आधुनिक हिंदी की पहली स्त्री-आत्मकथा का लोकार्पण
हाल में नयी दिल्ली में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित, हिंदी आलोचना के शिखर प्रो नामवर सिंह ने अपने विश्वविद्यालय जेएनयू की पीएचडी की छात्रा नैया द्वारा संपादित पुस्तक अबलाओं का इंसाफ का लोकार्पण किया। यहां यह बताना जरूरी है की इस पुस्तक का प्रकाशन 1927 में हुआ, जो आधुनिक हिंदी की प्रथम स्त्री-आत्मकथा है। लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुये प्रो नामवर सिंह ने कहा कि इस आत्मकथा का प्रकाशन मेरे लिए आंख खोलने वाला है। मुझे इस बात की खुशी है कि यह काम मेरे विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने किया है। उन्होंने हैरानी प्रकट करते हुए कहा कि स्त्रियों द्वारा किया गया लेखन कैसे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी से ओझल रह गया।
इस अवसर पर वरिष्ठ लेखिका पद्मा सचदेव, चित्रा मुद्गल, पंकज सिंह, सूर्यनाथ सिंह, सत्यपाल सहगल तथा कई पत्रकार मौजूद थे। संचालन सुशील सिद्धार्थ ने किया एवं धन्यवाद अशोक महेश्वरी ने किया।
नैया जेएनयू से आरंभिक स्त्री कथा-साहित्य और हिंदी नवजागरण (1877-1930) विषय पर पीएचडी कर रही हैं। हिंदी की प्रथम दलित स्त्री – रचना छोट के चोर (1915) लेखिका श्रीमती मोहिनी चमारिन तथा आधुनिक हिंदी की प्रथम मौलिक उपन्यास लेखिका श्रीमती तेजरानी दीक्षित के प्रथम उपन्यास (1928) को प्रकाश में लाने का श्रेय नैया को जाता है। स्त्री कथा-साहित्य के गंभीर अध्यता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली नैया की अनेक शोधपरक रचनाएं आलोचना, इंडिया टुडे, पुस्तक-वार्ता, आजकल, जनसत्ता, तहलका, वसुधा, हरिगंधा आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
नैया द्वारा संपादित किताब का लोकार्पण
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