दलालों से कैसे मुक्त हो रेल
देश के कई स्टेशनों पर आपको आसानी से ऐसे दलालों के नाम व मोबाईल नंबर मिल जाएंगे जो आपसे टिकट के अग्रिम पैसे तथा एक हज़ार रुपये अतिरिक्त लेकर आपको तत्काल आरक्षण उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था कर देंगे...
निर्मल रानी
भारतीय रेल व्यवस्था दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क के रूप में जानी जाती है. कहने को तो भारतीय रेल की शुरुआत चीन की रेल व्यवस्था से भी पहले हो चुकी थी. परंतु दुर्भाग्यवश जहां आज चीन की रेलवे दुनिया में सबसे आधुनिकतम,सुरक्षित एवं तीव्र गति से संचालित होने वाले रेल नेटवर्क में गिनी जा रही है वहीं भारतीय रेल तमाम क्षेत्रों में हुई प्रगति के बावजूद आज भी लगातार ग्रहण का शिकार होती जा रही है.
सुरक्षा की दृष्टि से तो भारतीय रेल को दुनिया की सबसे असुरक्षित रेल व्यवस्था में ही गिना जाता है. पूरे देश में आप कहीं भी चले जाईए रेलवे स्टेशन से लेकर चलती हुई रेलगाडिय़ों तक में बेटिकट यात्री, असामाजिक तत्व, भिखारी, मवाली, नकली वेंडर, चोर-पॉकेटमार, राहज़न, यात्रियों को लूटते हुए हिजड़े, ज़हरखुरानी करने वाले अपराधी आदि सब कुछ बड़ी आसानी से मिल जाएंगे. इसके अतिरिक्त सरकारी वर्दियां पहने हुए तमाम गश्ती पुलिस वाले यात्रियों से बिना किसी कारण के पैसे वसूलते,उनकी तलाशी लेते तथा सुरक्षा के नाम पर उनके सामानों की जांच-पड़ताल करते देखे जा सकते हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि गत् एक दशक में भारतीय रेल ने सफाई,गति, स्टेशन व रेलवे लाईन के रखरखाव, कंप्यूटर प्रणाली, सिग्रलिंग सिस्टम आदि में काफी सुधार किया है. परिणामस्वरूप रेलगाडिय़ां अब अधिक देरी से चलती हुई कम दिखाई देती हैं. डिब्बों की हालत भी पहले से बेहतर हुई है. परंतु अभी इस रेल व्यवस्था में तथा इसके संचालन में तमाम कमियां ऐसी हैं जो हमारी रेल व्यवस्था को न केवल दागदार बनाती हैं बल्कि इसे बदनाम भी करती हैं.
उदाहरण के तौर पर रेलवे ने अधिकांश गाडिय़ों में मोबाईल चार्ज करने हेतु सॉकेट का प्रबंध किया है. परंतु पिछले दिनों जब हम बिहार यात्रा पर गए तो अंबाला से पटना जाने वाली अकाल तख्त ट्रेन की आरक्षित बोगी में हालांकि सॉकेट तो कई लगे थे परंतु किसी एक में भी करेंट नहीं आ रहा था. परिणामस्वरूप तमाम यात्री अपना मोबाईल चार्ज करने हेतु चार्जर हाथ में लिए हुए परेशान हालत में इधर-उधर आते-जाते व उपयुक्त सॉकेट की तलाश करते दिखाई दिए.
अभी गत् सप्ताह बीबीसी के एक संवाददाता ने अपने ब्लैकबेरी फोन से फेस बुक पर उस समय इसी प्रकार की सूचना दी जबकि वह लखनऊ से दिल्ली की यात्रा गोमती एक्सप्रेस के प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित कोच से कर रहा था. उस कोच में भी चार्जिंग साकेट तो थे परंतु उनसे मोबाईल फोन चार्ज नहीं हो पा रहे थे. आखिर ऐसी लचर एवं गैर जि़म्मेदार व्यवस्था का कारण क्या है?
इसी प्रकार पिछले दिनों रेलवे की तत्काल आरक्षण व्यवस्था को लेकर देश के कई भागों से एक जैसे समाचार प्राप्त हुए. रेल मंत्रालय द्वारा तत्काल आरक्षण प्रणाली को दलालों के चंगुल से मुक्त कराए जाने के तमाम उपाय किए जाने के बावजूद देश के कई स्थानों पर सीबीआई तथा आर पीएफ अथवा विजिलेंस विभाग द्वारा मारे गए छापों में तमाम ऐसे दलाल पकड़े गए जोकि अन्य यात्रियों के तत्काल आरक्षण कराने हेतु लाईन में खड़े थे.
गौरतलब है कि गत् रेल बजट पेश करते समय तत्कालीन रेलमंत्री दिलीप त्रिवेदी ने तत्काल आरक्षण व्यवस्था को दलाल मुक्त कराने के लिए कई उपायों की घोषणा की थी. इनमें तत्काल आरक्षण 48 घंटे पूर्व होने के बजाए मात्र 24 घंटे पूर्व ही कर दिया गया था. इसके अतिरिक्त लाईन में लगे व्यक्ति को अपना पहचान पत्र दिखाने के बाद ही तत्काल टिकट मिलने की व्यवस्था की गई थी. एक तत्काल टिकट पर केवल चार यात्रियों को ही यात्रा करने की इजाज़त दी गई है.
प्रत्येक तत्काल आरक्षण पंक्ति की निगरानी सीसीटीवी कैमरे से किए जाने का भी एलान किया गया था. परंतु इन सब उपायों के बावजूद दलालों का शिकंजा संभवत: पहले से भी अधिक कस गया. और जिन तत्काल आरक्षण टिकटों के लिए दलाल 200 रुपये से लेकर पांच सौ रुपये तक अधिक लिया करते थे अब उन्हीं टिकटों के लिए यही दलाल तत्काल टिकट चाहने वाले यात्री से एक हज़ार रुपया प्रति यात्री की दर से फालतू पैसे वसूल करने लगे हैं.
पिछले दिनों लुधियाना, मिर्ज़ापुर , वाराणसी तथा आसनसोल सहित पूरे देश के तमाम प्रमुख स्थानों पर विभिन्न विभागों द्वारा छापेमारी की गई. आरक्षण के कंप्यूटर की जांच की गई. लाईन में लगे तमाम दलालों के गुर्गों को पकड़ा गया. उनकी जेबों से लाखों रुपये बरामद किए गए तथा कई-कई आरक्षित टिकट भी बरामद किए गए. बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर तो सुबह आठ बजे से तत्काल आरक्षण की लाईन में लगने हेतु दलालों के कारिंदे रात आठ बजे ही पहुंच कर लाईन में लग जाते हैं. बिहार में दरभंगा जैसे कई स्टेशनों पर आपको आसानी से ऐसे दलालों के नाम व मोबाईल नंबर मिल जाएंगे जो आपसे टिकट के अग्रिम पैसे तथा एक हज़ार रुपये अतिरिक्त लेकर आपको तत्काल आरक्षण उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था कर देंगे.
सवाल यह है कि सीसीटीवी कैमरे लगने से क्या लाभ तथा पहचान पत्र देखे बिना आख़िरकार कोई रेल कर्मचारी किस प्रकार किसी अनधिकृत व्यक्ति को दूसरे के नाम का टिकट जारी कर देता है. कई जगहों पर तो साफतौर पर लोग यह कहते नज़र आएंगे कि इस पूरी व्यवस्था में दलालों के साथ-साथ रेलवे कर्मचारियों, आरपीएफ तथा जीआर पी व आरक्षण खिडक़ी पर तैनात रिज़र्वेशन क्लर्क आदि सभी का नेटवर्क जुड़ा हुआ है. परंतु उसी रेल विभाग के कुछ कर्मचारी आपको ऐसे भी देखने को मिलेंगे जो यदि अपने कर्तव्यों का पालन करने व रेलवे के नियमों की पालन करने पर तुल जाएं तो अमानवीयता की हदों को भी पार करने में इन्हें कोई आपत्ति नहीं होती.
ऐसी ही एक मिसाल उस समय देखने को मिली जबकि शहीद एक्सप्रेस ट्रेन के एस-3 कोच में एक अविवाहित युवती ने अपना आरक्षण अंबाला से दरभंगा के लिए कराकर गत् 26 अप्रैल को अपनी यात्रा शुरु की. उसके पास कंप्यूटर से निकाला गया ई-टिकट था. वह बिल्कुल अकेली थी तथा आगे जाने के बाद दिल्ली स्टेशन से इसी ट्रेन में उसकी बड़ी बहन ने उसी कंपार्टमेंट में सवार होना था. उसका भी बाकायदा आरक्षण था. इत्तेफाक से अंबाला से सवार युवती के पास उस समय टीटी को दिखाने हेतु कोई पहचान पत्र नहीं था क्योंकि वह यहां अपने रिश्तेदारों के घर आई हुई थी.
उस कोच में विनोद कुमार झा नामक संभवत: भारतीय रेल के सबसे 'होनहार, 'वफादार व 'कर्तव्यनिष्ठ टिकट निरीक्षक ने टिकट की जांच-पड़ताल के दौरान उस युवती से टिकट मांगा. उसने अपना टिकट दिखाया. उसके नाम व उम्र के अनुसार चार्ट में भी उसका नाम मौजूद था. परंतु टीटी महोदय उसके पास पहचान पत्र न होने के कारण उसे ट्रेन से नीचे उतारने तक की धमकी देने लगे. आखिरकार अन्य यात्रियों के हस्तक्षेप के बाद उस टीटी ने यात्री युवती के आरक्षित टिकट को निरस्त कर दिया तथा उससे लगभग सात सौ रुपये वसूलकर नया टिकट बनाकर उसके हाथ में थमा दिया. गौरतलब है कि यही टिकट निरीक्षक आमतौर पर यात्रियों से पैसे वसूल कर उन्हें कोच में बर्थ आबंटित करते देखे जाते हैं जबकि प्रतीक्षारत सूची के यात्री मुंह ताकते रह जाते हैं.
जब ऐसे निरीक्षक अपनी करनी पर आ जाएं तो इन्हें किसी अकेली लडक़ी को ट्रेन से उतारने की धमकी देने या उसका टिकट निरस्त कर उससे सात सौ रुपये वसूलने में भी कोई आपत्ति नहीं होती. अब यदि उसके पास सात सौ रुपये टीटी को देने हेतु न होते तो ज़ाहिर है अपनी जि़द पर अड़ा वह टिकट निरीक्षक उस लडक़ी को चलती ट्रेन से किसी स्टेशन पर भी उतार सकता था. उसके पश्चात उस लडक़ी का क्या हश्र होता टीटी महोदय का इस बात से कोई लेना-देना नहीं था.
खबरें आ रही हैं कि भारतीय रेलवे तीव्र गति से चलने वाली बुलेट ट्रेन को भी अपने नेटवर्क में शामिल करने जा रही है. निश्चित रूप से यह बहुत अच्छी व उत्साहित करने वाली खबर है. परंतु भारतीय रेल के जि़म्मेदारों को यह भी चाहिए कि जिस प्रकार दिल्ली में मैट्रो ट्रेन का संचालन हो रहा है तथा उसी तर्ज़ पर बुलेट ट्रेन व्यवस्था का भी पूरी तरह सुरक्षित संचालन किया जाएगा ठीक उसी प्रकार देश के विकास की जीवन रेखा समझी जाने वाली मौजूदा रेल व्यवस्था को भी पूरी तरह चाक-चौबंद, पूर्णतया सुरक्षित, सभी ज़रूरी सुविधाओं से युक्त, साफ-सुथरी तथा दलालों, असामाजिक तत्वों, भिखारियों, चोर-उचक्कों, लुटेरों आदि से मुक्त कराया जाए.
निर्मल रानी उपभोक्ता मालों की जानकर हैं.
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