मुंबई।। आईपीओ की आड़ में धोखाधड़ी के खिलाफ सीएनबीसी आवाज़ की मुहिम रंग लाती दिखाई दे रही है। बाजार नियामक सेबी ने आईपीओ में धोखाधड़ी के मामले में 19 कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू कर दी है।सेबी ने इन कंपनियों के खिलाफ पैसों के गलत इस्तेमाल के मामले में जांच कर रही है। यह सारे आईपीओ पिछले साल ही आए थे।
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वर्ष 2011 में आए तकरीबन 19 ऐसे आरंभिक पब्लिक इश्यू (आईपीओ) में फर्जीवाड़े की जांच का दायरा बढ़ा दिया है। फर्जीवाड़े में छोटे यानी रिटेल निवेशक अपनी रकम गंवा चुके हैं। यही नहीं, इसमें तीन मर्चेंट बैंकरों के भी नाम सामने आ रहे हैं।
सेबी ने पिछले दिनों ऐसी सात कंपनियों को नोटिस जारी किया था। अक्सर छोटे आरंभिक पब्लिक इश्यू (आईपीओ) में फर्जीवाड़े की घटनाओं ने सेबी के कान खड़े कर दिये हैं, जसमें यह देखा गया कि एक ही निवेशकों नें हजारों आईपीओ आवेदनो पर दस्तखत कर दिये।
ऐसे तमाम आवेदन जांच में फर्जी पाये गये हैं। इन आईपीओ के सूचीबद्ध होने के बाद मिलीभगत से ही शेयरों को बेच कर पैसा निकाल लिया गया जिससे रिटेल निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। इन फर्जी आवेदनों के जरिए आपरेटरों और ब्रोकरों ने नयी लिस्टिंग को प्रभावित करने का करतब कर दिखाया।
सार्वजनिक निर्गम में आवेदकों को शेयर आबंटित करने के बाद उन शेयरों को शेयर बाजार की ट्रेडिंग सूची पर सूचीबद्ध करवाया जाता है। इसे शेयरों की लिस्टिंग कहा जाता है।इससे पहले आईपीओ घोटाले के समय बोगस डिमैट और बैंक एकाउंट खुलवाने के प्रकरण प्रकाश में आये हैं, जिनमें कि वास्तव में कोई खाताधारक होता ही नहीं था और अनेक बेनामी और बोगस खाते खुल गये थे।
बाजार नियामक सेबी 2003-06 के आईपीओ घोटाले में एनएसडीएल की भूमिका की नए सिरे से जांच करेगा। सेबी ने साल भर पहले इस मामले में एनएसडीएल तथा अन्य के खिलाफ अपनी ही एक समिति द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया था।यह संभवत: पहला अवसर होगा जबकि सेबी उस मुद्दे पर फिर से विचार कर रहा है जिसे वह खुद खारिज कर चुका था। इसके अलावा वह ऐसी रिपोर्ट को दुबारा खोल रहा है जिसमें उसकी भूमिका की आलोचना हो चुकी है।
आईपीओ की आड़ में धोखाधड़ी को अंजाम देने वाली कंपनियों की लिस्टिंग तो बहुत ऊंचे भाव पर होती है, लिस्टिंग के दिन ऐसी कंपनियों के शेयरों में उछाल आता है, लेकिन बाद में शेयर इश्यू प्राइस से भी नीचे चले जाते हैं। वहीं सेबी ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। सेबी का मूलभूत उद्देश्य है `पूंजी बाजार का स्वस्थ विकास एवं निवेशकों का रक्षण।`
सेबी का गठन संसद में पारित प्रस्तावों के अनुरूप किया गया है, जो एक स्वायत्त नियामक संस्था है। इसके नियम शेयर बाजारों, शेयर दलालों, मर्चेंट बैंकरों, म्युच्युअल फंडों, पोर्टफोलियो मैनेजरों सहित पूंजी बाजार से संबंधित अनेक मध्यस्थतों पर लागू होते हैं।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शेयर बाजार में भेदिया कारोबार के मामलों पर चिंता जताते हुए कहा है कि वह इस मुद्दे को सुलझाने की दिशा में काम कर रहा है। सेबी की कार्यकारी निदेशक उषा नारायणन ने कल ऑक्सफोर्ड- इंडिया बिजनेस फोरम को संबोधित करते हुए कहा, ''कंपनी संचालन की प्रमुख चिंताओं में संबद्ध पक्षों के बीच लेनदेन का नियमन बड़ी चिंता है।
स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति और अल्पांश शेयरधारकों के हितों का संरक्षण भी प्राथमिका वाले विषय हैं।'' नारायणन ने कहा कि सेबी इन मुद्दों को सुलझाने के लिए बराबर काम कर रहा है।
सेबी ने इससे पहले दिसंबर २०११ में 7 कंपनियों के प्रवर्तकों और 89 अन्य कंपनियों के शेयर बाजार में कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी।
जांच में सेबी को इन कंपनियों के आईपीओ आवेदन के तरीके, शेयरों के भाव में धोखाधड़ी, आईपीओ की रकम का गलत इस्तेमाल, चुपके से रकम निकालने और पर्याप्त जानकारी नहीं देने जैसी समानता दिखी।आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2010 के बाद से सूचीबद्घ हुई छोटी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण करीब 2,000 करोड़ रुपये घटा है। इनके संचालकों और प्रवर्तकों ने सूचीबद्घ होने के कुछ दिन बाद ही अपना हिस्सा बेच दिया था।
पहले इस फर्जीवाड़े में बीस कंपनियों के नाम थे अब सेबी ने उनमें से १९ कंपनियों को अगली कार्रवाई के लिए छांट लिया है। बाजार के कई अग्रणी ब्रोकरों के भी नाम आईपीओ घोटाले में रहने की संभावना है। ये कंपनियां उन सात कंपनियों के अलावा है , जिनके सेबी ने पहले ही दिसंबर २०११ में नोटिस जारी कर दिया है। तो कुल २६ कंपनियां अब जांच के दायरे में हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग और कंपनी मामलों का मंत्रालय भी इस मामले की जांच शुरू करेंगे। सेबी के अधिकारियों ने कहा कि यह काफी बड़े पैमाने पर हो रही धोखाधड़ी की छोटी सी तस्वीर है। इसमें कई पक्षों के बीच भारी मात्रा में नकदी की अदला-बदली और चुपके से रकम निकाला जाना भी शामिल है। सूत्रों ने बताया, 'इस मामले की जांच में अन्य एजेंसियों को भी शामिल किया जाएगा।
अभी तक जांच में ऐसे कई उल्लंघन सामने आए हैं जिनके जरिये बड़े पैमाने पर धन शोधन हो रहा था। इनकी जांच होना बेहद जरूरी है।'
सेबी के चेयरमैन यू के सिन्हा ने बताया कि बाजार नियामक ने काले धन की आशंका और आय के अज्ञात स्रोत से जुड़े मामलों की जांच अन्य एजेंसियों को सौंपी है। उन्होंने कहा कि काले धन से जुड़े मामलों को ईडी और आय के अज्ञात स्रोत के मामले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के पास भेजा गया है।
सिन्हा ने संकेत दिए कि नियामक आईपीओ छेड़छाड़ के मामलों पर सख्त कार्रवाई करेगा। उन्होंने कहा कि ऐसे अन्य मामलों में जांच चल रही है। उन्होंने कहा, 'जांच प्रक्रिया जारी है और किसी भी तरह के उल्लंघन की स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जाएगी।'
सेबी ने अब बिडिंग ब्यौरा मंगाया है और इस हर आईपीओ के लिए अनिवार्य बना दिया है। मर्चेंट बैंकरों से भी आईपीओ लेन देन का ब्यौरा मंगाया गया है। आश्चर्यजनक बात यह है कि सेबी ने जिस निर्मल कोटेचा को पिरामिड साइमिरा थिएटर के ओपन ऑफर के फर्जी लेटर मामले में वर्ष 2009 में बैन किया था, वह अब भी बाजार में खुलेआम कारोबार कर रहा है।
इसकी पुष्टि सेबी की उस रिपोर्ट से होती है, जो उसने आईपीओ लाने वाली सात कंपनियों के संबंध में पेश की है। इस रिपोर्ट में सेबी ने यह कहा है कि निर्मल कोटेचा अब भी सक्रिय है क्योंकि एक अन्य कोटेचा का जो पता दिया गया है वह किसी और का नहीं, बल्कि निर्मल कोटेचा का ही पता है।यही नहीं, विनोद वैद्य का भी इस रिपोर्ट में नाम है। इस विनोद वैद्य का नाम इससे पहले सी आर भंसाली फ्राड में आया था और इस समय यह कोलकाता से कारोबार कर रहा है। सेबी की इस जांच से मुंबई के कई बड़े ब्रोकरों की नींद उड़ गई है।
सेबी को मालूम पड़ा है कि कम से कम तीन-चार ऐसे अग्रणी ब्रोकर हैं जिन्होंने इन आईपीओ को मैनेज किया है और उनके जरिए पैसे लगाए गए हैं। इसमें से एक वह ब्रोकर है, जिसका नाम वर्ष 2010 की आईबी रिपोर्ट में भी आया था। हालांकि, इस जांच का नतीजा आने में समय लगेगा।
इसी बीच सेबी की पाबंदी हट जाने के बाद वेलस्पन कॉर्प के प्रोमोटर बाजार से पूंजी जुटा सकेंगे और जिससे कंपनी के कर्ज का बोझ कम हो जाएगा।
पिछले साल दिसंबर में सेबी ने वेलस्पन कॉर्प के प्रोमोटरों पर इनसाइडर ट्रेडिंग का आरोप लगाते हुए उनके बाजार में कारोबार करने पर रोक लगा दी थी। पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वेलस्पन कॉर्पोरेशन और हबटाउन लिमिटेड सहित कई प्रवतर्क इकाइयों पर 2010 में लगाया गया प्रतिबंध समाप्त कर दिया है। 2 दिसंबर 2010 को सेबी ने चार कंपनियों की प्रवर्तक इकाइयों और संजय डांगी एवं अशोका ग्रुप की इकाइयों पर शेयर की कीमतों में छेड़छाड़ करने के आरोप के बाद प्रतिबंध लगा दिया था।
वेलस्पन ग्रुप के डायरेक्टर अखिल जिंदल का कहना है कि पूंजी बाजार में कारोबार नहीं करने की रोक सिर्फ प्रोमोटरों पर लगी थी। सेबी ने कंपनी पर पूंजी बाजार में कारोबार करने की रोक नहीं लगाई थी।
अखिल जिंदल के मुताबिक फिलहाल वेलस्पन कॉर्प का डेट-इक्विटी रेश्यो 0.5 गुना पर है जोकि काबू में आ सकता है। कंपनी पर 2,500 करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं पिछली तिमाही में मार्क-टू-मार्केट घाटे के कारण मार्जिन पर दबाव था जोकि इस तिमाही में भी जारी रहने की उम्मीद है।
बाजार नियामक ने 16 मार्च 2012 को जारी एक आदेश में 60 में 30 कंपनियों पर लगा प्रतिबंध हटा दिया। इन पर मुरली इंडस्ट्रीज, हबटाउन लिमिटेड, वेलस्पन कॉर्प, ब्रशमैन और आरपीजी ट्रांसमिशन के शेयरों की कीमतों में धांधली में शामिल होने का आरोप था।
जिन 30 इकाइयों को राहत मिली है उनमें वेल्सपन समूह की सभी 6 और हबटाउन लिमिटेड की 13 इकाइयां शामिल हैं। उधर सेबी ने 18 इकाइयों के खिलाफ कदम उठाने की और 20 इकाइयों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। वेलस्पन ग्रुप के निदेशक अखिल जिंदल ने कहा, 'सेबी ने पूर्व में जो प्रतिबंध लगाए थे उसका कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा है। यह कंपनी, हमारे बैंकर और ग्राहकों के लिए एक मनोवैज्ञानिक बाधा थी।' उन्होंने कहा कि सेबी के प्रतिबंध समाप्त करने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि कंपनी कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सभी मानदंडों का पालन करती है।
इसी तरह, हबटाउन के प्रबंध निदेशक व्योमेश शाह ने कहा, 'हमें इस बात की खुशी है कि हम अपने रुख पर कायम रहे और यह सही साबित हुआ।' वेलस्पन कॉर्प के शेयर 1.9 फीसदी की बढ़त के साथ एनएसई में 139.50 रुपये पर बंद हुए। हबटाउन लिमिटेड के शेयर में 0.69 फीसदी की कमी आई।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार भारतीय प्रतिभूति एवं विनियन बोर्ड (सेबी) की शिकायत पर सीबीआई ने आईपीओ घोटाले से संबंधित दो आपराधिक मामले फरवरी 2006 में दर्ज किए थे। अब इसी सिलसिले में 22 व्यक्तियों एवं फर्मों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है।
इस घोटाले में फर्जी लोगों के नाम से हजारों अर्जियां देकर खुदरा व्यक्तिगत निवशेक (आरआईआई) श्रेणी में शेयर हासिल किए गए थे। हालांकि इनका पता साझा था। नकली दस्तावेज तैयार करके बैंक खाते और डीमैट खाते भी खोले गए थे।
ये बैंक खाते खोलने के लिए शादी डाट काम जैसी बेबसाइटों से कई फोटोग्राफ भी डाउनलोड किए गए। कई मामलों में शेयर लेने के लिए दी जाने वाली अग्रिम राशि भी जमा नहीं कराई गई थी। और तो और इस इश्यू के पंजीयक ने भी इस राशि के बिना ही अर्जियां स्वीकार कर ली।
सीबीआई ने भारत ओवरसीज बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक के अधिकारियों के खिलाफ भी आरोपपत्र लगाए हैं जिन्होंने हजारों फर्जी खाते खोलने के लिए नियमों को ताक पर रखा और ऐसे फर्जी आवेदकों को कर्ज भी मंजूर किए।
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