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Saturday, June 23, 2012

भाजपा का गैंगवार

भाजपा का गैंगवार



संतोष भारतीय


भारत में गठजोड़ बनाकर सत्ता संभालने वाली भारतीय जनता पार्टी इन दिनों एक दु:खद अंतर्कलह से ग़ुजर रही है. लगभग सात साल में तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके श्री अटल बिहारी वाजपेयी इन दिनों बीमार हैं. वे न अ़खबार पढ़ते हैं और न टेलीविजन पर खबरें सुनते हैं. अगर देखते होते तो उनसे ज़्यादा दु:खी और मर्मांतक पीड़ा का अनुभव करने वाला आज के समय का कोई दूसरा नेता नहीं होता. श्री दीनदयाल उपाध्याय के बाद पार्टी का नेतृत्व स्वाभाविक रूप से अटल बिहारी वाजपेयी के पास आ गया था और अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व ऐसा था कि कोई भी उनका विरोध नहीं कर पाता था. भारतीय जनता पार्टी के वह सर्वमान्य नेता थे ही, लेकिन देश में भी उन्होंने अपने नेतृत्व के लिए हर वर्ग से प्रशंसाएं बटोरी थीं. शायद भारतीय जनता पार्टी में अकेले वही थे, जिन्हें देश के मुसलमानों का भी सम्मान मिला था. भले ही तेरह दिन, तेरह महीने या साढ़े चार साल का कार्यकाल प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें मिला हो, पर यह तीन बार मिला और उन्होंने आशंकाओं के विपरीत देश का शासन कुछ ठीकठाक ही चलाया. अटल जी ने जिस पार्टी को भारत की सर्वोच्च सत्ता तक पहुंचाया, उस पार्टी में बिखराव के बीज को बढ़ते देखना अटल बिहारी वाजपेयी जैसी शख्सियत के लिए मर्मांतक पीड़ा से ज़्यादा दर्दनाक पीड़ा को महसूस करना माना जा सकता है. इसीलिए अटल जी की बीमारी उनके लिए वरदान है, क्योंकि इसी बीमारी की वजह से वह इस पीड़ा से बचे हुए हैं.

भारतीय जनता पार्टी के भीतर बिखराव के इस महाभारत की जड़ में कुछ मनोवैज्ञानिक कारण हैं, कुछ परिस्थितिजन्य कारण हैं और कुछ सत्ता पर क़ब्ज़ा करने की असीम चाह है. पहला कारण यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक मनोवैज्ञानिक बीमारी से ग्रसित है. भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी और श्री मुरली मनोहर जोशी का क़द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को संभालने वाले सभी नेताओं के क़द से बड़ा हो गया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दो सबसे बड़े नेता श्री मोहन भागवत और श्री भैया जी जोशी उम्र और अनुभव में श्री लालकृष्ण आडवाणी और श्री मुरली मनोहर जोशी से कम हैं, इसीलिए यह मनोवैज्ञानिक बीमारी पैदा हो गई है. इसे इस रूप में भी कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी में काम करने वाले लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम करने वाले लोगों से वरिष्ठता में भी और उम्र में भी बड़े हो गए हैं. संघ के लोगों का मानना है कि वे जो फैसला करते हैं, वह सबको साथ लेने वाला फैसला होता है और समाज के हित का फैसला होता है. वहीं भाजपा के लोग जो फैसला लेते हैं, उससे समाज के भले का कोई लेना-देना नहीं होता, ये लोग स़िर्फ अपने भले और अपने गुट के फायदे को ध्यान में रखकर फैसला लेते हैं. सारी समस्या इस बिंदु से शुरू होती है.

संजय जोशी से इस्ती़फा लेने के पीछे एक मज़ेदार कहानी है. मुंबई कार्यकारिणी के समय जब फैसला लेने का मौका आया तो उस बैठक में लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली नहीं थे, नितिन गडकरी खामोश थे. सभी सदस्यों ने कहा कि यह ठीक नहीं है, संजय जोशी से इस्ती़फा नहीं मांगना चाहिए. जब यह मामला सुरेश सोनी के पास गया, तो उन्होंने कहा कि संजय जोशी कार्यकारिणी में रहें या न रहें, लेकिन नरेंद्र मोदी का रहना ज़रूरी है, क्योंकि नरेंद्र मोदी न केवल गुजरात के मुख्यमंत्री हैं, बल्कि भाजपा के हिंदुत्व वाले चेहरे के प्रतीक भी हैं.

संघ में अब तक भाजपा को देखने का ज़िम्मा मदन दास देवी के ऊपर था. मदन दास देवी से कई ग़लतियां हुईं, ऐसा संघ के वरिष्ठ नेताओं का मानना है. इसके पीछे स़िर्फ और स़िर्फ एक कारण है कि संघ के लोगों ने कभी राजनीति की नहीं, वे अपनी विचारधारा के आधार पर समाज को कैसे बदलना है और कैसे समाज को हिंदूवादी ढांचे में ढालना है, इसी के लिए प्रयत्न करते रहते हैं. लेकिन जब उनके बीच के किसी आदमी के चरणों में राजनीति करने वाले बड़े-बड़े लोग सिर झुकाएं, उनके पैर छुएं तो इंसानी कमज़ोरी सामने आ जाती है. इंसानी कमज़ोरी के कारण हुई ग़लतियों की वजह से मदन दास देवी को संघ ने कहा कि चूंकि उनका स्वास्थ्य भी अब ठीक नहीं रहता है, इसलिए वह अब भाजपा की ज़िम्मेदारी से अलग हो जाएं. इन दिनों संघ की तऱफ से सुरेश सोनी कार्यपालक हैं. कार्यपालक का मतलब संघ की तऱफ से भाजपा के बारे में अंतिम फैसला लेने वाला व्यक्ति. भाजपा के हर फैसले को तब तक मान्यता नहीं मिलती, जब तक सुरेश सोनी उस पर अपनी मुहर नहीं लगा देते. दुर्भाग्य की बात यह है कि सुरेश सोनी भी वैसी ही ग़लतियां दोहराने लगे हैं, जैसी ग़लतियां मदन दास देवी ने की थीं. सुरेश सोनी का भी बैकग्राउंड सोशल है, उन्होंने कभी राजनीति की नहीं, वह राजनीति के दांव-पेंच नहीं समझते, लेकिन राजनीति कर रहे हैं और भाजपा से ऐसे फैसले करा रहे हैं, जिनसे भाजपा की अंतर्कलह दुनिया के सामने विद्रूप रूप में प्रकट हो रही है.

संघ में इस समय कई लॉबियां हो गई हैं. एक लॉबी मदन दास देवी एवं सुरेश सोनी की ओर देखती है और दूसरी लॉबी लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी की ओर देखती है. तीसरी लॉबी नितिन गडकरी के साथ है और उनका साम्राज्य मज़बूत करना चाहती है. एक चौथी लॉबी भी आरएसएस में है, जो नरेंद्र मोदी के साथ है और नरेंद्र मोदी को देश का नेता बनाना चाहती है. पहले सुषमा स्वराज, अरुण जेटली एवं नरेंद्र मोदी आडवाणी जी के सिपहसालार थे. आडवाणी जी को जबसे यह एहसास हुआ कि अब संघ का नेतृत्व और भाजपा का एक वर्ग उन्हें राजनीति से किनारे कर देगा तो उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि वह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और चूंकि उन्होंने पूरी ज़िंदगी पार्टी को बेहतर बनाने के लिए दी है, तो अब वह चाहते हैं कि उनकी पार्टी ठीक से चले. लेकिन आडवाणी जी द्वारा यह घोषणा करते ही उनके ये तीनों सिपहसालार, जिन्होंने उनके लिए पार्टी में सालों-साल शूटर की भूमिका निभाई थी, अब अलग-अलग हो गए हैं. मुख्यमंत्री होने के नाते और आक्रामक रणनीति बनाने में माहिर नरेंद्र मोदी सबसे ज़्यादा सर्वमान्य नेतृत्व की दौड़ में और होड़ में आगे बढ़ने लगे. आडवाणी जी का तीनों सिपहसालारों में सबसे ज़्यादा झुकाव अरुण जेटली की तऱफ है, लेकिन अरुण जेटली अकेली ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें लेकर भारतीय जनता पार्टी का हर नेता सशंकित रहता है. उसे लगता है कि अरुण जेटली के पास ऐसा उर्वर दिमाग़ है, जो किसी को कभी भी धराशायी कर सकता है.

सुरेश सोनी को वही पसंद आता है, जो उनकी चापलूसी करता है, जो उनके क़सीदे पढ़ता है या जो उनकी सेवा करता है. इन सारी चीज़ों में राजनीतिज्ञ माहिर होते हैं. नरेंद्र मोदी ने संघ में सुरेश सोनी को चारों तऱफ से घेर लिया. दोनों में एक बात कॉमन है, नरेंद्र मोदी राजनीति में अपने समकक्ष किसी को नहीं समझते, उसी तरह सुरेश सोनी भी संघ में अपने समकक्ष किसी को नहीं समझते.

भाजपा में कितने तरह के षड्‌यंत्र चल रहे हैं, इसे शायद भाजपा के नेता भी नहीं बता सकते. लालकृष्ण आडवाणी को लगा कि उनके तीनों सिपहसालारों में नरेंद्र मोदी अपना दावा पेश करेंगे और अरुण जेटली उनका साथ देंगे तो उन्होंने संजय जोशी के ऊपर हाथ रखने का फैसला किया. हालांकि पहले संजय जोशी को पार्टी से बाहर करने में आडवाणी जी ने महत्वपूर्ण रोल निभाया था, लेकिन इस बार उन्हें लगा कि नरेंद्र मोदी को अगर कोई आदमी दायरे में रख सकता है तो वह संजय जोशी हो सकते हैं. जैसे ही आडवाणी जी की इस राय का पता उनके बाक़ी दोनों सिपहसालारों को लगा, उन्होंने आडवाणी जी की इच्छा के खिला़फ, संजय जोशी के विरुद्ध पेशबंदी शुरू कर दी और यह पेशबंदी नरेंद्र मोदी के पक्ष में उन्होंने की. यह पेशबंदी भी एक षड्‌यंत्र के तहत हुई. दरअसल, संजय जोशी के बारे में माना जाता है कि वह संघ के पुरानी पीढ़ी के कार्यकर्ताओं की तरह काम करते हैं, उनके साथ भाजपा का आम कार्यकर्ता है और वह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जो नरेंद्र मोदी को काट सकते हैं या नरेंद्र मोदी को अनुशासन में रख सकते हैं. इन लोगों ने यह तय किया कि पहले तो संजय जोशी को राजनीतिक रूप से खत्म किया जाए. उसके बाद जो बचे हुए दूसरे लोग हैं, उन्हें नरेंद्र मोदी के ज़रिए खत्म किया जाए और आखिरी लड़ाई तीन या चार लोगों के बीच में हो, जिसमें जिसके पास दिमाग़ तेज़ होगा, वही बाज़ी जीतेगा.

अरुण जेटली नरेंद्र मोदी का इस समय साथ दे रहे हैं. अरुण जेटली के पास दिमाग़ है, पैसा है, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पूंजीपतियों का समर्थन है, बस उनके पास एक ही कमी है कि उनके पास जनाधार नहीं है. इसलिए वह अपने को आखिरी लड़ाई में तीसरा या चौथा योद्धा मान रहे हैं. सुरेश सोनी इस चाल को या इस रणनीति को समझ नहीं पाए. न समझने के पीछे संघ के कुछ नेताओं का कहना है कि बहुत साधारण कारण है और वह कारण पुराना है कि सुरेश सोनी को राजनीति का क-ख-ग नहीं आता. इसका उदाहरण वे मध्य प्रदेश का देते हैं. मध्य प्रदेश के वर्तमान भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा वहां मीडिया सेल में वेतनभोगी कार्यकर्ता के रूप में काम करते थे, लेकिन उन्होंने सुरेश सोनी के अहम को संतुष्ट किया. सुरेश सोनी पहले उन्हें राज्यसभा में लाए और फिर मध्य प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनवा दिया. लेकिन भाजपा के कुछ लोग इसे सुरेश सोनी की दूरदर्शिता भी बताते हैं. उनका कहना है कि सुरेश सोनी ने प्रभात झा की काम करने की ताक़त और क्षमता को का़फी पहले पहचान लिया था और उन्होंने एक साधारण कार्यकर्ता को पार्टी का अध्यक्ष बनाकर पार्टी को मज़बूती प्रदान की.

संघ के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की राय है कि सुरेश सोनी को वही पसंद आता है, जो उनकी चापलूसी करता है, जो उनके क़सीदे पढ़ता है या जो उनकी सेवा करता है. इन सारी चीज़ों में राजनीतिज्ञ माहिर होते हैं. नरेंद्र मोदी ने संघ में सुरेश सोनी को चारों तऱफ से घेर लिया. दोनों में एक बात कॉमन है, नरेंद्र मोदी राजनीति में अपने समकक्ष किसी को नहीं समझते, उसी तरह सुरेश सोनी भी संघ में अपने समकक्ष किसी को नहीं समझते. नरेंद्र मोदी ने यह शर्त रखी कि या तो संजय जोशी रहेंगे या मैं रहूंगा और संजय जोशी कार्यकारिणी की बैठक में आते हैं तो मैं नहीं आऊंगा. इस पर संजय जोशी ने फैसला लिया कि वह कार्यकारिणी में रहें या न रहें, पार्टी के साधारण कार्यकर्ता बने रहेंगे. जब सुरेश सोनी ने यह फैसला लिया कि संजय जोशी के रहने या न रहने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता, उनसे इस्ती़फा ले लेना चाहिए, ताकि नरेंद्र मोदी मुंबई की कार्यकारिणी में शामिल हो सकें तो संघ के निष्ठावान लोगों को बहुत दु:ख हुआ. संघ के निष्ठावान लोगों को लगा कि संघ का भी चरित्र परिवर्तन हो गया है, क्योंकि जब वी पी सिंह की सरकार थी तो उस समय भाजपा और तत्कालीन प्रधानमंत्री के बीच यह बातचीत चल रही थी कि शिलान्यास दूसरी जगह कर लिया जाए. उस समय संघ के नेताओं, जिनमें भाऊ देवरस प्रमुख थे, ने कहा कि सरकार रहे या जाए, शिलान्यास वहीं होगा. नतीजे के तौर पर आडवाणी को रथयात्रा निकालनी पड़ी, वी पी सिंह की सरकार चली गई. हालांकि शिलान्यास आज तक नहीं हो पाया. पर आज संघ के नेताओं में वह बात नहीं है. संजय जोशी के खिला़फ एक सीडी आई, जिसकी वजह से उन्हें भाजपा से इस्ती़फा देना पड़ा और बाद में गुजरात एसआईटी ने कहा कि यह सीडी फर्ज़ी है, संजय जोशी निर्दोष हैं. इसके बावजूद संजय जोशी को संघ में या भाजपा में अपनी पुनर्स्थापना में सात साल लग गए और अब जब संजय जोशी ने काम करना शुरू किया, तब नरेंद्र मोदी ने यह शर्त रख दी कि संजय जोशी के रहते न वह कार्यकारिणी की बैठक में जाएंगे और न गुजरात भाजपा का कोई सदस्य पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ सहयोग करेगा.

भाजपा में कितने तरह के षड्‌यंत्र चल रहे हैं, इसे शायद भाजपा के नेता भी नहीं बता सकते. लालकृष्ण आडवाणी को लगा कि उनके तीनों सिपहसालारों में नरेंद्र मोदी अपना दावा पेश करेंगे और अरुण जेटली उनका साथ देंगे तो उन्होंने संजय जोशी के ऊपर हाथ रखने का फैसला किया. हालांकि पहले संजय जोशी को पार्टी से बाहर करने में आडवाणी जी ने महत्वपूर्ण रोल निभाया था, लेकिन इस बार उन्हें लगा कि नरेंद्र मोदी को अगर कोई आदमी दायरे में रख सकता है तो वह संजय जोशी हो सकते हैं.

संजय जोशी से इस्ती़फा लेने के पीछे एक मज़ेदार कहानी है. मुंबई कार्यकारिणी के समय जब फैसला लेने का मौका आया तो उस बैठक में लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली नहीं थे, नितिन गडकरी खामोश थे. सभी सदस्यों ने कहा कि यह ठीक नहीं है, संजय जोशी से इस्ती़फा नहीं मांगना चाहिए. जब यह मामला सुरेश सोनी के पास गया, तो उन्होंने कहा कि संजय जोशी कार्यकारिणी में रहें या न रहें, लेकिन नरेंद्र मोदी का रहना ज़रूरी है, क्योंकि नरेंद्र मोदी न केवल गुजरात के मुख्यमंत्री हैं, बल्कि भाजपा के हिंदुत्व वाले चेहरे के प्रतीक भी हैं. उन्होंने भाजपा के डेमोक्रेटिक फैसले के खिला़फ वीटो कर दिया और स्वयं संजय जोशी से कहा कि वह इस्ती़फा दे दें. संजय जोशी ने इस्ती़फा दे दिया और नरेंद्र मोदी शाम को विशेष विमान से मुंबई कार्यकारिणी में शामिल होने पहुंचे. जिन लोगों ने मंच का वह नज़ारा देखा, उनका यह कहना था कि नरेंद्र मोदी के साथ नितिन गडकरी चल रहे थे और दोनों की बॉडी लैंग्वेज ऐसी थी, मानो शेर के साथ चूहा चल रहा हो. वहीं पर कुछ नेताओं ने आपस में कहा कि आज से नरेंद्र मोदी के मुखौटे के रूप में नितिन गडकरी देखे जाएंगे और वहां नितिन गडकरी की बॉडी लैंग्वेज बिल्कुल मुखौटे जैसी थी.

सुरेश सोनी ने संजय जोशी से इस्ती़फा तो ले लिया, मगर पूरे देश में कार्यकर्ताओं में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई. इस तीखी प्रतिक्रिया से सुरेश सोनी घबरा गए और उन्होंने भाजपा के मुखपत्र कमल संदेश में प्रभात झा से एक संपादकीय लिखवाया, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी की आलोचना कराई. इस संपादकीय में नाम प्रभात झा का है, लेकिन शब्द सुरेश सोनी के हैं. इस क़दम से सुरेश सोनी ने कार्यकर्ताओं में उपजे ग़ुस्से से अपने आपको बचाने की कोशिश की. कार्यकर्ताओं में इतनी तीखी प्रतिक्रिया होगी, इसे संघ विशेषकर सुरेश सोनी समझ ही नहीं पाए. जितने लोग नितिन गडकरी के घर पर नहीं होते हैं, उससे सौ गुना ज़्यादा लोग संजय जोशी के घर पर हमेशा होते हैं. देश भर के कार्यकर्ता उनसे मिलने आते हैं. इस स्थिति को देखकर ही लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के नेतृत्व को एक नसीहत दे डाली, जिसमें उन्होंने कहा कि पार्टी इस तरह नहीं चलाई जा सकती और न चलाई जाती है.

दरअसल, लालकृष्ण आडवाणी भी नितिन गडकरी को दूसरा टर्म देने के खिला़फ हैं. आडवाणी जी का मानना है कि 25-30 साल पार्टी चलाने के बाद वरिष्ठ लोग एक नतीजे पर पहुंचे हैं कि पार्टी में अध्यक्ष को केवल एक टर्म ही रहना चाहिए. पहले भाजपा में दो साल का अध्यक्ष होता था, फिर नियम में संशोधन करके एक ही आदमी दो-दो साल के लिए दो बार चुना जाने लगा. अब संशोधन हुआ कि दो साल नहीं, तीन साल का अध्यक्ष हो और अब नया संशोधन हुआ है कि तीन-तीन साल के लिए एक ही आदमी दोबारा अध्यक्ष चुना जा सकता है. आडवाणी जी का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी जैसे राजनीतिक दल में एक अध्यक्ष स़िर्फ एक कार्यकाल के लिए होना चाहिए. आडवाणी जी की हर चंद कोशिश यह है कि नितिन गडकरी दोबारा अध्यक्ष न बन पाएं.

इस स्थिति ने दो व्यक्तियों को नज़दीक ला दिया है. इन दिनों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी एक साथ रणनीति बनाते दिखाई दे रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी में पिछले 20 सालों में जो नहीं हुआ, वह अब होता दिखाई दे रहा है. पिछले 20 सालों में मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी कभी एक साथ राजनीति करते नहीं दिखाई दिए. दोनों से मिलने वाले लोग एक-दूसरे के प्रति तल़्खी के गवाह रहे हैं लेकिन अब लालकृष्ण आडवाणी ने पहल की है, जिसका जवाब मुरली मनोहर जोशी ने दिया है और अब दोनों इस समय एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. आडवाणी जी की इस समय इच्छा यह है कि भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को होना चाहिए और मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में ही 2014 का चुनाव लड़ा जाना चाहिए. इस तरह की इच्छा आडवाणी जी ने अपने नज़दीकी लोगों से ज़ाहिर की है.

इस समय संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि भारतीय जनता पार्टी में गुटबाज़ी इतनी बढ़ गई है कि एक नेता दूसरे नेता को फूटी आंख नहीं देखना चाह रहा है. सुरेश सोनी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं उनका हश्र भी मदन दास देवी की तरह न हो और उन्हें भी भारतीय जनता पार्टी के कार्यपालक के पद से कहीं संघ की अगली होने वाली मीटिंग में हटा न दिया जाए. रामलाल जी इस बात से चिंतित हैं कि कहीं उनकी जगह संजय जोशी न आ जाएं. रामलाल जी इस समय संगठन मंत्री हैं और वह संजय जोशी को संगठन मंत्री न बनने देने की रणनीति के तहत काम कर रहे हैं. आडवाणी जी संजय जोशी को निकालने के लिए पहले नरेंद्र मोदी के साथ थे और अचानक उन्हें लगा कि कहीं ऐसी अप्रत्याशित स्थिति न पैदा हो जाए कि इस सारी ऊहापोह के बीच संजय जोशी प्रधानमंत्री पद का दावा कर बैठे. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा हुआ तो उनका क्या होगा, क्योंकि यह बात अब तेज़ी से चल पड़ी है कि 75 साल के ऊपर के सभी लोग राजनीति से रिटायर हो जाएं. इसके लिए आडवाणी जी ने पहली लाइन यह ली कि नितिन गडकरी अध्यक्ष ही न बनें, कोई और अध्यक्ष बने, संभव हो तो मुरली मनोहर जोशी अध्यक्ष बनें और साथ ही यह भी कहना शुरू कर दिया, मैं अब चुनाव नहीं लड़ूंगा, मैं चाहता हूं कि पार्टी ठीक से चले.

नितिन गडकरी ने अपने आपको दोबारा अध्यक्ष बनवाने के लिए नरेंद्र मोदी से हाथ मिला लिया है और इसके लिए संजय जोशी की बलि चढ़ा दी है. हालांकि यही नितिन गडकरी संजय जोशी को पार्टी में वापस लाए थे और उन्हें उत्तर प्रदेश चुनाव का प्रभारी बनाया था. सुरेश सोनी अपना नया गुट बना रहे हैं और चूंकि नरेंद्र मोदी दो बार गुजरात का चुनाव जीत चुके हैं, इसलिए इसे नशा कहें या उनका आत्मविश्वास, वह यह मानते हैं कि आसानी के साथ न केवल गुजरात का चुनाव जीतेंगे, बल्कि वह देश के प्रधानमंत्री भी बनेंगे. इस ऊहापोह में पार्टी की ऐसी की तैसी हो रही है. कमाल की बात है, जिस बैठक में गुजरात भाजपा के उपाध्यक्ष की चिट्ठी पर फैसला लिया गया, जिसमें कहा गया था कि जब तक संजय जोशी कार्यकारिणी के सदस्य रहेंगे, नरेंद्र मोदी कार्यकारिणी में नहीं आएंगे. वहां सभी लोगों ने कहा, जिनमें मुरली मनोहर जोशी प्रमुख थे कि यह ग़लत बात है, इस तरह की शर्त नहीं माननी चाहिए. इसके बाद सुरेश सोनी के कहने से फैसला हुआ और जब नितिन गडकरी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें तो सुरेश सोनी ने कहा कि फैसला ले लो, इसलिए उन्होंने फैसला ले लिया. अब भारतीय जनता पार्टी के अनुशासन का दिवालियापन सा़फ-सा़फ दिखाई दे रहा है. एक तऱफ पार्टी अध्यक्ष संजय जोशी से इस्ती़फा लेता है, दूसरी तऱफ पार्टी के मुखपत्र कमल संदेश में नरेंद्र मोदी के खिला़फ संपादकीय लिखा जाता है और तीसरी तऱफ अंग्रेजी के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में नरेंद्र मोदी की तारी़फ होती है. ऑर्गनाइज़र के संपादक मोदी के नज़दीक हैं, कमल संदेश के संपादक सुरेश सोनी के नज़दीक हैं. अब इससे बड़ा उदाहरण पार्टी के अनुशासन

के दिवालिएपन का और क्या हो सकता है. कमल संदेश के संपादकीय में संगठन, व्यक्ति, महत्व, प्रेम, साथी, ज़रूरत, कॉन्फिडेंस और को-ऑपरेशन, सबके ऊपर भाषण है. यह सब संजय जोशी के समर्थन में लिखा गया है, लेकिन ऑर्गनाइजर में नरेंद्र मोदी को देश का भविष्य बता दिया गया.

इन सबके पीछे कौन है, इस रहस्य का पता जब हमने लगाया, तब हमें पता चला कि इसके पीछे देश के एक बहुत बड़े व्यक्ति हैं, जिनका भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में बहुत बड़ा द़खल रहा है और जिनका नाम एस गुरुमूर्ति है. गुरुमूर्ति देश के बड़े चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, चेन्नई में रहते हैं और उनका रिश्ता देश के उन बड़े उद्योगपतियों से है, जो देश को चलाने में रुचि रखते हैं. संघ के हमारे सूत्र का कहना है कि नरेंद्र मोदी की इस सारी रणनीति के पीछे गुरुमूर्ति का दिमाग़ और रणनीति है. गुरुमूर्ति यह चाहते हैं कि उन सारे लोगों को किनारे कर दिया जाए, जो नरेंद्र मोदी के रास्ते में अभी से लेकर 2014 तक आ सकते हैं. पर संघ के इस वरिष्ठ नेता ने हमें यह भी कहा कि चारपाई स़िर्फ चार पायों से नहीं बनती है, उसके लिए निवाड़ की भी ज़रूरत पड़ती है और अगर निवाड़ न हो, तो आदमी के लिए चारपाई किसी मतलब की नहीं है. उनका कहना है कि जिन लोगों को हटाने की बात गुरुमूर्ति नरेंद्र मोदी के लिए कर रहे हैं, वे सारे निवाड़ हैं, उनके बिना नरेंद्र मोदी को चारपाई नसीब नहीं होने वाली. गुरुमूर्ति जी भी कमाल की शख्सियत हैं. गुरुमूर्ति अंबानियों के दोस्त रहे और दोस्त रहते उन्होंने एलएनटी के दो हिस्से करा दिए, जिसका एक हिस्सा उन्होंने कुमार मंगलम बिड़ला को बिकवा दिया. गुरुमूर्ति ने अपने दोस्तों को कहा कि मैंने यह काम कुमार मंगलम बिड़ला के लिए इसलिए किया, क्योंकि वह मेरे दोस्त हैं. पहले गुरुमूर्ति अटल बिहारी वाजपेयी के साथ थे, फिर गोविंदाचार्य के साथ हुए और अब नरेंद्र मोदी के लिए रणनीति बना रहे हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं कि संघ के पास आज भी सबसे ज़्यादा ताक़त है और बिना उसकी राय के भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता. मोहन भागवत और भैया जी जोशी, ये दोनों प्रमुख निर्णायक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हैं. इन्हीं दोनों ने मिलकर यह फैसला किया है कि 75 वर्ष के सारे नेता भाजपा की चुनावी राजनीति से अलग हो जाएं. जब ये अलग हो जाएंगे तो फिर 45, 50 और 60 वर्ष की उम्र के नेता सामने आएंगे, जो मोहन भागवत और भैया जी जोशी से जूनियर होंगे. इन्हें लगता है कि तभी संघ का वह वर्चस्व क़ायम होगा, जो देवरस जी के समय भाजपा की राजनीति के ऊपर था. इन दोनों की बातचीत से हमेशा एक बात निकलती है कि जब संपर्क आरएसएस का, कार्यकर्ता आरएसएस के और साख आरएसएस की, तो फिर भारतीय जनता पार्टी के नेता आरएसएस की बात पूरी तरह क्यों नहीं मानते. आरएसएस की प्रतिक्रिया देने का तरीक़ा बहुत ही अलग है. कहते तो यह हैं कि अगर तवे के ऊपर उंगली छू जाए तो पूरे शरीर को दर्द होता है, लेकिन आरएसएस इस सिद्धांत से बिल्कुल अलग है. कुछ भी हो जाए, वे ध्यान नहीं देते और का़फी देर बाद प्रतिक्रिया देते हैं. सवाल यह है कि क्या आरएसएस के नेतृत्व को इस संपूर्ण घटना के बारे में पता है? आम दिमाग़ से सोचें तो कहा जा सकता है कि आज जब अ़खबार हैं, टेलीविजन है, उनकी पार्टी है तो उन्हें सच्चाई का पता ज़रूर होगा. पर आरएसएस को जानने वाले यह कहते हैं कि आरएसएस को इस घटना की सच्चाई का अभी तक पता नहीं चला. अगले दो महीनों में जब उनकी मीटिंग होगी और उन्हें उन्हीं के सूत्र बताएंगे कि क्या हुआ, कैसे हुआ, तब उन्हें पता चलेगा कि सच्चाई क्या है, लेकिन तब तक इस घटना को महीनों बीत चुके होंगे.

नरेंद्र मोदी का केस एक मामले में आंख खोलने वाला भी है. सार्वजनिक रूप से नरेंद्र मोदी ने आरएसएस की अवहेलना की है और उसके फैसले के खिला़फ अपनी बातें मनवाई हैं. अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जाते हैं तो यह मान लेना चाहिए कि आरएसएस का वर्चस्व भाजपा के ऊपर से समाप्त हो गया है. वहीं दूसरी तऱफ हमें एक और जानकारी मिली है कि यह मास्टर प्लान खुद आरएसएस का है. संघ का यह मानना है कि नरेंद्र मोदी देश के सर्व स्वीकार्य नेता तब तक नहीं बन सकते, जब तक उनके ऊपर संघ की छाप रहेगी और संघ से मुसलमानों को तो छोड़ ही दीजिए, भाजपा के सहयोगी दलों की भी असहमति है. वे मुश्किल से नरेंद्र मोदी को एनडीए की तऱफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार स्वीकार करेंगे. इसलिए आरएसएस ने यह योजना बनाई कि नरेंद्र मोदी को गाली दी जाए, नरेंद्र मोदी को आरएसएस की बात न मानने वाला व्यक्ति क़रार दिया जाए और नरेंद्र मोदी आरएसएस के कई फैसलों के ऊपर उंगली उठाएं, ताकि उन्हें एनडीए में कम से कम स्वीकार्य नेता के रूप में मनवाया जा सके.

जिस घटना को लेकर संजय जोशी ने इस्ती़फा दिया, वह घटना थी सारे देश में संजय जोशी के समर्थन में लगाए गए पोस्टर. इन पोस्टरों में संजय जोशी को बड़ा नेता बताया गया और इससे यह लगा कि नरेंद्र मोदी से भाजपा और संघ का कार्यकर्ता नाराज़ है, पर सवाल यह है कि ये पोस्टर लगवाए किसने हैं, क्या ये पोस्टर नरेंद्र मोदी ने लगवाए, क्या ये पोस्टर संजय जोशी ने लगवाए? हमारी जानकारी यह बताती है कि ये पोस्टर न नरेंद्र मोदी ने लगवाए, न संजय जोशी ने. ये पोस्टर खुद आरएसएस ने सारे देश में लगवाए, ताकि नरेंद्र मोदी की छवि निखारी जा सके. नरेंद्र मोदी को स्वीकार्य नेता के रूप में प्रधानमंत्री पद का दावेदार पेश करने की दिशा का यह पहला क़दम माना जा सकता है. ये पोस्टर और ये सारी घटनाएं जहां नरेंद्र मोदी को सर्व स्वीकार्य प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की दिशा में संघ का क़दम है, वहीं यह श्री लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनेताओं की राजनीति पर पूर्ण विराम लगाने का भी एक संकेत है. जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेता भी स्पेंट फोर्स मान लिए गए हैं. इसलिए हो सकता है, अगले लोकसभा चुनाव में इन पांचों को भाजपा अपना उम्मीदवार न बनाए.

 

संतोष भारतीय चौथी दुनिया (हिंदी का पहला साप्ताहिक अख़बार) के प्रमुख संपादक हैं. संतोष भारतीय भारत के शीर्ष दस पत्रकारों में गिने जाते हैं. वह एक चिंतनशील संपादक हैं, जो बदलाव में यक़ीन रखते हैं. 1986 में जब उन्होंने चौथी दुनिया की शुरुआत की थी, तब उन्होंने खोजी पत्रकारिता को पूरी तरह से नए मायने दिए थे. ये लेख चौथी दुनिया से साभार.

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अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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