अब नहीं रहेंगे बी.पी.एल.
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 03 || 15 सितंबर से 30 सितंबर 2011:: वर्ष :: 35 :October 1, 2011 पर प्रकाशित
ईश्वर जोशी
भारत सरकार द्वारा बी0पी0एल0 सर्वेक्षण का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है। बी0पी0एल0 के जो मानक बनाये गये हैं, उससे गरीबों का एक बड़ा तबका बी0पी0एल0 से बाहर हो जायेगा। यद्यपि मानकों की जानकारी अभी आम जन तक नहीं पहुँची है, लेकिन जैसे-जैसे जानकारी पहुँच रही है मानकों में परिवर्तन की माँग मुखर होने लगी है।
सन् 2002 में किये गये पिछले बी.पी.एल. सर्वेक्षण के 10 वर्ष बाद सरकार सामाजिक, आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना के आधार पर गरीबों की पहचान कर रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग से संचालित यह गणना जून 2011 से दिसम्बर 2011 से मध्य की जानी है, जिसे 29 जून 2011 को पश्चिमी त्रिपुरा के हाजीमोरा खण्ड से शुरू किया जा चुका है। उत्तराखण्ड में यह सर्वेक्षण अक्टूबर 2011 से प्रारम्भ करने की योजना है। योजना आयोग द्वारा कराये गये रैन्डम सर्वेक्षण के आधार पर राज्यों के लिए गरीबी का कोटा पहले ही निर्धारित किया जा चुका है। उत्तराखण्ड का कोटा 30.6 प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्र के लिए यह 35.1 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र के लिए 26.2 प्रतिशत है। अब राज्य को सर्वेक्षण के जरिये इस कोटे के अनुरूप अपने यहाँ गरीबों की पहचान करनी है। पहचान का कार्य तीन चरणों में होना है। प्रथम चरण में ऐसे परिवारों का चयन किया जायेगा, जो गरीबी रेखा सूची से स्वतः ही बाहर हो जायेंगे। इसके लिए 14 बिन्दुओं को मानक बनाया गया है। इनमें से किसी भी एक मानक के होने पर वह परिवार बी.पी.एल. से स्वतः बहिश्कृत हो जायेगा। इन मानकों में तीन कमरों का पक्का मकान, फ्रिज, लैंडलाइन फोन, दो पहिया वाहन, आयकर अथवा व्यावसायिक कर देना, 50 हजार से अधिक लिमिट का किसान क्रेडिट कार्ड, परिवार के किसी सदस्य की प्रतिमाह 10 हजार रुपये से अधिक आय, सिंचाई उपकरण के साथ 2.5 एकड़ से अधिक सिंचित भूमि शामिल है। द्वितीय चरण में उन परिवारों का चयन होगा, जो गरीबी रेखा सूची में स्वतः ही शामिल हो जायेंगे। इसके लिए पाँच मानक तय किये गये हैं। इन मानकों में बेघर, बेसहारा व भिखारी, मैला ढोने वाले परिवार, सहरिया व बैगा जैसे आदिम जनजातीय समूह तथा कानूनी रूप से मुक्त किये गये बंधुआ मजदूर शामिल हैं। तीसरा चरण रैंकिंग का होगा। स्वतः बहिश्करण एवं स्वतः समावेश के बाद शेष बचे परिवारों की अभाव सूचकों के आधार पर रैंकिंग की जायेगी। इसके लिए सात मानक तय किये गये हैं। प्रत्येक मानक के पूर्ण होने पर संबधित परिवार को एक अंक दिया जायेगा। जिन परिवारों के अंक अधिक होंगे, उन्हें बी.पी.एल. में शामिल किया जायेगा। रैंकिंग के मानकों में एक कमरे का कच्चा मकान, परिवार में 16 से 59 वर्ष की उम्र का कोई वयस्क सदस्य का न होना, महिला मुखिया वाला परिवार जिसमें 16से 59 वर्ष की आयु का कोई वयस्क पुरूष न हो, जिस परिवार में 25वर्ष से अधिक आयु का वयस्क साक्षर न हो, विकलांग सदस्य वाला ऐसा परिवार जिसमें शारीरिक रूप से सक्षम वयस्क सदस्य न हो, अनुसूचित जाति/जनजाति के परिवार तथा ऐसे भूमिहीन परिवार जो अपनी आजीविका दिहाड़ी मजदूरी से प्राप्त करते हैं, को रखा गया है।
जनगणना के कार्य में पहली बार हस्तचालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन (टेबलेट पी.सी.) का प्रयोग किया जा रहा है। सर्वेक्षण कार्य घर-घर जाकर किया जायेगा तथा उत्तरदाता द्वारा दी गयी जानकारी टेबलेट पी.सी. में दर्ज की जायेगी। पारदर्शिता को बनाये रखने तथा गलत बयानबाजी को रोकने हेतु प्राप्त जानकारी को ग्रामसभा द्वारा सत्यापित किये जाने का प्रावधान है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के चलते प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को सर्वेक्षण कार्य से दूर रखने की बात कही गयी है।
बी0पी0एल0 सर्वेक्षण हेतु सम्पूर्ण देश में एक ही मानक तय किये गये हैं, जबकि भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न राज्यों की भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों में काफी भिन्नता है। 3 कमरों का पक्का मकान वाला परिवार बी.पी.एल. से स्वतः बहिष्कृत हो जायेगा। यह मानक उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के गरीब परिवारों के लिए सर्वाधिक नुकसानदायक है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में विषम भौगोलिक परिस्थिति एवं ठंडी जलवायु के चलते किसी भी व्यक्ति का मकान कच्चा नहीं होता। सभी मकान पत्थर के बने होते हैं, चिनाई में सीमेंट के स्थान पर मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। साथ ही पत्थर व मिट्टी खरीदनी नहीं पड़ती। मकान बनाते समय सारा गाँव श्रम दान कर मदद करता है। मकान कम से कम चार कमरों का बनाने की परम्परा है। यही कारण है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं यथा इन्दिरा आवास, अटल आवास, दीन दयाल उपाध्याय आवास के तहत भी सभी मकान पक्के व चार कमरों वाले बने होते हैं। कई बार पैतृक रूप से मकान मिला होता है। इसलिए पर्वतीय क्षेत्र में आर्थिक स्थिति अत्यन्त बदहाल होने के बावजूद उसके पास चार कमरों का पक्का मकान होना आम बात है। ऐसी स्थिति में उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के परिपेक्ष्य में चार कमरों के पच्चे मकान को आर्थिक संपन्नता के साथ जोड़ना सरासर गलत है। इसकी गाज अल्मोड़ा जनपद के ताकुला विकासखण्ड में स्थित तिलकपुर निवासी केवलराम जैसे गरीब परिवारों पर भी पड़ेगी, जिसका परिवार गरीबी के चलते कई दिन भूखों सोता है। इलाज न करा पाने पर जिसने अपनी पत्नी तथा एक पुत्र को खो दिया। उसके पिता ने ग्रामीणों के सहयोग से उसके लिए तीन कमरों का मकान बना दिया, जो उसे बी.पी.एल. से बाहर कर देगा। इसी प्रकार भेटुली निवासी विकलाँग व असहाय देवराम व उसकी पत्नी ममता मात्र इस कारण बी.पी.एल. से बाहर हो जायेंगें कि उन्हें चार कमरों का पक्का मकान पैतृक रूप में मिला है। पक्का मकान के मानक की बात करें तो मिट्टी की दीवार तथा टिन की छत वाले मकान को भी पक्का माना गया है। यहाँ तक कि टिनसैड भी पक्के मकान में शामिल है। भेटुली गाँव के हयात राम का मकान गतवर्ष सितम्बर माह में आयी दैवीय आपदा से तबाह हो गया था। उसका एकमात्र पुत्र की मलबे में दबकर मौत हो गयी थी। दाह संस्कार ग्रामीणों द्वारा आपस में चंदा कर किया गया। उसका परिवार किसी संस्था द्वारा उपलब्ध कराये गये टिनसैड में रह रहा है। हयात राम मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन बी.पी.एल. मानकों में उसका टिनसैड पक्के मकान की श्रेणी में आता है। मैदानी क्षेत्रों में मात्र फ्रिज होने के कारण कई पात्र परिवार बी.पी.एल. से वंचित हो जायेंगे। वहाँ झुग्गियों में रहने वाले तमाम ऐसे परिवार हैं, जिनके पास पुराना फ्रिज है। अधिकतर परिवारों को फ्रिज मुफ्त में मिला है। ऐसे परिवारों के सदस्य शहरों में कोठियों में काम करते हैं। कोठी मालिकों द्वारा नया फ्रिज लेने पर पुराना फ्रिज उन्हें निःशुल्क दे दिया गया है। वैसे भी एक पुराना सेकण्ड हैण्ड फ्रिज रु. 1500 से 2000 में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। ऐसी स्थिति में फ्रिज जैसे सामान्य उपकरण को परिवार की संपन्नता से जोड़ना ऐसे गरीब परिवारों के साथ अन्याय होगा। एकल, विधवा, परित्यकता जैसी महिलाओं के लिए इस सर्वेक्षण में कोई जगह नहीं है। इसी तरह महिला मुखिया वाले ऐसे परिवार जिसमें कोई वयस्क पुरुष न हो तथा विकलाँग सदस्य वाला परिवार जिसमें शारीरिक रूप से सक्षम कोई वयस्क सदस्य न हो को रैंकिंग में मात्र एक अंक मिलेगा। जबकि ऐसे परिवारों को स्वतः ही बी.पी.एल. में आना चाहिए।
बी.पी.एल. के इन अव्यवहारिक मानकों के चलते उत्तराखण्ड की गरीब आबादी का एक बड़ा हिस्सा न केवल गरीबी रेखा की सूची से बाहर हो जायेगा, बल्कि सरकार द्वारा चलाई जाने वाली किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ उसे नहीं मिल पायेगा। यह सर्वेक्षण सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर करने में भी सहायक होगा।
बी.पी.एल. के इन जनविरोधी मानकों के खिलाफ विभिन्न सामाजिक -राजनैतिक संगठनों ने जिलाधिकारी से मुलाकात कर उन्हें केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को संबोधित ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में बी.पी.एल. हेतु पूर्व निर्धारित कोटा पद्धति को समाप्त कर सभी पात्र परिवारों को बी.पी.एल. में शामिल करने, स्वतः बहिष्करण प्रक्रिया के तहत गरीबी रेखा सूची से बाहर किये गये परिवारों के अलावा शेष सभी परिवारों को बी.पी.एल. में शामिल करने, तीन कमरों का पक्का मकान तथा फ्रिज को स्वतः बहिष्करण की श्रेणी से बाहर करने, परिवार की परिभाषा बदलने, एकल, विधवा, परित्यकता, तलाकशुदा, विकलाँग के अलावा वन ग्रामों में रह रहे गरीब परिवारों को बी.पी.एल. में शामिल करने की माँग शामिल है।
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