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Thursday, January 31, 2013

दक्षिण चीन सागर तेल क्षेत्र को लेकर विवाद के बीच भारत चीन जल युद्ध भी अब तेज!मगर अभी भारत का रक्षा मंत्री अनजान!

दक्षिण चीन सागर तेल क्षेत्र को लेकर विवाद के बीच भारत चीन जल युद्ध भी अब तेज!मगर अभी भारत का रक्षा मंत्री अनजान!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

दक्षिण चीन सागर तेल क्षेत्र को लेकर विवाद के बीच भारत चीन जल युद्ध भी अब तेज हो गया है!मालूम हो कि पूर्वोत्तर भारत समेत दक्षिम एशिया के विशाल भूभाग के लिए ब्रह्मपुत्र लाइफलाइन है, जिसे चीन अरसे से अवरुद्ध कर रहा है।मजे की बात तो यह है कि मगर अभी भारत का रक्षा मंत्री अनजान! आपको १९६२ के भारत चीन सीमा विवाद की याद आती हो तो आये, भारतीय रक्षा मंत्रालय लेकिन बेपरवाह है। केंद्रीय रक्षा मंत्री ए. के एंटनी ने गुरुवार को कहा कि सरकार को चीन की ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के योजना के सम्बंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है और वह इससे पूरी तरह अवगत होने पर ही कोई राय बनाएगी।पत्रकारों द्वारा तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र से निकल कर भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में तीन पनबिजली बांध बनाने के चीन के प्रयास के सम्बंध में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, `हम इस पर पूरी तरह विचार करने के बाद ही कोई राय बनाएंगे।` दूसरी तरफ हकीकत यह है कि  भारत ने गुरुवार को चीन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की उसकी योजना से नदी के निचले हिस्से वाले देशों के हितों को आंच नहीं आए। ब्रह्मपुत्र का उद्गम तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में है और यह नदी भारत से होकर बहती है।रक्षा मंत्री के बयान से उलट ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा जलविद्युत के लिए तीन बांध बनाने की योजना के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि नदी पर होने वाले विकास कार्यों पर भारत पूरी सतर्कता से निगाह रखे हुए है और अपने विचारों और अपनी चिंताओं से चीन को अवगत करा दिया है।प्रवक्ता ने कहा कि नदी के निचले इलाके के देश के रूप में नदी जल उपयोग के स्थापित महत्वपूर्ण अधिकार के तहत भारत अपने विचारों और चिंताओं से चीन को अवगत करा चुका है। भारत ने चीन से यह सुनिश्चत करने के लिए कहा है कि ऊपरी हिस्से की किसी गतिविधि के कारण नदी के निचले हिस्से के देशों का हित प्रभावित नहीं होने पाए।

गौरतलब है कि चीन ने भारत को बिना सूचित किये ब्रह्मपुत्र नदी पर तीन बांध बनाने को मंजूरी दे दी है। इस नदी पर चीन की तरफ से एक बांध पहले से ही बनाया जा रहा है। चीन की कैबिनेट से मंजूर एक दस्‍तावेज से इस बात की पुष्टि हुई है कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर तीन बांध बनाएगा। बीजिंग में तैनात भारतीय अधिकारियों को इस बात की सूचना दी गई है। प्राप्‍त जानकारी के अनुसार चीन की 12वीं पंचवर्षिय योजना के लक्ष्‍यों में इन तीन बांधों का निर्माण शामिल है।फिलहाल इस संबंध में विस्‍तार से जानकारी नहीं मिल सकी है। अला अधिकारियों ने बताया है कि भारत को अभी इस संबंध में कोर्इ सूचना नहीं दिया गया है। इस संबंध में जब चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता से पूछा गया तो उन्‍होंने कहा कि चीन हमेशा से सीमा पार बहने वाली नदियों के विकास के बारे में जिम्मेदार रुख अपनाता रहा है। सूत्रों की मानें तो चीन ने ये तीनों नए बांध मिडिल ब्रह्मपुत्र पर बनाने का निश्चय किया है। इससे भारत में ब्रह्मपुत्र का प्रवाह प्रभावित होगा। इससे पहले भी चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाया था लेकिन वह ऊपरी ब्रह्मपुत्र में था। इससे भारत में नदी के प्रवाह पर अधिक असर नहीं पड़ा था। इस वजह से भारत ने अधिक आपत्ति भी नहीं दिखाई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता ने कहा कि किसी भी नई परियोजना पर वैज्ञानिक योजना के तहत और नदी की धारा के निचले एवं ऊपरी इलाकों के देशों के हितों को ध्यान में रखकर अध्ययन किया जाता है। जब उनसे पूछा गया कि क्या इस बारे में भारत और बांग्लादेश से मंजूरी ली गई है क्योंकि ये देश नदी की धारा के निचले इलाके में आते हैं तो उनका कहना था कि इस बारे में अभी उन्हें और जानकारी लेनी होगी। वहीं माना जा रहा है कि चीन की तरफ से बांध बनाने की इस योजना से दोनों देशों में तनाव पैदा हो सकता है।

हिमाचल क्षेत्र में भारत की बांध निर्माण गतिविधियों से मानव जीवन एवं जीविका के लिए गंभीर खतरा है और इससे कई वनस्पतियां तथा जीव विलुप्त हो सकते हैं।

एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों पर पनबिजली परियोजना के निर्माण और करीब 300 बांधों के निर्माण को लेकर यह अध्ययन किया गया।

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में प्रोफेसर महाराज के पंडित के नेतृत्व और दिल्ली विश्वविद्यालय एवं कुनमिग इंस्टीट्यूट ऑफ बॉटनी ऑफ चाइनीज एकेडमी में उनकी टीम की ओर से यह अध्ययन किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि बांधों के निर्माण से करीब 90 फीसदी हिमालय घाटी प्रभावित होगी और 27 फीसदी बांध घने जंगलों को भी बुरी तरह प्रभावित करेंगे।

शोध दल का अनुमान है कि बांध निर्माण संबंधी गतिविधियों से हिमालय क्षेत्र में 170,000 हेक्टेयर का जंगल तबाह हो सकता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार हिमालय क्षेत्र में बांध का घनत्व मौजूदा वैश्विक आकंड़े से 62 गुना अधिक हो सकता है। इससे क्षेत्र में 22 वनस्पतियों और सात जीव विलुप्त हो सकते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि जल प्रवाह ही नदियों में मत्स्य जीवों के अस्तित्व का सबसे बड़ा जरिया है और बांध निर्माण गतिविधियों में बड़े पैमाने पर पानी का उपयोग हो रहा है जिससे इन जीवों के अस्तित्व के लिए भी खतरा पैदा हो गया है।

इसके मुताबिक बांधों के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों को विस्थापित भी होना पड़ा है।

पंडित ने एक बयान में कहा,'हम आर्थिक विकास के लिए देश की जरूरत से अवगत हैं। परंतु संतुलित विकास होना चाहिए।'

बाढ़ के मौसम में यालूजांग्बो/ब्रह्मपुत्र नदी से सम्बन्धित जल-वैज्ञानिक जानकारी के चीन द्वारा भारत के साथ आदान-प्रदान किए जाने की बाबत 2002 में भारत ने चीन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। एमओयू में निहित प्रावधानों के अनुसार चीनी पक्ष प्रतिवर्ष 1 जून से 15 अक्टूबर तक की अवधि के दौरान यालूजांग्बो/ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित तीन केन्द्रों अर्थात नुगेशा, यांगकून और नुक्सिया के सम्बन्ध में जल वैज्ञानिक जानकारी (जल स्तर, निस्सरण और वर्षा) प्रदान करता रहा है। वर्ष 2004 तक का अपेक्षित डाटा प्राप्त हो चुका था और केन्द्रीय जल आयोग द्वारा बाढ़ पूर्वानुमान तैयार करने में उस डाटा का प्रयोग किया गया।

           अप्रैल, 2005 में चीन के माननीय प्रधानमंत्री के दौरे के अवसर पर सतलज (लांगेन जांग्बो) सम्बन्धी जल वैज्ञानिक डाटा के प्रावधान के बारे में एक समझौता हुआ था जिसके सम्बन्ध में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। एमओयू के अनुसार चीनी पक्ष जल स्तर/निस्सरण में किसी असाधारण वृद्धि/गिरावट के सम्बन्ध में जानकारी तथा अन्य ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए सहमत हो गया है जिसके फलस्वरूप वास्तविक समय आधार पर मौजूदा मानीटरी और डाटा संग्रह सुविधाओं के आधार पर आकस्मिक बाढ़ आ सकती है। दोनों पक्ष पारलुंग जांग्बो और लोहित (जायू क्यू) नदियों (जोकि ब्रह्मपुत्र की वितरिकाएं हैं) के सम्बन्ध में शीघ्र ही इसी प्रकार की व्यवस्था को अन्तिम रूप देने के लिए द्विपक्षीय विचार-विमर्श को जारी रखने को भी सहमत हो गए हैं।

           इसके अलावा चीन में परेचू नदी पर भूस्खलन बांध के कारण बनी कृत्रिम झील के सम्बन्ध में मार्च, 2005 में बीजिंग गए सचिव स्तर के प्रतिनिधिमण्डल की यात्रा के दौरान तथा अप्रैल, 2005 में चीन के माननीय प्रधानमंत्री की भारत के दौरान विचार-विमर्श हुआ था। चीनी पक्ष इस बात पर सहमत हो गया है कि जैसे ही स्थितियों के चलते संभव हुआ भूस्खलन बांध के संचित पानी छोड़ने को नियंत्रित किए जाने के उपाय किए जाएंगे।

http://wrmin.nic.in/index3.asp?sslid=593&subsublinkid=660&langid=2


Photo: RIA Novosti

भारत और पाकिस्तान के बीच जल-संसाधनों के लिए विवाद अपनी चरमसीमा पर पहुँचने वाला है। जल विवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान में भारत के ख़िलाफ दिए जा रहे बयान इस बात का सबूत हैं। नए साल की पूर्व-संध्या पर पाकिस्तानी समाचारपत्र "नेशन" ने भारत पर "जलीय आतंकवाद" का आरोप लगाया था। पिछले सप्ताह के अंत में पाकिस्तानी शहर लाहौर में "सिंध नदी के जल संसाधनों का प्रबंधन" नामक एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था जिस में कुछ एशियाई देशों और संयुक्त राष्ट्र के 100 से अधिक विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच जल-विवाद एक ऐसा टाइम-बम है जो पूरे एशियाई क्षेत्र में स्थिरता की धज्जियाँ उड़ा सकता है। इस विवाद को कैसे हल किया जा सकता है, इसके बारे में लाहौर सम्मेलन में भाग लेनेवाले विशेषज्ञ एकमत नहीं हो पाए हैं।

इस जल-विवाद में हर पक्ष अपने लिए अधिक से अधिक लाभ हासिल करना चाहता है। दोनों पक्ष एक दूसरे पर बेईमानी का खेल खेलने के आरोप लगा रहे हैं। पाकिस्तानी संसद की कश्मीरी मामलों पर एक विशेष समिति के प्रमुख मौलाना फज़लुर रहमान ने भारत से पाकिस्तानी नियंत्रण वाले कश्मीर में बहती नदियों पर भारतीय सूबे जम्मू-कश्मीर में अवैध रूप से बांधों का निर्माण करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भारत "हमारी अर्थव्यवस्था को नष्ट करने की कोशिशें कर रहा है और दिल्ली की ऐसी रणनीति इस उपमहाद्वीप में शांति के लिए ख़तरा पैदा करती है।"
इस्लामाबाद का भारत पर यह आरोप है कि दिल्ली सरकार सन् 1960 में दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित "सिंधु नदी जल संधि" का उल्लंघन कर रही है। इस संधि के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान के इलाकों में बहती सिंध, चेनाब, रावी, जेहलम और सतलुज नदियों के जल का दोनों देशों के बीच बांटवारा किया गया था।

भारत का कहना है कि पाकिस्तान के ये आरोप एकदम निराधार हैं। अगर हमारे पड़ोसियों को कोई शिकायत है तो उन्हें हमारे विरुद्ध युद्ध का प्रचार नहीं करना चाहिए बल्कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए। इस संदर्भ में रेडियो रूस के एक समीक्षक सेर्गेय तोमिन ने कहा-

भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सदर अयूब खान द्वारा हस्ताक्षरित "सिंध नदी जल संधि" में जल के बांटवारे संबंधी बहुत ही अस्पष्ट शब्दावली का उपयोग किया गया है। इसलिए दोनों देश इस संधि की धाराओँ का अपनी सुविधा के मुताबिक अर्थ निकाल लेते हैं। इस सिलसिले में दिल्ली और इस्लामाबाद कई बार अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं।

पाकिस्तान को सबसे बड़ी आपत्ति इस बात पर है कि भारत ने इस वर्ष की शुरुआत में सिंध नदी पर निर्मित नीमू-बाजगो पन-बिजलीघर को चालू करने का फैसला किया है। भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर में समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बाजगो पन-बिजलीघर एक सीमांत क्षेत्र में बनाया गया है। इस पन-बिजलीघर की बदौलत इस इलाके के गांवों को बिजली की सप्लाई की जा सकेगी। इस दूरदराज के क्षेत्र में अभी भी कई गांवों में मिट्टी के तेल से ही लैम्प जलाए जाते हैं।

भारतीय पक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नीमू बाजगो पन-बिजलीघर को चालू करने से इनकार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। नई दिल्ली के अनुसार, पाकिस्तान, चूँकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपील करने से इनकार कर रहा है, इसलिए उसके वर्तमान दावे एकदम खोखले हैं।

इस बीच, तिब्बती पठार की नदियों पर पन-बिजलीघर बनाने की चीनी परियोजनाएं भारत के लिए समस्याएं पैदा कर रही हैं। दिल्ली की सबसे बड़ी चिंता का विषय हैं- भारत और चीन के इलाके में बहती नदी ब्रह्मपुत्र पर चीनी गतिविधियां।

अमरीकी शोधकर्ता जैफ़्फ़ हिस्कॉक ने अपनी नई पुस्तक "पृथ्वी के युद्धः वैश्विक संसाधनों के लिए लड़ाई" में लिखा है कि बीजिंग द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर पनबिजलीघरों और बांधों का निर्माण करने से भारत और बांग्लादेश के 15 करोड़ निवासियों के हितों पर प्रहार होगा। एशिया की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं- भारत और चीन में जल संसाधनों की गंभीर कमी महसूस की जा रही है। अमरीकी शोधकर्ता का कहना है कि इन देशों के बीच किसी नए युद्ध को टालने के लिए इन दो देशों को जलीय बांटवारे पर आपस में कोई समझौता कर लेना चाहिए। लेकिन हमें ऐसा लगता है कि इन दो देशों के बीच इस तरह का कोई समझौता होने की बहुत कम संभावना है।

ब्रह्मपुत्र के इस्तेमाल का बेहतर विकल्प

Author:
अरविंद घोष
Source:
नई दुनिया, 28 अक्टूबर 2011

चीन यारलुंग झांगबो पर जल विद्युत संयंत्र बना रहा है। एक ऐसी निर्माणाधीन परियोजना भारतीय प्रवेश बिंदु से लगभग 540 किलोमीटर आगे 510 मेगावाट का झांगमू पावर स्टेशन है लेकिन इस परियोजना में बिजली उत्पन्न करने के लिए टर्बाइन चलाने हेतु सिर्फ नदी के प्रवाह की ऊंचाई को बढ़ाना और फिर बांध या बैराज के दूसरी ओर उसे गिराना शामिल है। ऐसी परियोजनाओं में पानी का उपयोग नहीं होता। टर्बाइन रोटेट करने के बाद पानी फिर से नदी में मिल जाता है।

भारत ने चीन की इस घोषणा से राहत की सांस ली है कि वह ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को अपने मुख्य भू-भाग की ओर मोड़ने की कोशिश नहीं करेगा। समाचार पत्रों की रिपोर्टों के मुताबिक, चीन ने "दोनों देशों के बीच संबंधों" पर संभावित असर के चलते डाइवर्जन परियोजना पर काम न करने का फैसला किया है। भारत की राहत स्वाभाविक है क्योंकि यदि चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी की धारा अपने भू-भाग को ओर मोड़ दिया होता तो भारत पर इसका जबर्दस्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चीन ने यह विचार इसलिए छोड़ दिया है कि इससे भारत के साथ उसके रिश्तों पर विशेष रूप से असर पड़ेगा। चीन में जल संसाधन के उप प्रमुख जियाओ यंग ने 13 अक्टूबर को बीजिंग में एक सवाल के जवाब में पत्रकारों से स्पष्ट कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी की दिशा में किसी प्रकार के परिवर्तन की चीनी सरकार की कोई योजना नहीं है।

उन्होंने कहा - "हालांकि चीन में यारलुंग झांगबो (ब्रह्मपुत्र का चीनी नाम) के जल का अधिक उपयोग करने की मांग है, लेकिन तकनीकी मुश्किलों, दिशा परिवर्तन की वास्तविक आवश्यकता और पर्यावरण तथा द्विराष्ट्रीय संबंधों पर संभावित प्रभाव को देखते हुए इस नदी पर किसी डाइवर्जन परियोजना की चीन सरकार की कोई योजना नहीं है।" कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके इस बयान के बाद भारत का अंदेशा दूर हो गया है। चीन की यह घोषणा स्वागत योग्य है कि उसने द्विपक्षीय सरोकारों का ख्याल रखा, हालांकि 2006 में चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ के भारत दौरे की पूर्व संध्या पर चीनी जल संसाधन मंत्री वांग शूचेंग को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि डाइवर्जन परियोजना "अनावश्यक, अव्यावहारिक और अवैज्ञानिक" है। दरअसल, ब्रह्मपुत्र के दिशा परिवर्तन के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच अविश्वास का माहौल इतना गहरा है कि लोगों ने इस परियोजना के प्रौद्योगिकीय व व्यावहारिक पहलुओं पर विचार नहीं किया है।

आइए, पहले व्यावहारिक पहलू पर विचार करें। मान लिया जाए कि भारत की ओर ब्रह्मपुत्र के "विशाल यू टर्न" से ठीक पहले तिब्बती भूमि की ऊंचाई लगभग 8,000 फीट है। उस बिंदु से जल को उत्तर की ओर ले जाने के लिए नदी के जल स्तर को 13,000 से 14,000 फीट तक ऊंचा उठाना होगा ताकि वह तिब्बत के पठार को पार कर सके। अब सवाल है कि क्या इस जल को चीन की मुख्य भूमि की ओर डाइवर्ट करने के लिए लाखों क्यूबिक फुट जल को लगातार पूरे वर्ष लगभग 4,000 से 5,000 फीट तक ऊंचा करना संभव है? मान लीजिए कि किसी तरह ऐसा कर लिया जाता है, लेकिन समस्या यह है कि मुख्यभूमि में प्रयोग के लिए उस जल को किधर ले जाया जाएगा? एक आम एटलस में देखने पर यह पता चलता है कि पथांतरित जल को थ्री गॉर्जेज डैम की ओर ले जाने के लिए यांग सिक्यांग के ऊपरी भाग की ओर ले जाना होगा, जहां से इस नदी के जल को ह्वांग हो या येलो रिवर होते हुए या इस नदी को बाईपास करते हुए उत्तर में बीजिंग की ओर ले जाने के लिए चैनल बनाए गए हैं। चीन की मुख्य जल आवश्यकताएं उत्तर में हैं, यांगसे दक्षिण की जरूरतें पूरी करती है।

तिब्बत के पठार के बाद कोई मैदानी भूमि नहीं है, जहां से पथांतरित ब्रह्मपुत्र नदी आसानी से यांगसे की ओर प्रवाहित होगी। उस मार्ग पर उबड़-खाबड़, ऊंची-नीची जमीन है। पथांतरित जल को उस मार्ग से यांगसे तक पहुंचाने के लिए ऊपर-नीचे करने में बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत होगी। क्या चीन में कहीं भी इतनी अधिक ऊर्जा उपलब्ध है? अगर यांगसे को छोड़ भी दिया जाए और जल को सीधे ह्वांग हो ले जाया जाए, तो भी ये समस्याएं होंगी। ऐसा लगता है कि 50 या 60 के दशक की शुरुआत में ऐसी कार्य योजना पर विचार किया गया था। उस समय इस पर विचार किया गया था कि क्या परमाणु ऊर्जा जल को तिब्बत से उत्तरी चीन की ओर धकेलने के लिए पर्याप्त होगा। इस संबंध में पत्रिका "द साइंटिफिक अमेरिकन" के जून 1996 अंक को उद्धृत किया जा सकता है।

"चीन के उत्तरी भू-भाग में, जिसमें गोबी का रेगिस्तान भी है, उस देश के कुल भू-भाग का लगभग आधा हिस्सा है, लेकिन उसके ताजे जल का सिर्फ सात फीसदी है। हाल में कुछ चीनी इंजीनियरों ने ब्रह्मपुत्र नदी से इस शुष्क क्षेत्र की ओर जल को पथांतरित करने का प्रस्ताव किया, जो भारत और बांग्लादेश में गिरने से पहले चीन की दक्षिणी सीमा को छूती है। बीजिंग में पिछले दिसंबर में चाइनीज एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग फिजिक्स में हुई एक बैठक में इंजीनियरों ने कहा कि ऐसा दुःसाहस पारंपरिक विधियों से असंभव है लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि "हम परमाणु विस्फोटकों के साथ इस परियोजना को पूर्ण कर सकते हैं।" फ्रांस द्वारा परमाणु परीक्षण रोकने के वादे के संदर्भ में अमेरिका ने इन शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोटों की चीनी स्थिति को "पूर्णतः अस्वीकार्य" बताया।
ब्रह्मपुत्र नदी जल विवादसाइंटिफिक अमेरिकन के लेख में बाद में परमाणु अप्रसार का मुद्दा उठाया गया है जो ब्रह्मपुत्र के जल को चीनी मुख्यभूमि की ओर पथांतरित करने के मुद्दे में प्रासंगिक नहीं है। बहरहाल, यह सच है कि चीन ने शायद एक बार ब्रह्मपुत्र के जल को अपनी मुख्य भूमि की ओर पथांतरित करने हेतु ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए भूमिगत थर्मोन्यूक्लीयर विस्फोटों के बारे में सोचा था। ब्रह्मपुत्र के जल को इस्तेमाल करने का बेहतर विकल्प "महान मोड़" पर जल विद्युत उत्पन्न करना है। ऐसी दो परियोजनाएं हो सकती हैं। एक भारतीय सीमा के ठीक उत्तर की ओर और "महान मोड़" पर और दूसरी भारतीय सीमा के भीतर, जो एक बड़ी परियोजना हो सकती है जिसमें प्रति घंटे लाखों किलोवाट बिजली उत्पन्न की जा सकती है और उसे एक सहमत फॉर्मूले के मुताबिक भारत और चीन के बीच बांटा जा सकता है।

जल के लिए चीन की आतुरता समझने योग्य है। भारत से अधिक जनसंख्या के साथ वह जल उपलब्धता के मामले में दुनिया में 128वें स्थान पर है, जो 2,259 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है। भारत इस मामले में 133वें स्थान पर है, जहां जल उपलब्धता प्रति व्यक्ति 1880 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष है। चीन यारलुंग झांगबो पर जल विद्युत संयंत्र बना रहा है। एक ऐसी निर्माणाधीन परियोजना भारतीय प्रवेश बिंदु से लगभग 540 किलोमीटर आगे 510 मेगावाट का झांगमू पावर स्टेशन है लेकिन इस परियोजना में बिजली उत्पन्न करने के लिए टर्बाइन चलाने हेतु सिर्फ नदी के प्रवाह की ऊंचाई को बढ़ाना और फिर बांध या बैराज के दूसरी ओर उसे गिराना शामिल है। ऐसी परियोजनाओं में पानी का उपयोग नहीं होता। टर्बाइन रोटेट करने के बाद पानी फिर से नदी में मिल जाता है। अब समय है कि दोनों देश बिना समय गंवाए साथ बैठकर ब्रह्मपुत्र के 'महान मोड़' पर जल विद्युत परियोजनाएं तैयार करें।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
http://hindi.indiawaterportal.org/node/36379

ब्रह्मपुत्र नदी

http://hi.wikipedia.org/s/2hi



ब्रह्मपुत्र (असमिया - ব্ৰহ্মপুত্ৰ, बांग्ला - ব্রহ্মপুত্র) एक नदी है। यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र का उद्गम तिब्बत के दक्षिण में मानसरोवर के निकट चेमायुंग दुंग नामक हिमवाह से हुआ है। इसकी लंबाई लगभग 2700 किलोमीटर है। इसका नाम तिब्बत में सांपो, अरुणाचल में डिहं तथा असम में ब्रह्मपुत्र है। यह नदी बांग्लादेश की सीमा में जमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलकरबंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। सुवनश्री, तिस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक आदि ब्रह्मपुत्र की उपनदियां हैं। ब्रह्मपुत्र के किनारे स्थित शहरों में प्रमुक हैं डिब्रूगढ़, तेजपुर एंव गुवाहाटी। प्रायः भारतीय नदियों के नाम स्त्रीलिंग में होते हैं पर ब्रह्मपुत्र एक अपवाद है। संस्कृत में ब्रह्मपुत्र का शाब्दिक अर्थ ब्रह्मा का पुत्र होता है ।


नदी की लम्बाई (किलोमीटर मे)

ब्रह्मपुत्र नदी की लम्बाई लगभग 2700 किलोमीटर है।

[संपादित करें]नदी की गहरा (मीटर और फुट)

ब्रह्मपुत्र नदी के एक बहुत है और सबसे बड़ी गहराई है, यह औसत गहराई 832 फीट (252 मीटर) गहरा है नदी की अधिकतम गहराई 1020 फीट (318 मीटर) है (252 मीटर) है। शेरपुर और जमालपुर में है, अधिकतम गहराई 940 फुट (283 मीटर) तक पहुँचने में। यह 85 फीट की खाड़ी में (26 मीटर) बहती है. तिब्बत में है, यह अधिकतम गहराई 1068 फीट (321 मीटर) है।

[संपादित करें]अपवाह तन्त्र

ब्रह्मपुत्र नदी का मानचित्र

नदी का उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत के निकट जिमा यॉन्गजॉन्ग झील है। आरंभ में यह तिब्बत के पठारी इलाके में, यार्लुंग सांगपो नाम से, लगभग 4000 मीटर की औसत उचाई पर, 1700 किलोमीटर तक पूर्व की ओर बहती है, जिसके बाद नामचा बार्वा पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की दिशा में मुङकर भारत के अरूणाचल प्रदेश में घुसती है जहां इसे सियांग कहते हैं।
उंचाई को तेजी से छोड़ यह मैदानों में दाखिल होती है, जहां इसे दिहांग नाम से जाना जाता है। असम में नदी काफी चौड़ी हो जाती है और कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर तक है। डिब्रूगढ तथा लखिमपुर जिले के बीच नदी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। असम में ही नदी की दोनो शाखाएं मिल कर मजुली द्वीप बनाती है जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है । असम में नदी को प्रायः ब्रह्मपुत्र नाम से ही बुलाते हैं, पर बोङो लोग इसे भुल्लम-बुथुरभी कहते हैं जिसका अर्थ है- कल-कल की आवाज निकालना

[संपादित करें]मुहाना

इसके बाद यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है जहां इसकी धारा कई भागों में बट जाती है। एक शाखा गंगा की एक शाखा के साथ मिल कर मेघना बनाती है। सभी धाराएं बंगाल की खाङी में गिरती है ।

[संपादित करें]सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण

1954 के बाद बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ और तटबंधों का निर्माण प्रारम्भ किए गए थे, बांग्लादेश में यमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना ब्रह्मपुत्र तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तिस्ता बराज परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है। ब्रह्मपुत्र या असम घाटी से बहुत थोड़ी विद्युत पैदा की जाती है। जबकि उसकी अनुमानित क्षमता काफ़ी है। अकेले भारत में ही यह लगभग हो सकती है 12,000 मेगावाट है। असम में कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं। जिनमें से सबसे उल्लेखनीय 'कोपली हाइडल प्रोजेक्ट' है और अन्य का निर्माण कार्य जारी है।

[संपादित करें]नौ-संचालन और परिवहन

तिब्बत में ला—त्जू (ल्हात्से दज़ोंग) के पास नदी लगभग 644 किलोमीटर के एक नौकायन योग्य जलमार्ग से मिलती है। चर्मावृत नौकाएँ (पशु—चर्म और बाँस से बनी नौकाएँ) और बड़ी नौकाएँ समुद्र तल से 3,962 मीटर की ऊँचाई पर इसमें यात्रा करती हैं। त्सांगपो पर कई स्थानों पर झूलते पुल बनाए गए हैं।
असम और बांग्लादेश के भारी वाले क्षेत्रों में बहने के कारण ब्रह्मपुत्र सिंचाई से ज़्यादा अंतःस्थलीय नौ—संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण है। नदी ने पंश्चिम बंगाल और असम के बीच पुराने समय से एक जलमार्ग बना रखा है। यद्यपि यदा—कदा राजनीतिक विवादों के कारण बांग्लादेश जाने वाला यातायात अस्त—व्यस्त हुआ है। ब्रह्मपुत्र बंगाल के मैदान और असम से समुद्र से 1,126 किलोमीटर की दूरी पर डिब्रगढ़ तक नौकायन योग्य है। सभी प्रकार के स्थानीय जलयानों के साथ ही यंत्रचालित लान्च और स्टीमर भारी भरकम कच्चा माल, इमारती लकड़ी और कच्चे तेल को ढोते हुए आसानी से नदी मार्ग में ऊपर और नीचे चलते हैं।

1962 में असम में गुवाहाटी के पास सड़क और रेल, दोनों के लिए साराईघाट पुल बनने तक ब्रह्मपुत्र नदी मैदानों में अपने पूरे मार्ग पर बिना पुल के थी। 1987 में तेज़पुर के निकट एक दूसरा कालिया भोमौरा सड़क पुल आरम्भ हुआ। ब्रह्मपुत्र को पार करने का सबसे महत्त्वपूर्ण और बांग्लादेश में तो एकमात्र आधन नौकाएँ ही हैं। सादिया, डिब्रगढ़, जोरहाट, तेज़पुर, गुवाहाटी, गोवालपारा और धुबुरी असम में मुख्य शहर और नदी पार करने के स्थान हैं। बांग्लादेश में महत्त्वपूर्ण स्थान हैं, कुरीग्राम, राहुमारी, चिलमारी, बहादुराबाद घाट, फूलचरी, सरीशाबाड़ी, जगन्नाथगंज घाट, नागरबाड़ी, सीरागंज और गोउंडो घाट, अन्तिम रेल बिन्दु बहादुराबाद घाट, फूलचरी, जगन्नाथगंज घाट, सिराजगंज और गोवालंडो घाट पर स्थित है।

[संपादित करें]अध्ययन और अन्वेषण

ब्रह्मपुत्र का ऊपरी मार्ग 18वीं शताब्दी में ही खोज लिया गया था। हालाँकि 19वीं शताब्दी तक यह लगभग अज्ञात ही था। असम में 1886 में भारतीय सर्वेक्षक किंथूप (1884 में प्रतिवेदित) और जे.एफ़. नीढ़ैम की खोज ने त्सांग्पो नदी को ब्रह्मपुत्र के ऊपरी मार्ग के रूप में स्थापित किया। 20वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में कई ब्रिटिश अभियानों ने त्सांग्पो की धारा के प्रतिकूल जाकर तिब्बत में जिह—का—त्से तक नदी के पहाड़ी दर्रों की खोज की।

ब्रह्मपुत्र नदी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुतिलेख ♯ (प्रतीक्षित)*

ब्रह्मपुत्र नदी, असम

ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय में अपने उद्गम से लगभग 2,900 कि.मी. बहकर यमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा नदी की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलती है और बाद में दोनों का मिश्रित जल बंगाल की खाड़ी में गिरता है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत के दक्षिण में मानसरोवर के निकट चेमायुंग दुंग नामक हिमवाह से हुआ है।
  • अपने मार्ग में यह चीन के स्वशासी क्षेत्र तिब्बत, भारतीय राज्यों, अरुणाचल प्रदेशअसम और बांग्लादेश से होकर बहती है।
  • अपनी लंबाई के अधिकतर हिस्से में नदी महत्त्वपूर्ण आंतरिक जलमार्ग का कार्य करती है; फिर भी तिब्बत के पहाड़ों और भारत के मैदानी इलाक़ों में यह नौका चालक के योग्य नहीं है।
  • अपने निचले मार्ग में यह नदी सृजन और विनाश, दोनों ही करती है। साथ ही यह बड़ी मात्रा में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी जमा करती है। परंतु अक्सर विनाशकारी बाढ़ लाने वाली सिद्ध होती है।

ब्रह्मपुत्र के अन्य नाम


  • बांग्ला भाषा में जमुना के नाम से जानी जाती है।
  • चीन में या-लू-त्सांग-पू चियांग या यरलुंग ज़ैगंबो जियांग कहते है।
  • तिब्बत में त्सांग-पो या सांपो के नाम से जानी जाती है।
  • मध्य और दक्षिण एशिया की प्रमुख नदी कहते हैं।
  • अरुणाचल में डिहं के नाम से जानी जाती है।
  • असम में ब्रह्मपुत्र कहते हैं।

ब्रह्मपुत्र की उपनदियाँ


  • सुवनश्री
  • तिस्ता
  • तोर्सा
  • लोहित
  • बराक

प्राकृतिक विशेषताएँ

भू—आकृति


  • ब्रह्मपुत्र का उदगम स्थल चेमायुंगडंग हिमनद है, जो दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत में मा—फ़ा—मूं (मापाम) झील से लगभग 97 किलोमीटर दक्षिण—पूर्व में हिमालय की ढलानों को आच्छादित करता है। कूबी, आंगसी और चेमायुंगडंग वहाँ से उत्पन्न होने वाली तीन मुख्य धाराएँ हैं। नदी अपने उदगम स्थल से सामान्यतः पूर्वी दिशा में दक्षिण की ओर हिमालय की मुख्य पर्वत श्रेणी और उत्तर की ओर निएन—चिंग—तांग—कू—ला (न्येनचेन) पर्वतों के बीच क़रीब 1,126 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है।

ब्रह्मपुत्र नदी


  • नदी अपने पूरे ऊपरी मार्ग पर सामान्यतः त्सांगपो (शोधक) के नाम से जानी जाती है, और अपने मार्ग में कई जगहों पर अपने चीनी नाम से और अन्य स्थानीय तिब्बती नामों से भी जानी जाती है।
  • तिब्बत में त्सांग—पो कुछ उपनदियों को समाहित करती है, बाएँ तट की सबसे महत्त्वपूर्ण उपनदियाँ हैं, लो—कात्सांग—पू (रागा त्सांग-पो), जो जीह—का—त्से (शींगत्सी) के पश्चिम में नदी से जुड़ती है और ला—सा (की), जो तिब्बत की राजधानी ल्हासा के निकट से बहती है और चू—शुई में त्सांगपो से जुड़ती है। नी—यांग (ग्यामडा) नदी इस नदी से त्सी—ला (त्सेला दज़ोंग) में उत्तर की ओर जुड़ती है। दाएँ तट पर निएन—चू (न्यांग चू) नदी इस नदी से जीह—का—त्से पर मिलती है। तिब्बत में पाई (पे) से गुजरने के बाद, नदी अचानक उत्तर और पूर्वोत्तर की ओर मुड़ जाती है और ग्याला पेरी और नामचा बरखा (माउंट—ना—मू—चो—इर्ह--वा) के पहाड़ों के बीच उत्प्रवण जल प्रपातों की श्रृंखला में एक के बाद एक बड़ी संकरी घाटियों से रास्ता बनाती है। उसके बाद, यह नदी दक्षिण और दक्षिण—पश्चिम की ओर मुड़ती है और दीहांग नदी के रूप में पूर्वोत्तर भारत की असम घाटी में प्रवेश के लिए हिमालय के पूर्वी छोर से गुजरती है।
  • भारत में सादिया शहर के पश्चिम में दीहांग दक्षिण—पश्चिम की ओर मुड़ती है, इसमें दो पहाड़ी जलधाराएँ, लोहित और दिबांग मिलती है। संगम के बाद बंगाल की खाड़ी से क़रीब 1,448 किलोमीटर पहले नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है। असम में इसका पाट सूखे मौसम के दौरान भी नदी में ख़ासा पानी रहता है और बरसात के मौसम में तो इसका पाट 8 किलोमीटर से भी चौड़ा हो जाता है। जैसे—जैसे यह नदी घाटी के 724 किलोमीटर लम्बे मार्ग में अपने घुमाबदार का अनुसरण करती है, इसमें सुबनसिरी, कामेंग, भरेली, धनसारी, मानस, चंपामती, सरलभंगा और संकोश नदियों सहित कई तेज़ी से बहती हिमालयी नदियाँ मिलती हैं। बुढ़ी दिहांग, दिसांग, दिखी और कोपीली पहाड़ियों और दक्षिण के पठार से आने वाली मुख्य उपनदियाँ हैं।
  • भारत में धुबुरी के नीचे गारो पहाड़ी के निकट दक्षिण में मुड़ने के बाद ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश के मैदानी इलाक़े में प्रवेश करती है। बांग्लादेश में चिलमारी के निकट से बहने के पश्चात इसके दाएँ तट पर तिस्ता नदी इससे मिलती है और उसके बाद यह यमुना नदी के रूप में दक्षिण की ओर 241 किलोमीटर लम्बा मार्ग तय करती है।[1] गंगा से संगम से पहले यमुना में बाएँ तट से बरल, अतरई और हुरसागर नदियों का जल आ मिलता है और इसके बाएँ तट पर विशाल धलेश्वरी नदी का निकासी मार्ग बन जाता है। धलेश्वरी की एक उपनदी बुढ़ी गंगा, ढाका से आगे निकलकर मुंशीगंज से ऊपर मेघना नदी में मिलती है।
  • ग्वालंदों घाट के उत्तर में यमुना गंगा से मिलती है, जिसके बाद पद्मा के रूप में उनका मिश्रित जल दक्षिण—पूर्व में 121 किलोमीटर की दूरी तक बहता है। पद्मा मेघना नदी से संगम के लिए चाँदपुर के निकट पहुँचती है और तब मेघना नदी मुख और छोटे जलमार्गों द्वारा बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है।

जलवायु

ब्रह्मपुत्र घाटी की जलवायु तिब्बत में पाई जाने वाली रूखी ठंडी और शुष्क परिस्थितियों से असम घाटी और बांग्लादेश में पाई जाने वाली आमतौर पर गर्म और आर्द्र परिस्थितियों तक विविध है। तिब्बत में शीत ऋतु अत्यधिक ठंडी होती है। जिसमें न्यूनतम तापमान 0° से. नीचे रहता है। जबकि ग्रीष्म ऋतु सुहानी और उजली होती है। नदी घाटी हिमालय के मानसून क्षेत्र में स्थित है और यहाँ पर वर्षा अपेक्षाकृत कम है। ल्हासा में 400 मिमी वार्षिक वर्षा होती है।
घाटी के भारतीय और बांग्लादेशी हिस्स में मानसूनी जलवायु कुछ हद तक भिन्न है। ग्रीष्म ऋतु सामान्य से छोटी होती है और औसत तापमान धुबुरी, असम में 26° से. से ढाका में 29° से. तक रहता है। वर्षा अपेक्षाकृत अधिक है और नमी वर्ष भर काफ़ी ज़्यादा रहती है। 1,778 और 3,810 मिमी के बीच की वार्षिक वर्षा मुख्यतः जून और शुरुआती अक्तूबर माह के बीच होती है, मार्च से मई तक हल्की बारिश होती है।

जल विज्ञान


  • नदी के मार्ग में निरंतर बदलाव ब्रह्मपुत्र के जल विज्ञान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनमें सबसे आश्चर्यजनक बदलाव तिस्ता नदी के पूर्व की ओर मुड़ने और फलस्वरूप यमुना की नई नहर का विकास था, जो 1787 में तिस्ता में आई अपेक्षाकृत विशाल बाढ़ से उत्पन्न हुआ था। तिस्ता का पानी अचानक पूर्व की ओर एक पुराने परित्याक्त मार्ग की ओर मुड़ गया था। जिसके फलस्वरूप नदी मायेमेनसिंह ज़िले में बहादुरबाद घाट के सामने ब्रह्मपुत्र से मिली। 18वीं शताब्दी के अंत तक ब्रह्मपुत्र मायमेनसिंह नगर से होकर गुज़रती थी और भैरब बाज़ार के पास मेघना नदी में मिलती थी (वर्तमान में पुरानी ब्रह्मपुत्र धारा का मार्ग)। उस समय यमुना नदी का मार्ग (अब मुख्य ब्रह्मपुत्र धारा) कोनाई—जेनाई नामक एक छोटी—सी धारा हुआ करता था। जो सम्भवतः पुरानी ब्रह्मपुत्र से अलग हुई नहर थी। 1787 की तिस्ता में आई बाढ़ के अधिक शक्तिशाली होने पर ब्रह्मपुत्र कोनाई—जेनाई के निकट एक नई नहर काटने लगी और 1810 के बाद वह धीरे—धीरे यमुना के नाम से ज्ञात मुख्यधारा में बदल गई।

ब्रह्मपुत्र नदी


  • गंगा और ब्रह्मपुत्र के निचले मार्गों के किनारे और मेघना के तटों पर इन क्रियाशील नदियों के मार्गों के हटने और बदलने के कारण धरती में निरंतर क्षरण और रेत का जमाव होता रहता है। जून से सितंबर के मानसून के महीनों में बहुत बड़ा इलाक़ा बाढ़ से घिर जाता है। 1787 से यमुना ने अनेक बार मार्ग बदला है और नदी कभी भी लगातार दो वर्षो तक एक जगह पर नहीं टिकी। मौसम के साथ नदी में टापू और ज़मीन के नए अवसादित टुकड़े (चार) प्रकट होकर गायब हो जाते हैं। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में ये 'चार' अतिरिक्त खेती के क्षेत्रों के रूप में महत्त्वपूर्ण हैं।
  • तिब्बत में ब्रह्मपुत्र का पानी साफ़ है, क्योंकि प्रवाह के साथ बहुत कम रेत बहती है, किन्तु जैसे ही नदी असम घाटी में प्रवेश करती है, रेत की मात्रा बढ़ जाती है। बारिश में भीगी हिमालयी ढलान से नीचे उतरने वाली उत्तरी उपनदियों में गति और पानी की मात्रा के कारण बहने वाली मिट्टी की मात्रा उन उपनदियों के मुक़ाबले ज़्यादा है, जो दक्षिण की ओर पुराने पठार की चट्टानों को पार करती है। असम में ब्रह्मपुत्र की गहरी धारा उत्तरी तट के मुक़ाबले दक्षिणी तट पर ज़्यादा रहती है। मिट्टी से लदी उत्तरी उपनदियों द्वारा नहर को दक्षिण की ओर धकेलने से यह प्रवृत्ति और बलवती होती है।
  • नदी की एक और महत्त्वपूर्ण जल वैज्ञानिक ख़ूबी इसकी बाढ़ की प्रतृत्ति है। भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र द्वारा वाहित पानी की मात्रा बहुत अधिक है, बरसात के मौसम में पानी का बहाव 14,200 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड अनुमानित है। असम घाटी उत्तर, पूर्व और दक्षिण में पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरी हुई है और यहाँ पर वर्ष में 2,540 मिमी से अधिक वर्षा होती है। जबकि बंगाल के मैदानों में 1,778 से 2,540 मिमी की भारी वर्षा तिस्ता, तोरसा और जलढाका नदियों के भारी बहाव से बढ़ जाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी में वृहद बाढ़, 1950 के असम भूकम्प से जुड़े भूस्खलन लगभग प्रतिवर्ष की घटनाएँ हो गई हैं। इसके अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी से अंदर की ओर आते हुए उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के साथ ज्वार—भाटे की लहरें नदीमुख क्षेत्र में समय—समय पर भारी तबाही मचाती हैं।

वनस्पति एवं प्राणी जीवन

असम का बहुत बड़ा भूभाग साल (राल देने वाले बहुमूल्य लकड़ी के पेड़) के जंगलों से घिरा है और विशाल बाढ़ से मैदानों के पानी भरे क्षेत्रों (झीलों) और दलदलों में लम्बे सरकंडों के जंगल उग जाते हैं। असम घाटी के आसपास की बस्तियों में कई फलों के पेड़, जैसे केले, पपीते, आम और कटहल उगाए जाते हैं। हर जगह बाँस के झुरमुट प्रचुर मात्रा में हैं।
असम में दलदलों का सबसे उल्लेखनीय पशु एक सींग वाला गैंडा है, जो अब विश्व के दूसरे भागों से लुप्त हो चुका है। काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान घाटी में गैंडों और दूसरे वन्य जीव, जिनमें हाथी, बाघ,तेंदुए, जंगली भैंसे और हिरन सम्मिलित हैं, को आश्रय प्रदान करता है। मछलियों की बहुत सी क़िस्मों में बेतकी, पबड़ा, रूही, चीतल और म्रिगल शामिल है। 1928 में स्थापित, 360 वर्ग किलोमीटर में फैला मानस सेंचुरी ऐंड टाइगर रिज़र्व प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत आ गया है। यह अभयारण्य सभी भारतीय उद्यानों में सबसे आकर्षक माना जाता है। यहाँ पर वन्य जीवन के साथ ही समृद्ध पक्षी—जीवन भी विशिष्ट और प्रचुर है। इसी तरह वन्य जीव बरनाड़ी अभयारण्य (1980 में स्थापित) और गरमपान अभयारण्य (1952 में स्थापित) में तेंदुओं, शेरों, हाथियों, दृढ़लोमी खरगोशों और शूद्र शूकरों को देखा जा सकता है।

जनजीवन

ब्रह्मपुत्र घाटी के विभिन्न हिस्सों में रह रहे लोगों की उत्पत्ति और संस्कृति विविधतापूर्ण है। हिमालयी परकोटे के उत्तर में रहने वाले तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करते हैं और तिब्बती भाषा बोलते हैं। ये पशुपालन में संलग्न हैं और नदी से लिए गए सिंचाई जल से घाटी के खेतों में कृष करते हैं।
असमी लोग मंगोलियाई—तिब्बती, आर्य और बर्मी मूल का मिला—जुला समूह है। उनकी भाषा बांग्ला भारत में पश्चिम बंगाल राज्य और बांग्लादेश में बोली जाने वाली भाषा से मिलती—जुलती है।
19वीं सदी के अंत से अब तक बांग्लादेश के बंगाल मैदान से प्रवासियों का भारी संख्या में लाटी में प्रवेश हुआ है। जहाँ वह लगभग ख़ाली ज़मीनों, विशेष रूप से निचले बाढ़ के मैदानों को जोतने के लिए बस गए हैं। बंगाल मैदान में नदी उन क्षेत्रों से प्रवाहित होती है, जिसमें बंगाली सघन रूप से बसे हुए हैं और उपजाऊ घाटी में कृषि करते हैं। मैदान के पर्वतीय किनारों पर गारो, ख़ासी और हाजोग नामक पहाड़ी जनजातियाँ निवास करती हैं।

अर्थव्यवस्था

सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण

1954 के बाद बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ और तटबंधों का निर्माण प्रारम्भ किए गए थे, बांग्लादेश में यमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना ब्रह्मपुत्र तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तिस्ता बराज परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है। ब्रह्मपुत्र या असम घाटी से बहुत थोड़ी विद्युत पैदा की जाती है। जबकि उसकी अनुमानित क्षमता काफ़ी है। अकेले भारत में ही यह लगभग हो सकती है 12,000 मेगावाट है। असम में कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं। जिनमें से सबसे उल्लेखनीय 'कोपली हाइडल प्रोजेक्ट' है और अन्य का निर्माण कार्य जारी है।

ब्रह्मपुत्र नदी, असम

नौ—संचालन और परिवहन

तिब्बत में ला—त्जू (ल्हात्से दज़ोंग) के पास नदी लगभग 644 किलोमीटर के एक नौकायन योग्य जलमार्ग से मिलती है। चर्मावृत नौकाएँ (पशु—चर्म और बाँस से बनी नौकाएँ) और बड़ी नौकाएँ समुद्र तल से 3,962 मीटर की ऊँचाई पर इसमें यात्रा करती हैं। त्सांगपो पर कई स्थानों पर झूलते पुल बनाए गए हैं।
असम और बांग्लादेश के भारी वाले क्षेत्रों में बहने के कारण ब्रह्मपुत्र सिंचाई से ज़्यादा अंतःस्थलीय नौ—संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण है। नदी ने पंश्चिम बंगाल और असम के बीच पुराने समय से एक जलमार्ग बना रखा है। यद्यपि यदा—कदा राजनीतिक विवादों के कारण बांग्लादेश जाने वाला यातायात अस्त—व्यस्त हुआ है। ब्रह्मपुत्र बंगाल के मैदान और असम से समुद्र से 1,126 किलोमीटर की दूरी पर डिब्रगढ़ तक नौकायन योग्य है। सभी प्रकार के स्थानीय जलयानों के साथ ही यंत्रचालित लान्च और स्टीमर भारी भरकम कच्चा माल, इमारती लकड़ी और कच्चे तेल को ढोते हुए आसानी से नदी मार्ग में ऊपर और नीचे चलते हैं।
1962 में असम में गुवाहाटी के पास सड़क और रेल, दोनों के लिए साराईघाट पुल बनने तक ब्रह्मपुत्र नदी मैदानों में अपने पूरे मार्ग पर बिना पुल के थी। 1987 में तेज़पुर के निकट एक दूसरा कालिया भोमौरा सड़क पुल आरम्भ हुआ। ब्रह्मपुत्र को पार करने का सबसे महत्त्वपूर्ण और बांग्लादेश में तो एकमात्र आधन नौकाएँ ही हैं। सादिया, डिब्रगढ़, जोरहाट, तेज़पुर, गुवाहाटी, गोवालपारा और धुबुरी असम में मुख्य शहर और नदी पार करने के स्थान हैं। बांग्लादेश में महत्त्वपूर्ण स्थान हैं, कुरीग्राम, राहुमारी, चिलमारी, बहादुराबाद घाट, फूलचरी, सरीशाबाड़ी, जगन्नाथगंज घाट, नागरबाड़ी, सीरागंज और गोउंडो घाट, अन्तिम रेल बिन्दु बहादुराबाद घाट, फूलचरी, जगन्नाथगंज घाट, सिराजगंज और गोवालंडो घाट पर स्थित है।

अध्ययन और अन्वेषण

ब्रह्मपुत्र का ऊपरी मार्ग 18वीं शताब्दी में ही खोज लिया गया था। हालाँकि 19वीं शताब्दी तक यह लगभग अज्ञात ही था। असम में 1886 में भारतीय सर्वेक्षक किंथूप (1884 में प्रतिवेदित) और जे.एफ़. नीढ़ैम की खोज ने त्सांग्पो नदी को ब्रह्मपुत्र के ऊपरी मार्ग के रूप में स्थापित किया। 20वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में कई ब्रिटिश अभियानों ने त्सांग्पो की धारा के प्रतिकूल जाकर तिब्बत में जिह—का—त्से तक नदी के पहाड़ी दर्रों की खोज की।

समाचार

बुधवार, 24 अगस्त, 2011

चीन ने खोजा ब्रह्मपुत्र-सिंधु का उद्गम स्थल
चीन के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के उद्गम स्थल का पता लगा लिया है। ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने समेत तिब्बत में कई जल परियोजनाओं को अंजाम देने के लिए तैयार बैठे चीनी वैज्ञानिकों ने इन नदियों के मार्ग की लंबाई का व्यापक उपग्रह अध्ययन पूरा करने की बात भी कही है।

ब्रह्मपुत्र नदी

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है। ब्रह्मपुत्र के मार्ग का उपग्रह से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण कर वैज्ञानिकों ने उसके पूरे मार्ग का अध्ययन किया। इसी तरहभारत-पाकिस्तान से बहने वाली सिंधु और म्यांमार के रास्ते बहने वाली सालवीन और इर्रावडी के बहाव के बारे में भी पूरा विवरण जुटाया गया। सीएएस की इकाई इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशंस के शोधकर्ता लियू शाओचुआंग ने शिन्हुआ संवाद समिति को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि इससे पहले इन चार नदियों के उद्गम के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी। इतना ही नहीं इनकी लंबाई और क्षेत्र को लेकर भी भ्रम बना हुआ था। इस कार्य में प्राकृतिक परिस्थितियों से जुड़ी कई बाधाएं होने और सर्वेक्षण की तकनीक सीमित होने के कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई थी।

समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें


टीका टिप्पणी


  1. गायबंदा के दक्षिण में पुरानी ब्रह्मपुत्र मुख्य धारा का बायाँ तट छोड़ती है और जमालपुर और मायमेनसिंह के निकट से बहकर भैरब बाज़ार के निकट मेघना नदी में मिलती है।

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अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

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अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

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