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Saturday, August 31, 2013

विनाश के मुहाने पर सीरिया

पश्चिमी देश जरुर चाहते हैं कि सीरिया में तख्तापलट हो, लेकिन वे रूस और चीन के विरोध के कारण सैन्य हस्तक्षेप से बच रहे हैं. इजरायल भी अपने हितों को देखते हुए असद सरकार को मिटते हुए देखना नहीं चाहता है इसलिए कि असद सरकार जाने के बाद वहां कोई लोकतांत्रिक सरकार नहीं आने वाली...

अरविंद जयतिलक

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-09-22/28-world/4279-vinash-ke-muhane-par-siriya-by-arvind-jaitilak-for-janjwar


दस अप्रैल, 2012 को जब सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व वाली सरकार और विद्रोहियों के बीच 13 माह से चल रहे गृहयुद्ध पर संघर्ष विराम की सहमति बनी, तो वैश्विक समुदाय को लगा कि शायद अब सीरिया गृहयुद्ध की भयानक त्रासदी से उबर जाएगा. लेकिन पिछले दिनों सीरिया की राजधानी दमिश्क में सेना द्वारा रासायनिक हथियारों के हमले में 1300 से अधिक लोगों का नरसंहार सीरिया को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

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बशर अल असद की सेना पर आरोप है कि उसने दमिश्क के उपनगरीय इलाकों आहन तमरा, जोबर और जमालका में विद्रोहियों के ठिकाने पर रासायनिक हमला किया है. हालांकि सीरियाई सरकार ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि सरकार को बदनाम और संयुक्त राष्ट्र टीम का ध्यान बंटाने के लिए विद्रोहियों द्वारा जहरीली गैस के इस्तेमाल का अफवाह फैलायी जा रहा है. लेकिन इस हमले का वीडियो दुनिया के सामने आने के बाद सीरियाई सरकार की पोल खुल गयी है.

वीडियो में ऐसे शव नजर आ रहे हैं जिनपर चोट के निशान नहीं हैं यह नर्व गैस के इस्तेमाल की आशंका को बल देता है. बहरहाल सच्चाई जो हो, लेकिन इतने बड़े पैमानें पर लोगों की हत्या सीरिया में शांति के उम्मीदों को पीछे धकेल दिया है. संयुक्त राष्ट्र संघ रासायनिक हथियार के इस्तेमाल की जांच में जुट गया है. अगर प्रमाणित हो जाता है कि सीरियाई सरकार ने जहरीली गैस का इस्तेमाल किया है, तो निःसंदेह उसे अमेरिका जैसी वैश्विक शक्तियों का कोपभाजन बनना पड़ेगा.

अमेरिका सीरिया पर हमले का ताना-बाना बुनना शुरु कर दिया है. उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीरियाई सरकार को चेताया भी था कि अगर वह गृहयुद्ध में घातक रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करती है, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. अगर अमेरिका और उसके सहयोगी देश सीरिया पर हमला करते हैं, तो स्थिति विस्फोटक होनी तय है. लेकिन इसके लिए सर्वाधिक रुप से सीरिया ही जिम्मेदार होगा. इसलिए कि वह शांति प्रयासों को लगातार हाशिए पर डालता रहा है.

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और अरब लीग द्वारा नियुक्त शांतिदूत कोफी अन्नान के प्रयासों से 12 अप्रैल, 2012 को सीरिया में संघर्ष विराम लागू हुआ. मोटे तौर पर छह बिंदुओं पर सहमति बनी, लेकिन जून, 2012 में यह समझौता विफल हो गया. संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति दूत लएदर ब्राहीमी भी सीरिया के समाधान का हल नहीं ढूंढ़ सके.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सीरिया में हिंसा को रोकने और राजनीतिक परिवर्तन करने वाले प्रस्ताव को भारी बहुमत से अगस्त 2012 में स्वीकार किया. इस प्रस्ताव में कहा गया कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद पद छोड़ दें, तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की तरफ से राजनयिक संबंधों को बनाए रखा जाए.

इस प्रस्ताव में यह भी मांग की गयी कि सीरिया अपने रासायनिक तथा जैविक हथियारों को नश्ट करे, लेकिन इस प्रस्ताव का कोई ठोस फलीतार्थ देखने को नहीं मिला. आज स्थिति यह है कि सीरिया संकट पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विभाजित है. अमेरिका एवं उसके अन्य पिछलग्गू पश्चिमी एवं खाड़ी देश और तुर्की इस मत के हैं कि सीरिया में असद सरकार को हटाकर दूसरी सरकार की स्थापना की जाए. वहीं चीन, रूस और ईरान इसके खिलाफ हैं.

ईरान भी नहीं चाहता है कि सीरिया के मामले में खाड़ी देशों का प्रभाव बढ़े. पश्चिमी देश जरुर चाहते हैं कि सीरिया में तख्तापलट हो, लेकिन वे रूस और चीन के विरोध के कारण सैन्य हस्तक्षेप से बच रहे हैं. इजरायल भी अपने हितों को देखते हुए असद सरकार को मिटते हुए देखना नहीं चाहता है इसलिए कि असद सरकार जाने के बाद वहां कोई लोकतांत्रिक सरकार नहीं आने वाली.

सत्ता उन्हीं इस्लामिक कट्टपंथियों के हाथ में जाएगी, जो इजरायल को करते हैं. यहां उल्लेख करना जरुरी है कि दिसंबर 2012 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा सीरिया में विपक्षी 'नेशनल कोलिशन फॅार सीरियन रिवोल्यूशनरी एंड आपजिशन फोर्सेज' को मान्यता दिए जाने से रूस और चीन बेहद नाराज हैं.

उन्होंने इसे जून, 2012 में पारित जेनेवा प्रस्ताव का उलंघन माना. रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने तो यहां तक कहा कि अमेरिका अपने इस कदम के द्वारा सीरिया में असद सरकार को उखाड़ फेंकने का मार्ग तलाश रहा है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन का मानना है कि चूंकि विपक्षी गठबंधन 'नेशनल कोलिशन फॅार सीरियन रिवोल्यूशनरी एंड आपजिशन फोर्सेज' सीरिया के लोगों की नुमाइंदगी करता है, इसलिए उसे समर्थन दिया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि जून, 2012 में जेनेवा में हुई बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसके तहत सीरियाई पक्षों के वार्ता के द्वारा ही समस्या का समाधान ढूंढ़ने पर सहमति बनी.

इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून, पूर्व महासचिव कोफी अन्नान, अरब लीग के महासचिव के अलावा अमेरिका, चीन, रूस, तुर्की, ब्रिटेन, फ्रांस, इराक, कुवैत, कतर के विदेश मंत्री शामिल हुए. जेनेवा घोशणा में सीरिया में सत्ता बदलाव के लिए एक ऐसे व्यापक राष्ट्रीय गठबंधन की बात कही गयी, जिसमें राष्ट्रपति असद की सरकार की भी भागीदारी सुनिश्चित हो.

दिसंबर 2012 में मोरक्को की राजधानी मराकेश में 130 देषों के 'फ्रेंडस आफ सीरिया' समूह के बैठक में सीरियाई विद्रोहियों को सीरियाई अवाम के असल नुमाइंदे के रुप में भी मान्यता दी गयी. लेकिन सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद ने इसकी कड़ी निंदा की. उन्होंने कहा कि कट्टरवादी इस्लामी दल 'जबाश अल नुसरा' जैसे संगठनों को सीरियाई अवाम का प्रतिनिधि मानना न केवल सीरिया की जनता के साथ छल है, बल्कि यह अमेरिका के दोहरे चरित्र को भी उजागर करता है.

समझना कठिन हो गया है कि सीरिया संकट का समाधान कैसे होगा? सीरिया के सवाल पर विश्व जनमत का विभाजित होना सीरियाई संकट को लगातार उलझा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक सीरिया संघर्श में अभी तक एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. सीरिया के हालात इस कदर खतरनाक हैं कि वहां रह रहे अन्य देशों के लोग पलायन को मजबूर हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की षरणार्थी एजेंसी का कहना है कि सीरिया से हर रोज हजारों शरणार्थी सीमा पार कर इराक और लेबनान में शरण ले रहे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक सीरिया में विद्रोह शुरु होने के बाद से अब तक 20 लाख लोग देश छोड़ चुके हैं. राजधानी दमिश्क, बानियाज, अलहस्का और डेरहामा में आग लगी हुई है. हर रोज सेना और प्रदर्षनकारी भिड़ रहे हैं.

बदतर हालात से निपटने के लिए असद की सरकार ने अप्रैल 2011 में आपातकाल लागू किया था, लेकिन दो वर्ष भी हालात जस के तस बने हुए हैं. सीरिया के शासक बशर अल असद की सेना विद्रोहियों के दमन पर उतारु हैं, वहीं विद्रोही समूह उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने पर आमादा है. विश्व समुदाय का दो गुटों में बंटना और अमेरिका का भौहें तरेरना विश्व समुदाय के हित में नहीं है. याद रखना होगा कि जब भी वैश्विक शक्तियां दो गुटों में विभाजित हुई हैं, परिणाम खतरनाक सिद्ध हुए हैं. उचित होगा कि वैश्विक शक्तियां सीरिया संकट का राजनीतिक समाधान ढूंढ़ें.

arvind -aiteelakअरविंद जयतिलक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं.

Real face of police torture in India

Real face of police torture in India

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13-08-2013 पर प्रकाशित

अब छात्र आंदोलन का मौका नहीं कामरेडों को


कोलकाता में रिलायंस और एअरटेल को एक रुपये के टोकन फीस के बदले फोर जी स्पेक्ट्रम चालू करने की इजाजत

कोलकाता में रिलायंस और एअरटेल को एक रुपये के टोकन फीस के बदले फोर जी स्पेक्ट्रम चालू करने की इजाजत


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोलकाता में रिलायंस और एअरटेल को एक रुपये के टोकन फीस के बदले फोर जी स्पेक्ट्रम चाली करने की इजाजत दे दी जा रही है। शुक्रवार को कोलकाता नगर निगम और रिलायंस के अधिकारियों के बाच सहमति के तहत कोलकाता में पोर जी सेवा चालू होने का रास्ता साफ हो गया। मुंबई में मुकेश अंबानी के साथ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बैठक  के बाद फोरजी स्पेक्ट्रम संबंधी मुद्दे सुलझाने में नगर निगम की ओर से पहल की गयी।रिलायंस सूत्रों के मुताबिक इस साल के अंत तक बंगाल में 56 स्थानों परर रिलायंस की फोर जी स्पेक्ट्रम सेवा चालू हो जायेगी।


रिलायंस जिओ इनफोकम लिमिटेड के पूर्वांचलीय प्रमुख तरुण झुनझुनवाला, मेयर पार्षद इंजीनियरिंग अतीन घोष और नगर निगम अफसरान की बैठक में टोकन फी के बदले लाइसेंस देने का फैसला हो गया।खास बात यह है कि मेयर शोभनदेव चट्टोपाध्याय के अन्यत्र बिजी होने की वजह से अतीन घोष ने ही यह सौदा पटाया।


गौरतलब है कि शुरु से नगरनिगम लाइसेंस फीस पर अढ़ा हुआ था। जिसके लिए मामला आगे नहीं बढ़ रहा था।अब रिलायंस के साथ साथ एक मुश्त एअरटेल की भी लाटरी निकल गयी।अब रिलायंस बाकी टैक्स भरने के लिए तैयार है। नगरनिगम इसे ही उपलब्धि मान रहा है।


नगरनिगम की तरफ से इस सहमति के बारे में खुलासा कर दिया गया है लेकिन रिलायंस की ओर से आधिकारिक बयान नहीं आया। हालांकि तरुण झुनझुनवाला ने सबकुछ टीक हो जाने का दावा किया है।


अब नगरनिगम के कानून विभाग के साथ रिलायंस की बैठक होगी और लाइसेंस देने की औपचारिकता पूरी कर ली जायेगी।


नगर निगम के मुताबिक एअरटेल  के अधिकारियों के साथ भी मामला फािनल है।



तीन साल के अंतराल के बाद फिर दूरदर्शन पर विद्रोही कवि नजरुल के गीत

तीन साल के अंतराल के बाद फिर दूरदर्शन  पर विद्रोही कवि नजरुल के गीत


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


दूरदर्शन की ओर से प्रतिबंध नहीं था।लेकिन काजी नजरुल इस्लाम के गीतों के रायल्टी विवाद की वजह से दूरदर्शन में विद्रोही कवि नजरुल के गीतों का गायन तीन साल से बंद था।जैसे कि रवींद्र संगीत बंगाल की सांस्कृतिक पहचान है, तो इसी संस्कृति का अविच्छेद्य अंग है नजरुल संगीत। अब यह मामला सुलझ गया है। काजी के परिजनों की ओर से कवि की पुण्य तिथि पर नजरुल संगीत के प्रसारण को हरी झंडी दे दी गयी है।


कोलकाता ही नहीं, शांति निकेतन, जलपाईगुड़ी, शिलचर और आगरतला में नजरुल संगीत अवरुद्ध रहा है। अब सारे दरवाजे खोल दिये गये हैं। सर्वत्र गूंजेगा नजरुल संगीत। जैसे सर्वत्र गूंजता है रवींद्र संगीत। कोलकाता दूरदर्सन केंद्र में इसी सहमति के आधार पर नजरुल संगीत की रिकार्डिंग शुरु हो गयी है। निजी चैनलों पर नजरुल संगीत अबाध होने के बावजूद, दूरदर्शन से प्रसारण न होने से नजरुल प्रेमी जनता के साथ साथ कलाकारों को शिकायतें थीं।अब ये शिकायतें खत्म हुई।


पाच साल पहले काजी नजरुल इस्लाम के कानूनी वारिस कल्याणी काजी और खिलखिल काजी ने दूरदर्शन अधिकारियों को पत्र लिखकर मांग की कि चूंकि आकाशवाणी नजरुल के गीतों पर रायल्टी देती है, इसलिए दूरदर्शन को भी रायल्टी का भुगतान करना होगा।रायल्टी नही मिली तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाने कीचेतावनी भी दे दी। इसपर 2010 में दूरदर्शन  से नजरुल संगीत का प्रसारण बंद हो गया।


इस सिलसिले में कवि की पुत्रवधु कल्याणी काजी का कहना है कि सभी परिजनों की सहमति से यह कदम उठाया गया था।उन्होंने कहा कि इस रायल्टी की उन्हें सख्त जरुरत थी क्योंकि सव्यसाची और अनिरुद्ध के असामयिक निधन की वजह से दोनों परिवार गहरे आर्थिक संकट में थे।इसी लिए कापीराइट कानून के तहत ही नियमानुसार दूरदर्सन से रायल्टी की मांगकी गयी।


प्रसार भारती के नये प्रबंधन ने इस विवाद के निपटारे के लिए पहल की तो मामला सुलझ गया।दूरदर्शन भी आकासवाणी की दर से हर नजरुल गीत पर रायल्टी देगा, परिजनों को यह सूचना मिलते ही एक झटके से ती साल केअ अंतराल का पटाक्षेप हो गया।




महाज्ञानी मार्क्सवादियों से महामूर्ख दुसाध क्षमा मांगता है किन्तु ... एच एल दुसाध

महाज्ञानी मार्क्सवादियों से महामूर्ख दुसाध क्षमा मांगता है किन्तु ...

                                             एच एल दुसाध

प्यारे मार्क्सवादियों ,जिस तरह मेरे कल के पोस्ट से आपकी  भावनाएं आहत हुई हैं,उसके लिए खेद प्रकट करता हूँ.बहरहाल अगर आपने मेरे उस पोस्ट की पृष्ठ भूमि समझने का प्रयास किया होता,शायद इतना आहत नहीं होते.वैसे तो मैं क्षमा याचना कर ही लिया हूँ ,पर चाहूँगा कि आप उसकी पृष्ठभूमि जान लें.२८ अगस्त की रात १०.३२ पर नीलाक्षी सिंह ने एक मैटर पोस्ट किया था जिसमें  लिखा था –'ब्राह्मण नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टियां मजदूरी बढाने के लिए तो आन्दोलन करती हैं लेकिन बहुजनों को प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाले आरक्षण को ठीक से लागू किये जाने के लिए कभी लड़ती हुई देखी गईं हैं क्या?वह कहते हैं आरक्षण से बहुजनों का भला नहीं होगा,तो क्या बहुजनों का भला मजदूरी से होगा जिसके लिए वह आन्दोलन करते हैं.तब तो आपको मानना पड़ेगा कि ब्राह्मणों का यह सारा खेल बहुजनों को हमेशा मजदूर बनाये रखने के लिए है.लड़ते रहिये दो-चार सौ रूपये की मजदूरी के लिए'.

नीलाक्षी जी के उस पोस्ट पर आरक्षण के प्रति पूना पैक्ट के ज़माने से ही शत्रुतापूर्ण मनोभाव पोषण  करने वाले आप मार्क्सवादियों में कईयों ने गहरा व्यंग्यात्मक प्रहार किया था.किन्तु एक अन्य व्यक्ति ने ,जो अवश्य ही गैर-मार्क्सवादी रहा होगा,२९ अगस्त की सुबह ८.०० बजे  उस पर कमेन्ट करते हुए लिखा था-दलितों का भला सिर्फ सत्ता पर,उद्योग –धधों पर,पूंजी पर,सारे महत्वपूर्ण पदों और पुरस्कारों पर,मीडिया समेत और सारे संसाधनों पर कब्ज़ा करके ही होगा.इसे ही अपना लक्ष्य बनायें.'नीलाक्षी जी के उपरोक्त पोस्ट पर मैं भी अपनी राय देने से खुद को नहीं रोक पाया और आरक्षण के प्रति आपकी गहरी अरुचि के कारणों  की तफ्तीश करते हुए २९ अगस्त की सुबह ९.१९ पर यह लिख डाला –'नीलाक्षी जी मार्क्सवादियों की समस्या वैचारिक है.सच्ची बात तो यह है कि जिस मार्क्स को उनके भक्त गैर-बराबरी के खिलाफ वैज्ञानिक सूत्र देने का दावा करते हैं,उस मार्क्स को यह पता ही नहीं था कि शक्ति के स्रोतों (अथिक-राजनीतिक-आर्थिक) का लोगों के विभिन्न तबकों के मध्य असमान बटवारे के कारण ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या (आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी) की उत्पत्ति होती रही है.अगर मार्क्स को यह बेसिक जानकारी होती तो वह लोगों के विभिन्न तबकों को शाक्ति के स्रोतों में प्रतिनिधित्व सुलभ कराने का सूत्र रचता.आरक्षण बेसिकली शक्ति के स्रोतों से दूर धकेले गए तबकों के प्रतिनिधित्व/भागीदारी का सिद्धांत है.समतामूलक समाज निर्माण के लिए शक्ति के प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्न तबकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होना चाहिए.पर,चूँकि भारत का प्रभुवर्ग समग्र वर्ग की चेतना से कंगाल रहा है और मार्क्सवादी नेतृत्व प्रभुवर्ग से है इसलिए वह अधिक से अधिक मजदूरी बढाने ,जीडीपी में १५%योगदान करनेवाली खेती इत्यादि में ही भागीदारी की लड़ाई लड़ सकता है.उसके लिए चाह कर भी सप्लाई डीलरशिप,ठेकों,फिल्म-टीवी,मिलिट्री,न्यायपालिका ,पौरोहित्य इत्यादि में सर्वस्वहाराओं के प्रतिनिधित्व की लड़ाई लड़ना मुमकिन नहीं है.हमें इसके लिए गुस्सा करने की बजाय मार्क्सवादियों पर करुणा करनी चाहिए.'

उपरोक्त कमेन्ट के कुछ ही घंटे बाद एक और यह कमेन्ट भी लिखा –'मित्रों आप जो फेसबुक पर अपना कीमती समय दे रहे हैं ,अगर उसके पीछे रत्ती भर भी सामाजिक बदलाव का लक्ष्य है तो आपको बहुजन शत्रु मार्क्सवादियों से यह जानना चाहिए कि उनकी नज़रों में मानव जाति  की सबसे बड़ी समस्या क्या है तथा उसकी उत्पत्ति कैसे होती ही?गौतम बुद्ध ने कहा है कि कोई समस्या है तो उसका कारण है.मेरा मानना है कि न तो मार्क्स और न ही उनके भारतीय अनुसरणकारियों को मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या की कोई स्पष्ट धारणा रही .अगर रही तो मानव जाति  की सबसे बड़ी समस्या की उत्पत्ति का कारण भारतीय मार्क्सवादी बताएं...मैं जानता हूँ बौद्धिक रूप से कायर मार्क्सवादी मेरे सवालों से टकराने के बजाय भाग जायेंगे.'

कामरेडों आपकी खामोशी तोड़ने के लिए ही मैंने अपने आखरी कमेन्ट कमेन्ट को घुमा-फिराकर कल फिर पोस्ट कर दिया जिया,जिसपर आपने ५२ किताबों के लेखक दुसाध को धूर्त बकलोल,मूर्ख इत्यादि खिताब से नवाज कर बदमाश,बेशरम कहने का बदला ले लिया.मुझे इसके लिए अफ़सोस नहीं है.अफ़सोस यही है कि शीबा असलम,अशोक कुमार पाण्डे और मणिन्द्र ठाकुर सर जैसे करीबी लोगों की भावनाएं आहत हुईं.इसलिए ही मैंने क्षमा चाहा  है.हाँ मैं भारतीय मार्क्सवादियों से जबरदस्त नफरत करता हूँ,उसकी स्वीकारोक्ति के लिए क्षमा नहीं मांगूंगा.मुझे मूर्ख ,बकलोल कहनेवाले लोग हिंदी पट्टी के हैं और मैं मार्क्सवादियों के गढ़ प.बंगाल में ३३ साल रहने के कारण उनके चाल-चरित्र को आपसे बेहतर जानता हूँ.कला और संस्कृति की पोषिका बंग-भूमि के प्रति मेरे मन में अपार श्रद्धा रही.ऐसे राज्य को १९७७ में सत्ता में आने के बाद जिस तरह मार्क्सवादियों ने करुणतर स्थिति में पहुँचाया उससे उनके प्रति नफरत की जो भावना पैदा हुई ,उसमें कभी कमी नहीं आई.

बहरहाल आपलोगों ने गाली का बदला गाली देकर तो चुका लिया पर मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि मुझे भ्रांत नहीं प्रमाणित कर पाये और मेरे सवालों का जवाब देने से भाग ही गए.इस तरह आरक्षण के प्रति पूना पैक्ट के ज़माने से जारी अरुचि का कारण ही आप लोग गोल कर गए.खैर औरों से तो नहीं किन्तु शीबा फहमी,विद्वान् मित्र अशोक पांडे और मणिन्द्र सर से तो प्रत्याशा रहेगी ही कि वे विषयांतर करने की बजाय निम्न सवालों का जवाब दें .

1 -क्या आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी मानव जाति की सबसे समस्या नहीं है?

2-क्या सदियों से ही पूरी दुनिया में मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या की उत्पत्ति शक्ति के स्रोतों का विभिन्न तबकों और उनकी महिलाओं के मध्य असमान बटवारे से के कारण नहीं होती रही है?

3-अगर समस्या की उत्पत्ति का कारण यह है तो क्या शक्ति के समस्त स्रोतों का विभिन्न तबकों और उनकी महिलाओं के मध्य न्यायोचित बंटवारा ही इससे उबरने का सर्वोत्तम उपाय नहीं है?

4-अगर शक्ति के स्रोतों का विभिन्न तबकों के मध्य न्यायोचित बंटवारा ही आर्थिक और सामजिक गैर-बराबरी के खात्मे का सर्वोत्तम उपाय है तो क्या बंटवारे के लिए आरक्षण से भी बेहतर कोई उपाय है?

5-क्या आरक्षण की इस प्रभावकारिता को ध्यान में रखकर ही अमेरिका,इंग्लैण्ड,आस्ट्रेलिया,फ़्रांस,दक्षिण अफ्रीका इत्यादि में महिलाओं ,अश्वेतों इत्यादि को शक्ति के स्रोतों में आरक्षण देकर सशक्त नहीं बनाया गया?

6-क्या सदियों से शक्ति के स्रोतों से वंचित किये गए दलित-आदिवासी,पिछड़े और महिलाओं को सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों के साथ मिलिट्री,पुलिस,न्यायपालिका,सप्लाई ,डीलरशिप,ठेकों,फिल्म-टीवी,पौरोहित्य इत्यादि में आरक्षण देकर शक्तिशाली नहीं बनाया जा सकता?

7- आज भारत जैसी आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी विश्व में कही नहीं है और ऐसा होने का एकमेव कारण है 15 % परम्परागत शक्तिशाली तबके का शक्ति के स्रोतों पर 80-85%प्रतिशत कब्ज़ा.आज के ज़माने में जबकि समाजवाद पूरी तरह यूटोपिया बनकर रह गया क्या भारत के चार मुख्य सामाजिक समूहों-सवर्ण,ओबीसी,एससी/एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों-के संख्यानुपात में शक्ति के स्रोतों का बंटवारा करके देश से आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी का विलोप नहीं किया जा सकता?

8-आरक्षण के द्वारा भी डेमोक्रेटिक व्यवस्था में समतामूलक समाज निर्माण किया जा सकता है,इसका उज्जवल दृष्टांत दक्षिण अफ्रीका है.वहा मंडेला की पार्टी ने सत्ता में आने के बाद  शक्ति के स्रोतों को विभन्न तबकों के संख्यानुपात में अरक्षित करने की नीति बनाया.इससे जिन 8-9%गोरों का शक्ति  के स्रोतों पर 80-90% कब्ज़ा रहा,वे 9-10% पर सिमटने के लिए बाध्य हुए.अगर भारत में ऐसा कर दिया जाय तो हजारों साल से शक्ति के स्रोतों पर 80-85% ज़माने वाला सामाजिक समूह १५%पर सिमटने के लिए बाध्य होगा.इससे उसके हिस्से की सरप्लस शक्ति शेष तबकों में बंटनी शुरू होगा .फलतः समतामूलक समाज की प्रक्रिया शुरू हो सकती है.आप बतायें इस कार्य में अम्बेडकरवादी हथियार आरक्षण ज्यादा प्रभावकारी होगा कि पूरी तरह यूटोपिया बन चुका मार्क्सवादी समाजवाद?

उम्मीद तो है कि कायर मार्क्सवादी उपरोक्त सवालों से टकराने के बजाय भाग ही जायेंगे .पर बंधुवर अशोक पांडे,मोहतरमा शीबा असलम और मणिन्द्र सर से पुनः अनुरोध कर रहा हूँ कि आप कायरों की श्रेणी से खुद को अलग करते हुए उपरोक्त सवालों से टकराएँ.खासतौर से मेरे जिले के अशोक पांडे, जिन्होंने दुसाध को भलीभांति जानते हुए भी बकलोल करार दे दिया,को मेरे सवालों से टकराना ही पड़ेगा.पण्डे जी अगर मेरे उपरोक्त विचारों को नहीं काट पाते हैं तो मुझे दिया हुआ खिताब उन्हें खुद ग्रहण करना पड़ेगा.मेरी शुभकामना है की पांडेजी धूर्त बकलोल तथा बाकी मार्क्सवादी कायर बनने से बच जाएँ.

दिनांक:31 अगस्त,2013                                                       

   

            

   

                 


 


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दो टीवी पत्रकारों पर आसाराम समर्थकों के हमले की मनीष तिवारी समेत कई नेताओं-संगठनों ने की निंदा

31 August 2013

नई दिल्ली : सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने स्वयंभू गुरु आसाराम के समर्थकों द्वारा जोधपुर में दो टीवी पत्रकारों पर किए गए हमले की निंदा की। मंत्री ने ट्वीट किया, 'एक धार्मिक उपदेशक के अनुयायियों द्वारा पत्रकारों पर हमला बेहद निंदनीय और परेशान करने वाला है।' तिवारी ने पूछा, 'क्या वह अपने अनुयायियों को यही पढ़ाते और सिखाते हैं?' आश्रम में आसाराम के समर्थकों ने कथित ...

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जोधपुर व भोपाल में पत्रकारों पर हुए हमले ने उठाये कर्इ सवाल

31 August 2013

: संविधान का चौथा स्तंभ खतरे में : संविधान का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडियाकर्मी अब असुरक्षा के घेरे में है। जोधुपर व भोपाल में मीडियाकर्मियों के साथ जिस तरह बदसलूकी व मारपीट की घटना घटी है इसके बाद एक बार फिर मीडियाकर्मियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। क्या दूसरों के अधिकारों व हक की लडार्इ लड़ने वाले पत्रकारों के खुद के लिए भी कोई हक है? क्या पत्रकार के साथ कोर्इ भी अप्रिय घटना ...

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पेमा, जालंधर की एजीएम में मीडिया राइट्स एंड प्रोटैक्शन एक्ट का खाका पेश

31 August 2013

जालंधर : देश में मीडिया पर बढ़ते हमलों को लेकर चिंतित प्रिंट एंड इलैकट्रोनिक मीडिया एसोसिएशन, जालंधर (पेमा) ने मीडियापर्सन्स को स्पैशल एक्ट से कवर करने की दिशा में पहलकदमी है। देश के प्रमुख राज्य पंजाब की मीडिया सिटी जालंधर में पत्रकारों की भलाई के लिए काम कर रही संस्था की शनिवार को आयोजित एनुयल जनरल मीटिंग (एजीएम) में एक्ट का खाका पेश किया गया। प्रधान संजीव कुमार टोनी की अध्यक्षता में आयोजित ब...

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एसीजेएम ने अभिनेता कमाल खान पर एफआईआर की याचिका खारिज की

31 August 2013

एसीजेएम लखनऊ ने मेरे द्वारा फिल्म अभिनेता कमाल आर खान द्वारा राँझना फिल्म की रिव्यू में की टिप्पणी पर एफआईआर दर्ज कराने की याचिका को खारिज कर दिया. 20 जून 2013 को यूट्यूब पर लोड हुए इस वीडियो रिव्यू में खान ने कहा था- "सर, पता नहीं आप यूपी से हैं या नहीं, बट मैं यूपी से हूँ. पूरे यूपी में जैसा धनुष है, वैसे आपको भंगी मिलेंगे, चमार मिलेंगे बट एक भी इतना सड़ा हुआ पंडित आपको पूरे यूपी में कह...

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जिया न्यूज, बिहार के स्टेट हेड बने कुलदीप भारद्वाज, राजीव मिश्र बिग मैजिक टीवी गए

31 August 2013

पटना से खबर है कि कुलदीप भरद्वाज ने अपनी नयी पारी जिया न्यूज़ चैनल के साथ शुरू की है. आठ वर्षों से ज्यादा समय से मीडिया क्षेत्र का अनुभव रखने वाले कुलदीप भरद्वाज को स्टेट हेड बनाया गया है, कुलदीप ने बीएज़ी फिल्म्स से अपने करियर की शुरुआत की थी. कुलदीप भारद्वाज ने जिया न्यूज़ के बिहार स्टेट हेड की जिम्मेवारी सम्भालने से पहले इंडिया न्यूज में न्यूज़ कोआर्डिनेटर कम इंडिया न्यूज चैनल के समूह सम्पाद...

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आवाजाही-कानाफूसी...

जिया न्यूज, बिहार के स्टेट हेड बने कुलदीप भारद्वाज, राजीव मिश्र बिग मैजिक टीवी गए

पटना से खबर है कि कुलदीप भरद्वाज ने अपनी नयी पारी जिया न्यूज़ चैनल के साथ शुरू की है. आठ वर्षों से ज्यादा समय से मीडिया क्षेत्र का अनुभव रखने वाले कुलदीप भरद्वाज को स्टेट हेड बनाया गया है, कुलदीप न... READ MORE

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प्रिंट-टीवी...

एक अखबार आसाराम को बचाने, ब्रांडिंग करने में जुटा, देखिए उसका कवरेज

इंदौर से छपने वाला 'दबंग दुनिया' की दबंगई सबके सामने आ ही गई. वह बलात्कारी आसाराम को बचाने में जुट गया है. उसने आसाराम के महिमामंडन में फ्रंट पेज से लेकर अंदर तक के पेज भर डाले हैं. उसने शी... READ MORE

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सुख-दुख...

छंटनी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ये सारे आइकोनिक पत्रकार ही सबसे पहले कन्नी काटते नज़र आते हैं : उर्म…

: छंटनी के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी मौजूद : नई दिल्ली : मीडिया में जारी छंटनी और पत्रकारों की समस्याओं को ध्यान में रख आयोजित की गयी पत्रकार एकजुटता मंच (जर्नलिस्ट सोलिडेरिटी फोरम- जेएसएफ) की पब्लिक म... READ MORE

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

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[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

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