शातिर शिवानंद और शरद का संकट
पिछले कुछ दिनों में जदयू और भाजपा के बीच बढ़ी खटास के बीच जदयू के राज्यसभा सांसद शिवानंद तिवारी अचानक से अपने तीखे बयानों के कारण चर्चा में आ गये. संघ और संघ के हिन्दुत्व को परिभाषित करने लगे और भाजपा को यह समझाने लगे कि राजनीतिक कम्पल्शन कुछ और चीज होती है और वैचारिक धरातल कुछ और. तल्खी इतनी बढ़ गई कि शरद यादव को कहना पड़ गया कि प्रवक्ता लोग बयान दें तो कम से कम पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से विचार विमर्श जरूर कर दें. शरद ने शनिवार को कहा कि जदयू एनडीए के बाहर नहीं जा रहा है.
असल में शिवानंद तिवारी के बारे में कहा जाता है कि वे ठेके पर राजनीति करते हैं. कल तक लालू ने ठेका दिया था तो शिवानंद किसी को भी ठोंक देते थे. लालू से ठेकेदारी का रिस्ता खत्म हुआ तो नीतीश ने उन्हें अपना लठैत बना लिया और राज्यसभा सीट देकर दिल्ली पहुंचा दिया. शिवानंद तिवारी भी उसी छात्र आंदोलन की देन हैं जिससे नीतीश कुमार निकले हैं. लेकिन लालू और नीतीश जैसे साथी सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गये, जबकि शिवानंद सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद वह हासिल नहीं कर सके जिसका वे खुद को हकदार समझते थे. इसलिए अबकि जब नीतीश ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रणव बाबू को समर्थन देने का ऐलान किया तो दिल्ली में बयानबाजी का ठेका शिवानंद को दे दिया. खुद नीतीश चार लाइन बोलकर चुप हो गये, लेकिन इसके बाद शिवानंद तिवारी भोंपू बन गये.
शिवानंद जानते हैं कि इस मौके पर वे जितना ज्यादा नीतीश को जायज ठहराएंगे नीतीश की नजर में ऊंचे उठते जाएंगे. इसका दोहरा फायदा होगा. एक तो दिल्ली में जनता दल युनाइटेड के नाम पर बजाय शरद को महत्व मिलने के उन्हें महत्व मिलेगा और दूसरा बिहार में नीतीश पर राजनीतिक अहसान तो लदेगा ही. नीतीश को फायदा यह है कि वे दिल्ली में शरद की काट खोज रहे हैं जो फिलहाल मिल नहीं रहा है. जदयू का लेदेकर सारा वजूद बिहार के कारण है और नीतीश कुमार मानते हैं कि यह सिर्फ और सिर्फ उनके करिश्में के कारण संभव हुआ है. शरद यादव भले ही पुराने समाजवादी साथी है लेकिन खुद वे मध्य प्रदेश से आते हैं इसलिए बिहार में लंबे समय से राजनीति करने के बाद भी वे बिहार के हो नहीं पाये है. शायद यही कारण है कि शरद दिल्ली में डटे रहते हैं और नीतीश बिहार का काम काज देखते हैं. अब ऐसे में अगर दिल्ली दरबार में नीतीश को एक अच्छा प्रवक्ता मिल जाए तो दिल्ली में भी नीतीश को शरद की काट मिल जाएगी.
सो, लिहाजा शिवानंद को अंगुली पकड़ने का इशारा हुआ तो वे पहुंचा ही उखाड़ने लगे. बात हद से आगे बढ़ने लगी तो शरद को सार्वजनिक बयान देकर शिवानंद को समझाना पड़ गया कि वे ज्यादा न बोलें. इसके बाद भी शिवानंद चुप हो जाएंगे, कहा नहीं जा सकता. अगर वे चुप हो जाते हैं तो शिवानंद का संकट बढ़ेगा और अगर नहीं होते हैं शरद यादव का संकट अभी और बढ़नेवाला है. पहले ही राष्ट्रीय कार्यालय के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के संकट कई थे, अब शिवानंद एक नया संकट बनकर पैदा हो गये हैं.
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