी रेखा से ऊपर रहने वालों को हर महीने 15 किलोग्राम अनाज देने पर विचार किया जा सकता है."सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद [एनएसी] देश के गरीबों को तीन रुपये प्रति किलो की दर पर अनाज देने के साथ बाकी लोगों को भी रियायती दर पर अन्न उपलब्ध कराने के पक्ष में है। यानी खाद्य सुरक्षा विधेयक का दायरा सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे [बीपीएल] वालों तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें सभी लोगों को शामिल किया जाएगा। एनएसी का यह सुझाव केंद्र सरकार के लिए कठिन चुनौती बन सकता है।

अभी तक बीपीएल परिवारों को रियायती दर पर अनाज देने के खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रस्ताव पर ही सरकार की सांसें फूल रही थीं। अब एनएसी का यह सुझाव उसे मुश्किल में डाल सकता है।

विधेयक के प्रस्तावों में फिलहाल बीपीएल परिवारों को 25 किलो अनाज देने का प्रावधान है जबकि एनएसी ने इसे बढ़ाकर 35 किलो करने का सुझाव दिया है। उधर, गरीबों की संख्या 6.52 करोड़ परिवारों से बढ़कर 8.10 करोड़ होने से सरकार का सब्सिडी बिल बहुत बढ़ जाने का खतरा है।

एनएसी ने राशन में सभी को सस्ता अनाज देने का सुझाव भी दिया है। अनाज की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए भी एनएसी के सदस्य व कृषि विशेषज्ञ एम.एस. स्वामीनाथन ने उत्पादकता बढ़ाने का मंत्र दिया है जबकि खाद्य विशेषज्ञ हर्ष मंदर ने अनाज की सरकारी खरीद बढ़ाने और राशन प्रणाली को दुरुस्त करने पर जोर दिया।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में आयोजित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद [एनएसी] की बृहस्पतिवार को हुई दूसरी बैठक में खाद्य सुरक्षा विधेयक पर लंबी चर्चा हुई। परिषद ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक संबंधी कार्यदल से कहा कि वह सभी संबद्ध पक्षों से विचार-विमर्श कर अगली बैठक में अपनी सिफारिशें पेश करे।

खाद्य सुरक्षा विधेयक गरीबों को तीन रुपये की दर से गेहूं और चावल उपलब्ध कराने का कानूनी अधिकार देने का प्रस्ताव करता है। विधेयक पर विचार-विमर्श के लिए गठित कार्यदल ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, स्कूल शिक्षा विभाग और योजना आयोग के आला अफसरों से प्रस्तावित प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा की।

एनएसी ने कहा कि उसके सदस्यों ने खाद्यान्न के अधिकार से जुड़े समूह से भी बातचीत की ताकि खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा के लिए काम कर रहे सामाजिक समूहों से जरूरी जानकारी जुटाई जा सके।

बैठक में बहुप्रतीक्षित सांप्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक पर भी चर्चा की गई। इस बारे में बने कार्यदल ने गृह मंत्रालय, विधायी मुद्दों के विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और सांप्रदायिकता विरोधी समूहों के प्रतिनिधियों से सलाह-मशविरा किया है। नियमों को लेकर एक उपसमूह ने भी बैठक कर विभिन्न मंत्रालयों के साथ सलाह मशविरे के तौर-तरीके तैयार करने के बारे में चर्चा की। सूत्र बताते हैं कि सभी पक्षकारों से बातचीत करके मसौदा तैयार करेंगे, जिस पर अगली बैठक में चर्चा होगी।

दिल्ली में एक खाद्य सम्मेलन में रंगराजन ने कहा कि इस योजना के चलते यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि हर घर में अनाज की कुछ मात्रा तो पहुंच रही है. यूपीए सरकार के खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सरकार गरीब परिवारों को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल/गेंहू मुहैया कराती है.

इस कीमत पर अनाज पाना गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वालों का कानूनी अधिकार है. गरीबी रेखा से ऊपर वाले घरों को कितना अनाज दिया जाए इस पर विचार हो रहा है. पहले 25 किलोग्राम का प्रस्ताव रखा गया लेकिन अंतिम फैसला नहीं हुआ है.

वामपंथी दल सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एकरूपता लाने की मांग कर रहे हैं ताकि सस्ते अनाज को राशन की दुकानों पर एक दाम पर उपलब्ध कराया जा सके. हालांकि रंगराजन का कहना है कि एपीएल और बीपीएल घरों के लिए कीमत अलग ही होगी ताकि इससे पड़ने वाले वित्तीय बोझ से निपटा जा सके.

रंगराजन का कहना है कि एपीएल और बीपीएल में अंतर बहुत थोड़ा है इसलिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एकरूपता की मांग करने वाले कहते हैं कि सभी घरों को इस योजना के अन्तर्गत लाना चाहिए.

आंकड़ों के अनुसार देश में गरीबी रेखा से नीचे घरों की संख्या 6.5 करोड़ है जबकि गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले घर 11.5 करोड़ हैं.


वर्ष 2008 और वर्ष 2009 में केंद्रीय राजनीति के परिदृश्य में जो नहीं बदला वह यह है कि यूपीए गठबंधन ही सत्ता संभाल रहा है. लेकिन जो दृश्य बदल गया है वह यह है कि यूपीए की गठबंधन सरकार को अब वाममोर्चा का समर्थन नहीं है.

इस पर एक नज़रिया यह है कि यूपीए की नीतियों और निर्णयों पर नज़र रखने वाला वाममोर्चा इस बार नहीं है और दूसरा नज़रिया यह है कि यूपीए सरकार के हर काम में अडंगा लगाने वाले वामपंथियों को वर्ष 2009 के आम चुनाव ने हाशिए पर डाल दिया.

इसमें से जिस भी नज़रिए से सहमत हुआ जाए, इसका निहितार्थ एक ही है कि 2009 की राजनीति ने 32 साल से पश्चिम बंगाल में शासन कर रहे वाममोर्चा के क़िले में दरार डाल दी है.

चुनाव से पहले लोकसभा में वाममोर्चा के 57 सांसद हुआ करते थे और नई लोकसभा में उनकी संख्या घटकर 22 रह गई है. और ऐसा नहीं है कि उनकी ताक़त सिर्फ़ लोकसभा में कम हुई है, पश्चिम बंगाल की राजनीति में भी जो कुछ हो रहा है, उसने भी संकेत दिए हैं कि वर्ष 2011 में होने वाले विधानसभा के चुनाव उनके लिए कठिन साबित होने वाले हैं.

2004 के लोकसभा चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 35 सीटें वाममोर्चा के पास थीं, लेकिन 2009 के चुनाव में वे सिर्फ़ 15 सीटें जीत सके.

इसके बाद राज्य में 16 नगर निकायों के चुनाव हुए जिसमें से 13 पर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के गठबंधन ने जीत हासिल की. इससे पहले वाममोर्चा इनमें से 11 पर शासन कर रहा था. पंचायत चुनावों में भी वाममोर्चा को करारी हार का सामना करना पड़ा है.

10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए तो आठ सीटों पर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के गठबंधन ने जीत हासिल की. वाममोर्चे का नेतृत्व करने वाले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) को एक भी सीट नहीं मिली. वाममोर्चे की ओर से एकमात्र जीत मिली फ़ॉरवर्ड ब्लॉक को.

वैसे राज्य की राजनीति में साल प्रारंभ होते ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी जब नंदीग्राम में वाममोर्चा के एक अहम भागीदार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को तृणमूल कांग्रेस ने शिकस्त दी.

भूमि-सुधार की हिमायती रहे वाममोर्चा ने जब सिंगुर और नंदीग्राम में भूमि-सुधार के एकदम दूसरे सिरे पर जाकर उद्योगों के लिए ज़मीन देने का फ़ैसला किया तो उनके अपने काडर को यह नागवार गुज़रा. बहुत से लोगों को लगता था कि ममता बैनर्जी ने टाटा के नैनो परियोजना को राज्य से बाहर भेजकर राज्य का बहुत नुक़सान किया है लेकिन चुनाव परिणामों ने ज़ाहिर कर दिया कि इस बुद्धिजीवी सोच से मतदाताओं की सोच एकदम अलग है.

दूसरी ओर सिंगूर और नंदीग्राम में सुनियोजित हिंसा के जो आरोप लगे उसे धोना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

वैसे पश्चिम बंगाल में एक नया परिवर्तन यह दिखा कि कलाकार और रचनाकार कभी संस्कृति पुरुष कहे जाने वाले बुद्धदेव के ख़िलाफ़ खड़े हो गए और फ़िल्म समारोह तक का बहिष्कार हुआ.

चुनाव परिणामों ने स्वाभाविक रुप से वाममोर्चा के घटक दलों के बीच भी मतभेद पैदा कर दिए हैं और अब सहयोगी दल ही सीपीएम काडर और उसके नेताओं की कार्यप्रणाली पर उंगलियाँ उठाने लगे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मानिनी चटर्जी कहती हैं, "पश्चिम बंगाल की राजनीति में जो कुछ भी दिख रहा है कि वह ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी की जीत से अधिक वाममोर्चे की हार है."

वे मानती हैं कि वर्ष 2009 के घटनाक्रम ने पार्टी के नेताओं के भीतर हताशा पैदा कर दी है. वे कहती हैं, "पश्चिम बंगाल में वामपंथी नेता जिस तरह से बर्ताव कर रहे हैं, उससे लगता है कि नेता पहले ही हार मान चुके हैं. उनका विश्वास बिखर गया है."

हालांकि वे मानती हैं कि चुनाव की राजनीति में डेढ़ साल बहुत होते हैं और हो सकता है कि वाममोर्चा 2011 के विधानसभा के पहले अपना घर संभाल ले.

लेकिन ऐसा होने की संभावना कम ही दिखती है.

क्योंकि जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ़ पश्चिम बंगाल में ही नहीं हो रहा है. केरल, जहाँ कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन और सीपीएम के नेतृत्व वाला गठबंधन बारी-बारी से सत्ता में आता रहा है, स्थिति बहुत अलग नहीं दिख रही है.

वहाँ मुख्यमंत्री अच्युतानंदन और सीपीएम के राज्य इकाई के सचिव पिनरई विजयन के बीच जो विवाद हुआ उसने भी पार्टी की अंदरुनी स्थिति को बयान किया.

निश्चित तौर पर वामपंथी दलों के भीतर असमंजस की स्थिति है. और जैसा कि मानिनी चटर्जी कहती हैं कि यह दुविधा भाजपा की दुविधा से बड़ी है.

'सबल' भारत द्वारा संचालित 'मेरी जाति हिन्दुस्तानी' आंदोलन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जाति जनगणना के मसले पर गठित मंत्री-समूह के अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी तथा उसके सदस्यों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वे वर्ष २क्११ की जनगणना में जाति को शामिल करने का फैसला न करें।आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. वेदप्रताप वैदिक की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि जाति जनगणना जैसे गंभीर मामले में जल्दबाजी में फैसला लेना देशहित में नहीं होगा। पत्र में इस मसले पर समाज के सभी वर्गो के प्रबुद्ध लोगों की राय का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने जाति जनगणना का विरोध किया है।

लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंचालक मोहन भागवत, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी जाति जनगणना को देश के लिए खतरनाक बताया है। 'सबल' भारत के साथ जुड़े सोमनाथ चटर्जी, बलराम जाखड़, वसंत साठे, जगमोहन और डॉ कपिला वात्स्यायन जैसे लोगों ने भी जाति जनगणना को अनावश्यक बताया है।



जस्टिस केएस वर्मा, जस्टिस राजेंद्र सच्चर, राम जेठमलानी, फली नरीमन और सोली सोराबजी ने भी इसे देश के लिए विघटनकारी बताया है। देश के प्रमुख आध्यात्मिक और धार्मिक नेताओं ने जातिवाद को मानव धर्म के खिलाफ घोषित किया है। वैदिक ने मंत्रियों को लिखे अपने पत्र में कहा है कि जाति जनगणना से वंचित वर्गो को लाभ मिलने के बजाए नुकसान होगा।



वंचितों में भी कई ऊंची-नीची जातियां उठ खड़ी होंगी और ऐसे लोग भी विशेष सुविधाओं के लिए दावे करेंगे, जिसकी उन्हें वास्तव में जरूरत नहीं है। उन्होंने पत्र के अंत में लिखा है, 'अगर देश की गरीबी दूर करना है तो जातियों के आंकड़े इकट्ठा करने की बजाए गरीबी के आंकड़े और कारणों की खोज की जानी चाहिए। यही वैज्ञानिक जनगणना है।'


अंबाला/कुरुक्षेत्र/पानीपत. हरियाणा और पंजाब में मानसून ने दस्तक देते ही आफत खड़ी कर दी है। अंबाला और आसपास में मंगलवार को कहर बनकर बरपे मानसून ने चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर और पंजाब का दिल्ली से संपर्क तोड़ दिया।

उधर दो दिन से लगातार हो रही बारिश ने पटियाला व फतेहगढ़ साहिब के आसपास के क्षेत्रों में भी तबाही मचाई। नहरों में दरारें आने के कारण लोगों में दहशत बनी हुई है। पटियाला में बारिश के कारण बड़ी नदी व छोटी नदी में जलस्तर बढ़ा है। मिली जानकारी के मुताबिक टांगरी, घग्गर और एसवाईएल में दरार आने की वजह से अंबाला में बाढ़ आ गई।

वहीं साथ लगते जिलों कुरुक्षेत्र व यमुनानगर में भी हालात खराब हो गए हैं। स्थिति को गंभीर होते देख प्रशासन ने सेना की मदद मांग ली है। अंबाला में पांच लोगों की मौत हो गई। गांव खाली करवाए जा रहे हैं और शहर में घरों और दुकानों में पानी घुसने से भारी नुकसान की आशंका है।

विवादों में पहचान
संपादकीय /  July 12, 2010




देश के प्रत्येक नागरिक को विशेष पहचान पत्र मुहैया कराने की महती जिम्मेदारी भारतीय विशेष पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को सौंपी गई है। पिछले हफ्ते सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना विवादों के घेरे में फंसती नजर आई। दरअसल कुछ समाचार पत्रों में इस आशय की खबरें प्रकाशित हुईं कि वित्त मंत्रालय की व्यय समिति ने प्राधिकरण का बजट आधा घटाकर 3,000 करोड़ रुपये कर दिया है। इन खबरों में यह कहा गया था कि प्राधिकरण पहले चरण में 60 करोड़ लोगों को विशेष पहचान पत्र मुहैया कराने के निर्धारित लक्ष्य के बजाय अब केवल 10 करोड़ लोगों के लिए ही विशेष पहचान पत्र जारी करेगा।

बहरहाल सच्चाई इन खबरों से कोसों दूर थी। पहली बात तो यह कि वित्त मंत्रालय की व्यय समिति के पास संसद के अधिनियम के तहत गठित प्राधिकरण के बजट में कटौती करने का अधिकार नहीं है। हालांकि यह इस मामले की सिफारिश जरूर कर सकती है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को ही इस मामले में रुख साफ करना पड़ा। उन्होंने यूआईडी परियोजना के उचित क्रियान्वयन के लिए जरूरी राशि मुहैया कराने की अपने मंत्रालय की प्रतिबद्घता फिर दोहराई। दूसरी बात यह है कि प्राधिकरण ने विशेष पहचान पत्र जारी करने के लिए जो लक्ष्य तय किए हैं उनमें किसी तरह का संशोधन नहीं किया गया है। इसके मुताबिक फरवरी 2011 तक शुरुआत में 10 करोड़ लोगों और वर्ष 2014 तक 60 करोड़ लोगों को विशेष पहचान पत्र दिए जाएंगे।

हालांकि वित्त मंत्री के स्पष्टीकरण से यह साफ नहीं हो जाता कि इस परियोजना का क्रियान्वयन पूरी तरह से निर्विवाद हो चुका है। दरअसल प्राधिकरण ने विशेष पहचान पत्र जारी करने से पहले लोगों खासतौर से गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों का पंजीयन करने की बात कह एक नए विवाद को जन्म दे दिया। तब से वित्त मंत्रालय के रणनीतिकार तर्क दे रहे हैं कि जब भारत के महापंजीयक (आरजीआई) द्वारा ऐसे आंकड़े एकत्र किए जाते हैं तब फिर इस कवायद को करने की कोई जरूरत नजर नहीं आती। वहीं प्राधिकरण का कहना था कि वह केवल आरजीआई पर ही भरोसा नहीं कर सकता और वह इस तरह के आंकड़े स्वतंत्र रूप से जुटाना चाहता है विशेषकर उन इलाकों से जहां तक आरजीआई की पहुंच नहीं है।

विवाद का एक  पहलू और भी है। प्राधिकरण चाहता है कि विशेष पहचान पत्र जारी करने के एवज में हर गरीब व्यक्ति को 100 रुपये की राशि दी जानी चाहिए। वहीं मंत्रालय यह सवाल उठा रहा है कि क्या लोगों को इस तरह की सहायता राशि दी जानी चाहिए जबकि विशेष पहचान पत्र मुहैया कराना खुद में एक बड़ी मदद है जो उन लोगों को कई वित्तीय और गैर वित्तीय फायदे पहुंचा सकता है। मंत्रालय ने सवाल किया है कि क्या सरकार को प्रत्येक नागरिक को पहचान पत्र के बदले सहायता राशि देकर 12,000 करोड़ रुपये का बोझ सहन करना चाहिए। 

प्राधिकरण जोर देकर यह कह रहा है कि सहायता राशि केवल गरीबों को ही मुहैया कराई जानी चाहिए। दूसरा तर्क यह है कि विशेष पहचान कार्ड बनवाने के लिए किसी गरीब आदमी का एक दिन का रोजगार छिनता है तो उसके बदले 100 रुपये की राशि मुहैया कराना एकदम न्यायसंगत है। अनेक फायदे वाली इस योजना के लिए गरीबों को सहायता राशि देना सही निवेश होगा।

क्या खुशहाली के दिन सचमुच लौट आए हैं?
ऐसा लग रहा है मानो वैश्विक वित्तीय संकट समाप्ति की ओर है

सुमन बेरी /  July 13, 2010




इस समाचार पत्र में  हाल ही में प्रकाशित एक संपादकीय में उल्लेख किया गया था कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास मौजूदा वित्तीय संकट की शुरुआत के संबंध में पूरे आंकड़े नहीं हैं। उसकी भूमिका संकट का अनुमान लगाने से कहीं अधिक उसके बाद के परिणामों के अध्ययन की रही है। इस तरह के प्रदर्शन तथा संकट का पूर्वानुमान लगाने में उसकी अक्षमता के बावजूद संस्था द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में जारी किए जाने वाले प्रत्येक पूर्वानुमान (वल्र्ड इकॉनॉमिक आउटलुक या डब्ल्यूईओ) को दुनिया भर के समाचार पत्रों में पर्याप्त महत्त्व मिलता है।

आईएमएफ द्वारा हर वर्ष दो बार यानी अप्रैल और सितंबर में (जब आईएमएफ व विश्व बैंक के गवर्नरों की बैठक होती है) वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ विश्लेषण पेश किया जाता है। इसके अलावा समय समय पर संगठन इस संबंध में पुनरीक्षण भी करता है। ऐसा ही एक पूर्वानुमान गत सप्ताह 8 जुलाई को वल्र्ड इकॉनॉमिक अपडेट (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट आईएमएफ डॉट ओआरजी) में देखने को मिला। जुलाई के अंत में तिमाही मौद्रिक नीति संबंधी अपडेट आने वाले हैं। ऐसे में भारत के संबंध में इस पूर्वानुमान का परीक्षण करने के बजाय जरूरी है कि हम उन परिस्थितियों पर संक्षिप्त दृष्टि डालें जिनमें यह अनुमान तैयार किया गया है। 

अनपेक्षित रूप से पूर्वानुमानों की घोषणा हॉन्गकॉन्ग में हुई। इसके लिए ऐसा समय चुना गया जबकि दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में अधिकांश प्रमुख एशियाई नीतिनिर्माता कोरियाई सरकार और आईएमएफ के निमंत्रण पर एकत्रित हुए थे। ये दोनों ही घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशिया का महत्त्व कितना बढ़ गया है। इसका यह तात्पर्य भी है कि आईएमएफ उन देशों से अपना जुड़ाव बढ़ाना चाहता है जिन्हें उसने 1997 के एशियाई संकट के दौरान अपनी प्रतिक्रिया से अलग थलग कर दिया था।

पाकिस्तान के अपवाद को छोड़ दें तो ये एशियाई देश (आसियान, चीन, भारत और औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाले देश जैसे सिंगापुर, ताइवान और दक्षिण कोरिया) निकट भविष्य में शायद ही आईएमएफ के पास किसी मदद के लिए जाएं। इसके बजाय उन्होंने पिछले पूरे दशक का समय वैश्विक वित्तीय तंत्र के अप्रत्याशित व्यवहार से बचने के लिए विदेशी मुद्रा के भारी भंडार एकत्रित करते हुए बिताया। यह उनका खुद को बचाने का तरीका था। चीन और जापान के नेतृत्व में बचाव के तरीकों का एक ढांचा तैयार किया गया जिसे चियांग माई इनीशिएटिव (सीएमआई) का नाम दिया गया। आईएमएफ के अमेरिका और यूरोपीय हितों के प्रति रुझान को देखते हुए इसे उसके एक विकल्प के रूप में तैयार करने का एजेंडा था।

मौजूदा संकट के दौरान आईएमएफ ने यूरोपीय देशों और बैंकों की मदद में जबरदस्त तत्परता दिखाई जबकि कोष के मताधिकार तथा बोर्ड प्रतिनिधित्व में सुधारों की प्रक्रिया अत्यंत धीमी गति से चलती रही। इससे भी इन देशों के असंतोष में इजाफा ही हुआ। इसके बावजूद आईएमएफ अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक परिदृश्य में सुधार (विनिमय दर का मामला, पूंजीगत हलचल, तरलता संबंधी प्रावधान और सुरक्षा संबंधी उपाय) और वैश्विक अर्थव्यवस्था में संतुलन का केंद्र बना रहना चाहता है।  इसके लिए  उसे एशियाई देशों की मदद चाहिए, खासतौर पर जी-20 के उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश जिनमें दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया चीन और भारत शामिल हैं।

जैसा कि भारतीय समाचार पत्रों में भी खूब छपा कि क्रय शक्ति में समता के चलते 2010 में वैश्विक विकास दर 4.6 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि बीते अप्रैल में ही इसके 4.2 फीसदी रहने की संभावना  व्यक्त की गई थी। यूरोपीय ऋण बाजारों में संकट के बावजूद दुनिया के लगभग तमाम हिस्सों में आर्थिक मोर्चे पर सुधार ही देखने को मिला है। इसके अलावा, इस दस्तावेज में दिए गए चार्ट में स्पष्टï संकेत दिया गया है कि आउटपुट के मामले में दुनिया भर में अब जबरदस्त सुधार देखा जा रहा है।

वैश्विक बाजारों की इस सकारात्मक तस्वीर के साथ ही जैसी कि उम्मीद की जा रही थी कि विकसित होते एशिया में चीन, भारत तथा आसियान-5 (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम) में सुधार सबसे तगड़ा है। भारत के चालू वर्ष के लिए अप्रैल में किए गए 8.8 फीसदी के अनुमान को बाद में बढ़ाकर 9.4 फीसदी कर दिया गया। कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि उसने वित्त वर्ष 2010-11 के लिए भारत के पूर्वानुमानों से इसे किस तरह जोड़ कर देखा जाए। मैं अगर संक्षेप में कहूं तो मुख्य अंतर है इस वर्ष की पहली तिमाही में शानदार प्रदर्शन जबकि वर्ष 2009 में यह बेहद खराब रहा था। इसका इस वर्ष जीडीपी के औसत स्तर में परिवर्तन में भी बहुत बड़ा योगदान रहेगा।

हमारी नीतियों के लिए इसमें बेहतरी ही है। अमेरिका समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में भले ही नौकरियों की स्थिति खराब हो लेकिन यह तय है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अब पटरी पर लौट रही है। पहले मेरी चिंता यह थी कि अनिश्चित वैश्विक हालात तथा घरेलू निजी पूंजी निवेश की ढीली रफ्तार को देखते हुए राजकोषीय व मौद्रिक नीतियों में एक साथ कड़ाई करना खतरनाक कदम है लेकिन स्टॉक मार्केट के अच्छे हालात के मद्देनजर व विनिर्माण क्षेत्र (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) में मिल रही खुशखबरियों के साथ-साथ अप्रत्यक्ष कर की प्राप्तियों ने अब आश्वस्त किया है। 

इसके बाद बात रह जाती है बाह्यï क्षेत्र की। इसमें व्यापार, पूंजीगत हलचल तथा रुपये की बाहरी कीमत आदि बातें शामिल हैं। हाल के दिनों में इन क्षेत्रों में भी कई नए परिवर्तन हुए हैं। इसमें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा समूचे वित्त वर्ष 2009-10 के लिए भुगतान संबंधी आंकड़ों का आरंभिक बैलेंस जारी करना, इसके अलावा आरबीआई द्वारा ही देश के बाहरी कर्ज के आंकड़े जारी करना, वस्तुओं के निर्यात के आंकड़े, चीन द्वारा डॉलर की तुलना में युआन की कीमतों को लचीला करने की घोषणा और वैश्विक कारोबार में सुधार आदि शामिल हैं।

जैसा कि मैंने अप्रैल में देखा था इस समाचार पत्र के प्रमुख स्तंभकारों  ने भारतीय मुद्रा की वास्तविक मूल्य वृद्घि को लेकर चिंता व्यक्त की थी। वॉशिंगटन और ज्यूरिख में अपने संबोधनों में आरबीआई के गवर्नर डॉक्टर सुब्बाराव ने भी अस्थिर पूंजी प्रवाह तथा बाजार तथा विनिमय दर के प्रबंधन पर उसके असर को लेकर चिंता जताई थी। वित्त वर्ष 2010 की अंतिम तिमाही तथा समूचे वित्त वर्ष के लिए बैलेंस ऑफ पेमेंट के आंकड़े आ जाने पर इन चिंताओं को कुछ विश्वसनीयता मिलेगी। आरबीआई ने अभी चालू खाता घाटा 2.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। 

निश्चित रूप से इस स्तर पर इसकी निगरानी की जरूरत होगी लेकिन डीजीसीआईएस (डायरेक्टर जनरल ऑफ कॉमर्शियल इंटेलिजेंस ऐंड स्टैटिसटिक्स) तथा आरबीआई के व्यापार संबंधी आंकड़ों में भारी परिवर्तन और समूचे निर्यात में इजाफे को देखते हुए बेहतर यही होगा कि विनिमय बाजार में हस्तक्षेप के बजाय वित्तीय समेकन के द्वारा चालू खाते को संतुलित किया जाए।




रेलवे की आमदनी 8.5 फीसदी बढ़ी

जुलाई से फिर बढ़े अखबारी कागज के दाम

निफ्टी में 5400 पर है प्रतिरोध

बजाज मोटरसाइकिल की बिक्री 84 फीसदी बढ़ी

पंजाब बिजली बोर्ड को मोहलत




  


निसान माइक्रा की दस्तक आज

नेटवर्क 18 और सन टीवी में करार

नवभारत पावर पर एस्सार एनर्जी का कब्जा

मुनाफा घटा लेकिन आय का अनुमान बढ़ाया

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नई भर्ती पर जोर देगी इन्फोसिस

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इन्फोसिस का मुनाफा 2.4 फीसदी गिरा


 



  

क्या मंदी से उबरकर इस बार बेहतर रहेंगे इंडिया इंक के नतीजे?

हां
नहीं



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गरीबी का मजाक उड़ातीं सरकारी योजनाएं
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प्रकाशन तारीख : 09-Jul-2010 04:40:26 द्वारा: मोहम्‍मद खालिद Font Size:
गरीबी

मुजफ्फरनगर: 'रोटी, कपडा और मकान, जीवन के है तीन निशान' का नारा कई दशकों से सुनते आ रहे हैं। केन्‍द्र एवं राज्‍य सरकारें देश से गुरबत के खात्मे के लिए लगातार विकास योजनाएं चलाकर गरीबों की आर्थिक सहायता कर रही है। इसके बावजूद जीवन के इन तीन निशानों को कितने भारतीयों ने हासिल किया, इसकी तस्वीर हर छोटे-बडे नगरों में देखने को मिल जायेगी। करोड़ों भारतीय आज भी सडकों के किनारे, रेलवे स्टेशनों, पुलों के नीचे और सार्वजनिक स्थानों पर गर्मी, सर्दी में खुले आसमान के नीचे जिन्दगी गुजार रहे है, अपने घर का सपना इन बेघरों ने शायद कमी नहीं देखा होगा।

सरकार की निगाहें इस तबके पर चुनाव के दौरान जरूर पडती है, लेकिन चुनावी मौसम समाप्त होते ही इनकी राजनीतिज्ञों और सत्ताधरियों द्वारा दिखाये गये सपनो का भी अन्त हो जाता है और स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है। आवासीय योजनाओं के लम्बे-चोडे वायदे इस बेघर कौम से किये जाते है, लेकिन उन योजनाओं का लाभ इनको नहीं मिल पाता बल्कि उनके अधिकारो पर योजनाब¼ डाका डाला जाता है।

अपात्रा आवासीय योजनाओं पर कब्जा जमा लेते है। ऐसे लोगों को आवास उपलब्ध् कराये जाते है जो तय मानक के बिल्कुल विपरीत है। हमारी व्यवस्था उनको पात्रा घोषित करने में कागजों पर गरीब को अमीर और अमीर को गरीब बनाने में पूरी तरह माहिर हो चुकी है। बस आपको आवेदन करने की जरूरत है, इन्दिरा आवास योजना, काशीराम अवास योजना और न जाने कितनी योजनाए सरकार आवास उपलब्ध् कराने के लिए चला रही है। नि:शुल्क आवास योजना के पात्रा कितने गरीब छत हासिल करने में सपफल हुए इस का अन्दाजा नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के किसी भी एक मौहल्ले में जाकर लगाया जा सकता है।

मैंने जनपद की एक मलिन बस्ती में जाकर जब देखा तो वहां आवास की समस्या ही नहीं बिजली पानी को भी लोग तरस रहे थे, बिजली वहां अभी तक दस्तक नहीं दे सकी तो पानी ग्लोबल वार्मिंग की भेंट चढ गया, जलस्तर घटने के कारण नलों में पानी नहीं जिन नलों में पानी है इसका पानी पीने योग्य नहीं है। बीमारी के भय से लोग पानी नही पीते है। जिले में केई स्थानों पर पानी विषैला बन चुका है जल निगम हालाकि इसके शु¼ करने में मुस्तैदी से जुटा है।

लेकिन जब तक उनके पास खबर आती है केई लोग शिकार हो जाते है। अस्पतालों में टेस्ट रिपोर्ट इस बात की जब पुष्टि कर देती है। कि मौत या रोग का कारण पीने का पानी रहा है। तब जल विभाग हरकत में आता है सरकार ने आवास उपलब्ध् कराने के लिए बीपीएल कार्ड धरकों को प्राथमिकता दी तो असरदारों ने बीपीएल कार्ड धरकों को एक ऐसी पफौज तैयार करा दी कि सरकार को उनका दोबारा से सर्वे कराना पडा, सर्वे चल ही रहा था कि शिकायते शुरू हो गयी अपात्रा लोगों को बीपीएल सूची में शामिल किया जा रहा है शिकायतों का अंबार देख सरकार को अपना पफैसला बदलना पडा और पिफर से पुरानी सूची को बहाल कर दिया गया।

ऐसे पात्रा ग्राम सचिव से लेकर मंडलायुक्त तक अपनी पफरियाद कर चुके है मगर अभी तक आवास से महरूम है जबकि रिपोर्ट मिल रही है कि पात्रा तलाश करने के बावजूद नहीं मिल सके इसलिए लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका। गरीबों के लिए दो वक्त की रोटी का हाल आवास से भी बुरा है भारत में एक बडी संख्या में भिखारियों का जाल सा पफैला हुआ है। अपने बच्चो का पेट भरने के लिए भीख मांगती महिलाएं गांव और शहरों में आम देखी जा सकती है।

क्योंकि उनको सरकार से मिलने वाला राशन भी डकारा जा रहा हैं प्रधन, राशन डीलर और पूर्ति विभाग की सांठगांठ के चलते इस राशन को गरीबों से दूर कर दिया गया स्वार्थ की खातिर बडे व्यापारियों को गोदामों से ही गल्ला उठवा दिया जाता है। जिन लोगों को राशन मिलता है वह इसके पात्रा नही होते बल्कि वे पात्रों को दबाये रखने का काम करते है जिससे डीलर आसानी से कालाबाजारी को अंजाम दे सके, अब आप स्वयं अन्दाजा लगाये कि जब आवास और भोजन के लाले पड रहे है तो शरीर पर वस्त्रा कैसे लादे जा सकते है। पफटे-पुराने गन्दे कपडों में लिपटा भारत का भविष्य देश के उन कर्णधरों की ओर निगाहे गडाये देख रहा है। जिससे उसे देश की खुशहाली की पूरी उम्मीद है। अब देखना हे कि ये गरीबी को मिटाने में कितना अहमरोल अदा करते है। या गरीब को मिटाकर एक खुशहाल भारत का अपना साकार करते है।

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  • बिहार में आबादी: बांग्लादेश से लगे जिलों में रफ्तार ज्यादा


    पटना.झारखंड के गठन के बाद आबादी के लिहाज से चाहे बिहार, उत्तरप्रदेश व महाराष्ट्र के बाद तीसरे स्थान पर हो, लेकिन 1991-2001 के दशक में आबादी बढ़ने की सबसे ज्यादा रफ्तार (28.43 फीसदी) इसी राज्य की रही है। यह राष्ट्रीय औसत से सात फीसदी ज्यादा है। खास बात यह है कि 1981-91 के दशक में यह रफ्तार राष्ट्रीय औसत (23.86) से कम, 23.38 फीसदी थी।पिछली जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक मध्य बिहार के जहानाबाद (50.8 फीसदी) और उत्तर बिहार के शिवहर (36.6) जिलों को छोड़ दें तो बांग्लादेश व नेपाल से लगे मुस्लिम बहुत क्षेत्र में आबादी में ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है। सीमा से लगे चार जिलों पूर्णिया 35.4, किशनगंज 3.17, अररिया 33.9 और कटिहार में 31.1 फीसदी वृद्धि हुई है।



    रिपोर्ट के मुताबिक 1961-2001 के तुलनात्मक अध्ययन के मुताबिक पूर्णिया में आबादी 171, किशनगंज में 182, अररिया 176.9 और कटिहार में 162.2 फीसदी बढ़ी है। हालांकि यहां प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या क्रमश: 916, 934, 934 और 919 है, जो सामान्य है। धार्मिक आधार पर जनसंख्या वृद्धि को लेकर शोध कर चुके जानेमाने अर्थशास्त्री पीपी घोष कहते हैं कि सीमा से लगे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी आबादी तेजी से बढ़ी है, लेकिन अब इस समुदाय का रुख भी छोटे परिवार की ओर हो रहा है।



    बिहार की नीतीश कुमार सरकार के सलाहकार व एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट के समाजविज्ञानी शैबाल गुप्ता आबादी बढ़ने के धार्मिक आधार को नहीं मानते। वे कहते हैं, 'गरीब व अशिक्षित लोगों के लिए परिवार में जन्मा हर बच्च अतिरिक्त रोजगार व आमदनी का जरिया होता है।' पर अब स्थिति बदल रही है। बिहार में लोगों की संभावित उम्र, 64 वर्ष के राष्ट्रीय औसत से एक साल ही कम है। जन्म व मृत्यु दर भी राष्ट्रीय औसत के आसपास है जबकि प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत की तुलना में महज 40 फीसदी है। यही कारण है कि राज्य की 54.63 आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। गुप्ता इसके कारण गिनाते हैं, 'आबादी बढ़ने के अलावा भूमि सुधार लागू नहीं होना, सिंचाई सुविधाओं की कमी और सड़क, बिजली जैसी मूल सुविधाओं की कमी गरीबी के कारण हैं।'



    गुप्ता का कहना है कि बड़ी आबादी के कारण विकास का फायदा नजर नहीं आ रहा है। राज्य ने जब गुजरात के बराबर 11.03 फीसदी विकास दर का एलान किया तो उस पर सवाल उठाए गए। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का तो दावा है कि अब यह आंकड़ा 16.59 फीसदी हो गया है। घोष कहते हैं, 'बिहार में विकास के फायदे काफी बड़ी आबादी में बंटते हैं इसलिए असर कम नजर आता है।'

     
     http://www.bhaskar.com/article/BIH-population-in-bihar-more-speed-in-the-districts-bordering-bangladesh-1147434.html

    विकराल गरीबी बनी आत्महत्या की वजह





    हर साल पाकिस्तान में ख़बरों की सुर्खियां रहती हैं-बाजार में बम धमाके, तालिबान से लड़ाई. लेकिन एक अहम बात जो लाखों पाकिस्तानियों के जीवन को प्रभावित करती है, वह सुर्खियों से नदारद रहती है.


    यहां एक बड़ी आबादी को विकराल गरीबी से जूझना पड़ता है.


    बीनिश की ज़िंदगी चाहे छोटी ही रह गई लेकिन वह कड़ी मेहनत और ऊँची उम्मीदों से जुड़ी रही.


    बीनिश की उम्र 14 साल थी, वो पढ़-लिखकर डॉक्टर या नर्स बनना चाहती थीं. अपने सपने को पूरा करने के लिए उसने रात-दिन पढ़ाई की. रात में जब बिजली नहीं होती तो वे टॉर्च की रोशनी में पढ़ाई करती. वो हमेशा ही अपने क्लास में अव्वल आतीं.



    दर्दनाक मौत


    बीनिश की मौत अपने ही पिता अकबर के हाथों हुई. अकबर लाहौर के पूर्वी शहर में रिक्शा चलाते थे. अकबर ने बीनिश और उनकी दोनों बहनों को जहर देने के बाद खुद भी जहर खा लिया.

     

    देश गरीबी व बीमारी से जूझ रहा है

    कानपुर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान [आईआईटी] के 42वें दीक्षांत समारोह में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा कि देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई है परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि देश आज भी गरीबी व बीमारी से जूझ रहा है। इसके लिए परास्नातक स्तर की शिक्षा व्यवस्था व शोध के स्तर में सुधार कर आईआईटीयंस इनसे निबटने का मंत्र खोजें।

    स्वर्णजयंती वर्ष में आयोजित समारोह में उन्हें संस्थान की ओर से डीएससी की मानद उपाधि प्रदान की गयी। उनकी मौजूदगी में स्नातक व परास्नातक के 1,195 छात्र-छात्राओं की उपाधियां प्रमाणित की गयीं। प्रधानमंत्री ने उपाधि प्राप्तकर्ता विद्यार्थियों से कहा कि यहां से आप वित्त, शिक्षा, मार्केटिंग, सॉफ्टवेयर, तकनीकी, प्रौद्योगिकी व लोक सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना करियर बनाएंगे और सफलता के सोपान चूमेंगे परंतु यह सदैव याद रखना होगा कि इस देश के लोगों ने भी आपकी इस शिक्षा के लिए कुछ न कुछ अंशदान किया है। इसलिए आप को समाज के लिए कुछ न कुछ अवश्य करना चाहिए।

    प्रधानमंत्री ने कहा कि आईआईटी जैसे संस्थान मानवता का पाठ पढ़ाने के साथ विचारों की शक्ति, वृहद ज्ञान व सहनशक्ति प्रदान करते हैं। आप इन अध्यायों से भी कुछ सीख लें जो ज्ञान और कुशलता से भी अधिक महत्वपूर्ण है।

    देश का गौरव बढ़ाया: प्रधानमंत्री ने कहा कि आईआईटी तंत्र से निकली प्रतिभाओं ने देश को हमेशा गर्वानुभूति कराई है। इन संस्थाओं के छात्र आज दुनिया में भारत का सिर ऊंचा कर भारत की छवि को बहुआयामी उत्कर्ष प्रदान किया है। उनमें से तमाम आज देश ही नहीं पूरी दुनिया में व्यवसाय और तकनीकी क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। लोक जीवन को भी सशक्त बनाया है। इस सिलसिले को जारी रखना है।

    नेहरू जी का योगदान: भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के योगदानों का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि आईआईटी सहित तमाम संस्थान उन्हीं की दूरदृष्टि के परिणाम हैं। इस संस्थान ने स्थापनाकाल से आज तक एक लंबा सफर तय करते हुए नेहरू जी के सपनों को काफी हद तक साकार किया है। संस्थान ने इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी की स्नातक डिग्री क्षेत्र में निसंदेह दुनिया के उत्कृष्ट संस्थानों में अपना स्थान बनाया है। सेमेस्टर प्रणाली, ग्रेडिंग प्रणाली, ओपेन बुक, गृह परीक्षा जैसे तमाम प्रयोग दुनिया में सबसे पहले इसी ने शुरू किए। जब हम इस संस्थान की विगत 50 सालों की उपलब्धियों को गिन रहे हैं तब हमें इसकी कमजोरियों पर भी ध्यान देना चाहिए।

    उत्कृष्ट हो परास्नातक शिक्षा व शोध: उन्होंने सुझाया कि संस्थान को परास्नातक एवं शोध पाठ्यक्रमों में काफी विकास करने की जरूरत है। उन्होंने अपील की कि संस्थान के सीनेट सदस्य इस दिशा में अपनी बौद्धिक क्षमता और अनुभवों का परिचय दें। समस्त आईआईटी मिलजुल कर शोध परियोजनाओं पर उत्कृष्टतापूर्ण काम करें। कारपोरेट सेक्टर से अच्छे अनुबंध कर काम करें तो मूल्य संबंधी समस्याओं का समाधान व नवीन तकनीक की जानकारी मिलेगी, वहीं संस्थान को जरूरत के लिए आर्थिक लाभ होगा जिससे शोध क्षमताएं बढ़ेंगी।

    इंडो-यूएस गठजोड़ लाभकारी: प्रधानमंत्री ने कहा कि अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सरकार ने अपने श्रेष्ठ संस्थाओं का गठजोड़ अन्य देशों से करने की कोशिश की है। आईआईटी कानपुर की अमेरिकी संस्थानों के साथ विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहभागिता एक अच्छी शुरुआत है। हाल ही में भारत-अमेरिकी संयुक्त विज्ञान प्रौद्योगिकी आयोग ने सहभागिता को आगे बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। उच्चतम गुणवत्ता वाले शोध के लिए देश को वैश्विक स्तर के संस्थानों व अच्छे विद्यार्थियों की महती जरूरत है।

    ज्ञानवान शिक्षकों की कमी: विगत पांच सालों में देश में उच्च शिक्षा का काफी प्रसार हुआ है। काफी संख्या में नये आईआईटी, आईआईएम व विज्ञान संस्थान शुरू हुए। 300 से अधिक डिग्री कालेज कुछ चुने जिलों में खोले गये। सरकार ने उच्च शिक्षा पर हो रहे खर्च में भी काफी बढ़ोतरी की है लेकिन गुणवत्ता का मुद्दा अभी भी बरकरार है। इसमें सबसे बड़ी बाधा है अच्छे शिक्षकों की कमी। आईआईटी भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। अच्छे विद्यार्थियों को इस दिशा में उत्साहित करने से समस्या का समाधान हो सकता है।

    शिक्षा व शोध के लिए काउंसिल: उन्होंने कहा कि सरकार की आईआईटीज की स्वायत्तता को सुनिश्चित रखने तथा फैकेल्टी की जरूरतों को पूरा करने की प्राथमिकता है? उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विधिक व नियामक वातावरण देने के लिए लिए नेशनल काउंसिल फार हायर एजुकेशन एंड रिसर्च को स्थापित करने का विचार है। मान्यता, विदेशी विश्वविद्यालयों और एजुकेशन ट्रिब्युनल्स आदि से संबंधित बिल भी पेश किए गये हैं। छात्र उनका अध्ययन कर बेहतरी के सुझाव दें।

    आईआईटी की सफलताओं पर खुशी: प्रधानमंत्री ने खुशी जाहिर की पिछले कुछ सालों में आईआईटी कानपुर ने कई ऐसी परियोजनाओं, रेलवे टेक्नालाजी [सिमरन व जीरो डिस्चार्ज टायलेट टेक्नालाजी], जल संसाधन, पर्यावरण सुरक्षा व ऊर्जा आदि पर काम किया है जिससे देश को बड़ा लाभ मिलेगा। हाल ही में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कानपुर आईआईटी व केंद्र के तीन मंत्रालयों के संयुक्त प्रयासों से एक नया प्रयास शुरू किया है जिससे पूरे देश को लाभ मिलेगा।

    समारोह की अध्यक्षता आईआईटी प्रबंधमंडल के अध्यक्ष प्रो.एम आनंद कृष्णन ने की। प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी भी मंचासीन थे। प्रधानमंत्री एवं प्रो.आनंदकृष्णन ने सभी संकायों में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भौतिकी छात्र एन.तेजस्वी वेणूमाधव को प्रेसीडेंट व स्नातक पाठ्यक्रमों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए परज टीटम को निदेशक स्वर्ण पदक, अर्थशास्त्र के आदित्य वर्मा को रतन स्वरूप मेमोरियल स्वर्ण पदक व सिविल इंजीनियरिंग के पंकज अकोला को डॉ. शंकरदयाल शर्मा पदक, उद्यमिता पाठ्यक्रम में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन लिए सोमेश चंद्रकांत को एनएमसीसी स्वर्ण पदक प्रदान किया। निदेशक प्रो.संजय गोविंद धांडे ने प्रधानमंत्री को मानद उपाधि प्रदान करते हुए प्रगति आख्या सौंपी। कुलसचिव संजीव एस कशालकर ने उनका परिचय कराया।

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    http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6540961.html

    सबसे बड़ी समस्या गरीबी

    -कुलदीप नैयर

    मेरा ऐसा मानना है कि दुनिया से गरीबी केवल बंदूक से नहीं हट सकती। इसलिए मैं फिर जोर देकर कहता हूं कि किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी का गठन हो जो अहिंसात्मक रूप से गरीबी हटाने का प्रयास करे।

    दुनिया में अगर सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है गरीबी। भारत की 70 फीसदी आबादी अभी भी भरपेट खाना नहीं खा पाती। अमीरी-गरीबी का फासला बढ़ते ही जा रहा है। देश में व्याप्त गरीबी और भुखमरी को राजनीतिक पार्टियां ही खत्म कर सकती हैं। मगर इस समय कोई ऐसी पार्टी नहीं दिखती जो इस समस्या को खत्म करने के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करे। इसलिए देश में व्याप्त गरीबी, भुखमरी आदि को खत्म करने के लिए एक नई पार्टी का गठन होना चाहिए जिसका मुख्य लक्ष्य गरीबी हटाना हो।

    नक्सली गरीबी हटाने में कुछ प्रयास कर सकते हैं मगर वे आज अपने रास्ते से भटक गए हैं। मेरा ऐसा मानना है कि दुनिया से गरीबी केवल बंदूक से नहीं हट सकती। इसलिए मैं फिर जोर देकर कहता हूं कि किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी का गठन हो जो अहिंसात्मक रूप से गरीबी हटाने का प्रयास करे। देश में गरीबी हटाने के लिए जनजागरण करे। गरीबी हटाने का दंभ भरने वाले नक्सलियों की जमात में गलत लोग आ गए हैं। इनके संगठन में काम करने वाली महिलाएं इनके शोषण का शिकार हो रही हैं। ऐसी स्थिति में ये गरीबों के उध्दारक नहीं हो सकते।

    आज की सरकार महंगाई पर काबू नहीं पा रही है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते जा रहे हैं। अनाज के दाम में आग लगी हुई है। वहीं दूसरी तरफ मजदूरी करने वाले मजदूर का सब तरह से शोषण हो रहा है। उन्हें नाममात्र की मजदूरी मिल रही है। अगर किसी को मेरी बात पर शक हो तो गांवों में जाकर वह इनकी बदहाली को देख सकता है।
    गरीबों के बच्चों को शिक्षा और पोषाहार देने के लिए सरकार आंगनबाड़ी कार्यक्रम चला रही है मगर इसमें भी भ्रष्टाचार आ गया है। गरीबों के बच्चों के पोषाहार को बेच दिया जाता है।

    गरीबी, भुखमरी बढ़ाने में भ्रष्टाचार का भारी योगदान रहा है। कोई भी काम बिना भ्रष्टाचार के हो ही नहीं रहा है। आज पुलिस से लेकर सरकारी अफसर तक भ्रष्ट हो गए हैं। तो ऐसे में गरीबों को कैसे न्याय मिल सकता है। आज महंगाई दिन-दूगनी, रात चौगुनी बढ़ती जा रही हैं। सीमेंट, स्टील के दाम बढ़ते ही जा रहे है। ऐसे में गरीब के लिए मकान का स्वप्न सिर्फ स्वप्न ही बनकर रह जाएगा। सरकार दुकानदारों से सामानों के दाम सस्ता करने को कहती है तो वे उसके दाम और बढ़ा देते हैं। आज अनाज का संकट चिंता का विषय बना हुआ है। हालत यह है कि चीजें कम हैं और पैसा ज्यादा है। अमीर वर्ग के लोग उन चीजों को खरीद लेते हैं मगर गरीब उसे कैसे खरीदें?

    बढ़ती गरीबी और भुखमरी के लिए देश में बढ़ती जनसंख्या भी काफी जिम्मेदार है। अनाज की पैदावार कम है मगर खाने वाले उससे ज्यादा हैं। देश की आबादी को कम करने के लिए सरकार को कुछ करना चाहिए जिससे बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण हो सके। राजनीतिक पार्टियों को इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए। स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने परिवार नियोजन कार्यक्रम को चलाया था मगर बाद में उनकी सरकार गिर गई। राजनीतिक दलों ने सरकार गिरने के प्रमुख कारणों में इसे भी माना। तब से कोई राजनीतिक दल इस पर कभी गौर से विचार ही नहीं करता। जनसंख्या नियंत्रण के लिए मीडिया को मिलकर आंदोलन चलाना चाहिए।

    आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार किया जा चुका है कि एक अरब से अधिक की जनसंख्या में तकरीबन 26 करोड़ व्यक्ति दीन-हीन हैं और लगभग 39 करोड़ निरक्षर। लोगों की परेशानियां इसलिए बढ़ रही हैं कि हमने विकास के लिए पाश्चात्य माडल अपना लिया है। क्या इसे विश्व बैंक की देन कहें? विकास दर प्रभावी हो सकती है, किन्तु आम आदमी बहुत पिछड़ा और असहाय है।

    हथियारों पर बहुत ज्यादा व्यय हो रहा है। एक युध्दक विमान की कीमत में 1500 स्कूलों और 500 स्वास्थ्य केन्द्रों का निर्माण हो सकता है। हमारे देश में फौज पर बहुत ज्यादा धन खर्च होता है। मेरा मानना है कि इसमें भी कमी होनी चाहिए। गरीबों और किसानों पर अत्याचर नहीं होना चाहिए। सरकार खाद्यान्नों का उत्पादन करने वाले किसानों का ध्यान नहीं रख रही है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) को ही लें जिसके अंतर्गत गरीबों, किसानों की जमीन जबरन हड़पी जा रही हैं। मेरे विचार से किसान की इच्छा जमीन देने की हो तभी उसकी जमीन ली जानी चाहिए वरना जबरन जमीन खाली करवाना किसान के साथ अन्याय है। टाटा की नैनो कार से गरीब का क्या वास्ता। गरीब के लिए लाखों की कार खरीदना संभव नहीं है।

    देश में बढ़ती गरीबी और भुखमरी के लिए संसद को मिलकर सोचना चाहिए। क्योंकि पार्टी कोई हो मगर मरता सिर्फ गरीब ही है। जिस तरह महात्मा गांधी ने आंदोलन चलाया था कि अंग्रेजी हुकूमत हटाओ ठीक उसी तर्ज पर आंदोलन चलाना चाहिए। इसमें 'गरीबी हटाओ' का नारा बुलंद किया जाना चाहिए। क्योंकि गांधी ने कहा था कि राजनीतिक आजादी तो मिल गई मगर आर्थिक आजादी नहीं मिली। जयप्रकाश नारायण ने भी तानाशाही के खिलाफ आंदोलन चलाया था। ठीक इसी प्रकार गरीबी, भुखमरी हटाने के लिए एक नया आंदोलन चलाना चाहिए।

    गरीबी और भुखमरी के लिए अशिक्षा भी जिम्मेदार है। अनपढ़ व्यक्ति ढेरों बच्चे पैदा कर डालता है। वे परिवार नियोजन नहीं अपनाते। जिसके पास ढेर सारे बच्चे रहेंगे वे अपने बच्चों को पढ़ाएं या खिलाएं। उनके समक्ष ऐसी समस्याएं आ खड़ी होती हैं। ऐसे में सरकार को परिवार नियोजन का महत्व समझाना चाहिए।

    मुसलमानों में भी भारी गरीबी है जिसका कारण बड़ा परिवार है। इसलिए उन्हें भी पूरी तालीम दिलवानी चाहिए। हायर सेकेंडरी स्कूल तक मुफ्त शिक्षा दी जानी चाहिए। मदरसे में ऐसी शिक्षा की व्यवस्था हो जो काम आ सके। मुस्लिम युवाओं को गुमराह करने वाले कई मौलवी इस देश में हैं। ये ही उनकी गरीबी और अशिक्षा के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। संसद को चाहिए कि गरीबी हटाने के लिए एक जागृति पैदा करे। ऐसी हिम्मत पैदा करनी चाहिए कि जैसे हमने अंग्रेजों को निकाला है वैसे ही गरीबी को दूर भगाएंगे। हमारे देश में एक ऐसी राजनीतिक पार्टी होनी चाहिए जो गरीबों के लिए हो। जो गरीबी दूर करने की सोचे, वो भी बिना बंदूक के।

    प्रस्तुति: राजीव कुमार

    http://www.bhartiyapaksha.com/?p=407

    [13 Jul 2010 | No Comment | ]
    अरुंधती और मेधा के ख़िलाफ भूमिका बना रही है पुलिस

    रामनाथ गोयनका अवार्ड

    [13 Jul 2010 | Read Comments | ]

    डेस्‍क ♦ इस साल का रामनाथ गोयनका एवार्ड खोजी रिपोर्टिंग के लिए आजतक के अभिसार शर्मा को और पॉलिटिकल रिपोर्टिंग का अजीत अंजुम को दिया जाएगा।

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    "मैं माओवादी नहीं"

    [13 Jul 2010 | Read Comments | ]

    डेस्‍क ♦ दिल्‍ली में एक प्रेस कानफ्रेंस करके छत्तीसगढ़ पुलिस की तरफ से घोषित किये गये माओवादी मास्टरमाइंड लिंगाराम कोडोपी ने खुद को बेगुनाह बताया है।

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    डेस्‍क ♦ पहले भी पुलिस के आला अधिकारी अरुंधती रॉय और हिमांशु कुमार पर नक्सलियों से साठगांठ के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने मेधा पाटकर को भी इसमें लपेट लिया है।
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    मोहल्ला दिल्ली, शब्‍द संगत »

    [13 Jul 2010 | 2 Comments | ]
    शब्‍द, भाव, चित्र, कविता और कपिल सिब्‍बल

    शिवानी खरे ♦ जहां शब्दों से भाव मूर्त होते हैं वहीं लकीरें चित्र को मूर्त बनाती हैं और उन चित्रों में रंग भरे जा सकते हैं। यह बात केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्‍बल ने विश्‍वजीत की कविता पुस्‍तक कुछ शब्‍द कुछ लकीरें के लोकार्पण समारोह में कही। विश्‍वजीत का सीधा जुड़ाव राजनीति से है और राजपथ पर चलते चलते अक्‍सर वे कविता की पगडंडी पर चलने लगते हैं। कपिल सिब्‍बल ने कहा कि आजकल तो सारे नेता कवि बनते जा रहे हैं। फिर सिब्बल ने विश्वजीत के साथ अपनी दोस्ती की यादें ताजा कीं और कहा कि उनकी कविताओं को पढ़कर और उनकी रेखाओं को समझकर उन्हें और उनकी राजनीतिक यात्रा और अनुभव से और गहराई से जुड़ने का मौका मिलेगा।

    uncategorized »

    [13 Jul 2010 | Comments Off | ]

    मोहल्ला दिल्ली, शब्‍द संगत »

    [12 Jul 2010 | 13 Comments | ]
    धृतराष्ट्र-भीष्म पितामह संवाद : साहित्यिक प्रहसन

    भीष्‍म पितामह ♦ हस्तिनापुर विद्यापीठ की सत्ता अब मथुरा के एक पंडे के हाथ में आ गयी है। उसने मेरे ही जमाता को आचार्य पद पर प्रतिस्थापित नहीं होने दिया। एक समय मैं खुद पदवियां बांटा करता था। अब असहाय हूं। अब गोष्ठियों की अध्यक्षता करने के सिवा मेरे पास कोई काम नहीं बचा है। कुरुवंश के साहित्य का मैं शो-पीस बनकर रह गया हूं। पुरानी तथाकथित प्रतिबद्धता और प्रतिष्ठा के कारण खाये-अघाये क्रांतिकारी और अफसर अब भी मेरे पास आते हैं, मदिरा सेवन कराते हैं और अपने ऊपर प्रायोजित गोष्ठियों की अध्यक्षता कराते हैं। अब तुम तो जानते हो पुत्र कि इस आयु में मदिरा सेवन के पश्चात मैं भावुक हो जाता हूं और इन खाये-अघाये क्रांतिकारी अफसरों को देखकर मुझे निराला और मुक्तिबोध याद आने लगते हैं।

    नज़रिया, मीडिया मंडी, मोहल्ला दिल्ली »

    [12 Jul 2010 | 8 Comments | ]

    डेस्‍क ♦ क्‍या आज आपातकाल जैसी स्थितियां नहीं हैं? ऐसा नहीं लगता कि बिना किसी के कुछ कहे हम सेंसर को लेकर कितने सतर्क हो गये हैं? क्‍या ऐसा नहीं है कि सरकार वो भरोसे की गली है, जहां हममें से हर कोई अपना सिर छुपाना चाहता है? ये कुछ सवाल थे, जो वरिष्‍ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने दिल्‍ली के कांस्‍टीच्‍यूशन क्‍लब में पूछे, रखे। मौका था उदयन शर्मा के 62वें जन्‍मदिन पर आयोजित परिचर्चा का। विषय था, लॉबीइंग, पैसे के बदले खबर और समकालीन पत्रकारिता। दैनिक भास्‍कर के समूह संपादक श्रवण गर्ग ने कहा कि हम सिस्‍टम से इस बारे में कोई कानून बनाने की बात क्‍यों करते हैं? कानून बनेगा, तो पेड न्‍यूज के रास्‍ते दूसरे हो जाएंगे। हमें किसी भी दूसरे से ज्‍यादा अपनी जमात पर भरोसा करना होगा।

    नज़रिया, मोहल्ला दिल्ली, शब्‍द संगत »

    [10 Jul 2010 | 25 Comments | ]
    आप बताइए, ये एक संपादक का पतन है या कवि का?

    अविनाश ♦ मैंने उनसे फिर पूछा कि आप साहित्‍यकारों, फिल्‍मकारों, पत्रकारों, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के नाम ले रहे हैं – इनमें से कोई सत्ता-राजनीति से जुड़ा नाम क्‍यों नहीं है। उन्‍होंने कहा कि दिल्ली आशीर्वाद समारोह में एक भी राजनेता बुलाया नहीं गया था। अशोक गहलोत को भी नहीं। जयपुर में आये थे, क्‍योंकि उनसे बत्तीस साल पुराना नाता है। उन्‍होंने कहा कि राजनेताओं से रिश्‍ते रहे हैं, लेकिन उनसे एक दूरी भी रही है। उन्‍होंने यह भी सूचना दी कि बेटी की शादी के वक्‍त भी दिल्ली में IIC में हुए आशीर्वाद समारोह में राजनेता बाहर रखे गये थे। जिनसे रिश्‍ते थे, उन्हें कहा था कि आना है तो दूरस्थ बीकानेर में शादी पर आ जाइए; सुविधाजनक दिल्ली में नहीं।

    मोहल्ला दिल्ली, शब्‍द संगत »

    [10 Jul 2010 | 22 Comments | ]
    धृतराष्ट्र-संजय संवाद : एक साहित्यिक प्रहसन

    कलियुगी वेदव्यास ♦ धृतराष्ट्र : आखिर कुमार ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस पूरे आर्यावर्त में उन जैसा वीर पुरुष तो मेरी दृष्टि में कोई दूसरा है नहीं। संजय : आपकी दृष्टि? खैर छोड़‍िए… आप तो जानते हैं कि बंग प्रदेश उनकी मातृभूमि है और फिर वे इन दिनों सनातन बाबू का दांपत्य छोड़ एक सुकुमारी कवयित्री के प्रेम में पड़ गये हैं और रास-रंग में लीन हैं। धृतराष्ट्र : ओह, उन्हें फौरन फोन लगाओ और कहो कि युद्धकाल में रास-रंग शास्त्रोचित नहीं है। संजय : उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा है महाराज। लगता है कि वे रंगशाला में हैं। धृतराष्ट्र : ऐसे में कौरव सेना का नेतृत्व कौन कर रहा है वत्स? संजय : युद्ध का नेतृत्व कुमार दुर्योधन के प्रिय 'अंग देश' के मित्र नरेश सूतपुत्र कर्ण कर रहे हैं महाराज।

    मोहल्‍ला लंदन, शब्‍द संगत, समाचार »

    [10 Jul 2010 | 4 Comments | ]
    वंचितों के पक्ष में खड़े होना लेखक की जिम्‍मेदारी : सुलभ

    डेस्‍क ♦ लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में सोलहवां अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान लेने के बाद कथाकार हृषिकेश सुलभ ने कहा कि उनके लिए लिखना जीने की शर्त है। बिहार की जिस जमीन से वे आते हैं, वहां एक एक सांस के लिए संघर्ष करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारी साझा संस्कृति को राजनीति की नजर लग गयी है। हम लेखक उसे बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। न्याय का सपना अभी भी अधूरा है और वंचित के पक्ष में खड़ा होना लेखक की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में हिंदी लेखक हृषिकेश सुलभ को उनके कथा संकलन 'वसंत के हत्यारे' के लिए 'सोलहवां अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान' प्रदान किया।

    मोहल्‍ला रायपुर, स्‍मृति »

    [9 Jul 2010 | 2 Comments | ]
    मुक्तिबोध की पत्‍नी का रायपुर में निधन

    डेस्‍क ♦ कवि मुक्तिबोध की पत्‍नी शांता मुक्तिबोध का निधन गुरुवार रात हो गया। उनकी उम्र 88 वर्ष थी। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थीं। शुक्रवार सुबह 11 बजे उनका अंतिम संस्कार रायपुर के देवेंद्र नगर श्मशानघाट में किया गया। वे रमेश, दिवाकर, गिरीश व दिलीप मुक्तिबोध की मां थीं। उन्हें मुखाग्नि उनके कनिष्ठ पुत्र गिरीश मुक्तिबोध ने दी। हिंदी कविता के शीर्ष गजानन माधव मुक्तिबोध के संघर्ष के दिनों में शांता जी ने उनका हर वक्‍त साथ दिया। इस बात का जिक्र हरिशंकर परसाई, नेमिचंद जैन, अशोक वाजपेयी जैसे साहित्यकारों ने अपने संस्मरणों में किया है। पति के निधन के बाद बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के साथ उनको मुकाम दिलाने में शांता जी ने अहम भूमिका निभायी।

    मोहल्ला दिल्ली, स्‍मृति »

    [9 Jul 2010 | 2 Comments | ]
    पत्रकारों ने हेम के लिए सभा की, पुलिस को कोसा

    डेस्‍क ♦ अरुंधती राय ने कहा कि मसला यह नहीं है कि हेम पत्रकार थे या नहीं और हेम माओवादी थे या नहीं। किसी भी सरकार को ऐसे हत्या करने का हक नहीं है। मैं हेम और आजाद दोनों की हत्या की निंदा करती हूं। आजाद माओवादी थे तब भी सरकार को उनकी हत्या करने का कोई अधिकार नहीं है। सरकार कानून का इस्तेमाल करके जेल में डाल सकती है पर किसी की हत्या नहीं कर सकती। चाहे वह किसी भी विचारधारा से ताल्लुक रखता हो। हमें इस मामले में जांच चाहिए कि क्या हुआ था, कहां से उन्हें पकड़ा गया, कहां उन्हें मारा गया और क्यों उन्हें मारा गया। सब जानते हैं कि आजाद माओवादी पार्टी के मुख्य शख्स थे जो शांति वार्ता की कोशिश में लगे थे।

    नज़रिया, शब्‍द संगत »

    [9 Jul 2010 | 48 Comments | ]
    यह कौन बोल रहा है? तोगड़िया या ठाकुर नामवर सिंह?

    दिलीप मंडल ♦ इन तमाम बयानों के बीच ही हमने नामवर सिंह, माफ कीजिएगा ठाकुर नामवर सिंह के बयान भी देखे। ठाकुर नामवर सिंह इन दिनों शानदार संगत में हैं। वे एक ऐसे आंदोलन से जुड़ गये हैं, जहां उनके साथ मंच पर प्रवीण तोगड़िया, मोहन भागवत, मुरलीमनोहर जोशी, सीआईआई से जुड़े उद्योगपति और सबड़े बड़े पूंजीपति खड़े हैं। सोमनाथ चट्टोपाध्याय का समर्थन भी उन्हें मिल गया है। इस मंच से ठाकुर नामवर सिंह हिंदुस्तान के साहित्यकारों को उनकी ऐतिहासिक भूमिका की याद दिला रहे हैं। तो योद्धाओ, तैयार हो जाओ। रणभूमि पुकार रही है। साहित्‍यकार आगे आएं और "संतों के साथ" मिलकर जाति गणना के "दुष्चक्र को तोड़ें" और ठाकुर नामवर के सपनों को पूरा करें।

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    [7 Jul 2010 | 10 Comments | ]
    पीपली लाइव पर कुछ बात, तस्वीरें और टीजर

    प्रकाश कुमार रे ♦ बहुत दिनों के बाद ऐसी कोई फिल्म आ रही है, जिसका इंतजार इतनी बेसब्री से मैं कर रहा हूं। यह फिल्म है, पीपली लाइव। मुझे पक्का भरोसा है कि यही इंतजार वे सब लोग कर रहे हैं, जिन्होंने महमूद फारूकी, दानिश हुसैन और अनुषा रिजवी की दास्तानगोई सुनी है। यह इस टीम की पहली फिल्म है, जिसे अनुषा निर्देशित कर रही हैं। जिन्होंने मैसी साहब, मुंगेरी लाल के हसीन सपने, मुल्ला नसीरुद्दीन से लेकर सलाम बॉम्बे, लगान, वाटर तक रघुबीर यादव के अभिनय का आनंद उठाया है, वे रघुवीर यादव इस फिल्‍म के अहम किरदार हैं। रघु भाई बड़े दिनों के बाद परदे पर दिखेंगे।

    नज़रिया »

    [7 Jul 2010 | One Comment | ]
    जनगणना में जाति की गिनती के लिए दबाव बनाएं

    जनहित अभियान ♦ इस समय देश में हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग सेंसस का काम चल रहा है। जनगणना का दूसरा चरण शुरू होने में सिर्फ आठ महीने रह गये हैं। इस देश की लोकसभा ने, जो राष्ट्र के लोगों की राय को व्यक्त करने का सबसे बड़ा, प्रामाणिक और प्रतिनिधि मंच है, सर्वसहमति से जनगणना में जाति की गिनती करने के पक्ष में राय दी है। यह खेद की बात है कि लोकसभा में बनी आम सहमति को मीडिया और कुछ बुद्धिजीवी एक अन्य किस्म की आम सहमति तैयार करने की कोशिश के द्वारा खंडित करने की कोशिश कर रहे हैं। जाति जनगणना के खिलाफ चलाये जा रहे इस अभियान के माध्यम से लगातार भ्रम की स्थिति बनायी जा रही है।

    Palash Biswas
    Pl Read:
    http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

    No comments:

    मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

    হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

    मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

    Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

    हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

    In conversation with Palash Biswas

    Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

    Save the Universities!

    RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

    जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

    #BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

    अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

    ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

    Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

    THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

    BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

    Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

    Imminent Massive earthquake in the Himalayas

    Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

    Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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