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Monday, July 1, 2013

भारत की छवियां

भारत की छवियां


पलाश विश्वास


1

झीलकिनारे होटल बहुत हैं नैलीताल में


हिमपातमें मालरोड पर रात रात भर टहलना

कभी ख्तम न होनेवाली बातचीत का सिलसिला


भूल जाओ

भूल जाओ, मोहन!


पुस्तकालय अभी झील में है तैरता उसीतरह

जिसमें कैद होते थे हम  तुम और ढेर सारे


अब भीड़ कहीं ज्यादा है वोट क्लब में


भूस्खलन कोई बड़ा हुआ नहीं

तवाघाट होने लगा है नैनीताल


फ्लैट्स भरने लगा मलबे से

मलबे से पटने लगी झील

जिसका रंग कभी मौसम के हिसाब से बदलता था


अब शायद आंखें भी बदल गयी हैं!


पार्किंग में है बेशकीमती गाड़िंयां आजकल

तुम क्या सारे माडलों के नाम जानते हो


यहां अब तंबू गाड़ने की कोई जगह नहीं है


सब भाग गये मैदान, दोस्तों को आवाज न दो

दोस्तों को आवाज न दो मोहन


कहां बैठता था निर्मल ,याद है

वह जो स्टार बनकर बुझ गया, याद है


लरियाकांटा में अब फौजी अड्डा है

कहीं साबूत नहीं है चीड़ देवदार के वन


सातताल तक पैदल क्या जाओगे पागल

नौकुचियाताल तक पैकेज में है


भीमताल में कहीं नहीं है स्मेटचेक


शुक्र है कि हरुआ दाढ़ी अभी जमा है समाचार में

गिरदा नहीं हुआ तो क्या


दुकान पर बैठा होगा अभी राकेश

राजीव और शेखर भी हैं सही सलामत


फिरभी


भुवाली के चौराहे से पहाड़ को मत देखो

लाला बाजार से क्या देखोगे अल्मोड़े को


पीसी है और है शमशेर भी

जनौटी खप गया,खप गया टमटा राजनीति में


विपिन चचा को क्या याद करोगे!


राजधानी अब भी देहरादून में है

गैरसैण गैरसैण क्यों चिल्लाते हो


क्यों चिल्लाते हो मोहन?


जंगल में दौड़ते खरगोश को याद मत

हिरण भी कहां दिखते हैं आजकल


सारे परिंदे बेदखल हो गये हैं घोंसलों से

अब किसी ताल में नहीं तैरती हैं मछलियां


स्मृतिफलक बेतरतीब है सिमेट्री में

श्मशान में रोतीं आत्माएं तमाम


समाधियों पर कहीं फूल नहीं हैं


सारे फूल चढ़ गये राजघाट,

शांतिवन,शक्तिस्थल या किसानघाट पर मोहन


सूखा ताल में बहुत तेज है ट्राफिक

चीना पीक में कहीं नहीं है तन्हाई


आकाशमार्ग से चाहो तो स्नोव्यू चलें

घुड़सवारी में अब क्या रखा है,मोहन


नावे भी पैडल से चलती हैं इन दिनों


डीेसबी की रीडिंग रूम की भीड़

क्यों याद करोगे मोहन

क्यों याद करोगे


राख की नींव पर जो बनी है इमारत अब

मक्खियां भिनभिनाती वहां अब


याद है,रैगिंग से कितने डरते थे हम

ठंडी सड़क पर नंगा परेड,बाप रे बाप


अब तो बेदखल हुआ है सेरवूड भी

डरहम धंसकने लगा है


अयारपाटा भी खाली नहीं है इन दिनों


मलरोड पर सैलानियों का जमघट

कहीं नहीं है गिरदा का नुक्कड़ नाटक


हुड़के के उस बोल को क्या याद करोगे मोहन


हुड़का भी खामोश है इन दिनों


युगमंच है, जहूर भी है, है इदरीश

अलग अलग द्वीप हैं सभी


नाटक अब भी होते हैं, पात्र खो गये हैं


2


हर सुबह पहुंच जाता है अखबार अब

तराई का कोई स्पर्श नहीं है पहाड़ में अब

न कीहीं पहाड़ दिखता है तराई से दिन दिनों


और तो और,मोहन

पाहाड़ भी पहाड़ में नहीं है इन दिनों


हर कहीं हाकरों,एजंटों से घिरे हैं हम


बाबी,अब कहीं कमरा खाली नहीं है

और न चाबी खो जाने का डर है


तुम्हें चाय चाहिए या काफी

ठीक ठीक बता दो मोहन


ले लो झावमुड़ी या फिश फ्राई


अकादमी के सामने खड़ी है

बेनफिश की मोबाइल गाड़ी



फास्टफुड या मोमो,क्या चाहिए,मोहन



नाटक शुरु होने से पहले

मोबाइल का स्विच आफ कर दो


परदा उठ गया है, अब मत बोलो मोहन


नृत्य गीत के दरम्यान संवाद

बेतरह छितराये हुए हैं,बाबी


अपना रंगीन चश्मा खोलो मोहन


विक्टोरिया मेमोरियल में बी

पेयजल में आर्सेनिक है


नाकेबंदी चारों तरफ है,अब मत बोलो मोहन


मैदानों में बहुत बची है हरियाली

इक्के में बैठकर फिर क्यों याद आता समुद्रतट पर गेय


मछुआरों का गीत, मोहन



3


मौसम बहुत भीगा  भीगा है

कसकर बांध लो प्रेम धागा

महाअरण्य खामोश है,खामोश हैं

उपत्यकाओं में खिलते फूल


कंचनजंघा शिखर से विरही यक्ष

भेज रहा है मेघदूत

मानसरोवर में तैरते होंगे हंस

खोल दो ,खोल दो सारे गिरिद्वार


सीमा विवाद भूल जाओ तनिक

हिमालयके आर पार भटकने दो

भेड़ो को चाहिए बुग्याल

हिमपात होता है तो होने दो


आ रहा है रेशम तो आता होगा ऊन

गोमाओं में बजते शंख घड़ियाल

पवित्र मंत्र उच्चारित,नदिया बहतीं

कल कल,झरने झरते निर्झर


तीर्थस्थलो को जाते श्रद्धालु भूस्खलन को कौन थामेगा

जल प्रलय को कौन रोकेगा

जारी है भूमंडलीकरण

डूब में डूबने दो पहाड़


पहाड़ खामोश है सहस्राब्दियों से

लाठी,गोली,कर्फ्यू का असर होता नहीं

सुषुप्त हैं सारे ज्वालामुखी



4


पहाड़ की चोटी से नदी को देखो

चीको मत,आवाज गूंजती है बहुत


हर पहाड़ में जल रहा है अलाव

बाघ और भालू  हैं आजाद

लकड़बग्घे को सोने दो


गहरे जंगल में गुफा है कोई

वहीं मौनी तपस्यी है कोी

कोसी के गटवार इंतजार में है

उफन रही है कोसी भी


शिखर पर नजर है तो

चढ़ाई खत्म होगी कहीं न कहीं

यहां हर चीड़वन जख्मी है

बहुत तेज है लीसा की गंध


नदियों में पेड़ों की लाशे

देखो,कैसे बहती हैं चुपचाप

चिपको जारी है बलि

नंगे सिर्फ पहाड़, ठूंठ हैं चारों तरफ


गरम है चाय की गिलास

गुड़ की डली मुंह में डालो

कड़कती है सर्दी बहुत

सो जाओ सूर्योदय होने तक


गीत गाते लकड़हारे

सियार चिल्ला रहे हैं

गांव सारे सो रहे हैं, तुम क्यों जागे हो भाई?



5


किसने कह दिया कि यहां थी

लक्ष्मणावती कभी, गोमती किनारे

बसावटें बदल गयीं सदियां बीतीं

पुरातात्विकों को खोदने दो जमीन


कहीं तो मिलेगा कोई ढांचा .या सांचा कोई

बर्तन निकलेंगे,निकलेंगी मूर्तियां सुप्राचीन


इतने नरसंहार हुए, खतम नहीं हुई कोलंबस वास्कोडिगामा यात्राएं

नरसंहार के लिए अब राजनीति हैं, हैं सरकारें

अदालती फैसले चाहिए विवाद को सुलझाने के लिए

बेदखली जारी है और संवाद कोई नहीं


गोमती किनारे शपथग्रहण, देखा सीधा प्रसारण

देखी राजनीतिक बाध्यताएं, देखें बदलते समीकरण


ताजमहल के संगमरमर से पूछो उसका हालचाल

खामोश बहती यमुना,खामोश चांदनी रातें


भरी बरसात मत जाना कार्बेट पार्क

बहुत रोती है रामगंगा पहाडों से निकलकर

प्रदूषित गंगा के सीने में छुपे हैं जख्म सारे

लाशें बह चली आती हैं गंगोत्री से संगम तलक


मल्लाहों से कहें,अब न खेवें

नाव मंझधार, कि गंध बहुत तेज

नही बहती पूरवाई कहीं

बेहतर है,चुपचाप सकुशल घर लौटें


घात लगाकर कहीं बैटा होगा सुल्ताना डाकू

थारु बुक्सों की आबादियां उजड़ गयीं

सातवीं बार बसकर भी फिर उजड़ने को तराई

बागी किसानों की आखिरी पीढ़ी बी मर खप गई


हाथियों के हत्यारे कहीं सुस्ता रहे होंगे

गजदंत उत्सव में थिरकती विश्व सुंदरियां

घास के जंगलों में भटकते कार्बेट थक गये

नरभक्षी बाघ तमाम जनपदों में बिखर गये


6


संवाद शुरु होने से पहलेगूंजती चीकें

फ्रेम बनने से पहले कट

तमाशबीन भीड़ है खिड़कियों के बाहर


धूप सिरे से गायब है,बतकही का माहौल कहां

बिखराव का पर्याय है घर

नाते रिश्तेदार राजधानियों में बेतरतीब


एसटीडी मोबाइल की घंटियों से नींद खराब होती रोज

आईएसडी स्काइपी हैंगओवर की यंत्रणा सोने नहीं देती


उड़ान से पहले पासपोर्ट सबसे जरुरी

और सीमापार है पुरखों का गांव

जिसके किनारे बहती होगी मधुमती,जिसमें तैरना सीखा था पिता ने


शत्रु संपत्ति में तब्दील हुआ अपना अपना घर

किराये के मकाम में किताबों के लिए कोई जगह नहीं, भाई

टीवी चैनलों की धूम ने पढ़ने की आदत भी छुड़ाई


धारावाहिकों के शोर में खामोश है प्रियतमा

अब सबकुछ वर्चु्ल है, सब कुछ

होम डेलिवरी है, यांत्रिक है


यूंही बटन के दाब से मिल जाये चाय काफी

मेज पर बिना मेजबानी भोजन

घर से दफ्तर बाजार में हैं हम


अभी अभी डाक्टर के चैंबर से लौटे

सुबह शाम दवाएं साथी, सांसें गिरवी पर

बड़ी कंपकपी होती है किश्तों में जीते हुए


घर से बाहर अनिश्चित सबकुछ

अनिश्चित रोजगार,अनिश्चित सेवाएं

और अनिश्चित नागरिकता,पहचान भी अनिश्चित


दृष्टि अलविदा, अलविदा सृष्टि

आंखों में मोतियाबिंद, रक्तचाप किंतु सामान्य

शुगर क्या चेक कराया है


चुप रहने की आदत मंहगी होती जाती

बंद कमरे में ठहाके लगाये कौन

सबकुछ वातानुकूलित है


चारों तरफ हैं कांच की दीवारें

शीसमहल में रहने लगे हैं हम लोग

बहुत सख्त है पहरा, गहराई तलक निगरानी


घाटियों में गूंजती थीं जो खिलखिलाहटें

धार में पिसलती थी जो मुस्कुराहटें

उन पर नागिन सी शीतल छाया


7


मैं क्या करुं मोहन,बता देना!

सांसदों विधायकं की तरह कोष नहीं हैं मेरे पास

न आवाज है कोई अपनी, न हैं विदेश यात्रायें


या फिर दल का कोई अनंत दलदल

और समर्थकं का काफिला

न मैं नीली गहराइयों में निष्मात हो सका


बाजार में होकर भी बाजार से बाहर हूं


मुझे हिमालय में दीखती क्यों भारत की छवियां

और भारत में हिमालय हर कहीं

मूसलाधार बारिश बेचैन कर देती


आंखों में तब होती पहाड़ को घेरती तबाहियां


मैं क्या करुं मोहन,बता देना!

मेरे लिए मंदाकिनी, भागीरथी, दरमा, व्यास की घाटियों

और सैन्य अभियान पीड़ित सलवा जुड़ुमग्रस्त

दंडकारण्य की तस्वीरें बन जातीं हिमालय की छवियां


मराठवाडा़ के दुष्काल में मुझे नजर आता

सारी नदियों के उद्गम और पेयजल को

मोहताज अपना वही बूढ़ा हिमालय

विदर्भ के आत्महत्या करते किसानों के

चेहरे पर चस्पं दीखती पहाड़ की बेबसी


मैं क्या करुं , बता देना मोहन!


राजधानियों में मैं पगडंडियां खोजता

और घाटियों के तलाश में भटकता

देश के कोने कोने में, झीलें पुकारतीं हमेशा


कन्याकुमारी में तीनों समुंदर के संगम में

मुझे क्यों नजर आते तमाम ग्लेशियर?

क्यों सुकमा के जंगल में नजर आता

पुरानी टिहरी का डूब, भागीरथी और भीलंगना?


पुखरौती में खड़ा दर्जनों आदिवासी गावों के

उजाड़ में बसी नयी राजधानी के

मध्य लहलहाता दंतेवाड़ा नहीं, मुझे

दीखता वही हिमालय


गढ़चिरौली, चंद्रपुर, मालकानगिरि

लालगढ़ से लेकर मणिपुर तक

वरनम वनकी तरह मेरा यह हिमालय

में क्या करुं, मुझे बता देना मोहन!


त्रिपुरा का सिपाहीजला और नैनी झील

कच्छ के रण और तमाम धर्मस्थल

क्यों एकाकार इस तरह मेरे हिमालय मे

मुझे बता देना मोहन

हो सके तो राकेश और हरुआ से पूछ लेना!


हमारे गुरुओं ने हमें यह क्या दृष्टि दे दी, मोहन

हिमालय से पलायन के इतने अरसे बाद भी

हमारे वजूद के चप्पे चप्पे में वहीं हिमालय


गुरुवर ताराचंद्र त्रिपाठी होंगे कहीं नैनीताल,

हल्द्वानी या अन्यत्र कहीं, उनके मंत्र की काट

उन्हीं से जरा पूछ लेना मोहन!


8


तबाही सिर्फ पहाड़ में नहीं है, मोहन

सर्वनाश की निरंतरता का नाम विकास है यहां

जहां कहीं नहीं कोई आपदा प्रबंधन


नदियां फिर उफनने लगीं हैं हर साल की तरह

राजधानियां और महानगर भी होंगे जलप्लावित

आपदा प्रबंधन कहां है, मोहन


कुड़नकुलम हो या जैतापुर, हर कहीं लेकिन

भापाल की छाया, किसी को कोई सजा नहीं होती

त्रासदियां सुर्खियों में रफा दफा हो जाती हैं, मोहन


मारे गये लोग दस हजार हुआ तो भी क्या

सैकड़ों गाव शहीद हुए तो भी क्या

देश में  टिहरी बांध कोई अकेली डूब नहीं है ,मोहन


धर्म यात्रा में ही त्रासदी का स्पर्श हो, ऐसा भी नहीं

कदम कदम दर कदम हम त्रासदियों से घिरे हैं

घिरे हैं दमन और उत्पीड़न से भी


अस्पृश्यता सिर्फ सामाजिक या धार्मिक नहीं होती

नस्ली भेदभाव है हर असमानता के पीछे

हमारी त्रासदी उनकी त्रासदी समान नहीं है, मोहन


कितने गांव बह गये मंदाकिनी के तीर

कितने हुएतबाह गंगोत्री यमनोत्री के पार

कितने मिट गये कुमायूं में, गढ़वाल में

इस हिसाब से कोई फर्क नहीं पड़ता, मोहन


यात्राएं फिरभी जरुरी हैं, जरुरी है पर्यटन

पहाड़ के जीने का यही तो उपाय है

इसलिए यात्रा और पर्यटन के बहाने मरना है,मोहन


मानसून की बरसात में फंसी मुंबई को पहाड़ों का स्पर्श नहीं मिलता

कोलकाता घिरा है पहाड़ और समुंदर के बीच

नदियों के बहाव में  है पूरा आर्यावर्त

इस हिसाब से भी कोई फर्क नहीं पड़ता


लाशें गिनने वालेगिनते रहेंगे

आसमान में गिद्ध कम हो गये हैं तो क्या

बाजार के गिद्ध कम नहीं पड़ते कभी


वे नोंचते रहेंगे हमें, हिमालय को भी

समूची प्रकृति उनका वधस्थल है

और अश्वमेध तो जारी रहना है, मोहन


हमारे वध के लिए कृतसंकल्प है धर्म

प्रतिबद्ध है राजनीति और अराजनीति भी

बाजार नरसंहार की नींव पर खड़ा है

तो कैसा बचाव, कैसा राहत अभियान, मोहन


9



क्प्यूटर में दाखिल होते ही अनियंत्रित अक्षरों का जमावड़ा

चौपाल और मोहल्लों से आती आदमजाद चीखें, गालियां

या फिर अनचाही,अनजानी दोस्तियों का आवाहन



ऩीले अंधेरे में निष्णात ग्लोब के मुखातिब

सामाजिक यथार्थ से परे आभासी दुनिया

सूचनाओं और आंदोलन का फरेब, फरेबी क्रांतियां


स्काइपी की घंटियां टनटनाती रहतीं

चैटिंग के लिए बेताब असंख्य

तमाम युक्तियां, अभियान और मिथ्या का सैलाब एकमुश्त


तस्वीरें बेइंतहा, प्रचंड यौनगंधी उत्पीड़न

और देहमुक्ति का प्रलय,अपठित संदेश

मुट्ठियों में कैद दुनिया कपड़े उतारती सरेआम


सर्वव्यापी बाजार का वर्चस्व

मेनस्ट्रीम का सेक्सी रणहुंकार

और अनंत धर्मोन्माद


मंदिर मस्जिद आंदोलन, लोकतंत्र फिर हाशिये पर

संवाद व्याकरण बहिर्भूत और

भाषाओं की पारदर्शिता का ठाठें मारता गहरा समुंदर


लेकिन सर्वव्यापी वही विज्ञापन

वहीं पेड न्यूज का निरंकुश साम्राज्य

दैनिक अखबारों का मुखड़ा बेशर्म


वैकल्पिक स्पेस की तलाश फिरभी अधूरी


वही चाह, वही ईर्षा अनंत कि

हमारा कुछ नहीं होगा,कुछ भी नहीं होगा

क्यों मां ने जनम दिया हमें


देखो, कितने सुंदर वास्तुशिल्प में करीने से सजे

बहुमंजिली नागरिक समाज,

जहां हमारा प्रवेशाधिकार नहीं


देखो, क्लब, शापिंग माल,सुपर मार्केट

और पीसी पर हावी विदेश,स्वदेश लापता

लापता अपना घर, गांव और जमीन


यहां गुमशुदगी के विरुद्ध कोई बचाव अभियान नहीं


आयातित आसबाब के रेडियोएक्टिव आराम में कैद सांसें

साफ्टवेयर के संजाल में निरंतर हैंगोवर

ब्रांउजिग ब्रांडिंग निरंतर,निरंतर नीलामी आनलाइन


भारत की छवियां कैसिनो और आईपीएल


समुंदर की गहराइयों में डूब

अपना समुंदर माथा फोड़ रहा

जैव प्रणाली दम तोड़ रही


समुंदर की मछलियां बासी, बेरंग

अभयारण्यों से बेदखल हम लोग

टीएलसी और वाइल्ड लाइव से दिल बहलाते


पृथ्वी आभासी होती जा रही है निरंतर

और पृथ्वी का वजूद खत्म हो रहा निरंतर

जलप्रलय अभी खत्म कहां हुआ, जारी है निरंतर


10


कैमरामैन अब क्रेन के माथे पर

फोकस करें कहां कहां

सारे पात्र तो अराजक अनियंत्रित


समूचा अभिनय तो फ्रेम से बाहर

संवाद टुकड़ा टुकड़ा किरचों के मानिंद

पूरी यूनिट कंबल में लिपटी हुई शुतुरमुर्ग


ऊंचाइयों शिखरों को छूकर निकलतीं

तो सर्दी का दाब प्रचंड फिरभी तपिश का अहसास

शीतलहर में भी लू में दाखिल हम


बरसात का आंचल थाम लो

नायिका को जुकाम हुआ तो

स्नान दृश्य कैसे निपटायेंगे


और लो बारिश शुरु हो गयी

नगाओं के घर खुले हैं बिन दरवाजा

भीतर जल रहा अलाव अनवरत


काठ की बिस्तर है लगी

चाहे तो आराम फरमा लें

चाय हुई ठंडी, गरम कर लें


नायक अकेला राउडी राठौर

बारिश में उसे भीगने दो

स्मृति शिलाएं हैं कतारबद्ध


कुत्ता नहीं भौकता कहीं भी

पूरे देश में अघोषित आपातकाल

आफसा अनंत, अनंत सैन्य  अभियान


नीचे बहती नदियां घाटियों में निष्णात

चुंबन दृश्य से उत्तेजक,अब शाट ओके होगा जरुर

आउटडोर है सर्वत्र, इनडोर कहीं नहीं



11

रातभर पैकअप नहीं होना और सीधे मेरे मुखातिब इबाचोबा

गुस्से में तमतमाया सर्द गाल उसके

भारत के खिलाफ भारत के मुखातिब वह


कैमरे के जूम लेंस में तब उतर रहा था विमान

सेना वेष्टित इंफाल एअरपोर्ट पर

जहां, मुठबेड़ के विरुद्ध कोई पगली कहीं की



आमरण अनशन पर है न जाने कब से!


भारत की प्रचलित छवियों में वह नहीं है

उसने कोई विश्वकप नहीं जीता और न कोई फिल्म बन रही है उसपर

ममिपुर की माताएं भी इन छवियों में कहीं नहीं हैं



कहीं नहीं है सोनी सोरी, सीमा आजाद या कबीर कला मंच


रिमोट कंट्रोल है हजारों मील दूर राजधानी में

पारमाणविक एक शक्ति है अनचाही तस्वीरों के विरुद्ध

बाकी सब पुतले हैं सर्वत्र, स्वयंक्रिय जैसी काफी मशीनें


हबरहाल मोहन, हथियारों से लैस गाड़ियां टहल रही थीं

हर हाथ में मोबाइल जैसे हैं, वहीं पूर्वोत्तर में हर हाथ में

एलएमजी,एलएसआर, कार्बाइन और एके 47


नागरिकों के विरुद्ध बख्तरबंद गाड़ियां

निहत्था नागरिक पर शूटिंग अनवरत

और लाल बत्तियों के लिए जेड प्लस, बुलेट प्रूफ


तलाशी में नहीं मिलता आरडीएक्स कहीं

जैसे घटना के बाद मिल जाता है

लावारिश लाशों का अंबार


अब फोरेंसिक जांच में लगा है राष्ट्र

बायोमेट्रिक नागरिकता की डीएनए जांच होगी

ताकि मुकम्मल हो सकें भारत की छवियां


हादसों के बाद होतीं गिरफ्तारियां

दोषी हो या निर्दोष, स्चिंग आपरेशन के बिना कुछ साबित नहीं होता

तभी चालू होती है कानून व्यवस्था,न्याय की मशीनरी


गिरफ्तारियां खानापूरी हैं, तिहाड़ सबसे बेहतरीन आरामगाह

बाकी सारे नागरिकों के लिए बोजन नहीं, रोजगार नहीं,घर नहीं तो क्या

प्रिज्म है अमेरिकी और निगरानी में असंख्य उपग्रह


और हमेशा राष्ट्र बोलता है प्रेस कांफ्रेंस में


शार्ट सर्किट हो जाये तो कितनी त्वरित होती है त्वरा, कैसे फैलती आग

गति का तीसरा नियम फार्मूलाबद्ध है सैन्यकवायद में

चारों तरफ युद्धाभ्यास का पर्यावरण


मैं था और था इबाचोबा एक दूसरे के मुखातिब


देखो, तुम्हारी इंडियन आर्मी और तुम्हारा देश

कैसे सलूक करता है हमारे साथ!

सेना ने पीटा था इबाचोबा को और मैं था तमाशबीन


फिरभी गुस्सा पी रहा था इबाचोबा

गुस्सा पी रहा है इबाचोबा न जाने कब से

कबतक, कबतक गुस्सा पीता रहेगा इबाचोबा, मोहन


क्या करुं,क्या करुं मोहन, मैं भी और तुम भी

निखालिस एक अदद भारतीय,विशुद्ध धार्मिक तमाशबीन

राष्ट्रीय कर्मकांड के समक्ष नतमस्तक मस्तकहीन


जो अपने ही देश में हैं घुसपैठिया, आंतंकवादी और कहीं भी माओवादी

उसके पक्ष में कैसे खड़े हो हम, अपनी हैसियतों,

विशेषाधिकार और पारिवारिक सुरक्षा दांव पर लगाकर, मोहन


कश्मीर से कन्याकुमारी तक

कच्छ से लेकर कोहिमा तक

हर चप्पे पर खड़ा है इबाचोबा


पिटता हुआ इबाचोबा हरकहीं

दंडकारण्य में और हिमालय में भी

गुस्से में लबालब,बख्तरबंद गाड़ियां टहल रहीं


संवाद नहीं है कहीं

हर कहीं गोलियों की आवाज गूंजती

गर्भ चीरकर बच्चे निकालकर भुन लिये जाते


नरभक्षियों के देश में हम सारे लोग, मोहन


वीभत्स,राक्षसी सन्नाटाचारों तरफ पसरा

संवादहीन परमाणुशक्ति है इनदिनों हम

भारत उदय,भारत निर्माण में निष्णात हम


12


बारिश मूसलाधाररात्रि अंधकार गीत गूंजते

अलाव की आंच में दहकती मरम कुलैन की नगा कन्याएं


खामोश हैं मोनालिसा मोनालिथकतारबद्ध नगा पूर्वज

और खामोश हैं मौन तपस्वी वनस्पतीसमग्र

बइतांक, जैकिड, कलक और कताह


टहनियों पर खुलती पंखुड़ियां खोड्गम मेलै की

वनफूल की सुंगधि से भीगी बीगी बरसात


काठ की दीवारों पर सजे नरमुंड पनर्जीवित


शिकार दृश्य कहीं नहीं है फिलहाल

घाटियों में युद्धविराम, घात लगाकर हमले स्थगित

स्थगित बारुदी सुरंगें, स्थगित छापामार गुरिल्ला लड़ाई


मौसम बदला नहीं है यकीनन

अतींद्रिय इतिहास पुरुष साक्षी


जहरबुझ तीर और तुनीर प्रतीक्षारत

पर्तीक्षारत तलाशीपूर्वटंगा हुआ तनाव

प्रतीक्षित जल में ठहरी हुई कङबोड़


अंडाकार फूल येरुमलै  खिलखिलाये कहीं

धूप मुरझाने से पहले आने वाली सुबह के लिए

इंतजार में धधकती हुई रात संगीतबद्ध


थोड़ी सी आग थोड़ा सा धुआं थोड़ा सा अंधेरा

गोल घेरे में बैठी अनब्याही लड़किया अनबंधी नदियों सी

सांसों की आधी आधी रोशनियां सी


नीचे झरने से काठ के कलश में ढो लाती पानी

खिलखिलाती कलियां पुंगडीला, कराइला, पीसिंग

कना, रुपुंगा, कसुइला, किना, मरम कुलैन की लड़कियां


बांस पर खिलती अमरबैल सी

भंवरे के डर से सुगंध छुपाती

खोङगम मेलै की कलियां


अधखिला समय है यह संकट से भरा

हर दरवाजे पर है गृहयुद्ध की दस्तक


हे बंवर, वाहजेङबा, ठहरो जरा

बम खोजी दस्ते को आने दो

जीना है तो धमाके से बचना सीखो


अधखिले हैं फूल खोङमु पोमशातनब

मूसलाधार रात्रि,बारिश अंधकार



13


चुंबित होने के लिए प्रतीक्षित आंखें

होंठों पर अनुच्चारित गीतों के बोल

दुर्गम पहाड़ों और कांटों बरे निर्जन वन में



चंदनदस्यु करतलगत चंदन वृक्ष

सर्पदंशसम यह ह्रदयव्यथा मंदिरद्वार

बंद है अस्पृश्य देवताओं के लिए


दूरस्थ घाटी में चंद्र नदी प्रवाह

कुलैन की सीमा पर अंकित लक्ष्मणरेखा


लोकताक की जलधारा हेतु बहती जब

चंद्रनदी ठिठक जाती जरा जरा सी



शुरु हो जाती मुठभेड़,फुंके जाते गांव

राकेट लांचर से सुंदर क्या चीज है


चोरों का आतंक है भारी रातभर सोती नहीं कुमुदिनी

ज्योत्स्नासर्वस्व रात्रि सौंदर्यकोलाहल पीड़ित


युद्धाभ्यास की दहशत में उजाड़ बुग्याल

गिरिदावार घुंघट ओढ़ी सुन्याओं का सौंदर्य

स्तंभित पुष्प सुगंधित मलयानिल


जलधाराएं जगकर किंकर्तव्यविमूढ़

अलविदा कहने का वक्त हो आया


प्रेयसी के थरथराते वक्षस्थल में

स्वर्णकलशअमृतमय हलाहल पीड़ित


बांस कीझाड़ियों में गुजरती हवाएं

प्रलंबित सांसें कहतीं अलविदा,अलविदा

आंखिपल्लव कुसुम पंखुड़ियां सुतीव्र चंचल


अलविदा पुष्पवीथिका में प्रतीक्षारत अभिसारिका

शिखरों पर टंगे मोनोलिथसमग्र अलविदा


शस्त्र सज्जा में संलग्न सेनाएं

गुरिल्लों की अगुवाई के लिए

सीमाओं पर प्रश्नचिह्न एकाकी


यही है मातृभूमि हमारी खंड विखंड?


(पुनर्पाठ। मूल कविता अक्षर पर्व,फरवरी,2005 में प्रकाशित।)















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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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