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Friday, March 23, 2012

बहाना ईंधन संकट, कालाधन और घोटालों की सरकार खाल बचाने की फिराक में पचानब्वे फीसद जनता का सत्यानाश करने पर तुली!

बहाना ईंधन संकट, कालाधन और घोटालों की सरकार खाल बचाने की फिराक में पचानब्वे फीसद जनता का सत्यानाश करने पर तुली!
​​
पलाश विश्वास

बहाना ईंधन संकट, कालाधन और घोटालों की सरकार खाल बचाने की फिराक में पचानब्वे फीसद जनता का सत्यानाश करने पर तुली।!बजट में झांकी भी नहीं है। बजट का इस्तेमाल वित्तीय और मौद्रिक नातियों को दिशा देने और अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के बजाय कारपोरेट इंडिया को खुश करने के लिए किया गया। जो टैक्स लगाये गये, उससे आम जनता की कमर टूट गयी। पर जिस सब्सिडी का हल्ला​ ​ मचाया गया, जिसे कम करने के बहाने गैरकानूनी आधार कार्ड को वैधता दी गयी, जनता को दी जाने वाली उस सब्सिडी से दोगुणी​​ सब्सिडी कंपनियों को दी गयी। कंपनियों पर टैक्स में इजाफा भी नहीं हुआ। राजकोषीय गाटा को छुपाने के लिए प्रभावी राजकोषीय घाटा​ ​ का छलावा पेश करके एक मुश्त कारपोरेट इंडिया और आम जनता को ठगा गया। टू जी स्पेक्ट्म का मामला ठंडा नहीं पड़ा कि छह गुणा बड़ा घोटाला कोयले का आ गया और प्रधानमंत्री के चेहरे पर पुते कालिख लीपने में लग गया सत्तावर्ग। सरकार की स्थिरता दांव पर है। ममता ने ​​मनमोहन को बाजार में नंगा दौड़ा दिया। मुलायम सिंह से सरकार को बचा लेने की उम्मीद थी। पर वे मध्यावधि चुनाव का राग अलापने​ ​ लगे। अब जाकर कहीं बजट से पहले पीएफ की ब्याज दर घटाकर और बीमा पर टैक्स लगाकर कर्मचारियों ककी ऐसी तैसी करने के बाद ​​सरकार कर्मचारियों को रिझाने लगी। कई तरह के कयासों के बीच केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में 7 फीसदी की बढ़ोत्तरी को मंजूरी दे दी है। इस इजाफे के बाद अब केंद्रीय कर्मचारियों को 65 फीसदी महंगाई भत्ता मिलेगा। अभी कर्मचारियो का महंगाई भत्ता उनके मूल वेतन का 58 फीसदी ही है। सरकार के इस फैसले से तकरीबन 60 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों को फायदा मिलेगा।

मंहगाई भत्ता बढ़ा तो दिया पर पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने की तैयारी है। सरकारी तेल कंपनियां विनिवेश की पटरी पर है तो पेट्रोल की कीमते बढ़ाकर, सब्सिडी घटाकर और डीजल को डीकंट्रोल करके सरकार कर्मचारियों का क्या भला करेगी और आम जनता​ ​ को २८ रुपये रोजाना आय वाली गरीबी रेखा से कैसे ऊपर उठायेगी , इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फिर दोहराया है कि सरकार गैस और एनर्जी सेक्टर में बड़े पैमाने पर सुधार करेगी।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मानना है कि बड़ी खोज करने वाली कंपनियों को सही दाम और फायदा मिलना चाहिए। पर वो ये कहने से भी नहीं चूके कोई ना कोई सरकारी कंट्रोल भी जरूरी है।मनमोहन सिंह का कहना है कि गैस की खोज के लिए भारत में अब तक 14 अरब डॉलर का निवेश हो चुका है। वहीं साल 2013 तक शेल गैस एक्सप्लोरेशन पॉलिसी अमल में आ जाएगी।प्रधानमंत्री के मुताबिक गैस सेक्टर में सुधार के लिए सरकार ने गैस प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए गैस प्राइसिंग की नई नीति बनाई। वहीं गैस इंडस्ट्री की फिक्र खत्म करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं।इसके अलावा गेल इंडिया साल 2014 तक अपने गैस पाइपलाइन विस्तार को 1,000 किलोमीटर से बढ़ाकर 14,500 किलोमीटर करेगा। वहीं साल 2014 तक प्राइवेट कंपनियां 5,000 किलोमीटर की पाइपलाइन डालेंगी। सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना खत्म होने तक 30,000 किलोमीटर पाइपलाइन की योजना तय की है।

केजी-डी6 में रिलायंस इंडस्ट्रीज से गैस उत्पादन रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। ताजा हालात ये हैं कि कंपनी ने 6 कुएं बंद कर दिए हैं। मार्च में गैस उत्पादन 28 एमएमएससीएमडी पर सबसे निचले स्तर पर पहुंचा गया है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने ये जानकारी पेट्रोलियम मंत्रालय को 4 मार्च को खत्म हफ्ते में दी गई स्टेटस रिपोर्ट में दी है। कंपनी ने मार्च में 34.5 एमएमएससीएमडी गैस का प्रोडक्शन होने का अनुमान जताया था लेकिन ये अनुमान से काफी पिछड़ गई। कंपनी के शेयर में भी गैस प्रोडक्शन घटने का साफ असर देखने को मिला।

केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा के फॉर्मूले पर फिर से विचार करने की घोषणा की है। सरकार ने कहा है कि वो एक विशेषज्ञ समूह का गठन करेगी जो देश में गरीबी आकलन के लिए पुराने तरीकों पर पुनर्विचार कर नए रास्ते सुझाएगा।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को कहा, हमें गरीबी को मापने के लिए एक बहुआयामी तरीका अपनाना होगा। तेंदुलकर कमिटी की रिपोर्ट में में सभी कारक सम्मिलित नहीं है और वो संतोषजनक नहीं है। हालांकि सरकार ने देश में गरीबी आकलन के लिए अभी तक गठित कई नए पुराने ऐसे समूहों के बाद एक अन्य समूह के गठन की इस घोषणा को चल रहे मौजूदा विवाद से अलग करते हुए कहा है कि इसके गठन का फैसला पिछले साल दिसंबर में ही ले लिया गया था, लेकिन माना जा रहा है कि सरकार खुद ही गरीबी आकलन के मौजूदा फार्मूले (मुख्यत: तेंदुलकर समिति की सिफारिशों के आधार पर बने) में कई कमियां देख रही है। ऊर्जा क्षेत्र में गहराए विवादों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के लिए सरकारी और नियामक निरीक्षण जरूरी है। उन्होंने नियामक परिवेश में पारदर्शिता लाए जाने का भी आश्वासन दिया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आपूर्ति में विस्तार के लिए उचित ऊर्जा कीमतें अनिवार्य हैं।

सरकार में शामिल राजनीतिक दलों के मध्य चल रही खींचतान को देखते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा चुनाव समय से पहले होने की संभावना जताई है।  लखनऊ में लोहिया पार्क, गोमती नगर में डा. राम मनोहर लोहिया की 102वीं जयंती पर शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में सपा प्रमुख ने बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधन में कहा कि 2014 के चुनाव का कोई भरोसा नहीं, कब हो जाएं।हालांकि सरकार ने लोकपाल विधेयक के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को लेकर व्याप्त मतभेद लगभग दूर होने का दावा किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात की और इस दौरान तय किया गया कि बजट सत्र के दूसरे हिस्से में इस विधेयक पर विचार किया जा सकता है। लोकपाल विधेयक से लोकायुक्त के प्रावधान को हटाने को लेकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के सहयोगियों और विपक्ष के बीच लगभग सहमति बन गई है।ऐसे माहौल में लोगों को ऑटो एवं घरेलू ईंधन की कीमतों में एक बार फिर वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि कच्चे तेल के बढ़ते दाम और सरकारी तेल विपणन कम्पनियों (ओएमसी) के दबाव के चलते सरकार ईंधन के दामों की समीक्षा करने पर विचार कर रही है।

सीएजी की रिपोर्ट लीक होने के बाद विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक कोयले की खदानों को सस्ते दामों में बांटने से सरकारी खजाने को को 10.7 करोड़ लाख रुपये का चूना लगा है। वहीं जानकारी के मुताबिक इस बंदरबाट के पीछे करीब 100 निजी और सरकारी कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया है।

2जी घोटाले पर उठा विरोध अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हो पाया है और अब सरकार कोयला घोटाले में घिर गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सीएजी ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में आरोप लगाए हैं कि सरकार ने 2004 से 2009 के बीच कोयले की खदानों की बंदरबांट की जिससे देश के सरकारी खजाने को करीब 11 लाख करोड़ रुपये का बड़ा नुकसान हुआ है।

राजनीतिक दलों के लोकपाल के मुद्दे पर आम सहमति बनाने में असफल रहने के बीच अन्ना हजारे ने सरकारी 'बेकार विधेयक' को वापस लेने की अपनी मांग आज दोहरायी
क्योंकि उनके अनुसार भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कमजोर कानून का कोई मतलब नहीं है। हजारे ने कहा, ''आज सर्वदलीय बैठक थी लेकिन पार्टियों के बीच आमसहमति बनाने में असफल रहने के चलते कोई निर्णय नहीं किया गया। अब हमारा मानना है कि सरकार लोकपाल लाये या नहीं हम जनता की संसद में जाएंगे।''उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे पर लोगों को जागरुक करने के लिए देश का दौरा करेंगे। उन्होंने कहा, ''सरकार का लोकपाल विधेयक बेकार है। यह भ्रष्टाचार समाप्त नहीं करेगा। ऐसा कानून लाने का कोई मतलब नहीं है।''


केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल एस. रेड्डी ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा कि हमारे मंत्रालय की सोच है कि सभी पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है। रेड्डी ने हालांकि, यह भी कहा कि कीमतों में वृद्धि एक संवेदनशील मुद्दा है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां कीमतों में वृद्धि का विरोध कर सकती हैं।

रेड्डी ने कहा कि हम एक वास्तविक दुनिया में रहते हैं। फैसले के लिए मुझे विशेषाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह की बैठक में जाना होगा।  उल्लेखनीय है कि इंडियन ऑयल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने सरकार से करीब 4500 करोड़ रुपये देने की मांग की है क्योंकि कम्पनियों ने गत दिसम्बर से अपनी कीमतों की समीक्षा नहीं की है।

मनमोहन सिंह ने  एशिया गैस भागीदारी सम्मेलन में कहा, 'सरकार ने प्राकृतिक गैस के उत्पादन को बढ़ाए जाने के लिए गैस मूल्य निर्धारण नीतिगत सुधारों की पहल की है। हम इसे लेकर सजग हैं कि ऊर्जा आपूर्ति में बढ़ोतरी सुनिश्चित किए जाने के लिए उचित ऊर्जा कीमतें जरूरी हैं। तेल एवं गैस प्राकृतिक संसाधन हैं और इसलिए इन्हें सरकारी और नियामक निगरानी के ढांचे के अंदर लाया जाना चाहिए। इन संसाधनों का आर्थिक दोहन निवेशकों और भारत के लोगों दोनों के लिए फायदेमंद होगा।'

उन्होंने कहा कि गैस उद्योग की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार उचित समाधान तलाशने के लिए प्रतिबद्घ है। उन्होंने कहा, 'हम अपनी नीति और नियामक माहौल की पारदर्शिता सुनिश्चित किए जाने के लिए प्रतिबद्घ हैं।'

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की गैस मांग पिछले पांच वर्षों में 14 फीसदी तक बढ़ी है और देश ने नई अन्वेषण लाइसेंस नीति के तहत तेल एवं गैस क्षेत्र में 14 अरब डॉलर का निवेश आकर्षित किया है। ऊर्जा के नए स्रोतों के इस्तेमाल के संबंध में उन्होंने कहा कि शेल गैस लाइसेंस व्यवस्था वर्ष 2013 तक अस्तित्व में आ जाएगी। शेल गैस अवसादी भूगर्भीय चट्टानों के बीच पाई जाती है और अमेरिका जैसे देशों में इसे खनिज गैस की विशाल संभावनाओं वाले क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा है। अब तक गैस का उत्पादन परंपरागत हाइड्रोकार्बन खोज क्षेत्रों से होता आया है, अब कोयला खदानों और नरम भूगर्भीय चट्टानों के बीच भी इसकी खोज होने लगी है।

मनमोहन ने कहा कि कोयला खानों से निकलने वाली मीथेन गैस के उत्पादन के लिए भी प्रयास तेज किए गए हैं। इसके लिए कोल बैड मिथेन (सीबीएम) की बोलियां मंगाने के चार दौर चलाए जा चुके हैं और इनमें से पश्चिम बंगाल के रानीगंज में सीबीएम ब्लॉक से गैस उत्पादन शुरू हो चुका है।

उन्होंने इस सम्मेलन में गेल की 2000 किलोमीटर लंबी दाहेज-विजयपुर-बवाना-नांगल/भटिंडा पाइपलाइन को देश को समर्पित किया। उन्होंने कहा कि देश ने महत्त्वाकांक्षी पाइपलाइन विकास कार्यक्रम लॉन्च किया है जिसके तहत गेल अपने पाइपलाइन नेटवर्क को 9000 किलोमीटर से बढ़ा कर वर्ष 2012 तक 14,500 किलोमीटर करेगी जबकि निजी ऑपरेटर पाइपलाइन नेटवर्क में 5000 किलोमीटर का योगदान देंगे। उन्होंने कहा, 'वर्ष 2017 में 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक लगभग 30,000 किलोमीटर के देशव्यापी गैस ग्रिड का लक्ष्य रखा गया है।'

आर्थिक अखबार बिजनेस स्टैंडर्ट में छपी एक रपट के मुताबिक गरीबी के आंकड़ों को लेकर केवल सियासी सरगर्मी ही नहीं बढ़ी है बल्कि जनसांख्यिकी विशेषज्ञों के लिए भी ये आंकड़े पहेली बन गए हैं। पहेली इसलिए कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में गरीबों की तादाद और भी कम है जबकि हाल में योजना आयोग द्वारा पेश उससे कहीं अधिक गरीबी के आंकड़ों पर हल्ला मचा हुआ है।

जनगणना के अनुसार देश में केवल 17 फीसदी ऐसे लोगों को गरीबी की श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है जिनके पास कोई भी परिसंपत्ति नहीं है जबकि वर्ष 2009-10 के दौरान तेंडुलकर समिति की रिपोर्ट ने देश में गरीबी अनुपात 29.4 फीसदी बताया है। पक्का मकान, बिजली, रसोई गैस, फोन और जलापूर्ति कनेक्शन जैसे घरेली सुविधाओं और संपत्ति के पैमाने पर वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार करीब 34.5 फीसदी लोग इनसे महरूम थे। मगर वर्ष 2011 की जनगणना में यह आंकड़ा घटकर 17.8 फीसदी रह गया। वहीं तेंडुलकर समिति द्वारा वर्ष 2009-10 के दौरान देश में गरीबों की संख्या 29 फीसदी बताई गई है जो जनगणना की तुलना में लगभग दोगुनी है।

वर्ष 2004-05 में तेंडुलकर समिति के अनुसार देश में गरीबी अनुपात 37 फीसदी था जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार यह आंकड़ा 34.5 फीसदी था। यह दर्शाता है कि देश में गरीबों की तादाद बयान करने वाले इन दो आकलनों में कितना अंतर है। घरेलू परिसंपत्ति सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं से करीब 34 सवाल पूछे जाते हैं। ऐसे में दावा किया जाता है कि लोगों की आर्थिक हैसियत का पता लगाने का इससे बढिय़ा दूसरा तरीका नहीं हो सकता। पहले दो सवाल घर की लोकेशन से जुड़े होते हैं, तीन सवाल उस सामग्री से संबंधित होते हैं जिनसे फर्श, दीवार और छत तैयार की जाती है। इसके बाद मकान की हालत और उसके इस्तेमाल, मालिकाना हक, खाना पकाने के लिए ईंधन, बिजली की उपलब्धता, पानी, पानी का स्रोत, शौचालय, स्नानागार, रसोई, पानी की निकासी, मकान में कमरों की संख्या, रेडियो, टेलीविजन, कंप्यूटर, मोबाइल फोन, इंटरनेट, वाहन, बैंक खाते इत्यादि से जुड़े सवालों की बारी आती है। दूसरी ओर तेंडुलकर समिति ने गरीबी की परिभाषा उपभोग के आधार पर गढ़ी है। एनएसएस उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आंकड़ों में खाने, ईंधन, बिजली, कपड़े, चप्पल आदि पर खर्च को शामिल किया जाता है। इसमें संबंधित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण से स्वास्थ्य एवं शिक्षा मूल्य सूचकांक पर भी नजर डाली जाती है।

साथ ही यह किराये और आने-जाने पर आने वाले खर्च के आंकड़ों पर भी गौर करता है। वहीं जनगणना में परिसंपत्तियों से जुड़े आंकड़ों में स्वास्थ्य और शिक्षा को छोड़कर बाकी चीजों को शामिल किया जाता है और साथ ही आवास और जलापूर्ति का भी संज्ञान लिया जाता है। वरिष्ठ जनसांख्किीय विशेषज्ञ आशिष बोस के अनुसार देश में गरीबों की वास्तविक संख्या की गणना में जनगणना के आंकड़े सर्वाधिक प्रभावी होते हैं। वह कहते हैं, 'ये ऐसे लोग होते हैं जिनके सर पर महज एक छत होती है और शायद कुछ तो ऐसे जिन्हें वह भी मयस्सर नहीं होती। मेरे लिए यह जनगणना का सबसे प्रमुख निचोड़ है क्योंकि यह उन लोगों की बात करता है जिनके पास कुछ भी नहीं है। योजना आयोग सहित कई अन्य संस्थानों द्वारा गरीबी को लेकर अलग-अलग आकलन किए जाते हैं। लेकिन मेरे ख्याल से यह गरीबी की छद्म स्थिति है। यह बीमारू को लेकर मेरा नजरिया है।' यह उस जानकार का कथन है जिसने आर्थिक सामाजिक रूप से पिछड़े राज्यों को परिभाषित करने के लिए उन्हें बीमारू की संज्ञा दी।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में जनसांख्यिकी विशेषज्ञ पी एम कुलकर्णी इस पर सहमत हैं कि घरेलू परिसंपत्ति सर्वेेक्षण और गरीबी अनुमान के आंकडों की मोटे तौर पर तो तुलना की जा सकती है लेकिन सीधे-सीधे तुलना नहीं की जाए। वह कहते हैं, 'यह स्वाभाविक है कि लोगों की हालत पहले से बेहतर हुई है। लेकिन इन दोनों आंकड़ों की मोटे तौर पर ही तुलना की जा सकती है।' तेंडुलकर समिति द्वारा पेश गरीबी के आंकड़ों पर वह कहते हैं, 'जनगणना में बिजली, पानी कनेक्शन जैस को शामिल किया गया है। लेकिन जब आप खर्च करने के लिए धन की बात करते हैं तो ऐसे भी लोग मिलेंगे जिनके पास बिजली कनेक्शन तो है लेकिन वे फिर भी गरीब हैं।'

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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