क्या 'प्रधानमंत्री' मायावती व्यवस्था बदल सकेंगी?
♦ कंवल भारती
लालकिले पर एक दलित औरत एक बार दिख जाये, तो हर्ज क्या-क्या हैं? सिर्फ दलित हैं इसीलिए मायावती प्रधानमंत्री बन जाएं, मैं इस पक्ष में नहीं हूं। तमाम तर्क दिए जा सकते हैं कि कैसे-कैसे अयोग्य और ब्राह्मणवादी लोग प्रधानमंत्री बने हैं, तो अगर मायावती भी बन जाती हैं, तो क्या हर्ज है? मुझे ये तर्क भी ठीक नहीं लगते।
मैं यह सोच रहा हूं कि यदि मायावती प्रधानमंत्री बन गयीं, तो देश की शासन-व्यवस्था में क्या फर्क पड़ेगा? और मुझे लगता है कि कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा। बस इतिहास में 'भारत की पहली दलित प्रधानमंत्री' के रूप में मायावती जरूर दर्ज हो जाएंगी। जहां तक मेरा आकलन है, मायावती भी यही चाहती हैं। वे उत्तर प्रदेश के इतिहास में 'पहली दलित मुख्यमंत्री' के रूप में जिस तरह दर्ज हैं, उसी तरह वे भारत के इतिहास में दर्ज होना चाहती हैं।
लेकिन अगर वे प्रधानमंत्री बन जाती हैं, (आमीन) तो वे अब तक के प्रधानमंत्रियों से रत्ती भर भी भिन्न नहीं होंगी। दलितों की लड़ाई व्यवस्था-परिवर्तन की है। क्या मायावती व्यवस्था बदल सकेंगी? उत्तर प्रदेश में मायावती ने 36 सरकारी चीनी मिलें निजी क्षेत्र को, वो भी एक ही आदमी को बेच दीं, जबकि वे मिलें लाभ में थीं। यही नहीं, उन्होंने शिक्षा पूरी तरह बाजार के हवाले कर दी। कुकरमुत्तों की तरह निजी विश्वविद्यालय खड़े कर दिए, जिनमें सिर्फ धनी लोग ही शिक्षा हासिल कर सकते हैं, गरीब नहीं। ये मायावती अगर प्रधानमंत्री बन गयीं, तो देश का सत्यानाश ही समझिये।
(कंवल भारती जाने-माने साहित्यकार, वरिष्ठ पत्रकार एवं दलित चिंतक हैं। उन्हें हाल में ही दिल्ली प्रेस और भारतीय भाषा समन्वय समूह की ओर से वर्ष 2012 के भारतीय भाषा पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह टिप्पणी उन्होंने फेसबुक पर की है।)
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