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Sunday, October 2, 2016

मेघनाथ काव्य रचनेवाले महाकवि माइकेल मधुसूदन दत्त को हम क्यों याद करेंगे? पलाश विश्वास


महिषासुर को लेकर इतना हंगामा,राम को खलनायक बनाकर मेघनाथ काव्य रचनेवाले महाकवि माइकेल मधुसूदन दत्त को हम क्यों याद करेंगे?

पलाश विश्वास

Meghnad Badh Kabya | Naye Natua | Goutam Halder | মেঘনাদবধ কাব্য | Trailer

https://www.youtube.com/watch?v=PwBWXwJgUns

बांग्ला रंगमच में विश्वविख्यात रंगकर्मी गौतम हाल्दार ने मेघनाथ वध का का आधुलिकतम पाठ मंचस्थ किया है।

Meghnad Badh - Some Portion : Debamitra Sengupta

https://www.youtube.com/watch?v=SDIJnutmLUA

Michael Madhusudan Dutt's House at Jessore

https://www.youtube.com/watch?v=IUJlVyJ4nT8

Meghnad Badh | Mythological Bengali Film

https://www.youtube.com/watch?v=LK1XIDVyPu0

मेघनाथ वध काव्य पर बनी इस बांग्ला फिल्म तेलुगु फिल्म का भाषांतर है और इस फिल्म में रावण की भूमिका एनटी रामाराव ने निभाई है।


माइकल मधुसूदन दत्त

माइकल मधुसूदन दत्त

पूरा नाम

माइकल मधुसूदन दत्त

जन्म

25 जनवरी, 1824

जन्म भूमि

जैसोर, भारत (अब बांग्लादेश में)

मृत्यु

29 जून, 1873

मृत्यु स्थान

कलकत्ता

अभिभावक

राजनारायण दत्त, जाह्नवी देवी

कर्म भूमि

भारत

मुख्य रचनाएँ

'शर्मिष्ठा', 'पद्मावती', 'कृष्ण कुमारी', 'तिलोत्तमा', 'मेघनाद वध', 'व्रजांगना', 'वीरांगना' आदि।

भाषा

हिन्दी, बंगला, अंग्रेज़ी

प्रसिद्धि

कवि, साहित्यकार, नाटककार

नागरिकता

भारतीय

अन्य जानकारी

माइकल मधुसूदन दत्त ने मद्रास में कुछ पत्रों के सम्पादकीय विभागों में काम किया था। इनकी पहली कविता अंग्रेज़ी भाषा में 1849 ई. प्रकाशित हुई।

इन्हें भी देखें

कवि सूची, साहित्यकार सूची



भारतभर के आदिवासी अपने को असुर मानते हैं और भारतभर में हिंदू अपनी आस्था और उपासना को महिषासुर वध से जोड़ते हैं जो पूर्वी भारत में अखंड दुर्गोत्सव है और मिथकीय इस दुर्गा को आदिवासी अपने राजा की हत्यारी मानते हैं।इस विवाद से परे असुर भारतीय संविधान के मुताबिक अनुसूचित जनजातियों में शामिल हैं।असुर वध अगर हारा सांस्कृतिक उत्सव है तो असुरों को अपने पूर्वज महिषासुर को याद करने का लोकतांत्रिक अधिकार होना चाहिए।धर्मसत्ता में निष्णात राजसत्ता ने मनुस्मृति के पक्ष में जेएनयू को खत्म करने के मुहिम में संसद से सड़क तक जो दुर्गा स्तुति की और जैसे महिषासुर महोत्सव का विरोध किया,उस सिलसिले में कल रांची में छह असुरों के वध के साथ झारखंड में हिंदुओं की नवरात्री शुरु हो गयी तो बंगाल में उत्र 24 परगना में बारासात के पास बीड़ा में पुलिस ने महिषासुर महोत्सव को रोक दिया।पूरे बंगाल में महिषासुर महोत्सव जारी है और उसे सिरे से रोक देने की कोशिशें तेज हो रही हैंषपुरुलिया में मुख्य समारोह का आयोजन भी बाधित है।

तो समझ लीजिये कि हम माइकेल मधूसूदन दत्त को क्यों याद नहीं करते।

महिसासुर को लेकर इतना हंगामा,राम को खलनायक बनाकर मेघनाथ काव्य रचनेवाले महाकवि माइकेल मधुसूदन दत्त को हम क्यों याद करेंगे?

माइकेल मधुसूदन दत्त ने इस देश में पहली बार मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मिथक तोड़कर रावण के पक्ष में मेघनाथ काव्य लिखकर साहित्य और समाज में नवजागरण दौर में खलबली मचा दी,लेकिन नवजागरण के संदर्भ में उनकी कोई चर्चा नहीं होती।बंगाल में उन्हें शरत चंद्र और ऋत्विक घटक की तरह दारुकुट्टा और आराजक आवारा के रुप में जाना जाता है और हाल में भारत के लड़ाकू टेनिस स्टार लिएंडर पेस के पुरखे के बतौर पेस की उपलब्धियों के सिलसिले में उनकी चर्चा होती है।बाकी दोस यह भी नहीं जानता।

भारत में छंद और व्याकरण तोड़कर देशज संस्कृति के समन्वय और दैवी,राजकीय पात्रों के बजाय राधा कृष्ण को आम मनुष्य के प्रेम में निष्णात करने वाले जयदेव के गीत गोविंदम् से संस्कृत काव्यधारा का अंत हो गया,लेकिन निराला से पहले तक हिंदी में वहीं छंदबद्ध काव्यधारा का सिलसिला बीसवीं सदी में आजाद भारत में भी खूब चला हालांकि बंगाल में रवींद्र नाथ के काव्यसंसार में बीसवी संदी की शुरुआत में मुक्तक छंद का प्रचलन हो गया था। इस हिसाब से 1857 की क्रांति से पहले मेघनाद वध काव्य में भाषा,छंद औरव्याकरण के अनुशासन को तहस नहस करके रावण के समर्थन में राम के खिलाफ लिखा मेघनाद वध काव्य की प्रासंगिकता के बारे में बंगाल में भी कोई चर्चा कायदे से शुरु नहीं हुई।

 नवजागरण में हिंदू धर्म सत्ता और मनुस्मृति अनुशासन की जमीन तोड़ने में मेघनाथ वध के कवि माइकेल मधुसूदन दत्त की भूमिका उसी तरह है जैसे महात्मा ज्योतिबा फूले या बाबासाहेब अंबेडकर का हिंदू धर्म ग्रंथों और मिथकों का खंडन मंडन,मनुस्मृति दहगन की है।लेकिन इस देश के बहुजन समाज को माइकेल मधुसूदन दत्त का नाम भी मालूम नहीं है।रवींद्र को जानते हैं लेकिन उनकी अस्पृश्याता के बारे में ,उनके भारत तीर्त के बारे में बहुसंख्य भारतीय जनता को कुछ भी मालूम नहीं है।

धर्मसत्ता से टकराने के कारण ईश्वर चंद्र विद्यासागर लगभग सामाजिक बहिस्कार का शिकार होकर हिंदू समाज से बाहर आदिवासी गांव में शरणली और वहां उन्होंने आखिरी सांस ली।तो राजा राममोहन राय की बहुत कारुणिक मृत्यु लंदन में हुई। भरतीय समाज,धर्म और संस्कृति के आधुनिकीकरण की उस महाक्रांति के सिलसिले में राजा राममोहन राय के बारे में समूचा देश कमोबेश जानता है और लोग शायद ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बारे में भी कुछ कुछ जानते होंगे।लेकिन इस क्रांति में महाकवि माइकेल मधुसूदन दत्त की भी एक बड़ी भूमिका है जिन्होंने हिंदुत्व का अनुशासन तोड़ने के लिए ईसाई धर्म अपनाया महज अठारह साल की उम्र में।फिर रावण के पक्ष में मेघनाद को महानायक बनाकर मेघनाद वध काव्य लिखकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मिथक तोड़ा।उनके बारे में हम कुछ खास जनाते नहीं हैं।

आज महिषासुर उत्सव का संसद और संसद के बाहर जैसा विरोध हो रहा है,रामलीला के बजाय रावण लीला का आयोजन बहुजन करने लगे तो कितनी प्रतिक्रिया होगी,इसको समझें तो सतीदाह,विधवा उत्पीड़न, स्त्री को गुलाम यौन दासी बनाकर रखने, स्त्री और शूद्रों को शिक्षा से वंचित रखने,उन्हें नागरिकऔर मानवाधिकार से वंचित रखने, संपत्ति,संसादन और अवसरों से वंचित रखने, बाल विवाह, बहुविवाह, मरणासण्णके साथ शिशुकन्या के विवाह और पति के सात उनकी अतंरजलि यात्रा  के समर्थक हिंदू समाज में राम को खलनायक बनाने की क्या सद्गति रही होगी,अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।वही प्रेमचंद लिखित सद्गति बंगाली भद्र समाज ने माइकेल मदुसूदन दत्त की कर दी है और उनकी कोई स्मृति इस भारत देश के हिंदू राष्ट्र में बची नहीं है।

वैसे बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकर ने भी हिंदू धर्मग्रंथों का खंडन किया,मिथक तोड़े,हिंदुत्व छोड़कर हिंदुओं के मुताबिक विष्णु के अवतार तथागत गौतम बुद्ध की शरण में जाकर बोधिसत्व बने,लेकिन बहुजन समाज का वोट हासिल करन के लिए अंबेडकर सत्तावर्ग की मजबूरी है।

माइकेल मधुसूदन दत्त के नाम पर वोट नहीं मिल सकते,जैसे शरतचंद्र, प्रेमचंद,मुक्तिबोध या ऋत्विक घटक या कबीर दास के नाम पर वोट नहीं मिल सकते।जब वोट इतना निर्णायक है तो हम वोट राजनीति के खिलाफ जाकर अपने पुरखों को याद कैसे कर सकते हैं?

माइकेल मधुसूदन दत्त जैशोर जिले के सागरदाढ़ी गांव से थे और बांग्लादेश ने उनके प्रियकवि की स्मृति सहेजकर रखी है।जैशोर में माइकेल के नाम संग्रहालय से लिकर विश्वविद्यालय तक हैं और उन पर सारा शोध बांग्लादेश में हो रहा है।कोलकाता में मरने के बाद उनकी सड़ती हुई लाश के लिए न ईसाइयों के कब्रगाह में कोई जगह थी और न हिंदुओं के श्मशान घाट में।चौबीस घंटे बाद उन्हें आखिरकार ईसाइयों के एक कब्रगाह में दफनाया गया।हिंदू समाज में तब से लेकर आज तक अस्वीकृत माइकेल की एकमात्र स्मृति उन्हींका बांग्ला में लिखा् एक एपिटाफ है,जिसका स्मृति फलक कोलकता के सबसे बड़े श्माशानघाट केवड़ातल्ला में है,जहां उनकी अंत्येषिटि हुई ही नहीं।

राजसत्ता के खिलाफ बगावत से जान बच सकती है लेकिन धर्म सत्ता हारने के बावजूद विद्रोह को कुचल सकें या न सकें,विद्रोहियों का वजूद मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ता।भारत में बंगाल के नवजागरण के मसीहावृंद ने ब्राह्मण धर्म की सत्ता की चुनौती दी थी और वे ईस्ट इंडिया कंपनी से नहीं टकराये।उन्होंने बंगाल और पूर्वी भारत में जारी किसान आदिवासी विद्रोहों का समर्थन नहीं किया और न वे 1857 में क्रांति के लिए पहली गोली कोलकाता से करीब तीस किमी दूर बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय की बंदूक से चलने के बाद कंपनी राज के बारे में कुछ अच्छा बुरा कहा।बिरसा मुंडा के मुंडा विद्रोह और सिधु कान्हो के संथाल विद्रोह के बार में भी वे कुछ बोले नहीं।

राजसत्ता के समर्थन से धर्म सत्ता की बर्बर असभ्यता को खत्म करना उनका मिशन था।सतीदाह प्रथा को बंद करना कितना कठिन था,आजाद भारत में भी रुपकुंवर सतीदाह प्रकरण से साफ जाहिर है।आज भी आजाद भारत में हिंदुओं में विधवा विवाह कानूनन जायज होने के बावजूद इस्लाम या ईसाई अनुयायियों की तरह आम नहीं है।बाल विवाह अब भी धड़ल्ले से हो रहे हैं।बेमेल विवाह भी हो रहे हैं।सिर्फ बहुविवाह पर रोक पूरी तरह लग गयी है,ऐसा कहा जा सकता है।

समझा जा सकता है कि मनुस्मृति अनुशासन के मुताबिक हिंदू समाज की आंतरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप न करने की मुगलिया नीति पर चल रही कंपनी की हुकूमत को हिंदू समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए बंगाल के कट्टर ब्राह्मण समाज से टकराने के लिए कतंपनी के राज काज के खिलाप उन्हें क्यों चुप हो जाना पड़ा।क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी के मार्फत नवजागरण आंदोलन के वे सामाजिक सुधार कानून लागू न होते तो आज ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान के अंध राष्ट्रवाद के दौर में हम उस मध्ययुगीन बर्बर असभ्य अंधकार समय से शायद ही निकल पाते।

विद्रोह चाहे किसी धर्म के खिलाफ हो,विद्रोही के साथ कोई धर्म खड़ा नहीं होता।उसकी स्थिति में धर्मांतरणसे कोई फर्क नहीं पड़ता।जैसे तसलिमा नसरीन नास्तिक है और वह धर्म को दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और स्त्रियों के मौलिक अधिकारों के लिए सबसे बड़ी बाधा मानती हैं।उनका विरोध और टकराव इसल्म के मौलवीतंत्र से है।लेकिन किसी भी धर्म सत्ता से उसे कोई समर्थन मिलने वाला नहीं है और कहीं और किसी धर्म में उन्हें शरण नहीं मिलने वाली है।

माइकेल मधुसूदन दत्त ने हिंदुत्व से मुक्ति के लिए ईसाई धर्म अपनाया।ईसाई धर्म अपनाने की उनकी पहली शर्त यह थी कि उन्हें पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया जाये।फोर्ट विलियम में ईस्ट इंटिया कंपनी के संरक्षण में उनका धर्मांतरण हुआ,लेकिन शर्त के मुताबिक उन्हें इंग्लैड भेजा नहीं जा सका।वे साहेब बनना चाहते थे शेक्सपीअर और मलिटन से बड़ा कवि अंग्रेजी में लिखकर बनाना चाहते थे।लेकिन धर्मांतरण के बाद आजीविका के लिए उन्हें चेन्नई भागना पड़ा।

माइकेल इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर भी बने तो वह धर्म सत्ता की मदद से नहीं,नवजागरण के मसीहा ईश्वर चंद्र की लगातार आर्थिक मदद से वे बैरिस्टर लंदन में रहकर बन पाये।भारत में कोलकाता लौट आये तो शुरुआत में ही अंग्रेजी में लिखना छोड़कर बांग्ला काव्य और नाटक के माध्यम से मिथकों को तोड़ते हुए मनुस्मृति शासन से कोलकाता को जो उन्होंने हिलाकर रख दिया,उसके नतीजतन ईसाई धर्म में भी उन्हें शरण नहीं मिली।ईसाइयों ने कोलकाता में उन्हें दफनाने के लिए दो गज जमीन भी नहीं दी।जबकि उनकी दूसरी पत्नी हेनेरिटा की तीन दिन पहले 26 जून को मौत हो गयी तो उन्हें ईसाइयों के कब्रगाह में दफना दिया गया।माइकेल की देह सड़ने लगी तो आखिरकार ऐंगलिकन चर्च के रेवरेंड पीटर जान जार्बो कीपहल पर उन्हें हेनेरिया के बगल में मृत्यु के 24 घंयेबाद लोअर सर्कुलर रोड के कब्रिसतान में दफनाया गया।

पिता राजनाराय़ण दत्त कोलकाता के बहुत बड़े वकील और हिंदू समाज के नेता थे।इसलिए यह धर्मांतरण गुपचुप फोर्ट विलियम में हुआ।माइकेल ने शेक्सपीअर और मिल्टन का अनुसरण करते हुए सानेट लिखा और संस्कृत कालेज में एक ब्राह्मणविधवा के बेटे को दाखिला देने के खिलाफ कोलकता के ब्राह्मण समाज ने जो हिंदू कालेज शुरु किया,उससे बहिस्कृत होने के बाद बिशप कालेज में दाखिले के बावजूद कहीं किसी तरह की प्रतिष्ठा और आजीविका से वंचित होने की वजह से 18 जनवरी,1848 को चेन्नई जाकर एक ईसाई अनाथ कालेज में शिक्षक की नौकरी कर ली और उसी अनाथालय की अंग्रेज किशोरी रेबेका से विवाह किया।

चेन्नई में रहते हुए मद्रास सर्कुलर पत्रिका के लिए उन्होंने अंग्रेजी में कैप्टिव लेडी सीर्ष क कव्या लिखा और कर्ज लेकर इस पुस्तकाकार प्रकाशित किया तो सिर्फ अठारह प्रतियां ही बिक सकीं।कोलकाता में उनके लिखे की धज्जियां उड़ा दी गयीं।बेथून साहेब ने लिक दिया कि माइकेल को अंग्रेजी शिक्षा से उनकी रुचि और मेधा का जो परिस्कार हुआ है,उससे वे अपनी मातृभाषा को समृद्ध करें तो बेहतर।

पिता कीमृत्यु के बाद पत्नी रेबेका को चन्नई में छोड़कर प्रेमिका हेनेरिटा को लेकर कोलकता लौटे माइकेल तो साहित्य और समाज में आग लगा दी उनके मेघनाथ वध काव्य ने।इसी दौर में महज पांच साल में  उन्होंने लिखा-शर्मिष्ठा,पद्मावती,कष्णकुमारीस मायाकानन,बूढ़ों शालिकेर घाड़ेरों जैसे नाटक और तिलोत्तमा काव्य,ब्रजांगना काव्य,वीरांगना काव्य।

राजसत्ता और राष्ट्र के विरुद्ध विद्रोह का नतीजा दमन और नरसंहार है तो अक्सर अग्निपाखी की तरह किसी मृत्यु उपत्यका में बार बार स्वतंत्रता और लोकतंत्र भी उसी विद्रोह का परिणाम होता है।विश्व के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं।लेकिन धर्मसत्ता के खिलाफ विद्रोह का नतीजा नागरिक जीवन के लिए कितना भयंकर है ,उसका जीती जागती उदाहरण तसलिमा नसरीन है,जिसका किसी राष्ट्र या राष्ट्र सत्ता से कोई खास विरोध नहीं है।उन्होने धर्म सत्ता को भारी चुनौती दी है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होंने धर्म का अनुशासन नहीं माना है।राष्ट्र उन्हें धर्मसत्ता के खिलाफ जाकर अपनी शरण में नहीं ले सकता।बंगाल के वाम शासन के दरम्यान प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष विचारधारा ने अंततः धर्मसत्ता के साथ खड़ा होकर बांग्लादेश की तरह बंगाल से भी तसलिमा को निर्वासित कर दिया और धार्मिक राष्ट्रवाद की सत्ता नई दिल्ली में होने के बावजूद अधार्मिक,नास्तिक ,धर्मद्रोही तसलिमा को भारत सरकार नागरिकता नहीं दे सकती,वही भारत सरकार जिसके समर्थन में तसलिमा अक्सर कुछ नकुछ लिकती रहती है।

धर्मसत्ता के खिलाफ यह विद्रोह लेकिन सभ्यता,स्वतंत्रता,गणतंत्र,मनुष्यों के मौलिक नागरिक और मानवाधिकार के लिए अनिवार्य है।यूरोप से बहुत पहले पांच हजार साल पहले सिंधु घाटी, चीन, मिस्र,  मेसोपोटामिया, इंका और माया की सभ्यताएं बहुत विकसित रही है।

बौद्धमय भारत के अवसान के बाद भी समूचे यूरोप में बर्बर असभ्य अंधकार युग की निरंतरता रही है।आम जनता दोहरे राजकाज और राजस्व वसूली के शिकंजे में थीं।राजसत्ता समूचे यूरोप में रोम की धर्मसत्ता से नियंत्रित थी।इंग्लैंड और जरमनी के किसानों की अगुवाई में धर्मसत्ता के खिलाफ यूरोप में महाविद्रोह के बाद रेनेशां के असर में वहां पहली बार सभ्यता का विकास होने लगा और औद्योगिक क्रांति की वजह से यूरोप बाकी दुनिया के मुकाबले विकसित हुआ।अमेरिका और आस्ट्रेलिया तो बहुत बाद का किस्सा है।

मनुष्यता का बुनियादी चरित्र बाकी जीवित प्राणियों से एकदम अलग है।बाकी प्राणी अपनी इंद्रियों की क्रिया प्रतिक्रिया की सीमा नहीं तोड़ सकते या हाथी,मधुमक्की और डाल्फिन जैसे कुछ जीव जंतु सामूहिक जीवन के अभ्यास में मनुष्य से बेहतर चेतना का परिचये तो दे सकते हैं किंतु अपनी ही इंद्रियों को काबू में करने का संयम मनुष्यता का सबसे बड़ा गुण है और वह अपने विवेक से सही गलत का चुनाव करके क्रिया प्रतिक्रिया को नियंत्रत कर सकता है और स्वभाव से वह प्रतिक्रियावादी नहीं होता।

मुक्तबाजार में लेकिन हम अनंत भोग के लिए अपनी इंद्रियों को वश में करने का संयम खो रहे हैं और विवेक या प्रज्ञा के बदले हमारी जीवन चर्या निष्क्रियता के बावजूद प्रतिक्रियाओं की घनघटा है।

सोशल मीडिया और मीडिया में पल दर पल वहीं प्रतिक्रियाएं हमारे मौजूदा समाज का आइना है,हमारा वह चेहरा है,जिसे हम ठीक से पहचानते भी नहीं है।सामूहिक सामाजिक जीवन के मामले में मनुष्यों की तुलना में हाथी,मधुमक्खी,भेड़िये और डाल्फिन जैसे असंख्य जीव जंतु हमसे अब बेहतर हैं और हम सिर्फ जैविक जीवन में जंतु बनने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।इसीलिए यह अभूतपूर्व हिंसा, गृहयुद्ध,युद्ध और आतंकवाद का सिलसिला तमाम वैज्ञानिक और तकनीकी चमत्कार के बावजूद हमें विध्वंस की कगार पर खड़ा करने लगा है और हम अब भी निष्क्रिय प्रतिक्रियावादी हैं।

सबकुछ हासिल कर लेने की अंधी दौड़ में हम सभ्यता के विनाश पर तुल गये हैं और जैविकी जीवनयापन में हम फिर असभ्य बर्बर अंधकार युग की यात्रा पर हैं और आगे ब्लैक होल के सिवाय कुछ नहीं है।हमने मनुष्यता के विध्वंस के लिए परमाणु धमाकों का अनंत सिलसिला सुनिश्चित कर लिया है।इसी को हम विकास कहते और जानते हैं,जिसमें विवेकहीन इंद्रिय वर्चस्व के भोग के सिवाय मनुष्यता की कोई बुनियादी सत्ता नहीं है।

माइकल मधुसुदन दत्त

https://hi.wikipedia.org/s/13af

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

माइकल मधुसुदन दत्त

माइकल मधुसुदन दत्त (बांग्ला: মাইকেল মধুসূদন দত্ত माइकेल मॉधुसूदॉन दॉत्तॉ) (1824-29 जून,1873) जन्म से मधुसुदन दत्त, बंगला भाषा के प्रख्यात कवि और नाटककार थे। नाटक रचना के क्षेत्र मे वे प्रमुख अगुआई थे। उनकी प्रमुख रचनाओ मे मेघनादबध काव्य प्रमुख है।

जीवनी[संपादित करें]

मधुसुदन दत्त का जन्म बंगाल के जेस्सोर जिले के सागादरी नाम के गाँव मे हुआ था। अब यह जगह बांग्लादेश मे है। इनके पिता राजनारायण दत्त कलकत्ते के प्रसिद्ध वकील थे। 1837 ई0 में हिंदू कालेज में प्रवेश किया। मधुसूदन दत्त अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे। एक ईसाई युवती के प्रेमपाश में बंधकर उन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण करने के लिये 1843 ई0 में हिंदू कालेज छोड़ दिया। कालेज जीवन में माइकेल मधुसूदन दत्त ने काव्यरचना आरंभ कर दी थी। हिंदू कालेज छोड़ने के पश्चात् वे बिशप कालेज में प्रविष्ट हुए। इस समय उन्होंने कुछ फारसी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। आर्थिक कठिनाईयों के कारण 1848 में उन्हें बिशप कालेज भी छोड़ना पड़ा। तत्पश्चात् वे मद्रास चले गए जहाँ उन्हें गंभीर साहित्यसाधना का अवसर मिला। पिता की मृत्यु के पश्चात् 1855 में वे कलकत्ता लौट आए। उन्होंने अपनी प्रथम पत्नी को तलाक देकर एक फ्रांसीसी महिला से विवाह किया। 1862 ई0 में वे कानून के अध्ययन के लिये इंग्लैंड गए और 1866 में वे वापस आए। तत्पश्चात् उन्होंने कलकत्ता के न्यायालय मे नौकरी कर ली।

19वीं शती का उत्तरार्ध बँगला साहित्य में प्राय: मधुसूदन-बंकिम युग कहा जाता है। माइकेल मधुसूदन दत्त बंगाल में अपनी पीढ़ी के उन युवकों के प्रतिनिधि थे, जो तत्कालीन हिंदू समाज के राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन से क्षुब्ध थे और जो पश्चिम की चकाचौंधपूर्ण जीवन पद्धति में आत्मभिव्यक्ति और आत्मविकास की संभावनाएँ देखते थे। माइकेल अतिशय भावुक थे। यह भावुकता उनकी आरंभ की अंग्रेजी रचनाओं तथा बाद की बँगला रचनाओं में व्याप्त है। बँगला रचनाओं को भाषा, भाव और शैली की दृष्टि से अधिक समृद्धि प्रदान करने के लिये उन्होनें अँगरेजी के साथ-साथ अनेक यूरोपीय भाषाओं का गहन अध्ययन किया। संस्कृत तथा तेलुगु पर भी उनका अच्छा अधिकार था।

मधुसूदन दत्त ने अपने काव्य में सदैव भारतीय आख्यानों को चुना किंतु निर्वाह में यूरोपीय जामा पहनाया, जैसा "मेघनाद वध" काव्य (1861) से स्पष्ट है। "वीरांगना काव्य" लैटिन कवि ओविड के हीरोइदीज की शैली में रचित अनूठी काव्यकृति है। "ब्रजांगना काव्य" में उन्होंने वैष्णव कवियों की शैली का अनुसरण किया। उन्होंने अंग्रेजी के मुक्तछंद और इतावली सॉनेट का बंगला में प्रयोग किया। चतुर्दशपदी कवितावली उनके सानेटों का संग्रह है। "हेक्टर वध" बँगला गद्य साहित्य में उनका उल्लेखनीय योगदान है।


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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk