हस्तक्षेप के संचालन में छोटी राशि से सहयोग दें!कुछ मील और साथ चलें तो हो सकता है कि कयामत का यह मंजर बदल जायें: पलाश विश्वास
हस्तक्षेप के संचालन में छोटी राशि से सहयोग दें!
महत्वपूर्ण खबरें और आलेख लोकतंत्र की हत्या के बाद फिर राष्ट्र, राष्ट्र नहीं होता भले ही वह हिंदू राष्ट्र हो जाये!
कुछ मील और साथ चलें तो हो सकता है कि कयामत का यह मंजर बदल जायें!
पलाश विश्वास
राष्ट्र मनुष्यता का भूगोल है अंततः,मनुष्यविरोधी असभ्य बर्बर लोग राष्ट्रभक्त नहीं हो सकते।
मनुष्यता और प्रकृति के हित में मनुष्यता का राष्ट्र बचाने के लिए बेहद जरुरी है कि जो अब भी स्वयं को तमाम अस्मिताओं और पाखंड से ऊपर मनुष्य पहले मानते हों और मनुष्यता के लिए लोकतंत्र के पक्ष में हों,नागरिक और मानवाधिकार के हक में हों,समता और न्याय,सत्यऔर अहिंसा,सहिष्णुता और बहुलता के साथ प्रेम के बाषाबंधन से भारत तीर्थ को बनाये रखना चाहते हों ,वेतमाम लोग गोलबंद हों।जरुरत हो तो नई भाषा,नई विधा,नया व्याकरण रच डालें लेकिन कयामतों के मुकाबले कायनात की बरकतों,नियामतों और रहमतों को बहाल रखने के लिए हर दीवार तोड़कर साथ जरुर खड़े हों।ऐसे तमाम लोगं के लिए हस्तक्षेप का सिलसिला जारी रखना अनिवार्य है।
अभिव्यक्ति के लिए हम किसी भी तरह का जोखिम उठाने से हिचकेंगे नहीं,लेकिन माध्यम ही फेल हो जाये और ठूठ का कारोबार बन जाये तो माध्यम नया बनाने की जरुरत है और आगे बची खुची जिंदगी में अब तक जो दोस्ती जितनी भी कमायी है,उसीका भरोसा है कि कमसकम कुछ दोस्त तो हाथ में हाथ रखेंगे और कुछ मील और साथ चलेंगे य़हो सकता है तबतक कयामत का यह मंजर बदल जाये।
संपादकों ,प्रकाशकों और आलोचकों की कृपा का मैं मोहताज कभी नहीं रहा क्योंकि हम आम लोगों की बात कहना चाहते थे और सच कहना चाहते थे।हमने दरअसल रचा कुछ भी नहीं है।अखबारों में तब तक लिखा जब तक सच कहने लिखने की इजाजत थी।सिर्फ विज्ञापनों के बीच फीलर बनने के लिए या स्थापित,पुरस्कृत होने के लिए मैंने एक पंक्ति भी नहीं लिखी।
आज फिर जब नेट पर,सोशल मीडिया पर वही पहरा है और अभिव्यक्ति की मनाही है तो बेहतर होगा कि झूठ के कारोबार में शामिल हो जाने के बजाय यहां से भी आहिस्ते आहिस्ते हट जाउं।जब तक हूं सच के सिवाय कुछ नहीं कहना है।
शायद 20 अप्रैल,1980 को बिहार के धनबादसे जो अब झारखंड में है,मैंने अखबारों की नौकरी शुरु की थी।18 मई ,2016 को जब मैं रिटायर करुंगा,तो लगातार 36 साल अखबारों में मेरी नौकरी का सिलसिला खत्म हो जायेगा।
इस पूरी अवधि में मैंने विशुध पत्रकारिता की है।किसी किस्म की दलाली नहीं की और न मैनेजरी।जो सरकार और तेवर मेरे पहली दफा कलम पकड़ते वक्त स्कूली दिनों में थे,उन्ही के लिए आगे भी आपका सहयोग मिलेगा तो जनसुनवाई का सिलसिला बनाये रखने की हर कोशिश में बने रहने का इरादा है।बले ही मेरी कोी हैसियत नहीं है,लेकिनअपने दिलो दिमाग में जल रही मुहब्बत की लौ जिंदा रखने की भरपूर कोशिश रही है हमारी।
हमें मैनेजर या दलाल न बन सकने का कोई अफसोस नहीं है।
पहरा जुबान पर लगा दें,बंदिशें आजमा कर देख लें,हम खामोस नहीं रहेंगे।हमारी चीखें खामोश नहीं होंगी और हम अभिव्यक्ति का कोई न कोई दरवाजा तोड़कर फोड़कर बनाते रहेंगे उनके अभिव्यक्ति पर हम कुठारा गात के जवाब में,उनके सेंसर शिप के जबाव में,उनके आधिकारिक सूचना की मिथ्या के मुकाबले हम सत्यमेव जयते का अलख जलाते रहेंगे।दुनिया की कोई सत्ता किसी रचना से बड़ी कोई चीज नहीं होती।
सत्ता की इस तानाशाही पर,सूचना पर अंकुश और सच को कैद करने,फांसी पर चढ़ाते जाने के इस महातिलिस्म पर मैं थूकता हूं।
हस्तक्षेप के संचालन में छोटी राशि से सहयोग दें
--
Pl see my blogs;
Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!
No comments:
Post a Comment