गेम ओवर है लेकिन प्रणव मुखर्जी तो अब भी अर्थव्यवस्था से खेल रहे हैं!
गेम ओवर है लेकिन प्रणव मुखर्जी तो अब भी अर्थ व्यवस्था से खेल रहे हैं!देस के भावी राष्ट्रपति और सत्ता वर्ग के सर्वाधिनायक का गेम वित्त मंत्री बतौर खत्म हो गया है। राष्ट्रपति बतौर उनका चुनी जाना अब बस समय का इंतजार है जैसा कि अपने पिता के घर कीर्णाहार दौरे पर उनके बेटे ने कह दिया कि गेम ओवर है और ममता बनर्जी को उनका समर्थन कर देना चाहिए। ममता दीदी कब तक खेलती रहेंगी, यह पता नहीं है। पर प्रणव दादा खूब खेल रहे हैं। मौद्रिक नीतियों के करतब के जरिए ब्याज दर घटाकर कारपोरेट इंडिया का भला वे कर न पाये और न ही गिरते हुए रुपये को थाम सके। पर अब तक जो हो नहीं पाया, रायसिना की ओर कदम बढ़ाते हुए उस अधूरे काम को पूरा करने का संकल्प दोहराया आज उन्होंने।प्रणब मुखर्जी रविवार को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देंगेप्रणब मुखर्जी ने 2009 में वित्त मंत्रालय को ऐसे वक्त में संभाला जब भारत का तेज आर्थिक विकास धीमा पड़ने लगा था। विकास दर करीब सात फीसदी पर आ गई. महंगाई भी आसमान छू रही थी। वित्त मंत्री बने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने पद संभालते ही कहा कि वह विकास दर को तेज बनाए रखेंगे। लेकिन अब जब तीन साल बाद प्रणब इस्तीफा दे रहे हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था का बुरा हाल सबके सामने हैं।सत्तावर्ग ने उनका इस्तेमाल हमेशा संकटमोचक बतौर किया और यह भूमिका उन्होंने खूब निभायी पर जाते जाते यह साबित कर गये कि राजनीतिक दांव पेंच से सत्ता बनाये रखना भले संभव हो, इससे आर्थिक समस्याएं नहीं सुलझतीं।अर्थव्यवस्था के धीमे पड़ने की बात सामने आई, तो उन्होंने कभी मॉनसून को, कभी कच्चे तेल को और अक्सर वैश्विक संकट को जिम्मेदार ठहराया। घटनाक्रम इस बात का गवाह है कि बीते दो साल में रिजर्व बैंक ने 20 से ज्यादा बार मौद्रिक नीति में बदलाव किया। प्रणब के कार्यकाल में हमेशा ऐसा लगा जैसे अर्थव्यवस्था को चलाने की जिम्मेदारी सिर्फ भारतीय रिजर्व बैंक की है।खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था में जब निनानब्वे फीसद जनता बहिष्कृत होकर बाजार की क-पा पर जीने को मजबूर हो और कोई वित्तीय नीति न हो आर्थिक समस्याओं से निजात पाने के लिए सिवाय आर्थिक सुधारों के अलाप से नरसंहार संस्कृति जारी रखने के करतबों के, तब विश्व पुत्र के लिे करने को रह ही क्या जाता है?
राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने आगामी 26 जून को केन्द्रीय वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देने की घोषणा करते हुए शीर्ष पद के लिए तृणमूल कांग्रेस से परोक्ष तौर पर समर्थन मांगा। मुखर्जी ने वीरभूम जिले में अपने पैतृक गांव में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा, 'मैं 26 जून को केन्द्रीय वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दूंगा और कांग्रेस कार्यसमिति से एक-दो दिन में ही इस्तीफा दे दूंगा। इससे पहले सूत्रों ने कहा था कि मुखर्जी के राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन पत्र 28 जून को भरने की उम्मीद है।वित्त मंत्रालय से जाते जाते भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेतों पर चिंता जताते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि सरकार रिजर्व बैंक के गवर्नर के साथ विचार-विमर्श कर बाजार की स्थिति में सुधार हेतु सोमवार को कुछ उपायों की घोषणा करेगी। उन्होंने बताया कि आर्थिक मामलों के विभाग ने रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव से विभिन्न उपायों के संबंध में विचार विमर्श किया है। मुखर्जी ने कहा कि हम ऐसे कुछ कदमों की घोषणा सोमवार को करेंगे जिनसे बाजार में सुधार आएगा।उन्होंने कहा कि जीडीपी गिरकर 6.5 प्रतिशत पर आ गया है। महंगाई का दबाव है और रुपया कमजोर हो रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट आने के संकतों को लेकर कोई संदेह नहीं है। मैं इसे लेकर चिंतित हूं, लेकिन हताश नहीं।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए 30 जून तक नामांकन दाखिल करना है और 19 जुलाई को मतदान होगा। ऐसा दिखता है कि प्रणब मुखर्जी का मुकाबला पीए संगमा से होगा जिन्हें भाजपा के अलावा कई अन्य दलों का समर्थन मिल चुका है। मुखर्जी दो दिन की कोलकाता यात्रा पर है और कयास लगाए जा रहे हैं कि वह यहां तृणमूल कांग्रेस का समर्थन जुटाने आए हैं। एक साथ काम करने की इच्छा जाहिर करने के बाद प्रदेश कांग्रेस की ओर से भी सीएम ममता बनर्जी से प्रणब का समर्थन करने का आग्रह किया गया है।वित्त मंत्री के रूप में आखिरी दौरे पर कोलकाता पहुंचे राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वह देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति से चिंतित जरूर हैं, लेकिन निराश नहीं। उन्होंने भरोसा दिलाया कि रिजर्व बैंक के गवर्नर 25 जून को कुछ बड़े फैसलों की घोषणा करेंगे।इस साल मानसून की बारिश अब तीन फीसदी कम होगी। मौसम विभाग ने शुक्रवार को बारिश का पूर्वानुमान संशोधित किया। उसने अब 96 फीसदी बारिश की उम्मीद जताई है। जबकि पहले 99 फीसदी बारिश का अनुमान व्यक्त किया था। पहले से दबाव झेल रही अर्थव्यवस्था के लिए यह बेहद बुरी खबर है। मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौर ने शुक्रवार को बारिश का संशोधित अनुमान जारी किया।
हालात इतने खराब हैं कि प्रणव दादा के कठोर कदमों के संकेत से आम आदमी की शामत आने वाली है।अर्थ व्यवस्था को थामने के बहाने कारपोरेठ इंडिया को राहत और सहूलियतें देने के फेर में विदा हो रहे वित्त मंत्री ाम आदमी की जेबें काटने का क्या क्या इंतजाम कर चुके हैं, यही देखना बाकी है।डॉलर के लगातार मजबूत होने और रुपये में कमजोरी का नया रिकॉर्ड बनने से भारतीय अर्थव्यवस्था का दम फूलता दिख रहा है। हर दिन एक नया रिकॉर्ड बना रहा रुपया शुक्रवार को 57.26 के स्तर पर पहुंच गया। बात यहीं तक रहती तो कुछ गनीमत थी। लेकिन इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसी मूडी ने भी 15 अहम बैंकों की कर्ज रेटिंग घटा दी है। इसका असर भी डॉलर पर दिख रहा है।अर्थशास्त्रियों ने आशंका जताई है कि रुपये में और गिरावट आ सकती है। यह प्रति डॉलर 60 रुपये के स्तर तक पहुंच सकता है। रुपये को मजबूती देने को लेकर आरबीआई से लेकर भारत सरकार तक सभी के प्रयास लगातार नाकाम होते जा रहे हैं।जानकार डॉलर का स्तर जल्द ही 60 रुपये तक पहुंचने की उम्मीद जता रहे हैं। अब ऐसे में अब सवाल उठता है कि आखिर ये कमजोर रुपया और मजबूत डॉलर आम आदमी की जेब पर कैसे और कितना असर डालेगा? किन मामलों में कमजोर होता रुपया भारतीयों के लिए अच्छा है और कहां इससे नुकसान होगा?ईभारत में उपभोग से जुड़े कई खाद्य पदार्थ विदेशों से मंगाए जाते हैं। वहीं कई घरेलू उत्पादों का जुड़ाव भी डॉलर से होता है। ऐसे में अब जब डॉलर 57 के स्तर को पार कर चुका है, तब भारत में महंगाई की मार झेल रही जनता पर इसका बोझ और बढ़ेगा। कमजोर रुपये से हर जरूरी चीजों के दाम में आग लगने की उम्मीद है। वहीं डॉलर मजबूत होने से आयात में भी भारी कमी आयेगी। ऐसे में मांग की तुलना में पूर्ति कम होने पर महंगाई का मुंह और भी बड़ा हो सकता है। डॉलर के 57 रुपये के स्तर पर पहुंचने का बड़ा असर कच्चे तेल पर होगा। भारत की जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आता है। ऐसे में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने एक दम तय मानी जा रही है। अभी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में सुधार से इसके दाम कम जरूर हुए थे, लेकिन अब इसे ज्यादा समय तक सस्ता रखना मुश्किल ही है।देश में लगभग 90 फीसदी से ज्यादा खाद्य पदार्थो और अन्य जरूरी सामानों के परिवहन के लिए डीजल का ही इस्तेमाल होता है। ऐसे में डीजल महंगा होते ही इन सारी जरूरी चीजों के दाम भी आसमान पर पहुंच जाएंगे। उधर, डॉलर के चढ़ने से बिजली कंपनियां भी परेशान हैं। कंपनियों का कहना है कि रूपए की कमजोरी से गैस आधारित बिजली परियोजनाओं को बिजली की कीमत भी बढ़ानी पड़ सकती है। दडॉलर के मजबूत होने के बाद विदेशों से भारत में पैसा मंगाना फायदेमंद हो गया है। अब 1 डॉलर पर भारतीयों को 57.26 रुपये के आस-पास मिल रहे हैं, जोकि पहले 50 रुपये के अंदर तक ही सीमित था। वहीं जिन भारतीयों के परिचित विदेशों से यहां पैसा भेजते हैं, उन भारतीयों को सबसे ज्यादा मुनाफा मिलेगा।
डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज गिरावट दर्ज की गई है। हफ्ते के अंतिम कारोबार दिन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 85 पैसे की कमजोरी लेकर 57.15 के स्तर पर बंद हुआ है। डॉलर के मुकाबले रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ है। आज के कारोबार में 1 डॉलर रिकॉर्ड 57.30 रुपये तक पहुंचने में कामयाब हो गया है। ये लगातार दूसरा दिन रहा जब रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर गया है।
ऐसे में मुखर्जी ने कहा कि ऐसे समय में जबकि विश्व में उठा पटक जारी है तो भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था इससे अछूती नहीं रह सकती।वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने जनवरी से जून 2012 के दौरान देश में 8 अरब डॉलर का निवेश किया। पिछले साल इसी अवधि में एफआईआई प्रवाह नकारात्मक था।
मुखर्जी ने कहा कि इस साल 46 से 48 अरब डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हुआ है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री के रूप में इस शहर की उनकी यह संभवत: आखिरी यात्रा है।इससे पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को कहा कि सरकार विदेशी निवेश प्रवाह में सुधार के लिये कदम उठा रही है और इसका प्रभाव कुछ समय बाद दिखेगा।
वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच द्वारा उठाये गये मुद्दों के बारे में पूछे जाने पर मुखर्जी ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में हमें उपयुक्त कदम उठाने हैं। हमने पहले ही उपयुक्त पहल कर चुके हैं, इसका नतीजा दिखने लगा है लेकिन इसका प्रभाव दिखने में कुछ समय लगेगा।
फिच ने कल भारत की वित्तीय साख के परिदश्य को सकारात्मक से घटाकर नकारात्मक श्रेणी में डाल दिया। एजेंसी ने इसके लिये भ्रष्टाचार, सुधारों को आगे नहीं बढ़ाना, उच्च मुद्रास्फीति तथा धीमी आर्थिक वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया है। स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एस एंड पी) के बाद यह दूसरी एजेंसी है जिसने भारत की वित्तीय साख घटाई है।
एस एंड पी ने अप्रैल महीने में भारत की रेटिंग स्थिर से नकरात्मक कर दिया था। एजेंसी ने 11 जून को भी चेतावनी दी थी कि भारत बिक्र समूह में पहला देश हो सकता जो गड़बड़ा जाए और उसकी साख निवेश ग्रेड से नीचे जा सकती है।
मुखर्जी ने कहा कि सरकार ने फिच द्वारा जतायी गयी चिंता पर गौर किया है। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा विदेशी पूंजी प्रवाह में कुछ सुधार हुआ है।वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) से जुड़े नियमों में छूट तथा बुनियादी ढांचा ऋण कोष (आईडीएफ) गठित करने के लिये सरकार ने कदम उठाये हैं, इसका परिणाम भी दिखने लगा है।
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने वस्तुत: सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस का उल्लेख करते हुए एक बार फिर उन दलों से समर्थन करने की अपील की, जिन्होंने अब तक उन्हें समर्थन करने के बारे में फैसला नहीं किया है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए प्रणब मुखर्जी पहली बार अपने गृह प्रदेश पश्चिम बंगाल आए हैं। शनिवार को उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात तो नहीं की लेकिन इशारे में उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का समर्थन जरूर मांगा। उन्होंने कहा कि एक सहयोगी दल को छोड़कर संप्रग के सभी सहयोगी दलों ने मेरी उम्मीदवारी का समर्थन किया है। गैर संप्रग भागीदारों यथा समाजवादी पार्टी, बसपा के अलावा माकपा, फॉरवर्ड ब्लॉक, जद यू, शिवसेना ने भी मेरी उम्मीदवारी का समर्थन किया है।
बीरभूम जिले में अपने पैतृक घर के लिए रवाना होने से पहले संवाददाताओं से बातचीत में मुखर्जी ने कहा कि जिन्होंने अब तक फैसला नहीं किया है, मेरी उनसे प्रार्थना है कि वे कृपया संप्रग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करें।
तृणमूल कांग्रेस का नाम लिए बिना मुखर्जी ने कल रात उन दलों के नेतृत्व से भी समर्थन की अपील की थी जिन्होंने उनका समर्थन करने का अब तक फैसला नहीं किया है।
केंद्रीय वित्त मंत्री की उम्मीदवारी का विरोध करने वाली तृणमूल ने एपीजे अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद राष्ट्रपति के लिए किसी उम्मीदवार का समर्थन करने के बारे में अभी फैसला नहीं किया है।
प्रणब मुखर्जी से उनकी अनुभूति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा वह अतीत की याद के साथ अपने गांव वाले घर पर जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मैं अतीत की यादों में डूबा हुआ हूं। मैं अपने गांव में पला-बढ़ा। बुनियादी तौर पर मैं गांव का हूं। मुझे जब भी समय मिलेगा, मैं अपने गांव स्थित घर पर जाउंगा।
बहरहाल नई भर्तियों के मामले में आगामी तीन महीने बहुत उत्साहजनक नहीं रहने वाले हैं। नौकरियां मुहैया कराने वाली वेबसाइट माईहाइरिंग डॉट कॉम के एक सर्वे में कहा गया है कि घरेलू बाजार की अस्थिर हालत को देखते हुए कंपनियां नई नियुक्तियों के मामले में खासा सावधानी बरतने वाली दिख रही हैं।
सर्वे के मुताबिक पिछले वर्ष जुलाई-सितंबर तिमाही में देश का नेट इंप्लायमेंट आउटलुक 39 फीसदी पर था।चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी करीब-करीब यही स्थिति बरकरार रही है। इससे माना जा रहा है कि दूसरी तिमाही के दौरान भी नई नियुक्तियों के मामले में वातावरण स्थिर ही रहेगा। इस सर्वे में देशभर की 3,000 से ज्यादा रोजगार प्रदाता कंपनियों को शामिल किया गया है।
सर्वे के बारे में माईहाइरिंग डॉट कॉम तथा फ्लिकजॉब्स डॉट कॉम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश कुमार ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में नई नियुक्ति संबंधित गतिविधियां स्थिर दिख रही हैं। आने वाली तिमाही के दौरान कंपनियां अपने सभी खाली पदों पर नियुक्ति के मूड में नहीं हैं।हालांकि वे नई नियुक्तियां करेंगी, लेकिन उसकी रफ्तार धीमी रहेगी। कुमार का कहना था कि मौजूदा आर्थिक व बाजार की परिस्थितियां नई नियुक्तियों के अनुकूल नहीं हैं। रोजगार प्रदाता कंपनियां माहौल के सुधरने का इंतजार कर रही हैं।
कुमार के मुताबिक कंपनियां अपने सभी खाली पदों में से 50-60 फीसदी से ज्यादा नियुक्तियां नहीं करना चाह रही हैं। सर्वे का कहना है कि तिमाही आधार पर नेट इंप्लायमेंट आउटलुक में चार फीसदी का मामूली सुधार दिखा है।वहीं सालाना आधार पर भी इंप्लायमेंट आउटलुक में दो फीसदी की मजबूती दिखी है। लेकिन मजबूती के ये आंकड़े इतने कमजोर हैं, कि इनसे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं पाली जा सकती है।
क्षेत्रवार मामले में देश के सभी चार क्षेत्रों के रोजगार प्रदाता चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अच्छे रोजगार की भविष्यवाणी कर रहे हैं। फिर भी, 31 फीसदी नेट इंप्लायमेंट आउटलुक के साथ देश का दक्षिणी क्षेत्र दूसरी तिमाही में रोजगार के नए अवसरों के मामले में सबसे ज्यादा सकारात्मक दिख रहा है। इसके बाद 24 फीसदी नेट इंप्लायमेंट आउटलुक के साथ उत्तरी क्षेत्र दूसरे स्थान पर है। इस कसौटी पर देश का पूर्वी क्षेत्र23 फीसदी के साथ तीसरे, जबकि पश्चिमी क्षेत्र 22 फीसदी के साथ चौथे स्थान पर है।
सर्वे का कहना है कि इन सभी क्षेत्रों ने वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए नए रोजगार के मामले में मजबूती की उम्मीद जाहिर की है। जहां तक सेक्टर-दर-सेक्टर नई नौकरियों का सवाल है, तो वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सभी नौ औद्योगिक सेक्टरों से मजबूती के संकेत मिले हैं। हालांकि इसमें भी आईटी व आईटीईएस 22 फीसदी नेट इंप्लायमेंट आउटलुक के साथ सबसे आगे रहा है। नए रोजगार के मामले में एफएमसीजी सेक्टर ने दूसरा स्थान हासिल किया है।
सर्वे का सच
- चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में नई नियुक्ति संबंधित गतिविधियां स्थिर दिख रही हैं
- कंपनियां अपने सभी खाली पदों में से 50-60 फीसदी से ज्यादा नियुक्तियां नहीं करना चाह रही हैं
- तिमाही आधार पर नेट इंप्लायमेंट आउटलुक में चार फीसदी, जबकि सालाना आधार पर दो फीसदी मजबूती
- 31 फीसदी नेट इंप्लायमेंट आउटलुक के साथ देश का दक्षिणी क्षेत्र सबसे ज्यादा सकारात्मक
- वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सभी नौ औद्योगिक सेक्टरों से मजबूती के संकेत
- आईटी व आईटीईएस 22 फीसदी नेट इंप्लायमेंट आउटलुक के साथ सबसे आगे रहा है
- वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के रायसीना हिल्स जाने की सूरत में अगला वित्तमंत्री कौन होगा इस पर बहस जारी है। लेकिन इस बीच वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु के मुताबिक वित्त मंत्रालय यदि प्रधानमंत्री के ही पास रहता है तो यह देश के लिए बहुत अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुशल अर्थशास्त्री हैं और 1991 में उन्होंने आर्थिक सुधारों को गति दी थी। उन्होंने मल्टीब्रांड सेक्टर में सरकार के एफडीआई के प्रस्ताव को भी सराहा।
उन्होंने कहा कि अगला वित्तमंत्री कौन होगा यह कहना अभी संभव नहीं है क्योंकि इसका निर्णय राजनीतिक स्तर पर होता है। उन्होंने माना कि जो भी व्यक्ति इस पद पर आसीन हो वह पूरी तरह से इसके काबिल होना चाहिए। उन्होंने यह भी माना कि गठबंधन राजनीति से सरकार के निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
बदलती और खराब होती भारतीय अर्थव्यवस्था पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पिछली तिमाही में आर्थिक विकास दर की वृद्धि 5.3 प्रतिशत पर आ गई थी। उन्होंने कहा कि घरेलू स्तर पर भी समस्याएं हैं। लेकिन इसे भी स्वीकार करना चाहिए कि ग्लोबल परिस्थितियों की वजह से भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के पास अवसर है कि वह अन्य घटक दलों के साथ मिलकर सुधार को आगे बढ़ाए।
इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक सुधारों पर भी बात की। उन्होंने नौकरशाही को यह मानना चाहिए कि वह राष्ट्रहित में अपना काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार में सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाते हैं। इसमें कुछ मतभेद हो सकते हैं।
रुपये में लगातार हो रही गिरावट के विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति की वर्ष 1990 से तुलना नहीं की जा सकती है। 1990 में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी लगभग शून्य थी, लेकिन वर्तमान में यह चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पाच अरब डालर से भी कम था, लेकिन अभी यह 300 अरब डॉलर के आसपास है। निर्यात भी बढ़ रहा है।
उन्होंने मल्टी ब्राड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआई] की पुरजोर वकालत भी की है। उन्होंने कहा कि इससे किसानों को ही फायदा होगा।
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