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Thursday, June 21, 2012

भारतीय राजनीति के एजंडे में अर्थव्यवस्था नहीं, रुपए ने फिर गिरकर साबित किया


भारतीय राजनीति के एजंडे में अर्थव्यवस्था नहीं, रुपए ने फिर गिरकर साबित किया
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

सत्तावर्ग के सर्वाधिनायक प्रणव मुखर्जी का राष्ट्रपति बनना तीनों राजनीतिक गठबंधनों यूपीए, एनडीए और वाम में फूट के साथ तय तो​ ​ हो गया, पर अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण नहीं दीख रहे।डालर का वर्चस्व जारी रहते हुए जिसकी उम्मीद कम ही है क्योंकि डालर से​ ​ नत्थी हो गया है रुपया और भारतीय अर्थ व्यवस्था का भूत भविष्य वर्तमान। प्रणव की अगुवाई में भारत के आर्थिक प्रबंधकों ने यह हाल ​​कर दिया, जिसकी सूरत बदलने के आसार नहीं है। रुपये में लगातार 4 दिन से गिरावट जारी है और आज इसने गिरावट का नया स्तर छू लिया। इंपोर्टरों की ओर से डॉलर की बढ़ती मांग और शेयर बाजार से निवेशकों के पैसे निकालने की वजह से रुपये की कमजोरी बढ़ी है।। पिछले 3 दिन में रुपया 75 पैसे कमजोर हो चुका है। डॉलर के मुकाबले दूसरी मुद्राएं भी कमजोर हुई हैं और इसकी वजह से भी रुपये को कहीं से सहारा नहीं मिल पा रहा है।यूरोप में स्पेन को लेकर शुरू हुई चिंताओं ने एक बार फिर डॉलर को मजबूती दी है।भारतीय करेसी रुपया गुरुवार को डॉलर के मुकाबले 56.55 के रेकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपये में यह गिरावट दोपहर 1.20 बजे दर्ज की गई, जो पिछले दिन के बंद स्तर से 0.7 फीसदी नीचे है।इससे पहले रुपया इसी माह के शुरू में डॉलर के मुकाबले 56.52 के रेकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा था। वैश्विक बाजारों के असर और आयातकों की तरफ से डॉलर की बढ़ी मांग ने रुपये में मंदे का दूसरा दौर शुरू कर दिया है। गुरुवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में कारोबार के दौरान एक डॉलर की कीमत 56.57 रुपये की रिकॉर्ड ऊंचाई तक चली गई। बाद में रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के बाद यह 56.31 रुपये पर आकर बंद हुआ।जानकारों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की घरेलू वजहें रुपये की कीमत को नीचे ले जाने में ज्यादा बड़ी भूमिका तय कर रही हैं। माना जा रहा है कि ऐसा भारतीय मुद्रा की अंतर्निहित कमजोरी के चलते हो रहा है। वैसे तो शेयर बाजार में पिछले दो हफ्ते से विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] का प्रवाह भी लगातार बना हुआ है। दो सप्ताह में एफआइआइ ने 389 करोड़ रुपये बाजार में डाले हैं। इसके बावजूद रुपये की कीमत गिर रही है। रुपये की कीमत में कमजोरी का रुख अभी और बने रहने का अनुमान है।

सबसे बड़ी बुरी खबर यह है कि भारतीय कंपनियों के 5 अरब डॉलर के एफसीसीबी के भुगतान में डिफाल्ट का खतरा मंडराने लगा है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कहा है कि 48 भारतीय कंपनियों में से केवल 5 कंपनियां ही एफसीसीबी का का भुगतान करने में सक्षम दिखाई दे रही हैं, बाकी कंपनियों के डिफॉल्ट होने का खतरा है। साल 2012 में 500 करोड़ डॉलर के एफसीसीबी मैच्योर हो रहे हैं जो कन्वर्ट नहीं हो पाएंगे। एसएंडपी के मुताबिक करीब 24 कंपनियों को तो डिफाल्ट से बचने के लिए एफसीसीबी रीस्ट्रक्चर कराना पडे़गा। एसएंडपी के अनुसार शेयर बाजार में तेज गिरावट और रुपये में अब तक करीब 30 फीसदी की कमजोरी ने इन कंपनियों को तगड़ा झटका दिया है। जिसके चलते कंपनियां एफसीसीबी भुगतान के मामले में डिफॉल्ट हो सकती हैं।शेयर बाजार और रुपये में गिरावट ने भारत में अमीरों के पोर्टफोलियो को भारी नुकसान पहुंचाया है। कैपजैमिनी और आरबीसी वैल्थ मैनेजमेंट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 में भारत में अमीरों की संख्या सबसे ज्यादा 18 फीसदी घटी है।साल 2011 में भारत में अमीरों की संख्या घटकर कुल 1,25,050 रह गई है। ये गिरावट उस वक्त आई है जब दुनिया में रईसों की संख्या 0.75 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 1.10 करोड़ के पार पहुंच गई है। यही नहीं दक्षिण कोरिया ने भारत को पछाड़ कर सूची में 12वें स्थान पर कब्जा भी कर लिया है।दरअसल ये वो लोग हैं जिनके पास डॉलर में 5.5 करोड़ रुपया निवेश के लिए हमेशा मौजूद होता है। ऐसे में शेयर बाजार में गिरावट और रुपये में कमजोरी ने रईसों के पोर्टफोलियो की हवा निकाल दी है। इस सूची में सबसे पहले पायदान पर अमेरिका का कब्जा बरकरार है।हालांकि अमेरिका में भी अमीरों की संख्या 1.25 फीसदी घटकर 3,068 पर पहुंच गई है। 1,822 अमीरों के साथ जापान दूसरे नंबर पर है। जापान में पिछले साल आए जबरदस्त भूकंप के बावजूद यहां अमीरों की संख्या में 4.75 फीसदी का इजाफा हुआ है।

बहरहाल वित्त मंत्रालय का निजाम बदलने की उम्मीद से शेयर मार्केट के सेंटिमेंट में सुधार हुआ है। और पिछले 12 महीनों में शायद पहली बार बाजार में ऐसा बदलाव नजर आया है। ब्रोकरों और फंड मैनेजरों पर किए ईटी के एक पोल में यह बात निकलकर सामने आई है। बाजार यह उम्मीद कर रहा है कि प्रणव मुखर्जी के प्रेजिडेंट बनने के बाद जो नया वित्त मंत्री आएगा वह आर्थिक सुधारों को बढ़ावा देगा। फंड मैनेजर और एनालिस्ट यहां तक दावा कर रहे हैं कि दिसंबर तक सेंसेक्स में 23.5 फीसदी तक की तेजी आ सकती है। ईटी के इस पोल में 20 ब्रोकर और फंड मैनेजर शामिल हुए थे। इनमें से दो लोगों का मानना था कि सेंसेक्स 20,000 का लेवल पार कर सकता है। जबकि 11 की राय थी कि 31 दिसंबर तक सेंसेक्स 17,000 से 19,000 के बीच ट्रेड कर रहा होगा। इस पोल के नतीजे ईटी के पिछले तीन पोल के नतीजों से बिल्कुल उलट हैं। पिछले नतीजों में ज्यादातर ब्रोकर और फंड मैनेजर माकेर्ट को लेकर नेगिटिव थे। पोल के प्रतिभागी सेंसेक्स में तेजी आने की उम्मीद तो कर रहे हैं लेकिन ऊंची ब्याज दर, तेज महंगाई और यूरोजोन संकट को देखते हुए इसके बहुत ज्यादा ऊपर जाने पर दांव नहीं लगा रहे हैं। वहीं, निवेशकों की एक बड़ी चिंता इस सीजन में कम बारिश होने की आशंका है। हालांकि, इन सबके बीच एक अच्छी बात यह है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है। अमेरिकी फेडरेल के यह फैसला लेने के बाद कि वह कोई राहत पैकेज नहीं देगा गुरुवार को क्रूड की कीमतों में गिरावट आई। और इसी के साथ यह अक्टूबर के बाद अपने सबसे निचले स्तर पर चला आया।

राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए के बाद एनडीए और लेफ्ट में भी फूट पड़ गई है। जहां शिवसेना और जेडीयू के विरोध के बाद भी बीजेपी ने संगमा को समर्थन दिया है। वहीं सीपीएम और फॉरवर्ड ब्लॉक तो प्रणब का समर्थन करेगा लेकिन सीपीआई, आरएसपी चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेंगे।मालूम हो कि यूपीए के दूसरे बड़े घटक तृणमूल कांग्रेस  ने पहले ही विद्रोह कर दिया है।अब इस चुनाव के लिए बीजेपी अपने दो अहम सहयोगियों को मना नहीं पाई. बीजेपी ने पी ए संगमा को राष्ट्रपति के तौर पर अपना समर्थन देने का एलान कर दिया है।लेकिन संगमा को उम्मीदवार बनाने के पीछे जेडीयू और शिवसेना की असहमति के जोखिम के बावजूद अन्नाद्रमुक और बीजू जनता दल ​​को राजग में खींचकर २०१४ के लिए गठबंधन का दायरा बढ़ाने का मकसद कहीं ज्यादा है, प्रणव मुखर्जी को रोकने की ऱणनीति तो नजर ​​ही नहीं आयी।लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने गुरुवार को संगमा को समर्थन का एलान किया।स्वराज ने कहा कि वो प्रणब मुखर्जी का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि देश के बुरे हालात के लिए वो ही जिम्मेदार हैं।दूसरी ओर यूपीए की आर्थिक नीतियों की कड़ी आलोचना करने के बावजूद प्रणव को माकपा का समर्थन वामपंथ के लिए खोयी हुई जमीन, खासकर बंगाल के सियासी गणित साधने की कवायद ज्यादा है। न वामपंथ को और न राजग की सर्वोच्च वरीयता देश की अर्थव्यवस्था है। विडंबना​ ​ है कि राजनीतिक समीकरण बनाये रखने के लिए तीनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों ने अर्थ व्यवस्था की बदहाली को सिरे से नजरअंदाज कर दिया।राष्ट्रपति चुनाव के बहाने एनडीए के दो अहम सहयोगी बीजेपी और जेडीयू अपनी-अपनी राह चल पड़े हैं। बीजेपी ने पीए संगमा का साथ देने का एलान किया, तो जेडीयू यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के साथ खड़ी है।जेडीयू नेता शरद यादव ने कहा कि पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे।राष्ट्रपति चुनाव को लेकर यूपीए के बाद एनडीए और लेफ्ट में भी फूट पड़ गई है। सीपीएम और फॉरवर्ड ब्लॉक तो यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे, लेकिन सीपीआई, आरएसपी चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेंगे।

राष्ट्रपति की रेस में वोटों का गणित प्रणब मुखर्जी के पक्ष में ही दिख रहा है। अभी संगमा के पास बीजेपी के सवा दो लाख वोट, बीजेडी के 30 हजार, एआईएडीएमके के 37 हजार, टीडीपी के 20 हजार अकाली दल के 12 हजार वोटों को जोड़ दें तो आंकड़ा होता है तीन लाख चौबीस हजार का, लेकिन जीत के लिए चाहिए साढ़े पांच लाख वोट।

वहीं प्रणब की जीत पक्की मानी जा रही है। उनके पास यूपीए के 4 लाख वोट हैं इसके अलावा बीएसपी के 45 हजार वोट, आरजेडी के 10 हजार, समाजवादी पार्टी के 67 हजार वोट हैं।

एनडीए के घटक दलों जेडीयू के 41 हजार और शिवसेना के 18 हजार वोट को जोड़ने पर प्रणब को मिलते दिख रहे हैं करीब 5 लाख 81 हजार वोट। यानी प्रणब मुखर्जी की जीत पक्की है।

इस बीच यूरोपीय कर्ज संकट को लेकर बढ़ती चिंताओं और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की घटती कीमत ने मुद्रा बाजार में डॉलर को मजबूती दी है। एक बार फिर से डॉलर को निवेश का सुरक्षित जरिया माना जाने लगा है। इसका असर घरेलू मुद्रा बाजार पर भी दिख रहा है। तेल कंपनियों की तरफ से भी डॉलर की मांग बढ़ी है। ब्रेंट क्रूड की कीमत 18 महीने के न्यूनतम स्तर पर आने के बाद डॉलर की मांग गुरुवार को अचानक बढ़ गई। इसका दबाव रुपये पर पड़ा और यह डॉलर के मुकाबले कमजोर होता चला गया। रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपये की कीमत में कुछ सुधार हुआ। जून के अंत तक केंद्रीय बैंक के पास भी लिक्विडिटी का दबाव है। इसलिए वह एक सीमा तक ही हस्तक्षेप करने की स्थिति में है।

अमेरिकी वित्तीय संस्थान जेपी मार्गन ने मजबूत आर्थिक आधारों का हवाला देते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की धडकन माने जाने वाले बाम्बे शेयर बाजार की साख न्यूट्रल से बढाकर ओवरवेट कर दी है।
 
जेपी मार्गन ने आज यहां जारी एक परिपत्र में कहा है कि हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था कई मुश्किलों का सामना कर रही है लेकिन इसके आर्थिक आधार मजबूत है और यह इनके बल पर कठिनाईयों पर काबू पा लेगी।
  
जेपी मार्गन कहा है कि बीएसई के सेंकेक्स वर्ष के अंत तक 19000 अंक निर्धारित किया गया है जोकि वर्तमान स्तर पर लगभग 12 प्रतिशत अधिक है। नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी निकट भविष्य में 4800 अंक से लेकर 5200 अंक के बीच रहने की उम्मीद है।
  
परिपत्र के अनुसार वित्तीय सुधारों की धीमी गति आर्थिक विकास में बाधक बनी रहेगी और विकास में इसकी मुख्य भूमिका रहेगी। अगर कारोबारी और उपभोक्ता भरोसा बढाने के नीतिगत उपाय किए जाते हैं तो मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही अर्थव्यवस्था तेज गति से विकास की और अग्रसर होगी। जे पी मार्गन ने क हा है कि हालांकि आर्थिक सुधारों की धीमी गति के  कारण पूरा आर्थिक परिदृश्य धुंधला बना हुआ है लेकिन कारोबार का स्तर कई गुना ऊंचा बना हुआ है।
   
परिपत्र में कहा गया है कि अप्रेल में भारतीय रिजर्व बैंक ने बयाज दरों में 50 अंकों की कटौती की थी और इस वर्ष में नकद आरक्षित अनुपात में 75 अंक की कटौती की जा चुकी है। इसका असर वर्ष के अंत तक दिखना आरंभ हो जाएगा1रूपए के भाव गिरने से व्यापार में इजाफा होगा और तेल के दाम घटने से देश चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटे पर दबाव कम होगा।
   
जेपी मार्गन के अनुसार निजी बैंकों का स्तर ओवरवेट है क्योंकि उनका राजस्व अर्जन मजबूत है और रिण का उठाव बना हुआ है। आईटी क्षेत्र भी ओवरवैट है क्योंकि रूपए के गिरने से इसको लाभ होगा। इसके अलावा देश के स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान देने से भी इसे मजबूती मिलेगी। हालांकि जेपी मार्गन ने उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र को अंडरवेट रखा है और कहा है कि मांग घट रही है।

अप्रैल में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी 'र्स्टैन्डड एण्ड पूअर्स' ने भारत की रेटिंग पर नजरिया नकारात्मक कर दिया था। मार्च 2012 में समाप्त हुई तिमाही में आर्थिक विकास दर के ढीले पड़ने के संकेत मिलने के बाद सर्टैण्डड एण्ड पूअर्स ने पुन: चेतावनी दी है। कहा है कि भारत में आर्थिक सुधारों के प्रति आम सहमति ढीली पड़ रही है। यूपीए सरकार नीतिगत निर्णय लेने में अक्षम है। ऐसे में संभावना बनती है कि वैश्विक संकट गहराने पर भारतीय सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों को त्यागा जा सकता है।

सर्टैण्डड एण्ड पूअर्स चाहता है कि आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया जाए। परन्तु देश की जनता के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना हानिप्रद हो सकता है। कारण यह कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार द्वारा लागू की जा रही आर्थिक नीतियां मूल रूप से जनविरोधी हैं। इन जनविरोधी आर्थिक सुधारों को मुश्तैदी से लागू करने से निवेशकों को लाभ हो सकता है परन्तु जनता तो कष्ट ही भोगेगी। सर्टैण्डड एण्ड पूअर्स ने भारत की साख घटाने के चार कारण बताए हैं- निवेश में गिरावट, विकास दर में गिरावट, व्यापार घाटे में वृध्दि एवं राजनीतिक अस्थिरता। मनमोहन सिंह की सोच में बड़ी कम्पनियों का वर्चस्व सर्वोपरि है। वे समझते हैं कि बड़ी कम्पनियां भारी मात्रा में निवेश करेंगी। इससे निवेश बढ़ेगा। यह निवेश आधुनिक पूंजी सघन उद्योग में किया जाएगा। कम्पनियों द्वारा सस्ता माल बनाया जाएगा। इससे विकास दर बढ़ेगी। सस्ते माल का निर्यात करके भारत विश्व अर्थव्यवस्था में अपना स्थान बनाएगा। इससे व्यापार घाटा नियंत्रण में आएगा। कम्पनियों को भारी लाभ होगा। इस लाभ के एक अंश को भारत की सरकार के द्वारा टैक्स के रूप में वसूला जाएगा। टैक्स की इस वसूली से सरकार का वित्तीय घाटा नियंत्रण में आएगा। टैक्स की इस रकम के एक हिस्से से मनरेगा जैसे लोक कल्याणकारी कार्यम चलाए जाएंगे। इससे राजनीतिक स्थिरता स्थापित होगी। इस प्रकार निवेश, आर्थिक विकास, व्यापार घाटा एवं राजनीतिक स्थिति सभी ठीक हो जाएंगे। इस माडल के तहत मनमोहन सिंह ने खुदरा बिक्री में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को प्रवेश देने की वकालत की थी।

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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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