घोषणापत्र के अघोषित सत्य
Author: समयांतर डैस्क Edition : May 2014
ले. : पार्थिव कुमार
मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में एफडीआई के विरोध का दिखावा करना भाजपा की राजनीतिक मजबूरी है। ठीक उसी तरह जैसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के दिन दिल्ली विधानसभा में हुई कांग्रेस और भाजपा की साझा धींगामुश्ती के बाद मजबूत लोकपाल की तरफदारी उसकी बाध्यता। खुदरा व्यापार में एफडीआई से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे व्यापारियों को होगा जो परंपरागत तौर पर भाजपा के साथ रहे हैं। आम आदमी पार्टी के इसके विरोध में खुले तौर पर बोलने के बाद छोटे व्यापारियों के भाजपा समर्थक तबके में कसमसाहट थी। भाजपा के लिए विदेशी रिटेलर कंपनियों के खिलाफ बोलना जरूरी हो गया था।
मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की इजाजत नहीं देने की भारतीय जनता पार्टी की घोषणा से टेस्को, वॉलमार्ट और कारफोर जैसी कंपनियों को मायूस होना चाहिए। टेलीविजन चैनलों पर तकरीबन रोजाना दिखाए जाने वाले चुनाव सर्वेक्षणों में भाजपा और प्रधानमंत्री पद के इसके उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को सत्ता का सबसे मजबूत दावेदार बताया जा रहा है। इन कंपनियों को परेशान होना चाहिए कि सर्वेक्षणों के सही साबित होने पर भारत जैसे विशाल बाजार में अपने पैर पसारने का इनका सपना चकनाचूर हो सकता है। लेकिन रिटेल सलाहकार कंपनी टेक्नोपैक के चेयरमैन अरविंद सिंघल कहते हैं, ''चुनाव घोषणापत्र कोई पत्थर पर लकीर नहीं है। हमें चुनाव खत्म होने तक इंतजार करना चाहिए। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की नीति का पालन कर पाना विदेशी रिटेलर कंपनियों के लिए नामुमकिन था। भाजपा मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में एफडीआई की इससे बेहतर नीति लेकर आ सकती है।''
दरअसल मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में एफडीआई के विरोध का दिखावा करना भाजपा की राजनीतिक मजबूरी है। ठीक उसी तरह जैसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के दिन दिल्ली विधानसभा में हुई कांग्रेस और भाजपा की साझा धींगामुश्ती के बाद मजबूत लोकपाल की तरफदारी करना उसकी बाध्यता है। मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में एफडीआई से सबसे ज्यादा नुकसान उन छोटे व्यापारियों को होगा जो परंपरागत तौर पर भाजपा के साथ रहे हैं। आम आदमी पार्टी के इसके विरोध में खुले तौर पर बोलने के बाद छोटे व्यापारियों के भाजपा समर्थक तबके में कसमसाहट थी। भाजपा के लिए विदेशी रिटेलर कंपनियों के खिलाफ बोलना जरूरी हो गया था ताकि इस तबके को अपने खेमे में बनाए रखा जा सके।
भाजपा ने अपना चुनाव घोषणापत्र मतदान के पहले चरण के दिन जाकर जारी किया। इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि उसकी नजर में यह घोषणापत्र कितना महत्त्वहीन है। बेशक यह पार्टी मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की मनमोहन सिंह सरकार की नीति का संसद के अंदर जोरदार विरोध करती रही है। लेकिन दोहरी जबान में बात करना उसकी और प्रधानमंत्री पद के उसके उम्मीदवार की खासियत है। अहमदाबाद में वली दकनी की मजार पर रोडरोलर चलवा कर सड़क बनवाने के बाद भी मोदी सभी धर्मों का सम्मान करने की बात कर सकते हैं। पुलिस का दुरुपयोग कर एक युवती की जासूसी करवाने के बावजूद वह महिलाओं के सम्मान की रक्षा की कसमें खा सकते हैं। जिस शख्स को अपनी वैवाहिक स्थिति तक याद नहीं रहती हो उसे चुनाव घोषणापत्र में किया वादा भुलाने में कितना वक्त लगेगा?
भाजपा का चुनाव घोषणापत्र वास्तव में विकास के तथाकथित गुजरात मॉडल का ही विस्तार है। मोदी के मुख्यमंत्रित्व में गुजरात की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से निजी क्षेत्र और बाजार की ताकतों के हवाले कर दिया गया है। राज्य सरकार ने सामाजिक और आर्थिक तौर पर कमजोर तबकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से भी पल्ला झाड़ लिया है। नतीजतन राज्य के मानव विकास के आंकड़े बेहद खराब हैं और प्रगति का रिकार्ड भी औसत ही है। राज्य में विकास के लाभ का बंटवारा समावेशी नहीं होकर अत्यंत भेदभावपूर्ण रहा है।
मोदी के आर्थिक सलाहकार मानते हैं कि सरकार को निजी संपत्ति को फलने फूलने के लिए अनुकूल माहौल मुहैया कराना चाहिए। उनकी राय में निजी संपत्ति में इजाफा ही वंचितों की स्थिति को बेहतर बनाने में सहायक होगा। भाजपा का इरादा केंद्र में सत्ता में आने की स्थिति में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की नवउदारवादी नीति पर ही चलते हुए अपने इसी पूंजीपरस्त गुजरात मॉडल को समूचे देश पर थोपने का है।
कांग्रेस की तरह ही भाजपा ने भी अपने चुनाव घोषणापत्र में किसानों को फसल का लाभकारी मूल्य दिलाने, गांवों और शहरों में ढांचागत सुविधाओं के विकास, महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों और समाज के अन्य वंचित तबकों के सशक्तीकरण और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के बारे में लंबे चौड़े वादे किए हैं। लेकिन किसी ठोस कार्यक्रम के अभाव में इन वादों का हश्र क्या होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है। दूसरी ओर पार्टी ने बड़े उद्योगपतियों और व्यवसायियों के लिए जितनी सहूलियतों की घोषणा की है उसका 10 फीसदी भी लागू हो जाए तो वे मालामाल हो जाएंगे।
भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार को छोड़ रक्षा समेत सभी क्षेत्रों में एफडीआई का स्वागत करेगी। उसने राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को नजरंदाज करते हुए रक्षा सौदों की मंजूरी की प्रक्रिया को आसान बनाने का वादा किया है। उसने कहा है कि वह विदेशी और देशी निवेश के लिए बेहतर माहौल बनाने के मकसद से नीतियों में सुधार करेगी। पार्टी ने बैंकिंग प्रणाली में सुधार, टैक्स व्यवस्था को तार्किक और सरल बनाने तथा समूचे देश में सामान्य बिक्री कर लागू करने का भी संकल्प जाहिर किया है। उसने कहा है कि विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड के कामकाज को ज्यादा प्रभावी और निवेशकों के अनुकूल बनाया जाएगा।
चुनाव घोषणापत्र जारी करने के पीछे भाजपा का एकमात्र मकसद विदेशी और देशी उद्योगपतियों को रिझाना और उनसे भारी चंदा वसूल करना लगता है। उसने बड़ी परियोजनाओं को तुरंत मंजूरी देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल बढ़ाने की प्रणाली बनाने का वादा किया है। उसने कहा है कि इन परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी देने के बारे में फैसला समयबद्ध ढंग से किया जाएगा। इस संबंध में भाजपा की होड़ मौजूदा पर्यावरण और वन मंत्री एम वीरप्पा मोइली से लगती है जिन्होंने चुनावी साल में औद्योगिक घरानों को रिझाने के लिए पर्यावरणवादियों की चिंताओं को ताक पर रख बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं को अंधाधुंध मंजूरी देने का रिकार्ड कायम किया है।
भाजपा का वादा है कि युवाओं के लिए नौकरियां सृजित करने के उद्देश्य से वह कंपनियों को अपना उत्पादन आधार भारत को बनाने के वास्ते प्रेरित करेगी। मगर क्या सिर्फ मुनाफे पर नजर रखने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में फैक्टरियां खोलने के लिए मजबूर किया जा सकता है? वे तो उसी देश को अपना उत्पादन आधार बनाएंगी जहां कानून उनके अनुकूल हो तथा जमीन, कच्चा माल और मजदूर औने पौने भाव मिल सकें। मोदी देश के किसानों, मजदूरों और छोटे कारोबारियों के हितों को नजरंदाज कर धनपतियों की इस शर्त को पूरा करने के लिए तैयार दिखाई देते हैं।
मौजूदा साल की शुरुआत में नए भूमि अधिग्रहण कानून के लागू होने के बाद औद्योगिक घरानों और बिल्डरों के लिए जमीन की खरीद पहले जितनी आसान नहीं रही है। इसे ध्यान में रखते हुए घोषणापत्र में केंद्र और राज्यों में भूमि उपयोग प्राधिकरण के गठन की बात कही गई है ताकि जमीन अधिग्रहण को सरल बनाया जा सके। इसे इस बात का संकेत माना जा सकता है कि केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने पर अडाणियों, अंबानियों और टाटाओं की और चांदी होगी। आवास निर्माण को निजी कंपनियों के हवाले किए जाने के बाद यह क्षेत्र काले धन को खपाने का सबसे अच्छा जरिया बन गया है। अवैध धन पर अंकुश लगाने की कसमें खाने वाली भाजपा ने आवास की समस्या को दूर करने के लिए सार्थक सरकारी पहलकदमी के बजाय इस क्षेत्र में निजी निवेश को और सहज बनाने का संकेत दिया है। उसकी नीति के तहत ढांचागत सुविधाओं के विस्तार पर खर्च सरकार का होगा मगर उसका लाभ आम आदमी के बजाय बड़े उद्योगपति और कारोबारी ले जाएंगे।
भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग की उपेक्षा की गई है। पार्टी ने स्थायी प्रकृति के काम में ठेका मजदूरों का इस्तेमाल रोकने की श्रमिक संगठनों की मांग को नजरंदाज कर दिया है। ठेका मजदूरों को स्थायी श्रमिकों के समान मजदूरी और सुविधाएं मुहैया कराने के सवाल पर भी उसने चुप्पी साध रखी है। न्यूनतम मजदूरी और पेंशन की सीमा बढ़ाने और उन्हें सख्ती से लागू करने तथा सूचना प्रौद्योगिकी, कॉल सेंटर और ऑडियो विजुअल मीडिया क्षेत्रों को श्रम कानूनों के दायरे में लाने में भी उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
'सबका साथ, सबका विकास' के भाजपा के नारे की पोल उसके चुनाव घोषणापत्र से ही खुल जाती है। इससे यह भी साफ हो जाता है कि क्यों निजी कंपनियां कांग्रेस का साथ छोड़ मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रही हैं। उद्योगपतियों की गुलाम मीडिया में मोदी के कसीदे पढ़ने की होड़ का कारण भी इससे स्पष्ट हो जाता है।
भ्रष्ट कॉरपोरेट घरानों के लिए मनमोहन सिंह अगर भरोसेमंद भाई रहे तो मोदी पूज्य पिता के समान हैं। गुजरात के उनके शासनकाल में अडाणी ग्रुप की संपत्ति 3000 करोड़ रुपए से बढ़ कर 50000 करोड़ रुपए की हो गई। फॉब्र्स एशिया के मुताबिक राज्य सरकार ने इस औद्योगिक घराने को मुंद्रा में 7350 हेक्टेयर जमीन कौडिय़ों के मोल 30 साल के पट्टे पर दी है। इस जमीन को अडाणी ने इंडियन आयल जैसी सरकारी कंपनियों को भारी रकम लेकर किराए पर सौंप दिया है। इसके एक हिस्से पर उसने बंदरगाह, बिजलीघर और विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार ने नैनो के संयंत्र को गुजरात में लाने के लिए टाटा को लगभग 30 करोड़ रुपए के लाभ दिए। हर नैनो कार के उत्पादन पर गुजरात सरकार के तकरीबन 60 हजार रुपए खर्च होते हैं। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात सरकार ने 2012-13 में बड़े औद्योगिक घरानों को बेजा फायदे पहुंचाए जिससे सरकारी खजाने को 750 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। उसकी इस दानवीरता का सबसे ज्यादा लाभ रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, एस्सार स्टील और अडाणी पावर लिमिटेड जैसी मोदी की चहेती कंपनियों को हुआ।
भेद खुलने का भय होने पर चुप्पी साध लेना मोदी और उनकी पार्टी की पुरानी आदत है। शायद इसीलिए भाजपा का घोषणापत्र सरकारी कंपनियों के विनिवेश के सवाल पर खामोश है। लेकिन घोषणापत्र से इस बात का साफ संकेत मिलता है कि पार्टी इस संबंध में तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की संप्रग सरकार की नीति को ही आगे बढ़ाएगी।
भाजपा बजट घाटा कम करने की बात करते हुए यह बताने से कतराती है कि आखिर खर्चों में कटौती कहां की जाएगी। जाहिर है कि निशाना गरीबों को मिलने वाली सब्सिडी को ही बनाया जाएगा। मुद्रा स्फीति और वित्तीय घाटे को कम करने तथा सकल घरेलू उत्पाद में इजाफे का कोई लक्ष्य घोषणापत्र में तय नहीं किया गया है। पार्टी चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने के लिए आयात घटाने और निर्यात को बढ़ावा देने की बात करती है। मगर वह नहीं बताती कि किन वस्तुओं का आयात घटाया जाएगा और किनके निर्यात में बढ़ोतरी की कोशिश की जाएगी।
महंगाई को काबू में करने के लिए घोषणापत्र में जिन उपायों का जिक्र किया गया है वे हास्यास्पद हैं। पार्टी ने इसके लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाने की बात कही है मगर यह नहीं बताया गया कि यह कैसे काम करेगा। उसने जमाखोरों और कालाबाजारियों पर मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतें बनाने की घोषणा की है। मगर भाजपा ने यह नहीं कहा कि वह जरूरी सामान की कीमतें बढऩे के लिए जिम्मेदार लोगों की धरपकड़ कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी।
जनता को कांग्रेस का नीति पर आधारित विकल्प मुहैया कराने के भाजपा के दावे में कोई दम नहीं है। दोनों ही पार्टियां भ्रष्टाचार की पोषक और निजी पूंजी को बढ़ावा देने की हिमायती हैं। दोनों के बीच कॉरपोरेट घरानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचा कर अपना उल्लू सीधा करने की होड़ है। लेकिन भाजपा अपनी चुनावी घोषणाओं से इस वर्ग को कांग्रेस की तुलना में ज्यादा आश्वस्त करने में सफल रही है।
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