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Thursday, June 21, 2012

भाजपा, अल्पसंख्यक और 2014 के चुनाव

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भाजपा, अल्पसंख्यक और 2014 के चुनाव

भाजपा, अल्पसंख्यक और 2014 के चुनाव

By  | June 19, 2012 at 4:13 pm | No comments | आपकी नज़र | Tags: 

डाॅ. असगर अली इंजीनियर

मुंबई में हाल में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने कहा कि भाजपा को 2014 का चुनाव जीतने के लिए अल्पसंख्यकों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करना चाहिए। गोवा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गोवा में पार्टी, अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल करने में सफल रही और सत्ता हासिल कर सकी। उन्होंने कहा कि गोवा के अनुभव से सीख लेकर पार्टी को पूरे देश में अल्पसंख्यकांे को अपना समर्थक बनाने के लिए अभियान चलाना चाहिए।
गडकरी, जिन्हें कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा की कमान सौंपी है, शायद नन्हंे से गोवा के चुनाव और पूरे भारत के आमचुनाव मंे अंतर नहीं समझ पा रहे हैं। गोवा में मात्र कुछ विशिष्ट समस्याएं हैं जबकि पूरा भारत, जिसकी आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 15 फीसदी है, इतनी विविधताओं और जटिलताओं से भरा हुआ है कि गोवा से उसकी तुलना करना हास्यास्पद ही कहा जा सकता है। दूसरे, गोवा के ईसाई अल्पसंख्यकों के भाजपा के प्रति दृष्टिकोण की मुसलमानों के भाजपा के प्रति नजरिए से तुलना नहीं की जा सकती। भाजपा ने गोवा के ईसाईयों के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया है। इसके विपरीत, भारतीय मुसलमानों की नजरों में भाजपा उनकी अपराधी है।
भाजपा सन् 2014 में होने वाले आमचुनाव में सत्ता में आने के लिए छटपटा रही है। पिछले
आमचुनाव में भाजपा को 19 प्रतिशत वोट मिले थे परंतु कांग्रेस, जिसकी वोटों मे हिस्सेदारी 27 प्रतिशत थी, ने अन्य दलों से गठबंधन कर यूपीए-2 सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली। भाजपा और कांग्रेस को प्राप्त मतों के बीच केवल 8 प्रतिशत का अंतर था और भाजपा इस अंतर को पाटने के लिए बेताब है। भाजपा जानती है कि अगर उसे मुसलमानों के एक तबके का भी समर्थन मिल गया तो वह इस अंतर को बहुत आसानी से पाट सकेगी।
दुर्भाग्यवश, भाजपा के चुनावी गणित से भी उसकी साम्प्रदायिक सोच उसी तरह झलकती है जैसी कि उसकी अन्य नीतियों और कार्यक्रमों से। भाजपा शायद यह मानती है कि देश के पूरे मुसलमान और पूरे हिन्दू एकसार समुदाय हैं और उनके सभी सदस्य एक ही पार्टी या गठबंधन का समर्थन करते हैं। भाजपा की शायद यह मान्यता है कि केवल साम्प्रदायिक दृष्टिकोण ही मुसलमानों और हिन्दुओं की राजनैतिक पसंद को निर्धारित करता है और इसमें उनके क्षेत्रीय, भाषाई और वर्गीय हितों की कोई भूमिका नहीं होती। भाजपा हमेशा से दिन-रात मुसलमानों के खिलाफ विषवमन इस उम्मीद से करती आ रही है कि इससे मतदाताओं का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो जावेगा, हिन्दू उसके झंडे तले आ जावेंगे और उनके मतों के सहारे वह सत्ता पर काबिज हो जाएगी। भारत को स्वतंत्र हुए आज 65 साल हो चुके हैं परंतु इस अवधि में एक बार भी भाजपा का यह स्वप्न पूरा नहीं हो सका है।
सन् 1975 में भाजपा (जब वह जनसंघ थी) श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाली जनता पार्टी का हिस्सा बन गई। उसने गांधीवादी समाजवाद को अपनी नीति बताया और यह शपथ ली कि वह कभी साम्प्रदायिक राजनीति का सहारा नहीं लेगी। परंतु जनता पार्टी के भाजपाई सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता त्यागने से इंकार कर दिया और दोहरी सदस्यता के इसी मुद्दे पर जनता पार्टी बिखर गई। इसके बाद सन् 1980 के बाद जनसंघ, भाजपा कहलाने लगा और उसने एक बार फिर अपना साम्प्रदायिक दुष्प्रचार शुरू कर दिया।
जनता पार्टी प्रयोग असफल हो जाने के बाद भाजपा और अधिक साम्प्रदायिक हो गई। उसने सन् 1980 के दशक में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे को उछालकर भारत का इस हद तक साम्प्रदायिकीकरण कर दिया जितना कि उसके पहले कभी न हुआ था। उसका यह वादा खोखला साबित हुआ कि वह साम्प्रदायिकता का सहारा नहीं लेगी। यह स्पष्ट हो गया कि जनता पार्टी काल में तत्कालीन जनसंघ द्वारा जो कुछ किया और कहा गया था वह शुद्ध अवसरवादी राजनीति थी। भाजपा बहुत दिनों तक धर्मनिरपेक्ष होने का नाटक भी नहीं कर पाई। यह तो साफ है कि जिस दौर में वह गांधीवादी समाजवाद की बात करती थी उस समय भी उसके असली इरादे कुछ और ही थे। उसने अपना रूप केवल रणनीतिक कारणों से बदला था। उसकी आंतरिक सोच में कोई बदलाव नहीं आया था।
हर ऐसे कार्यक्रम और नीति का भाजपा भरसक विरोध करती है जिससे मुसलमानों का जरा सा भी लाभ पहुंचने की संभावना हो। वह सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने का अपने पुराने नार,े "मुसलमानों का तुष्टिकरण बंद हो", के नाम पर विरोध कर रही है। भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार, मुस्लिम बच्चों को छात्रवृत्ति देने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा भेजी गई धनराशि का इस आधार पर उपयोग नहीं कर रही है कि वह धर्म के नाम पर भेदभाव में विश्वास नहीं रखती। कर्नाटक और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकारों ने गौहत्या के विरूद्ध अत्यंत कड़े कानून बनाए हैं जिनके निशाने पर भी मुख्यतः मुसलमान हैं। ये कानून पुलिस को मुसलमानों को जबरन परेशान करने का एक और हथियार मुहैय्या कराएंगे। मैं यह नहीं कहता कि मुसलमानों को गौमांस खाना चाहिए-जैसा कि जमियतुलउलेमा ने भी मुसलमानों को सलाह दी है, उन्हें अपनी ओर से यह घोषणा कर देनी चाहिए कि वे हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए गौमांस का भक्षण नहीं करेंगे। परंतु उन्हें एक कानून बनाकर उनकी पसंद के भोजन से वंचित करना और उन्हें पुलिस के हाथों प्रताडि़त होने के लिए छोड़ देना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता। गौहत्या के विरूद्ध बनाए गए कानून अत्यंत कड़े हैं और इनका
विरोध वे दलित समुदाय भी कर रहे हैं जो परंपरागत रूप से गौमांस भक्षण करते आए हैं। हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय के दलित छात्रों ने अभी हाल मंे बीफ फेस्टिवल का विश्वविद्यालय प्रांगण में आयोजन किया था।
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में सूर्य नमस्कार जैसे विशुद्ध हिन्दू क्रियाकलापों को शामिल कर दिया है। उसे मुसलमानों की भावनाओं की तनिक भी चिंता नहीं है। जब भी भाजपा सत्ता में आती है वह अन्य समुदायों पर हिन्दू परंपराएं और कर्मकाण्ड लादने की कोशिश करती है। ऐसा नहीं है कि हिन्दू परंपराओं और कर्मकाण्डों में कुछ भी गलत है परंतु किसी समुदाय की भावनाओं की परवाह न करते हुए उस पर कुछ भी लादा जाना प्रजातंात्रिक मूल्यांे का हनन ही कहा जा सकता है।
संघ परिवार का प्रजातंत्र से कोई लेना-देना नहीं है। गुजरात की पाठ्यपुस्तकों में हिटलर को  एक महान व्यक्ति बताया गया है। राजस्थान में जब भाजपा सत्ता में थी, उस समय पाठ्यपुस्तकों में फासीवाद का जमकर महिमामंडन किया गया था। यह तर्क भी दिया गया था कि फासीवाद, भारत के लिए अत्यंत उपयुक्त है क्योंकि इस शासन व्यवस्था में नेता सही समय पर सही निर्णय ले सकता है। यह जानकर आपको धक्का लग सकता है परंतु यह सच है। मैंने इस ओर तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिंह का ध्यान आकर्षित किया था और उन्हें भी यह विश्वास नहीं हुआ था कि किसी भारतीय पाठ्यपुस्तक में फासीवाद को सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था बताया जा सकता है। फासीवाद और नाजीवाद- ये दोनों राजनैतिक विचारधाराएं अल्पसंख्यक-विरोधी हैं और धार्मिक बहुवाद के प्रति अत्यंत असहिष्णु। पाठ्यपुस्तकों में इन विचारधाराओं की प्रशंसा की जाना गैर-प्रजातांत्रिक है और हमारे देश की सहिष्णुता और बहुवाद की सदियों पुरानी परंपरा के खिलाफ है। यह असंवैधानिक भी है।
संघ परिवार, भारत के स्वतंत्र होने के समय से ही, मुसलमानों के विरूद्ध हिंसा भड़काता रहा है। वह अक्सर यह आरोप लगाता है कि मुसलमान भारत के प्रति वफादार नहीं हैं और वे पाकिस्तान से प्रेम करते हैं। वह कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के सारे मुसलमानों की देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाता आ रहा है। इससे बड़ा झूठ शायद ही कोई हो सकता है।
गुजरात के सन् 2002 के कत्लेआम की जिम्मेदारी लेने तक से नरेन्द्र मोदी ने साफ इंकार कर दिया। -ख्ेेाद प्रकट करने या मुसलमानों से क्षमायाचना करने का तो विचार भी संभवतः उनके मन में नहीं आया होगा। उल्टे, वे मुसलमानों से "भूल जाओ और आगे बढ़ो" की नीति अपनाने की अपेक्षा करते हैं। मुसलमानों से माफी मांगने की बजाए वे "सद्भावना अभियान" चला रहे हैं जिसके अंतर्गत उन्होंने गुजरात के कई जिला मुख्यालयों में एक दिन का उपवास रखा। गुजरात के मुसलमानों ने मोदी के बिछाए इस जाल में फंसने से इंकार कर दिया। सद्भावना रैलियों में मुसलमान शामिल नहीं हुए। केवल बोहरा मुसलमानों ने इनमें भाग लिया क्योंकि उनके
धर्मप्रमुख सैय्यदाना मोहम्मद बुरहानुद्दीन अपने निहित स्वार्थों के चलते मोदी को प्रसन्न रखना चाहते हैं (गुजरात की वक्फ संपत्तियों और वहां स्थित मजारों से सैय्यदाना को भारी-भरकम आय होती है जिसका कोई हिसाब नहीं रखा जाता)।
अब तो नरेन्द्र मोदी के प्रतिद्वंदी श्री संजय जोशी तक उनपर आरोप लगा रहे हैं कि मोदी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए सन् 2002 में गुजरात में दंगे करवाए। मोदी के समर्थकों ने एक पोस्टर जारी किया है जिसमें कहा गया है, "मैं आरएसएस का सदस्य हूं। मैं जमीनों की खरीद-फरोख्त नहीं करता। मैं सत्ता की खातिर कत्लेआम नहीं करवाता। मैं सत्ता के लिए रंग नहीं बदलता (सद्भावना रैलियों के संदर्भ में)"।
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल ने भी नरेन्द्र मोदी पर हल्ला बोल दिया है। उन्होंने पटेल बिरादरी से अपील की है कि वह मोदी के खिलाफ उठ खड़ी हो और अगले विधानसभा चुनाव में उनकी हार सुनिश्चित करे। "पार्टी विथ ए डिफरेन्स" इन दिनों "पार्टी विथ डिफरेन्सिस" बन गई है। भाजपा के नेताओं में मतभेद तो हैं हीं, मनभेद भी हैं। भाजपा, कांग्रेस से अधिक नहीं तो कम से कम उसके बराबर भ्रष्ट है। भाजपा "भ्रष्ट कांग्रेस" को हराने के लिए अन्ना का समर्थन कर रही है और अन्ना भी केवल कांग्रेस क® निशाना बना रहे हैं। भाजपाईयों के भ्रष्टाचार के बारे में वे अपना मुंह तक नहीं खोलते।
अगर भाजपा सचमुच मुसलमानों का समर्थन चाहती है तो उसे सबसे पहले बाबरी मस्जिद के ढ़हाए जाने के लिए मुसलमानों और पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए और इस बात पर सहमति देनी चाहिए कि बाबरी मस्जिद का उसी स्थान पर पुनर्निमाण हो जहां वह पहले थी। भाजपा को नरेन्द्र मोदी को इस बात के लिए मजबूूर करना चाहिए कि वे सन् 2002 के कत्लेआम के लिए मुसलमानों से माफी मांगे। भाजपा को देश को यह विश्वास दिलाना होगा कि आज के बाद वह साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक हिंसा का सहारा नहीं लेगी और किसी भी स्थिति में देश को धोखा नहीं देगी।
इससे भाजपा के पाप नहीं धुल जावेंगे परंतु इससे मेलमिलाप का रास्ता खुलेगा और हम सब-हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई व आदिवासी-मिलजुलकर भारतीय राष्ट्र को आगे बढ़ा सकेंगे और उसे एक शांतिपूर्ण व समृद्ध राष्ट्र बना सकेंगे। भाजपा को कंधमाल (उड़ीसा) में हुए दंगों के लिए ईसाईयों से भी क्षमायाचना करनी चाहिए। तभी हम एक ऐसा सच्चा राष्ट्र बन सकेंगे जो धर्म, जाति और नस्ल के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करता।
ऐसा होने पर अल्पसंख्यक भाजपा को सत्ता में आने का मौका अवश्य देंगे बशर्ते वह अपने आश्वासनों से पीछे न हटे और सन् 70 के दशक की तरह, देश से विश्वासघात न करे। दक्षिण अफ्रीका में ठीक इसी रास्ते पर चल कर शांति और सद्भाव का वातावरण निर्मित किया गया था। सत्य, भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और क्षमाभाव, प्राचीन भारत की अमूल्य विरासत है। अगर भाजपा को सचमुच भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है तो उसे इस राह पर चलने में संकोच नहीं होना चाहिए।
मुसलमानों की वक्फ संपत्तियां बचाने जैसे सतही वादों-जैसा कि श्री नितिन गडकरी ने किया है- से मुसलमान भाजपा के झंडे तले नहीं आएंगे। मुसलमानों ने भाजपा और उसकी साम्प्रदायिक राजनीति के चलते पिछले साठ सालों में बहुत दुःख झेले हैं। केवल वक्फ संपत्तियों को बचाने से वे ये सब नहीं भूल जाएंगे। भाजपा नेताओं को हम यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस, केवल भाजपा का भय दिखाकर, मुसलमानों के वोट नहीं पा सकेगी। उसकी साम्प्रादयिक सोच का भी पर्दाफाश हो सकेगा और उसे भी मुसलमानों का दिल जीतने के लिए मेहनत करनी होगी। तभी इन दो महान राजनैतिक दलों के बीच सच्ची प्रतियोगिता हो सकेगी और देश के सभी नागरिकों के बीच एकता का भाव पनपेगा। यही हमारी राजनीति का अंतिम लक्ष्य है। हमारा देश जिंदाबाद, हमारी एकता अमर रहे! (लेखक मुंबई स्थित सेंटर फाॅर स्टडी आॅफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म के संयोजक हैं, जाने-माने इस्लामिक विद्वान हैं अंौर कई दशकों से साम्प्रदायिकता व संकीर्णता के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं।

मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित

डॉ. असगर अली इंजीनियर (लेखक मुंबई स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म के संयोजक हैं, जाने-माने इस्लामिक विद्वान हैं और कई दशकों से साम्प्रदायिकता व संकीर्णता के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। बकौल असगर साहब- "I was told by my father who was a priest that it was the basic duty of a Muslim to establish peace on earth. ... I soon came to the conclusion that it was not religion but misuse of religion and politicising of religion, which was the main cause of communal violence.")

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