रक्षा घोटाले में राष्ट्रपति का नाम, महाभियोग लगेगा?
♦ पलाश विश्वास
पहली बार रक्षा घोटाले में भारत के राष्ट्रपति का नाम, इस राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग क्यों नहीं? हेलीकॉप्टर खरीद घोटाले पर यूपीए सरकार की फैक्टशीट में कहा गया है कि टेंडर पर 2005 में मुहर लगी, उस समय प्रणब मुखर्जी रक्षा मंत्री और एसपी त्यागी वायुसेना प्रमुख (अब सेवानिवृत्त) थे। कोलकाता में राष्ट्रपति बनने पर राष्ट्रपति भवन तक अपना पूजा मंदिर ले जाने, दिनचर्या की शुरुआत चंडीपाठ से करने और दुर्गापूजा की पुरोहिती स्वयं करने जैसी खबरें मीडिया बारीक सी बारीक जानकारी के साथ देता है। पर जिस तरह कोलकाता में आशीष नंदी के जयपुर वक्तव्य के विरुद्ध बंगाल के तीस संगठनों की धिक्कार सभा की खबर कहीं नहीं आयी, उसी तरह हेलीकाप्टर घोटले की खबरों में बंगाल में कहीं प्रणव मुखर्जी का नाम नहीं आया। इसी बंगाल से इराक में युद्ध अपराध के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति बुश के खिलाफ महाभियोग लगाने की मांग गूंजती रही है, तो अपने ही देश के राष्ट्रपति के रक्षा घोटाले में शामिल होने पर उनके खिलाफ महाभियोग लाने की मांग उठाना लोग कैसे भूल रहे हैं?
आशीष नंदी ने दावा किाया था कि बंगाल में सत्ता में चूंकि ओबीसी, अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सौ सालों में सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिली, इसीलिए उन्होंने बंगाल को भ्रष्टाचार मुक्त बताया और इसी उदाहरण के साथ देश भर में पिछड़ों और अनुसूचितों के बहुजन समाज को सबसे ज्यादा भ्रष्ट बताया। एकतरफा इस वाक स्वाधीनता के पक्ष में पूरा मीडिया और सिविल सोसाइटी की गोलबंदी हो गयी। लेकिन बंगाल में बहुजनों को सत्ता से बाहर रखने की परंपरा पर किसी ने बहस में दिलचस्पी नहीं दिखायी। बंगाल में तो नंदी को तेली शंखकार बताकर सत्तावर्ग से ही खारिज कर दिया गया। सच बोलने के अपराध में। अब जनता से सूचनाएं कैसे छुपा कर ब्राह्मणवादी वर्चस्व बनाये रखा जाता है, हेलीकाप्टर घोटाले के सिलसिले में प्रणव मुखर्जी का नामोल्लेख तक बंगाल के मीडिया में न होने देना इसका ज्वलंत प्रमाण है। इसी वर्चस्ववाद की वजह से ही इतने बड़े घोटाले में पहली बार किसी राष्ट्रपति का नाम होने के बावजूद उनकी इम्युनिटी का बहाना बनाया जा रहा है। भारतीय संविधान में महाभियोग का प्रावधान है। यह देश अब हर मामले में अमेरिका का अनुकरण करता है तो अमेरिकी राष्ट्रपतियों के खिलाफ अक्सर चलनेवाले महाभियोग से सीख लेते हुए गणतंत्र के प्रति राजनीति और सत्ता की जवाबदारी क्यों नहीं साबित की जाती।
संघ परिवार के मनुस्मृति शासन की दृष्टि से राष्ट्रपति न सिर्फ देश का प्रथम नागरिक है, बल्कि वह धर्मरक्षक और प्रधान धर्माधिकारी हैं। रक्षा घोटाले के सिलसिले में फर्स्ट फेमिली को घेरने की कवायद में लगे संघ परिवार ने एक बार भी राष्ट्रपति का नाम नहीं लिया। कानून के मुताबिक कोई सरकारी एजेंसी राष्ट्रपति के खिलाफ जांच नहीं कर सकती, उन्हें इम्युनिटी मिली हुई है। राष्ट्र की प्रतिष्ठा का सवाल है तो बोफोर्स प्रकरण को याद करें जिसमें लगातार एक प्रधानमंत्री पर आरोप लगते रहे हैं। अगर संसदीय गणतंत्र के तहत सरकार के प्रधान प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच की मांग हो सकती है तो राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ कानूनी सीमाओं को देखते हुए महाभियोग क्यों नहीं चलाया जा सकता? भारत में राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग ससद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। महाभियोग लाने के लिए संबंधित सदन के मात्र एक चौथाई सदस्यों का समर्थन चाहिए और इसके लिए चौदह दिनों का नोटिस देना पड़ता है। अल्पमत सरकार की स्थिति में विपक्ष के लिए यह कोई मुश्किल बात नहीं है। पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन, जबकि मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रपति का नाम तक नहीं ले रहा है, तब भी जबकि घोटाले की सरकारी फैक्ट शीट में राष्ट्रपति का नाम है!
प्रणव मुख्रर्जी ही देश के समाजवादी मॉडल के मुक्त बाजार व्यवस्था में संक्रमण के वास्तविक सेतु हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले आर्थिक सुधार की नीतियों को लागू करने और अल्पमत सरकार के लिए संसद में जरूरी कानून पास कराने में उनकी महती भूमिका रही है। इसके बावजूद आर्थिक सुधारों का विरोध करने वाली तमाम पार्टियों ने कारपोरेट घराने की लाबिइंग के बीच उनका समर्थन किया। बंगाल में एक दूसरे को खत्म करने में लगे और जनता को इस गृहयुद्ध में भुनने वाली पक्ष-विपक्ष की राजनीति बंगाल की ब्राह्मण संतान को राष्ट्रपति बनाने के लिए एकाकार हो गयी।
संयुक्त राष्ट्र अमरीका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाये जा सकेंगे, जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)। अमरीका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में है। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिए महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाये हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिए कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किये गये हैं अर्थात किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है। न्यूयार्क राज्य में 1613 ई में वहां के गवर्नर विलियम सुल्जर पर महाभियोग चलाकर उन्हें पदच्युत किया गया था और आश्चर्य की बात यह है कि अभियोग के कारण श्री सुल्जर के गवर्नर पद ग्रहण करने के पूर्व काल से संबंधित थे।
इंग्लैंड एवं अमरीका में महाभियोग क्रिया में एक अन्य मान्य अंतर है। इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात क्या दंड दिया जाएगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदच्युत किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है।
(पलाश विश्वास। पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, आंदोलनकर्मी। आजीवन संघर्षरत रहना और सबसे दुर्बल की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। अमेरिका से सावधान उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठौर। उनसे palashbiswaskl@gmail.com पर संपर्क करें।)
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