बात पते की
यह सबके लिये चेतावनी है
प्रशांत भूषण
http://raviwar.com/news/665_2g-scam-muck-prashant-bhushan.shtml
टेलीकॉम कंपनियों को जनवरी 2008 और उसके बाद मिले 2जी के सभी 122 लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है. सर्वोच्च अदालत ने 2जी लाइसेंस पाने वाली कंपनियों पर जुर्माना भी लगाया है. इस फैसले से साबित हो गया है कि तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा ने टू जी स्पेक्ट्रम का आवंटन नियमों को ताक पर रखकर किया था.
इस आवंटन में कुछ कॉरपोरेट घरानों से मिलीभगत कर सरकारी राजस्व को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया गया था. 2008 में इस मसले पर यूपीए सरकार ने जांच कराने के बजाय राजा को क्लीन चिट दे दी थी, लेकिन कैग रिपोर्ट से घोटाले की बात सामने आयी और मामला अदालत में पहुंचने के बाद राजा को इस्तीफ़ा देना पड़ा. सरकार तो शुरू से कैग रिपोर्ट को भी गलत ठहरा रही थी, लेकिन शीर्ष अदालत के लाइसेंस रद्द करने के फैसले से स्पष्ट हो गया कि 2008 में अपनायी गयी 'पहले आओ, पहले पाओ' की प्रक्रिया अवैध थी.
अब कोर्ट ने चार महीने के भीतर इन लाइसेंसों की बाजार मूल्य पर नीलामी कराने का आदेश दिया है. यह फैसला सरकार के लिए बड़ा झटका है, लेकिन इससे पहली बार संभावना बनी है कि भ्रष्टाचार के कारण देश के राजस्व को हुए भारी नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो सकेगी. देश में भ्रष्टाचार के मामले में राजस्व को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कोर्ट ने पहली बार ऐसा कड़ा आदेश दिया है.
इससे पहले दिल्ली हाइकोर्ट ने भी 2007-08 में रेडियो वेव लाइसेंस आवंटन के लिए 2001 की कीमतों को आधार बनाये जाने की नीति को खारिज कर दिया था, फिर भी दूरसंचार मंत्रालय के मुखिया ए राजा द्वारा बहुमूल्य स्पेक्ट्रम अपनी पसंदीदा कंपनियों को औने-पौने दामों में देने के फैसले पर यूपीए सरकार ने दोबारा विचार करने की जरूरत नहीं समझी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवंटन रद्द करने से मौजूदा टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल के इस दावे की भी हवा निकल गयी है कि इससे राजस्व को कोई नुकसान नहीं हुआ था.
यह बात भी साफ है कि ए राजा अकेले इतने बड़े फैसले नहीं ले सकते थे. इतने बड़े पैमाने पर गलत तरीके से लाइसेंस आवंटित करने के लिए सिर्फ़ राजा नहीं, पूरी सरकार जिम्मेवार है. सरकार शुरू से ही टेलीकॉम घोटाले को उजागर नहीं होने देना चाहती थी. राजा की भूमिका संदिग्ध होने के बावजूद उन्हें दोबारा वही मंत्रालय सौंपा गया, ताकि वे सबूतों को नष्ट कर सकें. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की कारगुजारी को लोगों को सामने उजागर कर दिया है.
उदारीकरण के बाद भ्रष्टाचार के मामलों में लगातार तेजी आयी है. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उम्मीद जगी है कि कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने की सरकारी नीतियों पर रोक लगेगी. टू जी लाइसेंस रद्द करने का फैसला देश में भ्रष्टाचार के मामलों की मौजूदा जांच प्रक्रिया में भी व्यापक बदलाव लाने में सहायक होगा और भविष्य में बड़े भ्रष्टाचार के मामलों के लिए मिसाल के तौर पर पेश किया जायेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ जाहिर कर दिया है कि अब कॉरपोरेट और निजी कंपनियों को अवैध तरीके से लाभ पहुंचाने पर ऐसा करने वालों को सजा भुगतनी होगी. खासकर टेलीकॉम और खनन लाइसेंस में कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने की नीतियों से देश को अरबों रुपये की चपत लग चुकी है.
आम आदमी की कीमत पर केवल कुछ लोग देश के संसाधनों का दोहन अपने लाभ के लिए कर रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कॉरपोरेट लूट के सिलसिले पर कुछ हद तक रोक लगेगी. साथ ही देश में आर्थिक विकास के नाम पर जिस प्रकार निजी कंपनियों को जिस तरह मनमानी रियायतें दी जा रही थी, उस प्रक्रिया में भी बदलाव आयेगा. आर्थिक विकास और विदेशी निवेश के नाम पर सरकारी संसाधनों की लूट की इजाजत नहीं दी जा सकती. शीर्ष अदालत का फैसला इस कुचक्र को तोड़ने में सहायक होगा.
देश भ्रष्टाचार को अब और बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है. हालांकि जन लोकपाल के मसले पर पिछले साल जिस तरह लोग सड़कों पर उतरे, उससे पहले ही जाहिर हो गया था कि आम लोग अब भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना चाहते हैं.
अकसर देखा जाता था कि भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में जांच का कुछ भी नतीजा नहीं निकल पाता था. सीबीआई सरकार के इशारे पर जांच की गति तय करती थी. बोफ़ोर्स से लेकर अन्य घोटालों की स्थिति से हम सब वाकिफ़ हैं. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार के मामलों में सख्त फैसले सुना रहा है. टू जी स्पेक्ट्रम और कालाधन मामले की जांच शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के कारण ही आज इस मुकाम पर पहुंच पायी है. वरना 1991 के बाद टेलीकॉम से लेकर रक्षा मंत्रालय तक से भ्रष्टाचार की खबरें आती रही हैं.
पारदर्शी नीतियों से ही भ्रष्टाचार पर रोक लग सकती है. इस फैसले से उम्मीद है कि टेलीकॉम नीति और आर्थिक नीतियों में पारदर्शिता आयेगी. फैसले ने महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को भी संदेश दिया है कि भ्रष्टाचार सामने आने पर उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. यही नहीं, अब कंपनियों को भी अवैध तरीके से लाभ पाने की कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा.
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की निगरानी एसआइटी से कराने की याचिका खारिज कर दी है. लेकिन अदालत ने कहा है कि सीबीआइ को इस मामले की स्थिति रिपोर्ट सीवीसी को देनी होगी और सीवीसी अदालत को रिपोर्ट देगा. अब इस मामले में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए. संभवतः इस मसले पर सीबीआइ की विशेष अदालत कोई महत्वपूर्ण निर्णय दे दे.
यह फैसला केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारों के लिए भी चेतावनी है. संसाधनों के आवंटन में किसी खास पक्ष को लाभ पहुंचाने की नीति का खामियाजा सरकार के साथ ही लाभ पाने वालों को भी चुकाना होगा. उम्मीद करें कि देश का राजनीतिक वर्ग इससे सबक लेगा.
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