पलाश विश्वास
क्यों आगामी लोकसभा चुनाव के चुनाव से पहले बामसेफ के लोग जिन्हें भड़ुआ दलाल दोगला कहते नहीं थकते थे, उसी जमात में शामिल होने के लिए इसके विरोधी लोगों को ही भगोड़ा और दलाल कहा जा रहा है?
िइससे नये कानून के तहत एक एक रुपये के गुल्लक चंदा के बजाय हजारों हजार करोड़ रुपयों के कारपोरेट चंदा हासिल करने और दूसरों की तरह वैधानिक तरीके से संसाधन जमा करने के रास्ते खोलने और आय से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने की खुली छूट, काळाधन के कारोबार के अलावा कौन सा मकसद पूरा होना है और इससे राष्ट्रव्यापी जनांदोलन का एजंडा कैसे पूरा होता है?
यह सवाल करना क्या असंवैधानिक है?
फिर बहुजन समाज को मूलनिवासी पहचान देनेवाले अब यह बहुजन समाज पार्टी के मुकाबले क्यों बहुजन विमुक्ति पार्टी, बीएसपी के बदले बीएम पी बना रहे हैं?
य़ह पार्टी आजादी के लिए है या बहुजन समाज पार्टी के मुकाबले राजनीति की मनुवादी व्यवस्था की नयी चाल?
कृपया बतायें कि अपने ऐतिहासिक जाति उन्मूलन महासंग्राम, समता और सामाजिक न्याय के लिए जिहाद और मनुस्मृति व्यवस्था के पर्दाफाश के लिए प्रतिपक्ष के तीखे से तीखे हमले के बावजूद संविधान निर्माता बाबासाहेब डा. भीमराव अंबेडकर ने- अपनी विचारधारा कि मनुस्मृति व्यवस्था का नाश हो, समता और सामाजिक न्याय के आधार पर देश के मूलनिवासियों और बहुजनों को सही मायने में आजादी मिलें, सबको समान अवसर और आत्म सम्मान का जीवन आजीविका मिले, प्राकृतिक संसाधनों पर मूलनिवासियों को संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूचियों के तहत स्व स्वयत्तता के तहत मालिकाना हक मिले- के लिए तानाशाही रवैय्या अपनाकर लोकतांत्रिक मूल्यों का विसर्जन दिया? कब उन्होंने कहा कि राष्ट्रव्यापी जनांदोलन के लिए फंडिंग सबसे ज्यादा जरूरी है और हमें भीड़ नहीं चाहिए, जो आंदोलन के लिए नियमित चंदा और डोनेशन दे सकें , ऐसे प्रतिष्ठित लोग ही चाहिए? कब उन्होंने प्रतिपक्ष के विरुद्ध धर्मग्रंथों मनुस्मृति समेत के तार्किक विवेचन,खंडन मंडन और जाति उन्मूलन के लिए , बहिष्कृत मूक समाज के सामाजिक आर्थिक मानव नागरिक अधिकारों के लिए अविराम संघर्ष के बावजूद घृणा अभियान, गाली गलौज का सहारा लिया? क्या उन्होंने राष्ट्रव्यापी संगठन बनाकर देश के कायदे कानून के खिलाफ निजी संपत्ति बनायी संगठन के नाम पर?आयकर विभाग को कभी रिटर्न जमा नहीं किया? संसाधन जमा करने के लिए कानून का उल्लंघन करते हुए ईसीएस मार्फत अंशदान के लिए बिना समुचित कानूनी आर्थिक प्रक्रिया के कोई काम किया?पंद्रह पंद्रह वर्षों से सालाना करोड़ों रुपये की फंडिंग जमा करने वाले कार्यकर्ताओं को हिसाब मांगने पर, जैसा कि इस देश के आर्थिक प्रबंधन मसलन आयकर विभाग जैसी एजंसियों को भी करना चाहिए कि संस्था के पंजीकरण के बाद अब तक आयकर रिटर्न दाखिल क्यों नहीं हुए- निकाल बाहर किया जाये?
ऐसा कोई मौका बतायें जब बाबासाहेब लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बाहर गये हों, ब्राह्मणों को गाली देकर सामाजिक क्रांति का एकमात्र रास्ता बताया हो? समाज को रिटर्न के नाम पर अपने समुदाय के महज मलाईदार तबके को इकट्ठा करके उनके भयादोहन से निय़मित वसूली के लिए कैडरवाहिनी का निर्माण किया हो? संगठन में लोकतांत्रिक ढंग से बात करने की किसी को इजाजत न दी हो? भिन्नमत रखने वालों को ब्राह्मणों का एजंट, मनुवादी, कारपोरेट दलाल , भगोड़ा कहकर खारिज करते रहे हों?जिन गांधीजी को उन्होंने महात्मा कभी संबोधित न किया हो, उनका और मनुस्मृति व्यवस्था में शामिल दूसरे नेताओं से राष्ट्रीय मुद्दों पर विमर्श करने से इंकार किया हो?बहुजनों के हक हकूक के लिए लड़ते हुए कब उन्होंने कहा कि दूसरों का सामाजिक राजनीतिक बहिष्कार किया जाये या अपने लोगों को शासक जातियों से उन्हींके अंदाज में अस्पृष्यता का व्यवहार करना चाहिए,और चूंकि संवाद के माध्यमों में उन्हीका कब्जा है , इसलिए वहां अपने हक हकूक की आवाज उठाने वाला भगोड़ा, दलाल और भड़ुआ माने जायेंगे?
याद करें कि जब कांशीराम जी ने बामसेफ की नींव पर बहुजन समाज पार्टी बनाय़ी तो राजनीति में शामिल होने के बदले आजादी का आंदोलन जारी रखने के लिए बामसेफ आंदोलन की निरंतरता बनाये रखने के लिए किन किन लोगों ने क्या क्या कहा था? अब एकमात्र पंजीकरण के आधार पर कितने संगठन कितने नाम से बतौर कितने तानाशाहों की निजी जागीर के रुप में चल रहे हैं? लाखों का मजमा खड़ा किया जाता है हर साल, लेकिन वहां महज धर्मराष्ट्रवाद की तरह प्रवचन ही होते हैं,एकतरफा घृणा अभियान चलता है, खालिस गाली गलौज होता है, बंद सम्मेलनों की इस क्रांति का कवरेज न हो ऐसा इंतजाम किया जाता है, जो भिन्नमत रखता हो , उसे बाहर किया जाता है। जो कार्यकर्ता , चाहे जितना बेहतरीन सूझ बूझ वाला हो, सचमुच विचारधारा और मुक्ति के लिए जनांदोलन की बात करता हो, लेकिन फंडिंग के एकमात्र मिशन को नजरअंदाज करता हो , उसे दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर किया जाता है।तमाम सामजिक शक्तियों के जनसंगठन का बी एकमात्र मकसद फंडिंग है।हिसाब किताब मांगने वाले कार्यकर्ता य़ा अनियमितता पर उंगली उठाने वाले कार्यकर्ता या नेतृत्व से सवाल पूछने वाले कार्यकर्ता तुरंत बाहर कर ही नहीं दिये जाते, उनके विरुद्ध हमलावर तेवर अपनाते हुए उन्हें मनुवादी, ब्राह्मण या ब्राह्मण का रिश्तेदार, दोगला, दलाल, वगैरह वगैरह करार दिया जाता है।
दुनियाभर के मुक्ति संग्राम में कोई भी जनांदोलन तानाशाही से कैसे चलता है, हमें नहीं मालूम। हमें नहीं मालूम कि प्रश्न और प्रतिप्रश्न का सामना किये बिना कैसे लोकतंत्र का कारोबार कैसे चलाया जाता है ,हमें नहीं मालूम सड़क पर बुनियादी मुद्दों को लेकर लड़े बिना सिर्फ फंडिंग के लिए नेटवर्किंग और राष्ट्रीय मजमा खड़ा करने को कैसे जनांदोलन कहा जाये?
समय़ इतना भयावह है और नरसंहार संस्कृति का अश्वमेध आयोजन इतना प्रबल है कि गली में खड़े होकर भीषण गाली गलौज करके इसका मुकाबला हरगिज नहीं किया जा सकता। राष्ट्रव्यापी संयुक्त मोर्चा तमाम सामाजिक और उत्पादक शक्तियों का चाहिए।बहिष्कारवादी भाषा फंडिंग के लिए बहुत उपयुक्त है क्योंकि लोगों को दुश्मन जाति पहचान के आधार पर बहुत साफ साफ नजर आते हैं और वे अपना सबकुछ दांव पर लगाकर अंध मुक बहरे अनुयायी यानी मानसिक गुलाम बन जाते हैं, इस सेना से और जो कुछ हो , मुक्त बाजार की वैश्विक व्यवस्था जो महज ब्राह्मणवाद ही नहीं, एक मुकममल अर्थव्यवस्था है, के खिलाफ प्रतिरोध हो नहीं सकता।
अगर वामपंथी और माओवादी आर्थिक सुधारों के बहाने नरसंहार अभियान के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा न कर पाने का दोषी है,तो यह सावल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि सामाजिक भौगोलिक आर्थिक ग्लोबल नेटवर्किंग के बावजूद, गांव गांव तक कैडर तैनात करने के बावजूद, बामसेफ के लोग आज तक निजीकरण, ग्लोबीकरण, विनियंत्रण और मुक्त बाजार व्यवस्था के खिलाफ, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के विरुद्ध,जल जंगल जमीन और नागरिकता से डिजिटल बायोमेट्रेक नागरिकता के जरिये बेदखली के खिलाफ, कारपोरेट नीति निर्धारण के विरुद्ध, नागरिक और मानव अधिकारों के हनन के खिलाफ कोई प्रतिरोध खड़ा करने की कोसिश ही नहीं की?
आदिवासियों के हित में पांचवीं और छठी अनुसूचियों के तहत बाबासाहेब द्वारा दी गयी अधिकारों की गारंटी को लागू करने की मांग और बहुजनों के हक हकूक के लिए भूमि सुधार की मांग पर कोई आंदोलन क्यों नहीं हो पाया?
अंबेडकर विचारधारा का मतलब सिर्फ जाति पहचान के तहत सत्ता में भागेदारी और मलाईदार तबके की भलाई और उन्हें भ्रष्टाचार और अकूत कालाधन इकट्ठा करने की छूट नहीं है, जयभीम और जय मूलनिवासी कहने वाला हर शख्स यह जितनी जल्दी समझ लें. वह बहुजन समाज के लिए ही नही, देश और दुनिया की सेहत के लिए बेहतर है। कोई भी आजादी और परिवर्तन लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर नहीं है।
क्यों आगामी लोकसभा चुनाव के चुनाव से पहले बामसेफ के लोग जिन्हें भड़ुआ दलाल दोगला कहते नहीं थकते थे, उसी जमात में शामिल होने के लिए इसके विरोधी लोगों को ही भगोड़ा और दलाल कहा जा रहा है?
िइससे नये कानून के तहत एक एक रुपये के गुल्लक चंदा के बजाय हजारों हजार करोड़ रुपयों के कारपोरेट चंदा हासिल करने और दूसरों की तरह वैधानिक तरीके से संसाधन जमा करने के रास्ते खोलने और आय से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने की खुली छूट, काळाधन के कारोबार के अलावा कौन सा मकसद पूरा होना है और इससे राष्ट्रव्यापी जनांदोलन का एजंडा कैसे पूरा होता है?
यह सवाल करना क्या असंवैधानिक है?
फिर बहुजन समाज को मूलनिवासी पहचान देनेवाले अब यह बहुजन समाज पार्टी के मुकाबले क्यों बहुजन विमुक्ति पार्टी, बीएसपी के बदले बीएम पी बना रहे हैं?
य़ह पार्टी आजादी के लिए है या बहुजन समाज पार्टी के मुकाबले राजनीति की मनुवादी व्यवस्था की नयी चाल?
Chaman Lal posted in Bamcef india
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क्या बामसेफ के वास्तविक कार्यकर्ता को डराया जा सकता है ? बामसेफ को जानने, मानने वाले लोग कृपया अपना विचार रखें - यह आपके भविष्य से जुडा हुवा गंभीर मुद्दा है !
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Chaman Lal
BAMCEF Kanpur unit
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By: Chaman Lal
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