The President may be removed before the expiry of the term through impeachment. A President can be removed for violation of theConstitution of India.[70]
The process may start in either of the two houses of the Parliament. The house initiates the process by levelling the charges against the President. The charges are contained in a notice that has to be signed by at least one quarter of the total members of that house. The notice is sent up to the President and 14 days later, it is taken up for consideration.
A resolution to impeach the President has to be passed by a special majority (two-third majority of the total members present and voting and simple majority of total membership of the originating house). It is then sent to the other house. The other house investigates the charges that have been made. During this process, the President has the right to defend oneself through an authorised counsel. If the second house also approves the charges made by special majority again, the President stands impeached and is deemed to have vacated his/her office from the date when such a resolution stands passed. Other than impeachment, no other penalty can be given to the President for the violation of the Constitution.[71]
No president has faced impeachment proceedings so the above provisions have never been used.[72]
Palash Biswas
संविधान के विपरीत है वीआईपी और वीवीआईपी श्रेणी
बी.पी. गौतम
विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में लगे जवानों और उन पर किये जा रहे खर्च का मुद्दा उच्चतम न्यायलय तक पहुँच गया है। विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए या नहीं, इस पर बहस भी छिड़ गई है। कोई कह रहा है कि सुरक्षा देनी चाहिए, तो किसी का मत है कि नहीं देनी चाहिए। कुछ लोग सुरक्षा देने में अपनाए जाने वाले नियमों को और कड़ा करने के पक्ष में हैं, तो कुछ लोगों का मत है कि सुरक्षा पर होने वाला खर्च उसी व्यक्ति से वसूल किया जाना चाहिए, जिसकी सुरक्षा पर धन खर्च हो रहा है, जबकि सबसे पहला सवाल यही है कि सुरक्षा देनी ही क्यूं चाहिए?
लोकतंत्र में सभी की जान की कीमत बराबर है, तो सभी की सुरक्षा की चिंता बराबर ही होनी चाहिए। सुरक्षा देने में नियमों को और कड़ा करने का अर्थ यही है कि विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों को सुरक्षा देने का प्रावधान तो रहेगा ही और सुरक्षा देने का नियम रहेगा, तो सुरक्षा चाहने वाले प्रभावशाली लोग नियमों की पूर्ति करा ही लेंगे। रही धन वसूलने की बात, तो देश में तमाम ऐसे लोग हैं, जो पूरी एक बटालियन का खर्च आसानी से भुगत लेंगे, इसलिए धन वसूलने के नियम के भी कोई मायने नहीं है।
इस मुद्दे को व्यक्तिगत सुरक्षा में लगाए जाने वाले जवानों और आम आदमी की दृष्टि से भी देखना चाहिए। देश और समाज की सेवा में जान देने को तत्पर रहने वाले कुछ जवानों की जिन्दगी निजी सुरक्षा के नाम पर कुछ ख़ास लोगों की चाकरी में ही गुजर जाती है। लेह, लद्दाख और कारगिल जैसे कठिन स्थानों पर तैनात जवान सेवानिवृति के बाद भी अपनी तस्वीर देखते होंगे, तो सीना गर्व से चौड़ा ही होता होगा, लेकिन विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में जिन्दगी गुजार देने वाले जवानों को यही दुःख रहता होगा कि पूरी जिन्दगी एक शख्स की चाकरी में ही गुजार दी। ऐसे जवानों की संतानें भी गर्व से नहीं कह पाएंगी कि उनके पिता कमांडों हैं, इसलिए देश और समाज की सेवा के लिए नियुक्त किये गये जवानों को निजी सुरक्षा में लगाना ही गलत है, इसी तरह गली-मोहल्ले के बाहुबलियों, धनबलियों और डकैतों से लेकर बदले की राजनीति करने वाले नेताओं के दबाव व भय के चलते गाँव से पलायन कर जाने वाला आम आदमी विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों के पीछे दौड़ते एनएसजी कमांडों को देखता होगा, तो सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उसके अन्दर कैसे विचार आ रहे होते होंगे?
विमान अपहरण पर कार्रवाई करने और एंटी टेरर ऑपरेशंस के लिए 1984 में नैशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स (एनएसजी) का गठन किया गया था। एनएसजी के दो विंग बनाए गए, जिसे स्पेशल ऐक्शन ग्रुप (एसएजी) और स्पेशल रेंजर्स ग्रुप (एसआरजी) नाम दिया गया। एसएजी में सेना के जवानों को डेपुटेशन पर भेजा जाता है, जबकि एसआरजी में आईटीबीपी, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएफ और एसएसबी के जवान डेपुटेशन पर भेजे जाते हैं। दुर्भाग्य की ही बात है कि इसी एसआरजी में से आधे से अधिक जवानों को वीआईपी सिक्यूरिटी में लगा दिया गया है। लोकतंत्र की प्रासंगिकता और इन जवानों का मनोबल बनाये रखने के साथ सबसे पहला प्रयास यह होना चाहिए कि आम आदमी के मन में हीनता का भाव न आये, इसलिए विशिष्ट और अति विशिष्ट शब्द का प्रयोग ही बंद होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 15(1) में स्पष्ट कहा गया है कि भारत में जन्मे सभी नागरिकों के अधिकार समान हैं और किसी को जन्म, खानदान, वंश, जाति, लिंग, धर्म, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर विशिष्ट नहीं माना जाएगा, इसके बावजूद देश में विशिष्ट और अति विशिष्ट के रूप में लोगों की भरमार है। विशिष्ट और अति विशिष्ट रहेंगे, तो आम आदमी भी रहेगा और आम आदमी रहेगा, तो वह स्वयं को हीन समझता ही रहेगा, इसलिए सबसे पहले विशिष्ट और अति विशिष्ट श्रेणी निर्धारित करने की प्रक्रिया को समाप्त करने की दिशा में पहल होनी चाहिए। इसके अलावा अव्यस्था रोकने के लिए एक अलग विंग बनाना चाहिए, जो सिर्फ भवनों, राष्ट्रपति, प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसों की देखभाल करे। युद्ध के साथ देश और समाज की सुरक्षा के लिए भर्ती किये गये कमांडोंज को निजी सुरक्षा में लगाना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि एसपीजी का बजट 200 करोड़ के करीब है, जबकि देश के एक अरब लोगों की सुरक्षा का भार उठाने वाली एनएसजी का बजट एसपीजी की तुलना में बहुत कम है, साथ ही राज्यों ने अपनी ओर से वीआईपी सुरक्षा में पुलिस को भी लगा रखा है, जिसका कुल बजट जोड़ा जाए, तो हजारों करोड़ में बैठेगा। एक तरह से आम आदमी की मेहनत की कमाई को बर्बाद ही किया रहा है। ज़ेड और ज़ेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा नियमानुसार उसी व्यक्ति को दी जाती है, जिसे जातीय और धार्मिक समूह के साथ आतंकवादी संगठनों से जान का खतरा हो। यहाँ ध्यान देने की विशेष बात यह है कि इस बिंदु पर पहले जांच होनी चाहिए कि जाति या धार्मिक समूह किसी व्यक्ति को जान से मारने को आमादा क्यूं हैं, क्योंकि वर्तमान में अधिकाँश नेता जाति और धर्म की ही राजनीति कर रहे हैं, जिसकी इजाजत संविधान नहीं देता। जो समाज में रहने लायक न हो और जिसके सुधरने की भी कोई आशा न हो, ऐसे अपराधी को फांसी देने का प्रावधान है, ऐसे ही किसी जाति या किसी धार्मिक समूह की भावनाओं को भड़काने वाले व्यक्ति को भी समाज में रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए, जबकि उसे विशिष्ट और अति विशिष्ट का दर्जा देकर कड़ी सुरक्षा दे दी जाती है और कड़ी सुरक्षा पाकर वह लोग आम आदमी के सामने और भी परेशानी का सबब बनते रहते हैं। राह में चलते समय उनके लिए मार्ग खाली करा दिया जाता है, ऐसे ही किसी भी सार्वजनिक स्थल पर ऐसे लोग आम आदमी के अपमान का कारण बनते ही रहते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने वीवीआईपी की सुरक्षा पर एक बार टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह लोग कोई राष्ट्रीय धरोहर नहीं हैं, जो इनकी सुरक्षा करने की आवश्यकता है, लेकिन हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बावजूद आज तक कोई सुधार नहीं हुआ। अब देखने वाली महत्वपूर्ण बात यही है कि उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप से कुछ सुधार होगा या नहीं।
बी.पी. गौतम
8979019871
President of India
The President of India is the head of state of the Republic of India. The President is the formal head of the executive, legislature and judiciary of India and is thecommander-in-chief of the Indian Armed Forces.
The President is indirectly elected by the people through elected members of theParliament of India (Lok Sabha and Rajya Sabha) as well as of the state legislatures (Vidhan Sabhas), and serves for a term of five years.[3] Historically, ruling party (majority in the Lok Sabha) nominees (for example, United Progressive Alliance nominee ShriPranab Mukherjee) have been elected or largely elected unanimously. Incumbent presidents are permitted to stand for re-election. A formula is used to allocate votes so there is a balance between the population of each state and the number of votes assembly members from a state can cast, and to give an equal balance between State Assembly members and the members of the Parliament of India. If no candidate receives a majority of votes, then there is a system by which losing candidates are eliminated from the contest and their votes are transferred to other candidates, until one gains a majority. The Vice-President is elected indirectly by members of an electoral college consisting of the members of both Houses of Parliament in accordance with the system of Proportional Representation by means of the Single transferable vote and the voting at such election shall be by secret ballot [4]
Although Article 53[5] of the Constitution of India states that the President can exercise his or her powers directly or by subordinate authority,[6] with few exceptions, all of the executive authorities vested in the President are in practice exercised by popularly elected Government of India, headed by the Prime Minister. This Executive power, is exercised by the Prime Minister with the help of Council of Ministers.
The President of India resides in an estate in New Delhi known as the Rashtrapati Bhavan[7] (which roughly translates as President's Palace). The presidential retreat isThe Retreat in Chharabra, Shimla and Rashtrapati Nilayam (President's Place) inHyderabad.
The 13th and current President is Pranab Mukherjee elected on 22 July 2012, and sworn-in on 25 July 2012. He is also the first Bengali to be elected as the president.[8]He took over the position from Pratibha Patil who was the first woman to serve in the office.[9]
Removal
The President may be removed before the expiry of the term through impeachment. A President can be removed for violation of theConstitution of India.[70]
The process may start in either of the two houses of the Parliament. The house initiates the process by levelling the charges against the President. The charges are contained in a notice that has to be signed by at least one quarter of the total members of that house. The notice is sent up to the President and 14 days later, it is taken up for consideration.
A resolution to impeach the President has to be passed by a special majority (two-third majority of the total members present and voting and simple majority of total membership of the originating house). It is then sent to the other house. The other house investigates the charges that have been made. During this process, the President has the right to defend oneself through an authorised counsel. If the second house also approves the charges made by special majority again, the President stands impeached and is deemed to have vacated his/her office from the date when such a resolution stands passed. Other than impeachment, no other penalty can be given to the President for the violation of the Constitution.[71]
No president has faced impeachment proceedings so the above provisions have never been used.[72]
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