हेलिकॉप्टर 'डील' में प्रणव दा का नाम
इटली की फिनमैकेनिका कंपनी के साथ किये गये हेलिकॉप्टर समझौते में अब पूर्व रक्षा मंत्री और भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का नाम भी आ रहा है। भारत सरकार ने हेलिकॉप्टर सौदे की जो फैक्टशीट सार्वजनिक की है उसमें उस समूचे घटनाक्रम का विवरण दिया है। इस फैक्टशीट में महत्वपूर्ण बात यह उभरकर सामने आई है कि एनडीए सरकार द्वारा निविदा में प्रतिस्पर्धा लाने के लिए जहां जरूरतों में तकनीकि फेरबदल किया गया था वहीं 2004 में यूपीए की सरकार बनने के बाद 2005 में प्रणव मुखर्जी ने बतौर रक्षामंत्री पुरानी प्रक्रिया को निरस्त करते हुए नये टेण्डर मंगवाए थे।
हालांकि बतौर रक्षामंत्री प्रणव मुखर्जी ने जो नया टेण्डर मंगवाया था उसमें पूर्व की एनडीए सरकार की प्रक्रिया को ही आगे बढ़ाया था जिसके तहत हेलिकॉप्टर खरीद प्रक्रिया में ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए तकनीकि नियमों में ढील दे दी गई थी।
असल में भारत के वीवीआईपी के लिए आधुनिक परिवहन की व्यवस्था अटल सरकार के एजेण्डे में था। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने प्रधानमंत्री के लिए जर्मनी से बुलेटप्रूफ बीएमडब्लू का काफिला मंगवाया था और बोईंग बिजनेस जेट का आर्डर भी दिया था। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री के परिवहन के लिए नये हेलिकॉप्टरों की खोज भी की गई थी जिसके लिए तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रिजेश मिश्र निगरानी कर रहे थे। यह ब्रिजेश मिश्र ही थे जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को सलाह दिया कि जो निविदा जारी की गई है उसमें सिर्फ एक हेलिकॉप्टर निर्माता योग्य ठहरता है इसलिए और निर्माताओं को शामिल करने तथा खरीद में पारदर्शिता लाने के लिए कुछ तकनीकि फेरबदल का सुझाव भी दिया था।
अभी एनडीए सरकार का तकनीकि फेरबदल वाला सुझाव काम करता कि एनडीए की सरकार चली गई। तकनीकि फेरबदल वाला काम यूपीए सरकार ने अंजाम दिया और हेलिकॉप्टर की सीलिंग 6000 मीटर से घटाकर 4500 मीटर कर दी गई। इसके बाद ही इटली की आगस्टा वेस्टलैण्ड कंपनी इस बोली प्रक्रिया में शामिल हुई और उसने अपने एडब्लू 101 की जो कीमत सरकार को बताई उसी को लकी बोली एल-1 (लोएस्ट बिडर) का खिताब मिल गया और 12 हेलिकॉप्टरों का सौदा आगस्टा वेस्टलैण्ड को दे दिया गया।
क्योंकि जब निविदाएं खारिज की गई और और नयी निविदाएं मंगाई गई उस वक्त रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी थे, इसलिए अब इस विवाद से राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का नाम भी जुड़ गया है।
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