मुद्दा
सरकारी संरक्षण में खनन माफिया
राजेन्द्र बंधु
मध्यप्रदेश में पुलिस अधिकारी नरेन्द्र कुमार की हत्या के संदर्भ में राजनेताओं और खनन माफियाओं को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह राजनेताओं के माफिया के रूप में बदलने और अपराधियों से उनके गठजोड़ को उजागर करता है. राज्य में धन कमाने के व्यापक अवसर वाले कई व्यापार-व्यवसाय होते हैं, जिनमें खनन, शराब के ठेके, और परिवहन आदि प्रमुख है. जब इन व्यवसायों में सत्ता से जुड़े राजनेता या उनके परिजन शामिल हो जाते हैं तो इन व्यवसायों से अवैध रूप से कमाई की तरीके रोक पाना प्रशासन के लिए कठिन होता है. ऐसे में नरेन्द्र कुमार जैसे अधिकारियों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपनी जान गंवानी पड़ती है.
मध्यप्रदेश के मुरैना में अनुविभागीय पुलिस अधिकारी के पद पर पदस्थ आईपीएस अधिकारी नरेन्द्र कुमार को यहां पदस्थ हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था और निश्चित रूप से उनमें ईमानदारी से कर्तव्य निर्वहन का जज्बा था, जो किसी भी समाज के विकास और सुरक्षा के लिए अत्यन्तक जरूरी है. यह स्पष्ट, है कि उनकी हत्या के पीछे उन लोगों का हाथ है, जिनके हित उनके कर्तव्य निर्वहन से प्रभावित हो रहे थे.
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में अवैध खनन के कई मामले लगातार सामने आते रहे हैं और इससे न सिर्फ सरकार को करोड़ों का नुकसान हो रहा है, बल्कि पर्यावरण का संकट भी खड़ा हो गया है.
मध्यप्रदेश में टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर और शिवपुरी तक फैला बुन्देलखण्ड पठार खनन माफियाओं के कारण ही खत्म होने के कगार पर है. इस पठार से निकलने वाले ग्रेनाईट का सरकारी तौर पर तो प्रतिवर्ष मात्र 65 करोड़ रूपयों का व्यवसाय हो रहा है, किन्तु वास्तव में ढाई सौ करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का व्यवसाय अवैध रूप से किए जाने की बात सामने आती है. इसके बावजूद सरकार उसे नहीं रोक पा रही है.
पूरे प्रदेश में इस तरह चल रहे अवैध खनन से राज्य को रहे नुकसान के बारे में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से पता चलता है, जिसके अनुसार मध्यप्रदेश में अवैध खनन के कारण पिछले पांच सालों में राज्य को 1500 करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है. यही नहीं, मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत की गई विभिन्न रिपोर्टों से भी प्रदेश में अवैध खनन की बात उजागर होती है.
विधानसभा में प्रस्तुत सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 2005 से 2010 के बीच राज्य में 6906 अवैध खनन के मामले सामने आए, जिनसे राज्य को 1496 करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ. हालांकि खनन मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2009-10 में 9701 करोड़ रूपयों के खनिज एवं 440 करोड़ रूपए के उप खनिज का उत्पादन किया गया. किन्तु अवैध रूप से उत्पादित खनिज इससे भी कई गुना ज्यादा है, जिसका लाभ सीधे तौर पर खनन माफिया उठा रहे हैं.
मध्यप्रदेश के कटनी जिले में संगमरमर के खनन पर भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने के बावजूद यहां उत्खनन जारी है और करोड़ों रूपए का अवैध कारोबार संचालित किया जा रहा है.
इसी तरह प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में नर्मदा नदी के घाटों पर रेत के अवैध खनन का सिलसिला भी जारी है. प्रदेश के इसी क्षेत्र के अलीराजपुर जिले में सोप स्टोन, रेत, केलसाईट तथा डोलोमाईट स्टोन की 150 खदानों में से 116 खदानों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा खनन पर रोक लगाई गई है. इसके बावजूद यहां चोरी-छुपे खनन की घटनाएं होती रही हैं.
इस प्रकार मध्यप्रदेश में अवैध खनन की बात न सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता या मीडिया से जुड़े लोग ही कहते आए हैं, बल्कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और सीएजी की रिपोर्ट में भी इसे स्वीकार किया गया है. पुलिस अधिकारी नरेन्द्र कुमार की हत्या के बाद अब यह बात और भी पुख्ता हो गई है.
विभिन्न रिपोर्टों के जरिये सरकार के सामने अवैध खनन की बात रखे जाने के बावजूद अब तक सरकार द्वारा इस दिशा में कोई ठोस कदम न उठाने से कई सवाल खडे होते हैं. इससे यह संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि अवैध खनन के मामले में कहीं राजनीति और सरकार से जुड़े लोग तो शामिल नहीं हैं?
यह देखा गया है कि खनन, शराब, और परिवहन जैसे व्यवसायों के ठेके सरकार की ओर से जिन लोगो को मिलते हैं, वे अपने वैध धंधों के पीछे उसका अवैध रूप से भी फायदा उठाते हैं और यह प्रवृति बढती जा रही है. मध्यप्रदेश के अवैध खनन के मामलों की पड़ताल में इस बात को भी जांच का प्रमुख बिन्दु बनाया जाना चाहिए कि पिछले करीब एक दशक में जिन लोगों, फर्मो या कंपनियों को खनन के पटटे या ठेके दिए गए, उनमें ऐसे कितने लोग, फर्म या कंपनियां हैं, जो किसी न किसी रूप में राजनेताओं के रिश्तेदार या सत्ताधारी दल के शीर्ष लोगों के संबंधी हैं? यही जांच इस बात का राज खोलेगी कि आखिर एक पुलिस अधिकारी की हत्या और राज्य में चल रहे खनन माफिया के पीछे किन लोगों का संरक्षण हासिल है.
*लेखक कम्युनिटी मीडिया अभियान, मध्यप्रदेश के संयोजक हैं
12.03.2012, 09.17 (GMT+05:30) पर प्रकाशित
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