धार्मिक आतंकवाद को बढ़ावा देते न्यूज़ चैनल
महाकुम्भ मेले के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोगों की मौत पर स्वामी अग्निवेश ने मारे गए तथा घायल लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है. साथ ही उन्होंने बिना समुचित इन्तज़ाम के इलाहाबाद में 10 फरवरी मौनी अमावस्या के दिन तीन करोड़ लोगों की उपस्थिति पर सरकार और प्रशासन को आड़े हाथों लिया.
अग्निवेश ने महाकुम्भ के दौरान मीडिया की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया और कहा कि अन्धविश्वासों व अवैज्ञानिक मान्यताओं के खिलाफ जनता को जागृत करने की बजाय, मात्र स्नान से मोक्ष प्राप्ति पर आधारित कार्यक्रम चलाए. बार-बार धार्मिक स्थानों पर भगदड़ में लोग मर रहे हैं.
केरल के सबरीमाला मंदिर से लेकर अमरनाथ यात्रा तथा मक्का मदीना में हज करने वाली भगदड़ में हज़ारों श्रद्धालुओं का बेमौत मरना, क्या ''धार्मिक आतंकवाद'' जैसा नहीं है ? पर हम फिर भी कोई सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है. 147 वर्ष में पहली बार मौनी अमावस्या का अद्भुत संयोग बताना तथा मात्र डुबकी लगाकर धर्म लाभ बटोरने का प्रचार करने वाले क्या धर्मोन्माद नहीं पैदा कर रहे ? और तीन करोड़ भोले-भाले लोगों को बरगलाकर अराजकता पैदा नहीं कर रहे हैं ?
इस मौके पर हिन्दू समाज से जन्मना जातिवाद तथा छुआछूत की वेद विरूद्ध परम्पराओं में सुधार लाना, शराब, गांजा, भांग जैसे नशा का निषेध करना, पूरे समाज में न भी सही तो कम से कम साधुसंतों के उन तबकों में इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना जिनकी पहचान ही गांजा, सुल्फा के चिलम से है, कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराधों को रोकने का जबरदस्त संकल्प जगाना, महिलाओं को धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक बराबरी दिलाना आदि युगधर्म के युगान्तरकारी उपाय करना महाकुंभ की उपलब्धि हो सकती थी. पर 'धर्म संसद' वालों को हिन्दुत्व की साम्प्रदायिक राजनीति से फुरसत मिले तब न ?
स्वामी अग्निवेश ने कहा डेढ़ सौ साल पहले आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द ने हरिद्वार कुम्भ पर पाखण्ड खंडिनी पताका गाड़ी थी और अवैदिक धर्म की दुकान चलाने वालों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा था. उनका कहना था कि सदाचारपूर्ण सरल जीवन तथा परोपकार को सच्चा धार्मिक कृत्य बताने के बदले एक दिन गंगा में स्नान से मोक्ष प्राप्त की कपोल कल्पित कामना और कृत्य एक कोरा पाखण्ड और अन्धविश्वास है.
गौतम बुद्ध, आदि शंकराचार्य, संत कबीर, गुरूनानक देव आदि महापुरुषों ने अंधश्रद्धा से बचने का हमें आगाह किया था. ऐसी अन्धवि'वास से भरी दकियानूसी धार्मिक रूढि़यों के खिलाफ लड़ने के लिए समाज के सभी प्रबुद्ध नागरिकों विशेषकर शिक्षित युवा पीढ़ी को आगे आना होगा. अग्निवेश ने अपने प्रेस वक्तव्य में कहा कि भारतीय संविधान की धारा 51 के अन्तर्गत वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना भारत के हर नागरिक का एक मौलिक कर्तव्य है. पर सरकार, व्यापार, मीडिया और धर्मध्वजी इस मौलिक कर्तव्य की धज्जियां उड़ा रहे हंै और भोलेभाले लोग दर्दनाक मृत्यु के शिकार हो रहे हैं . आखिर कौन है जिम्मेदार ?
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