क्रिकेट कार्निवाल में शाहरूख खान के कोलकाता नाइट राइडर्स टीम में अन्तत: रवीन्द्रनाथ और महाबली खली। नीली क्रान्ति के विपणन में बेशर्म सांस्कृतिक संक्रमण का अद्भुत तामाशा। तमाशबीन पश्चिम बंगीय पोंगापंथी मार्क्सवादी पूंजीवादी सवर्ण बांग्ला राष्ट्रीयता।
पलाश विश्वास
अपने जाने-माने अंदाज में कोलकातावासियों का अपनापन और प्यार पाने के लिए सुपरस्टार व आईपीएल कोलकाता टीम के मालिक शाहरुख खान ने गुरुवार को खुद को साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर का जबरदस्त प्रशंसक बताया। ईडन गार्डन में मैच के लिए शाम को शहर के हवाई अड्डे पर उतरते ही शाहरुख ने कहा, “मैं रवीन्द्र नाथ टैगोर का जबरदस्त प्रशंसक हूं। मुझे बंगाली नहीं आती लेकिन मैंने उनकी सभी अनुवादित कविताएं पढ़ी हैं।
रवीन्द्रनाथ का भूमंडलीय बाजार में कारपोरेट इस्तेमाल कोई नयी बात नहीं है। रवीन्द्र नोबेल पदक और रवीन्द्र विरासत गंवाने वाले कविगुरु के सपनों की तपस्याभूमि विश्वभारती इस आपाधापी में सबसे आगे है। पोंगापंथियों ने वोटबैंक समीकरण और मूलनिवासी सफाया एजंडा के तहत अंधाधुंध शहरीकरण और पूंजीवादी विकास में रवीन्द्र का भरपूर इस्तेमाल किया। पाक फौजी हुकूमत ने भारतीय राष्ट्रीयता के जनक और विश्व बन्धुत्व के प्रवक्ता जिस कवि पर प्रतिबन्ध लगाकर बांग्ला भाषा आन्दोलन और बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम की जमीन तैयार की, जिस कवि के रोमांटिक गीत आमार बांग्ला आमि तोमाय भालोबासि होंठों पर सजाकर तीस लाख आजादी के दीवाने बंगालियों ने, हिन्दुओं और मुसलमानों ले विभाजन और मजहब के नाम पर दो राष्ट्र सिद्धान्त को खारिज करके हंसते हंसते शहादते दी, लाखों मां बहनों ने आजादी की कीमत बतौर अपनी अस्मत तक दांव पर लगा दिया, हमलावरो के सामूहिक बलात्कार और उनके नाजायज गर्भ को झेल लिया, उस रवीन्द्रनाथ का इस्तेमाल मूलनिवासी सफाया अभियान में हो रहा है। बेशर्म बुद्ध बुश प्रणव तिकड़ी ने साम्राज्यवादी, सामन्ती पूंजीवादी मनुस्मृति व्यवस्थ और रंगभेदी श्वेत नवउदारवादी सार्वभौम बाजार में खड़ा कर दिया रवीन्द्रनाथ को। जलेस प्रलेस ने प्रेमचंद को पूंजीवादी विकास का पक्षधर साबित किया तो उन्ही की पोंगापंथी पश्चिम पंग सरकार ने रवीन्द्र जयंती पर सरकारी विज्ञापन जारी करते हुए रवीन्द्रनाथ को शहरीकरण. औद्यौगीकरण, सेज, कैमिकल हब और परमाणु ऊर्जी का प्रवक्ता बना दिया है। तो शाहरूख खान ने अप्रवासी कारपोरेट सवर्ण सत्तावर्ग के अंधाधुंध मुनाफे के लिए रवीन्द्रनाथ को भुनाया तो क्या गुनाह किया?
खासकर तब जबकि लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी की अगुवाई में शान्तिनिकेतन अब प्रोमोटरों बिल्दरों माफिया के हवाले है? आनन्दबाजार प्रकाशन सूह ने रवीन्द्र को नीली क्रानित में समाहित करने की मुहिम छेड़कर बांग्ला भाष का बतौर वेश्यावृत्ति इस्तेमाल जारी रखा है अपने गुलाम संस्कृतिकर्मियों के जरिए। जिनमें कोई साहित्य अकादमी अध्यक्ष है तो कोई प्रतिरोध आन्दोलन का मसीहा। इस कार्रवाई को सत्ता और सत्तावर्ग का पूरा समर्थन है तो शाहरुख की आलोचना किस आधार पर?
रवीन्द्र के दलित विमर्श पर बंगाल में चर्ची नहीं होती। हालांकि अस्पृश्.ता के विरुद्ध और बौद्धधर्म के पक्ष में लिख नृत्य नाटिका चंडालिनी का मंचन सबसे ज्याद होता है। नोबेल पुरस्कार पाने से पहले तक अस्पृश्य थे रवीन्द्रनाथ और उन्हे पुरी के मन्दिर में प्रवे नहीं करने दिया गया। गीतांजलि अन्त्यज सूफी संत दर्शन बाउल संस्कृति से प्रेरित है और अछूतों के पक्ष में रवीन्द्रनाथ ने राशियार चिठि जैसी रचनाएं तक लिखीं। रथेर रशि में उन्होंन बाकायदा अस्पृश्य मूलनिवासियों के नेतृत्व में परिवर्तन की बात की। पर नोबेल पदकधारी मूलनिवासियों के सबसे महान कवि पर सवर्ण सत्तावर्ग ने ऐसा कब्जा जमाया कि उनके दलित विमर्श पर चर्चा ही शुरु नहीं हुई। हिन्दी में भी ऐसे सवर्ण मसीहा मौजूद हैं जो साहि्य विरासत का इस्तेमाल सवर्म हित में करते हैं और साहित्य अकादमी, सरकार, हिंदी प्रसार से लेकर जसम जलेस तक में अग्रगामी हैं। ऐसे ही एक महान मसीहा कवि केदार नाथ सिंह और उनके पिट्ठू प्रकाशक हरिश्चन्द्र पांडे मेरी पुस्तक रवींन्द्र का दलित विमर्श की पांडुलिपि वर्षों से दबाये हुए हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन को राहत देते हुए उनके खिलाफ हिंदू देवियों के अश्लील पेंटिंग्स बनाकर धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने के आरोप में दर्ज आपराधिक मामला रद्द कर दिया है। जस्टिस संजय किशन कौल ने मामले को आधारहीन बताते हुए कहा कि यह भिन्न अभिमत का मामला है, जो आपराधिक मामले का आधार नहीं बन सकता है।
वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए फ्रांस के लेखक और कार्यकर्ता डोमिनिक लैपियर ने कहा है कि यहां के प्रभावित इलाकों में बच्चे जहरीला पानी पी रहे हैं। राजधानी के जंतर-मंतर में रविवार शाम को भोपाल गैस त्रासदी के प्रभावितों के प्रदर्शन के दौरान लैपियर ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से गुजारिश की कि इनकी समस्याओं को सुनें।
शाहरुख के शो पर सवालिया निशान
ईडन गार्डन में मैच के लिए शाम को शहर के हवाई अड्डे पर उतरते ही शाहरुख ने कहा, “मैं रवीन्द्र नाथ टैगोर का जबरदस्त प्रशंसक हूं। मुझे बंगाली नहीं आती लेकिन मैंने उनकी सभी अनुवादित कविताएं पढ़ी हैं।"
बांग्ला के सुप्रसिद्ध साहित्यकार गुरुदेव टैगोर की प्रशंसा करते हुए शाहरुख ने कहा, “टैगोर विश्व साहित्य के सार-संग्रह हैं। मैं जब भी तनाव में होता हूं, उनके गीत व कविताएं मुझे प्रेरित करती हैं।”
शाहरुख ने टाला संगीत कार्यक्रम
गुरुदेव के जन्म दिन के खास मौके पर अपनी टीम का टैगोर की जन्म स्थली “बंगाल” में मैच खेलने को उन्होंने टीम के लिए गौरव का विषय बताया।
आज गुरुदेव की जयंती है और आज के दिन शाहरुख के कार्यक्रम को पश्चिम बंगाल सरकार ने यह कह कर अनुमति नहीं दी थी कि यह उनकी संस्कृति के अनुरूप नहीं।
बाद में कोलकातावासियों की संवेदना को ध्यान में रखते हुए शाहरुख ने खेल से पहले 10 मिनट के अपने कार्यक्रम को रद्द कर दिया।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बांग्ला: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ् ठाकुर्) (7 मई, 1861 – 7 अगस्त, 1941) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है, विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगद्रष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति है। उन्होने भारत के राष्ट्रीय गान जन गण मन और बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला की रचना की।
इंडियन प्रीमियर लीग में कोलकाता नाइट राइडर्स और बेंगलूर रॉयल चैलेंजर्स के बीच होने वाला मैच बारिश के कारण निर्धारित समय पर शुरू नहीं हो सका है। दोनों ही टीमों का टूर्नामेंट में अब तक का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। कोलकाता ने छह मैचों में 2 में जीत दर्ज की है जबकि चार में उसे हार का सामना करना पड़ा है वहीं बेंगलूर को सात मैचों में दो में जीत व पांच में हार मिली है। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर गौतम मोहन चक्रवर्ती ने मंगलवार को कहा कि ईडन गार्डंस में गुरुवार को कोलकाता नाइट राइडर्स और बेंगलुरु रॉयल चैलेंजर्स के बीच होने वाले आईपीएल के मैच के पहले फिल्म अभिनेता शाहरुख खान का कार्यक्रम नहीं होगा। उन्होंने कहा रेड चिल्ली इंटरटेनमेंट ने उन्हें बताया कि नाइट राइडर्स टीम के मालिक शाहरुख इस महत्वपूर्ण ट्वेंटी-20 मैच के पहले अपना कार्यक्रम पेश नहीं करेंगे।
महान साहित्यकार तथा नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगोर का आठ मई को जन्मदिन है। पश्चिम बंगाल के खेल मंत्री सुभाष चक्रवर्ती ने बंगाल क्रिकेट असोसिएशन (कैब) से कहा है कि वह शाहरुख खान के शो के आयोजकों को स्वर्गीय टैगोर के जन्मदिन की अहमियत के बारे में बताएं।
उन्होंने कहा, 'उस पावन दिन कोई व्यक्ति ऐसा कार्यक्रम आखिर कैसे कर सकता है जो हमारी संस्कृति और परंपराओं से मेल नहीं खाता।' गौरतलब है कि बंगाल के लोग हर 'पचीशे बैशाख' के दिन कवि गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्मदिन बहुत उत्साह तथा हर्षोल्लास से मनाते हैं। अगर शो का आयोजन बहुत जरूरी है तो कैब को आयोजकों से इस कार्यक्रम के स्थान में बदलाव करने के लिए कहना चाहिए। '
चक्रवर्ती का यह बयान ऐसे समय आया है जब शो की मैनेजमेंट कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट, पुलिस और कैब शाहरुख इसके लिए ईडन गार्डन्स में सही जगह के बारे में विचार-विमर्श कर रहे हैं।
जीवन
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म सन 1861 में कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। then बचपन से ही उनका कविता, छन्द और भाषा में अद्भूत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा। देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को वे आहरण करके अपने अन्दर सिमट लिए थे। उनके पिता ब्राह्म धर्म के होने के कारण रवीन्द्रनाथ भी ब्राह्म कहलाते थे। पर अपने रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होने सनातन धर्म को भी रहा दी और आगे बढ़ाया।
मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनके रचनाओ के अन्दर वे अलग अलग रूपों में उभर आये। साहित्य का शायद ही ऐसा कोइ शाखा है, जिनमें उनकी सृष्टि न हो - कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला - सभी मे।
उनके कविताओं अलग अलग पुस्तकों में प्रकाशित हुई - गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि। एक आध पुस्तको फिर उन्होने अंग्रजी में अनुवाद करने लगे। अब तक तो उनके प्रतिभा बंगाली समाज में ही समादृत हुआ था, पर अनुवाद होते ही वह विश्व को भी दिखने लगा।
[संपादित करें] सम्मान
उन्हे साहित्य के लिये 1915 का नोबेल पुरस्कार मिला।
[संपादित करें] रवीन्द्र साहित्य
गीताञ्जलि से एक लोकप्रिय रचनाः
আমার এ গান ছেড়েছে তার সকল অলংকার,
তোমার কাছে রাখে নি আর সাজের অহংকার।
অলংকার যে মাঝে পড়ে মিলনেতে আড়াল করে,
তোমার কথা ঢাকে যে তার মুখর ঝংকার।
তোমার কাছে খাটে না মোর কবির গর্ব করা,
মহাকবি তোমার পায়ে দিতে যে চাই ধরা।
জীবন লয়ে যতন করি যদি সরল বাঁশি গড়ি,
আপন সুরে দিবে ভরি সকল ছিদ্র তার।
आमार ए गान छेड़ेछे तार शॉकोल ऑलोङ्कार
तोमार कछे रखे नि आर शाजेर ऑहोङ्कार
ऑलोङ्कार जे माझे पॉड़े मिलॉनेते अड़ाल कॉरे,
तोमार कॉथा ढाके जे तार मुखॉरो झॉङ्कार ।
तोमार काछे खाटे ना मोर कोबिर गॉरबो कॉरा,
मॉहाकोबि, तोमार पाये दिते जे चाइ धॉरा ।
जीबोन लोये जॉतोन कोरि जोदि शॉरोल बाँशि गॉड़ि,
आपोन शुरे दिबे भोरि सॉकोल छिद्रो तार
गीतांजली / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
From Hindi Literature
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रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गीतांजली
चित्र:--
रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अनुवादक: रणजीत साहा
प्रकाशक: किताबघर प्रकाशन, 485556/24 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
वर्ष: 2006
मूल भाषा: बंगला
विषय: --
शैली: --
पृष्ठ संख्या: 196
ISBN: 81-7016-755-8
विविध: गीतांजली के लिये रवीन्द्रनाथ ठाकुर को 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इस पन्ने पर दी गयी रचनाओं को विश्व भर के योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गयी प्रकाशक संबंधी जानकारी प्रिंटेड पुस्तक खरीदने में आपकी सहायता के लिये दी गयी है।
मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कितने अनजानों से तुमने करा दिया मेरा परिचय / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
विपदा से मेरी रक्षा करना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अंतर मम विकसित करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रेम में प्राण में गान में गंध में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज धान खेत की धूप-छाँव में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आनन्द सागर में आज उठा है ज्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम्हारे सोने के थाल में सजाऊंगा आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हमने बांधी है कास की आँटी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अमल धवल पाल में कैसी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जब मेरा नैन-भुलैया आया / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जननी, तुम्हारे करूण चरणद्वय / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
सारे अग-जग में उदार सुरों में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
बिछ गए बादलों पर बादल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कहाँ है प्रकाश, कहाँ है उजाला / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज सघन सावन घन मोह से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
घिर आई आषाढ़ की संध्या / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज झंझा की रात में है तुम्हारा अभिसार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जानता हूँ आदिकाल से ही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम कैसे गाते हो गान, ओ गायक गुनी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
इस तरह से ओट लेकर छिपने से तो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
यदि देख न पाऊँ प्रभु तुम को / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
विरह तुम्हारा देखँ अहरह / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
लो ढल गई वेला उतरी छाया धरा पर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज भरी बदरी बरस रही है झर-झर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रभु, तुम्हारे लिए ये नैना जागे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
धन-जन से मैं घिरा हुआ हूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हाँ, यही तो है तुम्हारा प्रेम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं रहता हूँ टिका यहाँ बस / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरा भय नष्ट करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
इन सबने घेर लिया फिर मेरा मन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझ से मिलने को तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आओ, आओ हे सजल घन आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जोड़ नहीं पाओगे क्या कुछ तुम इस छंद में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
निशा स्वप्न से पाई मुक्ति / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज शरत में कौन अतिथि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जो गीत यहाँ गाने आया था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
बैठा उसे सम्भालूँ कब तक / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
यह मलिन वसन तजना होगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
पुलक जगी है तन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रभु, आज छुपा कर मत रखना तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
इस जग के आनंद यज्ञ में मिला निमंत्रण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आलोक में आलोकित करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं तुम्हारे आसन तले धरा पर लोटता रहूंगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
रूप के सागर मैं पैठा हूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
एक-एक कर खिली पंखुरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
यहीं उन्होंने डेरा डाला / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
निभृत प्राणों का देवता / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
किस प्रकाश से जला कर प्राण का प्रदीप / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम मेरे हो, अपने हो, पास मेरे ही रहते हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझे झुका दो, मुझे झुका दो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज सुरभिसिक्त पवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आज द्वार पर आ पहुँचा है जीवंत बसंत / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अपने सिंहासन से उतर कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जीवन जब सूख जाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अपने इस वाचाल कवि को / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
विश्व है जब नींद में मगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
वह तो तुम्हारे पास बैठा था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम लोगों ने सुनी नहीं क्या / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मान गया, मान गया मैं हार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
एक-एक कर सारे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गाते-गाते गान तुम्हारा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रेम तुम्हारा वहन कर सकूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हे सुंदर आए थे तुम आज प्रात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जब तुम्हारे साथ मेरा खेल हुआ करता था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
खुली नाव थामो पतवार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हृदय खो गया मेरा आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
ओ मौन मेरे तुम करो न कोई बात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जितनी बार जलाना चाहा दीप / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं तुम्हें रखूंगा नाथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
वज्र में बजती तुम्हारी बाँसुरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
करुणा जल से धोना होगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जब सभा होगी विसर्जित तब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जीवन भर की वेदना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम जब कहते हो मुझ को सुनाने गान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरा सारा प्रेमानुराग / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
वे आए थे दिन रहते ही मेरे घर पर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हमें पकड़ कर लेते हैं वसूल, वे महसूल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
इस चांदनी रात में जाग उठे हैं मेरे प्राण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
यह तो तय था एक तरी में केवल हम-तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं अपने एकाकी घर की तोड़ कर दीवार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
लौटूंगा मैं नहीं अकेला इस तरह / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझे नींद से अगर जगाया आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझे तोड़ लो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
चाहता हूँ, मैं तुम्हें ही चाहता हूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरा यह प्रेम न तो कायर है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
और अधिक सह लेगा वह आघात मेरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
ठीक किया है तुमने ओ निष्ठुर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
देवता जान कर ही दूर खड़ा रहता मैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
तुम कर रहे जो काम उसमें / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अखिल विश्व के साथ तुम विहार करते हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझे पुकारो, मुझे पुकारो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जहाँ तुम्हारी मची हुई है लूट भुवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
फूलों जैसा तुम्हीं खिला जाते हो गान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं सदा निहारता रहूँ तुम्हारी ओर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
फिर आ गया आषाढ़ और छा गया गगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
देख रहा हूँ आज रूप वर्षा का, लोगों के बीच / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हे मेरे देवता, भर कर मेरी देह और मेरे प्राण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरी यह साध है इस जीवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मई अकेला बाहर निकल पड़ा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं देख रहा हूँ तुम सबकी ही ओर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
ख़ुद को अपने सिर पर अब आगे कभी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हे मेरे चित्त, इस पुण्य तीर्थ में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जहाँ अधम से अधम और दीन से भी दीन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हे अभागे देश मेरे तुमने किया जिनका अपमान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कभी न छोड़ो, कस कर पकड़ो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हृदय मेरा भरा हुआ है, पूरी तरह भरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कभी गर्व नहीं रहा इस बात का / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कौन कहता है कि सब छोड़ जाओगे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
नदी पार के इस आषाढ़ का विहान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दिन ढलने पर मृत्यु जिस दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दया कर और इच्छा कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
ओ मेरे जीवन की अंतिम परिपूर्णता / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं हूँ राही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
बादल भेदी रथ पर, ध्वजा लहरा कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
भजन-पूजन साधन-आराधन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
सीमा में ही हे असीम तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
इसीलिए आनंद तुम्हारा मुझ पर है निर्भर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मान भरा पद और शयन सुख / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रभुगृह से आया था जिस दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जो सोचा था मन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरे इन गानों ने तज दिए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
निंदा, दु:ख और अपमान में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
राजा जैसे वेश में तुम जिन बच्चों को सजाते हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
उलझ गए हैं आपस में ही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गाने लायक़ रचा न कोई गान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझ में ही होनी है, लीला तुम्हारी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
पता नहीं कहाँ से आता है दु:स्वप्न चल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गान में ही तुम्हारा पाना चाहूंगा संधान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
शेष नहीं होगा तब तक मेरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरे अंतिम गान में सारी रागिनी भर जाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जब मुझे जकड़ रखते हो आगे और पीछे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जितने दिन तुम शिशु के जैसे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरा चित्त तुम में ही नित्य होगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मैं तुम को अपना प्रभु बना कर रखूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मेरे प्राणों को भर, जितना भी दिया है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
ओ रे माझी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अपना मन, अपनी काया को / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जाने का दिन ऎसा हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जिन्हें हम रखते हैं ढाँक, साथ अपने नाम के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जिस दिन मेरा नाम मिटा दोगे, मेरे नाथ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जितना भी छुड़ाना चाहूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
नहीं जानता कैसे मांगूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जीवन में जितनी पूजा थी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
एक ही नमस्कार में प्रभु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जीवन में चिर दिवस / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
नित्य विवाद तुम्हारे साथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रेम के हाथों पकड़ा जाऊँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
इस दुनिया में और भी जितने लोग / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
नाथ, प्रेम दूत तुम भेजोगे कब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मुझ से इतने गीत गवाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
लगता है अब यही शेष है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
शेष में ही होता है अशेष / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
यदि दिवस विदा ले और पंछी ना गाएँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
राज्यपाल की गांधीगिरी पर वाम हुआ लालArchive for April 26th, 2007
बंगाल में पोंगापंथ
वाकई देश में सीपीएम किस तरह से मार्क्स का नाम लेकर धार्मिक ब्रह्मणों और आर्थिक ब्राह्मणों (अमेरिकनों) के लिए लाल कालीन बिछाये हुए है, यह देखने लायक है. हंस के मार्च अंक से साभार
पलाश विश्वास
बंगाल के शरतचन्द्रीय बंकिमचन्द्रीय उपन्यासों से हिंदी जगत भली-भांति परिचित है, जहां कुलीन ब्राह्मण जमींदार परिवारों की गौरवगाथाएं लिपिबद्ध हैं. महाश्वेता देवी समेत आधुनिक बांग्ला गद्य साहित्य में स्त्राी अस्मिता व उसकी देहमुक्ति का विमर्श और आदिवासी जीवन यंत्राणा व संघर्षों की सशक्त प्रस्तुति के बावजूद दलितों की उपस्थिति नगण्य है. हिंदी, मराठी, पंजाबी, तमिल, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं की तरह बांग्ला में दलित साहित्य आंदोलन की कोई पहचान नहीं बन पाई है और न ही कोई महत्त्वपूर्ण दलित आत्मकथा सामने आई है, बेबी हाल्दार के आलोआंधारि जैसे अपवादों को छोड़कर. आलो आंधारि का भी हिंदी अनुवाद पहले छपा, मूल बांग्ला आत्मकथा बाद में आयी.
यह ब्राह्मणत्व का प्रबल प्रताप ही है कि १९४७ में भारत विभाजन के बाद हुए बहुसंख्य जनसंख्या स्थानांतरण के तहत पंजाब से आनेवाले दंगापीड़ितों को शरणार्थी मानकर उनके पुनर्वास को राष्ट्रीय दायित्व मानते हुए युद्धस्तर पर पुनर्वास का काम पूरा किया गया. जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू और आधुनिक बंगाल के निर्माता तत्कालीन मुख्यमंत्राी विधानचंद्र राय ने पूर्वी बंगाल के दलित आंदोलन के आधार क्षेत्रा जैशोर, खुलना, फरीदपुर, बरिशाल से लेकर चटगांव, कलकत्तिया सवर्ण वर्चस्व और ब्राह्मणवादी एकाधिकार को चुनौती देने वाली कोई ताकत नहीं है. भारत भर में ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक पिछड़े वर्ग की जनसंख्या चालीस प्रतिशत से ज्य़ादा है. भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी बाकी देश में पिछड़े वर्ग के आरक्षण का जोरदार समर्थन करती है. मलाईदार तबके को प्रोन्नति से अलग रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नई दिल्ली में ओबीसी कोर ग्रुप की बैठक हुई जिसमें त्रिापुरा के समाज कल्याण मंत्राी कवि अनिल सरकार, जो माकपा की हैदराबाद कांग्रेस में गठित दलित सेल में बंगाल वाममोर्चा चेयरमैन विमान बसु के साथ महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं, शामिल हुए. पार्टी का दलित एजेंडा भी बसु और सरकार ने तय किया. इन्हीं अनिल सरकार ने उस बैठक में दलितों और पिछड़ों के आरक्षण की सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सीमा ५० फ़ीसदी से बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन की मांग उठाई, मलाईदार तबक़े को प्रोन्नति से अलग रखने के फ़ैसले की प्रतिक्रिया में उन्होंने सवर्ण मलाईदार तबकेश् को चिन्हित करके उन्हें भी प्रोन्नति के अवसरों से वंचित रखने की सिफ़ारिश की है. उनका दावा है कि त्रिापुरा में निजी क्षेत्रा में दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों का आरक्षण लागू किया जा चुका है.
इसके विपरीत पश्चिम बंगाल में अभी तक पिछड़ी जातियों की पहचान का काम पूरा नहीं हुआ है, आरक्षण तो दूर. अनिल सरकार कहते हैं कि पचास फ़ीसद आरक्षण के बावजूद सिर्फ दस प्रतिशत नौकरियां ही दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलती हैं, नब्बे फ़ीसदी नौकरियों पर सवर्ण काबिज़ हैं.
पश्चिम बंगाल में निजी क्षेत्रा में दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों को प्रोन्नति के अवसर तो सिरे से नहीं हैं. आरक्षित पदों पर रिक्तियां अनंत हैं पर योग्य प्रार्थी न मिलने की वजह दिखाकर अमूमन आरक्षित पदों को सामान्य बनाना आम है. गैर बंगाली नागरिकों को तो किसी भी क़ीमत पर जाति प्रमाण-पत्रा नहीं ही मिलता पर अब दलितों, आदिवासियों की संतानों को भी जाति प्रमाण-पत्रा जारी नहीं किए जाते.
सबसे सदमा पहुंचाने वाली बात यह है कि बाक़ी देश में जहां अखब़ार और मीडिया गैर-ब्राह्मणों की खब़रों को प्रमुखता देते हैं, वहीं बंगाल में ब्राह्मणवादी मीडिया और अखब़ार दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और शरणार्थियों के बारे में एक पंक्ति की खब़र तक नहीं छापते. जबकि कमज़ोर तबकेश् की आवाज़ उठाने वाली माकपा बंगाल में ३५ सालों से सत्ता में हैं.
पिछले दिनों सुभाष चक्रवर्ती के तारापीठ जाकर तारा मां की पूजा पर पार्टी पोलित ब्यूरो, केंद्रीय समिति, राज्य वाम मोर्चा से लेकर मीडिया में काफ़ी बवेला मचा. पार्टी, विचारधारा और धर्म पर वैचारिक बहस छिड़ गई. प्रतिक्रिया में सुभाष चक्रवर्ती ने कहा, ‘पहले मैं हिंदू हूं और फिर ब्राह्मण`. वे दुर्गोत्सव में १२० पंडालों के संरक्षक थे. विवाद से चिढ़कर उन्होंने परिवहनकर्मियों को धूमधाम से विश्वकर्ता पूजा मनाने के निर्देश दिए. हक़ीक़त यह है कि सुभाष चक्रवर्ती और उनके चार भाइयों ने जनेऊ धारण नहीं किया. ब्राह्मण समाज ने आज़ादी से पहले उनके परिवार का बहिष्कार कर दिया था, वे एकमात्रा सवर्ण मंत्राी हैं जो दलितों का साथ देते हैं. पर वे अपनी पहचान और संस्कृति के यथार्थ पर जोर देते हैं. ज़मीनी जड़ें होने के कारण उनका जनाधार मजबूत है. सुभाष चक्रवर्ती के इस विवादास्पद बयान पर बंगाल में धर्म पर बहस तो छिड़ी, मनुस्मृति और उसके अभिशाप पर चर्चा तक नहीं हुई, चक्रवर्ती वाम आंदोलन के बंगाल, त्रिापुरा और केरल तक सिमट जाने की वजह भारतीय संस्कृति और लोक से अलगाव को मानते हैं.
बाक़ी भारत में दलित आंदोलन से अलगाव भी माकपा को राष्ट्रीय नहीं बनाती, यह पार्टी के हैदराबाद कांग्रेस में मानकर बाक़ायदा आज़ादी के इतने सालों बाद दलित एजेंडा भी पास किया गया पर अपने चरित्रा में आज भी माकपा और सारे वामपंथी दल दलित विरोधी हैं. इसीलिए दिनों दिन बंगाल में ब्राह्मणवाद की जडें मजबूत हो रही हैं. इसी हक़ीक़त की ओर बागी मंत्राी सुभाष चक्रवर्ती ने उंगली उठाई है. पूंजीवाद विकास के लिए अधाधुंध, ज़मीन अधिग्रहण के शिकार हो रहे हैं दलित पिछड़े आदिवासी और अल्पसंख्यक, पर इस मुद्दे पर तमाम हो हल्ले के बावजूद बंगाल में दलितों के अधिकार को लेकर लड़ने वाली कोई ताकत कहीं नहीं है.
इधर के वर्षों में बचे-खुचे दलित आंदोलन के तहत खा़सकर कोलकाता और आस-पास विवाह, श्राद्ध जैसे संस्कारों में ब्राह्मणों का बहिष्कार होने लगा है. श्राद्ध की बजाय स्मृति-सभाएं होने लगी है, कई बरस पहले यादवपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत में पीएचडी करने वाले एक दलित ने अपढ़ पुरोहित से पिता का श्राद्ध कराने की बजाय कृष्णनगर के पास अपने गांव में स्मृति सभा का आयोजन किया तो पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया.
ताजा घटना सुभाष चक्रवर्ती के ब्राह्मणत्व के विवाद के बाद की है.
सुंदरवन इलाक़े में दलितों-पिछड़ों की आबादी ज्य़ादा रही है. इसी इलाक़े में दक्षिण २४ परगना जिले के गोसाबा थाना अंतर्गत सातजेलिया लाक्स़बागान ग्लासखाली गांव के निवासी मदन मोहन मंडल स्थानीय लाक्सबागान प्राथमिक विद्यालय के अवैतनिक शिक्षक हैं. पर चूंकि उन्होंने पुरोहित बुलाकर पिता का श्राद्ध नहीं किया और न ही मृत्युभोज दिया इसलिए पिछले चार महीने से उनका सामाजिक बहिष्कार चल रहा हैं. वे अपवित्रा और अछूत हो गए हैं और पिछले चार महीने से वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं.
मदनमोहन मंडल के इस स्कूल के विद्यार्थी ज्य़ादातर अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों के बच्चे हैं. बतौर शिक्षक छात्रा-छात्रााओं में मदनमोहन बाबू अत्यंत लोकप्रिय हैं, पर पवित्रा ब्राह्मणवाद के पुण्य प्रताप से शनि की दशा है उन पर. पिता की मृत्यु पर बंगाली रिवाज़ के मुताबिक सफ़ेद थान कपड़े नहीं पहने उन्होंने. हविष्य अन्न नहीं खाया. सामान्य भोजन किया. नंगे पांव नहीं चले. और न ही पुरोहित का विधान लिया या श्राद्ध कराया.
ब्राह्मणवाद की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इस दलित बहुल इलाक़े में, ब्राह्मणों ने नहीं, दलितों और पिछड़ों ने उनके स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी. प्रधानाचार्य शिवपद मंडल का कहना है, ”मदनमोहन बाबू सूतक (अशौच अवस्था में) में हैं. वे स्कूल आएंगे तो यह नन्हें बच्चों के लिए अशुभ होगा. मदनमोहन बाबू को फ़तवा जारी किया गया है कि ब्राह्मणों से विधान लेकर पुरोहित बुलाकर पहले पितृश्राद्ध कराएं, फिर स्कूल आएं.
मदनमोहन मंडल ने हार नहीं मानी और विद्यालय निरीक्षक की शरण में चले गए. उन्होंने लाक्सबागान के पड़ोसी गांव बनखाली प्राथमिक विद्यालय में अपना तबादला करवा लिया पर इस स्कूल में भी उनके प्रवेशाधिकार पर रोक लग गई.
इलाक़े के मातबर लाहिड़ीपुर ग्राम पंचायत के पूर्व सदस्य व वामपंथी आरएसपी के नेता श्रीकांत मंडल का सवाल है, ”जो व्यक्ति अपने पिता का श्राद्ध नहीं करता, वह बच्चों को क्या शिक्षा देगा.“ गौरतलब है कि सुंदरवन इलाके में माकपा के अलावा आरएसपी का असर ज्य़ादा है. अभिभावकों की ओर से कन्हाई सरदार का कहना है, ”जो शिक्षक गीता, शास्त्रा नहीं मानता, उसके यहां बच्चों को भेजने के बजाय उन्हें अपढ़ बनाए रखना ही बेहतर है.“
आखिऱकार अपने सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ़ मदनमोहन मंडल गोसाबा थाना पहुंच गए, पर पुलिस ने रपट लिखने से मना कर दिया. मदनमोहन बाबू ने गोसाबा अंचल के विद्यालय निरीक्षक ब्रजेन मंडल से लिखित शिकायत की. ब्रजेन बाबू ने खुद शिक्षक संगठन के प्रतिनिधियों के साथ मौक़े पर गए, पर ब्राह्मणवादी कर्मकांड विरोधी शिक्षक का सामाजिक बहिष्कार खत़्म नहीं हुआ.
मदनमोहन मंडल आरएसपी के कृषक आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं. पर स्थानीय आरएसपी विधायक चित्तरंजन मंडल ने मदनमोहन बाबू के आचरण को ‘अशोभनीय` करार दिया.
दक्षिण चौबीस परगना के वामपंथी शिक्षक संगठन के सभापति अशोक बंद्योपाध्याय का कहना है, ”अगर कोई संस्कार तोड़ना चाहे तो उनका स्वागत है, पर यह देखना होगा कि उसकी इस कार्रवाई को स्थानीय लोग किस रूप में लेते हैं.“ अशोक बाबू ने मदनमोहन मंडल के मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया.
मदनमोहन बाबू अब भी स्कूल नहीं जा पाते, वे गोसाबा स्थित अपर विद्यालय निरीक्षक के दफ्त़र में हाज़िरी लगाकर अपनी नौकरी बचा रहे हैं. पर वे किसी क़ीमत पर पितृश्राद्ध के लिए तैयार नहीं हैं.
माकपा के बागी मंत्राी के ब्राह्मणत्व पर विचारधारा का हव्वा खड़ा करने वाले तमाम लोग परिदृश्य से गायब हैं.
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4425990/
May 07, 08:30 pm
कोलकाता। पिछले दो महीने से बिजली की आपूर्ति बंद होने से परेशान आम नागरिकों का साथ देने के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने राजभवन में भी स्वैच्छिक बिजली आपूर्ति बंद करने का आदेश दिया है। इस आदेश का अनुपालन बुधवार से ही राजभवन में किया गया और दो घंटे के लिए बिजली बंद कर दी गई। इस दौरान बल्ब, पंखे, एयर कंडीशनर आदि बिल्कुल बंद रहे। यहां तक कि लिफ्ट का परिचालन भी नहीं हुआ। हालांकि, राज्यपाल द्वारा अपनाया गया गांधीगिरी का यह तरीका सत्तारूढ़ वाम नेताओं को नागवार गुजरा है और वे इस निर्णय को लेकर काफी आक्रोश में आ गए हैं।
राज्यपाल के इस निर्णय से वाम नेता इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने राज्यपाल के पद के औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। नाराज नेताओं ने जोर देकर कहा कि इस बात पर बहस होनी चाहिए कि क्या वास्तव में देश को राज्यपालों की आवश्यकता है।
राज्यपाल के स्वैच्छिक बिजली बंद के आदेश के तहत आज से राजभवन में दोपहर 1.30 बजे से 2.30 बजे तक पंखे और लिफ्ट बंद रहेगी। राजभवन के प्रवक्ता ने बताया कि इसी तरह एक अन्य स्वैच्छिक कदम के रूप में शाम को छह बजे से सात बजे तक बिजली बंद की जाएगी। उन्होंने बताया कि जरूरत होने पर राज्यपाल के निर्णय की समीक्षा की जाएगी। ऐसे में गर्मी के इस मौसम में राज्यपाल गांधी और उनका समूचा अमला आज से आम जनता को दरपेश पावर कट और बिजली की अन्य समस्याओं के मद्देनजर अब हर दिन दो घंटे बिना बिजली के पसीना बहाएंगे।
राज्यपाल के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्य के बिजली मंत्री मृणाल बैनर्जी ने कहा कि यह निर्णय ऐसे समय में आया है जबकि पिछले दस दिनों में बिजली की समस्या कम हो रही है। उन्होंने कहा कि यदि एक व्यक्ति एक समय खाना नहीं खाता क्योंकि खाद्यान्न की समस्या है तो ऐसे में हम क्या कर सकते हैं।
इस संदर्भ में प्रतिक्रिया स्वरूप वरिष्ठ सीपीआई नेता बिमान बोस ने कहा कि राज्यपाल के उक्त निर्णय व उनके वक्तव्य को लेकर वह ज्यादा कुछ टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन मेरा मानना है कि आजादी के साठ साल के बाद पूरे देश में इस बात पर चर्चा व बहस होनी चाहिए कि क्या राज्यपाल का पद एक जरूरी आवश्यकता है।
राज्यपाल का उक्त निर्णय ठीक एक महीने बाद आया है जब उन्होंने नंदीग्राम की स्थिति नियंत्रित न होने को लेकर राज्य सरकार की घोर आलोचना की थी। मेट्रो शहरों में बिजली आपूर्ति की बुरी हालत के संदर्भ में राज्यपाल का यह निर्णय राज्य की वाम सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गया है। इसके विरोध में वाम नेता काफी उबल उठे हैं और राज्यपाल का पद और उसकी भूमिका पर ही सवाल खड़ा कर दिया है।
उधर, सीपीआई-एम के जनरल सेक्रेटरी प्रकाश करात ने मदुरै में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति बिजली बंद करके बिजली बचत को तरजीह दे रहा है तो यह एक अच्छा कदम है। हमें इस बात पर आपत्तिनहीं होना चाहिए।
देश में राज्यपालों की आवश्यकता है या नहीं, इस पर बहस कराए जाने के एक सवाल के जवाब में करात ने कहा कि यह एक अलग विषय व मुद्दा है। लेकिन इस बात की आवश्यकता जरूर है कि राज्यपाल की भूमिका को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।
बोले अर्जुन, मैं बजरंग दल का सदस्य
8 May 2008, 1347 hrs IST,वार्ता
नई दिल्ली : एक और सियासी विवाद की रेसिपी तैयार है। आजकल राजनेताओं की किताबें राजनैतिक पारा चढ़ा रही हैं, ऐसे माहौल में एक किताब में छपी सीनियर कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह की चिट्ठी सियासी भूचाल लाने को तैयार है। हाल में ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का स्वाभाविक उम्मीदवार बताकर राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा देने वाले अर्जुन सिंह ने इस चिट्ठी में खुद को बजरंग दल का सदस्य बताया है। इसी चिट्ठी में अर्जुन सिंह ने भगवान राम से संवाद करते हुए इस बात पर अफसोस जाहिर किया है कि अगर संत तुलसीदास अयोध्या में राम के जन्म स्थान पर बने मंदिर का जिक्र कर देते तो देश में अशांति नहीं होती।
अर्जुन सिंह को सच्चे रामभक्त के रूप में पेश करने वाली किताब 'मोहिं कहां विश्राम' में उनकी लिखी एक चिट्ठी प्रकाशित की गई है। उन्होंने दिल का ऑपरेशन होने से पहले यह चिट्ठी भगवान राम, रहीम और ईसा मसीह को संबोधित करते हुए लिखा और अपने अंतर्मन की भावनाएं इसमें जाहिर की थीं। यह वह समय था, जब राम जन्म भूमि आंदोलन अपने उफान पर था।
किताब का विमोचन शुक्रवार को प्रेजिडेंट प्रतिभा पाटिल करेंगी। यह किताब सबके सामने आने से पहले ही विवादों में घिर गई लगती है। इस किताब में भगवान राम, अयोध्या जैसे मुद्दों पर अर्जुन सिंह की बेबाक बयानी के अलावा ऐसी कई चीजें हैं, जो विवाद का सबब बनेंगी। इसी किताब में एक इंटरव्यू में अर्जुन सिंह ने कांग्रेस में फैसले लेने की प्रक्रिया में खोट आने की बात मानी है।
किताब में अर्जुन सिंह ने बड़े गर्व के साथ खुद को बजरंग दल का सदस्य बताया है, लेकिन भगवान राम से उनका कहना है-मैं आपके भक्त बजरंग बली के दल का हूं, जिनका सिर्फ एक ही आदर्श था-राम काज कीन्हे बिना, मोहिं कहां विश्राम। किताब में यह चिट्ठी जस की तस प्रकाशित कर दी गई है। इसमें फुटनोट लिखते हुए अर्जुन सिंह ने राम जन्म भूमि आंदोलन के बारे में भी अपने उद्गार खुलकर जाहिर किए हैं।
अर्जुन सिंह ने प्रभु राम से कहा-भगवन, आपकी प्रेरणा से संत तुलसीदास ने आपकी महिमा का वर्णन करके सभी प्राणियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में राम चरित मानस दिया। उन्होंने लिखा है कि अगर संत तुलसीदास ने अयोध्या में भगवान राम के जन्म स्थान पर बने मंदिर का भी जिक्र कर दिया होता तो देश पर आपत्ति के बादल आज नहीं मंडराते। इस मामले में अर्जुन सिंह प्रभु राम से सद्बुद्धि भी मांग रहे हैं, ताकि वह इस सवाल का जवाब तलाश सकें। वह लिखते हैं- हम सब को कम से कम इतनी सदबुद्धि तो जरूर दीजिए कि इनका जवाब आपके सच्चे भक्तों की तरह खोजने की कोशिश तो करें।
राम सेतु हमारे लिए आस्था का प्रश्न : अर्जुन सिंह
7 May 2008, 1733 hrs IST,वार्ता
नई दिल्ली : केंद्र की यूपीए सरकार भले ही डीएमके दबाव में राम सेतु के मानव निर्मित होने पर प्रश्नचिह्न लगाती रही हो लेकिन कांग्रेस के सीनियर नेता और मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा है कि भगवान राम के बारे में विवाद पैदा करने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा है कि राम सेतु हमारे लिए आस्था का प्रश्न है।
अर्जुन सिंह का यह रामभक्त चेहरा उनके ऊपर लिखी गई किताब 'मोहि कहां विश्राम' में सामने आया है। किताब के संपादक कन्हैया लाल नंदन को दिए इंटरव्यू में मानव संसाधन विकास मंत्री ने सेतु समुद्रम के बारे में पूछने पर कहा, 'भगवान राम के बारे में कोई भी विवाद न कोई आधार पा सकता है और न ही उसका कोई औचित्य ही है। यह हमारे लिए आस्था का प्रश्न है। इस पर दूसरा कोई क्या सोचता है इस पर विचार ही क्यों किया जाए।'
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के लिए उन्होंने अफसरों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि राम सेतु के बारे में इतना ही कह देना काफी था कि इस विषय पर ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। उल्टे कह दिया गया कि उसका इतिहास नहीं है।
अर्जुन सिंह पर लिखी गई किताब में उनकी राम भक्ति स्पष्ट करते हुए उनका चित्र प्रकाशित किया गया है जिसके नीचे चौपाई लिखी है, 'रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम।'
आस्था के प्रश्न पर उन्होंने कहा, 'आस्थाओं के सही मूल्य को जो समझेगा वह उसके साथ खिलावाड़ नहीं करेगा। जो आस्थाओं के इस्तेमाल का हुनर जानता है, वही खिलवाड़ करता है। यहीं पर मेरा मतभेद है। इससे कोई खुश हो या नाराज मुझे फर्क नहीं पड़ता। जो मेरा ष्टिकोण है मैं उसी से चलता हूं।
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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha
হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!
मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड
Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!
हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।
In conversation with Palash Biswas
Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg
Save the Universities!
RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!
जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
Tweet Please
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
______________________________________________________
By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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